मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-3

कहानी का पिछला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-2

मैं करिश्मा, इकतालीस साल की एक ऐसी औरत, जिसकी जवानी कोलकाता की गलियों में “मस्त माल” का खिताब दिलाती थी। मेरी गोरी चूचियाँ, पतली कमर, और चिकनी जांघें देखकर लोग सिसकारियाँ भरते थे। उस मॉनसून की उमस भरी शाम, मेरा बेटा विनोद मुझे एक इंग्लिश सिनेमा दिखाने “मॉडर्न सिनेमा” ले आया। कुंदन की यादों और विनोद की चुदासी बातों ने मेरे जिस्म में ऐसी आग लगा दी थी कि मैं किसी भी मर्द के साथ चुदवाने को तैयार थी। मेरी चूत इतनी गीली थी कि मेरी काली साड़ी के नीचे नमी साफ महसूस हो रही थी।

हम हॉल में घुसे। सीट नंबर नहीं थे, तो हम बीच की पंक्ति में, लाइन के ठीक बीच में बैठ गए। विनोद के बगल में एक जवान लड़की थी, जिसने हमें देखकर मुस्कुराया। मैंने भी हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन मेरे दिमाग में सिर्फ चुदाई की भूख थी। मेरे बगल की सीट खाली थी, पर जल्दी ही दो मर्द आए और मेरे पास बैठ गए। मेरे ठीक बगल वाला एक अधेड़, दुबला-पतला मर्द था, जिसका चेहरा मुझे पहली नजर में नागवार लगा। उसकी भूखी आँखें मेरी चूचियों पर टिकी थीं, और मुझे उसका स्पर्श भी गंदा लगा।

अचानक हॉल की लाइटें बंद हुईं, और एक अजीब सी घोषणा गूंजी: “मॉडर्न सिनेमा में आपका स्वागत है। इस हॉल का मुख्य गेट सिनेमा खत्म होने के बाद ही खुलेगा। स्त्री-पुरुष के लिए एक ही कॉमन बाथरूम है। यहाँ किसी औरत के साथ ज़बरदस्ती बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो भी ज़बरदस्ती की कोशिश करेगा, उसके हाथ-पैर तोड़ दिए जाएँगे। आप सब आराम से अपनी साथ आई औरतों के साथ मज़ा लेते हुए सिनेमा का आनंद लीजिए।”

मैंने ढेर सारे सिनेमा देखे थे, लेकिन ऐसी घोषणा कभी नहीं सुनी। मर्द-औरत का कॉमन बाथरूम? मैं स्तब्ध थी। मैंने विनोद की जांघ को ज़ोर से दबाया और फुसफुसाई, “लगता है तू पहले भी इस हॉल में आ चुका है। कितना गंदा माहौल है!”

हॉल में अंधेरा था, लेकिन चारों तरफ चुंबन की चप-चप और औरतों की सिसकारियाँ गूंज रही थीं। विनोद ने धीरे से कहा, “नहीं माँ, मैंने ड्राइवर से कहा था कि हमें ऐसी जगह ले जाए जहाँ सेक्सी मूवी चल रही हो। उसने हमें यहाँ ला दिया।”

मैंने फुसफुसाकर झिड़का, “गलती से भी माँ मत कह, नाम से बुला, करिश्मा!” मेरी आवाज़ में तल्खी थी, लेकिन मेरी चूत की गर्मी मुझे बेचैन कर रही थी।

अंधेरे में विनोद ने मेरी एक चूची को धीरे से दबाया। उसका स्पर्श मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा गया, लेकिन मैंने उसका हाथ झटक दिया। उसने अपनी मंशा साफ कर दी थी—वो मुझे छूना, मसलना, शायद चोदना चाहता था। लेकिन हॉल का गेट सिनेमा खत्म होने तक बंद था। अगर मैं चिल्लाती, रोकती, तो सबको पता चल जाता कि मैं अपने बेटे के साथ ऐसी गंदी जगह आई हूँ। मेरी इज्ज़त मिट्टी में मिल जाती। मैं चुप रही, मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं।

