हाय दोस्तो, मेरा नाम सीमा है। मैं एक गोरी-चिट्टी, जवान लड़की हूँ, जिसका फिगर ऐसा है कि लोग बस देखते रह जाएँ। मेरी चूचियाँ भारी और गोल हैं, जो मेरे टाइट टॉप में उभरकर सामने वाले को बेकाबू कर देती हैं। मेरा पेट सपाट और कमर पतली है, और मेरी गांड इतनी भरी हुई कि जीन्स में वो और उभरकर दिखती है। मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ती हूँ, और मेरा छोटा भाई अंकुश अभी दसवीं पास करके ग्यारहवीं में आया है। मेरे घर में मम्मी, पापा, अंकुश, और मैं—हम चार लोग साथ रहते हैं। हमारा घर शहर के एक शांत इलाके में है, जहाँ पड़ोसी एक-दूसरे को अच्छे से जानते हैं।
मेरे पापा फौज में थे, और अब रिटायर हो चुके हैं। लेकिन उनकी कद-काठी और मर्दानगी आज भी वैसी ही है, जैसे उनके जवान दिनों में थी। उनका चौड़ा सीना, मज़बूत बाहें, और गहरी आवाज़ किसी को भी दीवाना बना सकती है। पापा का चेहरा सख्त लेकिन आकर्षक है, और उनकी आँखों में एक ऐसी चमक है, जो मेरे दिल को हर बार बेकरार कर देती थी। वो जब घर में बनियान और पैंट में घूमते, तो उनकी मांसपेशियाँ उभरकर दिखतीं, और मैं चुपके-चुपके उन्हें निहारती थी।
जब मैं छोटी थी, तो कई बार रात में मम्मी-पापा के कमरे से अजीब-अजीब आवाज़ें आती थीं। मैं चुपके से उनकी चुदाई देख लेती थी। पापा का लंड इतना मोटा और लंबा था कि मम्मी की सिसकारियाँ और चीखें पूरे कमरे में गूंजती थीं। वो मम्मी को अलग-अलग तरीके से चोदते—कभी उनकी टाँगें उठाकर, कभी घोड़ी बनाकर, कभी उनके मुँह में लंड पेलकर। मम्मी कभी दर्द से रोतीं, तो कभी मज़े में पागल होकर पापा को गालियाँ देतीं, “आह, धीरे… मार डालोगे क्या!” मैं ये सब देखकर डरती थी, लेकिन मेरे अंदर भी एक अजीब सी गुदगुदी होने लगती थी। धीरे-धीरे, मेरे मन में पापा के लिए एक गलत लेकिन तीव्र चाहत जागने लगी। मैं सोचती थी कि एक दिन मुझे भी उनके मोटे लंड से चुदवाना है। मैं जानती थी कि ये सोचना गलत है, लेकिन पापा की मर्दानगी मेरे दिमाग पर छा गई थी।
एक दिन की बात है। दोपहर का वक्त था, और मम्मी को मामा जी का फोन आया। उनकी आवाज़ में घबराहट थी। उन्होंने बताया कि नानी की तबीयत बहुत खराब है, और मम्मी को तुरंत आना होगा। मम्मी ने बिना देर किए बैग पैक किया और अंकुश को साथ लेकर मामा के घर रवाना हो गईं। मम्मी ने जाते-जाते पापा से कहा, “सीमा का ध्यान रखना। मैं दो-तीन दिन में लौटूँगी।” पापा ने सर हिलाकर हामी भरी, और मम्मी-अंकुश निकल गए। अब घर में सिर्फ़ मैं और पापा थे। मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। पापा के साथ अकेले रहने का ये पहला मौका था, और मेरे दिमाग में वही पुरानी ख्वाहिशें कुलबुला रही थीं।
शाम को अचानक बुआ जी का फोन आया। उनकी आवाज़ कांप रही थी। उन्होंने बताया कि फूफा जी की तबीयत बहुत नाजुक है, और वो अपने साले—यानी पापा—को आखिरी बार देखना चाहते हैं। पापा का चेहरा गंभीर हो गया। वो बोले, “ठीक है, मैं आज ही निकलता हूँ।” पापा ने अपना बैग उठाया और जाने की तैयारी शुरू कर दी। मैं घबरा गई। मम्मी और अंकुश पहले ही जा चुके थे, और अब पापा भी चले जाएँगे, तो मैं घर में अकेली कैसे रहूँगी? मैंने पापा के पास जाकर कहा, “पापा, मम्मी और भैया तो गए ही हैं। अब आप भी चले जाओगे, तो मुझे अकेले डर लगेगा। प्लीज़, मुझे भी साथ ले चलो।”
