गुड़गाँव से रेवाड़ी बस में गरम आंटी ने लंड हिलाया

Bus sex story – Handjob sex story: हैलो दोस्तों, मेरा नाम रोनक है। गुड़गाँव में रहता हूँ, उम्र अभी-अभी 19 की हुई है, रोज़ जिम करता हूँ, बॉडी एकदम फिट है, पर उस रात तक मैंने कभी किसी औरत की चूत को छुआ तक नहीं था। बस सपनों में ही अपना लंड हिलाता था और सोचता था कि कब कोई रसीली आंटी मिलेगी।

उस दिन मामा के प्रॉपर्टी के काम से रेवाड़ी जाना था। मामी ने रात नौ बजे की वोल्वो बुक कर दी थी। बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी, हवा में ठंडक थी, पर एसी की ठंडी हवा और बाहर की गर्मी मिलकर अजीब सी उत्तेजना पैदा कर रही थी। मैं अपनी सीट पर बैठा था, तभी एक फैमिली चढ़ी – पति, पत्नी और दो छोटे बच्चे। पत्नी ने काली शिफॉन साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे बदन पर चिपक कर हर कर्व को उभार रही थी। जैसे ही वो झुककर बैग सीट के नीचे रखने लगी, उसका पल्लू धीरे से फिसल गया। ब्लाउज़ की गहरी क्लीवेज खुली तो लगा जैसे दो दूधिए संतरे फटने को तैयार हों। ब्रा का काला लेस हल्का सा दिख रहा था, गर्मी की वजह से उसके क्लीवेज पर पसीने की बारीक चमक थी और हर साँस के साथ बूब्स हल्के-हल्के हिल रहे थे। मेरी नज़र जमी की जमी रह गई, लंड एक झटके में पैंट के अंदर सख्त होकर चुभने लगा। उसने मेरी नज़र पकड़ी, होंठों पर दाँत गड़ाए और शरारती मुस्कान देकर पल्लू ठीक किया।

बस चली, हाईवे पर झटके लग रहे थे। उसका पति खिड़की वाली सीट पर बैठा था और दस मिनट में ही खर्राटे लेने लगा। बच्ची रोने लगी कि उसे खिड़की चाहिए। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “आंटी, बच्ची को मेरी सीट दे दो।” पहले तो मना किया, पर मैंने चिप्स और बिस्किट निकालकर बच्ची को खुश कर दिया। आंटी की आँखों में चमक आ गई। उसने धीमी, रसीली आवाज़ में पूछा, “नाम क्या है तुम्हारा?” “रोनक” “हेमा” – उसने ऐसे कहा जैसे होंठों से शहद टपक रहा हो।

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फिर बातें शुरू हुईं। मैंने मज़ाक में कहा, “मैं तो सबको खुश करना जानता हूँ।” हेमाजी ने आँखें सिकोड़कर, होंठ चबाते हुए पूछा, “अच्छा… कैसे खुश करते हो?” मैंने हँसते हुए कहा, “जो चाहिए, वो दे देता हूँ।” वो हल्के से हँसीं और बोलीं, “तो आज मेरी बोरियत दूर कर दो ना… पतिदेव तो मर गए सोते हुए।”

बच्ची मेरे कंधे पर सर रखकर सो गई। हेमाजी उसे लेने झुकीं। मैंने बच्ची दी, पर मेरा दाहिना हाथ उनके दाहिने बूब पर पूरी तरह दब गया। गर्म, मुलायम, भरपूर। निप्पल सख्त होकर उभर आया और जब मैंने हल्का सा दबाया तो महसूस हुआ – निप्पल में छोटी सोने की रिंग थी जो ब्लाउज़ के अंदर भी साफ महसूस हो रही थी। वो सिहर गईं, साँस रुक गई, होंठ काटते हुए मेरी आँखों में देखा और फुसफुसाईं, “हरामी… क्या कर रहा है…” पर हाथ नहीं हटाया, उल्टा हल्का सा आगे दबाया।

बच्ची को पीछे लिटाकर वो वापस आईं। अब बस में पूरा अंधेरा था, सिर्फ़ हाईवे की स्ट्रीट लाइट्स कभी-कभी अंदर झाँकती थीं। मैं गाने सुन रहा था। हेमाजी ने धीमी आवाज़ में कहा, “मुझे भी सुनाओ ना… नींद नहीं आ रही।” मैंने एक ईयरफोन उन्हें दिया, पर बार-बार निकल रहा था। मैंने कहा, “पास बैठ जाओ ना।” वो पति को हिलाकर चेक किया, फिर फट से मेरे बगल में सरक आईं। उनकी गर्म जाँघ मेरी जाँघ से सटी, साड़ी की सिलवटें मेरे हाथ में आ रही थीं, उनकी बॉडी की खुशबू – चंदन और पसीने की मिली-जुली – मेरे नाक में घुस रही थी।