तभी सिनेमा शुरू हुआ। ये एक इंग्लिश फिल्म थी। स्क्रीन पर एक घर में माँ-बेटा बातें कर रहे थे। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। बेटे ने दरवाजा खोला, और सात निग्रो मर्द अंदर घुस आए। सब छह फुट से लंबे, काले, मज़बूत, और खतरनाक। एक निग्रो ने औरत से कहा कि उसके बेटे ने छह महीने पहले उनसे कर्ज लिया था, जो अभी तक नहीं चुकाया। “हम आज पूरा कर्ज लेकर जाएँगे, वरना तुम्हारे बेटे को मार देंगे,” उसने धमकाया।

औरत घबरा गई। “हमें थोड़ा और समय दो, सारा कर्ज चुका देंगे,” उसने काँपते स्वर में कहा। वो सोफे पर इस तरह बैठी कि उसकी जांघें पूरी तरह नंगी हो गईं। मेरी जांघें मुझे बहुत पसंद थीं, लेकिन उस औरत की जांघें मांसल, सुडौल, और इतनी चिकनी थीं कि मेरी चूत में सिहरन दौड़ गई।

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निग्रो मर्दों ने आपस में कुछ फुसफुसाया। दूसरा निग्रो बोला, “मैडम, हम पैसे नहीं लेंगे। आज से आप और आपका बेटा हमारे दोस्त हैं। लेकिन दोस्ती से पहले आपको हम सबको संतुष्ट करना होगा।”

औरत या उसका बेटा कुछ कह पाता, उससे पहले सातों निग्रो ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने मूसल बाहर निकाल लिए। मैं समझती थी कि कुंदन का आठ इंच का लौड़ा सबसे मस्त था, लेकिन इनके मूसल कम से कम नौ इंच लंबे और कुंदन से दुगने मोटे थे। मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।

पाँच मिनट के अंदर औरत सातों मूसलों के साथ खेलने लगी। कभी एक लौड़ा चूसती, तो दोनों हाथों से दो और मूसल सहलाती। उसका बेटा पहले तो माँ की मस्ती देखता रहा, फिर वो भी नंगा हो गया और अपनी माँ के मुँह में लौड़ा पेल दिया। स्क्रीन पर चुदाई का तूफान चल रहा था।

इधर, विनोद मेरी जांघों को सहला रहा था, उसकी उंगलियाँ मेरी चूत की तरफ बढ़ रही थीं। तभी मेरे बगल वाला दुबला मर्द, सुदेश, ने मेरी चूची दबाई। मैंने उसका हाथ झटक दिया और फुसफुसाई, “शिकायत कर दूँगी, तो तेरे हाथ-पैर तोड़ देंगे।”

सुदेश ने हँसते हुए कहा, “मैडम, आप शायद पहली बार आई हैं। यहाँ कोई ज़बरदस्ती नहीं करता। ज़रा आसपास देखिए, सारी औरतें नंगी हो चुकी हैं, अपने मर्दों के साथ मस्ती मार रही हैं। इस चुदाई की मूवी देखकर आप भी गर्म हो जाएँगी। मुझे तो मज़ा मिलेगा, आपको भी मिलेगा। मुफ्त की मस्ती क्यों छोड़ रही हो?”

मैंने आसपास नज़र दौड़ाई। मेरे आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ, सारी औरतें टॉपलेस थीं। मेरे सामने वाली औरत अपने मर्द की गोद में बैठ गई, और उसकी सिसकारियाँ हॉल में गूंजने लगीं। मैं स्क्रीन पर मूवी देखने में खो गई थी, तभी विनोद ने मेरा हाथ खींचकर अपने मूसल पर रख दिया। उसका लौड़ा छूते ही मेरा दिल खुशी से नाच उठा। निग्रो जितना मोटा नहीं था, लेकिन लंबा, मोटा, और लोहे की तरह कड़क था। मैंने हाथ नहीं हटाया, और धीरे-धीरे उसे सहलाने लगी। मेरी उंगलियाँ उसके गर्म मूसल पर रेंग रही थीं, और मेरी चूत में आग भड़क रही थी।

