बाप से पैसे लेकर चुदी – पार्ट 2

दोस्तो, मेरा नाम श्रुति है, और ये मेरी जिंदगी का वो गंदा, रसीला किस्सा है, जिसने मुझे और मेरी मम्मी को रंडीखाने की रानी बना दिया। पिछली बार मैंने बताया था कि कैसे मेरे पापा और उनके दोस्तों ने मुझे पैसे के लिए चोदा(कहानी का पिछला भाग पढ़ना न भूले: बाप से पैसे लेकर चूदी), और अब ये कहानी और गंदी, और चुदाई से भरी होने वाली है। तो अपने लंड को पकड़ो, चूत को सहलाओ, और इस चुदाई की आग में कूद पड़ो।

उस रात कमरा किसी सस्ते रंडीखाने जैसा लग रहा था। हवा में पसीने की बदबू, चूत का रस, और लंड की गंध भरी थी। मेरे पापा ने मुझे कुतिया की तरह झुकाया हुआ था, मेरी गांड हवा में ऊपर उठी थी, और उनका मोटा, नसों से भरा लंड मेरी गांड में ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था। हर धक्के के साथ मेरी चीखें निकल रही थीं, “आह्ह… पापा… मेरी गांड फट जाएगी… भोसड़ी के, धीरे!” पर पापा तो जैसे जंगली साँड हो गए थे। वो मेरी कमर को पकड़कर और ज़ोर से चोदने लगे, बोले, “चुप कर, रंडी! आज तेरी गांड का भोसड़ा बना दूँगा, मादरचोद!”

उधर, रमेश अंकल मेरे सामने घुटनों पर बैठे थे, मेरी चूचियों को भूखे कुत्ते की तरह चबा रहे थे। मेरे निप्पल्स को वो दाँतों से काटते, तो कभी ज़ोर से मसल देते, जैसे कोई आटा गूँथ रहा हो। मेरी चूचियाँ लाल पड़ चुकी थीं, और मैं सिसकार रही थी, “आह्ह… अंकल… चूसो… मेरी चूचियों का रस निकाल दो!” सुरेंद्र अंकल मेरे मुँह के सामने अपना काला, मोटा लंड लहरा रहे थे, जिसका टोपा गीले थूक से चमक रहा था। उसने मेरे बाल पकड़े और बिना कुछ कहे अपना लंड मेरे गले तक ठूँस दिया। मैं हड़प-हड़प करके चूस रही थी, मेरा थूक उनके लंड से टपक रहा था, और मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। मेरा मुँह उनका लंड चूसते-चूसते थक गया था, पर मज़ा इतना था कि मैं रुकना नहीं चाहती थी।

मैं तीनों लंडों के बीच फँसी थी—गांड में पापा का लंड, मुँह में सुरेंद्र अंकल का लंड, और चूचियों पर रमेश अंकल की भूखी जीभ। मेरी चूत इतनी गीली थी कि रस मेरी जाँघों तक बह रहा था, और मेरी क्लिट हर धक्के के साथ फड़क रही थी। मैं उछल-उछल कर चुद रही थी, मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… चोदो… मेरी चूत फाड़ दो… भोसड़ी वालो, और ज़ोर से!” पापा की रफ़्तार और बढ़ गई, उनकी उंगलियाँ मेरी गांड पर गड़ी थीं, और वो हर धक्के के साथ मेरे जिस्म को हिला रहे थे। रमेश अंकल ने मेरी चूत पर उंगलियाँ फेरनी शुरू कीं, मेरी क्लिट को ज़ोर-ज़ोर से मसलते हुए बोले, “क्या गर्म, रसीली चूत है तेरी, श्रुति… ये तो लंड के लिए तरस रही है, मादरचोद!” मैं बस सिसकार रही थी, मेरे मुँह में सुरेंद्र अंकल का लंड था, जिसे मैं जीभ से चाट रही थी, जैसे कोई भूखी रंडी अपने आखिरी लंड को चूस रही हो।

