सुहागरात में प्यासी रह गई नई दुल्हन

Namard Pati Sexy Wife suhaagraat sex story: मैं, रजनी, 24 साल की, लखनऊ की रहने वाली, अपनी जिंदगी की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो मेरे दिल पर बोझ बनकर बैठी है। ये कहानी मेरी उस प्यास की है, जो मेरे पति ने नहीं बुझाई, बल्कि मेरे भाई ने पूरी की। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैंने जो किया, वो सही था। और कभी लगता है, शायद गलत। लेकिन जिस्म की आग, वो भूख, जो रात-दिन जलाती है, उसे कैसे नजरअंदाज करूँ? जब जिससे उम्मीद थी, वही नपुंसक निकला, तो मैं क्या करती? मैंने वही किया, जो मेरा दिल और तन चाहता था। ये मेरी कहानी है, जो मेरी हकीकत है।

मेरा नाम रजनी है। गोरा रंग, लंबे काले बाल, जो कमर तक लहराते हैं। मेरी आँखें बड़ी-बड़ी, काजल से सजी, और जिस्म ऐसा कि लोग देखें, तो नजर हटाना मुश्किल हो जाए। मेरी चूचियाँ 36D की, भारी, गोल, और सॉलिड, जो ब्लाउज में भी पूरी तरह छुप नहीं पातीं। मेरी चाल में वो मस्ती है, जो मर्दों के दिल में आग लगा देती है। मेरी चूत, गुलाबी और रसीली, हमेशा एक हल्की-सी गर्मी लिए रहती है। मैं लखनऊ में रहती हूँ, और यहीं मेरी मुलाकात करण से हुई थी।

करण, 28 साल का, लंबा कद, सांवला रंग, चेहरा ऐसा कि लड़कियाँ फिदा हो जाएँ। उसकी शरारती मुस्कान और बात करने का ढंग मुझे पहली नजर में भा गया। मैंने उसे अपनी सहेली की शादी में देखा था। वो नेवी ब्लू शेरवानी में था, और उसकी हँसी में एक अजीब-सी कशिश थी। मैंने उसे देखते ही मन में ठान लिया कि ये मेरा होगा। मैंने हल्का-सा इशारा किया—एक मुस्कान, एक नजर, और वो मेरे जाल में फंस गया। मेरी जवानी का जादू उस पर चल गया। कुछ ही मुलाकातों में हमारा प्यार पक्का हो गया। मैं उसके साथ घंटों बातें करती, उसकी शरारती बातों पर हँसती, और उसकी आँखों में डूब जाती। कुछ महीनों बाद, हमारी शादी हो गई। लेकिन ये शादी मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बन गई।

शादी से पहले मैंने करण को सिर्फ उसके आचार-विचार से परखा। उसकी बातों में वो गर्मजोशी थी, जो मुझे पसंद थी। लेकिन मैंने एक चीज नहीं जाँची—उसकी मर्दानगी। ये बात मुझे सुहागरात को पता चली, और उस रात मेरी जिंदगी बदल गई।

सुहागरात थी। कमरा गुलाब और चमेली के फूलों से सजा था। हवा में खुशबू तैर रही थी। मैं लाल रेशमी साड़ी में सजी थी, जिसके पल्लू में सुनहरी जरी का काम था। मेरा घूंघट चेहरे को ढके था, लेकिन मेरी आँखें बाहर झाँक रही थीं। मेरी ब्रा, लाल रंग की, मेरी चूचियों को कसकर पकड़े थी। मेरी चूत, जो पहले से ही गीली थी, चुदने की चाह में सनसना रही थी। मैं पलंग पर बैठी थी, जिसे गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया गया था। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

