शैतान बेटी के जाल में फंस गया बाप – भाग 2

Beti ne Baap ko garam krke chudwaya: कहानी का पिछला भाग: शैतान बेटी के जाल में फंस गया बाप – भाग 1

शाम को हम बाप बेटी सो गए. पापा तो शायद सो गए थे पर मैं तो इसी सोच में थी कि जल्दी ही मम्मी आ जाएँगी फिर तो पापा को पटा पाना काफी मुश्किल हो जायेगा. और यहाँ तो जब हम दो बाप बेटी ही हैं, तब भी मेरी इतनी कोशिश के बाद भी मैं अभी तक पापा से चुदवाने में सफल नहीं हो पायी.

हालाँकि मुझे ख़ुशी थी कि आज मैंने पापा को अपनी गांड दिखला दी थी और पापा ने भी मुझे अपना लौड़ा दिखला दिया था.

हालाँकि पहले भी पापा मेरी चूत और गांड और मैं पापा का लण्ड देख चुकी थी पर वो सब छुप कर था. पर आज तो हम दोनों ने जानभूझ कर अपने अपने हथियार एक दुसरे को दिखाए थे.

इस तरह से लग तो रहा था की बात आगे बढ़ तो रही है.

पर मुझे मम्मी के आने से पहले चुदना था. क्योंकि मम्मी आ जाएगी तो फिर पापा को चोदने के लिए मम्मी मिल जाएगी फिर शायद पापा मेरी ओर ध्यान न भी दें.

वैसे भी अभी पापा को चुदाई किये कई दिन हो गए थे तो वो भी किसी चूत को चोदने के लिए तड़प रहे थे.

मैंने सोच लिया एक जब तक मम्मी नहीं आ जाती मैं अपनी कोशिश जारी रखूंगी,

सुबह उठ कर मैंने नाश्ता बनाया और स्नान वगैरा करके तैयार हो गयी,

कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, तो ऐसे ही पापा को कहा कि पापा चलो आज कहीं घूमने चलते है,

पापा तो आराम से लुंगी और शर्ट पेहने सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे, तो उन्हें भी लगा की टीवी देखने से तो अपनी सेक्सी बेटी के साथ कहीं जाना ज्यादा मजेदार होगा.

तो वो बोले, “सुमन बेटी! ठीक है. मैं जरा पैंट पहन लूँ, फिर चलते हैं. ”

मैं तो पापा का लण्ड देखने को उत्सुक थी और पैंट में कहाँ लौड़ा दिख पायेगा, तो मैंने पापा को मना करते हुए कहा

“अरे पापा हम किसी के घर थोड़े ही न जा रहे हैं. लुंगी ही ठीक है, देखो मैंने भी तो कोई सूट नहीं पहना है, मैं भी सिर्फ स्कर्ट और टी शर्ट में ही हूँ. चलो थोड़ा लॉन्ग ड्राइव पर ही चलते हैं. ”

मैंने वैसे आज स्कर्ट के नीचे पैंटी और शर्ट के नीचे ब्रा भी पहनी थी. आखिर हम लोग बाहर जा रहे थे तो बिना ब्रा पैंटी अच्छा नहीं होगा.

पापा राजी हो गए और हम बाप बेटी गाड़ी निकल कर चल पड़े.

गाड़ी में चलते चलते हम लोग शहर के बाहर आ गए थे और अब चारों ओर खेत थे. यहाँ पर सड़क पर यातायात तो बिलकुल न के बराबर था.

थोड़ी थी देर में गाड़ी बिलकुल सुनसान एरिया में आ गयी.

मुझे लगा की यही मौका है, पापा को पटाने का कुछ करना चाहिए.

पर कुछ समज़ नहीं आ रहा था. अचानक मुझे एक आईडिया आया।

मैंने देखा की दूर दूर तक कोई नहीं है, तो मैंने पापा से कहा

“पापा जरा साइड में गाडी रोकिये, मुझे जोर से सूसू आया है. मैं जरा पेशाब कर लूँ। ”

पापा ने साइड में गाडी रोकते हुए कहा.

“बेटी. यह चलती सड़क है, कोई आ सकता है. तुम इन खेतों में जा कर पेशाब कर लो, ”

पर मुझे खेतों में छुप कर पेशाब थोड़े ही करना था.

मैंने इठलाते हुए पापा से कहा

“अरे पापा, मुझे बहुत जोर से पेशाब आया है, यहाँ तो वैसे भी कोई नहीं आता. खेतों में जाने तक तो कहीं मेरा पेशाब निकल ही न जाये. मैं ऐसा करती हूँ की गाडी की ओट में ही बैठ कर पेशाब कर लेती हूँ.”

और फिर शरारत से मुस्कुराते हुए बोली

“हम औरतों को आप मर्दों वाली सुविधा तो है नहीं, की खड़े हो कर पेशाब कर लें. मैं तो गाड़ी के पीछे बैठ जाउंगी। आने जाने वाले वाहनों को तो दिखाई भी नहीं दूँगी,बस आप जरा ध्यान रखना। ”

(यह ध्यान पता नहीं सड़क पर आने वाले वाहनों का रखना था या पेशाब करती हुई अपनी जवान बेटी का। मेरी बात दो अर्थी थी, )

मैं पापा के साथ ड्राइवर के बराबर वाली सीट पर बैठी थी, तो दरवाजा खोल कर मैं साइड से उतर गयी.

मैंने देखा की पापा साइड मिरर जो खिड़की के पास होता है में से अपनी बेटी को देखने की कोशिश कर रहे थे,

मैं जानभूझ कर गाड़ी के थोड़ा पीछे गयी और ध्यान रखा की मैं गाड़ी की ओट में ऐसी जगह बैठ कर पेशाब करूँ जहाँ से पापा को मेरी नंगी गांड दिखाई दे सके.

पापा का पूरा ध्यान साइड मिरर से मेरी ओर ही था.

मैंने धीरे धीरे पूरा समय ले कर अपनी स्कर्ट ऊपर उठाई ताकि पापा को मेरी नंगी टांगे और पैंटी दिखाई दे सके.

फिर मैंने आराम से अपनी पैंटी नीचे घुटनों तक खींच कर उतारी, और अपनी चूत को नंगा कर दिया।

मैं काफी देर से पापा को पटाने का सोच रही थी तो मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी,

मैंने देखा की मेरी चूत का चिपचिपा सा अमृत मेरी पैंटी में लग चूका था. और चूत की जगह से पैंटी गीली हो गयी थी.

मैं पैंटी को उतार कर, नंगी हो कर अपनी टांगों को पूरा फैला कर पेशाब करने बैठी, ताकि पापा को मेरी नंगी चूत का पूरा और खुल कर दर्शन हो सके.

मैंने कनखीओं से गाड़ी से साइड मिरर को देखा तो पाया की पापा पूरी टकटकी लगाए अपनी प्यारी बेटी की नंगी चूत को ही देख रहे थे.

पेशाब तो मुझे आया ही था. तो मैंने अपनी टांगो को खोल कर अपनी चूत को ठीक पापा की ओर करके जोर से मूतना शुरू कर दिया.

मेरी चूत से शर शर तेज पेशाब निकल रहा था और चूत से सीटी जैसी आवाज निकल रही थी,

उधर पापा भी ध्यान से मेरी चूत को देख रहे थे, और मैं जानभूझ कर मिरर में पापा को नहीं देख रही थी ताकि पापा को ऐसा लगे की मुझे पापा द्वारा देखे जाने का कुछ भी पता नहीं हैं।

मैं काफी देर तक इसी तरह बैठी रही और पापा को जन्नत का नजारा करवाती रही उधर पापा भी शायद अपना लौड़ा मसल रहे होंगे,

खैर आखिर कितनी देर तक पेशाब करती रह सकती थी,

थोड़ी ही देर में पेशाब की धार धीमी होती होती बंद हो गयी,

अब न चाहते हुए भी मुझे उठना ही पड़ना था.

उठते उठते मुझे एक और शरारत सूझी।

मैं जब उठ खड़ी हुई तो मैंने नंगी ही खड़ी हो कर एक लास्ट बार अपनी चूत पापा को दिखाई और अपनी पैंटी घुटनो से ऊपर करने लगी.

मैंने जब पैंटी मेरी जांघो के जोड़ के पास आयी तो मैंने जान भूज कर जोर लगा कर थोड़ा पेशाब और निकाल दिया.

अब पैंटी चूत के पास ही थी तो पेशाब पैंटी के ऊपर गिर गया और पैंटी पेशाब से गीली हो गयी.

मैंने ऐसे पैंटी की ओर देखा की जैसे गलती से पैंटी पर पेशाब हो गया हो (हालाँकि मैंने यह सब जानभूझ कर किया था. और मैं जानती थी की पापा देख रहे हैं. )

फिर मैंने पैंटी को फिर से निकाल दिया और उसे हाथ में ही पकड़ कर पापा की ओर आयी. पापा तुरंत दूसरी ओर देखने लगे.

मैं दरवाजा खोल कर गाड़ी के अंदर आयी और हाथ में पकड़ी गीली पैंटी पापा को दिखती हुई बोली

“पापा देखा मैंने कहा था न कि मुझे जोर से पेशाब आयी है, देखो थोड़ी सी पेशाब पैंटी के ऊपर भी गिर गयी और ये गीली हो गयी है, अब मैं इसे पहन नहीं सकती मैं क्या करूँ। ”

पापा ने मेरे हाथ से पैंटी ले ली और उसे देखा.

मेरी पैंटी चूत वाली जगह से चुतरस से चिपचिपी हो रही थी,

बाकि की पैंटी तो चाहे पेशाब से गीली थी पर बीच में चूत का गाढ़ा सा चुतरस अलग ही चमक रहा था.

पापा ध्यान से चुतरस को देख रहे थे.

मुझे शर्म आ रही थी, पापा ने अपनी उँगलियाँ मेरे चिपचिपे चुतरस में घुमैं और बोले

“सुमन बेटी। तुम्हारी कच्छी तो बहुत गीली हो गयी है, इसे न पहनना, वर्ना तुम्हे रैशेस हो जायेंगे. कोई बात नहीं, तुमने स्कर्ट तो पहनी ही है, ऐसा करते हैं की तुम्हारी कच्छी को सीट पर सूखने डाल देते हैं. घर जा कर दूसरी पहन लेना.”

पापा यह सब कहते हुए पैंटी के चुतरस पर अपनी उंगलिआ सेहला रहे थे।

शायद पापा को अपनी बेटी का चुतरस अच्छा लग रहा था क्योंकि कहने के बाद भी उन्होंने अभी तक पैंटी को पीछे सीट पर नहीं रखा था.

मुझे लगा की पापा को अपनी बेटी की गीली पैंटी से खेलने का थोड़ा और मौका देना चाहिए,

मैंने पीछे रिअर व्यू मिरर में देखा की पीछे दूर पर एक नलका लगा था.

मुझे तुरंत एक आईडिया आया और मैंने पापा से कहा.

“पापा देखिये वो पीछे एक नल लगा हुआ है, मेरे हाथ पेशाब से गीले हो गए हैं. आप रुकिए मैं जरा जा कर हाथ धो कर आती हूँ.”

यह कहते हुए मैंने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल गयी, बाहर निकलते हुए मैंने एक शरारत और की, और वो यह के मैंने कार से उतरते हुए अपने चूतड़ों से कार का रिअर मिरर (जो दरवाजे के साइड में लगा होता है,) उसे बंद कर दिया.

अब पापा मुझे साइड मिरर से नहीं देख सकते थे.

असल में मेरा पीछे नल तक जाने और हाथ धोने का कोई इरादा नहीं था. मैं तो देखना चाहती थी की मेरे जाने के बाद पापा मेरी पैंटी के साथ क्या करते हैं.

पापा को लगा कि मैं पीछे नल के पास चली गयी,

पर मैं तो थोड़ा सा ही पीछे तक गयी और फिर दबे पाओं वापिस आ गयी और कार की साइड में खड़ी हो कर पापा की हरकतें देखने लगी,

पापा ने मेरी गीली कच्छी की चिपचिपे चुतरस को सूंघना शुरू कर दिया. पापा ने मेरी पैंटी अपनी नाक पर रख ली और अपनी प्यारी बेटी के कामरस को चाटने लगे.

शायद पापा को अपनी बेटी का रस स्वादिष्ठ लग रहा था.

पापा मेरी पैंटी को पूरी जीभ से चाट रहे थे,

फिर पापा ने अपना दूसरा हाथ अपनी लुंगी में डाल लिया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और उसे सहलाना शुरू कर दिया.

मैंने देखा कि पापा का लण्ड पूरा लोहे की तरह टाइट हो चूका था. कि उस पर लण्ड की नसें भी उभरी हुई दिखाइ दे रही थी,

पापा हवस में अंधे हो कर यह भूल हे गए थे की उनकी बेटी पीछे हाथ धोने गयी है जो किसी भी टाइम वापिस आ सकती है,

अब पापा एक हाथ से अपने मुंह पर मेरी कच्छी रखे उसे चाट रहे थे और दुसरे हाथ से तेज तेज अपना मुठ मार रहे थे.

पापा का लौड़ा बहुत मोटा और लम्बा था.

जब पापा का हाथ नीचे जाता तो लौड़े का टमाटर जैसा सुपाड़ा बाहर आ जाता और जब हाथ ऊपर आता तो सुपाड़ा मांस से ढक जाता।

ऐसा लग रहा था की जैसे कोई चूहा अपने बिल में छुपा हुआ हो और फिर अपनी गर्दन बाहर निकाल कर इधर उधर देखता हो फिर अपनी गर्दन अपनी बिल में छुपा लेता हो, पापा के लौड़े का सुपाड़ा ऐसे ही छुपा छुपी का खेल खेल रहा था.

मुझे पापा का लौड़ा जिसे वो मुठ मार रहे थे इतना सूंदर लग रहा था की मैं तो जैसे किसी सम्मोहन की अवस्था में ही पहुँच गयी और गौर से पापा के लौड़े को ही देखे जा रही थी.

यह सीन मेरे लिए भी इतना कामुक था की मुझे भी पता ही नहीं लगा की कब मेरा अपना हाथ मेरी पैंटी में घुस गया और नंगी चूत (क्योंकि अब पैंटी तो उतर चुकी थी और चूत तो नंगी ही थी ) को सहलाने लगा.

अपने आप मेरी दो उँगलियाँ मेरी चूत में घुस गयी और मैंने भी बाहर सड़क पर खड़े खड़े ही अपनी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया.

मैं पापा के लौड़े को देखने में इतनी मगन थी की मैं तो भूल ही गयी थी कि अभी हम लोग चलती सड़क पर खड़े हैं और किसी भी टाइम कोई भी आ सकता है,

कोई आ जाये तो क्या देखेगा कि एक अधेड़ सा आदमी गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बेठा सरेआम मुठ मार रहा है और एक कच्छी को चाट रहा है और एक नौजवान लड़की कार के बाहर खड़ी उसे मुठ मारते हुए देख रही है, और अपनी दो उँगलियों से अपनी चूत को अंदर बाहर करती हुई रगड़ रही है,

खैर वो तो हमारी किस्मत ही अच्छी थी कि कोई आया नहीं,

मुठे मारते और पैंटी चाटते पापा साथ ही बड़बड़ा रहे थे

“ओह मेरी प्यारी बेटी सुमन! तेरी चूत की सुगंध कितनी मनमोहक है और तुम्हारी चूत का यह रस भी कितना स्वादिष्ठ है, मजा आ गया। कितना खुशकिस्मत होगा वो जो तुम्हारी चूत पर सीधे अपने मुंह को रख कर तुम्हारा चुतरस पियेगा। हे भगवान क्या मेरी किस्मत में सिर्फ मेरी बेटी की पैंटी चाटना ही लिखा है, मुझे अपनी बेटी की चूत चाटने का आशीर्वाद दे दो। कितना शुभ दिन होगा जब मैं अपनी बेटी की चूत को चाट चाट कर उसका रस पियूँगा। ”

यह कहते हुए पापा तेज तेज मुठ मार रहे थे.

