दोस्त की माँ की सोलह साल की भूखी चूत को आठ इंच का लंड मारा

दिल्ली का जून महीना था, लू चल रही थी, पंखा भी हाँफ रहा था। रोहिणी की उस पुरानी बिल्डिंग में मैं अकेला कमरे में पड़ा-पड़ा बोर हो रहा था। नौकरी का नामोनिशान नहीं, जेब खाली, मन उदास। कबीर मेरा बचपन का दोस्त था, उसी बिल्डिंग में अपनी माँ संतोष के साथ रहता था। कबीर की उम्र मेरे बराबर चौबीस साल, पर उसकी माँ संतोष अभी भी पूरी जवान लगती थीं। गाँव की थीं, सोनीपत के पास का कोई गाँव, गोरा-गोरा रंग, कद पाँच फुट छह इंच, और चूचियाँ इतनी बड़ी कि चुन्नी भी नहीं छिपा पाती थी। लोग कहते थे कि पन्द्रह साल की उम्र में शादी हुई, सोलह में कबीर को जन्म दिया, फिर सात साल बाद पति की सड़क हादसे में मौत। उसके बाद बस बच्चों को पालती रहीं, कभी दूसरी शादी नहीं की।

उस दिन ग्यारह बज चुके थे। बिल्डिंग सुनसान, सब काम पर गए थे। मैं पंखे के नीचे लेटा था, पसीना छूट रहा था, लंड भी सुस्त पड़ा था। सोचा चलो कबीर के कमरे में टीवी देख लेता हूँ, कम से कम आंटी से दो बातें हो जाएँगी। मैं सिर्फ़ शॉर्ट्स और बनियान में था, दरवाजा खटखटाया। अंदर से आंटी की मोटी-मुलायम आवाज़ आई, “कौन बेटा?” मैं बोला, “आंटी मैं राज।” वो बोलीं, “हाँ बेटा, दो मिनट रुकना, अभी दरवाज़ा खोलती हूँ।”

दो मिनट बोला था, पर मुझे लगा बहुत देर हो रही है। मैंने की-होल में आँख लगाई। जो नज़ारा दिखा, मेरा लंड एकदम से साँय-साँय करके खड़ा हो गया। आंटी सिर्फ़ गहरी नीली सलवार में थीं, ऊपर कुछ नहीं, दोनों भारी-भरकम चूचियाँ पूरी नंगी, हल्की-हल्की झूल रही थीं। वो कोई क्रीम या तेल मल रही थीं, दोनों हाथों से चूचियों को ऊपर उठा-उठा कर मल रही थीं, निप्पल एकदम गुलाबी और तने हुए। चालीस साल की उम्र में भी चूचियाँ इतनी मस्त कि लगता था अभी-अभी किसी कॉलेज की लड़की की हों। मैंने अपना लंड शॉर्ट्स में ही दबाया, पर वो था कि फटने को हो रहा था।

फिर आंटी ने जल्दी-जल्दी कमीज पहनी आईं, बिना ब्रा के। कमीज में निप्पल साफ़ दिख रहे थे। दरवाज़ा खोला तो मुस्कुराईं, “आ जा बेटा, अंदर आ, गर्मी बहुत है ना?” मैं अंदर गया, सोफे पर उनके बिल्कुल बगल में बैठ गया। आंटी ने पानी का गिलास दिया, पीते वक़्त उनकी चुन्नी सरक गई, कमीज में दोनों चूचियाँ उभरी हुई दिख रही थीं। मैंने कहा, “आंटी, बोर हो रहा था, सोचा आपके पास बैठूँ, टीवी देख लूँ।” वो हँसीं, “अरे बेटा, तू तो कभी भी आ जा, मैं तो अकेली ही बैठी रहती हूँ।”

