हेलो दोस्तों, मेरा नाम वीराज है, और मैं अपनी जिंदगी की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे दिल-ओ-दिमाग में आज भी ताजा है। मैं 20 साल का हूँ, और मेरे घर में मम्मी-पापा, मेरी दो बहनें, और मैं—कुल मिलाकर पाँच लोग रहते हैं। मेरी छोटी बहन 12वीं में पढ़ती है और हॉस्टल में रहती है। मेरी बड़ी बहन, संचिता, जो मुझसे करीब दो साल बड़ी है, घर से ही कॉलेज जाती है। मैं सेक्स स्टोरीज कभी-कभी पढ़ता था, क्योंकि मुझे सेक्स का बहुत शौक है। सच कहूँ तो, उस शौक को मैं रोक नहीं पाता। मेरे दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चटपटा चलता रहता था।
ये बात दो साल पुरानी है। उस वक्त मैं 18 साल का था, और जिंदगी में कुछ नया ढूंढ रहा था। एक दिन मैं घर पर अकेला था। मम्मी-पापा किसी काम से बाहर गए थे, और छोटी बहन तो हॉस्टल में थी ही। संचिता दीदी कॉलेज से लौटकर घर पर थी, लेकिन वो अपने कमरे में थी। मैं बोर हो रहा था, तो गूगल पर कुछ डिक्शनरी शब्दों का मतलब ढूंढने लगा। तभी मेरे दिमाग में एक शरारती ख्याल आया—सेक्स का असली मतलब क्या होता है? मैंने गूगल पर “सेक्स” सर्च किया। सर्च रिजल्ट में एक सेक्स स्टोरी वाली वेबसाइट दिखी। मैंने उत्सुकता में वो स्टोरी पढ़नी शुरू की। स्टोरी पढ़ते-पढ़ते मेरा लंड इतना टाइट हो गया कि मैं बेचैन हो उठा। उस स्टोरी में एक लड़के और उसकी पड़ोसन की चुदाई का ऐसा जिक्र था कि मेरे बदन में आग-सी लग गई।
मैं उस वक्त अपने कमरे में था, और मेरे पास कोई नहीं था। लंड इतना सख्त हो चुका था कि मैंने अपनी पैंट उतार दी और लंड को सहलाने लगा। जैसे ही मैंने उसे जोर-जोर से रगड़ा, अचानक मेरे लंड से चिपचिपा पानी निकल पड़ा। मैं घबरा गया, क्योंकि ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था। मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या था। अगले दिन मैंने अपने दोस्त राकेश को ये बात बताई। उसने हंसते हुए कहा, “अरे यार, ये तो मुठ मारने का मजा है! तेरा पहली बार निकला है, अब तो तू रोज ऐसा करेगा।” उसने मुझे मुठ मारने और सेक्स के बारे में और भी बहुत कुछ समझाया। उस दिन से मैं रोज मुठ मारने लगा। लेकिन कुछ दिनों बाद मुझे लगा कि मुठ मारने से वो मजा नहीं आ रहा, जो मैं चाहता था। मेरे दिमाग में अब बस एक ही बात थी—अगर लंड को हाथ से रगड़ने में इतना मजा है, तो किसी लड़की की चूत में डालने में कितना मजा आएगा!
मैंने ठान लिया कि अब मुझे किसी की चूत का स्वाद लेना ही है। लेकिन एक दिक्कत थी—मैं लड़कियों से बात करने में बहुत शर्माता था। कॉलेज में मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी, और मैं इतना शर्मीला था कि लड़कियों से आँखें तक नहीं मिला पाता था। फिर एक दिन मौका मिला। उस दिन घर पर सिर्फ मैं और संचिता दीदी थे। मम्मी-पापा किसी रिश्तेदार के यहाँ गए थे और रात तक लौटने वाले नहीं थे। दीदी ने जल्दी-जल्दी खाना बना लिया, और हम दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाने के बाद दीदी अपने कमरे में होमवर्क करने चली गई। मेरे पास कोई काम नहीं था, तो मैं मम्मी-पापा के कमरे में जाकर उनके बिस्तर पर लेट गया और कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
रात को करीब साढ़े बारह बजे मेरी नींद खुली। मुझे टीवी के कमरे से कुछ अजीब-सी आवाजें सुनाई दीं। मैंने सोचा, शायद दीदी टीवी देख रही है। मैं चुपके से उठा और आधे खुले दरवाजे से झाँकने लगा। जो मैंने देखा, उससे मेरे होश उड़ गए। संचिता दीदी सोफे पर बैठी थी, और टीवी पर एक पोर्न मूवी चल रही थी। मूवी में एक लड़का और लड़की जमकर चुदाई कर रहे थे। दीदी अपनी नाइटी के ऊपर से अपनी चूत को सहला रही थी, और दूसरा हाथ उसने अपनी चूचियों पर रखा हुआ था। वो धीरे-धीरे अपनी चूचियों को दबा रही थी, और उसकी साँसें तेज चल रही थीं। मैं स्तब्ध रह गया। मेरी दीदी, जिसे मैं इतना इज्जत देता था, ऐसी हरकत कर रही थी! लेकिन फिर मैंने सोचा, इस उम्र में ऐसा होना आम बात है। मेरा भी तो यही हाल था।