में पापा को मुठ मारते देखने में इतनी मस्त हो गयी थी कि मेरे को इतना भी ध्यान नहीं रहा कि मैं बाहर सड़क पर खड़ी हूँ और अचानक से कोई वाहन भी आ सकता है,

हम दोनों बाप बेटी अपना अपना मुठ मारने में मस्त थे.

अचानक पापा का शरीर जोर से अकड़ गया और पापा की मुठ मारने की स्पीड बिजली की तरह तेज हो गयी,

पापा का काम तमाम होने वाला था. इधर अपने आप मेरी भी उँगलियों की स्पीड बढ़ गयी.

एक जोर की आह की आवाज के साथ पापा का माल निकल गया.

पापा वीर्य छूटने से एकदम हड़बड़ा गए. उन्हें कुछ नहीं सूझा की वो पिचकारी मार रहे अपने लौड़े को क्या करें.

अनजाने में पापा ने अपने दुसरे हाथ में पकड़ी मेरी पैंटी को तुरंत अपने लौड़े पर रख लिए और सारा माल मेरी पैंटी में निकाल दिया.

इधर ज्यों ही मैंने देखा की मेरी पैंटी में पापा ने माल भर दिया है तो मेरा भी पानी छूट गया. और मेरा भी पूरा हाथ मेरे चूत के पानी से गीला हो गया.

शुक्र तो यह था की मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी. तो मेरी चूत का अमृत मेरी टांगो से बहता हुआ मेरे पैरों के ओर चला गया.

मैंने अपनी टांगों पर हाथ फेर कर अपने चुतरस टांगों पर ही मल लिया.

इधर अब पापा का भी वीर्य निकलना बंद हो चूका था.

पापा के हाथ में मेरी पैंटी पापा के माल के तर बर तर हो चुकी थी.

मैं डर गयी की अब पापा पीछे मुड कर मुझे देखेंगे।

तो मैंने थोड़ा पीछे जा कर कुछ आवाज करी जिस से पापा को लगे कि मैं आ रही हूँ.

पापा ने मेरी आवाज सुनी तो उन्हें एकदम मेरा ध्यान आया.

उनके हाथ में मेरी पैंटी थी जो अब उनके वीर्य से भरी हुई थी,

घबराहट में उन्हें कुछ नहीं सूझा की उसका क्या करें, तो उन्होंने उसे फटाफट अपनी सीट के नीचे छुपा लिया।

इतने में मैं भी कार के पास आ गयी और दरवाजा खोल कर अंदर घुस गयी,

मैंने बिलकुल भी ऐसा शो नहीं होने दिया की मैंने पापा का मुठ मरने का देख लिया है,

जबकि मेरा खुद का भी इतना पानी निकल गया था की मेरे शरीर से जैसे सारी ताकत ही निकल गयी थी,

पर मेरी शैतानी ख़तम कैसे हो सकती थी,

मैंने पापा से गाड़ी चलाने और घर को चलने को कहा।

फिर मैंने शरारत से पूछा

“पापा मेरी पैंटी दिखाई नहीं दे रही. वो जो मेरी गीली पैंटी थी वो कहाँ है,”

पापा बेचारे एकदम से हड़बड़ा गए, वो क्या बोलते कि बेटी तुम्हारी पैंटी में तो मैंने मुठ मारा है और इस समय वो मेरे माल से लथपथ सीट के नीचे पड़ी है,

वो हड़बड़ाए से बोले “अरे वो गीली हो गयी थी, और उस में से तुम्हारे पेशाब की गंध आ रही थी तो मैंने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया. छोड़ो उसे मैं तुम्हे नयी पैंटी ले दूंगा। ”

मैं पापा की हड़बड़ाहट और फंस जाने का घबराहट का आनंद लेते हुए बोली

“अरे पापा, तो क्या हुआ, जरा सा पेशाब ही तो लगा था. मैं उसे घर जा कर धो लूंगी, जरा रुकिए मैं उसे उठा लेती हूँ। ”

मन ही मन मुस्कुराते और पापा की हालत पे मन में हँसते हुए मैंने खिड़की खोलने का उपक्रम किया। मुझे खिड़की खोलते देख कर पापा घबरा उठे. क्योंकि वो तो जानते थे कि मेरी पैंटी कहीं बाहर तो फेंकी नहीं है, वो तो उनके माल में लथपथ पड़ी है,

मैं पापा की हालत पर मन में हँसते हुए मजे ले रही थी,

पापा ने फटाफट गाड़ी स्टार्ट कर दी और बोले

“अरे सुमन छोडो. तुम भी क्या पुरानी कच्छी के पीछे ही पड गयी हो, मैंने कहा न की मैं तुम्हे नयी और इस से कहीं बढ़िया दिला दूंगा. तो अब चुपचाप बैठी रहो.”

और इस डर से की कहीं मैं गाड़ी से उतर न जाऊ पापा ने तुरंत गाड़ी चालू कर दी और आगे बढ़ा दी,

मैंने भी पापा की और खिंचाई न करते हुए, चुप रहना ही बेहतर समझा.

पर फिर भी मैंने पापा को और तंग करने की सोची और बोली.

“पापा यह गाड़ी में से एक अजीब सी लेकिन बहुत ही बढ़िया सी खुशबू कैसी आ रही है, क्या आप ने कोई इत्र छिड़का है या कोई सेंट लगाया है,”

असल में गाड़ी में पापा के वीर्य की खुशबू फैली हुई थी,

मैं तो अपनी शैतानी कर रही थी, पर बेचारे पापा घबरा गए वो क्या बोलते कि यह तो उनके लण्ड रस की खुशबू है,

पापा को कुछ नहीं सूझा तो बोले

“अरे कहाँ कोई खुशबू नहीं है, हाँ अभी तुम कार के अंदर आयी तो यह एक सुगंध आने लगी है, शायद तुम्हारी गंध हो.”

यह कह कर पापा ने बात को टालना चाहा, पर मैं इतनी जल्दी अपनी शैतानी थोड़े ही ख़तम करने वाली थी,

मैंने फिर बात को खींचा और कहा

“पापा मैं तो बस पेशाब करके ही आयी हूँ. मैंने तो कोई सुगंध नहीं लगाई है,”

पापा को अचानक बात को टालने का ढंग सूझ गया और वो बोले

“सुमन बेटी, तो यह शायद तुम्हारे ही पेशाब की गंध है, तुमने इस टाइम पैंटी नहीं पहनी हुई है तो तुम्हारे पेशाब की सुगंध ही आ रही है,”

मैंने फिर इस बात में भी मौका ढूंढते हुए बात को आग बढ़ाया और कहा

“पापा ठीक है कि इस समय मैंने कच्छी नहीं पहनी है पर यह जो सुगंध है वो पेशाब की नहीं है. आप कोई बात छुपा तो नहीं रहे हैं.”

पापा फिर बोले (बेचारे किसी तरह अपनी वीर्य से भरी मेरी पैंटी की बात को टालना जो चाह रहे थे.)

“अरे सुमन! यह तुम्हारे पेशाब की ही गंध है, चाहे तो चेक कर लो”

अब यह तो मेरी शैतानी के लिए एक सुनहरा मौका था.

मैंने तुरंत अपना हाथ अपनी स्कर्ट के अंदर अपनी चूत पर फेरा और अपनी चूत की दरार में उसे फेरा. मेरी चूत को कामरस से भरी पड़ी थी, तो मेरी ऊँगली मेरी चूत के रस से गीली हो गयी.

मैंने अपना हाथ स्कर्ट से बाहर निकाला और पापा की ओर करके कहा

“पापा देखो मेरे पेशाब का यह गंध नहीं है.”

मेरी ऊँगली मेरे कामरस से चमक रही थी,

पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने मुंह के पास किया और मेरी गीली उँगलियों को सूंघते हुए बोले

“सुमन! यह तुम्हारी उँगलियों से शहद जैसी सुगंध क्यों आ रही है,”

और यह कहते हुए पापा मेरी चूत के माल को सूंघते रहे.

यह एक बहुत ही कामुक दृश्य था. मेरी तो चूत में जैसे फिर से पानी की भाड़ ही आ गयी,

मैं बात को टालते हुए बोली

“पापा आप बात को टालो मत. मेरे हाथ से शहद की गंध कैसे आ सकती है देखो मैं फिर से दिखती हूँ.”

यह कह कर मैंने फिर से अपना हाथ अपनी स्कर्ट के अंदर करके अपनी दो उँगलियाँ अपनी चूत में डाल ली और, उन्हें अच्छे से अपने पानी से गीला कर लिया और फिर उन्हें बाहर निकल कर पापा के आगे करके कहा

“पापा देखो ऐसा कुछ भी नहीं है,”

पापा को मेरा चुतरस उँगलियों पर चमकता दिखाई दे रहा था.

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने मुंह के पास किया और अचानक से मेरी दोनों गीली उँगलियाँ अपने मुंह में डाल ली और उन्हें चूसना शुरू कर दिया।

और मेरी चुतरस को मेरे सामने ही चाटते हुए बोले

“सुमन! तुम बहुत शरारती हो, तुमने जरूर अपनी टांगो के बीच कोई शहद की शीशी छुपा रखी है, देखो तो तुम्हारी उँगलियों पर कितना मीठा मीठा रस लगा है, मैंने इतना मीठा और स्वादिष्ठ रस कभी नहीं चखा। ”

यह कहते हुए पापा ने मेरी दोनों उँगलियों को ऐसे चूसना शुरू कर दिया कि जैसे बच्चे कोई कुल्फी चूसते हैं.

यह देख कर कि मेरे सामने ही मेरे पापा मेरी चूत का पानी चाट रहे है, मैं तो वासना से अंधी ही हो गयी.

मेरा मन कर रहा था थी बस तुरंत पापा का मोटा सा लौड़ा उनकी लुंगी से बाहर निकाल लूँ और चूसना शुरू कर दूँ.

पर मैं यह नहीं कर सकती थी, आखिर हम लोग चलती सड़क पर खड़े थे.

आखिर हम दोनों बाप बेटी कोई बच्चे तो थे नहीं कि हमे शहद और चुतरस में कोई फर्क न कर सकें.

हम दोनों ही जानते थे की यह चुतरस है उन की बेटी का, और मैं भी जान भुज कर अपने पापा को अपनी चूत का रस चटवा रही थी. बहुत ही कामुक दृश्य था यह.

मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी की मेरी चूत के पानी ने पूरी सीट गीली कर दी थी,

मैंने पापा के मुंह से अपनी उँगलियाँ खींच कर बाहर निकाली और कहा

“पापा कोई शहद वहद नहीं है, आप शरारत न करो और गाडी चलाओ। हमें देर हो रही है, और सड़क पर कोई आ सकता है,”

पापा भी जैसे किसी प्यारे से सपने से जागे और गाड़ी घर की ओर बढ़ा दी,

घर पहुँच कर मैं तुरंत दौड़ कर बाथरूम में चली गयी क्योंकि मेरी चूत में पेशाब की बाढ़ आयी हुई थी,

वहां मैंने पेशाब करने के बाद अपनी चूत में उँगलियाँ डाल कर फिर से पानी निकला.

फिर बाहर आ कर घर के काम में लग गयी।

घर का माहौल काफी कामुक सा हो गया था।

अगले दिन मैं सुबह उठी और घर का काम काज करने लगी. पापा अपने कमरे में सोफे पर बैठे थे.

पापा सोच रहे थे कि मैं आज भी पिछली बार की तरह छोटी सी स्कर्ट और खुली टी शर्ट पहन कर काम करुँगी और शायद अपनी ब्रा और पैंटी भी न पहनू।

पापा को भी अब तो काफी आईडिया हो ही चूका था की मैं उनके साथ क्या खेल खेल रही हूँ. वो भी जानते थे की मेरा चुदवाने का मन है, पर पापा को भी समझ नहीं आ रहा था की बात को कैसे आगे बढ़ाया जाये.

पापा के मन में भी अब शरारत जागने लगी थी।

मैंने पापा को थोड़ा तंग करने और तड़पाने का सोच और जानभूझ कर सलवार कमीज पहन लिया और नीचे पैंटी भी पहन ली पर ब्रा नहीं पहनी, (आखिर पापा को भी मेरी हिलती छातिओं के मजा तो लेने का हक़ है न )

और झाड़ू लगाने के लिए पापा के कमरे की ओर चल पड़ी,

मैं पापा के कमरे की तरफ जाने लगी।

मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं आगे क्या होगा।

मैं दरवाजे के पास पहुँची और पर्दा हटाया तो देखा कि पापा बेड के बजाए बगल में सोफे पर बैठे थे और कुर्ता उतार दिया था और सिर्फ बनियान और लुंगी में थे।

तब मैं समझ गयी कि पापा भी यह मौका छोड़ना नहीं चाहते और आज कुछ करके ही मानेंगे।

हालांकि मैं और मेरी चूत दोनों पूरी तरह हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार थी।

अचानक ही मेरी निगाह नीचे लुंगी की तरफ चली गयी।

मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा।

दरअसल लण्ड के पास लुंगी काफी उभरी थी।

पापा की लुंगी का उभार देखते ही मैं समझ गयी कि पापा ने अंदर अण्डरवियर नहीं पहना है।

यह सोच कर ही कि अभी उनकी प्यारी बेटी एक छोटी सी स्कर्ट और टी शर्ट में उन के कमरे में सफाई के बहाने से उनको अपनी जवानी के नज़ारे दिखाने आ रही है, उनके लण्ड में तनाव आने लगा था जो लुंगी के ऊपर से ही साफ-साफ पता चल रहा था।

मेरी निगाह पापा की लुंगी की तरफ गयी तो वहां पर उनके लण्ड का तनाव साफ दिख रहा था।

तनाव देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्होंने लुंगी के नीचे अण्डरवियर नहीं पहनी है।

ऐसे माहौल में मेरी चूत भी हल्का-हल्का पनियाने लगी थी।

पापा ने मुझे लण्ड की तरफ देखते हुए मुझे देख लिया और उन्होंने भी झुककर एक निगाह अपने लण्ड की तरफ मारी।

वे समझ गये कि उनके लण्ड के तनाव को लुंगी छिपा नहीं पा रही है और मैं जान गयी हूँ कि वह बिना अण्डरवियर के हैं।

फिर पापा ने गर्दन उठाई और मेरी ओर देखा.

मैं उन्हें देखकर मुस्कुराई और फिर जानबूझकर दोबारा उनके लण्ड की तरफ देखने लगी।

जैसे ही हमारी निगाह मिली, मैं मुस्कुरा दी।

पर जैसे ही पापा ने मुझे सलवार कमीज में देखा तो पापा का तो मन ही जैसे बुझ सा गया. कहाँ तो वो अपनी बेटी की जवानी का दीदार करने की सोच रहे थे और कहाँ यहाँ मैं सलवार कमीज मैं आ गयी,

पापा का उतरा हुआ चेहरा देख कर मेरे मुंह पर एक शरारती सी मुस्कान आ गयी.

पापा को समझ नहीं आया की यह क्या हो गया.

उन्हें तो वो लग रहा थे की उनके तो दिल के अरमान दिल में ही दफ़न हो गए हों.

खैर मैंने जल्दी से कमरे की सफाई की और पापा का उतरा हुआ मुंह देख कर मन ही मन हंसती रही.

