मेरा नाम शालू है। अब मेरी उम्र 32 साल है। मैं 5 फीट 5 इंच लंबी हूँ, गुलाबीपन लिए गोरा रंग, तीखे नयन-नक्श मेरे चेहरे को और आकर्षक बनाते हैं। मेरी 36 C इंच की मांसल चूचियाँ, 26 इंच की पतली कमर और 34 इंच के उभरे हुए चूतड़ हर किसी का ध्यान खींच लेते हैं। मुझे अपने शरीर में सबसे ज्यादा मेरी लंबी, सुडौल जांघें पसंद हैं, जो चलते वक्त लचकती हैं और मर्दों की नजरें उन पर टिक जाती हैं। मेरे बदन पर ना कहीं ज्यादा मांस है, ना कहीं कम—सब कुछ एकदम परफेक्ट।
मेरे पति विनोद एक बड़ी फैक्ट्री में सीनियर मैनेजर हैं। उनकी पर्सनैलिटी भी कमाल की है—लंबे, गोरे, और हमेशा स्मार्ट लुक में। लेकिन वो सिर्फ अपनी पोजीशन और लुक तक सीमित नहीं हैं। हमारी जवान नौकरानी पारो, जो 20 साल की है और अपनी कसी हुई जवानी से घर में आग लगाए रखती है, वो विनोद की चुदाई का शिकार है। इतना ही नहीं, विनोद अपने दोस्तों और सहकर्मियों की पत्नियों और बहनों को भी नहीं छोड़ते। उनके लौड़े की भूख कभी कम नहीं होती। लेकिन ये कहानी विनोद की चुदाई की नहीं, मेरी चुदाई की है।
मैं एक अमीर किसान के घर में पैदा हुई, पली-बढ़ी। गाँव में मेरी सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक थी। जवानी चढ़ते ही मर्दों की नजरें मेरे बदन पर टिकने लगीं। पहला मौका मेरे स्कूल के हिंदी टीचर को मिला। वो 40 साल के थे, लेकिन उनकी आँखों में मेरे लिए वासना की आग थी। एक दिन स्कूल की लाइब्रेरी में उन्होंने मुझे अकेला पाकर मेरे होंठों को चूमा, मेरी चूचियों को सलवार के ऊपर से मसला, और मेरी चूत को दबाया। मैं उस वक्त 16 साल की थी, और उनका स्पर्श मेरे लिए नया था। लेकिन उसी दिन मेरे बाबूजी को खबर लग गई। अगले दिन से स्कूल जाना बंद। घर पर ट्यूशन शुरू हुआ, और किसी तरह मैट्रिक पास किया।
जून में रिजल्ट आया, और जुलाई में मेरी शादी विनोद से हो गई। शादी से पहले मैं इंटरनेट यूज करती थी, लेकिन कभी सेक्स साइट्स नहीं देखीं। लेकिन विनोद ने सुहागरात को ही मुझे एक ग्रुप चुदाई की वीडियो दिखाई। उसमें एक औरत को चार मर्द बारी-बारी चोद रहे थे। फिर उसने एक सेक्स साइट से चुदाई की कहानी पढ़कर सुनाई। कहानी में एक औरत अपने पड़ोसी से चुदवाती थी, और उसका पति उसे देखकर मुट्ठ मारता था। विनोद की बातों और वीडियो ने मुझे इतना गर्म कर दिया कि मैं पहली ही रात रंडी की तरह बेशर्म हो गई। मैंने विनोद का लौड़ा चूसा, और उसने मेरी चूत चाटी। मैं कुँवारी थी, और पहली चुदाई में जब मेरी चूत फटी, तो दर्द से मेरी चीख निकल गई। विनोद भी पहली बार चोद रहा था, और 7-8 मिनट में ही झड़ गया। लेकिन रात में उसने दो बार और चोदा, हर बार 20 मिनट तक। फिर भी मेरी चूत की आग शांत नहीं हुई, और मेरे दिमाग में कुछ और चाहिए था, पर क्या, ये मुझे खुद नहीं पता था।
विनोद तीन बार चोदकर सो गया, लेकिन मेरी नींद उड़ चुकी थी। मैंने उसकी खुली सेक्स साइट पर सात कहानियाँ पढ़ डालीं। हर कहानी में औरतें अनजान मर्दों से चुदवाती थीं, और वो मजा मुझे मेरे दिमाग में बस गया। उस रात से चुदाई की कहानियों की लत लग गई, जो आज तक बरकरार है। मैं और पारो अक्सर मिलकर चुदाई की वीडियो देखते हैं। पारो की चूत भी उतनी ही गर्म है जितनी मेरी। हम दोनों रोज 4-5 कहानियाँ पढ़ते हैं और अपनी चूत सहलाते हैं।
