घमंडी फूफी ने ऊपर बैठकर लंड की सवारी की

Foofi chudai sex story – Muslim milf sex story – Big boobs aunty sex story: मेरी एक फूफी थीं जो कराची में रहती थीं, उनका नाम हिफ्ज़ा था और उनके दो बच्चे थे। वो मेरी चारों फूफियों में सबसे बड़ी थीं, उम्र करीब 43 साल की होगी, लेकिन उस उम्र में भी वो बेहद खूबसूरत, लंबी, गोरी और सेहतमंद औरत थीं, उनका बदन ऐसा लगता था जैसे कोई गदराया हुआ फल हो जो छूने मात्र से रस छोड़ दे।

हमारे ददिहाल की औरतों को ये जिस्मानी खूबियां विरासत में मिली थीं, मेरे मरहूम दादा-दादी दोनों ही लंबे कद के थे, इसलिए उनकी लगभग सारी औलाद लंबी थी, फूफी हिफ्ज़ा का कद तो खानदान के कई मर्दों से भी ज्यादा था, जब वो मेरे सामने खड़ी होतीं तो मुझे ऊपर देखना पड़ता था, और उनकी छाती मेरे चेहरे के ठीक सामने आ जाती थी।

फूफी हीना को छोड़कर बाकी सारी फूफियां लंबी-चौड़ी थीं और फूफी हिफ्ज़ा सबसे सेहतमंद, वो अपनी बहनों फूफी फ़रीहा और फूफी नादिरा से बहुत मिलती-जुलती थीं, चेहरा ही नहीं, बदन भी लगभग एक जैसा, मोटे-भारी मम्मे, चौड़े कूल्हे और लंबी टांगें जो चलते वक्त हल्की सी थरथराहट पैदा करती थीं।

फूफी फ़रीहा को मैं पहले चोद चुका था, उन्हें चोदने के बाद मुझे यकीन हो गया था कि सगी फूफी को चोदना नामुमकिन नहीं, अब मैं फूफी हिफ्ज़ा की चूत मारने की ताक में था, वो मुझे बहुत पसंद थीं, उनकी गोरी त्वचा, भारी आवाज़ और वो घमंड भरी मुस्कान जो देखते ही लंड में सनसनी पैदा कर देती थी।

दिमाग में कई प्लान थे, लेकिन डर भी लगता था कि कहीं बात बिगड़ गई तो खैर नहीं, फूफी हिफ्ज़ा को नाराज करना खतरनाक था, उनके मम्मे फूफी फ़रीहा जैसे ही मोटे और भारी थे, चौड़े सीने पर खूब सजते थे, कमीज़ के ऊपर से भी उनकी गोलाई और भारीपन साफ महसूस होता था, जैसे दो बड़े-बड़े दूधिए आम लटक रहे हों।

बिना ब्रा के मैंने उन्हें एक-दो बार ही देखा था, लेकिन कमीज़ के ऊपर से भी साफ पता चलता था कि उनके निप्पल गजब के लंबे और मोटे थे, चूतड़ भी तगड़े, मोटे और गोल, चलते वक्त एक-दूसरे से रगड़ खाते और आगे-पीछे हिलते रहते, उस हलचल से हल्की सी थपथप की आवाज़ आती थी जो मेरे कानों में रस घोलती थी।

उनका बदन बहुत मज़बूत और गदराया हुआ था, पसीने की हल्की सी गंध भी उनमें से आती थी जो गर्मी में और तेज़ हो जाती थी, फूफी हिफ्ज़ा को चोदने की कोशिश मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसी थी, लेकिन वो इतनी ज़बरदस्त औरत थीं कि ख्वाहिश को दबाना नामुमकिन लगता था, उनका हर अंग जैसे मुझे पुकार रहा था।

फूफी फ़रीहा को चोदने के बाद मैं अपनी सारी फूफियों को नेमत समझने लगा था, फूफी हिफ्ज़ा की मोटी ताज़ा चूत न लेने का सवाल ही नहीं उठता था, चाहे कितना भी खतरा हो, बस सोच-समझकर कदम उठाना था, रातों को उनके बदन की कल्पना करके मैं मुठ मारता और उनकी गर्म सांसों की कल्पना करता।