फिर जब काम ख़तम हो गया तो पापा को चिढ़ाते हुए बोली.

“पापा! देखिये तो मैं इस सलवार कमीज में कैसी लग रही हूँ. ”

और यह कहते हुए अपने मुम्मों को थोड़ा ऊपर की ओर उभार दिया. ताकि पापा को अपनी बेटी की छातिअं साफ साफ दिखाई दे जाएँ.

(मैंने सोचा की पापा को मेरी छाती और उनके निप्पल, जो ब्रा न पहन ने के कारण साफ दिख रहे थे दिखा ही दूँ.)

पापा को मेरे इस तरह अपने मुम्मे दिखने से दिल में थोड़ा होंसला सा तो हुआ और वो प्यार से बोले.

“सुमन बेटी! तुम्हारी यह सलवार कमीज का सूट है तो बड़ा ही अच्छा। पर तुम स्कर्ट टी शर्ट में ज्यादा अच्छी लगती हो. सलवार कमीज में तुम थोड़ी बड़ी बड़ी लगती हो पर स्कर्ट में तुम कोई छोटी सी गुड़िया की तरह और एक बच्ची की तरह दिखती हो. मेरी लिए तो सदा ही तुम मेरी प्यारी सी और छोटी सी मुन्नी ही रहोगी तो तुम जहाँ तक हो सके स्कर्ट और टी शर्ट ही पहना करो, अब जाओ और इन कपड़ों को बदल कर वो दुसरे पहन कर आ जाओ और मेरे पास बैठो,

मैं पापा की इस तड़प को देख कर खुश हो गयी. मुझे लग रहा था की मैं पापा से चुदवाने के अपने मिशन में जल्दी ही कामयाब हो जाउंगी,

मैं अपने कमरे में जल्दी से कपडे बदल कर छोटी सी स्कर्ट और टी शर्ट पहन ली। मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो टी शर्ट के नीचे भी ऐसे ही रहने दिया.

(आखिर घर में तो और कोई था नहीं तो पापा को भी अपनी बेटी के झूलते मम्मों का खुल कर दीदार करने का मौका मिलना चाहिए.)

स्कर्ट के नीचे मैंने पैंटी पहन ली

(जो की बाद में मेरी एक बड़ी गलती साबित हुई, यह सब मैं आप को बाद में बताउंगी। )

फिर मैं पापा के पास आ गयी और उनके सामने खड़ी हो कर बोली.

“पापा! अब ठीक है न. अब तो मैं बड़ी नहीं पर आपकी प्यारी और नन्ही सी गुड़िया ही लगती हूँ न?)

पापा सोफे पर बैठे थे और सोफा ठीक बेड के बगल में था।

सोफे के सामने टेबल रखी थी।

पापा ने ऊपर से नीचे तक पहले मुझे कायदे से देखा।

पापा अपने सामने सोफे और टेबल की बीच की जगह को दिखाते हुए बोले- पास आओ बेटा यहाँ ताकि मैं अच्छे से देख सकूँ।

मैं जाकर उनके सामने खड़ी हो गयी।

एक बार मुझे लगा कि कहीं पापा सीधा मेरी स्कर्ट ना उठाकर देखने लगें।

सोफे पर बैठे-बैठे ही पापा की निगाहें, घुटने के नीचे मेरी गोरी-गोरी टांगों से होती हुई स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ, कमर और चूची को अच्छी तरह देख रही थीं।

कुछ देर तक सामने से मुझे ऊपर से नीचे तक कायदे से देखने के बाद वह बोले- थोड़ा घूमो ताकि पीछे से भी देख लूँ।

मैं समझ गयी कि पापा स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी गांड देखना चाहते थे।

तब मैं घूम गयी और अपनी गांड उनकी तरफ कर दी और करीब 15 सेकेण्ड बाद खुद ही घूमकर उनकी तरफ मुंह कर खड़ी हो गयी और मुस्कुराते हुए बोली- कैसी लग रही हूँ स्कर्ट में?

पापा बोले- ऐसा लग रहा है जैसे स्कूल जाने वाली कोई स्टूडेंट हो। एकदम कमसिन बच्ची लग रही हो स्कर्ट में! कोई कह नहीं सकता कि 19 साल की हो ।

दरअसल पापा की बात सही भी थी।

मुझे स्कर्ट-टॉप में देखकर हर कोई मुझे स्कूल की बच्ची ही समझता था।

मैं धीमे से हंस दी और बोली- मेरे स्कर्ट पहनने पर सभी यही बोलते हैं। तो देख लिया ना आपने स्कर्ट में … अब जाऊं मैं?

पर पापा ने अपने सामने रखे टेबल की तरफ इशारा करके मुस्कराकर बोले- थोड़ी देर बैठो मेरे साथ।

मैं जाकर सामने रखे टेबल पर बैठ गयी।

अब मैं पापा के ठीक सामने बैठी हुई थी.

मैंने टीशर्ट और घुटनों तक की स्कर्ट पहनी थी और पापा के ठीक सामने सोफे पर बैठी थी।

जानबूझकर मैंने अपनी जांघ को थोड़ा फैला दिया और उन्हें स्कर्ट के अंदर अपनी गोरी मांसल जांघों के दर्शन करने का पूरा मौका दे दिया।

पापा को भी यहाँ मम्मी का डर तो था नहीं तो वे भी बात करते हुए बिना किसी झिझक के मेरी जांघों को ललचाई नजरों से देख रहे थे।

वे बड़े सोफे पर बैठे थे वह अपने बगल में बैठने का इशारा करते हुए बोले- यहाँ आकर बैठो।

मैं तुरंत उठी और उनके बगल जाकर बैठ गयी।

पापा धीरे से अपना हाथ स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ पर रखते हुए मुस्कुराकर बोले

“सुमन! देखो तुम स्कर्ट टी शर्ट में कितनी प्यारी लगती हो, अब जब तक तुम्हारी मम्मी नहीं आ जाती, तुम यह कपडे ही पहना करो,”

(मैं समझ रही थी की पापा का मतलब है की जब तक मम्मी नहीं आ जाती, मुझे ऐसे ही अपनी जवानी के नजारे दिखती रहा करो.)

मैं इठलाती हुई बोली

“पापा! पता नहीं मम्मी को क्यों मेरे इस तरह की स्कर्ट पहनने से दिक्कत है, वो मुझे इस तरह के कपडे पहनने से रोकती रहती है. पर मुझे यह ही अच्छे लगते हैं, तो मैं रात में अपने कमरे में सोने के लिए यह ही कपडे पहनती हूँ। ”

घर का माहौल कामुक सा हो गया था।

स्कर्ट मेरे घुटने से थोड़ा ऊपर ही थी और टीशर्ट भी थोड़ा टाइट वाली पहनी थी।

पापा फिर अपना हाथ धीरे से स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ पर रखते हुए बोले-

“वाह, आज कितनी देर के बाद मुझे मेरी वही प्यारी सी गुड़िया सी पहले वाली बेटी दिखी है। मुझे नहीं पता था कि तुम रात में अपने कमरे में स्कर्ट पहनती हो।

मैं मुस्कुराते हुए बोली-

“रात में कमरे के अंदर क्या-क्या करती हूँ यह आपको थोड़े ना पता चलेगा!”

पापा मेरी इस बात पर मुस्कुराते हुए बोले-

“हाँ… ये तो सही कह रही हो। मुझे कैसे पता चलेगा कि कमरे के अन्दर क्या-क्या करती हो।”

फिर वे बोले-

“हाँ वैसे चली चलो यह तो बता ही दो की वैसे और क्या-क्या करती हो रात में अपने कमरे में? मुझे भी बताओ थोड़ा?”

मैं मुस्कुराकर बोली-

“बहुत कुछ करती हूँ … क्या बताऊँ?”

पापा भी अब मजे लेने लगे थे इसलिए हंसते हुए फिर पूछे-

“कुछ तो बताओ और क्या करती हो!”

मैं भी उसी तरह हंसती हुई बोली

“पापा मैं तो बहुत कुछ करती हूँ. कई बातें आपको बताने की नहीं भी होती. अब सब कुछ थोड़ी ही न बताउंगी. पापा मैं अब जवान हो गयी हूँ और जवान लड़किया रात में अपने कमरे में सोती ही है. आप को तो पता होगा. मैं रात में और क्या करती हूँ उनमे से कुछ ऐसी भी बात हो सकती है जो आप को भी बताने की न हो, आप खुद समझदार हैं. हमारी भी कुछ प्राइवेसी होती है न? ”

पापा फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोले

“अरे बेटा! मैं तुम्हारा पापा हूँ. मुझे बताओ न क्या क्या करती हो, अभी तुम्हारी शादी तो हुई नहीं है जो कि कुछ ऐसी वैसी, पापा को न बताने वाली बात हो. अकेली लड़की की ऐसी क्या बात है जो तुम मुझे नहीं बता सकती?”

यह कहते हुए पापा शरारत से मुस्कुरा रहे थे.

(वैसे समझ तो वो भी रहे ही थे, कि एक कुंवारी पर जवान और कामुक लड़की अपने कमरे में रात में क्या ऐसा करती है जो वो अपने पापा को नहीं बता सकती,)

मैं इस कामुक बातचीत का पूरा मजा ले रही थी और फिर बोली

“पापा आप समझा करो न. लड़कियों की रात की बहुत सी बातें ऐसी होती है, जो उनका सीक्रेट होती है और किसी को बताने की नहीं होती.”

पापा मुस्कुरा पड़े

“बेटी मैं भी कोई बच्चा तो हूँ नहीं, समझ तो मैं गया कि तुम रात में अपने कमरे में क्या करती हो, पर तुम ऐसी लगती तो नहीं,”

पापा मुस्कुरा रहे थे और बात करते हुए लगातार स्कर्ट के ऊपर से मेरी जांघ सहलाते जा रहे थे।

उनके सहलाने से स्कर्ट थोड़ा ऊपर आ गयी थी जिसमें घुटनों के ऊपर मेरी जांघ भी थोड़ी दिखाई देने लगी थी।

हालांकि इससे आगे बढ़ने की हिम्मत अभी पापा की नहीं हो रही थी।

मुझे मौका मिल गया मैं तुरंत मुस्कुराते हुए बोली-

“अच्छा … और क्या जानना चाहते हैं आप बताइये तो मैं बता दूँ!”

पापा धीरे से बोले-

“जानना तो बहुत कुछ है, कहो तो बताऊँ?”

मैं मुस्कुराती हुई बोली-

“पहले बताइये तो सही … आपको स्कर्ट में देखने का मन था तो वह पहन ली. अगर कर सकूंगी तो बाकी भी करने की कोशिश करुंगी।”

पापा को सूझा नहीं कि वो क्या कहें तो बात को घुमाते हुए बोले

“सुमन! चाहे तुम जवान हो गयी हो पर मेरे लिए तो तुम सदा ही एक वही छोटी सी बच्ची हो जो स्कूल से आते ही मेरी गोद में चढ़ जाती ही और फिर मेरे लाख कहने पर भी मेरी गोद से उतरती ही नहीं थी, सदा कहती थी कि पापा मुझे आप की गोद में बैठना बहुत अच्छा लगता है, और अभी देखो कितने साल हो गए हैं जब से तुम मेरी गोद में आ कर नहीं बैठी हो,”

मैं समझ रही थी कि पापा के मन में क्या है, मुझे भी पापा को पटाने का यह एक और सुनहरी मौका लगा तो मैंने प्यार से कहा

“पापा मैं तो सदा ही आपकी वही छोटी सी बेटी हूँ. आप ही मुझे अपनी गोद में नहीं बिठाते. मेरा तो कितना मन करता है की मैं आपकी गोद में बैठूं. जैसे पहले बैठती थी,”

यह कह कर मैंने एक तरह से पापा को खुला इशारा कर दिया कि मैं उनकी गोद में बैठने को तैयार हूँ.

पापा के लिए भी यह एक मौका था. उन्होंने तुरंत बात को पकड़ लिया और बोले

“सुमन! मैं तो सदा तुम्हे गोद में बैठाने को तैयार हूँ. चाहो तो आज ही आ जाओ. पापा की गोद तो तुम्हारे लिए सदा तैयार है,”

यह कह कर पापा ने मुझे खुला आमंत्रण दे दिया और जिसे मैंने तुरंत लपक लिया.

मैंने मुस्कुरा कर कहा-

“पापा मुझे कभी मौका ही नहीं मिला आपकी गोद में बैठने का?”

पापा ने जांघ पर हाथ रखे हुए ही मुझसे हंसकर धीरे से बोले-

“वैसे सच तो यही है कि तुम्हें गोद में बैठाने का मौका नहीं मिला। मैं भी काफी व्यस्त रहता हूँ न। ”

फिर वो मुस्कुराते हुए बोले

” आओ आज अपने पापा की गोद में बैठ जाओ। कुछ दिन बाद जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो शादी के बाद तो अपने पति की ही गोद में बैठोगी मेरी गोद में थोड़े ही आओगी फिर.”

पापा ने बिलकुल साफ़ बता दिया कि वो मुझे एक बाप की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह गोद में बिठाना चाहते है. मैं तो तैयार थी ही,

दोअर्थी और कामुकता भरी बातचीत से अब हम दोनों पर धीरे-धीरे वासना का बुखार चढ़ने लगा था।

मेरी चूत भी थोड़ी-थोड़ी गीली होने लगी थी।

पापा मेरी जाँघ को धीरे-धीरे सहलाते रहे और धीरे धीरे उनका हाथ ऊपर ही ऊपर जा रहा था.

ऐसा लग रहा था कि जल्दी ही उनका हाथ चूत तक पहुँच जायेगा. और मैं मन ही मन कुढ़ रही थी कि हमेशा तो मैं पैंटी के बिना पापा के पास आती हूँ, और आज जब मौका है की पापा मेरी चुदाई कर दें, तो मैं पैंटी पहन कर आ गयी. खैर अभी कुछ नहीं हो सकता था तो मैं चुप ही रही.

पापा समझ गये कि अब मैं भी चुदासी हो रही हूँ और खुलकर मजे लेना चाह रही हूँ।

मेरी चुप्पी से पापा की हिम्मत बढ़ गयी.

वे अभी तक स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ सहला रहे थे पर इसके बाद उन्होंने धीरे से अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिया और सीधा मेरी नंगी जांघों को सहलाने लगे।

पापा के मेरी जांघ सहलाने से और लुंगी के नीचे तने लण्ड को देखकर मेरे ऊपर भी मस्ती छाने लगी और मेरी गीली हो चुकी चूत भी कुलबुलाने लगी थी।

मन तो कर रहा था कि टीशर्ट उठाकर चूची नंगी करके चूसने के लिए बोल दूँ, फिर लुंगी के अंदर हाथ डालकर सीधा लण्ड पकड़ लूँ और मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दूँ।

मेरी सांस तेजी से चल रही थी जिससे टाइट टीशर्ट में गोल-गोल चूचियां ऊपर नीचे हो रही थीं।

उत्तेजना में चूचियों के निप्पल तन गये थे जो टीशर्ट में साफ दिख रहे थे।

पापा एकदम ललचायी निगाह से मेरी चूचियों को देखते हुए स्कर्ट के अंदर हाथ डाले हुए मेरी नंगी जाघों को सहलाए जा रहे थे।

वे भी समझ चुके थे कि मैंने ब्रा नहीं पहनी है।

हम दोनों क्या बात करें … समझ में नहीं आ रहा था.

साथ ही हम दोनों ही समझ रहे थे कि आगे क्या होना है।

लेकिन कैसे शुरू करें … यह हम दोनों को ही समझ में नहीं आ रहा था।

उत्तेजना के चलते पापा के उनके होंठ सूख गये थे जिसे वह बार-बार जीभ से चाट कर गीला कर रहे थे।

उन्हें बार-बार होंठ चाटते देख मैंने धीरे से पूछा-

“प्यास लग रही है क्या पापा?”

