मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-2

कहानी का पिछला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-1

पार्क स्ट्रीट के आइसक्रीम पार्लर में बैठी मैं, करिश्मा, अपने इक्कीस साल के बेटे विनोद को अपने पहले प्रेमी कुंदन की बातें बता रही थी। बाहर मॉनसून की फुहारें हल्की-हल्की बरस रही थीं, और पार्लर की चिपचिपी मेज पर हमारी आइसक्रीम पिघल रही थी। मेरी काली साड़ी का पल्लू मेरी गोरी कमर पर लटक रहा था, और विनोद की गहरी आँखें मेरे जिस्म को ताड़ रही थीं। उसने अचानक कुंदन का नाम लिया था, और अब मैं उसे सब कुछ बताने को तैयार थी। मेरी चूत में एक अजीब सी सिहरन थी, जैसे कोई गर्म लहर मेरे जिस्म में दौड़ रही हो।

“बेटा, जब तुम्हें पता ही है, तो सुन ले,” मैंने कहा, मेरी आवाज़ में एक मादक कंपन था। “मैं और कुंदन स्कूल से दोस्त थे। कॉलेज तक हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी कि हमें नहीं पता था कब हम एक-दूसरे के सामने नंगे होने लगे। वो तो मुझे बहुत पहले से चोदना चाहता था। मैं उसे हर तरह का मज़ा देती थी—उसका मूसल चूसती, उसके हाथों से अपनी चूचियों को मसलवाती। लेकिन असली चुदाई शुरू हुई कॉलेज के आखिरी साल के तीन-चार महीनों में।”

मैंने अपनी आँखें आधा बंद कीं, कुंदन की यादों में खो गई। “मुझे अच्छे से याद है, हमने कुल बारह बार चुदाई की। लेकिन मैं उसके सामने दो सौ से ज़्यादा बार नंगी हुई। हर बार मैं उसका मोटा लौड़ा चूसती, और वो मेरी चूत को चाटता, चूसता, जैसे कोई भूखा शेर मखमली रास्ते पर टूट पड़ा हो। बिना चुदाई के ही हम एक-दूसरे को ठंडा कर देते। उसकी जीभ मेरी चूत के गीलेपन को चूस लेती, और मेरे होंठ उसके लौड़े के रस को पी जाते।” मेरी साँसें भारी हो गई थीं, और मेरी चूचियाँ मेरे ब्लाउज में टाइट हो रही थीं।

पार्क स्ट्रीट के इस पार्लर में, जहाँ लोग हमें घूर रहे थे, मैं अपने बेटे को अपनी चुदाई की कहानियाँ सुना रही थी। मेरी आवाज़ धीमी थी, लेकिन मेरे शब्दों में आग थी। “पता नहीं कैसे कुंदन के घरवालों को खबर लगी। उन्होंने उसकी शादी कहीं और कर दी। एक महीने के अंदर मेरी शादी तुम्हारे बाबा से हो गई। तुम्हारे बाबा ने कभी शिकायत नहीं की कि मैं कुँवारी नहीं थी। वो मुझे बहुत प्यार करते हैं। लगभग हर रात मुझे चोदते हैं, कभी-कभी दो-तीन बार लगातार।”

मैंने विनोद की आँखों में देखा। उसकी नजरें मेरी चूचियों पर अटकी थीं। “लेकिन बेटा, जो मज़ा, जो मस्ती कुंदन की चुदाई में था, वो तुम्हारे बाबा कभी नहीं दे पाए। कुंदन मुझे घंटों चोदता, उसका आठ इंच का मूसल मेरी चूत को फाड़ देता, और उसकी जीभ मेरे भोसड़े को चूस-चूसकर गीला कर देती।” मेरी चूत अब इतनी गीली थी कि मेरी साड़ी के नीचे नमी महसूस हो रही थी।

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मैं बेशर्मी से विनोद को अपनी शादी से पहले की चुदाई की बातें बता रही थी। मेरे सामने बैठा विनोद नहीं, कुंदन दिख रहा था। मैं चाहती थी कि विनोद मुझे अपनी प्रेमिका समझकर चोदे, मेरी चूत को चाटे, मेरी चूचियों को मसले। लेकिन विनोद ने कुछ और ही सोच रखा था।

“माँ, हमने कभी एक साथ सिनेमा नहीं देखा,” उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक शरारती चमक थी। “मुझे अपना प्रेमी कुंदन समझ लो, और जैसे उसके साथ सिनेमा देखती थी, मेरे साथ भी चलो।”