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फिर आंटी ने मेरे सिर पर हाथ फेरा, “क्या बात है बेटा, अभी तक नौकरी नहीं लगी?” मैंने उदास होकर कहा, “नहीं आंटी, तीन महीने हो गए, कुछ समझ नहीं आ रहा।” मैंने जानबूझकर आँखें भर लीं। आंटी का ममता भरा दिल पिघल गया, वो मुझे अपनी छाती से लगा लिया, “अरे मेरा राज बेटा, रो मत, सब ठीक हो जाएगा, भगवान पर भरोसा रख।” उनकी चूचियाँ मेरे गालों से सट गईं, गर्मी और खुशबू से मेरा दिमाग फिर गया। मैंने भी उन्हें कसकर पकड़ लिया, सिर उनकी छाती पर टिका दिया।

आंटी मेरे बालों में उंगलियाँ फेर रही थीं, सहला रही थीं। मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी कमर पर रख दिया, फिर ऊपर सरकाकर चूची के ठीक नीचे। आंटी की साँसें तेज़ हो गईं। उनका हाथ भी मेरी पीठ पर से होता हुआ नीचे आया और अचानक मेरे तने हुए लंड पर पहुँच गया। जैसे ही उंगलियाँ लंड से टकराईं, दोनों के बदन में करंट दौड़ गया। आंटी ने हाथ हटाने की कोशिश की, पर मैंने उनकी चूची पर हाथ रख दिया, हल्के से दबाया। आंटी के मुँह से “आह्ह्ह…” निकला और उनका हाथ फिर मेरे लंड पर आ गया, इस बार सहलाने लगा।

कुछ देर ऐसे ही चला, फिर मैंने उठने का बहाना किया और जानबूझकर उनकी दाहिनी चूची को जोर से दबाया। आंटी चिहुँक उठीं, “आह्ह्ह राज… क्या कर रहा है बेटा…” पर आवाज़ में गुस्सा नहीं था, बस कामुकता थी। मैंने कहा, “आंटी, मुझे जाना है।” वो घबराईं, चेहरा लाल, “हाँ बेटा… जा… मुझे भी कुछ काम है।” मैं बाहर निकला, पर दरवाज़ा बंद होते ही फिर की-होल में झाँका। आंटी ने सलवार का नाड़ा खोला, सलवार नीचे की और बिस्तर पर लेट गईं। टाँगें चौड़ी कीं और दो उंगलियाँ अपनी काली झांटों वाली चूत में डालकर जोर-जोर से चलाने लगीं, मुँह से “आह्ह्ह ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह ऊईई माँ… कित्ते दिन हो गए…” निकल रहा था।

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मैंने फिर दरवाज़ा खटखटाया। आंटी घबराकर उठीं, सलवार ऊपर की और दरवाज़ा खोला। चेहरा पसीने से भरा था। मैं अंदर घुसा, दरवाज़ा बंद किया, बोला, “आंटी, आपकी परेशानी मैं दूर कर दूँ?” वो सकपकाईं, “कैसी परेशानी बेटा?” मैंने उन्हें दीवार से सटाया, होंठ उनके होंठों पर रख दिए। पहले तो धक्का देने की कोशिश की, फिर खुद ही होंठ चूसने लगीं। मैंने जीभ अंदर डाली, वो भी पूरा साथ देने लगीं।

मैंने उनकी कमीज ऊपर उठाई, दोनों भारी चूचियाँ बाहर आ गईं। मैंने एक चूची मुँह में लेकर चूसने लगा, “ग्ग्ग्ग गी गी गों गों” की आवाज़ करते हुए, निप्पल को दाँतों से काटा। आंटी के मुँह से “आह्ह्ह्ह इह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह राज… मेरा राजा… चूस ले… पूरा दूध पी ले” निकलने लगा। दूसरी चूची को हाथ से मसल रहा था, निप्पल को चुटकी काट रहा था। आंटी ने मेरा सिर पकड़कर चूची पर दबाया, “और जोर से बेटा… आज तक किसी ने ऐसे नहीं चूसा… हाय रे… मर गई…”