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करण कमरे में आए। वो क्रीम रंग की शेरवानी में थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब-सी सिकन थी। वो मेरे पास पलंग पर बैठे और धीरे से मेरा घूंघट उठाया। मैंने उनकी तरफ देखा। मेरी आँखों में शरम थी, लेकिन जिस्म में आग थी। करण के माथे पर पसीने की बूँदें थीं। मैंने सोचा, शायद पहली बार है, इसीलिए घबरा रहे हैं। मैंने खुद ही शरम छोड़ दी। मैंने उनका हाथ पकड़ा, उनकी आँखों में देखा, और धीरे से उनके होंठों को चूमा। उनके होंठ गर्म थे, लेकिन उनके चुंबन में वो जोश नहीं था, जो मैं चाहती थी।

मैंने हल्के से अपनी साड़ी का पल्लू सरकाया। मेरे ब्लाउज का ऊपरी हुक खुला, और मेरी गहरी क्लीवेज बाहर झाँकने लगी। मेरी चूचियाँ, जो लाल ब्रा में कैद थीं, बाहर आने को बेताब थीं। करण की साँसें तेज हो रही थीं। मैंने उनके गाल पर एक और चुम्मा लिया और बोली, “करण, आज तो बस हमारी रात है…” मेरी आवाज में शरारत थी। करण ने भी मुझे चूमा, लेकिन उनकी हरकतों में एक हिचक थी।

मैंने और जोश में आकर अपने ब्लाउज के बाकी हुक खोल दिए। मेरा ब्लाउज फर्श पर गिर गया। अब मैं सिर्फ लाल ब्रा और साड़ी में थी। मेरी चूचियाँ ब्रा से बाहर झाँक रही थीं। मैंने करण का चेहरा अपनी चूचियों के बीच दबाया। उनकी गर्म साँसें मेरी त्वचा पर लग रही थीं। “आह… करण… चूसो ना इन्हें…” मैंने धीरे से कहा। करण ने मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाया, लेकिन उनकी उंगलियों में वो ताकत नहीं थी। मैंने खुद ही अपनी साड़ी का पल्लू पूरी तरह हटा दिया। अब साड़ी मेरी कमर पर अटकी थी। मैंने पेटीकोट का नाड़ा खोला, और साड़ी के साथ वो भी फर्श पर गिर गया।

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अब मैं सिर्फ लाल ब्रा और लाल पैंटी में थी। मेरी चूत की गर्मी अब बर्दाश्त से बाहर थी। मैंने करण की शेरवानी उतारी। उनका सांवला सीना मेरे सामने था। मैंने उनके सीने को चूमा, उनके निप्पल्स को हल्के से काटा। करण आहें भर रहे थे, लेकिन उनकी आहों में वो जुनून नहीं था। मैंने उनकी पैंट उतारी, और फिर उनका काला जांघिया नीचे सरकाया। उनका लंड, करीब 4 इंच का, ढीला पड़ा था। मैं हैरान थी। मैंने उसे हाथ में लिया, हल्के से सहलाया, और फिर मुँह में लिया। “आह… करण… इसे खड़ा करो ना…” मैंने शरारत से कहा। मैंने उनके लंड को चाटा, चूसा, और पूरी कोशिश की कि वो सख्त हो जाए।

करण सिसकारियाँ ले रहे थे, “आह… रजनी… हाँ…” लेकिन उनका लंड बस आधा ही खड़ा हुआ। मैंने अपनी ब्रा उतार दी। मेरी चूचियाँ, जिनके निप्पल्स गहरे गुलाबी थे, पूरी तरह नंगी थीं। मैंने करण का मुँह अपनी चूचियों पर लगाया। वो चूसने लगे, लेकिन उनके चूसने में वो भूख नहीं थी। मैंने अपनी पैंटी उतारी। मेरी गुलाबी चूत, जो पूरी तरह गीली थी, उनके सामने थी। “करण, अब डाल दो… मेरी चूत में आग लगी है…” मैंने तड़पते हुए कहा।