मैं लगातार सोचता रहता कि फूफी हिफ्ज़ा को कैसे पटाऊं, किसी औरत को राज़ी करने के लिए उसकी शख्सियत जानना ज़रूरी होता है, भतीजा होने की वजह से मैं उन्हें करीब से जानता था, उनकी हर आदत, हर कमज़ोरी मेरे दिमाग में थी।

उनका मिज़ाज फूफी फ़रीहा से मिलता था, लेकिन कुछ बातों में अलग भी, वो सख्त मिज़ाज, तेज़ तबीयत और जल्दी गुस्सा होने वाली थीं, जल्दी किसी से घुलती-मिलती नहीं थीं, लेकिन उनकी आंखों में एक छुपी हुई आग थी जो कभी-कभी झलक जाती थी।

सबसे बड़ी बात, वो खुद को दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत समझती थीं, अपने आप से बेहिसाब मुहब्बत थी, बाकी औरतों को खुद से कमतर मानती थीं, उनकी तारीफ सुनकर खुश हो जाती थीं, लेकिन किसी दूसरी औरत की तारीफ बर्दाश्त नहीं करती थीं, उनके गालों पर उस वक्त रंग चढ़ आता था।

पैसे की भी दीवानी थीं, दौलतमंद होने के बावजूद जेवर और कपड़ों पर जान छिड़कती थीं, शॉपिंग उनका सबसे पसंदीदा शौक था, नई चीज़ें खरीदते वक्त उनकी आंखें चमक उठती थीं और बदन में एक अलग तरह की गर्मी महसूस होती थी।

इन कमज़ोरियों को ध्यान में रखकर मैंने प्लान बनाया, बात बिगड़ने का डर था, लेकिन मैं जानता था कि वो नाराज़ भी हुईं तो किसी और को नहीं बताएंगी, क्योंकि उनकी भी रुसवाई होती, मैं सही वक्त का इंतज़ार करने लगा, दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती थीं सोचकर।

कुछ दिनों बाद पता चला कि फूफी हिफ्ज़ा लाहौर होते हुए रावलपिंडी आ रही हैं, मेरे लिए ये सुनहरा मौका था, मैंने डैड से कहा कि मैं भी लाहौर जा रहा हूं, फूफी को लेता आऊंगा, डैड ने फूफी से फोन पर बात कर ली।

मैं चाहता था कि मामी शाहिदा की तरह फूफी को भी होटल में चोदूं, वहां कोई डर नहीं और अगर नाराज़ हुईं तो संभालना आसान, होटल की बंद कमरे की गंध और ठंडक मुझे और उत्तेजित कर रही थी।

मैंने उन्हें फोन किया, “फूफी, मैं कार से लाहौर आ रहा हूं, अवारी होटल में रुकूंगा, आप भी मेरे साथ रहिए, फाइव स्टार है, कोई तकलीफ नहीं होगी, कमरा ठंडा और आरामदायक रहेगा।”

उन्होंने कहा, “फ़रीहा का घर है न, होटल की क्या ज़रूरत?” उनकी आवाज़ में हल्की सी नाराज़गी थी।

मैंने समझाया, “कमरा पहले से बुक है, कोई मुश्किल नहीं, आप आराम से शॉपिंग करके थक जाएंगी तो होटल में सुकून मिलेगा।”

वो मान गईं और बोलीं, “ठीक है, मुझे एयरपोर्ट से ले लेना,” उनकी आवाज़ में अब नरमी आ गई थी।

मैंने पूछा, “फूफी फ़रीहा को अपने आने की खबर दी?”

