हैलो दोस्तों, मेरा नाम रितिका है और मैं उत्तरप्रदेश की रहने वाली हूँ, मेरी उम्र 25 साल है। दोस्तों मैं आज आप सभी को अपनी एक सच्ची घटना और मेरा पहला अनुभव बताने जा रही हूँ। दोस्तों मेरी यह घटना तब की है जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी, मैं जब फर्स्ट ईयर में थी और तब मेरे साथ यह घटित हुई, लेकिन मैं आज तक भी अपनी उस घटना को भुला ना सकी, मुझे आज भी बहुत अच्छी तरह से वो सब कुछ याद है जो मेरे साथ घटित हुआ, क्योंकि वो सब कुछ मेरे साथ पहली बार हुआ था और वो मेरा पहला अनुभव बहुत अच्छा था और मैंने उसके पूरे पूरे मज़े लिए।
दोस्तों मैं उस समय इन सभी बातों के बारे में इतना सब कुछ नहीं समझती थी और ना ज्यादा जानती थी, क्योंकि मैं अभी अभी जवान हुई थी और मेरे शरीर ने धीरे धीरे अपना आकार बदलना शुरू किया था, मेरे बूब्स छोटे लेकिन सख्त हो चुके थे, मेरी गांड थोड़ी उभरी हुई थी जो चलते समय हल्की मटकती थी, और मेरी चूत पर हल्के काले बाल उग आए थे जो मुझे छूने पर गुदगुदी देते थे, मैं अक्सर अकेले में अपनी उंगलियों से उन्हें सहलाती थी और सोचती थी कि ये सब क्या है, लेकिन उस दिन तक किसी ने मुझे छुआ नहीं था, बस खुद की जिज्ञासा थी।मुझे उन सब का बहुत मज़ा आया।
दोस्तों मैं दिखने में एकदम ठीक ठाक, मेरा गोरा रंग, छोटे आकार के बूब्स, थोड़ी बाहर निकली हुई गांड और मैं उस समय अपनी साईकिल से कॉलेज जाती थी, मेरी यूनिफॉर्म थी सफेद शर्ट और नीली स्कर्ट, जो घुटनों तक आती थी, अंदर सफेद ब्रा और पैंटी, जो सादे कपड़े से बनी थी, लेकिन बारिश में भीगने पर सब कुछ पारदर्शी हो जाता था। हमारी कॉलोनी के कुछ लड़के भी उसी कॉलेज में पढ़ते थे और मैं उन्हें भैया कहती थी, वो सब मुझसे थोड़े बड़े थे, रवि सबसे शरारती था, लंबा और मजबूत कद, मनीष थोड़ा चालाक और बातूनी, अंकित शांत लेकिन आँखों में चमक, सुजल दुबला लेकिन तेज, और अरविंद सबसे हँसमुख, वो सब मुझे देखकर मुस्कुराते थे लेकिन कभी कुछ कहा नहीं था।
वो बारिश का समय था और एक दिन सुबह कॉलेज जाते समय हम सभी भीग गये, बारिश इतनी तेज थी कि सड़क पर पानी बह रहा था, हमारी साइकिलें फिसल रही थीं, मेरी शर्ट पूरी भीग चुकी थी और ब्रा के निशान साफ दिख रहे थे, मैंने अपना बैग आगे रखकर छुपाने की कोशिश की लेकिन ठंड से मेरे निप्पल सख्त हो गए थे जो शर्ट से दबकर उभर आए थे, लड़के भी भीगे हुए थे, उनकी शर्टें बदन से चिपक गई थीं और उनके सीने की मांसपेशियाँ साफ दिख रही थीं। तो रास्ते में हम लोग एक आधे बने हुए घर में जाकर बारिश से बचने के लिए खड़े हो गये और बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे, वो घर पुराना था, दीवारें कच्ची, नीचे कीचड़ और रेत बिखरी हुई, हवा में मिट्टी की गंध थी, बारिश की बूँदें छत से टपक रही थीं जो हमें और गीला कर रही थीं।