मुझे अनजान मर्दों के साथ चुदाई की कहानियाँ सबसे ज्यादा पसंद हैं। सुहागरात के 15 दिन बाद ही मुझे किसी अनजान मर्द से चुदवाने की इच्छा होने लगी। लेकिन मौका नहीं मिला। दो महीने ससुराल में रहने के बाद विनोद मुझे फैक्ट्री की कॉलोनी में ले आए। वहाँ सब कुछ नया था—नए लोग, नया माहौल, नई जिंदगी। लेकिन मेरी पुरानी आदत वही रही—चुदाई की कहानियाँ पढ़ना।
एक कहानी मुझे इतनी पसंद आई कि मैं उसे बार-बार पढ़ने लगी। वो थी एक खूबसूरत औरत की, जो अपने दर्जी के 4 इंच के लौड़े से चुदवाती थी। उसका पति 7 इंच का लौड़ा होने के बावजूद उसे दर्जी का लौड़ा ज्यादा मजा देता था। मैं सोच में पड़ गई कि आखिर ऐसा क्या है कि एक औरत इतने छोटे लौड़े के लिए पागल हो जाए। मैंने और दर्जी वाली कहानियाँ पढ़ीं। हर कहानी में यही था कि औरत को पति से ज्यादा दर्जी की चुदाई में मजा आता है। मैंने ठान लिया कि मैं भी किसी दर्जी से चुदवाकर देखूँगी कि असल माजरा क्या है।
विनोद मुझे अक्टूबर के पहले हफ्ते में कॉलोनी के क्वार्टर में लाए। दीवाली 15 दिन बाद थी। मैं दीवाली अपने घर या ससुराल में मनाना चाहती थी, लेकिन ससुर जी ने साफ कह दिया कि मुझे विनोद के साथ ही रहना है। इस बात से मुझे गुस्सा आया। मैंने फैसला किया कि मैं उस कहानी की हीरोइन की तरह दीवाली के आसपास किसी दर्जी से चुदवाऊँगी। उस साल दीवाली गुरुवार को थी।
दीवाली से पाँच दिन पहले, शनिवार को विनोद ने कहा कि हम शहर में मूवी देखने चलें। मैं तुरंत तैयार हो गई। मैंने कहा- मूवी से पहले थोड़ी शॉपिंग भी करेंगे। मुझे दीवाली के लिए नया सलवार सूट सिलवाना है। रेडीमेड मुझे पसंद नहीं। विनोद बोला- शालू, पहले बोलना था ना। दीवाली इतनी करीब है, अब कोई टेलर नया ऑर्डर नहीं लेगा, डबल कीमत देने पर भी। मैंने कहा- ट्राई करने में क्या हर्ज है? विनोद हँस पड़ा, लेकिन मान गया।
हमने पहले शॉपिंग की। विनोद ने मेरे लिए एक साड़ी और खुद के लिए शर्ट-पैंट खरीदी। मैंने अपने लिए सलवार सूट का कपड़ा चुना—लाल रंग का, जो मेरे गोरे रंग पर जंचेगा। शॉपिंग के बाद हमने एक रेस्टोरेंट में खाना खाया। फिर एक रोमांटिक मूवी देखी, जिसमें कुछ हॉट सीन थे। मूवी देखते वक्त विनोद मेरी जांघों को सहला रहा था, और मेरी चूत गीली हो गई थी। लेकिन मेरा दिमाग उस दर्जी वाली कहानी में था।
रात 11:40 बजे हम घर लौटने के लिए निकले। मैंने साड़ी पहनी थी—हल्की सी नीली साड़ी, जो मेरे बदन से चिपकी थी और मेरी चूचियाँ और चूतड़ उभार रही थी। कार में मैं विनोद के बगल में बैठी थी। वो बातें कर रहा था, लेकिन मेरी नजर रास्ते की दुकानों पर थी। मैं हर दुकान के बोर्ड को गौर से देख रही थी, शायद कोई टेलर की दुकान दिख जाए। आधा रास्ता गुजर चुका था। मैंने तीन टेलर की दुकानें देखीं, लेकिन सब बंद थीं। मेरा दिल बैठने लगा। तभी हम एक मार्केट से गुजरे, जहाँ कई दुकानें थीं। हमारा घर वहाँ से 25 किलोमीटर दूर था। और तभी मेरी नजर एक बोर्ड पर पड़ी—‘शालू टेलरिंग हाउस’। मेरा नाम देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।