पापा ने मेरी तरफ देखा। उनकी आँखों में एक हल्की सी चमक थी, जो मुझे थोड़ा बेचैन कर गई। वो बोले, “ठीक है, सीमा। जल्दी तैयार हो जा।” मैंने फटाफट अपना बैग पैक किया। मैंने जानबूझकर अपनी सबसे टाइट जीन्स, एक फिटिंग वाला टॉप, और अपनी सबसे पतली लेस वाली पैंटी और ब्रा रख ली। मुझे नहीं पता था कि क्या होगा, लेकिन मेरे दिल में एक आग सी जल रही थी। मैं तैयार होकर पापा के पास आई। पापा ने अपनी पुरानी मारुति कार का तेल-पानी चेक किया, और शाम चार बजे हम दोनों बुआ के घर के लिए निकल पड़े।
बारिश का मौसम था। आसमान काले बादलों से ढका था, और हल्की-हल्की बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी। रास्ते में हवा ठंडी थी, और सड़कें गीली हो रही थीं। कुछ देर बाद अंधेरा घना होने लगा। कार की खिड़कियों पर बारिश की बूंदें टपक रही थीं, और बाहर का माहौल रहस्यमयी सा लग रहा था। मैं पापा के बगल में बैठी थी, और उनकी मर्दाना खुशबू मुझे बेकरार कर रही थी। कुछ देर बाद मुझे भूख लगने लगी। मैंने पापा से कहा, “पापा, मुझे भूख लगी है। कुछ खाने को मिल जाए।”
पापा ने गाड़ी चलाते हुए कहा, “ठीक है, बेटी। रास्ते में कोई ढाबा या होटल दिखेगा, तो रुक जाएँगे।” रात के साढ़े सात बजे हमें एक छोटा सा ढाबा दिखा। ढाबे के बाहर लकड़ी का साइनबोर्ड था, जिस पर लिखा था, “पंजाबी ढाबा: गरम खाना, ठंडी दारू।” बारिश अब तेज़ हो चुकी थी, और चारों तरफ अंधेरा छा गया था। हमने कार पार्क की और ढाबे की ओर बढ़े। बारिश की वजह से कार ढाबे से थोड़ा दूर खड़ी थी। ढाबे तक पहुँचते-पहुँचते हम दोनों पूरी तरह भीग गए। मेरी जीन्स और टॉप मेरे बदन से चिपक गए थे, और मेरी ब्रा साफ़ दिख रही थी। पापा की शर्ट भी पानी से तर थी, और उनकी चौड़ी छाती और मांसपेशियाँ और उभरकर सामने आ रही थीं।
ढाबे पर हमने गरमा-गरम आलू के पराठे, पनीर की सब्जी, और पकौड़े खाए। पापा ने चाय मंगवाई, और मैंने कॉफी ली। खाना खाकर हम थोड़ा सुस्ताए। ढाबे की लकड़ी की मेज पर तेल के दाग थे, और दीवारों पर पुरानी फिल्मों के पोस्टर लगे थे। बारिश की आवाज़ और ढाबे की रौनक माहौल को और मज़ेदार बना रही थी। खाना खाने के बाद हम फिर से निकलने को तैयार हुए। मैंने पापा से कहा, “चलो, पापा। अब चलते हैं।”
लेकिन बारिश इतनी तेज़ थी कि कार तक पहुँचना मुश्किल था। हमने दौड़कर कार की ओर जाने की कोशिश की, लेकिन तब तक हम और भीग गए। मेरे बाल चिपचिपे हो गए थे, और मेरे कपड़े मेरे बदन से ऐसे चिपके थे कि मेरा हर कट साफ़ दिख रहा था। पापा की बनियान उनकी छाती से चिपक गई थी, और उनकी मर्दाना काया मुझे बेकरार कर रही थी। कार के पास पहुँचे, तो पापा ने अचानक रुककर कहा, “अरे, सीमा! मैं तो कार की चाबी ढाबे पर ही भूल आया।”
मैं थोड़ा चिढ़ गई और बोली, “पापा, आप भी ना!” पापा ने कहा, “तू यहीं रुक, मैं चाबी लेकर आता हूँ।” वो बारिश में दौड़ते हुए ढाबे की ओर गए। इस भागदौड़ में वो और भीग गए, और मैं ठंड से कांपने लगी। पापा चाबी लेकर लौटे, और हम दोनों कार में बैठ गए। मैंने ठंड से कांपते हुए कहा, “पापा, मुझे सूसू लगी है।” पापा ने कहा, “यहीं गेट के पास उतरकर सूसू कर ले।” मैंने ठंड की वजह से मना कर दिया और बोली, “नहीं, पापा। बहुत ठंड है।”