पापा मेरी तरफ देखकर कामुक आवाज में धीरे से बोले-

“हाँ बेटा, होंठ सूख रहे हैं कुछ पीने का मन कर रहा है।”

मैं धीरे से बोली-

“पानी लाऊँ?”

कामुकता में पापा की आवाज कांपने लगी थी, वह मेरी चूचियों की तरफ देखते हुए बोले-

“पानी नहीं … कुछ और पिला दो बेटा!”

मैं भी एकदम मस्त चुदासी हो चुकी थी उत्तेजना के चलते मेरी आवाज भी हल्का से कंपकंपाने लगी थी और मैं धीरे से बोली-

“दूध पीएंगे?”

कामुकता और वासना के चलते मेरा चेहरा गर्म हो गया था और ऐसा लग रहा था कि चूत में चींटियाँ रेंग रहीं हों।

उधर वासना में पापा की आँखें लाल हो गयी थीं और उत्तेजना के चलते वह भी खुद पर काबू नहीं रख पा रहे थे।

वे इतना आगे झुक चुके थे और उनका चेहरा मेरी चूचियों के इतना पास था कि उनकी गर्म साँसों को मैं चूचियों पर महसूस कर रही थी।

वासना के नशे में पापा की आवाज़ भी हल्का सा कंपकंपाने लगी थी।

वे धीमी और कंपकंपाती आवाज में बोले-

“पिला दो बेटा!”

मैं :- “पापा फ्रिज का ठंडा दूध पिएंगे या गर्म दूध?”

पापा :- “बेटी हो सके तो ताज़ा दूध पिला दो.”

मैं :-“पापा ताज़ा दूध अभी कहाँ से मिलेगा?”

पापा :-“सुमन चाहो तो तुम पीला सकती हो, सब तुम्हारे ऊपर निर्भर है,”

मैं :-“पापा यह भी तो संभव है कि जहाँ से ताज़ा दूध आप पीना चाहते हों, वहां अभी दुध ही न आता हो,”

पापा :-“बेटी फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज है? शायद आ ही जाये”

और यह कह कर पापा फिर से मेरे मम्मों की ओर देखने लगे..

पापा के सीधा ही यह कहने से मेरी चूत में फिर से पानी आ गया.

पर अभी मेरी हिम्मत नहीं हो पायी की मैं अपनी टी शर्ट ऊपर उठा कर अपनी नंगी छाती पापा के मुंह में दे दूँ.

मेरे लिए खुद को रोक पाना अब बर्दाश्त के बाहर हो चुका था।

चूंकि टेबल सोफे से थोड़ी ऊंची थी तो मेरी चूचियां, पापा के मुंह के ठीक सामने थीं।

उत्तेजनावश मेरी चूचियों की निप्पल कड़ी हो गयी थीं जो टीशर्ट के ऊपर से साफ पता चल रही थीं।

पापा की निगाह बार-बार उसी पर जा रही थी।

टेबल सोफे के इतना पास था कि मेरे और पापा के घुटने आमने-सामने से एक दूसरे से टच कर रहे थे।

मेरी निगाह पापा के लोअर की तरफ गयी तो वहां पर उनके लण्ड का तनाव साफ दिख रहा था।

तनाव देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्होंने लोअर के नीचे अण्डरवियर नहीं पहनी है। ध्यान से देखने पर पापा के लौड़े का सुपाड़ा भी दिखाई दे रहा था.

ऐसे माहौल में मेरी चूत भी हल्का-हल्का पनियाने लगी थी।

मैं बिना कुछ बोले बस धीरे से हंस दी।

पापा समझ गये कि मेरी हंसी में भी हाँ है।

मुझे लग रहा था की बस अभी पापा मेरी टी शर्ट ऊपर करके मेरी चूचीयां नंगी कर देंगे और अपने मुंह में डाल कर चूसना शुरू कर देंगे.

मैं थोड़ा डर गयी और बात को पलटते बोली

फिर मैं बोली

“पापा वैसे मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो मैं आपकी गोद में बैठ जाती थी और आपने भी मुझे गोद में बहुत खिलाया था।”

पापा मुस्कुराते हुए बोले-

“मेरा तो अभी ये भी मन में है कि तुम्हें गोद में बैठा लूँ!”

इस बात पर मैंने भी जानबूझकर मजे लेते हुए कहा-

“हाँ … मैं तो अभी भी तैयार हूँ. आपका मन हो तो कहिए मैं अभी आपकी गोद में बैठ जाऊँ?”

ठरकी पापा की आँखों में वासना साफ झलक रही थी।

वे मुस्कुराकर बोले-

“अरे वाह … आ जाओ बेटा मेरी गोद में!”

मैंने कहा-

“तो इसमें कौन सी बड़ी बात है … अभी आपके गोद में बैठ जाती हूँ।”

मैं जान रही थी कि अभी हमारे पास काफी समय है, घर में हम दोनों बाप बेटी ही तो हैं और कोई आने वाला भी नहीं है.

और मैं भी अब थोड़ा मजा लेना चाह रही थी।

मैं मुस्कराती हुई खड़ी हो गयी।

पापा थोड़ा पीछे होकर सोफे पर पीछे टेक लेकर बैठ गये और अपने जांघों को फैलाकर मुझे गोद में बैठने की पूरी जगह दे दी।

मैं पापा की ओर पीठ किये हुए पापा की गोद में बैठने लगी.

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गोद में बैठते हुए मैंने पूरा टाइम लिया और आराम से झुक कर उनकी गोद में अपनी गांड राखी, मैं जानबूझ कर धीरे धीरे बैठ रही थी, ताकि पापा को मेरी गांड ठीक से दिखाई दे।

पर पापा ने तो उस मौके का ज्यादा ही लाभ उठाया. जब में गोद में बैठने लगी तो उन्होंने धीरे से मेरी स्कर्ट का पिछला कपडा ऊपर उठा दिया.

इस से मेरे चूतड़ नंगे हो गए. पापा को निराशा तो हुई क्योंकि उनको लग रहा था की मैंने पैंटी नहीं पहनी होगी और उन्हें मेरी नानाजी गांड देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा. पर मैंने कच्छी पहन राखी थी,

इस बात से वैसे तो पापा से अधिक मैं खुद निराश थी. काश आज मैंने पैंटी ही न पहनी होती,

वैसे मेरी पैंटी देख कर पापा ने एक हैरानीजनक काम किया, जिस से काफी हद तक मेरी पैंटी पहनने की गलती ढक गयी,

ज्योंही मैं पापा की गोद में बैठने लगी तो पापा ने धीरे से अपना लण्ड अपनी लुंगी से बाहर निकाल लिया और नंगा कर लिया.

(क्योंकि मेरी पीठ पापा की ओर थी तो मैं पापा की यह शरारत तो न देख सकी पर उनकी गोद में बैठते ही मुझे उनके नंगे लौड़े का एहसास हुआ.

पापा की गोद में बैठते ही लोअर के अंदर पापा के तने हुए लण्ड को मैं साफ महसूस कर रही थी जो ठीक मेरी गांड के नीचे था।

पापा के लण्ड को अपनी गांड पर महसूस करते ही मेरी चूत एकदम गीली हो गयी।

मैं जानबूझकर बोली-

“पापा अब तो हो गयी गोद में बैठाने की तमन्ना पूरी? अब उठ जाऊं?”

पापा ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के अगल-बगल से लाकर एक हाथ मेरे जांघ पर रख दिया और दूसरे हाथ को मेरे पेट पर रखकर कसकर मुझे पकड़ते हुए बोले-

“बस बेटा, थोड़ी देर और बैठी रहो ना ऐसे ही! अच्छा लग रहा है। कितनी देर के बाद तो अपने पापा की गोद में बैठी हो, थोड़ा अपने पापा का दिल तो भर जाने दो ”

मैं भी कहाँ उठना चाहती थी, यह तो मैं झूठमूठ हो बोल रही थी, मन तो कर रहा था की इसी तरह पापा की गोद में बैठी रहूं.

पापा अभी तक जहाँ स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जाँघों को सहला रहे थे अब वह स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर मेरी चिकनी नंगी जांघ को सहलाने लगे थे।

साथ ही अपने लण्ड को मेरी गांड पर दबाए हुए थे।

मैं- “अच्छा तो कब तक बैठी रहूंगी इसी तरह? आपको तो मजा आ रहा है।”

पापा- “प्लीज थोड़ी देर बैठी रहो ना … तुम्हें मज़ा नहीं आ रहा क्या?”

मैं मुस्कुराती हुई बोली- ” कुछ खास तो नहीं।”

अब मैं भी आराम से गोद में बैठी हुई मजे लेने लगी और बात करते हुए किसी न किसी बहाने अपनी गांड को लोअर के ऊपर से ही पापा के लण्ड पर हल्का-हल्का रगड़ रही थी।

वहीं बात करते हुए मैंने अपनी जांघों को दोनों ओर थोड़ा फैला दिया और पापा को सहलाने के लिए और जगह दे दी।

पापा भी समझ रहे थे कि अब मैं भी मजा लेने के मूड में आ गयी हूँ।

इससे पापा की हिम्मत थोड़ी बढ़ी और अब वे धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों को जांघों पर घुटनों की तरफ से ऊपर की और सरकाते हुए ले आए और जांघों के ऊपरी हिस्से सहलाने लगे।

पापा बोले- “काश, तुम मेरे साथ इसी तरह घर में ही रहती और रोज मैं तुम्हें इस तरह अपनी गोद में बैठाता!”

बात करते हुए मैं अपनी गांड को पापा के लण्ड पर हल्का-हल्का रगड़ती जा रही थी।

वहीं पापा भी अपने लण्ड को मेरी गांड पर दबाए हल्का-हल्का अपनी कमर को हिला रहे थे।

हम आपस में बातें भी कर रहे थे।

तभी पापा बोले- “बेटा, थोड़ा एक मिनट के लिए उठोगी तो मैं थोड़ा पैर ठीक कर लूँ फिर आराम से ठीक से गोद में बैठ जाना।”

मैंने ‘ठीक है’ बोलकर अपनी गांड को थोड़ा ऊपर उठा दिया.

तो पापा अपने पैरों को थोड़ा फैलाया और फिर ऐसा लगा जैसे मेरी स्कर्ट को पीछे से कुछ किए।

उसके बाद मुझसे बोले-

“हाँ अब बैठ जाओ बेटा!”

जैसे ही मैं वापस उनकी गोद में बैठी मैं समझ गयी पापा ने क्या किया है।

दरअसल पापा ने अपने लंड को एडजस्ट कर ठीक मेरी गांड के नीचे कर लिया था अब पापा के लण्ड का गर्म गर्म सुपाड़ा ठीक मेरी गांड के छेद पर था.

और सबसे बड़ी और हिम्मत की बात तो यह थी की पापा ने अपना लण्ड अपनी लुंगी से बाहर निकाल लिया था. शायद उन्हें लगा होगा की यदि वे अपना लण्ड लुंगी से बाहर करके नंगा भी कर लेते हैं तो उनके लौड़े और मेरी चूत के बीच फिर भी एक मेरी पैंटी का कपडा तो रहेगा ही,

हमारी कामुक बातचीत से पापा की हिम्मत और बढ़ गयी थी जिससे अब वह मेरी जांघ सहलाना छोड़कर मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया और बैठे-बैठे ही अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए अपने लण्ड को मेरी गांड पर रगड़ने लगे।

पापा ने बात करना बंद कर दिया था और उनके मुंह से धीमी-धीमी सिसकारी निकल रही थी।

मेरा भी मन अब बात करने में कम था और सारा ध्यान अपनी जांघों के बीच पनियायी चूत पर आ गया था जिसकी खुजली अब बर्दाश्त के बाहर हो रही थी।

मैं भी हल्का-हल्का कमर हिलाते हुए उनका साथ दे रही थी।

हम दोनों एकदम चुप थे बस हमारे शरीर हिल रहे थे।

अब पापा और मैं खुल कर गांड पर लण्ड रगड़ रहे थे.

हम दोनों की साँसे बहुत तेज चल रही थी,

पर चाहे पोर्न कहानिओं में कितना ही लिखा जाये, पर असल मैं और भारतीय समाज में बाप बेटी के बीच के सामाजिक सम्बन्धो और बंधनो का टुटना इतना आसान नहीं है,

मैं पापा की गोद में उनके लौड़े पर अपनी गांड घिसने की कोशिश कर रही थी और उधर पापा भी अपना नंगा लौड़ा मेरी गांड पर रगड़ रहे थे पर फिर भी वो तेजी और वो रगड़ाई नहीं हो पा रही थी,

मैं तेज तेज और ज्यादा मजा लेना चाहती थी, अब हम दोनों बाप बेटी जान तो रहे ही थे कि हम क्या कर रहे हैं, बस आपसी सम्बन्धो का ही बंधन था.

मैंने एक चाल सोची और पापा से कहा

“पापा मुझे याद है की बचपन में जब मैं आपकी गोद में बैठती थी तो आप मुझे गुदगुदी करते थे. और मैं बहुत हंसती और आपकी गोद में उछलती थी,”

पापा गोद में उछलने की बात से समाज गए कि मेरे मन में क्या है, यह उनके लिए भी एक सुनहरी मौका था.

पापा मेरी बगलों में हाथ डाल कर मेरी कांखों में ऊँगली घुमाते बोले

“मुझे सब याद है सुमन। मैं तो कब से तुम्हे उसी तरह गुदगुदी करना चाह रहा था. पर तुम एक काम करो, मेरी ओर मुंह करके बैठ जाओ फिर मैं तुम्हे गुदगुदी करता हूँ. ”

असल में अभी मेरी पीठ पापा की ओर थी, जिस के कारण उनका लण्ड मेरी गांड दी दरार में घिस रहा था. पापा शायद अब डायरेक्ट मेरी चूत पर हमला करना चाहते थे.

मैं तो तैयार थी ही, बस चुपचाप उठी और पापा की ओर मुंह करके बैठने लगी,

पापा ने फिर धीरे से अपना हाथ मेरे पीछे ले जा कर मेरी स्कर्ट को पीछे से ऊपर उठा दिया जिस से मेरी गांड फिर से नंगी हो गयी,

मैंने अपनी टाँगे पूरी चौड़ी कर ली ताकि मेरी चूत का मुँह पूरा खुल जाये,

मुझे अपने पर बहुत गुस्सा आ रहा था की बेवकूफ तुमने आज पैंटी क्यों पहनी, यदि न पहनी होती तो आज पापा द्वारा अभी गुदगुदी के बहाने से तुम्हारी चूत का उद्घाटन समारोह हो जाता.

पर फिर मैंने सोच पर यदि मैंने कच्छी न पहनी होति तो शायद फिर पापा भी अपना लौड़ा लुंगी से बाहर न निकालते। खैर अब जो भी है उसी से मजा लेते हैं और कोशिश करती हूँ की पापा आज मुझे चोद ही दें.

पापा मुस्कुराते हुए बोले – “सुमन! बोलो तो क्या मैं फिर से तुम्हे गुदगुदी कारु?”

मैं हँसते से बोली “पापा आप की मर्जी है,”

पापा को इशारा मिलते ही उन्होंने मेरी बगलों में हाथ डाल कर मुझे गुदगुदाना शुरू कर दिया.

मैं भी इस तरह नाटक करने लगी की जैसे मुझे बहुत गुदगुदी हो रही हो और मैंने हँसते हुए पापा की गोद में उछलना शुरू कर दिया.