करीब एक घंटे तक ये चुदाई का तांडव चला। कभी पापा मेरी गांड चोदते, तो कभी रमेश अंकल मेरी चूत में दो-दो उंगलियाँ डालकर मुझे तड़पाते। सुरेंद्र अंकल ने मेरे मुँह से लंड निकाला और मेरी चूचियों पर ज़ोर-ज़ोर से थप्पड़ मारते हुए बोले, “अब तेरी चूत का भोसड़ा बनाएँगे, रंडी!” मैंने हाँफते हुए कहा, “हाँ… चोदो… मेरी चूत को रगड़ डालो… पूरा माल मेरी चूत में डाल दो!” पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी टाँगें हवा में उठाईं, और एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। मैं चीख पड़ी, “आह्ह… पापा… कितना मोटा है… मेरी चूत फट जाएगी!” वो गंदी हँसी हँसते हुए बोले, “फटने दे, मादरचोद… आज तुझे रंडीखाने की रानी बनाऊँगा!”

रमेश अंकल मेरे ऊपर चढ़े और मेरी चूचियों को चूसते हुए मेरे निप्पल्स को दाँतों से काटने लगे। मेरी चूचियाँ उनके थूक से गीली हो चुकी थीं, और हर काटने पर मेरे मुँह से सिसकारी निकल रही थी, “आह्ह… अंकल… चबा डालो… मेरी चूचियाँ फाड़ दो!” मेरी चूत में पापा का लंड अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ रहा था। सुरेंद्र अंकल ने फिर से मेरा मुँह पकड़ा और अपना लंड मेरे गले तक ठूँस दिया। मैं हाँफ रही थी, मेरे आँसू और थूक मिलकर मेरे चेहरे पर बह रहे थे, पर मज़ा इतना था कि मैं रुकना नहीं चाहती थी। मेरी चूत से रस टपक रहा था, और कमरे में चुदाई की आवाज़ें—थप-थप-थप—ऐसी गूँज रही थीं मानो कोई गंदी जंग चल रही हो।

पापा ने अब मेरी चूत छोड़कर मेरी गांड में फिर से लंड डाला, और इस बार वो और बेरहम हो गए। उनकी उंगलियाँ मेरी क्लिट पर नाच रही थीं, और वो मेरी चूत को मसलते हुए बोले, “क्या रसीली चूत है, श्रुति… आज तुझे पूरा चोद-चोद कर सुखा दूँगा!” मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… पापा… मेरी गांड… मेरी चूत… सब फाड़ दो… भोसड़ी के, और ज़ोर से!” रमेश अंकल ने मेरी चूचियों को छोड़कर मेरी चूत में उंगलियाँ डाल दीं, और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगे। मेरी चूत से रस छलक रहा था, और मैं सिसकार रही थी, “आह्ह… अंकल… मेरी चूत का भोसड़ा बना दो…!”

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तभी रमेश अंकल ने पापा से कहा, “सुरेश, आज हम तेरी बेटी की चूत में अपना माल डालेंगे, पूरा भोसड़ा भर देंगे!” पापा ने गंदी हँसी हँसते हुए कहा, “जो मर्ज़ी करो, भोसड़ी के… ये मेरी बेटी नहीं, हमारी पक्की रंडी है!” ये सुनकर मेरी चूत और गीली हो गई। रमेश अंकल ने मुझे घोड़ी बनाया, मेरी चूत में अपना मोटा, गर्म लंड डाला, और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… अंकल… फाड़ दो… मेरी चूत को चोद-चोद कर रस निकाल दो!” कुछ ही मिनटों में उनका गर्म, गाढ़ा माल मेरी चूत में छूट गया, इतना सारा कि मेरी जाँघों तक बहने लगा। मेरी चूत उनके माल से लबालब भर गई थी, और मैं सिसकार रही थी, “आह्ह… कितना गर्म माल है… और डालो!”

