भाभी ने बुखार में दी चूत की दवा

Kiraye wali bhabhi ki chudai sex story: हैलो दोस्तों, मेरा नाम विजय है। अभी चौबीस का हूँ, पर यह बात ठीक दो साल पुरानी है जब मैं बाईस का था और पूरा दिन घर पर ही रहता था। हाइट छह फीट, लंड जब पूरा खड़ा होता है तो आठ इंच लंबा, दो इंच से ज्यादा मोटा, काला, नसों वाला डंडा। हम रोहतक में रहते हैं। नया दोमंजिला मकान बनवाया था, हम ऊपर की मंजिल पर रहते थे और नीचे का हिस्सा किराए पर दे दिया था।

नीचे फौजी भैया रहते थे, साल में दो-तीन बार ही घर आते थे। घर पर सिर्फ संगीता भाभी और उनके दो बच्चे थे, ग्यारह साल का लड़का और आठ साल की लड़की। संगीता भाभी चौंतीस की थीं, कद पांच फीट पांच इंच, रंग दूध सा गोरा, बदन पतला पर बूब्स भारी-भारी 35 के, और गांड गोल-मटकती 38 की। पटियाला सूट में जब चलतीं तो गहरा गला होने से क्लिवेज की गहरी लकीर और पसीने की हल्की चमक दिखती थी। ऊपरी होंठ पर हल्की सी मूंछ की शेड थी जो उन्हें और भी रसीली बनाती थी। बाहों, जांघों और पेट पर हल्के सुनहरे रोम थे, जो छूने में अलग ही सिहरन देते थे।

पापा सेल्स मैनेजर हैं, हफ्ते में सिर्फ वीकेंड घर आते हैं। मम्मी सरकारी स्कूल में टीचर हैं, सुबह निकलतीं, शाम छह-सात बजे लौटतीं। दिन भर मैं अकेला, लैपटॉप पर पोर्न देखता और मुठ मारता। मुझे हमउम्र लड़कियां नहीं, पकी-पकाई शादीशुदा औरतें पसंद थीं, जिनकी चूत पहले से किसी लंड से खुल चुकी हो और जो बिना नखरे किए पूरा मजा दे सकें।

सर्दियां थीं। मैं रोज दोपहर में छत पर धूप सेंकने जाता। एक दिन पुराना पजामा पहना था, नाड़ा जानबूझकर ढीला। लेटते ही हल्का सा खींचा और पूरा आठ इंच का सख्त लंड धड़ाक से बाहर, सुपाड़ा धूप में चमक रहा था, हवा से हल्का हिल रहा था। तभी भाभी कपड़े सुखाने आईं। बाल अभी नहाकर गीले, घने काले, गांड तक लटकते हुए, पानी टपक रहा था। जैसे ही उनकी नजर मेरे लंड पर पड़ी, साँसें रुक गईं, होंठ कांपने लगे। मुंह फेर लिया, पर बार-बार चोरी नजर से देख रही थीं। एक बार उनका हाथ अपनी सलवार के ऊपर चूत पर चला गया और हल्का सा दबा लिया। उस पल मुझे पता चल गया, ये औरत भूखी है और ये भूख बहुत जल्दी मेरे लंड से मिटने वाली है।

उसके बाद रोज का सिलसिला बन गया। मैं लंड बाहर निकाल कर लेटता, वो ठीक उसी टाइम कपड़े सुखाने आतीं और चुपके-चुपके घूरतीं।

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एक दिन ऊपर टंकी खाली थी। मैं नीचे बाथरूम में नहाने गया तो भाभी नहाकर निकल रही थीं। मैंने कहा, “भाभी ऊपर पानी नहीं, नीचे नहा लूं?” वो मुस्कुराईं, “हाँ नहा लो।” बाथरूम में गया तो उनकी गीली पर्पल पैंटी और सफेद ब्रा लटक रही थीं। चूत वाला हिस्सा पूरा भीगा, हल्का पीला, झांटों के काले बाल चिपके हुए। नाक सटाई, गहरी सांस ली – उफ्फ्फ… नमकीन, खट्टी, मछली जैसी तेज गंध। जीभ से चाटा, स्वाद नमकीन-खट्टा। लंड इतना सख्त कि दर्द करने लगा। पैंटी लंड पर लपेटी, तीस-पैंतीस जोरदार झटके मारे, सारा गाढ़ा वीर्य उड़ेल दिया और जानबूझकर उल्टी करके लटका आया ताकि माल साफ दिखे।