उन्होंने कहा, “अभी नहीं।”

मैंने कहा, “जब हम होटल में ठहर रहे हैं तो उन्हें मत बताइए, वो ज़बरदस्ती अपने घर ले जाएंगी।”

वो थोड़ी देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “अच्छा ठीक है,” जैसे उन्हें भी अकेले रहने का मन था।

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मैंने अवारी होटल में सूट बुक कराया, तय दिन एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव किया, उस दिन फूफी हिफ्ज़ा ने पीले कपड़े पहने थे, उनका गोरा सेहतमंद बदन झलक रहा था, कपड़े की पतली सिल्क उन्हें और सेक्सी बना रही थी, हल्की सी पसीने की महक उनके बदन से आ रही थी।

व्ही शेप में दुपट्टा था, लेकिन उसके नीचे उनके मोटे भारी मम्मे छुप नहीं पा रहे थे, ब्रा टाइट थी, मम्मे एकदम स्थिर, कोई हलचल नहीं, लेकिन निप्पल्स की उभार साफ दिख रही थी, जैसे कपड़े को चीरने पर आमादा हों।

मोटी गांड़ हमेशा की तरह हिलती-झटकती चल रही थी, दोनों चूतड़ जुड़े हुए, हर कदम पर रगड़ खाते, गुलाबी गर्मी से उनके बाजू और कंधे चमक रहे थे, त्वचा पर हल्की सी नमी की चमक थी जो मुझे पागल कर रही थी।

वो लिबर्टी मार्केट शॉपिंग करना चाहती थीं, हमने चार घंटे घूमकर खूब शॉपिंग की, मैंने अपनी जेब से उनके लिए ढेर सारी चीजें खरीदीं, वो मना करती रहीं, लेकिन मैं ज़िद करके खरीदता रहा, हर बार वो मुस्कुरातीं और उनकी आंखें चमक उठतीं।

वो बहुत खुश थीं, चेहरा खिल उठा था, आम तौर पर सीरियस रहती थीं, लेकिन उस दिन खुलकर बातें कीं, हंसती भी रहीं, उनकी हंसी की आवाज़ में एक मिठास थी जो मेरे बदन में गर्मी फैला रही थी।

फिर हम होटल के कमरे में आ गए, कमरे में ठंडी हवा और हल्की सी खुशबू थी, मैंने बाथरूम जाकर टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन ली, खुश इंसान जल्दी नाराज़ नहीं होता, फूफी हिफ्ज़ा इतनी शॉपिंग के बाद बहुत अच्छे मूड में थीं, उनका बदन थोड़ा गर्म और पसीने से नम था।

“सोहेल, तुमने बेवजह इतने पैसे खर्च कर दिए, कई चीजों की मुझे ज़रूरत भी नहीं थी,” उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में हल्की सी शिकायत लेकिन खुशी झलक रही थी।

“फूफी हिफ्ज़ा, कोई बात नहीं, आपके लिए थोड़ी बहुत चीजें खरीद लीं तो क्या हुआ,” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, उनकी आंखों में देखते हुए।

“बताओ कितने पैसे लगे, मैं देती हूं, होटल का भी खर्चा तुम्हारा ही है।”

“छोड़िए न फूफी, मैं तो और भी खरीदना चाहता था, आपने रोका,” मैंने उनकी तारीफ करते हुए कहा।

“नहीं, तुम छोटे हो, मैं तुम्हारे पैसे नहीं लगवाना चाहती थी, मुझे तो चाहिए था कि तुम्हें कुछ देकर जाती।”

मैंने बात बदलते हुए कहा, “अब बस भी कर दें फूफी,” और उनकी तरफ करीब खिसक गया।

बातें करते-करते मुझे लगा कि वो बहुत अच्छे मूड में हैं, मैंने गर्मी का बहाना बनाकर ब्रा की तरफ इशारा किया, “फूफी हिफ्ज़ा, एक तो औरतें गर्मी में भी इतने कपड़े पहनती हैं, ऊपर से इतने मोटे,” मेरी नज़र उनके सीने पर टिक गई।

वो हंस पड़ीं और समझ गईं, उनकी हंसी से उनके मम्मे हल्के से हिले, “सीने पर कुछ पहनना तो पड़ता है न, इसे हिलता-डुलता कैसे छोड़ें,” वो बेझिझक बोलीं, उनकी सांसें थोड़ी तेज़ हो गईं।

“घर के अंदर तो सिर्फ कमीज़ काफी है, ब्रा की क्या ज़रूरत,” मैंने हिम्मत बढ़ाकर कहा।