सुदेश ने देख लिया कि मैं विनोद का लौड़ा सहला रही हूँ। उसने मेरा दूसरा हाथ खींचकर अपने लौड़े पर रख दिया। मैंने ना हाथ हटाया, ना कुछ कहा। अब मैं दोनों हाथों से दो मूसल सहला रही थी। सुदेश ने पूछा, “आपका नाम क्या है?” मैंने उसका लौड़ा ज़ोर से दबाते हुए कहा, “करिश्मा।”

मूवी में चुदाई अपने चरम पर थी। औरत की चूत और गांड में मूसल पेल रहे थे, और मैं दोनों मूसलों को मसल रही थी। विनोद का लौड़ा सुदेश से लंबा और मोटा था। दोनों बीच-बीच में मेरी चूचियों को भी मसल देते। सुदेश ने कहा, “क्या मस्त, कड़क चूचियाँ हैं। ब्लाउज निकाल दो।”

मैंने मना किया, “नहीं, ऊपर से ही मज़ा लो।”

किसी ने मेरा ब्लाउज नहीं खोला, लेकिन विनोद और सुदेश ने मेरी साड़ी और साया कमर तक खींच लिया। मेरी चिकनी जांघें नंगी हो गईं। दोनों एकसाथ बोले, “उफ्फ, इससे मस्त जांघें किसी की नहीं होंगी।” मेरी चूत की नमी अब मेरी जांघों पर टपक रही थी।

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स्क्रीन पर औरत आठ मूसलों के साथ मस्ती ले रही थी, लेकिन मुझे दो मर्दों की मस्ती ज़्यादा सुख दे रही थी। विनोद ने फिर कहा, “करिश्मा, ब्लाउज खोलने दे।”

मैंने ताना मारा, “चूचियाँ देखकर क्या करेगा? चूत से तो खेल ही रहा है।”

दोनों का एक-एक हाथ मेरी चूत को सहला रहा था। अचानक विनोद की दो उंगलियाँ और सुदेश की दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुस गईं। सुदेश ने फुसफुसाया, “कितनी टाइट और रसीली चूत है, रानी। मेरे लौड़े पर बैठ जा, इसे भोसड़े में घुसाने दे।”

लेकिन बोलते-बोलते सुदेश का लौड़ा झड़ गया। मैंने उसे ज़ोर से दबाया और हाथ हटा लिया। “मुझे ऐसे ढीले लौड़े से चुदवाने की आदत नहीं। जा, मेरे बगल से हट,” मैंने तल्खी से कहा।

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सुदेश को बुरा लगा होगा। उसने लौड़ा पैंट में डाला और अपने दोस्त के साथ उठकर चला गया, शायद बाथरूम। मैंने विनोद से कहा, “बस, अब बहुत हुआ। चोदना है तो उंगली नहीं, मुझे इस मस्त लौड़े से चूत में चोद।” मैं उससे चुदवाने को तैयार थी। मैंने साड़ी और साया और नीचे खींच लिया, और विनोद के मूसल को तेज़ी से मुठियाने लगी, स्क्रीन पर मूवी देखते हुए। स्क्रीन पर एक निग्रो औरत को चोद रहा था, और उसका बेटा उसकी गांड में लौड़ा पेल रहा था। औरत दोनों हाथों से दो मूसल सहलाते हुए बाकी लौड़ों को बारी-बारी चूस रही थी।

मेरा मन विनोद का लौड़ा चूसने को कर रहा था, लेकिन मैं चाहती थी कि वो खुद कहे। सात-आठ मिनट बाद सुदेश और उसका दोस्त लौटे, लेकिन इस बार मेरे बगल में सुदेश नहीं, उसका दोस्त बैठा। उसने मुझे अपनी बाँहों में खींच लिया और ज़ोर से चूमने लगा। दो-तीन चुंबन के बाद उसने मुझे छोड़ा। “मैडम, मेरा नाम लल्लन है,” उसने कहा। “सुदेश ने कहा कि आप बहुत कड़क हैं, लेकिन वो गलत है। आपके जैसा मस्त माल मैंने कभी नहीं देखा। सिनेमा के बाद हमारे साथ होटल चलिए। स्क्रीन वाली औरत आठ मर्दों से मज़ा ले रही है, मैं अकेला उससे ज़्यादा मज़ा दूँगा।”