फिर एक दिन किचन में बुलाया और गुस्से से बोलीं, “जो कपड़े मैं सुखाती हूँ, तू उन्हें गंदा करता है ना हरामी?” मैं डर गया। वो बोलीं, “अगर फिर पता चला तो मोहल्ले में बेज्जती करवा दूंगी।” उसके बाद ब्रा-पैंटी ऊपर सुखाना बंद कर दिया।

जनवरी में मम्मी नानी के यहाँ चली गईं और भाभी से कह गईं कि विजय का खाना बना देना। उसी दिन मुझे तेज बुखार चढ़ आया। शाम को भाभी खाना लेकर आईं, मैं रजाई ओढ़े सिर्फ बनियान-अंडरवियर में था। डॉक्टर बुलाया, इंजेक्शन लगवाया। रात साढ़े सात बजे भाभी बोलीं, “ऊपर अकेले मत सो, नीचे मेरे साथ सो जा।” मैंने मना किया पर वो जिद करने लगीं। ट्राउजर लेने उठा और चक्कर खाकर गिर पड़ा। भाभी दौड़कर आईं। मैं सिर्फ अंडरवियर में था, लंड टाइट खड़ा। उनकी नजर पड़ी तो लंड और हिचकोले मारने लगा। वो शर्मा गईं, पर आँखें हटा नहीं पाईं। मुझे सहारा देकर उठाया, मेरे कंधे उनके भारी गर्म बूब्स से रगड़ खा रहे थे। ट्राउजर पहनाया, हाथ मेरी कमर में डाला और बूब्स को सीने से सटाकर धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतारीं।

नीचे मैंने मूत किया, दूध-ब्रेड पिया। भाभी ने मेरे लिए चारपाई उनके डबल बेड के ठीक बगल में बिछाई। बच्चे सो चुके थे। भाभी ने लाल टाइट मैक्सी पहनी थी, निप्पल्स की छाप साफ दिख रही थी। रात को नींद खुली तो वो मेरा हाथ पकड़कर बुखार देख रही थीं। मैंने जानबूझकर हाथ आगे बढ़ाया, वो उनकी नाभि पर जा टकराया। मेरा लंड तुरंत खड़ा।

एक घंटे तक मैं इंतजार करता रहा, सांसें तेज, दिल की धड़कन कानों में गूंज रही थी। फिर धीरे से अपना पैर उनकी रजाई में सरकाया। उनका गर्म पैर छू गया। वो करवट लेकर मेरी तरफ आ गईं, अपना पैर मेरे पैर पर रख दिया। मैंने हाथ उनकी रजाई में डाला, पहले गर्दन पर, फिर मैक्सी के बटन खोले। बूब्स पर हाथ फेरा, हल्के से दबाया। कोई विरोध नहीं। मैक्सी को जांघों तक ऊपर सरकाया, उनकी गर्म जांघें और सुनहरे रोम मेरे हाथ से रगड़ खा रहे थे। पैंटी के ऊपर से ही बीच की फांक पर उंगली फेरी – कपड़ा पूरा गीला, गर्मी बाहर तक आ रही थी। भाभी की साँसें तेज हो गईं, कमर अपने आप हल्की ऊपर उठी। मैंने पैंटी एक तरफ सरकाई। जैसे ही उंगलियाँ घने, गीले, चिपचिपे झांटों के जंगल में घुसीं, भाभी सिसियाईं, “उफ्फ्फ विजय… छेड़ मत… अंदर डाल ना… कब से तरस रही हूँ…”

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फिर मैंने सिर्फ क्लिट पर गोल-गोल घुमाया, चूत का छेद छुआ तक नहीं। भाभी बर्दाश्त नहीं कर पाईं, “हरामी… तीन उंगलियाँ डाल… फाड़ दे मुझे…” तब जाकर मैंने एक उंगली धीरे से अंदर सरकाई – च्प्प… च्व्व्व… की आवाज आई। दूसरी डाली तो भाभी ने खुद कमर ऊपर उठाकर दोनों निगल लीं। तीसरी डाली तो वो चिहुंक उठीं, “आह्ह्ह… मादरचोद… कितना अच्छा लग रहा है…”

मैंने हिम्मत बढ़ाई और उनकी रजाई में पीछे से घुस गया। अपना आठ इंच का गरमागरम लंड उनकी गांड की दरार में फंसा दिया। वहाँ भी हल्के काले रोम थे जो मेरे लंड को और सिहरन दे रहे थे। भाभी ने खुद पीछे को गांड उचकाई, लंड को और दबाया। मैंने हल्का आगे-पीछे किया तो प्रीकम उनकी गांड के छेद तक पहुँच गया। वो फुसफुसाईं, “गांड में भी डाल देगा ना कभी…? आज नहीं… पर वादा कर… दोनों छेद तेरे हैं…”