“हां, ब्रा न हो तो गर्मी में सुकून रहता है,” वो मुस्कुराईं, उनके गालों पर हल्का रंग आ गया।

“फूफी, ब्रा की क्वालिटी से भी फर्क पड़ता होगा न?” मैंने बात आगे बढ़ाई।

“बहुत फर्क पड़ता है, लोकल वाली कचीलती हैं, इंपोर्टेड आरामदेह और कम गर्म,” कहते हुए उनका हाथ अनायास अपने मम्मों पर चला गया, उंगलियां हल्की सी दबाव दे रही थीं।

“शायद मम्मों के साइज़ से भी फर्क पड़ता हो, मोटे मम्मे ज्यादा तंग करते होंगे,” मैंने पहली बार इतनी खुली बात की, दिल ज़ोर-ज़ोर धड़क रहा था, लंड शॉर्ट्स में सख्त हो रहा था।

“हां, ऐसा ही है,” उन्होंने छोटा सा जवाब दिया, मुस्कान गायब हो गई, लेकिन आंखें मेरी तरफ टिकी रहीं।

उनके गालों पर हल्का रंग चढ़ आया, शायद उन्हें मेरी नीयत समझ आ गई थी, लेकिन वो चुप रहीं, वो फ्रिज से पानी लेने उठीं, उनके चूतड़ों की हलचल देखकर मेरी सांसें तेज़ हो गईं।

साइड से उनके उभरे मम्मे दिखे, मैंने मन ही मन सोचा, आज ये कमाल के मम्मे मेरे हाथ में होंगे, उनकी गर्मी मेरी हथेली पर महसूस होगी, डर कम हो गया।

“फूफी हिफ्ज़ा, आप नहा धो लीजिए और प्लीज़ ब्रा उतार दीजिए, बहुत गर्मी है,” मैंने हिम्मत करके कहा, मेरी आवाज़ में ललक साफ थी।

उन्होंने मेरी तरफ देखा, आंखों में कुछ चमका, “कमरा एयरकंडीशंड है, गर्मी कहां है,” कहकर बाथरूम में चली गईं, लहजे में गुस्सा नहीं था, बस गहरी सोच में डूबी लग रही थीं, दरवाज़ा बंद करने से पहले उनकी सांसों की गर्मी मुझे महसूस हुई।

मुझे एक आइडिया आया, मैंने कहा, “फूफी, मैं थोड़ी देर बाहर जा रहा हूं,” फिर लिबर्टी मार्केट गया, एक बड़े स्टोर से उनके साइज़ के पांच इंपोर्टेड ब्रा खरीदे, सॉफ्ट फैब्रिक वाले जो मम्मों को सहलाते हैं, और वापस दौड़ा आया।

वो कपड़े बदल चुकी थीं, लेकिन ब्रा अभी भी पहने थीं, उनकी त्वचा पर नहाने की ताज़गी और हल्की खुशबू थी, “कहां गए थे?” उन्होंने पूछा, आंखें चमक रही थीं।

“आपके लिए इंपोर्टेड ब्रा लाया हूं, लाहौर की गर्मी में बहुत ज़रूरत पड़ेगी,” मैंने बॉक्स देते हुए कहा, मेरी उंगलियां उनके हाथों को छू गईं, गर्माहट महसूस हुई।

वो हैरान हुईं, लेकिन चेहरा खिल उठा, आंखें ब्रा पर टिक गईं, “क्या ज़रूरत थी, मैं अपने साथ लेकर आई हूं, अभी बदला है।”

“फूफी, आप शर्मिंदा न करें, फूफियों में आप मुझे सबसे अच्छी लगती हैं, आज खिदमत का मौका मिला,” मैंने उनकी आंखों में देखकर कहा।

वो चुप रहीं, लेकिन गुस्सा नहीं हुईं, मुझे लगा मेरी मेहनत रंग ला रही है, उनकी सांसें थोड़ी तेज़ हो गई थीं।

“फूफी, ये साइज़ ठीक हैं न?” मैंने पूछा, करीब आते हुए।

“लगता तो है,” वो बोलीं, बॉक्स को सहलाते हुए।

“उम्मीद है आपके मम्मों पर फिट आएंगी,” मैं हद पार कर रहा था, मेरी नज़र उनके सीने पर थी।