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करण मेरे ऊपर आए। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ा, लेकिन जैसे ही वो अंदर डालने की कोशिश करते, उनका लंड ढीला पड़ जाता। मैंने उन्हें समझाया, “कोई बात नहीं, धीरे-धीरे करो…” लेकिन तीन-चार कोशिशों के बाद भी कुछ नहीं हुआ। आखिरकार, उनका स्पर्म मेरे पेट पर गिर गया। “आह… रजनी… सॉरी…” वो बुदबुदाए और थककर बगल में लेट गए। मैं स्तब्ध थी। मेरी चूत की आग और भड़क गई थी। करण थोड़ी देर बाद खर्राटे लेने लगे। मैं रात भर तड़पती रही। मैंने अपनी साड़ी और ब्लाउज वापस पहना और सोने की कोशिश की, लेकिन नींद नहीं आई।

ये सिलसिला अगले पंद्रह दिन तक चला। हर रात मैं कोशिश करती। कभी मैं लाल नाइटी पहनती, कभी काले रंग की साड़ी, लेकिन नतीजा वही—करण का लंड खड़ा नहीं होता था। मैंने हर तरह से उकसाया—चुंबन, चूसना, चाटना, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मेरी जवानी लहलहा रही थी, लेकिन उसे भोगने वाला कोई नहीं था। मैं हर रात तड़पकर सो जाती।

पंद्रह दिन बाद मैं अपने मायके चली गई। मायका लखनऊ में ही था। मेरे माता-पिता और मेरा बड़ा भाई रवि वहाँ रहते थे। रवि, 26 साल का, कसरती जिस्म, चौड़ा सीना, सांवला रंग, और चेहरा ऐसा कि लड़कियाँ उस पर मर मिटें। वो अभी कुंवारा था। उसकी आँखों में हमेशा एक शरारत रहती थी। जब मैं घर पहुँची, माँ ने मेरी खातिर की। वो खुश थीं कि मैं आई। उसी दिन वो मंदिर चली गईं। घर में सिर्फ मैं और रवि थे।

मैंने हल्की गुलाबी सलवार-कुर्ता पहना था। रवि ने मुझे देखते ही गले लगाया। “रजनी, सब ठीक तो है ना? करण जी कैसे हैं?” उसकी आवाज में गर्मजोशी थी। मैंने हल्का-सा मुस्कुराया, लेकिन मेरे दिल में तूफान था। मैं कुछ नहीं बोली, बस उसकी छाती से लगकर रोने लगी। रवि ने मुझे संभाला, मेरे बालों को सहलाया। “क्या हुआ, रजनी? कुछ तो बता…” उन्होंने धीरे से पूछा।

मैंने हिचकियाँ लेते हुए सब बता दिया। “भैया, करण… वो मुझे वो सुख नहीं दे पाते… उनका लंड खड़ा ही नहीं होता…” मैं रोते हुए बोली। रवि चुपचाप सुनते रहे। फिर उन्होंने एक गहरी साँस ली और कहा, “रजनी, मुझे पता था।”

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मैं चौंक गई। “पता था? क्या मतलब?” मैंने आँखें पोंछते हुए पूछा।

रवि ने धीरे से कहा, “शादी से पहले करण ने मुझे बताया था कि उसे प्रॉब्लम है। शायद वो तुम्हें शारीरिक सुख न दे पाए। लेकिन मैंने सोचा, तुम उससे इतना प्यार करती हो, शायद सब ठीक हो जाए। मैंने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया। लेकिन रजनी… मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ… मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”

मैं सन्न रह गई। “क्या बोल रहे हो, भैया?” मैंने कांपती आवाज में पूछा।

“हाँ, रजनी। मैं तुम्हारी जवानी का दीवाना हूँ। मैंने हमेशा तुम्हें चाहा है। और अब जब तुम इस हाल में हो, मैं तुम्हें दुखी नहीं देख सकता।” रवि की आँखों में एक अजीब-सी तड़प थी।

मैं कुछ देर चुप रही। मेरा दिमाग सुन्न था, लेकिन मेरा जिस्म अब भी उस आग में जल रहा था। मैंने कुछ नहीं कहा, बस अपने कमरे में चली गई। उस दिन मैं दिन भर रोती रही। मेरे मन में उलझन थी—ये गलत है, लेकिन मेरी प्यास मुझे गलत करने पर मजबूर कर रही थी। शाम को माँ गोरखपुर चली गईं, क्योंकि उन्हें कुलदेवता को प्रसाद चढ़ाना था। घर में सिर्फ मैं और रवि थे।