पापा गुदगुदी तो थोड़ी कर रहे थे पर मैं उनकी गॉड में उछल ज्यादा रही थी,

असल में मैं चाह रही थी की पापा का लण्ड जो अब बहुत टाइट हो चूका था. और इस समय मेरी गांड पर रगड़ रहा था किसी तरह मेरी चूत के ऊपर आ जाये.

मैं हिलने के बहाने से अपनी गांड थोड़ी पीछे कर रही थी और अपनी चूत आगे ला रही थी,

पापा भी शायद मेरी इच्छा समझ गए थे. वो भी जानते तो थे ही की लौंडिया दाना चुगना चाह रही है, उन्होंने भी कोशिश करनी शुरू कर दी की किसी तरह लौड़ा जो मेरे चूतडों के नीचे दबा पड़ा है, बाहर आ जाये ताकी वो उसे मेरी चूत पर सेट कर सकें.

पापा ने एक हाथ से गुदगुदी करते हुए दूसरा हाथ हमारी जांघों के बीच लाया, मैंने पापा को मौका देने के लिए हंसने का नाटक करते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.

और अपनी टांगों पर जोर देते हुए अपनी गांड थोड़ी ऊपर उठा ली। और अपनी टांगें पुरी तरह से चौड़ी कर ली.

पापा ने तुरंत अपना लौड़ा मेरी गांड के नीचे से निकाला और मेरी चूत (जिसका मुंह अब पूरा खुल चूका था) की फांकों के बीच फंसा दिया.

ज्योंही पापा के लौड़े का गर्म गर्म सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह के बीच आया मेरे मुंह से एक जोर की आह निकल गयी. पापा के मुंह से भी उतने ही जोर की आह की आवाज़ आयी,

अब स्थिति यह थी की पापा का लौड़ा जो कि पूरी तरह से नंगा था. मेरी पैंटी में ढकी हुई चूत के मुंह में लगा हुआ था.

हम दोनों ही बाप बेटी जन्नत के साक्षात् दर्शन कर रहे थे और स्वर्गिक आनंद का अनुभव ले रहे थे.

पापा ने फिर से गुदगुदी करनी शुरू कर दी और इस बहाने से उन्होंने मेरी चूत में धक्के देने शुरू कर दिए.

मुझे भी बहुत ही मजा आ रहा था.

मैंने भी गुदगुदी का बहाना लेते हुए पापा के लौड़े पर अपनी चूत घिसनी शुरू कर दी.

हम दोनों बाप बेटी बहुत जोश में आ चुके थे और पापा जोर जोर से मेरी चूत में ऐसे धक्के लगा रहे थे की यदि मैंने पैंटी न पहनी होती तो अब तक तो कभी का पापा का पूरा लण्ड उनकी बेटी की चूत में जड़ तक घुस गया होता.

हम दोनों बाप बेटी गुद्गुदी कम और धक्का पेल ज्यादा कर रहे थे.

हम दोनों की ही सांसे बहुत तेज चल रही थी,

मेरी चूत में पानी आ रहा था और ऐसा लग रहा था की मेरा निकलने ही वाला है,

मैंने सोचा की अब जब इतना सब कुछ हो ही गया है तो शर्म कैसी?

और मैंने तेज तेज अपनी चूत पापा के लण्ड के सुपाडे पर रगड़नी चालू कर दी.

पापा के भी धक्के अब बहुत तेज और जोरदार हो गए थे. पापा ने इतना ध्यान रखा की धक्कों की रफ़्तार में भी उनके लण्ड का सुपाड़ा उनकी बेटी की चूत के मुंह से हिलने न पाए.

हम दोनों के मुंह से आह आह और हु हूँ की आवाज़ निकल रही थी,

दोनों का पानी चूतने ही वाला था.

मुश्किल से अभी 2 मिनट ही बीते होंगे कि तभी मैंने महसूस किया कि पापा ने मुझे जोर से चिपका लिया है और अपनी कमर को थोड़ा तेज हिलाने लगे हैं।

अभी मैं कुछ समझती … तभी अचानक उन्होंने अपने हाथ से मेरी गांड को पकड़ लिए और जोर से अपनी ओर खींच लिया. और अपने लण्ड को मेरी चूत के मुंह पर एकदम दबा दिया और कमर को एक तेज झटका देने के साथ उनके मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली- बस … बेटाआ आआ आआ … आआआ आआहहह हह!

पापा का यह आखिरी झटका इतना जोरदार था की पापा के लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह को पूरी तरह से खोलता हुआ लगभग २ इंच तक मेरी कच्छी को भी अंदर ही धकेलता हुआ घुस गया.

वो तो मेरी कच्छी पहनी थी पर पापा का दम इतना था की कच्छी भी बेचारी मेरी चूत में ही घुस गयी और पापा के लण्ड का सुपाड़ा पूरा मेरी चूत में घुस गया.

वो तो भगवान का शुक्र था की पैंटी का कपडा थोड़ा लचकदार था तो फटा नहीं बल्कि चूत के अंदर घुस गया.

वरना तो पापा का आखिरी धक्का इतना जोरदार था की यदि कपडा कोई और होता तो पापा के लण्ड का सुपाड़ा उसको फाड़के अंदर चला जाता.

और ऐसी स्थिति में फिर तो न जाने कितना लण्ड अंदर जाता. अभी तो सुपाड़ा ही घुसा था.

पापा ने मुझे इतनी जोर से अपने से चिपका लिया की मेरी छातिआं पापा की छाती में चिपक गयी.

पापा ने सुपाड़े ने मेरी चूत के अंदर अपना माल छोड़ना शुरू कर दिया.

पापा के लण्ड ने बहुत देर तक वीर्य के न जाने कितने फुहारे छोड़े.

पापा का वीर्य मेरी पैंटी के कपडे से फ़िल्टर हो कर मेरी चूत में जाता रहा. ज्योंही पापा का गर्म गर्म वीर्य मुझे अपनी चूत में महसूस हुआ, तो मेरे शरीर में भी अपने आप झटके लगने शुरू हो गए.

मेरी चूत ने भी अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.

अपने आप मेरी दोनों बाहें पापा के गले में लिपट गया और मैं भी जोर जोर से आ आ आ करती हुई झड़ने लगी,

आज पहली बार पापा ने मेरी चूत में अपन माल छोड़ा था.

हम दोनों बाप बेटी चाहे पूर्ण चुदाई नहीं कर रहे थे, पर जो भी हुआ था वो भी किसी चुदाई से कम नहीं था.

हम दोनों बाप बेटी आपस में चिपटे बैठे रहे.

पापा के लैंड का सुपाड़ा मेरी चूत में हे फंसा रहा. उसके बाद उनके शरीर में हल्के-हल्के दो-दीन झटके लगे और कांपते हुए वे मेरी पीठ से चिपके रहे।

मैं समझ गयी कि पापा मेरी चूत के अंदर ही झड़ गये हैं।

थोड़ी देर बाद हम दोनो की साँसे थोड़ी सामान्य हुई तो हमे यह एहसास हुआ की हमने क्या कर दिया है,

पापा ने थोड़ा सा अपने शरीर को पीछे किया और मैंने भी पापा के लण्ड सुपाडे को अपनी चूत से बाहर निकाला।

पापा का वीर्य और मेरा चुतरस मेरी चूत से बाहर निकल कर मेरी जाँघों पर बह रहा था.

मैं जल्दी से उनके गोद से उठकर सोफे पर आकर बैठ गयी कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी स्कर्ट पर उनके लण्ड का पानी लग जाए।

मैंने पापा की तरफ देखा तो वे आँखें बंद किये सोफे पर बैठे अपनी सांस को काबू में करने की कोशिश कर रहे थे।

उन्होंने धीरे से अपना लौड़ा अपनी लुंगी में ढक लिया (शायद अभी इतना कुछ हो जाने के बाद भी हमारे बाप बेटी के सम्बध की कुछ शर्म बाकि थी)

उनकी लुंगी का वो हिस्सा लण्ड के पास वीर्य से गीला हो गया था जो साफ पता चल रहा था।

पापा ने मुझे देखते हुए देख लिया और वे समझ गये कि जो कुछ हुआ है, वह सब मैं समझ रही हूँ।

जैसे ही हमारी निगाह मिली, हम दोनों हल्का सा मुस्कुरा दिये।

इसके बाद पापा बिना कुछ बोले तेजी से उठे और अपने कमरे की तरफ चले गये।

मैं भी उठ कर लड़खड़ाते क़दमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी,

मेरे दिल में ख़ुशी के अनार फूट रहे थे. आज पहली बार पापा ने मेरी चूत को अपने लण्ड से रगड़ा था और मुझे विश्वास था की चाहे आज मेरी पूरी और खुल कर चुदाई नहीं भी हो पाई है, पर जल्दी ही मैं अपने पापा से चुदवाने मैं कामयाब हो ही जाउंगी.

बस पापा के लण्ड के बारे में सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी. और मैं देर तक सोती रही,.

फिर शाम को पापा सोफे पर बैठे थे और वो सोफा किचन के दरवाजे के बिल्कुल सामने ही थे। और मैं रसोई में खाना बना रही थी, मुझे पता था कि पापा सामने हैं, तो मैं जान बुज कर अपनी गांड मटका रही थी।

आज अभी फिर से मैंने एक टी शर्ट और छोटी सी स्कर्ट को पहना हुआ था. उस के नीचे मैंने हमेशा की तरह ब्रा नहीं पहनी थी. हाँ स्कर्ट के नीचे पैंटी जरूर पहन ली थी,

(आखिर पूरा नंगा होना भी ठीक नहीं था.)

आज दिन में जब पापा ने मुझे अपनी गोद में बिठा कर गुदगुदी के बहाने से चूत में लौड़ा घुसाया था तब से मुझे लग रहा था की यदि मैं इसी तरह पापा को पटाने का कार्यक्रम चालू रखूँ तो जरूर जल्दी हो पापा से चुदवाने में कामयाब हो ही जाऊंगी।

आज तो पापा ने अपना लण्ड नंगा कर लिया था और जब पापा का माल छूटा तो आखिरी धक्के में तो उन्होंने मेरी कच्छी समेत ही अपना लौड़ा मेरे अंदर कम से कम सुपाडे तक तो घुसा ही दिया था.

इस सब से मुझे पूरा यकीन हो रहा था की मुझे अपना पटाने का काम करते रहना चाहिए, जल्दी ही पापा मेरी नंगी चूत में अपना नंगा लण्ड घुसेड़ कर चोद रहे होंगे,

(हालाँकि जब से मम्मी गयी है हुए मेरा पापा को पटाने का कार्यक्रम चल रहा है, मैं ब्रा और कच्छी तो पहन ही नहीं रही थी ताकि पापा को मेरी हिलती हुई चूचीआं ठीक से दिखाई देती रहे। मैं तो आज कल टी शर्ट भी खूब खुली खुली पहन रही थी. ताकि उसके नीचे से मेरी पेंडुलम की तरह हिलती हुई छाती पापा को ठीक से दिखाई दे जाये और पापा भी मेरे ३६ इंच के मुम्मों के खूब प्यार से दर्शन कर रहे थे.)

मैं काम करते समय जान भूज कर पापा की तरफ कम ही देखती थी ताकि पापा को यह लगे की उनकी बेटी का ध्यान तो काम पर ही है और वो प्यार से और बिना किसी डर के अपनी बेटी की जवानी का चक्षु चोदन कर सकें. पापा भी मेरे द्वारा दिए गए इस मौके का भरपूर लाभ उठा रहे थे और मेरी जवानी के मजे लूट रहे थे.

तो अभी भी पापा सोफे पर बैठे थे और टीवी देखने का नाटक कर रहे थे पर असल में वो मेरी हिलती हुई चुचीऑ देख रहे थे और मैं भी जान भुज कर उन्हें जरूरत से ज्यादा हिला रही थी। ताकि पापा को पूरा मजा आये और वो मेरी चुदाई कर दें.

घर में हम दो बाप बेटी ही तो थे तो मैं और पापा दोनों बिना किसी डर से लगे हुए थे.

मैंने पहले तो सोचा की दाल चावल बना लेती हूँ पर फिर सोचा की यदि आटा की रोटी बनाऊ तो आटा गूंधने के बहाने से पापा को अपने हिलते मम्मे दिखा सकूंगी, तो मैंने आटा गूँधना शुरू कर दिया और बहाने से ज्यादा हिलना शुरु कर दिया.

अब मेरी छाती जोर जोर से इधर उधर हिल रही थी और बिना ब्रा होने के कारण खुली साइज की टी शर्ट में पापा को पूरा मजा दे रही थीं. और पापा भी मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए अपनी बेटी की जवानी का रसास्वादन कर रहे थे.

मुझे भी इस तरह खाना बनाने में खूब मजा आ रहा था.

पापा का भी लौड़ा लोहे की तरह खड़ा हो चुका था जिसे वो अपनी लुंगी में हाथ डाल कर मसल रहे थे।

(हाँ जी आज पापा ने अपना मनपसंद पजामा न पहन कर लुंगी पहनी थी, क्योंकि लुंगी में लौड़े को चुपके से अंदर हाथ डाल कर वो सहला सकते थे और किसी को पता भी नहीं लगता। )

आज दिन में गोद में बिठाने वाले काम के बाद पापा का होंसला भी बहुत बढ़ गया था. उन्हें मालूम हो गया था की उनकी बेटी भी इस सेक्स के खेल में पूरी तरह से शामिल ही और चुदवाने को तैयार है,

पापा मुझे चोदना चाहते थे और मैं चुदवाने को तैयार थी ही, बस देर थी तो हमारे बाप बेटी के सामाजिकबंधनो के टूट जाने की, और मुझे लग रहा था की इस में भी अब ज्यादा देर नहीं है, खैर

काफी देर तक तो पापा मेरी हिलती चूचियां देखते रहे और लुंगी के अंदर हाथ डाल कर अपना लौड़ा सहलाते रहे. पर कितनी देर ऐसा कर सकते थे.

आखिर पापा के सबर का बंद टूट ही गया और वो उठ कर मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए, और प्यार से मुझे पीछे से आलिंगन में ले लिया और मैंने मैंने महसूस किया कि उनका लंड मेरी पीठ को छू रहा है।

लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा और पापा बोले कि आज मेरी सुमन क्या बना रही है।

तो मैंने कहा कि दाल चावल जो कि मेरे पापा के पसंदीदा हैं।

तो वो खुश हो गए कि वाह मेरी पसंदीदा चीज़ बन रही है।

तो मैने कहा कि हां जी.

अब अपने लंड का थोड़ा सा दबाव मेरी पीठ पर डाला लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा तो उनकी हिम्मत और बढ़ गई और उन्होंने अपने लौड़े का पूरा दबाब मेरी गांड पर डाल दिया.

पापा का लण्ड लोहे की तरह सख्त हो चूका था. और पापा ने थोड़ा हिल कर लौड़े को चूतड़ों से अब मेरी गांड की दरार में घुसा दिया और एक धक्का दे कर लौड़े को गांड की दरार में फंसा दिया.

अब घर में हम दोनों बाप बेटी ही तो थे, तो इतनी भी क्या जल्दी थी, कोई आने वाला तो था नहीं, तो मैंने सोचा की थोड़ा छेड़खानी चलने देती हूँ.

तो मैंने थोड़े गुस्से से कहा कि पापा आप क्या कर रहे हैं तो उन्होंने डर कर एक दम से अपनी कमर पीछे कर ली और लौड़ा मेरी गांड में से निकल गया.