फिर सुरेंद्र अंकल ने उनकी जगह ली। उन्होंने मेरी चूत को पहले जीभ से चाटा, मेरे रस और रमेश अंकल के माल को चूसते हुए बोले, “क्या मस्त चूत है, मादरचोद… इसका स्वाद ही अलग है!” फिर उन्होंने अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया और ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगे। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… अंकल… मेरी चूत फाड़ दो… पूरा माल मेरे अंदर डाल दो!” कुछ ही मिनटों में उनका माल भी मेरी चूत में छूट गया, और मेरी चूत अब दो लंडों के माल से पूरी तरह भरी थी। आखिर में पापा ने मेरी रस और माल से भरी चूत में अपना लंड डाला, और कुछ ही धक्कों में उनका गर्म, गाढ़ा वीर्य मेरी चूत में मिल गया। मैं हाँफ रही थी, मेरी चूत से तीनों का माल टपक रहा था, और मेरा जिस्म पसीने और माल से चिपचिपा हो चुका था।

हम तीनों बिस्तर पर नंगे पड़े थे। मेरी साँसें तेज़ थीं, मेरा चेहरा पसीने, थूक, और माल से सना था। मेरी एक तरफ पापा थे, दूसरी तरफ उनके दोस्त, और वो मेरे जिस्म को सहला रहे थे—मेरी चूचियाँ, मेरी जाँघें, मेरी गांड। मैंने भी उनके ढीले पड़ चुके लंड पकड़ लिए, और धीरे-धीरे सहलाने लगी। मैंने रमेश अंकल का मुरझाया लंड अपने मुँह में लिया और प्यार से चूसने लगी। मेरी जीभ उनके लंड के टोपे पर घूम रही थी, उनके टट्टों को सहलाते हुए मैंने उनका लंड गले तक लिया। वो सिसकारने लगे, “श्रुति… भोसड़ी की, तू तो लंड की मालकिन है!” मैंने बारी-बारी से तीनों के लंड चूसे, उनके टट्टों को चाटा, और धीरे-धीरे उनके लंड फिर से तन गए। मैंने सुरेंद्र अंकल के लंड को चूसते हुए उनके टट्टों को मसला, और पापा के लंड को हाथ से सहलाया। मेरे मुँह से थूक टपक रहा था, और मैं गंदी सिसकारियाँ ले रही थी, “आह्ह… कितने मस्त लंड हैं… इन्हें चूसने का मज़ा ही अलग है!”

करीब बीस मिनट की चुसाई के बाद तीनों के लंड मेरे खेल के लिए तैयार थे। मैंने गंदी मुस्कान के साथ कहा, “अब मेरी चूत और गांड की बारी है, भोसड़ी वालो! चोदो मुझे!” सुरेंद्र अंकल ने मुझे बिस्तर पर पटका, मेरी टाँगें चौड़ी कीं, और मेरी चूत को भूखे भेड़िए की तरह चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी क्लिट पर नाच रही थी, मेरी चूत के होंठों को चूस रहे थे, और मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… अंकल… चाटो… मेरी चूत का रस पी जाओ… भोसड़ी के, और ज़ोर से!” रमेश अंकल मेरे मुँह में अपना लंड डालकर चुसवाने लगे, और पापा मेरी चूचियों को मसलते हुए मेरे निप्पल्स को काट रहे थे। मैं जन्नत में थी, मेरा जिस्म हर चाटने और काटने से काँप रहा था। सुरेंद्र अंकल ने मेरी चूत में उंगलियाँ डाल दीं, और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करते हुए बोले, “क्या टाइट चूत है, मादरचोद… अभी तो इसे और चोदेंगे!”