लल्लन में गज़ब का आत्मविश्वास था। मैंने ताना मारा, “मैं रंडी नहीं हूँ। मेरे दोस्त को नहीं पता था कि इस हॉल में इतनी गंदी मूवी चलती है। लेकिन अब आ ही गई हूँ, तो थोड़ी मस्ती ले लूँ। तुम्हारे दोस्त का लौड़ा ढीला था। देखें, तुम्हारा कैसा है।”

विनोद का मूसल मेरे हाथ में अब भी कड़क था। लल्लन ने मेरा दूसरा हाथ खींचकर अपने लौड़े पर रखा। छूते ही मैं चिल्लाई, “बाप रे, कितना मोटा है! मेरी चूत फट जाएगी।” लेकिन फिर मैंने धीरे-धीरे उसे सहलाना शुरू किया। उसका मूसल निग्रो के लौड़े जितना लंबा और सबसे मोटा था।

पास से एक औरत की आवाज़ आई, “कोई भी लौड़ा कितना भी मोटा हो, हम रंडियों की चूत उसे आराम से ले लेती है। मैडम, मोटा लौड़ा पसंद नहीं तो मेरे पास भेज दो।” मैंने जवाब नहीं दिया।

सुदेश और विनोद ने ब्लाउज खोलने को कहा था, मैंने मना किया था। लेकिन लल्लन ने बिना पूछे मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, पीछे हाथ डालकर ब्रा का हुक खोला, और मेरी एक चूची चूसने लगा। विनोद इस मौके का इंतज़ार कर रहा था। उसने मेरी दूसरी चूची चूसना शुरू कर दिया। दोनों ने मेरी साड़ी और साया कमर तक उठा दिया। मैंने नीचे देखा—मेरी चिकनी चूत चमक रही थी। लल्लन और विनोद एकसाथ मेरी चूचियाँ चूसते हुए मेरी चूत से खेल रहे थे। उनकी उंगलियाँ मेरे भोसड़े में रेंग रही थीं, और मेरी सिसकारियाँ हॉल में गूंज रही थीं।

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लेकिन विनोद इस दोहरी मस्ती को ज़्यादा देर नहीं संभाल पाया। उसका लौड़ा झड़ गया। फिर भी मैं उससे खुश थी—वो करीब चालीस मिनट मेरे हाथ में कड़क रहा। विनोद बाथरूम की तरफ चला गया।

लल्लन ने फुसफुसाया, “रानी, बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है। पंद्रह-बीस मिनट में सिनेमा खत्म होगा। मेरे साथ होटल चलो। मेरे जैसी चुदाई का मज़ा कोई नहीं दे सकता।”

सचमुच, लल्लन का मूसल निग्रो के लौड़े जितना लंबा और सबसे मोटा था। मैं इसे अपनी चूत में लेना चाहती थी। मैंने भाव दिखाया, “झूठ नहीं कहती, बहुत मस्त लौड़ा है। कोई भी औरत इसे प्यार से लेगी। लेकिन आज मेरे पास वक्त नहीं। टाइम से घर नहीं पहुँची, तो घरवाला नाराज़ होगा। फिर कभी।”

लल्लन की चूची चूसने की कला गज़ब थी। ना कुंदन, ना मेरे पति, ना विनोद ने ऐसा मज़ा दिया था। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर रेंग रही थी, जैसे कोई मखमली साँप मेरे जिस्म में आग लगा रहा हो। “तुम डर रही हो,” लल्लन बोला। “मेरे साथ दोस्ती करोगी, तो फायदा ही फायदा है। कल अपने पति से बोलकर आ जाओ। तुम्हें मुझसे कभी शिकायत नहीं होगी।”

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मैं तेज़ी से उसका मूसल सहला रही थी, लेकिन वो ढीला होने का नाम नहीं ले रहा था। मुझे ये लौड़ा अपनी चूत में चाहिए था। “कल नहीं, परसों आऊँगी,” मैंने कहा। “लेकिन मेरा दोस्त भी साथ रहेगा। दोनों मिलकर मुझे चोदना।”