मैंने तुरंत कहा- विनोद, कार रोको, साइड में पार्क करो। विनोद ने हैरानी से मुझे देखा, लेकिन कार रोक दी। मैंने कपड़ों का बंडल उठाया और बिना कुछ बोले उस दुकान की ओर बढ़ी। दुकान का शटर आधा बंद था, लेकिन अंदर हल्की रोशनी दिख रही थी। मैं झुककर दुकान में घुसी। विनोद मेरे पीछे-पीछे चिल्लाया- शालू, रुक जाओ! इतनी रात में दुकान में घुसना सेफ नहीं है। हम सोसाइटी के टेलर कल्पेश से सिलवा लेंगे, वो दीवाली तक तैयार कर देगा। लेकिन मैं रुकी नहीं। मैं कल्पेश से नहीं चुदवाना चाहती थी। वो मुझे और मेरे परिवार को जानता था। वो अनजान नहीं था। मैं किसी अनजान दर्जी से चुदवाना चाहती थी। विनोद भी मेरे पीछे दुकान में घुस आया।
दुकान का माहौल वैसा नहीं था जैसा मैंने कहानी में पढ़ा था। मैंने सोचा था कोई अधेड़, दुबला-पतला दर्जी होगा, जिसके आधे बाल सफेद होंगे। लेकिन यहाँ एक 30-32 साल का हट्टा-कट्टा, जवान और मजबूत आदमी सिलाई मशीन चला रहा था। उसके काले, घने बाल, चौड़ा सीना और मजबूत बाजू उसे और आकर्षक बना रहे थे। उसने हमारे कदमों की आहट सुनी और हमारी ओर देखा। उसकी नजरें मेरे चेहरे से लेकर मेरे उभरे हुए चूतड़ों तक घूमीं। उसने कहा- दुकान बंद हो चुका है। आप लोग घर जाएँ। उसकी आवाज मीठी लेकिन दमदार थी। उसकी बातों ने मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल मचा दी। वो मेरे बदन को घूर रहा था, और उसकी नजरें मेरी साड़ी के नीचे मेरी चूचियों और चूत को भेद रही थीं।
उसने फिर कहा- साहब, इतनी खूबसूरत औरत को लेकर इतनी रात में बाहर निकलना ठीक नहीं। क्यों मेरी नीयत खराब करने पर तुले हैं आप दोनों? उसकी बात सुनकर मेरी चूत में और गीलापन आ गया। ये दर्जी कहानी वाले दर्जी से बिल्कुल अलग था। उसका बिंदास अंदाज, उसकी बेशर्मी, और उसकी भूखी नजरें मुझे पसंद आ गईं। उसने खुलकर कह दिया कि मेरी खूबसूरती उसे बेकरार कर रही है। मैंने अपने होंठों पर हल्की सी मुस्कान लाई और कहा- भैया, हम इस इलाके में नए हैं। हमें कोई और दर्जी नहीं पता। आपके दुकान पर मेरा नाम देखा, तो यहाँ चले आए। मेरा नाम शालू है। मुझे दीवाली की रात के लिए एक पंजाबी सूट सिलवाना है। प्लीज अपनी बहन को निराश मत करो।
मेरी बात सुनकर वो मुस्कुराया। उसकी मुस्कान में शरारत थी। उसने कहा- मेम साहब, शालू मेरी बहन नहीं, मेरी घरवाली है। और दूसरी बात, मेरे पास पहले से ही बहुत काम है। मैं और कोई ऑर्डर नहीं ले सकता। ये सुनकर मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे। मेरा नाम उसकी बीवी का भी था! मैं तो मन ही मन बोलना चाहती थी कि मुझे भी अपनी बीवी बना लो, लेकिन खुद को रोका। मैंने फिर रिक्वेस्ट की- भैया, कितना भी काम हो, एक सलवार सूट तो सिल ही सकते हो। प्लीज मेरा नाप ले लो। मैं उसे पटाने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन विनोद चुपचाप एक किनारे रखी चेयर पर बैठ गया। उसकी चुप्पी मुझे और बोल्ड कर रही थी।