फिर आंटी ने खुद मेरी बनियान उतारी, शॉर्ट्स नीचे की। मेरा आठ इंच का मोटा लंड बाहर आया। आंटी की आँखें चमक उठीं, “हाय राम… इतना मोटा… कित्ता बड़ा है रे…” वो घुटनों पर बैठ गईं, लंड को हाथ में लिया, ऊपर-नीचे करने लगीं, फिर मुँह में लेकर चूसने लगीं, “ग्ग्ग्ग्ग ग्ग्ग्ग्ग गी गी गों गों गोग…” पूरा लंड गले तक ले जा रही थीं। लार टपक रही थी, आँखें लाल। मैं उनकी चूचियाँ दबा रहा था, “चूस आंटी… पूरा खा जा… आज तेरी भूख मिटा दूँगा।”

पाँच-सात मिनट तक लंड चूसने के बाद आंटी खड़ी हुईं, बोलीं, “बेटा अब और नहीं सहन होता… चोद दे मुझे… सोलह साल हो गए… आज ये चूत फिर से लंड खाएगी।” मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोला, सलवार नीचे गिरी। कोई पैंटी नहीं थी। काली घनी झांटें, चूत से रस टपक रहा था। मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटाया, टाँगें चौड़ी कीं। पहले झांटें सहलाईं, फिर जीभ से चूत चाटने लगा। आंटी उछल पड़ीं, “अरे राज… ये क्या कर रहा है… गंदा है रे…” मैं बोला, “आंटी ये अमृत है… तेरी चूत की खुशबू से पागल हूँ…” और फिर क्लिटोरिस को जीभ से रगड़ने लगा, दो उंगलियाँ अंदर-बाहर। आंटी का बुरा हाल, “आह्ह्ह्ह ऊईईई माँ… मर गई… हाय रे… चाट ले बेटा… पूरा रस पी ले… आह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह…”

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फिर आंटी ने मेरे सिर को चूत पर दबा दिया, कमर ऊपर उठाई और झटके देने लगीं। एकदम से पूरा रस मेरे मुँह पर छोड़ दिया। मैं सब पी गया। आंटी सुस्त पड़ीं। मैं ऊपर आया, लंड उनके मुँह में दिया, फिर दो मिनट चुसवाया। अब आंटी फिर से गर्म हो गईं, बोलीं, “बेटा अब डाल भी दे… तेरी आंटी की चूत जल रही है।” मैंने लंड चूत पर रखा, पहले सुपारा अंदर किया। आंटी चीखीं, “आराम से राज… बहुत साल हो गए… टाइट हो गई है…” मैंने धीरे-धीरे पूरा लंड अंदर किया। चूत एकदम कुंवारी जैसी टाइट थी।

फिर शुरू हुआ असली खेल। मैं धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, आंटी नीचे से गाँड उठा-उठा कर ले रही थीं, “आह्ह्ह्ह और जोर से मेरी जान… फाड़ दे आज इस रंडी को… सोलह साल से तरस रही है… आह्ह्ह्ह ऊईई मर गई… हाँ वैसे ही… और गहराई तक पेल…” मैंने स्पीड बढ़ाई, दोनों चूचियाँ मसलते हुए जोर-जोर से ठोकने लगा। कमरे में चाप-चाप चाप-चाप की आवाज़ और आंटी की चीखें गूंज रही थीं। आधे घंटे तक चुदाई चली। आंटी तीन बार झड़ीं, हर बार चिल्लाईं, “हाय मैं मर गई… आ गया… फिर आ गया…”

अंत में मैं बोला, “आंटी कहाँ निकालूँ?” वो बोलीं, “अंदर ही बेटा… आज इस चूत को वीर्य पिलवा दे… सोलह साल बाद लंड का माल पिएगी…” मैंने आखिरी दस-पन्द्रह जोरदार धक्के मारे और पूरा माल उनकी चूत में उड़ेल दिया। आंटी ने मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया कि साँस रुकने लगी। दस मिनट तक हम नंगे लिपटे रहे। आंटी की आँखों में आँसू थे, बोलीं, “राज बेटा… तूने आज मेरी जिन्दगी फिर से जवान कर दी…”

मैं लेटा-लेटा सोच रहा था, कबीर का दोस्त था, आज उसकी माँ को चोदकर उसका बाप बन गया। अगर कबीर को पता चला तो सच में गाएगा, दोस्त दोस्त ना रहा…

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