वो कुछ नहीं बोलीं, बस सोच में डूब गईं, मुझे यकीन हो गया कि वो समझ चुकी हैं कि मैं उनकी फुद्दी मारना चाहता हूं, लेकिन उनकी आंखों में नाराज़गी नहीं, कुछ और था।

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“फूफी, इन्हें पहनकर देख लीजिए, फिट न आएं तो चेंज करवा लाऊंगा,” मैंने कहा, आवाज़ में ललक थी।

उन्होंने अजीब नज़रों से देखा, फिर बिना कुछ कहे बाथरूम में चली गईं, दरवाज़ा बंद हुआ तो मेरी कल्पना दौड़ने लगी।

थोड़ी देर बाद बाहर आईं, “ये ज़रा छोटे हैं,” ब्रा उनके हाथ में थी, अब ब्रा नहीं पहनी थी, दुपट्टा कंधे पर, एक मम्मा ढका हुआ, दूसरा पतली कमीज़ से साफ दिख रहा था, मोटे खड़े मम्मे, निप्पल नुकीले और बाहर निकले हुए, त्वचा पर हल्की सी नमी की चमक थी।

“आप किस कंपनी का ब्रा पहनती हैं?” मैंने पूछा, सांसें तेज़।

“लिली ऑफ फ्रांस।”

“सही साइज़ बताइए, चेंज करवा लाता हूं।”

“मेरा साइज़ 40 से ऊपर है, लार्ज।”

“फूफी, इंपोर्टेड में लार्ज-स्मॉल नहीं होता, फीता से नाप लीजिए, होटल से मंगा लेता हूं,” मैंने कहा, दिल धड़क रहा था।

उन्होंने सोचा और सर हिला दिया, महंगे ब्रा हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं, उनकी उंगलियां ब्रा को सहला रही थीं।

मैंने फोन किया, होटल स्टाफ नापने वाला फीता ले आया, मैंने फूफी को दिया, “फूफी, ब्रा के लिए दो जगह नाप लें, मम्मों के नीचे और ठीक ऊपर।”

“तुम्हें ब्रा का साइज़ लेना किसने सिखाया? मुझे भी नहीं पता था,” वो बोलीं, आंखें मेरी तरफ।

“मॉडर्न ज़माना है फूफी, पता चल जाता है।”

फिर मैंने हिम्मत करके कहा, “फूफी, मैं नाप ले लेता हूं, महंगे ब्रा हैं, फिट न आएं तो नुकसान,” मेरी आवाज़ कांप रही थी।

उनके चेहरे पर फिक्र आई, सोचा, फिर बोलीं, “ले लो, लेकिन किसी से ज़िक्र मत करना, मैं तुम्हारी फूफी हूं, मुनासिब नहीं,” उनकी सांसें गर्म थीं।

“फूफी, मैं जानता हूं।”

“कमीज़ ऊपर करके ले लो।”

“इस तरह सही नंबर नहीं आएगा,” मैंने कहा, नज़रें उनके सीने पर।

उन्होंने आहिस्ता से कमीज़ उतार दी, नीचे ब्रा नहीं थी, उनके तने हुए मोटे मम्मे एकदम नंगे मेरे सामने आ गए, गर्मी से हल्का पसीना उनकी त्वचा पर चमक रहा था, दूधिया रंग और रेशमी चिकनाहट देखकर मेरा मुंह सूख गया।

मैं स्तब्ध रह गया, मम्मे दूधिए, चमकीले, रेशमी और बेदाग, निप्पल्स लंबे, मोटे, पूरी तरह अकड़े हुए, नोकें इतनी मोटी कि चुटकी में पकड़ी जा सकती थीं, हल्की सी गुलाबी चमक थी उन पर।

उन्होंने आंखें नीची कर लीं, लेकिन घबराई नहीं, उनके बदन से हल्की सी गर्म खुशबू आ रही थी, मैंने कांपते हाथों से फीता उनकी कमर पर लपेटा और मम्मों के नीचे से नाप लिया, उनकी त्वचा की गर्मी मेरी उंगलियों में उतर रही थी।