तो मैं डर गई कि कहीं वो चले ही ना जाएं, इसके लिए मैंने अपनी गांड को थोड़ा पीछे कर दिया तन की उनको ये एहसास हो सके कि ये मेरा नकली गुस्सा है।

पापा समझ गए और उन्होंने अपने लंड का दबाव फिर से और बड़ा दिया मेरी गांड पर,

मुझे तो मजा आ रहा था और मैं तो खुद तैयार थी चुदवाने को बस नखरे दिखा रही थी।

फिर जब मैंने कुछ नहीं कहा उन्हें तो पापा मेरे से चिपक गए और अपने हाथ मेरी कमर के चारों ओर डाल कर मुझे पकड़ लिया.

और मेरी गर्दन पर चुंबन करने लगे। मुझे परम आनंद आ रहा था।

मैंने उनसे कहा कि आआह्ह्ह… पापा लगता है आपको माँ की बहुत याद आ रही है तो वो बोले कि तुम्हें कैसे पता तो मैंने कहा कि तभी आप मुझे तंग कर रहे हो तो वो बोले कि नहीं मुझे तो मेरी बेटी तुमपे प्यार आ रहा है

मैं:- हाँ मैं जानती हूँ यह आपका प्यार तभी तक है जब तक माँ नहीं आ जाती. फिर आप माँ के साथ ही चिपके रहेंगे और मेरी ओर तो देखेंगे भी नहीं.

पाप:- अरे सुमन ऐसा क्यों बोलती हो. मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. यह ठीक है की तेरी माँ के आ जाने के बाद मुझे कुछ समय उसे भी तो देना पड़ेगा, पर तुम्हे थोड़े ही न भूल सकता हूँ. तू तो मुझे बहुत प्यारी है,

कहते हुए पापा ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और मेरी गर्दन पर चूमने लगे.

मुझे बहुत आनंद आ रहा था.

पापा – हाय

मैं- पापा क्या हुआ?

(अस्ल में मैंने अपने चूतड़ थोड़ा पीछे को धकेल दिए थे तो पापा का लण्ड मेरी गांड में और अंदर घुस गया तो पापा के मुंह से आनद से आह निकल गयी थी,)

पापा – अच्छा खाना में आज क्या बना रही हो?

मैं – रोटी दाल सब्जी दही आदि

पापा – किस चीज़ की सब्जी??

मैं – बैगन की। आप को पसंद है??

पापा – हाँ. क्या तुम्हे बैंगन पसंद हैं?

मैं – हाँ मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं.

पापा- बैगन बहुत पसंद है और इसके इलावा और क्या क्या पसंद है?

मैं – पापा मुझे खीरा भी पसंद है,

(खीरा कहते ही पापा को मेरा वो चूत में खीरा लेना याद आ गया जब हम दोनों बाप बेटी गधे गधी की चुदाई देख कर मजे कर रहे थे)

पापा- कैसा बैगन और खीरा पसंद है? बैंगन लम्बा चाहिए या मोटे वाला गोल?

मैं – पापा खीरा तो मुझे लगभग ७-८ इंच लम्बा और लगभग ३-४ इंच मोटा पसंद है, पर मुझे गोल वाला बैंगन पसंद नहीं। बैंगन भी मुझे लम्बा ही चाहिए. ज्यादा मोटा मुझे सूट नहीं करता.

पापा- बैंगन अधिकतम कितने साइज़ तक ले लेती हो?

मैं – चुप बेशरम, आप क्या बात कर रहे हो, क्या मतलब की मैं ले लेती हूँ.

(पापा ने दो अर्थी बात करी थी, ले लेती का मतलब चूत में लेना भी हो सकता था और बाजार से ले लेना भी, पर यह बात करते हुए पापा शरारत से मुस्कुरा रहे थे तो उनका मतलब साफ़ ही था. मैं भी अब इस दो अर्थी बात में मजा ले रही थी,)

पापा- बताओ ना प्लीज

मैं – नहीं

पापा- मत बताओ जाओ

मैं – नाराज़ मत होइए।

पापा- तो बताओ

मैं – बड़ी साइज़ का बैंगन और खीरा मुझे पसंद है,

पापा- कितना

मैं – 7 इंच तक लम्बा चल जाता है,

पापा- और मोटा?

मैं-3 इंच, इस से छोटा हो तो मजा नहीं आता.

पापा :- मजा नहीं आता क्या मतलब?

मैं :- (शरारत से मुस्कुराती हुई) मतलब सब्ज़ी अच्छी नहीं बनती, आप क्या समझ रहे हैं?

पापा – (बात को घुमाते हुए) तुम्हारा पसंदीदा फल क्या है

मैं – केला और गन्ना और आपका पापा?

पापा – आम और तरबूज़

मैं:- मन कर रहा है क्या?

पापा- आम खाने का मन कर रहा है, यदि खाने को न मिले तो चूसने में भी मुझे बड़ा मजा आता है.

मैं- अभी रात को कहा आम मिलेगा पापा

पापा – आम चूसने को न सही देखने को मिल जाए तो वी चलेगा

मैं – वैसे आपको कैसा आम पसंद है

पापा- बड़े-बड़े आम पसंद है

मैं- कचे या पक्के

पापा – आं तो जितना बड़ा या उतना चूसने में मज़ा आता है??

मैं – बड़े साइज़ के आम या तरबूज़ संभाल लोगे पापा??

पापा – मौका दो फिर पता लगेगा कि कैसे निचोड़ के रस पिता हूं आमों का.

(मैंने फिर बात थोड़ा घुमा दी )

मैं – मुझे बड़ा या मोटा केला बहुत पसंद है और बड़ा या मोटा गन्ना जिसका रस पूरा भरा हो.

पापा:- सुमन! मेरा केला खाना चाहोगी,

(मैं एकदम हैरान हो गयी कि यह तो पापा ने सीधा ही लण्ड खाने को बोल दिया. तो मैंने उनकी तरफ देखा हैरानी से )

पापा:- मेरा मतलब है मैं यदि बाजार से केला ले आऊं तो तुम खाना चाहोगी आज रात को?

मैं:- पापा आप मुझे केला दो तो सही, में तो केला खाने को बहुत उत्सुक हूँ.

इस तरह मैंने पापा को साफ़ साफ़ इशारा दे दिया की मैं उनसे चुदने को तैयार हूँ. अब मैं लड़की जात आखिर इस से ज्यादा और कितना खुल कर बोल सकती थी,

पापा का लौड़ा मेरे यह कहते ही एकदम झटका मरने लगा.

मुझे लगा की कहीं अभी पापा मुझे किचन में ही न छोड़ दें.

मैंने बात को घुमाते हुए फिर नाटक किया और पापा को बोली

“पापा मेरे पेट पर खुजली हो रही है, मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है, मैं अपनी पेट को खुजला नहीं सकती, आप प्लीज मेरे पेट पर थोड़ा खुजला दीजिये.”

पापा ने अपने हाथ मेरे कन्धों से उतार कर मेरी टी शर्ट के अंदर आगे की तरफ से डाले और मेरे नंगे पेट पर रखे.

पापा के गर्म गर्म हाथ अपने नंगे पेट पर महसूस करते ही मेरी काम अग्नि और भड़क उठी,

पापा धीरे धीरे मेरे पेट को सेहला रहे थे.

हम दोनों को अच्छा लग रहा था. मैंने पापा को शरमाते हुए से कहा

“पापा खुजली थोड़ा ऊपर हो रही है, थोड़ा ऊपर कीजिये ”

पापा ने अपने हाथ थोड़ा ऊपर तक किये. अब उनके हाथ मेरी चूचियों से बस एक आध इंच ही दूर थे.

पापा भी मेरी टी शर्ट में देख सकते थे की मेरी चूचियों खूब हिल रही है और मैंने ब्रा नहीं पहनी,

तो पापा अपना हाथ और ऊपर करने में थोड़ा झिझक रहे थे.

अब बात इतनी दूर तक आ गयी थी, तो यह तो मेरे लिए सुनहरी मौका था.

मैंने पापा को फिर कहा

“अरे पापा और ऊपर खुजली है,”

पापा ने ज्यों ही अपने हाथ ऊपर को किये तो मेरी नंगी चूचियों पापा के हाथ से टकरा गयी.

चूचियों को पापा का हाथ लगते ही मैं एकदम उछाल पड़ी और मेरे उछलते ही मेरी दोनों नंगी चूचियों सीधे पापा की हथेलियों में आ गयी, और पापा ने भी एकदम अपनेआप अपने हाथ कस लिए.

अब मेरी दोनों चूचियों पापा के हाथ में थी, पापा ने भी मौके का फ़ायदा उठाते हुए, मेरी चूचियों को अपनी मुठी में भर लिया।

एकदम से पापा के हाथ में मेरे मम्मे आ गए तो अपने आप पापा के हाथों ने मेरी मम्मों को सेहला दिया. और खुदबखुद पापा की उंगलिया मेरे मुम्मों के निप्पल पर आ गयी, इस से तो पापा भी थोड़ा घबरा गए, क्योंकि उन्होंने जानबूझ कर तो मेरी चूचियां पकड़ी नहीं थी, वो तो मैंने ही उछल कर उनके हाथ में दे दी थी,

(वास्तव में जब से मैंने पापा को पटाने का अपना यह अभियान शुरू किया था, तो यह पहली बार था की पापा के हाथ में मेरी नंगी चूचियां थी, अभी तक हम लोग कपड़ों के ऊपर से ही मजे ले रहे थे. आज पहली बार पापा ने मेरी नंगी छतिया दिन के उजाले मैं और हम दोनों के पूरे होशोहवास में पड़की थी,)

पापा मेरे मम्मे छोड़ने ही वाले थे की मैंने एक सेक्सी सी आह भरी आवाज़ निकाली.

पापा को थोड़ा सा होंसला हुआ, की मैं नाराज़ नहीं हूँ.

तो पापा ने भी हिम्मत करते हुए अपने हाथ पीछे नहीं किये और अपने हाथों में ही मेरी छातियों को पकडे रखा.

डर के कारण पापा छातिओं को सेहला या दबा तो नहीं रहे थे पर बस उन पर हाथ रखे रहे.

मैंने बिना हिले जुले पापा को कहा

“पापा आपने मेरे पेट पर खुजली करनी थी पर आप ने तो मेरी नंगी छातियां ही पकड़ ली ”

यह कहते भी मैंने अपनी छातियाँ उनके हाथों में ही रहने दी. अब तक पापा का भी होंसला पूरा बढ़ चूका था.

वो भी समझ गए थे कि चाहे यह घटना जानबूझ कर हुई हो या अनजाने में पर उनकी बेटी नाराज़ तो बिलकुल नहीं है,

तो पापा ने मेरी चूचियां धीरे धीरे सेहलनि और अपनी हथेली से दबानी शुरू कर दी,

मैंने भी कोई इतराज जैसा न किया और चुपचाप खड़ी पापा से पहली बार नंगी चूचियां दबवाने का मजा लेती रही,

पापा बातचीत को जारी रखते हुए बोले

“सुमन! मैंने तुम्हारी छाती नहीं पकड़ी यह तो तुम्हारे उछलने से मेरे हाथों में आ गयी, और यह क्या है की तुम ब्रा नहीं पहनती हो?”

पापा को सब पता था कि मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई है पर वो तो सिर्फ बातचीत का जरिया था.

मैं उसी तरह चुपचाप खड़ी रही और पापा मेरी चूचियां धीरे धीरे सहलाते और हौले हौले मसलते रहे.

मुझे अपने पापा से अपनी चूचियां मसलवाने में इतना आनंद आ रहा था की मेरी तो जैसे आनंद से आँखें ही बंद हो गयी,

अब पापा ने भी होंसला करके अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पलों के इर्द गिर्द कस ली और अपने अंगूठों और ऊँगली की मदद से मेरे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया.

मेरे मुंह से अपने आप आह आह की आवाज़ निकल गयी पर न तो मैंने अपनी चूचियां को छुड़ाने की कोई चेष्टा की और न ही पापा ने मेरी चूचियां को छोड़ा।

कहीं पापा चूचियाँ मसलना छोड़ न दें तो मैंने बात को जारी रखते हुए कहा.

“पापा गर्मी बहुत है. इसलिए मैं ब्रा नहीं पहनती. हाँ नीचे कच्छी जरूर पहनी है,”

पापा को भी बात में मजा आ रहा था तो वो बोले

“सुमन! तुम झूट बोल रही हो. जब तूने ब्रा नहीं पहनी तो जरूर कच्छी भी नहीं पहनी होगी,”

मैंने झूठमूठ नाराज़ होने का नाटक करते हुए कहा

“पापा! आप अपनी बेटी को झूटी क्यों कह रहे हैं. मैं कह रही हूँ न कि मैंने चड्डी पहनी है तो पहनी है, आप चाहे तो चेक कर सकते हैं. ”

पापा की आँखों में एक शैतानी चमक आ गयी, उनके लिए तो यह एक भगवान् का दिया हुआ सुनहरी मौका था जिसे वो किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकते थे.

पापा नशीली से आवाज़ में बोले

“सुमन! मुझे चैलेंज मत करो. मैं सिद्ध कर दूंगा की तुमने ब्रा तो पेहनी है ही नहीं और चड्डी भी नहीं पहनी है,”

मैं इठलाती हुई बोली

“पापा आप को में दिखा तो नहीं सकती कि मैंने पैंटी पहनी है पर आप चाहें तो नीचे हाथ से छू कर चैक कर सकते है की मैंने कच्छी पहनी है,”

पापा बोले

“ठीक है मैं अभी तुम्हारा झूठ उजागर करता हूँ.”

यह कह कर पापा ने अपना एक हाथ मेरी चूची से हटा कर नीचे लाया

(दुसरे हाथ से पापा दूसरी चूची सहलाते और निप्पल को दबाते रहे. आखिर वो यह मजा क्यों छोड़ देते?)

फिर पापा ने वो नीचे वाला हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाला और मेरी नंगी जांघ पर रख दिया.

मेरे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गयी,

पापा धीरे धीरे मेरी नंगी जांघ को सहलाते हुए अपना हाथ ऊपर लाये.

मैं तो डर गयी और मुहे लगा कि अब पापा मेरी चूत पर हाथ फेर देंगे. पर जब पापा से चुदवाने का मन में ठान ही लिया है तो आखिर एक दिन तो यह होने ही है इसीलिए मैं अपने होंठों को कस के दबाये हुए चुपचाप कड़ी रही,.

मेरा दिल धाड़ धाड़ बज रहा था.

फिर पापा ने अपना हाथ और ऊपर किया और फिर वो हो गया जिस के लिए मैं न जाने कब से सोच रही थी,

……

पापा ने ज्यों ही हाथ ऊपर किया उनका हाथ मेरी चड्डी में ढकी हुई चूत पर आ गया.

(अब यह पापा को ही पता होगा की उन्होंने जानबूझ कर चूत पर हाथ डाला या अचानक पर उनके हाथ में मेरी चूत आ गयी )

जैसे ही पापा का हाथ मेरी चूत पर लगा, मैं उछल पड़ी. मैंने यह तो सोचा था कि पापा मेरे साथ शरारत करेंगे पर यह नहीं सोचा था की वे तो सीधा चूत पर ही हाथ रख लेंगे.