पापा ने गाड़ी स्टार्ट की, लेकिन फिर रुककर बोले, “सीमा, बेटी, तू कपड़े बदल ले। तू पूरी भीग गई है, बीमार पड़ जाएगी। मैं सामने देखूँगा, तू पीछे की सीट पर जाकर बदल ले।” मैंने हल्का सा मुस्कराते हुए कहा, “ठीक है, पापा।” मैं पीछे की सीट पर गई और कपड़े बदलने लगी। मैंने जानबूझकर धीरे-धीरे अपनी जीन्स उतारी, फिर टॉप निकाला। मेरी गीली ब्रा और पैंटी मेरे बदन से चिपकी थीं, और मैंने उन्हें भी उतार दिया। मैंने सिर्फ़ एक पतली सी पैंटी और ढीला सा टॉप पहन लिया, जिसमें मेरी चूचियाँ साफ़ उभर रही थीं। मुझे पता था कि पापा रियरव्यू मिरर से मुझे देख रहे हैं। उनकी साँसें भारी हो रही थीं, और मैंने गौर किया कि वो अपना हाथ अपने लंड पर रखकर उसे सहला रहे थे। मैंने ये सब देखकर अनजान बनने का नाटक किया, लेकिन मेरी चूत में गुदगुदी शुरू हो गई थी।
कपड़े बदलने के बाद मैंने कहा, “पापा, मैं तो बदल लिया। अब आप भी बदल लो।” पापा बोले, “बेटी, मेरा बैग दे दे। मैं यहीं सामने की सीट पर बदल लूँगा।” मैंने ज़िद की, “नहीं, पापा। सामने तो जगह ही नहीं है। आप पीछे आ जाओ।” पापा हल्का सा हिचकिचाए, लेकिन फिर पीछे आ गए। उन्होंने अपनी शर्ट उतारी, फिर बनियान। उनकी चौड़ी छाती और मज़बूत बाहें देखकर मेरी साँसें तेज़ हो गईं। जब उन्होंने अपनी पैंट उतारी, तो उनकी चड्डी में उनका लंड साफ़ उभरा हुआ दिख रहा था। वो पूरी तरह तना हुआ था, जैसे किसी भी वक्त चड्डी फाड़कर बाहर आ जाएगा। मैंने तिरछी नज़रों से उनके लंड को देखा, और मेरी चूत में आग सी लग गई।
पापा जानबूझकर कपड़े बदलने में देर कर रहे थे। वो अपनी चड्डी को बार-बार ठीक कर रहे थे, जैसे मुझे ललचाना चाहते हों। मैंने हिम्मत करके कहा, “पापा, आपकी चड्डी भी तो गीली है। उसे भी बदल लो।” पापा ने हल्का सा मुस्कराते हुए कहा, “बेटी, तेरे सामने मैं चड्डी कैसे बदलूँ?” मैंने नाटक करते हुए कहा, “अरे, पापा! मैं तो आपकी बेटी हूँ। इसमें क्या शरम? उतार लो और दूसरी चड्डी पहन लो।”
पापा ने मेरी बात मान ली और जैसे ही उन्होंने अपनी चड्डी उतारी, उनका मोटा, लंबा लंड मेरे सामने उछल पड़ा। वो इतना बड़ा और सख्त था कि मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, और मेरी चूत में रस टपकने लगा। मैं तिरछी नज़रों से उनके लंड को घूर रही थी, और मन में सोच रही थी कि इसे अपनी चूत में कैसे लूँगी। पापा ने अचानक कहा, “अरे, सीमा! मैं तो दूसरी चड्डी लाना ही भूल गया।”
मैंने तुरंत मौके का फायदा उठाया और हंसते हुए कहा, “कोई बात नहीं, पापा। आप मेरी पैंटी पहन लो।” पापा ने हैरानी से कहा, “तेरी पैंटी? वो मुझे कैसे फिट होगी, बेटी?” मैंने मज़ाक में कहा, “पापा, ट्राई तो करो। कम से कम आपके लंड को तो कुछ राहत मिलेगी!” पापा ने ‘लंड’ शब्द सुनकर मेरी तरफ गहरी नज़रों से देखा, और उनकी आँखों में एक चिंगारी सी चमकी। वो बोले, “ठीक है, दे दे अपनी पैंटी।”