जो लड़के मेरे साथ रुके हुए थे, उन लड़को के नाम थे रवि, मनीष, अंकित, सुजल और अरविंद। दोस्तों सुजल थोड़ा पतला दुबला सा था और उसे पानी में ज्यादा भीगने की वजह से अब ज्यादा ठंड लगने लगी थी, उसके दांत किटकिटा रहे थे, होंठ नीले पड़ गए थे, तो उन सभी ने उससे कहा कि तू अपने कपड़े उतारकर निचोड़कर थोड़ी देर फैला ले और सूखने पर पहन लेना, रवि ने हँसते हुए कहा, “अरे सुजल, निकाल ना भाई, ठंड से मर जाएगा क्या, हम सब भी तो भीगे हैं”, मनीष ने जोड़ा, “हाँ यार, मर्द बन, कपड़े उतार”, और सब हँसने लगे।
फिर सुजल ने अपनी शर्ट को उतार दिया, उसका सीना पतला था लेकिन गोरा, फिर उसने अपनी पेंट को भी उतार दिया और उसको देखकर बाकी सभी ने अपनी शर्ट को एक एक करके उतार दिया, अब सब ऊपर से नंगे थे, उनके सीने पर पानी की बूँदें चमक रही थीं, रवि का सीना चौड़ा था, अंकित के ऐब्स हल्के दिख रहे थे, मैं उनकी तरफ देखकर थोड़ा असहज हो गई लेकिन नजर नहीं हटा पाई, हवा में उनके बदन की गंध फैल रही थी, पसीने और बारिश की मिली हुई।
उन्हें इस तरह देखकर मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था, लेकिन वो सब बिल्कुल फ्री होकर घूम रहे थे और उन्हें मेरे वहां पर होने से कोई दिक्कत नहीं थी, वो आपस में मजाक कर रहे थे, “अरे देख मनीष, तेरा पेट तो निकल आया है”, और हँस रहे थे, मैं कोने में खड़ी मुस्कुरा रही थी। फिर थोड़ी देर बाद मैं भी उनके जैसी हो गई और उन्हें देखने लगी, लेकिन तभी अचानक से रवि ने सुजल की अंडरवियर को पकड़कर एक झटका देकर तुरंत नीचे सरका दिया और बस फिर तो वो सब उस पर टूट पड़े और उन्होंने उसे पूरा नंगा कर दिया, सुजल का लंड बाहर निकल आया, वो हल्का खड़ा था ठंड से सिकुड़ा हुआ, बालों से घिरा, सब हँस पड़े, “अरे सुजल का तो छोटा सा है यार”, रवि ने चिढ़ाया, और सुजल शरम से लाल हो गया।अब वो बहुत शरमाने लगा और अपना लंड छुपाने लगा और बहुत गुस्सा भी करने लगा, उसके गाल लाल थे, आँखें नम, “साले हरामियों, क्या कर रहे हो”, वो चिल्लाया लेकिन सब हँसते रहे।
मुझे भी वो सब देखकर हँसी आ गयी तो वो और गुस्सा हो गया और उन लोगों का तो कुछ कर नहीं पाया तो वो मेरे ऊपर कूद पड़ा और मुझे गिराकर मेरी स्कर्ट को ऊपर करके मेरी पेंटी को खींच दिया, मैं नीचे कीचड़ में गिर गई, मेरी गांड पर रेत चिपक गई, सुजल ने मेरी पैंटी पकड़ी और नीचे खींची, वो मेरे घुटनों तक आ गई, मैं चीखी, “अरे सुजल भैया, क्या कर रहे हो”, लेकिन मेरी आवाज में डर कम और उत्सुकता ज्यादा थी, मेरी चूत हवा में खुल गई, गीली और गर्म, बारिश का पानी उस पर बह रहा था।
तभी पेंटी मेरे पैरो में फँस गयी इसलिए पूरी नहीं उतरी सकी, लेकिन उसने मुझे पकड़कर मेरे पैरों को पूरा खोल दिया जिसकी वजह से उन सभी ने मेरी चूत को देख लिया और मेरी चूत को देखकर वो सभी बहुत खुश हो गये थे, उनकी आँखें चमक उठीं, रवि ने सीटी बजाई, “वाह रितिका, तेरी चूत तो गुलाबी है, बाल भी कितने सॉफ्ट लग रहे हैं”, मनीष ने कहा, “हाँ यार, गीली हो गई है पूरी, क्या मजा आएगा छूने में”, मैंने उनकी बातें सुनकर अपनी चूत पर नजर डाली, वो फूली हुई थी, हल्की गर्मी महसूस हो रही थी, मुझे भी पता नहीं उस समय क्या हुआ मुझे उस बात का बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा, बल्कि मैंने खुद ने ही अपने पैर खोलकर रखे, जबकि सुजल ने तो मेरे पैर अब छोड़ दिए थे, मैंने पैर और चौड़े किए, हवा मेरी चूत पर लग रही थी, ठंडी लेकिन उत्तेजक, मेरी सांसें तेज हो गईं।