मैंने हाथ आगे से डालकर बूब्स मसलने लगा, ब्रा के हुक खोले। उन्हें सीधा लिटाया और रजाई के अंदर उन पर चढ़ गया। होंठ, गाल, कान के पीछे, गर्दन, बाहों के रोम चाटता गया। बूब्स मुंह में लेकर चूसे, दांतों से काटा। वो सिसक रही थीं, “आह्ह्ह… विजय… दांत लग रहे हैं… इह्ह्ह… बहुत अच्छा…”

फिर मैं नीचे खिसका। पैंटी के ऊपर से चूत को मुंह में लिया, चूसा। दांतों से पैंटी नीचे खींची। वो खुद पैर ऊपर उठाकर पैंटी उतारने में मदद करने लगीं। मैंने उनकी काले घने झांटों वाली चूत को पागल की तरह चाटना शुरू किया। जीभ अंदर तक डाली तो रस के साथ हल्की गाढ़ी सफेदी भी जीभ पर लगी। वो बोलीं, “पी ले… ये तेरे लिए ही जमा हुआ था कई दिनों से…” मैंने क्लिट को चूसते हुए तीन उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा। वो चिल्लाईं, “आह्ह्ह… चूस रे हरामी… मेरी रंडी चूत को पूरा चूस ले… कितने दिन से तेरे लंड की भूखी हूँ…”

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फिर वो उठीं और मेरा लंड मुँह में लेकर पहले सिर्फ सुपाड़े को चाटा, फिर पूरा गला तक घुसा दिया। ग्ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग्ग… गीईई… गों गों गों… उनकी लार मेरे अंडों तक टपक रही थी। दस मिनट बाद मैं बोला, “भाभी… निकलने वाला है…” वो और तेज चूसीं और सारा वीर्य गटक गईं।

फिर मेरा लंड फिर खड़ा हुआ। वो लेट गईं, पैर फैलाए। खुद मेरा लंड पकड़कर चूत पर रखा। मैंने एक जोर का धक्का मारा, पूरा आठ इंच जड़ तक। वो चीखीं, “आआह्ह्ह… मादरचोद… कितना मोटा है रे… तेरे भैया का आधा भी नहीं… आज फाड़ दे मेरी चूत… साल भर से सूखी पड़ी है… हाँ… ऐसे ही पेल… मेरी बच्चेदानी में अपना माल डाल… मैं तेरी सस्ती रंडी हूँ आज से… रोज चोदना मुझे… आह्ह्ह… और जोर से…!”

मैंने स्पीड बढ़ाई। वो बेशर्मी से चिल्ला रही थीं, “हाँ विजय… जैसे तेरी गर्लफ्रेंड को करना चाहता था ना… आज अपनी भाभी को वैसा ही कर… मेरे पति को बता दूंगी कि किराए के लड़के ने मुझे रंडी बना लिया… ऊईईई माँ… मर गयी रे…!”

बीस मिनट बाद वो झड़ने लगीं, “विजय… बस… आ गया… पकड़ मुझे कसके… साला… भर दे मुझे… गर्भ ठहर जाए तो तेरा ही बच्चा पालूँगी… आह्ह्ह्ह्ह… मर गयी… ऊईईईई माँ…!” उनकी चूत से गर्म रस की फव्वारा छूटा, नाखून मेरी पीठ में गड़ गए। मैं भी झड़ गया, सारा माल उनकी बच्चेदानी में उड़ेल दिया। लंड अंदर ही रखकर उन पर लेट गया।

सुबह पांच बजे भाभी की नींद खुली। बच्चे सो रहे थे। वो मेरे ऊपर चढ़ गईं, लंड चूत में लेकर खुद ऊपर-नीचे होने लगीं। फुसफुसाईं, “रात का बचा हुआ माल अभी भी चूत से निकल रहा है… देख…” और पैर फैलाकर दिखाया, चूत पर मेरा सूखा वीर्य चिपका हुआ था। फिर खुद लंड मुँह में लेकर साफ करने लगीं। बोलीं, “आज से तू जब चाहे मुझे चोद लेना… मैं तेरी निजी रंडी हूँ… दोनों छेद तेरे…”

तब से जब भी मौका मिलता है, मैं उनकी चूत और गांड दोनों मार लेता हूँ। कभी किचन में झुककर, कभी छत पर, कभी बाथरूम में। वो अब मेरी निजी रंडी हैं और मैं उनका निजी लंड।

धन्यवाद।

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