खैर ज्योंही मैं चूत पर हाथ लगने से उछली, पापा के हाथ अपने आप मेरी चूत पर कस गए और उन्होंने कच्छी समेत मेरी चूत अपनी महती में भर ली,

मैं भी डर सा गयी क्योंकि हालाँकि मैं तो यही चाहती थी कि पापा मुझे चोद दें पर अभी इतना हो जायेगा यह मन में भी नहीं था. मैं तो सिर्फ शरारत कर रही थी,

पापा को भी जब मेरी चूत अपनी मुठी में महसूस हुई तो अपने आप उनके हाथ की उंगलिया कस गयी और मेरी चूत उनके हाथ में दब गयी

पापा ने बात को संभाला और हँसते और बात को हलके मूड में लाते हुए बोले

“अरे सुमन! तूने तो सच में ही पैंटी नहीं पहनी है, मैं तो समझ रहा था की तू झूठ बोल रही है,”

पापा अब धीरे धीरे अपनी मुठी में मेरी चूत को मसल सा रहे थे,

मैं डर गयी, मैं पापा को कहना चाहती थी की अपने हाथ से मेरी चूत छोड़ दें पर शर्म के कारण मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे,

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ या क्या बोलूं,

इधर जब पापा ने मुझे जब कोई इंकार या इतराज़ करते न पाया तो उनका भी होंसला बढ़ गया और वो चुपचाप अपने हाथ मेरी चूत पर फेरते रहे और अब तो पापा ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूत की दरार में फेरनी शुरू कर दी.

अब तक मेरी भी सांसे उखड़ने लगी थी, मैं दिल ही दिल में तो चाह रही थी कि पापा इसी तरह मेरी चूत को मसलते रहें क्योंकि चूत पर पापा का हाथ पहली बार पड़ा था.

और अब तो इस से भी आगे बढ़ कर पापा मेरी चूत में ऊँगली उसकी दरार के साथ साथ सेहला रहे थे. जिस से मुझे बेपनाह आनंद आ रहा था.

यह तो मैं ही जानती हूँ की मैं किस तरह अपने को संभाले हुए थी,

तो मैंने भी पापा का हाथ नहीं हटाया या कोई इतराज़ दिखाया और पापा को बोली

“पापा आप ही मुझे झूटी कह रहे थे, मैं तो शुरू से ही कह रही थी कि मैंने पैंटी पहनी हुई है, आप ही मुझे नंगी सिद्ध करने पर तुले हुए थे. अब आप गलत सिद्ध हो गए न ”

यह कह कर मैं पापा को देख कर मुस्कुराने लगी,

पापा को शायद डर था की मैं उनसे अपनी चूत न छुड़वा लूँ तो बाप को दूसरी ओर घुमाते हुए बोले

“सुमन! तुम्हारी कच्छी का कपडा तो बहुत ही अच्छा लग रहा है. मैं तो समझता था की तुम कोई सूती कपडे की कच्छी पहनती होगी पर यह तो कोई मखमली या रेशमी कपडा लगता है, इस को छूने में बहुत अच्छा लग रहा है, ”

(मैं जानती थी की पापा असल में बहाने से मेरी कच्ची को छूते रहना चाहते हैं. )

यह कहते हुए पापा ने फिर से मेरी चूत को अपनी मुठी में मसलना शुरू कर दिया.

अब मेरी चूत के लिए यह सब सहन करना बहुत भारी हो रहा था. पहली बार पापा का हाथ अपनी चूत पर पा कर मेरी चूत ने तो पानी छोड़ना शुरू कर दिया था. मेरी चूत पापा के हाथों में इतनी गीली हो गयी थी कि मुझे डर था की कहीं मेरा पानी पैंटी से बाहर आ कर पापा के हाथों पर न लग जाये।

वैसे भी मुझे समझ नहीं आ रही थी की अब क्या करूँ या अगला क्या कदम उठाऊं तो तो मैंने पापा के हाथों से अपनी चूत छुड़वाने के बहाने से ऐसे ही हिलना शुरू कर दिया. क्योंकि मुझे इतनी शरम आ रही थी की पापा को कैसे कहूं कि अब तो आप ने मेरी कच्छी को चैक कर लिया है तो अब अपना हाथ हटाइये।

मुझे कुछ न बोलते देख कर पापा का होंसला बढ़ गया और उन्होंने अपनी एक ऊँगली अब मेरी पैंटी की साइड से नंगी चूत पर घुसाने की कोशिश करी।

ज्योंही पापा ने अपनी ऊँगली पैंटी की साइड से अंदर घुसाई और वो सीधे मेरे भगनासे पर लगी,

पापा की ऊँगली भगनासे पर पड़ते ही मैं जोर से उछल पड़ी और मेरे मुंह से अपने आप जोर की आह (आनंद पूर्ण )निकल पड़ी,

मैं इतनी जोर से उछल गयी की पापा की न केवल ऊँगली मेरी नंगी चूत से बहार आ गयी, बल्कि उनका हाथ ही मेरी पैंटी से निकल गया.

(हालाँकि पापा दुसरे हाथ से तो मेरी नंगी चूची सहलाते रहे और दबाते रहे )

(मैं मन ही मन बहुत पछतायी पर क्या हो सकता था. अब मैं अपने पापा को यह तो कह नहीं सकती थी की पापा फिर से अपनी ऊँगली मेरी नंगी चूत पर फेरिये )

पापा भी उदास से हे गये और बोले

“अरे बेटा क्या हुआ. उछल क्यों गयी. दर्द हुआ क्या?”

मुझे एकदम एक बहाना सा मिल गया और मैं सर हिलाते हुए बोली

“हाँ पापा. मेरी जांघों के जोड़ पर पैंटी की रगड़ से रशेस हो गए है और जांघों के जोड़ पर लाल लाल हो गया है, हाथ लगने पर दर्द होता है,”

पापा बोले “सुमन! यह सिंथैटिक पैंटी पहनने के कारण हैं. पैंटी के किनारे लग लग कर रेशेस हो जाते हैं। इस से बचने का एक ही इलाज है की तुम कच्छी न पहना करों और अपने शरीर के इस भाग को थोड़ी हवा लगने दिया करो।

मुझे कोई रेशेस तो थे नहीं. वो तो मैंने ऐसे ही बात बना दी थी, पर अब क्या करती यह तो कह नहीं सकती थी की पापा मैं तो झूठ बोल रही थी, सो ऐसे ही बात को आगे चलाते बोली

“पापा वो तो मैंने आज ही पैंटी पहन ली थी वरना तो मैं ऐसे ही रहती हूँ. खासकर घर में तो बहुत कम पैंटी पहनती हूँ. मैंने दवाई भी काफी लगाई है पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आप ही बताइये की मैं इस का क्या इलाज़ करूँ?”

पापा ने थोड़ी देल सोचा. पता नहीं वो कोई दवा सोच रहे थे या कुछ और.

वैसे मुझे लगता है कुछ और ही सोच रह होंगे, अपनी जवान बेटी की नंगी चूत पर हाथ फेरने से किस मर्द को कोई दवाई ध्यान में आएगी, ऐसे मौके पर दवाई नहीं बल्कि चुदाई याद आती है,

खैर। पापा को शायद कोई कामुक रास्ता सूझ गया और बोले

“सुमन! तुमने देखा होगा कि कई बार जानवरो को कोई जखम हो जाते है, अब वे बेचारे तो कोई दवाई नहीं ला सकते और न ही उन्हें कोई डॉक्टर मिलता है, तो दुनिया के सारे जानवर और पक्षी एक बड़ी ही आसानी से उपलब्ध दवा का इस्तेमाल करते हैं. जिस से वो शर्तिया ठीक हो जाते हैं और उनके बड़े से बड़े जख्म भी ठीक हो जाते हैं यह रेशेस तो उसके सामने क्या चीज है?”

(यह सब कहते हुए भी पापा ने मेरी वो नंगी चूची न छोड़ी और उसे मसलते रहे. मैं भी चुपचाप उस का आनंद लेती रही, कि चूत मसलवाने का मजा तो गया पर यह मजा तो मिलता रहे.)

मैंने हैरान हो कर पूछा

“पापा वो दवा क्या है,?”

पापा :- “बेटी वो दवा है मुंह की लार या थूक। तुमने देखा होगा की जानवर के जहाँ जख्म होता है, वो अपनी जीभ से उसे वहां पर चाटता रहता है, मुंह के लार में सबसे अच्छा एंटी सेप्टिक होता है जिस से जख्म भर जाता है, इंसान के मुंह के लार में भी वही गुण होता है, पर हम पढ़े लिखे लोग अपने जख्म को चाटना ठीक नहीं समझ कर बाज़ार से दवा खरीद कर ले आते है, जिस से पैसे भी बेकार खर्च होते हैं और दिक्कत भी ठीक नहीं होती. {”

मैं अभी भी पापा का प्लान नहीं समझ पाई थी, तो हैरानी से बोली

“पापा ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना. हाँ जानवरों को कई बार अपने जख्म चाटते देखा हैं पर मैं इसका कारण नहीं जानती थी, क्या इंसानो में भी ऐसा होता है,?”

पापा बात को आगे बढ़ाते बोले

“हाँ तो और क्या. तुम्हारी माँ को भी कई बार ऐसे ही रेशेस हो जाते हैं तो मैं तो कभी कोई दवाई नहीं ला कर देता. और उन्हें मुंह के लार या थूक से ही ठीक करने को बोलता हूँ. हालाँकि जांघो के रेशेस की जगह ही कुछ ऐसी है की इंसान का अपना मुंह वहां तक नहीं जा पाता, वो तो खैर मेरी बीवी है, तो जब भी तुम्हारी माँ को रेशेस होते है तो मैं तुम्हारी माँ की जांघें अपने मुंह से चाट देता हूँ जिस से उसकी रेशेस बहुत ही जल्दी ठीक हो जाती हैं तुम भी अपने मुंह की लार से उस जगह पर चाटो तो बहुत जल्दी ठीक हो जाएँगी,

मैं अभी भी पापा की चाल नहीं समझ पाई थी, तो पूछा

“पापा मेरे रेशेस मेरी जांघों के जोड़ पर हैं. वहां तो मेरा मुंह नहीं जा सकता. तो यह इलाज तो संभव नहीं हैं.”

पापा मुझे समझने के दिखावे से बोले

“सुमन! हाँ यह तो एक समस्या है, यह तो जगह ही ऐसी है कि इंसान खुद तो चाट या चूस नहीं सकता. किसी दुसरे को ही करना पड़ेगा. अब तुम्हारी माँ तो है नहीं वरना वो ही तुम्हारी जांघों को चाट कर तुम्हारी तकलीफ ठीक कर देती. जैसे मैं उसकी ठीक करता था. तुम्हारी माँ तो मेरी बीवी है, तो मैं चाट लेता था पर तुम तो मेरी बेटी हो और वो भी जवान, तो मैं तो चाह कर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता. वर्ना मैं ही तुम्हारी जाँघे चाट कर तुम्हारे रेशेस ठीक कर देता.”

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अचानक से जैसे मेरे दिमाग में बम सा फूटा, अब मैं समझ गयी की पापा तो इस बहाने जाँघे चाटने का इशारा कर रहे हैं और मैं बेवकूफ बात को समज ही नहीं रही,

यह तो पापा से अपनी नंगी जाँघे चटवाने का एक सुनहरी मोका और बहाना था.

अब मैंने बात संभाली और बोली

“पापा मैं तो इस रेशेस से बहुत परेशान हूँ. कोई बात नहीं आप कोई गैर तो हैं नहीं. अब क्या करें मम्मी तो घर पर है नहीं तो आप ही मेरी मदद कर दीजिये और जैसे आप मम्मी की रेशेस चाट कर ठीक कर देते थे उसी तरह आप मेरी भी जांघें चाट दें. पर एक बात है की मुझे आपके सामने इस तरह अपनी जंघे नंगी करके लेटने में शर्म आएगी तो आप रात को अँधेरे में मेरी रेशेस चाट देना. ठीक है न?”

असल में मैं जानती थी की चाहे हम बाप बेटी अपनी कामुकता में कितना भी आगे आ गए हों पर फिर भी रौशनी में मैं उनके आगे नंगी हो कर नहीं लेट सकती थी, और दुसरे मेरे मन में एक और भी बात थी की अँधेरे में यदि पापा मेरी जांघें चाटेंगे तो शायद अँधेरे के बहाने से मेरी चूत पर भी जीभ फेर दे. या फिर शायद आज ही मेरी पापा से चुदाई का शुभारम्भ हो जाये.”

पापा को भी यह बात ठीक लगी,उनके लिए भी यह ही एक लॉटरी लगने की तरह था की मैं उनकी चाल में फंस रही थी और उनसे अपनी जाँघे चटवाने को तैयार हो गयी थी, पर उन्हें क्या पता था की यह तो मेरे लिए भी ऐसा था की जिसे कहते हैं न की बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना.

पापा के मन में तो लड्डू फुट रहे थे की आज उन्हें अपनी बेटी की जांघों के जोड़ पर चाटने का मौका मिलेगा.

तो पापा ने सोचा की यह सब के लिए जब मैं तैयार हो ही गयी हूँ तो शायद मेरे मन में भी वही सब है जो उनके खुद के मन में है, तो मेरे को थोड़ा और टटोलते हुए बोले

“सुमन! अभी जब मैंने तुम्हारी कच्छी चेक करने के लिए तुम्हारे नीचे (पापा को चूत कहने में झिझक आ रही थी) हाथ लगाया था तो में पाया की तुम्हारे नीचे काफी बाल हैं. तो तुम एक काम करना कि अभी खाना बनाने के बाद अपने वो नीचे वाले बाल अच्छी तरह से साफ़ कर लेना क्योंकि वर्ना जब मैं रात अँधेरे में तुम्हारी जांघें चाटूँगा तो मेरे मुंह में तुम्हारे बाल न आ जाएँ या चुभ जाएँ. अब तुम्हारी माँ तो अपने नीचे के बालों को बिलकुल साफ़ रखती है तो यह दिक्कत नहीं आती. ”

मैं समज गयी की पापा रात में मेरी चूत चाटना चाहते हैं. मैं तो उन से भी ज्यादा तैयार थी,

मैं समझ गयी थी कि पापा इस मौके को किसी भी कीमत पैट छोड़ेंगे नहीं और न ही मैं इस मौके को हाथ से जाने देने वाली थी, पर पापा को छेड़ते हुए बोली

“पापा मेँ भी अपने नीचे के बाल साफ़ ही रखती हूँ. पर हाँ अभी चार पांच दिन हो गए हैं सफाई किये हुए. तो थोड़े थोड़े से बढ़ गए हैं. पर इतने ज्यादा नहीं की मुंह में आ जाएँ. और वैसे भी आपने तो मेरी टांगों के जोड़ पर यानि मेरी कमर के पास ही तो चेतना है तो वो वाले बाल साफ़ करने की क्या जरूरत है, वहां तो आपने मुंह लगाना नहीं है,”

यह कहते हुए मैं शरारती सी मुस्कुरा रही थी, पापा समझ तो सब रहे थे. पर वो बोले

“सुमन यह ठीक है की मैंने तुम्हारी जांघों का जोड़ पर ही चाटना है पर तुम अँधेरा कर के चटवाने की बात कर रही हो. तुम्हारी माँ तो रौशनी में चटवाती है तो कोई दिक्कत नहीं. पर अँधेरे में दिखाई तो देगा नहीं. तो यदि अँधेरे में गलती से जीभ इधर उधर भी कहीं लग गयी तो बाल न चुभें तो इसलिए मैं कह रहा था की तुम नीचे वाले बाल भी साफ़ कर लो ”

मैं मन ही मन बोली – पापा मैं जानती हूँ की जीभ मेरी जाँघों पर फिरे या न पर यह आपकी “इधर उधर” तो जरूर फिरेगी. और मैं भी यही चाहती हूँ। आप जांघों पर चाहे न चाटना या कम चाटना पर यह “इधर उधर ” जरूर चाटना.”