तभी दरवाज़े की घंटी बजी। हम सबके होश उड़ गए। पापा चिल्लाए, “कौन मादरचोद है इतनी रात को?” रमेश अंकल ने जल्दी से शॉर्ट्स पहने और बोले, “रुको, मैं देखता हूँ।” वो दरवाज़े तक गए, और जब दरवाज़ा खोला तो उनके मुँह से चीख निकल गई। बाहर मेरी मम्मी खड़ी थीं।

मम्मी को पापा पर शक था। वो चुपके से उनका पीछा करती हुई इस फ्लैट तक पहुँच गई थीं। रमेश अंकल घबराकर कमरे में भागे और पापा को सारी बात बताई। पापा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई, वो चिल्लाए, “ये क्या मादरचोद हो गया… अब क्या होगा?” तभी सुरेंद्र अंकल ने चालाकी से कहा, “सुरेश, अगर तू बुरा न माने तो हम भाभी जी को भी चोद लें।” पापा गुस्से से लाल हो गए, बोले, “क्या भोसड़ी की बकवास कर रहा है?” पर सुरेंद्र अंकल ने गंदी हँसी हँसते हुए कहा, “जब तू अपनी बेटी को हमसे चुदवा सकता है, तो बीवी को क्यों नहीं? वैसे भी, अब कोई रास्ता नहीं है, मादरचोद!”

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पापा बहुत देर तक गुस्से में बड़बड़ाए, लेकिन आखिरकार मान गए। उनके चेहरे पर गुस्सा था, पर कहीं न कहीं वो भी इस गंदे खेल में मज़ा ले रहे थे। रमेश और सुरेंद्र अंकल सिर्फ़ शॉर्ट्स पहनकर बाहर गए। मैं कमरे में पापा के साथ थी, मेरी चूत अभी भी गीली थी, और मेरे दिल में डर के साथ-साथ गंदा मज़ा भी था। बाहर मम्मी ने गुस्से से चिल्लाया, “मेरे मर्द कहाँ हैं, भोसड़ी के? मुझे अभी बताओ!” रमेश अंकल ने गंदी हँसी हँसते हुए कहा, “भाभी जी, वो अंदर हैं, पर उनका लंड थोड़ा खराब हो गया है।”

बता दूँ, मेरी मम्मी का फिगर 38-34-40 है। वो थोड़ी मोटी हैं, लेकिन उनकी चूचियाँ और गांड इतनी मस्त हैं कि लंड अपने आप खड़ा हो जाए। उनकी चूचियाँ उनकी कमीज़ में से उभर रही थीं, और उनकी मोटी गांड हर कदम पर हिल रही थी। अंकल्स के शॉर्ट्स में उनके लंड तन गए थे, और मम्मी की नज़र उनके उभरे हुए लंडों पर पड़ी। वो डर गईं, बोलीं, “ये क्या गंदी जगह है? मेरे मर्द को बुलाओ, मादरचोद!” सुरेंद्र अंकल ने पास आकर कहा, “भाभी जी, वो अंदर एक जवान रंडी की चूत चोद रहा है। चाहो तो तुम्हारी चूत भी चोद दें?” ये कहते हुए उन्होंने मम्मी की कमीज़ में हाथ डालकर उनकी भारी चूची मसल दी।

मम्मी चीखीं, “ये क्या मादरचोद हरकत है?” पर रमेश अंकल ने कहा, “हरकत तो अब शुरू होगी, रंडी!” मम्मी डरकर रोने लगीं, उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन अंकल्स के अंदर वासना का भूत सवार था। रमेश अंकल ने मम्मी की कमीज़ फाड़ दी, उनकी ब्रा खींचकर उतार दी, और उनकी भारी-भरकम चूचियों को भूखे कुत्ते की तरह चूसने लगे। उनकी चूचियाँ इतनी बड़ी थीं कि उनके मुँह में समा नहीं रही थीं। वो मम्मी के निप्पल्स को काटते, चूसते, और ज़ोर-ज़ोर से मसलते। मम्मी सिसकार रही थीं, “आह्ह… छोड़ो… ये क्या कर रहे हो…?” पर उनकी सिसकारियों में अब दर्द के साथ मज़ा भी मिल रहा था।