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रात हुई। मैं अपने कमरे में थी, वही गुलाबी सलवार-कुर्ता पहने। अचानक रवि कमरे में आए। वो नीली टी-शर्ट और काली जींस में थे। उन्होंने मुझे कसकर गले लगाया। “रजनी, मैं तुम्हें दुखी नहीं देख सकता। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।” उनकी आवाज में तड़प थी।

मैंने छुड़ाने की कोशिश की। “भैया, ये गलत है…” मैंने धीरे से कहा, लेकिन मेरे जिस्म की गर्मी मुझे रोक रही थी। रवि ने मेरे गालों को अपने हाथों में लिया। “रजनी, मैं तुम्हारी प्यास बुझा सकता हूँ… तुझे वो सुख दूंगा, जो करण नहीं दे पाया…” वो बोले। उनकी आँखों में वासना थी, लेकिन प्यार भी।

मैं चुप रही। मेरे मन में हलचल थी, लेकिन मेरी चूत की आग मुझे कमजोर कर रही थी। रवि ने मुझे पलंग पर लिटाया। उन्होंने मेरे कुर्ते के बटन खोलने शुरू किए। मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी हरकतों को महसूस करती रही। मेरा गुलाबी कुर्ता उतर गया। अब मैं सिर्फ काली ब्रा और गुलाबी सलवार में थी। रवि ने मेरी चूचियों को ब्रा के ऊपर से दबाया। “आह… रजनी, तेरा जिस्म तो आग है…” वो बुदबुदाए।

मैंने उनकी टी-शर्ट उतारी। उनका कसरती जिस्म मेरे सामने था। उनके सीने पर हल्के-हल्के बाल थे, जो मुझे और उत्तेजित कर रहे थे। मैंने उनके सीने को चूमा, उनके निप्पल्स को हल्के से काटा। “आह… रजनी… तू तो जादू है…” रवि सिसकारियाँ ले रहे थे। उन्होंने मेरी काली ब्रा खोल दी। मेरी चूचियाँ, जिनके निप्पल्स गहरे गुलाबी थे, आजाद हो गईं। रवि ने मेरे निप्पल्स को चूसा। “आह… भैया… और चूसो… आह…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। मेरी चूत अब पूरी तरह गीली थी।

रवि ने मेरी सलवार का नाड़ा खोला। मेरी गुलाबी सलवार फर्श पर गिर गई। अब मैं सिर्फ काली पैंटी में थी। रवि ने मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से सहलाया। “रजनी, तेरी चूत कितनी रसीली है…” वो बोले। मैंने उनकी जींस उतारी, और फिर उनका नीला जांघिया नीचे सरकाया। उनका लंड, करीब 8 इंच लंबा, मोटा, और सख्त, मेरे सामने था। उसका सुपारा गहरे गुलाबी रंग का था, और नसें उभरी हुई थीं। मैं हैरान थी। इतना बड़ा और सख्त लंड मैंने पहले कभी नहीं देखा था।

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मैंने उनके लंड को हाथ में लिया। “भैया, ये तो बहुत बड़ा है…” मैंने शरारत से कहा। मैंने उसे चाटा, सुपारे को चूसा, और फिर पूरा मुँह में लिया। “आह… रजनी… तू तो कमाल है…” रवि सिसकारियाँ ले रहे थे। मैंने उनके लंड को और गहराई तक लिया, मेरी जीभ उनके सुपारे पर घूम रही थी। उनकी आहें मेरे लिए संगीत थीं।

रवि ने मुझे लिटाया और मेरी काली पैंटी उतार दी। मेरी गुलाबी चूत, जो पूरी तरह गीली थी, उनके सामने थी। मेरे क्लिट पर हल्के-हल्के बाल थे, और वो रवि को और उत्तेजित कर रहे थे। रवि ने मेरी चूत को चाटना शुरू किया। उनकी जीभ मेरे क्लिट को छू रही थी। “आह… भैया… और चाटो… मेरी चूत को खा जाओ… आह…” मैं चीख रही थी। रवि ने मेरी चूत में अपनी जीभ डाली, और मेरे पानी को चाटा। “रजनी, तेरी चूत का स्वाद तो गजब है…” वो बोले।