मैंने जानबूझकर अपनी सबसे पतली, लेस वाली पैंटी निकाली और पापा को दे दी। जैसे ही पापा ने उसे पहना, उनका लंड उसमें समा ही नहीं सका। पैंटी का कपड़ा इतना तंग था कि उनका लंड बाहर लटक रहा था। पापा ने शिकायत की, “ये कैसी पैंटी है, सीमा? मेरा लंड तो बाहर ही रह गया। अगर मैं पैंट पहनूँगा, तो चैन भी नहीं बँधेगी, और अगर बँध भी गई, तो लंड में चोट लग सकती है।”
मैंने मौका देखकर हिम्मत की और बोली, “पापा, मेरे पास एक आइडिया है आपके लंड को शांत करने का!” पापा ने उत्साह से पूछा, “क्या आइडिया, बेटी?” मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा, “पापा, आपके लंड को मेरे मुँह में या मेरी चूत में जाना होगा।” पापा एक पल को ठिठके, फिर बोले, “ये तो गलत है, सीमा।”
मैंने उनकी बात काटते हुए कहा, “पापा, मैंने कई बार सुना है जब आप मम्मी को चोदते थे। आप कहते थे कि सीमा को भी एक बार चोदना है। मम्मी ने आपको मना किया, लेकिन मैं तो तैयार हूँ।” मैंने उनके लंड पर धीरे से हाथ रखा और उनकी आँखों में देखते हुए कहा, “पापा, आज मौका है। मेरी चूत आपके लंड के लिए तरस रही है। मेरा रस टपक रहा है। प्लीज़, पापा, आज मुझे चोद दो। मेरी चूत को भोसड़ा बना दो। मैंने आज तक सिर्फ़ आपका लंड देखा है, कभी चूत में नहीं लिया। आज मेरी प्यास बुझा दो, पापा।”
पापा की आँखों में वासना का समंदर उमड़ रहा था। वो मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोले, “ठीक है, बेटी। आज तेरी और मेरी दोनों की तमन्ना पूरी होगी। आ, मेरा लंड मुँह में ले ले।” मैंने बिना वक्त गंवाए पापा के लंड को अपने मुँह में ले लिया। उनका लंड इतना मोटा था कि मेरा मुँह पूरा खुल गया। मैंने उसे चूसना शुरू किया, लेकिन उसकी मोटाई और लंबाई से मेरी साँसें रुकने लगीं। मैंने हिम्मत नहीं हारी और उनके लंड को गले तक उतारने की कोशिश की।
पापा ने मेरा सिर पकड़ लिया और बोले, “सीमा, ज़ोर-ज़ोर से चूस। आज तुझे रंडी की तरह चोदूँगा।” उनकी बातें सुनकर मेरी चूत और गीली हो गई। मैंने उनके लंड को जीभ से चाटा, सुपारे को चूसा, और उनके टट्टों को सहलाया। पापा की सिसकारियाँ तेज़ हो गईं। अचानक उनके लंड से गर्म-गर्म वीर्य की पिचकारी मेरे मुँह में छूटी। उसका स्वाद नमकीन और तीखा था। मैंने एक-एक बूंद गटक ली। पापा ने हाँफते हुए कहा, “वाह, बेटी! तू तो मम्मी से भी ज़्यादा मज़ा देती है।”
मैंने कहा, “पापा, अभी तो मेरी चूत की बारी है। इसे चोदकर फाड़ दो।” पापा ने मुस्कराते हुए कहा, “हाँ, बेटी। लेकिन पहले मेरा लंड फिर से खड़ा कर।” मैंने दोबारा उनके लंड को मुँह में लिया और चूस-चूसकर उसे लोहे की तरह सख्त कर दिया। इस बार पापा ने मेरी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से दबाना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ मेरे निप्पलों को मसल रही थीं, और मैं सिसकारियाँ लेने लगी। मैंने कहा, “पापा, मेरी चूचियाँ चूस लो।”
पापा ने मेरे टॉप को फाड़ दिया और मेरी चूचियों को आज़ाद कर लिया। वो मेरे निप्पलों को मुँह में लेकर चूसने लगे, कभी काटते, कभी जीभ से सहलाते। मैंने अपनी चूत उनके मुँह पर रख दी, और वो उसे चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत की फाँकों को चीर रही थी, और मैं मजे में पागल हो रही थी। हम दोनों 69 की पोजीशन में कार की तंग जगह में एक-दूसरे को चूस रहे थे। पापा का लंड अब पूरी तरह तैयार था, और मेरी चूत रस से लबालब थी।