सुरेंद्र अंकल ने मम्मी का नाड़ा खोला, उनकी सलवार और कच्छी उतार दी, और उनकी मोटी, रसीली गांड देखकर पागल हो गया। वो घुटनों पर बैठ गया और मम्मी की गांड चाटने लगा, जैसे कोई भूखा शैतान किसी मलाईदार मिठाई को चाट रहा हो। उनकी जीभ मम्मी की गांड से होते हुए उनकी चूत तक गई, और वो ज़ोर-ज़ोर से चूत चूसने लगे। मम्मी की चूत पहले से गीली थी, और वो सिसकार रही थीं, “आह्ह… मादरचोद… ये क्या… चाटो… मेरी चूत का रस पी जाओ!” सुरेंद्र अंकल ने मम्मी की क्लिट को चूसते हुए दो उंगलियाँ उनकी चूत में डाल दीं, और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगे। मम्मी की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “आह्ह… फाड़ दो… मेरी चूत…!”

उधर, कमरे में पापा ने मुझे फिर से कुतिया बनाया और मेरी चूचियों को मसलते हुए बोले, “श्रुति, आज तेरी माँ भी रंडी बनेगी, मादरचोद!” ये कहकर उन्होंने मेरी गांड में एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना लंड पेल दिया। मैं चीख पड़ी, “आह्ह… पापा… फाड़ दो… मेरी गांड का भोसड़ा बना दो!” मैं मज़े से सिसकार रही थी, मेरी चूत गीली थी, और मैं हर धक्के के साथ उछल रही थी। पापा मेरी चूचियों को मसल रहे थे, मेरे निप्पल्स को काट रहे थे, और मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… पापा… और ज़ोर से… मेरी चूत भी चोदो!”

इधर, मम्मी को अब पूरा मज़ा आने लगा था। वो सिसकार रही थीं, “आह्ह… चूसो… मेरी चूत चाटो… मेरी गांड फाड़ दो!” रमेश अंकल ने मम्मी की चूचियों को चूसते हुए उनके निप्पल्स को काटा, और सुरेंद्र अंकल ने मम्मी के मुँह में अपना मोटा लंड ठूँस दिया। मम्मी किसी जंगली रंडी की तरह उनका लंड चूस रही थीं, जैसे सालों की भूख मिट रही हो। उनका थूक लंड पर चमक रहा था, और वो सिसकार रही थीं, “आह्ह… और चोदो… मेरे छेद फाड़ दो!” मम्मी का चेहरा उनके थूक और आँसुओं से गीला था, लेकिन उनकी आँखों में अब वासना की चमक थी।

रमेश अंकल ने मम्मी को घोड़ी बनाया, उनकी मोटी गांड पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा, और एक ही झटके में अपना लंड उनकी गांड में पेल दिया। मम्मी की चीख निकल गई, “आह्ह… मर गई… मेरी गांड फट गई!” पर सुरेंद्र अंकल ने उनका मुँह अपने लंड से बंद कर दिया। मम्मी अब उछल-उछल कर चुद रही थीं, उनकी चूचियाँ हवा में लटक रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… चोदो… मेरी गांड… मेरी चूत… सब फाड़ दो!” रमेश अंकल ने मम्मी की गांड को थप्पड़ मारते हुए चोदा, और उनकी गांड लाल हो गई थी। सुरेंद्र अंकल ने मम्मी के मुँह से लंड निकाला और उनकी चूचियों पर थप्पड़ मारते हुए बोले, “क्या मस्त रंडी है तू… अब तेरी चूत की बारी!”

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सुरेंद्र अंकल ने मम्मी को बिस्तर पर लिटाया, उनकी टाँगें चौड़ी कीं, और उनकी चूत में अपना लंड पेल दिया। मम्मी चिल्ला रही थीं, “आह्ह… मादरचोद… फाड़ दो… मेरी चूत का भोसड़ा बना दो!” रमेश अंकल ने मम्मी के मुँह में अपना लंड डाल दिया, और मम्मी दोनों লंडों के बीच सिसकार रही थीं। उनकी चूत से रस टपक रहा था, और कमरे में चुदाई की आवाज़ें गूँज रही थीं।

तभी सुरेंद्र अंकल ने हँसते हुए कहा, “देख, माँ भी बेटी की तरह रंडी है!” मम्मी चौंक गईं, बोलीं, “क्या मतलब, भोसड़ी के?” रमेश अंकल ने गंदी हँसी हँसते हुए कहा, “चल, दिखाते हैं तेरा मर्द किस रंडी को चोद रहा है!” वो मम्मी को कमरे में ले गए। दरवाज़ा खुलते ही मम्मी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैं पापा के लंड पर उछल रही थी, मेरी चूचियाँ हवा में नाच रही थीं, और मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… पापा… और ज़ोर से… मेरी चूत फाड़ दो!”