कुंदन के साथ सिनेमा हॉल की यादें मेरे दिमाग में तैर गईं। अंधेरे में, आखिरी पंक्ति में बैठकर, वो मेरी चूत को सहलाता, अपनी उंगलियाँ मेरे गीले भोसड़े में पेलता। मैं उसका मोटा लौड़ा सहलाती, और मौका मिलते ही उसे चूस लेती। उसके लौड़े का गर्म, नमकीन रस पीना मुझे बेहद पसंद था। मेरे पति भी मुझे लौड़ा चुसवाते थे, लेकिन झड़ने से पहले मुँह से निकाल लेते। विनोद वही कह रहा था जो मैं चाहती थी, लेकिन मैंने नखरा किया।

“बेटा, साढ़े चार बज रहे हैं। सिनेमा देखने में देर हो जाएगी। तुम्हारे बाबा नाराज़ होंगे,” मैंने कहा, मेरी आँखें उसकी आँखों में गड़ी थीं।

विनोद ने मेज पर रखे मेरे हाथ को पकड़ लिया और मसलने लगा। उसका स्पर्श मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा रहा था। “माँ, हम हिंदी नहीं, कोई सेक्सी इंग्लिश फिल्म देखेंगे। बाबा सात बजे आएँगे। हम उनसे पहले घर पहुँच जाएँगे।”

मेरी चूत में आग लगी थी। मैंने फैसला कर लिया कि सिनेमा हॉल में विनोद नहीं तो किसी और के साथ मस्ती करूँगी। कुंदन की याद ने मुझे इतना चुदासी बना दिया था कि मैं अपनी सामाजिक मर्यादा और पति को भूल चुकी थी। उस पल मैं किसी की भी लंड अपनी चूत में लेने को तैयार थी। मुझे कुंदन के आठ इंच लंबे, मेरी कलाई जितने मोटे लंड की चुदाई चाहिए थी, और मेरी चूत को चूसने वाला कोई चाहिए था।

हम पार्लर से निकले। विनोद ने एक टैक्सीवाले से बात की, और हम पीछे की सीट पर बैठ गए। टैक्सी की चमड़े की सीट मेरी जांघों से चिपक रही थी, और बाहर बारिश की बूँदें खिड़की पर टपक रही थीं। मैं विनोद को फिर सेक्स की बातों में उलझाना चाहती थी। उसने अपना एक हाथ मेरी कमर के पास, मेरी जांघ पर रख दिया और धीरे से दबाया। “माँ, क्या कड़क जांघें हैं,” उसने कहा, उसकी आवाज़ में भूख थी।

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मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी जांघ पर और ज़ोर से दबाया। “बेटा, ना तू राजेश खन्ना है, ना मैं हेमा मालिनी। मैं तेरी माँ हूँ, और माँ की जांघें नहीं दबाते। तुझे कुंदन के बारे में किसने बताया?” मेरी उंगलियाँ उसकी उंगलियों से खेल रही थीं, और मैं महसूस कर रही थी कि उसकी उंगलियाँ मेरी चूत की तरफ बढ़ रही थीं।

विनोद ने अपनी जेब से एक चिट्ठी निकाली और मुझे दी। मैंने उसे खोला, और मेरा दिल धक् से रह गया। ये वही चिट्ठी थी जो कुंदन ने मेरी पहली चुदाई के अगले दिन लिखी थी। मैंने इसे अपने जेवर बॉक्स में छुपाकर रखा था, जहाँ कोई आसानी से ना ढूँढ सके। बंगाली में लिखी इस चिट्ठी में कुंदन ने मेरे जिस्म के हर अंग का ब्यौरा लिखा था—मेरी गोरी चूचियाँ, मेरी चिकनी चूत, मेरी टाइट गांड। उसने हमारी पहली चुदाई का हर पल वर्णन किया था—कैसे उसने मेरी चूत को चाटा, कैसे उसका मूसल मेरे भोसड़े में घुसा, और कैसे मैंने सिसकारियाँ भरीं।

“ये चिट्ठी दिखाकर तू मुझे ब्लैकमेल करना चाहता है? अपनी माँ को चोदना चाहता है?” मैंने पूछा, मेरी आवाज़ में गुस्सा और उत्तेजना दोनों थे।