उनके भारी मम्मे इतने करीब, निप्पल्स चूसने की ख्वाहिश ज़ोर मार रही थी, सांसें उनकी तेज़ थीं, वो पीछे हटीं तो फीता गिर गया, झुकते वक्त उनका एक मम्मा मेरे हाथ पर लग गया, गर्म और नरम।

मैंने हाथ सीधा किया तो पूरा मम्मा मेरे हथेली में आ गया, गर्म, भारी और ठोस, मैंने अनायास दबा दिया, उनकी त्वचा पर मेरी उंगलियों के निशान पड़ गए।

“उफ्फ… आह…” उनकी मुंह से गर्म सिसकी निकली, बदन सिहर उठा।

मैंने छोड़ दिया, फिर फीता उनके निप्पल्स के ऊपर से जोड़ा, दायां मम्मा पकड़कर निप्पल फीते के नीचे किया, मम्मा इतना भारी कि हाथ डूब गए, निप्पल की कठोरता मेरी उंगलियों पर महसूस हुई।

मैंने हल्का सा दबाया तो वो सिहर उठीं, “स्स्स… सोहेल…” उनकी सांसें तेज़ हो गईं।

नाप लेने के दौरान कई बार हाथ उनके मम्मों से टकराए, उनकी गर्मी और नरमी हर बार मुझे पागल कर रही थी, लेकिन वो खामोश रहीं, बस सांसें तेज़ होती जा रही थीं।

नाप लेकर मैं स्टोर गया और सही साइज़ के ब्रा चेंज करवा लाया, वापस आया तो उनके चेहरे पर हल्की शर्म और लालिमा थी, आंखें नीची।

“फूफी हिफ्ज़ा, आप ब्रा न भी पहनें तो लगता है जैसे पहने हैं,” मैंने तारीफ की, नज़र उनके मम्मों पर।

“क्यों?” उनकी आवाज़ में हल्की ललक थी।

“आपके मम्मे बहुत अलग हैं, मोटे, सख्त और खड़े, ब्रा न हो तो भी लगता है पहने हैं,” मैंने कहा, करीब आते हुए।

“ऐसा कुछ नहीं,” वो बोलीं, लेकिन आंखें चमक उठीं, होंठों पर मुस्कान खेल गई।

मैं आगे बढ़ा, उनका बायां मम्मा पकड़ लिया, कमीज़ के ऊपर से भी गर्माहट और नरमी महसूस हुई, “अब पहने हैं या नहीं?”

“हां पहना है,” वो बोलीं, लेकिन हाथ नहीं हटाया, आंखें नशीली हो गईं, सांसें गर्म मेरे चेहरे पर लग रही थीं।

मैंने हल्का दबाया तो “स्स्स… आह्ह…” उनकी सिसकी निकली, बदन में कंपन हुआ।

अब साफ था कि उन्हें ऐतराज़ नहीं, मैं उनके पास बैठ गया, गले में बांह डाली और गाल चूमा, उनकी त्वचा की गर्मी और खुशबू ने मुझे मदहोश कर दिया।

“ये तो गुनाह है…” वो बोलीं, लेकिन आवाज़ में कमज़ोरी थी।

मैंने होंठ उनके होंठों पर रख दिए और चूसने लगा, उनके होंठ नरम और गर्म थे, वो पहले चुप रहीं, फिर ज़बान मेरे मुंह में दे दी, हम दोनों एक-दूसरे की ज़बान चूसने लगे, थूक का आदान-प्रदान हो रहा था, मीठा और गर्म।

मैंने उनके मम्मों को कमीज़ के ऊपर से मसलना शुरू किया, वो और गरम हो गईं, सांसें तेज़, बदन में कंपन, मैंने गिरेबान नीचे किया और नंगे हिस्से को चूमने लगा, त्वचा पर मेरे होंठों की गर्मी छोड़ते हुए।

उन्होंने दुपट्टा उतार दिया, मैंने शॉर्ट्स उतारी और उनका हाथ अपने खड़े लंड पर रखा, वो पहले सहलाने लगीं, उनकी नरम हथेली की गर्मी मेरे लंड पर फैल गई, फिर टट्टों को नरम हाथों में लेकर टटोलने लगीं, मेरे बदन में सनसनी दौड़ गई, लंड में झटके लग रहे थे।