पापा ने कहा, “सीमा, अब मेरे लंड पर बैठ जा।” मैंने कहा, “नहीं, पापा। मैं घोड़ी बनूँगी। आप पीछे से मेरी चूत चोदो।” पापा ने हामी भरी और मैं घोड़ी बन गई। पापा ने पहले मेरी गांड पर हाथ फेरा, और उनका लंड मेरी गांड के छेद पर रगड़ने लगा। मैंने तुरंत कहा, “पापा, गांड नहीं। पहले मेरी चूत चोदो।” पापा हँसे और बोले, “ठीक है, बेटी।”
पापा ने अपने लंड का सुपारा मेरी चूत की फाँकों पर रगड़ा। मेरी चूत इतनी गीली थी कि सुपारा आसानी से फिसल रहा था। लेकिन मेरी चूत का छेद बहुत टाइट था। मैंने पापा से कहा, “पापा, एक ही झटके में पूरा लंड पेल दो। चाहे मैं चीखूँ, आप मत रुकना।” पापा ने कहा, “ठीक है, बेटी। लेकिन ये ढाबा बहुत पास है। अगर तू चीखी, तो लोग इकट्ठा हो जाएँगे।”
मैंने कहा, “तो अब क्या करें?” पापा बोले, “हम ढाबे से थोड़ा दूर चलते हैं। कोई सुनसान जगह मिलेगी, तो वहाँ तेरी चूत में लंड पेलूँगा।” मैंने हामी भरी। पापा नंगे ही ड्राइवर सीट पर बैठ गए, और मैं उनकी गोद में बैठ गई। उनका लंड मेरी गांड में चुभ रहा था, और मैं जानबूझकर अपनी चूत को उनके लंड पर रगड़ रही थी। कुछ दूर चलने के बाद एक जंगली इलाका आया। पापा ने कार को मुख्य सड़क से हटाकर घनी झाड़ियों के बीच खड़ा कर दिया।
पापा ने मुझे अपनी छाती से चिपकाया और बोले, “दारू पिएगी?” मैंने कुछ नहीं कहा। वो बोले, “दारू से दर्द कम होगा।” मैंने सर हिलाकर हामी भरी। पापा ने कार की डैशबोर्ड से रम की बोतल निकाली। उन्होंने एक बड़ा घूँट लिया और अपने मुँह में दारू भरी। फिर मेरे होंठों से अपने होंठ लगाकर मेरे मुँह में दारू उड़ेल दी। पहली बार दारू का स्वाद मेरे गले को जला गया, लेकिन गर्मी ने मेरे शरीर को ढीला कर दिया। पापा ने एक सिगरेट जलाई, खुद कश लिया, और फिर मेरे होंठों से लगाकर मुझे कश खींचने को कहा। सिगरेट के धुएँ ने मेरे मुँह का स्वाद ठीक किया।
पापा ने चार-पाँच घूँट और दारू मेरे मुँह में डाले। अब मैं पूरी तरह नशे में थी, और मेरी चूत में आग लगी हुई थी। मैंने पापा से कहा, “पापा, अब मेरी चूत में लंड डाल दो। रहा नहीं जा रहा।” पापा ने मुझे फिर से घोड़ी बनाया और कार के डैशबोर्ड से टिकाकर खड़ा किया। उन्होंने अपनी बोतल से रम की कुछ बूंदें मेरी चूत पर टपकाईं और उसे चूसने लगे। दारू और उनकी जीभ का मिश्रण मेरी चूत में बिजली दौड़ा रहा था। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह, पापा… चूसो… और चूसो…”
पापा ने मेरी चूत को चाट-चाटकर और गीली कर दिया। फिर उन्होंने अपने भारी लंड को मेरी चूत के मुहाने पर टिकाया। उनका सुपारा मेरी चूत की फाँकों को चीर रहा था। मैंने कहा, “पापा, एकदम से पेल दो।” पापा ने मेरी कमर पकड़ी और एक ज़ोरदार धक्का मारा। उनका मोटा लंड मेरी टाइट चूत को चीरता हुआ आधा अंदर घुस गया। मैं दर्द से चीख पड़ी, लेकिन पापा ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया। उन्होंने बिना रुके चार-पाँच तेज़ शॉट मारे, और उनका पूरा लंड मेरी चूत में जड़ तक उतर गया।