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रोमांटिक गाने चल रहे थे। मैंने धीरे से उनका हाथ थामा, कोई विरोध नहीं। फिर हिम्मत करके जाँघ पर हाथ रखा। साड़ी पतली थी, जाँघ की चिकनाई और गर्मी साफ महसूस हो रही थी। वो सिहर गईं, साँसें तेज़ हो गईं, “उफ्फ़ रोनक… कोई देख लेगा…” मैंने कान में फुसफुसाया, “कोई नहीं देख रहा… बस आपकी गर्मी महसूस कर रहा हूँ।”

फिर मैंने पल्लू धीरे से साइड किया और ब्लाउज़ के ऊपर से दोनों बूब्स मसलने लगा। निप्पल रिंग्स को उँगली से खींचा तो वो आह्ह्ह्ह भरने लगीं, “आह्ह्ह… स्स्सी… दर्द हो रहा है… लेकिन मज़ा भी… कितने दिन बाद किसी ने छुआ है…” मैंने उनके होंठ चूस लिए। वो पागल हो गईं, जीभ मेरे मुँह में डालकर चूसने लगीं और फुसफुसाईं, “जल्दी कर… मेरी चूत पानी-पानी हो गई है… अब बर्दाश्त नहीं हो रहा।”

मैंने उन्हें सीट पर लिटाया, साड़ी और पेटीकोट ऊपर चढ़ाया। पैंटी गुलाबी रंग की थी, पूरी गीली। मैंने उसे नाक पर लगाया – मदहोश करने वाली खुशबू। जब पैंटी नीचे की तो सामने थी एकदम रसीली चूत, हल्के काले बाल, क्लिट सूजी हुई और निचले पेट पर छोटी सी काली तितली का टैटू। मैंने जीभ से पहले क्लिट को छुआ। वो काँप गईं, कमर ऊपर उठी, “उफ्फ़ मम्मी रे… आह्ह्ह्ह… क्या कर रहा है… स्स्सी…” फिर मैंने पूरा मुँह लगा दिया। जीभ अंदर-बाहर, क्लिट को चूसते हुए। वो मेरे सिर को जाँघों में दबाने लगीं, “चूस… पूरी चूत खा जा… आज तक किसी ने ऐसे नहीं चाटी… आह्ह्ह्ह… ह्ह्हा… ओह्ह्ह मर गई…” रस का स्वाद हल्का नमकीन-मीठा था, जैसे पका हुआ आम। दो मिनट में उनकी जाँघें काँपने लगीं और फचाक से सारा गर्म रस मेरे मुँह में छोड़ दिया। मैंने एक बूंद नहीं छोड़ी।

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अब मैंने अपना लंड बाहर निकाला – पूरा खड़ा, थोड़ा टेढ़ा। बोला, “हेमा जी, मुँह में लो ना।” वो मचल गईं, “नहीं बेटा… उल्टी आ जाएगी… लेकिन हाथ से तेरे इस शैतान को खाली ज़रूर कर दूँगी।” उन्होंने लंड पकड़ा, पहले टोपे पर उँगली से गोल-गोल घुमाईं, प्रीकम चिपचिपा था। फिर धीरे-धीरे हिलाते हुए बोलीं, “कितना टेढ़ा है तेरा… बिल्कुल शरारती… आज तक ऐसा लंड नहीं देखा… कितना गर्म है…” मैंने कहा, “तेज़ करो ना… झड़ने वाला हूँ…” वो शैतानी हँसीं और स्पीड बढ़ा दीं, अंडकोष को दूसरी उँगली से सहलाते हुए बोलीं, “झड़ जा मेरे हाथ पर… पूरा माल निकाल दूँगी…” मैं झड़ा। सारा गाढ़ा वीर्य उनकी काली साड़ी पर गिरा। उन्होंने उँगली से चाटा और बोलीं, “हम्म्म… स्वाद तो बहुत अच्छा है…”

कुछ देर हम साँसें लेते रहे। फिर वो बोलीं, “यहाँ पूरा नहीं हो सकता… बहुत रिस्क है। लेकिन वादा है, जल्दी मिलेंगे और खूब चुदाई करेंगे।” अपनी गीली पैंटी उतारी और मेरी जेब में ठूँस दी, “घर जाकर सूँघना और मुझे याद करना।” आखिरी में लंबा, गहरा स्मूच किया और चुपके से अपनी सीट पर चली गईं।

मैं उनकी खुशबू, बूब्स की नरमी, निप्पल रिंग्स की ठंडक, चूत के रस के स्वाद और उस गीली पैंटी की गर्मी में डूबा रहा। कब सो गया, पता ही नहीं चला।

धन्यवाद।

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