अब वो सभी मेरे पास आकर खड़े हो गये और मैं वैसे ही अपने पैर मोड़कर खोलकर लेटी रही, उनकी सांसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं, रवि सबसे करीब आया, उसका लंड अब अंडरवियर में उभर रहा था, “रितिका, तू तो कमाल है यार, हमें दिखा रही है ऐसे”, उसने धीरे से कहा, और मैं मुस्कुराई। फिर रवि बोला अरे देख तेरे तो अभी से बाल आ गये वो भी इतने सारे और तब मुझे कुछ लगा और मैंने तुरंत अपने दोनों पैरों को बंद कर लिया तो वो लोग मुझसे बोले कि प्लीज थोड़ी सी देर तो देखने दे ना, अंकित ने कहा, “अरे प्लीज रितिका, बस थोड़ा और, तेरी चूत इतनी प्यारी है, हमने कभी ऐसी नहीं देखी”, उसकी आवाज काँप रही थी।
अब मैंने उनसे कहा कि इतनी देर देख तो ली, तभी मनीष बोला कि जब हमने तेरी देख ली है, तो तू अब हमसे क्यों छुपा रही है, अभी कुछ देर देखने ही दे और यह बात कहकर उसने मेरे घुटने पकड़कर दोबारा खोल दिए और मैंने भी खुद ही खोल दिए और बैठकर अपनी पेंटी को पूरी उतार दिया, पैंटी उतारते समय मेरी उंगलियाँ मेरी चूत से छू गईं, वो गीली थी, मैंने हल्का सा सहलाया, आह.. ह्ह.. निकल गया मेरे मुँह से, सबने सुना और मुस्कुराए। फिर मैं जब खड़ी हुई तो मेरी स्कर्ट के नीचे होने की वजह से वो सब कुछ ढक गया, लेकिन अब मैं बिना पैंटी के थी, हवा स्कर्ट के नीचे से मेरी चूत को छू रही थी, मैं काँप उठी। फिर मनीष बोला कि अरे देख तेरे सब कपड़े गंदे हो गये है, दोस्तों मेरे नीचे गिरने से गीले कपड़ो पर रेत और धूल चिपक गयी थी, अब वो लोग मुझसे बोले कि तू इन्हें उतारकर पानी से धो ले और उसके मुहं से यह बात सुनकर मैंने उनकी तरफ गुस्से से घूरकर देखा, लेकिन अंदर से उत्साह था।
फिर मनीष बोला कि हम सभी ने तेरी चूत देख तो ली ना, मैंने तुझे अभी समझाया ना, फिर क्या समस्या है और वो अब खुद आगे बढ़कर मेरी स्कर्ट को उतारने में मेरी मदद करने लगा था, उसकी उंगलियाँ मेरी जांघों पर लगीं, गर्म थीं, मैं सिहर उठी, आह.. इह्ह.. मेरे मुँह से निकला, वो रुका और मुस्कुराया, “क्या हुआ रितिका, मजा आ रहा है?”, मैंने सिर हिलाया। मैंने एक बार फिर से उसे रोका और मैं उससे बोली कि भैया मैं इस टाइप की लड़की नहीं हूँ जैसा आप सभी मुझे समझ रहे हो, मैं अपने सारे कपड़े आप सभी के सामने नहीं उतार सकती, मुझे बहुत शर्म आती है, प्लीज आप लोग मेरी बात का मतलब समझो, आप सभी ने तो अभी मेरी बस वो देखी है, लेकिन मैंने आपसे कुछ भी नहीं कहा और इसका मतलब यह नहीं है कि अब मैं आपके सामने पूरी नंगी हो जाऊँगी, लेकिन मेरी आवाज में झिझक थी, आँखें नीची, पर चूत में खुजली हो रही थी।