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हम 69 की पोजीशन में आ गए। मैं उनके लंड को चूस रही थी, और वो मेरी चूत को। “आह… भैया… और… आह…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। मेरी चूत से पानी टपक रहा था। रवि ने मेरी चूचियों को दबाया, मेरे निप्पल्स को मसला। “रजनी, तेरी चूचियाँ तो मस्त हैं… कितनी सॉलिड हैं…” वो बोले।

फिर मैंने तड़पते हुए कहा, “भैया, अब बर्दाश्त नहीं होता… मेरी चूत में डाल दो… मुझे चोद दो…” रवि ने मुझे पलंग पर लिटाया। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ा। “रजनी, तैयार है ना?” उन्होंने पूछा। मैंने हाँ में सिर हिलाया। फिर उन्होंने एक जोरदार धक्का मारा। उनका मोटा लंड मेरी चूत में पूरा घुस गया। “आह… भैया… कितना बड़ा है… मेरी चूत फट जाएगी… आह…” मैं चीखी।

रवि ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। “चप… चप… चप…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मेरी चूत की दीवारें उनके लंड को जकड़ रही थीं। “रजनी, तेरी चूत कितनी टाइट है… आह… मजा आ रहा है…” रवि बोले। मैं भी अपनी गांड उठा-उठाकर जवाब दे रही थी। “भैया… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो… आह…” मैं चीख रही थी। रवि ने मेरी चूचियों को मसलना शुरू किया। उनके धक्के और तेज हो गए। “थप… थप… थप…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी।

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फिर रवि ने मुझे घोड़ी बनाया। मैंने अपनी गांड ऊपर की, और वो पीछे से मेरी चूत में लंड डालने लगे। “आह… भैया… ये तो गजब हो गया… और जोर से… मेरी चूत को रगड़ दो…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। रवि ने मेरी कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारे। मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। “रजनी, तेरी गांड कितनी मस्त है… आह…” रवि बोले। मैंने एक बार झड़ दिया, लेकिन रवि रुके नहीं।

फिर उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाया। मैं उनके लंड पर बैठ गई। “आह… रजनी… तू तो कमाल है…” वो बोले। मैं ऊपर-नीचे हो रही थी, और वो मेरी चूचियों को चूस रहे थे। “आह… भैया… और… मेरी चूत में और गहरा डालो… आह…” मैं चीख रही थी। इस बार हम दोनों एक साथ झड़ गए। उनका गर्म स्पर्म मेरी चूत में भरा था।

रात भर हमने अलग-अलग पोजीशन में चुदाई की। कभी मैं ऊपर, कभी वो। कभी दीवार के सहारे, मेरी एक टांग उठाकर। कभी बाथरूम में, जहाँ रवि ने मुझे शावर के नीचे चोदा। “रजनी, तेरी चूत तो जन्नत है…” वो बार-बार बोलते। मेरी सुहागरात, जो करण ने अधूरी छोड़ दी थी, रवि ने पूरी कर दी।

अब मैं पिछले 15 दिन से मायके में हूँ, और रवि से जमकर चुदवा रही हूँ। मेरी जिंदगी मस्त चल रही है। लेकिन रवि की शादी होने वाली है। मुझे अब कोई ऐसा चाहिए, जो मेरी प्यास बुझा सके। अगर कोई लखनऊ के आसपास का है, और मेरी चूत की आग बुझाना चाहता है, तो मुझे बताए। मुझे पैसे की जरूरत नहीं, मेरे नामर्द पति के पास बहुत है।

क्या आपकी भी ऐसी कोई कहानी है? क्या आप भी अपनी प्यास बुझाने के लिए कुछ ऐसा ही करते हैं? अपनी राय नीचे बताएँ।

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