दर्जी ने मेरी तरफ गहरी नजरों से देखा और बोला- शालू, तुम अपने सारे कपड़े उतारकर नंगी हो जाओ, तो मैं दीवाली से पहले तुम्हारा सूट तैयार कर दूँगा। उसकी बात मेरे कानों में बम की तरह फटी। मैंने शर्म से अपनी आँखें नीचे कर लीं। मुझे लगा कि विनोद अब गुस्से में उठेगा, दर्जी को गाली देगा, लेकिन वो चुप रहा। उसकी चुप्पी मेरे लिए शॉक थी। मैं चाहती थी कि दर्जी मुझे प्यार से पटाए, नाप लेते वक्त मेरी चूचियों और चूत को सहलाए, फिर मुझे चोदे। लेकिन ये सीधे नंगा होने की बात कर रहा था। मैंने गुस्से में कहा- चलो विनोद, घर चलते हैं। मुझे कुछ नहीं सिलवाना।
मैं घूमी, लेकिन दर्जी फुर्ती से उठा। उसने दौड़कर शटर को पूरा बंद कर दिया। मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं। वो वापस आया और बोला- साहब, भगवान आपको बहुत तरक्की दे, हमेशा खुश रखे। मैं सिर्फ इस सूट का नहीं, जब तक जिंदा हूँ, आपके घर के सारे कपड़े मुफ्त में सिलूँगा, वो भी प्रायोरिटी में। मैंने ऐसी खूबसूरत औरत पहले कभी नहीं देखी। इतनी गजब की जवानी! प्लीज साहब, मुझे आपकी घरवाली को नंगा देखना है।
उसकी बात सुनकर भी विनोद चुप रहा। मुझे अब शक होने लगा कि विनोद को मेरी चुदाई देखने में मजा आता है। दर्जी की बातों ने मेरी चूत को और गीला कर दिया। मैं चाहती थी कि वो पहल करे, लेकिन उसकी बेशर्मी मुझे और गर्म कर रही थी। मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा- तुम मेरी मजबूरी का फायदा उठा रहे हो। तुम्हें लगता है कि मुझे नंगा करोगे, तो मेरा घरवाला कुछ नहीं बोलेगा। जिंदगी भर जेल में आटा पीसना पड़ेगा! लेकिन मेरी धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ।
उसने कहा- तुम कुँवारी तो हो नहीं। सैकड़ों बार चुदवा चुकी हो। मेरे सामने एक बार नंगी हो जाओ, तो तुम्हारी खूबसूरती कम नहीं होगी। तुम्हारा घरवाला सामने बैठा है, मैं कोई गलत फायदा नहीं उठाऊँगा। बस, मुझे तुम्हारी असल जवानी देखने दो। जिंदगी भर तुम्हारे कपड़े मुफ्त में सिलूँगा। अपनी जवानी दिखा दो, शालू। उसकी बातों में एक अजीब सी आग थी। वो बेझिझक मेरे पास आया। ना विनोद ने उसे रोका, ना मैंने।
उसने मेरा आँचल नीचे खींचा। मेरी साड़ी के फोल्ड खोल दिए। साड़ी नीचे गिर गई। फिर उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींचा। पेटीकोट भी नीचे सरक गया। मैंने जान-बूझकर पैंटी नहीं पहनी थी। मेरी चूत बड़े-बड़े झांटों से ढकी थी। वो मेरे सामने आया और मेरी चूत को सहलाने लगा। उसका स्पर्श मेरे बदन में बिजली दौड़ा रहा था। वो धीरे से बोला- रानी, बहुत ही ज्यादा सुंदर हो। अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। चोदने दो। उसने इतना धीरे कहा कि विनोद को शायद सुनाई नहीं दिया। विनोद की चुप्पी ने मुझे और हिम्मत दी। मैंने भी धीरे से कहा- फिर सोच क्या रहे हो? पहले इस नमर्द के सामने मुझे चोद लो, फिर नाप लेना।
कहानी का अगला भाग: पति के सामने दर्जी ने चोदा-2