तभी रवि तुरंत बीच में बोला वो क्या? बस तू एक बार हमे इस चीज़ का नाम बता दे तो मैं तुझे एक रास्ता बताऊंगा जिससे तेरे कपड़े भी साफ हो जाएँगे और तुझे हम सबके सामने पूरी नंगी भी नहीं होना पड़ेगा, उसकी आँखों में शरारत थी, सब चुप हो गए, इंतजार करने लगे।फिर मैंने कहा कि ऐसे कैसे होगा? वो बोला कि पहले तू ‘वो’ का मतलब बता फिर मैं तुझे वो रास्ता बताऊंगा, तो मैंने उससे कहा कि हाँ मैं बोल दूँगी मैं पक्का वादा करती हूँ, लेकिन पहले आप मुझे प्लीज वो तरीका बता दो, तभी वो बोला कि नहीं तू बाद में नहीं बोलेगी, तुझे पहले बताना होगा, उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा, गर्मी फैल गई मेरे बदन में।
फिर मैंने कहा कि भैया मैंने आपसे पक्का वादा किया है कि मैं वो बोल दूँगी, फिर भी आप मेरे ऊपर विश्वास नहीं कर रहे हो और वैसे भी मुझे तो हर रोज़ आप लोगों के साथ ही आना जाना है, आपसे मुझे इतनी सी बात के लिए अपनी दोस्ती खत्म थोड़ी ना करनी है, मैंने मुस्कुराकर कहा, और सब हँसे। अब वो मुझसे बोला कि चल अब थोड़ा ध्यान से सुन तू ऊपर जाकर देख ले, छत तो खुली है और तू वहाँ पर जाकर अपने कपड़े उतारकर बारिश के पानी में सबको धो ले फिर वापस तू उन्हें पहनकर नीचे आ जाना, यहाँ आस पास वैसे कोई इतना उँचा मकान भी नहीं है और फिर इतनी बारिश में दूर से कौन सा कुछ दिखेगा, उसने कहा और मैंने सोचा, हाँ ये सही है, लेकिन अंदर से मैं चाह रही थी कि कोई देख ले।दोस्तों अब मैं उनकी यह बात सुनकर मन ही मन सोचने लगी कि उनकी यह बात तो बिल्कुल ठीक है और अब यह सभी बातें जब मैं सुन रही थी तो मेरी नज़र अचानक से सुजल के लंड पर चली गई और मैं उसको लगातार बिना पलके झपकाए घूर घूरकर देखने लगी, सुजल का लंड अब खड़ा हो रहा था, मोटा और लंबा, टिप पर पानी चमक रहा था, मैंने कभी ऐसा देखा नहीं था, मेरी चूत में गीलेपन की बढ़ोतरी हो गई।
तभी अरविंद मुझसे बोला कि तुझे शायद आज सुजल का लंड बहुत पसंद आ रहा है और अगर ऐसा है तो तुम बिना देर किए उसके लंड को पकड़कर देख ले, उसने कहा और सब हँसे, “हाँ रितिका, पकड़ ले, सुजल को मजा आएगा”, मनीष ने जोड़ा। दोस्तों मुझे उसके मुहं से यह बात सुनकर बहुत शरम आ गयी और मैंने तुरंत अपनी नजर को उधर से हटा लिया तो वो सभी हँसने लगे और मुझे भी हँसी आ गई, लेकिन मैंने हल्के से सुजल की तरफ देखा, वो शरमा रहा था लेकिन लंड और सख्त हो गया था। तभी मैं ऊपर जाने लगी तो वो मुझसे बोले कि ओये झूठी तू अपना वो वादा तो पूरा कर जो तूने अभी किया था, चल अब जल्दी से बता दे, मैं रुक गई, दिल जोर से धड़क रहा था।
फिर मैं तुरंत वहीं पर रुक गई और अब मैं ऐसी बात अपने मुहं से बोलने की हिम्मत जुटाने लगी थी और फिर ऐसा भी नहीं था कि मैंने यह सब पहले कभी नहीं सुना था और हम लड़कियां भी आपस में यह सब शब्द कभी कभी बोल लेते थे, लेकिन इस तरह लड़को के सामने बोलना अलग बात थी, मुझे भी वैसे अब बहुत मज़ा आ रहा था और मुझे अब हल्की हल्की ठंड भी नहीं लग रही थी और इस सबसे मेरे शरीर में गरमी आ गयी थी, मेरी चूत से पानी रिस रहा था, जांघों पर महसूस हो रहा था।