“फूफी, कमीज़ उतारिए,” मैंने कहा, सांसें फूल रही थीं।

वो उठकर बैठ गईं, कमीज़ उतारी, फिर ब्रा का हुक खोलकर मम्मे आज़ाद कर दिए, मम्मे हल्के से हिले और थरथरा गए।

मैंने दोनों मम्मे हाथों में लिए और उन्हें लिटा दिया, मुंह में लेकर चूसने लगा, निप्पल्स की कठोरता और गर्मी मुंह में महसूस हुई।

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“आह्ह… स्स्स… ओह्ह सोहेल…” वो सिसकने लगीं, बदन में लहरें दौड़ रही थीं।

उनके मम्मे इतने बड़े कि एक को चूसने के लिए दोनों हाथ चाहिए थे, मैंने लंबे निप्पल्स को ज़ोर-ज़ोर चूसा, मम्मों पर मेरे मुंह के निशान पड़ गए, हल्का लाल हो गए।

वो करवट से लेट गईं, मैं उनके साथ लेटकर बारी-बारी निपल्स चूसता रहा, उनका बदन गर्म हो चुका था, पसीने की हल्की गंध और बढ़ गई थी।

मैंने उनका हाथ अपनी जांघों पर फेरा, फिर लंड मुट्ठी में लिया, वो आंखें बंद करके मज़ा ले रही थीं, होंठ काट रही थीं।

फिर मैं नीचे आया, नाफ चाटने लगा, उनकी नाफ में हल्की नमी थी, वो एक मम्मा खुद मसलने लगीं, “उफ्फ… सोहेल… कितना अच्छा लग रहा है…”

शलवार का नाड़ा खोला, वो चूतड़ ऊपर उठाकर मदद करने लगीं, शलवार उतार दी, उनकी रानें गर्म और चिकनी थीं।

उनकी सेहतमंद चूत साफ-सुथरी, बिना बालों की, गीली और गरम, चूत से हल्की सी मादक गंध आ रही थी, मैंने चूत पर मुंह रखकर चूमा, वो सिहर उठीं और हंस पड़ीं।

मैंने रानें फैलाईं और चूत चाटने लगा, चपचप… चप… की आवाज़ें आने लगीं, उनका रस मीठा और गर्म था।

“आह्ह… इह्ह… ओह्ह सोहेल… ह्ह्ह… वहां… हां…” वो कराहने लगीं, चूतड़ हिलने लगे।

मैंने एक हाथ से मम्मे मसलते रहे, उनकी सिसकियां तेज़ हो गईं, “आह्ह ह ह ह्हीईई… आअह्ह्ह्ह… सोहेल… मत रुक…”

मैंने गांड़ के सुराख पर उंगली फेरी तो उनका बदन कांप उठा, वो झटके देने लगीं, चूत और गीली हो गई।

“उउफ्फ्फ़… उूुउउफ्फ्फ़… उूउुउउफ्फ्फ़… आह्ह्ह…” वो ज़ोर-ज़ोर से खलास हो गईं, चूत से रस की बूंदें मेरे मुंह पर टपकीं।

मैंने उन्हें संभलने दिया, उनकी सांसें धीमी हुईं, फिर करवट लेकर उनके साथ लेट गया, मम्मे चूसता रहा और हाथ चूतड़ों पर फेरता रहा, उनकी गांड़ की गर्मी और नरमी महसूस करता रहा।

फिर मैंने उन्हें सीधा किया और गांड़ का सुराख चाटने लगा, “ग्ग्ग्ग… गी… गी…” मेरी ज़बान अंदर तक जा रही थी, उनका सुराख गर्म और टाइट था, वो अपनी गांड़ खुद खोल-बंद करने लगीं, सिसकियां लेते हुए।

मैंने उन्हें ऊपर बिठाया और मम्मों के बीच लंड रखकर घिसने लगा, उनके भारी मम्मों में लंड गायब हो जाता, गर्म और नरम गोश्त मुझे घेर लेता।