थोड़ी देर बाद दीदी ने टीवी बंद कर दिया और उसी कमरे में दूसरे बिस्तर पर लेट गई। कमरे की लाइट बंद थी, तो उसे नहीं पता था कि मैं जाग रहा हूँ और ये सब देख रहा हूँ। दोनों बिस्तर पास-पास ही थे। दीदी शांति से सो गई, लेकिन मेरा दिमाग उस पोर्न मूवी की वजह से गर्म हो चुका था। मेरा लंड फिर से टाइट हो गया, और मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था। रात के करीब तीन बज चुके थे। मैंने सोचा, अगर दीदी भी मेरी तरह चुदक्कड़ है, तो शायद कुछ हो सकता है। मैं धीरे से अपने बिस्तर से सरका और दीदी के बिस्तर पर चला गया। मैंने बहुत सावधानी से उनके पास लेटकर उनके साथ चिपक गया, ताकि उन्हें पता न चले।
दीदी की गर्म साँसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं। उनकी नाइटी उनके जांघों तक चढ़ी हुई थी, और उनकी मुलायम त्वचा मेरे बदन को छू रही थी। मेरा लंड अब और सख्त हो गया। मैंने धीरे से दीदी को अपनी बाहों में लिया और अपने लंड को उनकी जांघों के बीच रगड़ने लगा। मैं बहुत सावधान था कि दीदी की नींद न टूटे। उनकी मुलायम जांघों के बीच मेरा लंड रगड़ रहा था, और मुझे ऐसा मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकता। थोड़ी देर में मेरा पानी छूट गया, और मैंने उसे अपनी पैंट में ही छोड़ दिया। मैं इतना थक गया था कि कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
सुबह जब मेरी आँख खुली, तो मैंने देखा कि मैं और दीदी अभी भी उसी तरह चिपके हुए थे। दीदी की आँखें खुल चुकी थीं, और वो मुझे देख रही थीं। मैं इतना शर्मिंदा हुआ कि उनकी तरफ देख भी नहीं पाया। मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। मैंने सोचा, अब दीदी मुझे डांटेंगी या मम्मी-पापा को बता देंगी। लेकिन दीदी ने जो कहा, उससे मेरी जान में जान आई। उन्होंने धीरे से कहा, “वीराज, इस उम्र में ऐसा होता है। तू चिंता मत कर। मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी।” उनकी आवाज में नरमी थी, और उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी।
हम दोनों कुछ देर तक बिस्तर पर वैसे ही लेटे रहे। मेरे अंदर हिम्मत बढ़ने लगी। मैंने धीरे से दीदी को फिर से अपनी बाहों में लिया। इस बार दीदी ने भी मेरा साथ दिया। वो मेरी तरफ मुड़ीं और मेरे सीने से चिपक गईं। मैंने उनकी नाइटी को थोड़ा और ऊपर उठाया। दीदी ने लाल रंग की पैंटी पहनी थी, जो उनकी गोरी जांघों पर बहुत सेक्सी लग रही थी। मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी पैंटी में डाला और उनकी चूत को सहलाने लगा। उनकी चूत इतनी मुलायम और गीली थी कि मेरे बदन में करंट-सा दौड़ गया। ये मेरी जिंदगी में पहली बार था, जब मैंने किसी लड़की की चूत को छुआ था।
दीदी ने धीरे से अपनी पैंटी उतार दी और पूरी तरह नंगी हो गईं। मैंने भी अपनी पैंट और अंडरवेयर उतार दिया। अब हम दोनों नीचे से पूरी तरह नंगे थे। दीदी ने सिर्फ नाइटी पहनी थी, जो उनकी कमर तक चढ़ी हुई थी, और मैंने सिर्फ शर्ट। हम एक-दूसरे से चिपक गए और जोर-जोर से किस करने लगे। दीदी की गर्म साँसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं, और उनकी चूचियाँ मेरे सीने से दब रही थीं। मैंने उनके कुल्हों को पकड़ा और जोर-जोर से दबाने लगा। दीदी ने भी मेरे कुल्हों पर हाथ रखा और मुझे और करीब खींच लिया। हमारा बदन एक-दूसरे से रगड़ रहा था, और कमरे में बस हमारी साँसों की आवाज गूंज रही थी।