फिर मैं एक मिनट रुकी और फिर बोली कि आप सभी ने मेरी चूत को देख ही लिया है और मैं हंसकर ऊपर भाग गयी तो वो सभी मेरे मुहं से यह शब्द सुनकर एकदम खुश हो गये और फिर मैंने तुरंत छत पर जाकर देखा कि उनका कहना बिल्कुल सही था, छत पर उस समय बहुत तेज़ बारिश हो रही थी मैंने जाकर जल्दी से अपनी स्कर्ट को उतार दिया और फिर मैंने इधर उधर देखकर उसको साफ किया और फिर अपनी शर्ट को भी उतारकर साफ की, लेकिन दोस्तों इस काम को करते हुए मैं बहुत ही ज़्यादा भीग गयी थी और साथ में मेरी ब्रा भी, बारिश की बूँदें मेरे बूब्स पर गिर रही थीं, निप्पल सख्त हो गए, मैंने उन्हें छुआ, आह.. ह्ह्ह.. ओह्ह.. निकला, मजा आ रहा था।
अब इतनी गीली ब्रा पहनना तो बिल्कुल मुश्किल था इसलिए मैंने उसको भी उतार दिया, अब मैं पूरी नंगी थी, हवा मेरे पूरे बदन पर लग रही थी, चूत पर, गांड पर, बूब्स पर, मैंने खुद को सहलाया, उंगली चूत में डाली, गीला था, आह.. इह्ह.. ओह्ह.. आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..! मैंने धीरे धीरे उंगली अंदर बाहर की, पहली बार ऐसा कर रही थी किसी की याद में, नीचे लड़के थे, मैं सोच रही थी वो क्या कर रहे होंगे।
दोस्तों मेरे मन की सच्ची बात पूछो तो यह मेरा वो पल था जिसने आज मेरी सोच को बिल्कुल ही बदलकर रख दी थी और मैं उस वक़्त पूरी नंगी एक खुली छत पर खड़ी थी, मेरे नंगे बदन पर गिरता हुआ वो ठंडा पानी मेरे जिस्म को और भी गरम कर रहा था और नीचे पांच लड़के थे जिन्हें बहुत अच्छी तरह से पता है कि मैं उस समय छत पर एकदम नंगी हूँ और उन सीडियों पर कोई दरवाज़ा भी नहीं था, मैंने सोचा अगर कोई ऊपर आ गया तो, लेकिन वो सोच मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
मुझे अब मन ही मन एक अजीब सी खुशी सी होने लगी थी और मेरा मन हो रहा था कि मैं पूरी नंगी ही इस पूरी छत पर घूमूं और ऐसे ही पूरी नंगी रहूं और फिर मैंने यही सब किया, मैं छत पर नंगी दौड़ी, पानी में कूदकर खेली, अपनी गांड हिलाई, बूब्स दबाए, चूत सहलाई, आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.., मजा इतना आ रहा था कि मैं रुक नहीं पा रही थी। मैं ऐसे ही छत पर थोड़ा सा इधर उधर चली फिर बाहर की साइड से मैंने नीचे की तरफ झाँककर देखा जहाँ पर हमारी सभी की साईकिल खड़ी हुई थी, दोस्तों उस छत पर दीवार तक भी नहीं थी, अगर इतनी तेज़ बारिश ना होती तो कोई भी बाहर सड़क से मुझे पूरी नंगी देख लेता, मैंने नीचे देखा, सड़क खाली थी, लेकिन कल्पना की कि कोई देख रहा है, मेरी चूत और गीली हो गई।
तभी अचानक से पता नहीं मुझे क्या सूझा और मैंने अपनी गांड को उस तरफ करके बाहर की तरफ निकालकर मैंने अपना हाथ हिलाया और ऊपर की तरफ देखने लगी, हवा मेरी गांड के छेद पर लग रही थी, ठंडी लेकिन सुखद, मैंने उंगली गांड पर फेरी, पहली बार, इह्ह.. ओह्ह.. निकला। फिर कुछ देर बाद मैं हँसती हुई भागकर सीडियों तक आ गयी, सच पूछो तो दोस्तों मैं उस समय बिल्कुल पागल हो चुकी थी, फिर मैंने अपनी शर्ट और स्कर्ट को पहन तो लिया, लेकिन इतने ज़्यादा भीगे हुए कपड़े, एक तो इतने भारी हो गये थे और उन्हें पहनकर मुझे अब बहुत अजीबोगरीब भी लगा, लेकिन मैंने मजबूरी में उन्हें पहन लिए और फिर मैं नीचे आ गई, लेकिन बिना ब्रा और पैंटी के, शर्ट मेरे बूब्स से चिपक गई थी, निप्पल उभरे हुए, स्कर्ट नीचे से चूत पर चिपकी हुई।