“फूफी, मेरा लंड चूसेंगी?” मैंने पूछा, सांसें तेज़।

“कभी नहीं किया, लेकिन आज करके देखती हूं,” वो बोलीं, आंखें ललचाई हुईं।

वो झुक गईं, लंड का टोपा मुंह में लिया, “ग्ग्ग्ग… गों… गोग…” वो चूसने लगीं, उनके मुंह से गर्म थूक टपकने लगा, लंड चमकने लगा।

उनके मुंह से थूक टपकने लगा, मैं नीचे से झटके देता रहा, उनका गला हल्का सा कंपन कर रहा था।

फिर मैंने उन्हें लिटाया और ऊपर चढ़ गया, मेरा कद उनसे छोटा था, इसलिए लंड उनकी चूत से ऊपर था, वो टांगें फैलाकर मुझे नीचे खींचने लगीं, उनकी चूत की गर्मी मेरे लंड पर लग रही थी।

“डालो न… सोहेल… उफ्फ… कितना देर कर रहा है…” वो बेसब्र हो गईं, आवाज़ में ललक थी।

मैंने पूरा लंड अंदर पेल दिया, “आह्ह्ह… ओह्ह्ह… कितना मोटा है तेरा… आह्ह… भर गया…” उनकी चूत की दीवारें मेरे लंड को कसकर जकड़ रही थीं।

उनकी चूत गरम और गीली थी, चपचप… चपचप… की आवाज़ें गूंजने लगीं, हर झटके में उनका रस बाहर निकल रहा था।

मैंने गांड़ में उंगली डाली तो वो और ज़ोर से चूत हिलाने लगीं, “आह्ह… वहां… हां… सोहेल… और अंदर…”

मैंने तेज़ झटके मारने शुरू किए, उनके मम्मे लहरें मार रहे थे, पसीना उनके बदन पर चमक रहा था।

“ओह्ह… सोहेल… ज़ोर से… आह्ह्ह… उईईई… आ रहा है फिर…” वो कराह रही थीं।

वो दूसरी बार खलास हो गईं, चूत ने मेरे लंड को और कस लिया, मैंने उनका मुंह चूमा और थूक उनके मुंह में छोड़ा, वो सब निगल गईं, होंठों पर चमक आ गई।

फिर मैंने उन्हें लंड पर बिठाया, वो ऊपर बैठकर हिलने लगीं, उनका भारी बदन मेरे ऊपर, चूतड़ मेरी जांघों पर पटक रही थीं, ठपठप की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी।

“आह्ह… कितना अंदर जा रहा है… उफ्फ… तेरी फूफी की चूत भर दी तूने…” वो खुद झटके देने लगीं, मम्मे मेरे चेहरे पर लहरा रहे थे।

मैंने उनके निप्पल्स खींचे, वो और तेज़ हो गईं, पसीना हमारे बदनों को जोड़ रहा था।

फिर मैंने उन्हें कुतिया बनाया, पीछे से लंड पेला, “चपचपचप… ठपठपठप…” आवाज़ें तेज़ हो गईं, उनकी गांड़ की गर्मी मेरे टट्टों पर लग रही थी।

उन्होंने हाथ पीछे करके मेरे टट्टे सहलाने शुरू कर दिए, उनकी नरम उंगलियां मेरे टट्टों पर नाच रही थीं, मुझे मज़ा दुगना हो गया, लंड में झटके लग रहे थे।

आखिर मैंने उन्हें फिर लिटाया और तेज़-तेज़ झटके मारे, कमरे में हमारी सांसों और चुदाई की आवाज़ें गूंज रही थीं, हम दोनों एक साथ खलास हो गए, मेरी मनी उनकी चूत के अंदर गायब हो गई, गर्म और चिपचिपी।

हम हांफते हुए लेटे रहे, पसीने से तर बदन एक-दूसरे से चिपके हुए, मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि घमंडी फूफी हिफ्ज़ा इतनी आसानी से और इतने मज़े से चुद गईं, उनकी चूत की गर्मी अभी भी मेरे लंड पर महसूस हो रही थी, ज़िंदगी के रंग सच में अजीब हैं।

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