विनोद ने तुरंत अपनी जांघ से हाथ हटा लिया। मुझे ये अच्छा नहीं लगा। मैं चाहती थी कि चलती टैक्सी में वो मुझे छुए, मेरी चूत को सहलाए। “माँ, आज सुबह रेनू को ये चिट्ठी तुम्हारे कमरे में मिली। मुझे नहीं पता उसने इसे पढ़ा या नहीं। मैंने बहुत सी चुदाई की किताबें पढ़ी हैं, लेकिन इस चिट्ठी में कुंदन ने तुम्हारे जिस्म को, तुम्हारी चुदाई को जिस तरह बयान किया, वैसा मैंने कभी नहीं पढ़ा।”

उसने फिर मेरी जांघ को दबाया, इस बार और ज़ोर से। “माँ, मैं बचपन से नहीं, जब से मेरा लौड़ा टाइट होना शुरू हुआ, तब से तुम्हें चोदना चाहता हूँ। लेकिन मैं तुम्हें ब्लैकमेल करके नहीं चोदना चाहता। स्कूल और कॉलेज में कई लड़कियाँ मुझसे चुदवाना चाहती थीं, लेकिन मुझे सिर्फ तुम चाहिए, माँ। ये चिट्ठी संभालकर रखो, कहीं बाबा या किसी और के हाथ ना लग जाए।”

“माँ, मुझे पता है कि माँ को चोदना पाप है। लेकिन प्लीज़, मुझे तुम्हारी जवानी का अहसास करने दो,” उसने कहा, और मेरा हाथ पकड़कर अपने ट्राउजर के ऊपर अपने लौड़े पर रख दिया। मैंने महसूस किया कि उसका लौड़ा उतना टाइट नहीं था जितना मैंने सोचा था, लेकिन फिर भी मैंने उसे सहलाना शुरू कर दिया। मेरी उंगलियाँ उसके मूसल पर धीरे-धीरे रेंग रही थीं, और मेरी चूत में गर्मी बढ़ रही थी।

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“बेटा, माँ से झूठ क्यूँ बोलता है?” मैंने कहा, मेरी आवाज़ में ताना था। “मैंने माँ होकर अपने बेटे से अपनी चुदाई की बात की, और तू कहता है कि तूने अब तक किसी को नहीं चोदा?”

चिट्ठी मेरे हाथ में थी। मैंने एक पल सोचा, और फिर उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। विनोद ने देखा कि चिट्ठी हवा में उड़कर कहीं दूर गायब हो गई। “माँ, जो भी उस चिट्ठी को पढ़ेगा, वो किसी ना किसी को ज़रूर चोदेगा,” उसने कहा। “अगर तुम मुझे चोदने नहीं दोगी, तो कम से कम अपने हाथ से, अपने मुँह से, जैसे कुंदन को ठंडा करती थी, मेरे लौड़े को भी ठंडा करो। प्लीज़ माँ, अपने बेटे पर रहम करो। मेरा लौड़ा अभी तक किसी की चूत में नहीं घुसा है।”

टैक्सीवाले ने अचानक कहा, “साहब, सिनेमा हॉल आ गया।” उसने टैक्सी रोकी, और हम बाहर निकले। टैक्सीवाला भाड़ा लेकर चला गया। हमने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और “मॉडर्न सिनेमा” के गेट में घुस गए।

ये हॉल नया-नवेला था, शायद दो-तीन साल पुराना। मैं इस इलाके में पहली बार आई थी। हॉल के बाहर भीड़ थी, करीब डेढ़ सौ लोग, ज्यादातर जोड़े। लोग अपनी पार्टनर को ऐसे छू रहे थे, जैसे अपने बेडरूम में हों। मेरे कानों में कमेंट्स गूंज रहे थे—“क्या मस्त माल है यार! उफ्फ, इस औरत को रगड़ने में कितना मज़ा आएगा।”

विनोद टिकट लेने काउंटर गया। मैं खड़ी रही, लोगों की नजरों का शिकार बनती हुई। मेरी चूत अब इतनी गीली थी कि मुझे डर था कि मेरी साड़ी पर दाग ना दिखने लगे। विनोद टिकट लेकर लौटा और धीरे से मेरे कान में फुसफुसाया, “करिश्मा रानी, अंदर चलो, सिनेमा शुरू होने वाला है।”

आगे की कहानी अगले हिस्से में।

कहानी का अगला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-3

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