तब मैंने देखा कि वो सब सिगरेट पी रहे थे और मेरी गीली शर्ट मेरे गरम भीगे हुए बदन से एकदम चिपक गयी थी, जिसकी वजह से उन्हें मेरे बूब्स का आकार और मेरे बूब्स की निप्पल का उन्हें साफ साफ पता चल रहा था और वो सभी मेरे बूब्स को घूर घूरकर देख रहे थे, रवि ने कहा, “रितिका, तेरे निप्पल तो पॉइंटी हो गए हैं, छूने दे ना”, मैं शरमा गई लेकिन करीब आई। दोस्तों मुझे अब बहुत ठंड लग रही थी, क्योंकि मैं अपने कपड़ो के साथ साथ पूरी भीगी हुई थी और मैं उसकी वजह से हल्की हल्की काँप भी रही थी और जब मैंने अपनी ब्रा और पेंटी को अपने बेग में रखी तो वो सब मेरी तरफ देखकर हंस रहे थे और सुजल ने भी अब तक अपनी अंडरवियर को पहन लिया था, लेकिन उसका लंड अभी भी उभरा हुआ था।
अब वो सब मेरे करीब आए, रवि ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, “रितिका, ऊपर क्या किया तूने, हमें बता ना”, मैंने शरमाते हुए कहा, “कुछ नहीं, कपड़े धोए”, लेकिन मनीष ने मेरी कमर पकड़ी, “झूठी, तेरी चूत अभी भी गीली लग रही है, दिखा ना फिर से”, और उसने मेरी स्कर्ट ऊपर उठाई, मेरी नंगी चूत फिर से सामने थी, सबने देखा, अंकित ने कहा, “वाह, और गुलाबी हो गई है, छू सकते हैं क्या?”, मैंने सिर हिलाया, हाँ में। फिर सुजल ने धीरे से अपनी उंगली मेरी चूत पर फेरी, आह.. इह्ह.. ओह्ह.. आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..! मैं सिहर उठी, उसकी उंगली गर्म थी, वो धीरे धीरे सहला रहा था, “रितिका, कितनी मुलायम है तेरी चूत, जैसे मखमल”, रवि ने मेरे बूब्स दबाए शर्ट के ऊपर से, “तेरे बूब्स तो सॉफ्ट हैं, निप्पल चूस लूँ?”, मैंने कहा, “हाँ भैया, लेकिन धीरे”, और वो शर्ट के ऊपर से चूसने लगा, ग्ग्ग्ग.. ग्ग्ग्ग.. गी.. गी.. गी.. गों.. गों.. गोग, आवाज आई, मैं काँप रही थी, मजा आ रहा था। अरविंद ने मेरी गांड दबाई, “तेरी गांड तो मस्त है, थप्पड़ मारूँ?”, और हल्का थप्पड़ मारा, मैं हँसी, आऊ.. ऊऊ..।
अंकित ने मेरी चूत चाटी, जीभ गर्म थी, आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.., मैं पागल हो रही थी, वो चाटते रहे, “तेरी चूत का स्वाद नमकीन है, और मीठा भी”, मनीष ने अपना लंड निकाला और मेरे हाथ में दिया, “पकड़ ना रितिका, सहला”, मैंने पकड़ा, गर्म और सख्त, मैं सहलाने लगी, वो आह.. भर रहा था।
हम सब ऐसे ही foreplay में लगे रहे, कोई चूत चाटता, कोई बूब्स दबाता, कोई लंड सहलवाता, लेकिन आगे नहीं गए, बस छूना, चाटना, चूसना, बारिश की आवाज में हमारी सिसकारियाँ घुल रही थीं, मेरी चूत से पानी बह रहा था, सबके लंड खड़े थे, लेकिन समय कम था, बारिश रुकने वाली थी। दोस्तों उसके कुछ देर बाद बारिश रुकने लगी और हम लोग अपने घर पर वापस आ गए, लेकिन उसके बाद मेरे मन में वो सारी घटना घूमने लगी मैं बार बार ना चाहते हुए भी उसी के बारे में सोचने लगी मुझे अब कुछ कुछ होने लगा था, वो सब कुछ मैं आप लोगो को किसी भी शब्द में नहीं बता सकती, लेकिन सच पूछो तो मैं बहुत खुश थी, आज भी जब बारिश होती है, मैं उन पलों को याद कर उंगलियाँ डालती हूँ, आह.. इह्ह.. ओह्ह..।