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मैंने दीदी का एक पैर उठाया और अपने ऊपर रख लिया। मेरा लंड उनकी चूत के पास था। मैंने धीरे से लंड को उनकी चूत पर रखा और हल्का-सा धक्का दिया। मेरा आधा लंड उनकी चूत में घुस गया। दीदी की सिसकियाँ तेज हो गईं। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड पूरी तरह अंदर जाने में मुश्किल हो रही थी। मैंने थोड़ा और जोर लगाया और एक तेज झटके में मेरा 7 इंच का लंड पूरी तरह उनकी चूत में समा गया। दीदी जोर-जोर से सिसकने लगीं। उनकी सिसकियों में दर्द और मजा दोनों थे। मैंने धीरे-धीरे झटके लगाने शुरू किए। दीदी भी सामने से अपने कुल्हों को हिलाकर मेरा साथ देने लगीं। हम दोनों एक-दूसरे से चिपके हुए थे, और हमारा बदन पसीने से भीग चुका था।
मैंने दीदी की नाइटी को पूरी तरह उतार दिया। उनकी गोरी चूचियाँ मेरे सामने थीं, और उनके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। मैंने एक चूची को मुँह में लिया और चूसने लगा। दीदी की सिसकियाँ और तेज हो गईं। वो मेरे बालों को पकड़कर मुझे और करीब खींच रही थीं। मैंने अपने झटके तेज कर दिए। दीदी की चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी, और मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। हर झटके के साथ दीदी की सिसकियाँ और तेज होती थीं। “आह… वीराज… और जोर से…” दीदी धीरे से सिसकते हुए बोलीं। उनकी आवाज में एक अजीब-सी मादकता थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
हम करीब आधे घंटे तक ऐसे ही चुदाई करते रहे। दीदी की चूत मेरे लंड को पूरी तरह जकड़ रही थी। मैंने उनके दोनों पैर उठाए और अपने कंधों पर रख लिए। अब मैं और गहराई तक उनकी चूत में जा रहा था। दीदी की सिसकियाँ अब चीखों में बदल गई थीं। “हाय… वीराज… और तेज… फाड़ दे मेरी चूत को…” दीदी की आवाज में वो जुनून था, जो मुझे और पागल कर रहा था। मैंने अपनी पूरी ताकत से झटके लगाने शुरू किए। कमरे में बस हमारी साँसों और चुदाई की आवाजें गूंज रही थीं।
थोड़ी देर बाद दीदी का बदन अकड़ने लगा। उनकी चूत ने मेरे लंड को और जोर से जकड़ लिया। “आह… मैं झड़ रही हूँ…” दीदी ने सिसकते हुए कहा, और उनका पूरा बदन काँपने लगा। उनकी चूत से गर्म-गर्म पानी निकलने लगा, जो मेरे लंड को और गीला कर रहा था। मैं भी अब अपने चरम पर था। मैंने और तेज झटके लगाए, और आखिरकार मेरा लंड भी झड़ गया। मैंने अपना सारा पानी दीदी की चूत में ही छोड़ दिया। हम दोनों हाँफ रहे थे, लेकिन एक-दूसरे से चिपके हुए थे।
झड़ने के बाद हम दोनों करीब 20 मिनट तक एक-दूसरे की बाहों में लेटे रहे। दीदी मेरे सीने पर सिर रखकर लेटी थीं, और मैं उनके बालों को सहला रहा था। हम दोनों के बदन पसीने से भीगे हुए थे, लेकिन एक अजीब-सा सुकून था। सुबह के 8 बज चुके थे। दीदी उठीं और नाश्ता बनाने चली गईं। मैं भी उठा, नहाया, और कॉलेज के लिए तैयार हो गया। लेकिन उस दिन मेरा मन कॉलेज में बिल्कुल नहीं लगा। मेरे दिमाग में बस दीदी की चूत और उस चुदाई का नशा था।
उस दिन के बाद से जब भी घर पर हम अकेले होते, हम जमकर चुदाई करते। अब मुझे दीदी से कोई शर्म नहीं थी। हम दोनों पूरी तरह नंगे होकर, अलग-अलग स्टाइल में चुदाई का मजा लेते। कभी मैं दीदी को गोद में उठाकर चोदता, तो कभी वो मेरे ऊपर चढ़कर अपनी चूत में मेरा लंड लेतीं। उनकी सिसकियाँ और मेरी उत्तेजना कमरे को भर देती थी। अब मुझे मुठ मारने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि जब भी मन करता, दीदी की चूत मेरे लिए तैयार रहती।
तो दोस्तों, कैसी लगी मेरी कहानी? ये मेरी जिंदगी का वो सच है, जो मैं कभी नहीं भूल सकता।