मम्मी मुझे देखकर चीखीं, “श्रुति… ये क्या, मादरचोद?” पर मैं मज़े में थी। मैंने उनकी तरफ देखा और गंदी मुस्कान के साथ कहा, “मम्मी, आप भी मज़ा लो… ये चुदाई का स्वर्ग है!” मम्मी के आँसू बह रहे थे, लेकिन उनकी चूत गीली थी, और उनकी सिसकारियाँ बता रही थीं कि वो भी इस गंदे खेल में फँस चुकी थीं। तभी रमेश और सुरेंद्र अंकल ने मम्मी को फिर से पकड़ लिया और चोदना शुरू कर दिया। अब कमरे में माँ-बेटी की चुदाई का गंदा तमाशा चल रहा था। मैं और मम्मी दोनों सिसकार रही थीं, “आह्ह… चोदो… फाड़ दो… भोसड़ी के!”

रमेश अंकल ने पापा को बुलाया, और अब वो भी मेरी चुदाई में शामिल हो गए। मेरी चूत में पापा का लंड था, और गांड में रमेश अंकल का। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… दो-दो लंड… मर गई… मेरे छेद फाड़ दो!” सुरेंद्र अंकल मेरे मुँह में अपना लंड डालकर चुसवा रहे थे, और मैं उनके लंड को गले तक ले रही थी। उधर, मम्मी को तीनों छेदों में लंड मिले—चूत में सुरेंद्र अंकल, गांड में रमेश अंकल, और मुँह में पापा। मम्मी सिसकार रही थीं, “आह्ह… फाड़ दो… मेरे छेद… रंडी बना दो… भोसड़ी के!”

करीब डेढ़ घंटे तक ये चुदाई का गंदा खेल चला। कभी वो मुझे चोदते, कभी मम्मी को। हम दोनों की चूत और गांड लाल हो चुकी थीं, और हमारा जिस्म पसीने, थूक, और माल से चिपचिपा था। आखिर में तीनों का माल निकलने वाला था। उन्होंने हमें बिस्तर पर घुटनों के बल बिठाया, और अपना गर्म, गाढ़ा माल हमारे चेहरे, चूचियों, और चूत पर छिड़क दिया। मैं और मम्मी एक-दूसरे के जिस्म से माल चाटने लगीं, जैसे भूखी रंडियाँ हों। मैंने मम्मी की चूचियों से माल चाटा, और मम्मी ने मेरी चूत से माल चूस लिया। हम दोनों सिसकार रही थीं, “आह्ह… कितना मस्त माल है…!”

उस रात हमने तीन बार और चुदाई की। हर बार और गंदा, और रसीला। सुबह हम सब एक साथ नहाए। रमेश और सुरेंद्र अंकल ने मेरी और मम्मी की चूचियों और गांड को खूब मसला, और हमने उनके लंड को चूस-चूसकर फिर से चुदाई का दौर शुरू किया। मैंने रमेश अंकल का लंड चूसते हुए उनकी आँखों में देखा, और गंदी मुस्कान दी। मम्मी सुरेंद्र अंकल के लंड पर उछल रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ बाथरूम में गूँज रही थीं। सुबह आठ बजे मेरा दोस्त अभय मुझे लेने आया, और मैं उसके साथ चली गई।

बाद में अभय ने भी मेरी मम्मी को चोदा, और मम्मी भी पूरी रंडी बन गईं। वो सब मैं अगली कहानी में बताऊँगी।

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