लल्लन ने मुस्कुराया, “आज हम पाँच बजे का शो देख रहे हैं। परसों तीन बजे से पहले आ जाना।”

“ठीक है,” मैंने कहा। तभी विनोद लौट आया। बैठते ही उसने फिर लौड़ा निकाला और मेरी चूत सहलाते हुए मेरी चूची चूसने लगा। मैं खुश थी कि उसका लौड़ा, जो दस मिनट पहले झड़ा था, फिर फ्लैगपोस्ट की तरह कड़क था। “रानी, बाथरूम में पंद्रह-सोलह नंगी औरतें थीं। कुछ लोग वहाँ चुदाई भी कर रहे थे,” उसने फुसफुसाया।

लल्लन बोला, “सिर्फ बाथरूम में ही नहीं, ज़रा नज़र घुमाओ। कई मर्द अपनी माल को गोद में बिठाकर चोद रहे हैं। लेकिन मुझे ऐसी जल्दबाज़ी पसंद नहीं। मुझे अपनी माल को खुश करने के लिए कम से कम दो घंटे चाहिए।”

विनोद ने लल्लन का मूसल देख लिया। “रानी, ऐसा लंबा-मोटा लौड़ा चूत में लोगी, तो चूत फट जाएगी,” उसने कहा।

मैं दोनों मूसल मसलते हुए बोली, “एक बार चूत फट जाती है, तो कैसा भी लौड़ा हो, आराम से घुस जाता है।”

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कुछ देर और बीती। स्क्रीन पर आठों मर्दों ने औरत को चोद लिया था। कुछ ने उसकी गांड भी मारी। मैंने कभी गांड में लौड़ा नहीं लिया था, लेकिन लल्लन का मूसल देखकर मन डोल रहा था। विनोद और लल्लन मेरे साथ पूरी मस्ती ले रहे थे।

तभी एक हूटर बजा। लल्लन ने कहा, “करिश्मा, पाँच मिनट में सिनेमा खत्म हो जाएगा। कुछ करो, मेरे लौड़े को ठंडा कर दो, वरना फट जाएगा।”

मैंने वक्त बर्बाद नहीं किया। विनोद का मूसल छोड़ा, और झुककर लल्लन के लौड़े को धीरे-धीरे मुँह में लिया। सिर्फ तीन-चार इंच ही मुँह में समाया, लेकिन मैं उसकी जांघें सहलाते हुए जोर-जोर से चूसने लगी। लल्लन की सिसकारियाँ हॉल में गूंज रही थीं। फाइनल हूटर बजा, हॉल की सारी लाइटें जल उठीं। लेकिन मैं चूसती रही। कुछ लोग हमारे पास इकट्ठा हो गए, पर मैंने लौड़ा नहीं छोड़ा। आखिरकार, लल्लन झड़ने लगा। मैंने उसका सारा गर्म, नमकीन रस मुँह में लिया और सबके सामने निगल लिया।

लौड़ा ढीला होकर बाहर निकला। मैं खड़ी हुई। हॉल के लोगों ने मेरी नंगी जवानी—मेरी चूत, चूतड़, और चूचियाँ—देख ली होगी। मैंने आराम से साड़ी, साया, और ब्लाउज ठीक किया। लल्लन ने धीरे से कहा, “परसों, तीन बजे से पहले।” मैंने सिर हिलाया।

विनोद के साथ मैं बाहर आई। हमने टैक्सी ली और सात बजे से पहले घर पहुँच गए। मेरे पति रमेश को आने में आधा घंटा बाकी था। लिविंग रूम में मैंने साड़ी उतारी, ब्लाउज फेंका, और नंगी होकर चिल्लाई, “बेटा, चोद अपनी माँ को!”

विनोद अपनी जगह खड़ा रहा। मैंने उसे नंगा किया, लेकिन उसका ढीला लौड़ा देखकर मेरा दिल बैठ गया।

आगे की कहानी अगले हिस्से में।

कहानी का अगला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-4

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