मेरी चूत से खून की पतली धार बहने लगी, लेकिन दारू के नशे और पापा के लंड की गर्मी ने दर्द को मज़े में बदल दिया। पापा ने मेरी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से मसलना शुरू किया, और मेरी चूत में धक्के मारने लगे। उनकी हर धप्पा मेरी चूत को और चौड़ा कर रहा था। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह, पापा… चोदो… और ज़ोर से… मेरी चूत फाड़ दो…” पापा ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। उनका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था, और मेरी चूत रस छोड़ने लगी।
पापा ने मुझे करीब पैंतालीस मिनट तक रगड़ा। कभी वो मेरी चूत में लंड पेलते, कभी मेरी चूचियों को चूसते, और कभी मेरे होंठों को काटते। मैं दो बार झड़ चुकी थी, लेकिन पापा का लंड अभी भी सख्त था। अचानक उन्होंने मुझे पलटा और मेरे मुँह में अपना लंड पेल दिया। वो मेरे सिर को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। उनका लंड मेरे गले तक जा रहा था, और मैं साँस लेने के लिए तड़प रही थी। कुछ ही पलों में उनके लंड से गर्म-गर्म वीर्य की धार मेरे मुँह में छूटी। मैंने सारा माल गटक लिया।
हम दोनों हाँफते हुए कार की सीट पर गिर पड़े। पापा ने मुझे गले लगाया और मेरे माथे को चूमा। वो बोले, “सीमा, तूने आज मुझे जन्नत दिखा दी।” मैंने कहा, “पापा, ये तो शुरुआत है। अभी मेरी गांड बाकी है।” पापा हँसे और बोले, “वो भी करूँगा, लेकिन पहले थोड़ा आराम कर लें।”
पापा ने फिर से दारू की बोतल निकाली और हम दोनों ने मिलकर कुछ घूँट पिए। नशे में हमारी चुदास फिर जाग उठी। इस बार पापा ने मुझे कार की बोनट पर लिटाया। बारिश की बूंदें मेरे नंगे बदन पर गिर रही थीं, और पापा मेरी चूत को फिर से चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को सहला रही थी, और मैं मजे में चीख रही थी। पापा ने फिर से अपना लंड मेरी चूत में पेला और इस बार और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे।
करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद पापा ने कहा, “सीमा, अब तेरी गांड की बारी।” मैंने डरते हुए कहा, “पापा, धीरे करना।” पापा ने मेरी गांड पर दारू टपकाई और उंगली से उसे ढीला किया। फिर उन्होंने अपने लंड का सुपारा मेरी गांड के छेद पर टिकाया और धीरे-धीरे अंदर धकेला। दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन पापा ने मेरी कमर पकड़कर मुझे संभाला। धीरे-धीरे उनका लंड मेरी गांड में समा गया, और वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। मैं दर्द और मज़े के बीच झूल रही थी। कुछ देर बाद पापा मेरी गांड में ही झड़ गए।
हम दोनों थककर कार में लेट गए। पापा ने बुआ को फोन करके कहा कि कार रास्ते में खराब हो गई है, और हम सुबह तक पहुँचेंगे। बुआ ने हामी भर दी। हमने कपड़े पहने और पास के एक छोटे से लॉज में रुक गए। वहाँ रात भर हमने फिर से चुदाई की। पापा ने मुझे हर पोजीशन में चोदा—कभी घोड़ी बनाकर, कभी अपनी गोद में बिठाकर, कभी मेरे मुँह में लंड पेलकर। सुबह हम बुआ के घर पहुँचे, लेकिन मेरे दिल में पापा के लंड की गर्मी अभी भी बाकी थी।
दोस्तो, ये मेरी काल्पनिक कहानी थी। आपको कैसी लगी, ज़रूर बताएँ।