तो मैं मुंह सा बना कर बोली “पापा मैं ब्लेड से सफाई नहीं करती बल्कि क्रीम से करती हूँ. और अभी मेरी क्रीम ख़तम है, मैं कल बाजार से लाने ही वाली थी. आज आप ऐसे ही काम चल लीजिये अगली बार मैं अच्छे से साफ़ करके रखूंगी,”

पापा की तो बांछें ही जैसे खिल गयी। यानि मैंने उन्हें खुद ही ऑफर कर दिया था की यह एक ही बार की चटवाई नहीं है, उन्हें अपनी बेटी की “इधर उधर” चाटने का मौके बाद में भी मिलेगा.

हम दोनों के मन में लड्डू फुट रहे थे.

अब मुझे पापा से भी अधिक रात का इंतज़ार था और पापा को मेरे से ज्यादा रात की इंतजार।

मैंने पापा को कहा

“तो ठीक है पापा, हमारा रात का प्रोग्राम पक्का. अब मैं जल्दी से आटा गूंध लूँ, ताकि हम जल्दी से खाना खा कर आप मेरी रेशेस ठीक कर सकें.

पापा:- हाँ बेटी जल्दी से आटा गूंध लो ताकि फिर हम खाना खा कर थोड़ी देर आराम कर सकें फिर रात को तुम्हारी रेशेस भी तो ठीक करनी हैं.

मैं:- हाँ पापा मैं अब जल्दी से आटा गूंधती हूँ.

पापा अभी भी एक हाथ से मेरी नंगी चूची को सेहला रहे थे. पर अभी भी उनका दूसरा हाथ बाहर था. इधर वे मेरे पिछवाड़े से चिपके पड़े थे और उनका तना हुआ लौड़ा मेरी गांड में चूभ रहा था. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें.

मन तो उनका था कि वो दूसरा हाथ भी मेरी टी शर्ट के अंदर डाल कर मेरी दूसरी चूची अपने हाथ में पकड़ लें. पर किस बहाने से दूसरा हाथ मेरी टी शर्ट में डालें.

इधर मैं भी यही सोच रही थी की चूची सेहलवाने का मजा आ रहा है, कहीं पापा चले न जाएँ. तब तो गांड में लौड़ा रगड़वाने का आनंद जो अभी मिल भी रहा है, वो भी खतम हो जायेगा.

आखिर पापा बोले

“बेटी सुमन! तुम कहो तो मैं जा कर ड्राइंग रूम में बैठ जाता हूँ तब तक तुम आटा गूंध लो। यदि मेरी कोई जरूरत है तो बोलो मैं नहीं जाता और यहीं तुम्हारी हेल्प कर देता हूँ. ”

अब पापा ने गेंद मेरे पाले में डाल दी थी, ताकि मैं खुद उनको रोकूं.

मैंने सोचा जब इतना कुछ हो ही रहा है तो मुझे भी तो कुछ पहल करनी ही चाहिए, तो मैं पापा को खुल कर मजा देने और उनका होंसला बढ़ाने के लिए बोली

“पापा आप ने तो चेक कर ही लिया है कि मैंने आज अपनी ब्रा नहीं पहनी और सिर्फ पैंटी ही पहनी है,

अभी समस्या यह है कि आटा गूंधने में शरीर बहुत हिलता है, जिस से मेरी छातियां (अभी भी शर्म के कारण मम्मे शब्द नहीं बोल पा रही थी) जोर जोर से इधर उधर हिलती है, हिलने से मुझे समस्या होती है, मैं चाहती तो हूँ की जा कर ब्रा पहन लूँ, ताकि इनका हिलना रुक जाये, पर मेरे हाथों में देखो तो कितना आटा लगा हुआ है, मुझे सब धोना पड़ेगा. आप को कोई और काम न हो तो आप मेरी मदद कर दें, कि या तो मुझे ला कर ब्रा दे दें और मुझे ब्रा पहना दें ताकि मेरी छातियां हिलना बंद हों या मेरी छातिओं को थोड़ी देर सम्हाल लीजिये ताकि मैं गूंध सकूँ. फिर चाहे आप चले जाना. ”

यह कह कर मैंने खुल कर पापा को अपनी दोनों चूचियां पकड़ने का सुअवसर प्रदान कर दिया. मैं जानती थी की पापा कम से कम इस मौके को तो छोड़ने वाले नहीं थे.

मेरी ऑफर सुन कर पापा की तो बांछें ही खिल गयी. उन के लौड़े ने एक जोर का झटका मारा, गांड की दरार में घुसा होने के कारण मुझे उनकी इस ख़ुशी का साफ़ साफ़ एहसास हुआ.

पापा ने तुरंत अपने तने हुए लौड़े को और थोड़ा धक्का मारते कहा.

“अरे बेटी, मुझे कोई काम तो है नहीं. तुम आटा गूंध लो मैं तब तक तुम्हारे शरीर को सम्हाल लेता हूँ. ”

(पापा भी शायद अभी मुम्मे शब्द नहीं बोल पा रहे थे. पोर्न कहानियों में चाहे कुछ भी लिख दो पर असल में बाप बेटी में भी काफी कुछ हो जाने पर भी एक दीवार तो रह ही जाती है, जिसे तोड़ पाना काफी कठिन होता है, खैर मैं भी पापा से चुदवायी के अपने इस अभियान में लगी रहूंगी जब तक मुझे पापा से चुदवाने में सफलता नहीं मिल जाती और एक न एक दिन तो यह दीवार को ढहना ही होगा. सिर्फ वक़्त की बात है.)

पापा बोले :- ठीक है अब तो खुश हो न?

मैं भी हँसते हुए बोली

“पापा में तो डबल खुश हूँ की एक तो मेरा आटा गूंधने का काम हो जायेगा और दुसरे मुझे कुछ और देर अपने प्यारे पापा के साथ रहने का मौका मिलेगा. और रही आप की ख़ुशी की बात तो वो तो मुझे महसूस हो ही रही है. और चुभ भी रही है, पूछने की तो कोई जरूरत ही नहीं है,”

यह कह कर मैं शरारत से मुस्कुरा पड़ी और शैतानी से अपनी गांड पीछे को धकेल दी। इस से पापा भी समज गए की मैं उनकी किस ख़ुशी की बात कर रही हूँ और पापा का लौड़ा भी और अधिक अंदर तक घुस गया.

पापा भी मेरा इशारा समझ गए, उन्होंने भी ख़ुशी से और एक धक्का मेरी गांड पे मारा और हँसते से बोले

“हाँ हाँ बेटी मैं बहुत खुश हूँ. ”

मैं फिर हँसते हुए बोली

“हाँ पापा मैं आपकी ख़ुशी साफ़ साफ़ महसूस कर सकती हूँ. अब तो लगता है की आप की ख़ुशी पहले से भी बढ़ गयी है,”

और फिर थोड़ा सा रुक कर धीरे से बोली

“और टाइट भी ज्यादा हो गयी है और खूब चुभ रही है,”

पापा सिर्फ मुस्कुराते रहे. बेचारे बोलते भी तो क्या.

मैं अपनी गांड को पीछे को पापा के लण्ड पर धक्का देते हुए बोली.

“पापा लगता है कि आज आप को मम्मी की बहुत याद या रही है,”

पापा भी मुस्कुराये और कहा

“सुमन! तुम्हे ऐसा क्यों लग रहा है. मुझे तो तुम्हारी मम्मी की याद रोज ही आती है. पर आज तुमने ऐसा क्यों कहा?”

मैं – “पापा आज आप मुझे इस तरह तंग कर रहे है. तो लगता है की आप को मम्मी की याद आ रही है,”

यह कह कर मैंने उनके लौड़े पर एक झटका सा मार दिया.

पापा मेरी बात समझ तो गए पर बात को हंसी में टालते हुए बोले

“सुमन! तुम बिलकुल अपनी माँ की तरह हो, पीछे से तो देख कर मैं भी भूलेखा खा जाता हूँ की यह मेरी प्यारी बेटी सुमन है या मेरी बीवी. तुम हर अंग से अपनी माँ जैसी ही लगती हो ”

मैं हंस पड़ी और कहा

“वो तो ठीक है पर कहीं मम्मी समझ कर मम्मी की तरह से मेरे साथ न करने लगना.”

अब मम्मी की तरह करने का मतलब तो साफ़ था.

पापा – “वो तो तुम्हारी मर्जी है सुमन.”

पापा ने बिलकुल साफ़ बोल दिया था की यदि मैं हाँ करूँ तो पापा तो मुझे मम्मी की तरह उपयोग करने को तैयार हैं ही,

मैं मुस्कुराई और चुप रही. और चुपचाप आटा गूंधती रही.

फिर पापा ने अपना दूसरा हाथ भी मेरी टी शर्ट के अंदर डाल दिया और मेरी दूसरी चूची भी पकड़ ली।

अब पापा की दोनों हाथों में मेरी दोनों चूचियां थी और वे उन्हें प्यार से धीरे धीरे सेहला रहे थे.

दोनों बाप बेटी जन्नत का साक्षात् अनुभव कर रहे थे.

मैंने आटा गूँधना शुरू कर दिया और बहाने से अपने शरीर को हिलना भी शुरू कर दिया.

पापा ने भी मौके का फ़ायदा उठा कर अपनी उँगलियों में मेरी चूचियों के निप्पल कस लिए और जोर जोर से मसलने लगे.

मैंने फिर पापा को और मौका देने के लिए बोला

“पापा ऊपर से तो ठीक है पर नीचे से मेरा शरीर अभी भी हिल रहा है, आप एक काम कीजिये, नीचे से भी आप मेरे से थोड़ा चिपक जाईये तो मेरा शरीर स्थिर हो जायेगा और मैं आराम से आटा गूंध लूंगी.”

यह कह कर मैंने खुल कर पापा को मेरी गांड के साथ चिपकने का ऑफर दे दिया.

अँधा क्या चाहे दो आँखें। पापा तो खुश हो गए वो तो चाहते ही यह थे. दोनों हाथों में अपनी जवान बेटी के मम्मे और नीचे गांड में चुभता हुआ लौड़ा. एक मर्द को जीवन में इस से ज्यादा और चाहिए भी तो क्या.?

पापा मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए बोले

“सुमन बात तो तुम्हारी ठीक है, ठहरो जरा मैं ठीक से नीचे भी हिलना बंद कर देता हूँ.”

यह कह कर पापा ने अपने दाएं हाथ वाली मेरी चूची छोड़ी और हाथ को टी शर्ट से बाहर निकाला.

मैं समझ नहीं पाई की पापा के मन में क्या है, खैर जो भी होगा अच्छा ही होगा तो मैं भी चुप रही,

पापा ने अपने हाथ से कुछ किया और फिर मेरी स्कर्ट पीछे से कमर तक ऊपर उठा कर मेरी गांड (जो की कच्छी में कसी हुई थी ) नंगी कर दी. फिर पापा मेरे से चिपक गए. ज्योंही पापा मेरे से चिपके मुझे पापा की शरारत समझ आई।

असल में पापा ने अपना लण्ड अपनी लुंगी से बाहर निकाल कर नंगा कर लिया था. और जब पापा मेरे से चिपके तो उनका नंगा लण्ड मेरी कच्छी के ऊपर से मेरी गांड में घुसने लगा.

मुझे तो क्योंकि पीछे दिखाई नहीं दे रहा था. पर पापा ने मेरी स्कर्ट पीछे सी ऊपर उठा कर मेरी कमर नंगी कर दी और अपना लण्ड अपनी अंडरवियर और लुंगी से बाहर निकाल कर नंगा करके मेरी गांड पर रख दिया. तो ज्योंही पापा का नंगा लण्ड मुझे मेरे चूतड़ों पर अनुभव हुआ तो मेरी तो सांस ही रुक गयी,

मुझे लगा की बस पापा अब मेरी कच्छी नीचे करके मेरी चूत में अपना यह मोटा और लम्बा लौड़ा घुसेड़ने लगे है,

डर से मेरी कंपकंपी सी चूत गयी,

चाहे मैंने पैंटी पहन राखी थी, पर मेरे चूतड़ तो नंगे ही थे. और जब मेरे नंगे चूतड़ों पर पापा का नंगा सुपाड़ा जो बिलकुल आग के गोले की तरह गर्म था, लगा तो मेरी तो चूत इतना पानी छोड़ने लगी, कि मुझे लग रहा था की मेरी चूत का पानी मेरी टांगों से बह कर मेरे पाओं तक आ जायेगा.

मुझे तो ऐसा लगा कि पापा मुझे अभी किचन में ही न चोद दें.

मैं इस तरह से चुदवाने की तैयार नहीं थी, अपने पापा से चुदवाई करवानी थी तो थोड़ा ढंग से और आराम से मजे ले ले कर करवाना था. इस तरह हाथों में आटा लगे हुए और पापा की तरफ पीठ किये हुए थोड़े ही चुदवाने का था.

पर अब तक पापा का जोश इतना बढ़ गया था की उन्हें भी अच्छे बुरे का ध्यान नहीं रहा था.

वो तो मेरी पैंटी बीच में थी वरना अभी तक न जाने क्या हो भी गया होता. मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करु.

पापा का लौड़ा भी अब टूटने कगार तक सख्त हो चूका था. और इस हालत में आदमी अपने दिमाग से नहीं बल्कि अपने लण्ड के दिमाग (सुपाडे ) से ही सोचता है,

पापा ने भी यह ध्यान दिए बिना की मैंने पैंटी पहनी हुई है, अपने लण्ड का एक जोरदार झटका मेरी गांड पर मारा.

यह तो भगवान का लाख लाख शुक्र है कि मैंने पैंटी पहनी थी वर्ना तो पापा का लौड़ा मेरी गांड के छेद में पक्का घुस गया होता.

मैंने भी एन मौके पर अपने चूतड़ों को थोड़ा हिला दिया जिस से उनके धक्के का निशाना मेरी गांड से हिल गया और उनका लौड़ा मेरी दोनों टांगों के बीच से निकल कर मेरी चूत की तरफ आ गया.

अब उनके लण्ड का गर्म गर्म सुपाड़ा मेरी चूत पर घिस रहा था.

यह मेरे लिए और भी मजे की बात थी,

पापा का लण्ड क्योंकि नंगा था तो मेरी चूत और उनके लौड़े के बीच में सिर्फ मेरी पैंटी का कपडा था. और मेरी तो पैंटी भी नायलॉन की पतले से कपडे की थी.

इसलिए मुझे पापा का लौड़े अपनी चूत पर इस तरह महसूस हो रहा था जैसे मेरी चूत भी नंगी ही हो,

पापा को भी असीम आनंद आ रहा था.

पापा ने भी पूरी बेशर्मी से अपना लौड़ा मेरी चूत की दरार में घिसना शुरू कर दिया और चूत पर धक्के लगाने शुरू कर दिए.

मेरे न चाहते हुए भी अपने आप मेरी टांगे खुल गयी और चौड़ी हो गयी

टांगों के चौड़ा होने से मेरी चूत का मुंह भी पूरा खुल गया और अब पापा का लण्ड मेरी चूत में पूरी आज़ादी से और बहुत अच्छे से घिस रहा था.

पापा के लौड़े ने मेरी चूत की दरार में घिसते घिसते मेरी चूत के मुंह को खोलना शुरू कर दिया

(यह सब करते हुए भी मैं आटा गूंधने का ढोंग कर रही थी,, आखिर बाप बेटी के रिश्ते का भी तो कुछ भरम रखना था. हालाँकि अब बाप बेटी वाली बात रह ही कितनी सी गयी थी, )

जब पापा थोड़ा पीछे को होते तो उनका लण्ड बिलकुल मेरी चूत के छेद पर आ जाता और और जब आगे को होते तो उनका लौड़ा मेरी दोनों टांगों के बीच से आगे निकल कर चूत की दरार में रगड़ना शुरू कर देता.

हम दोनों बाप बेटी आनंद में मगन थे,

जब पापा का लौड़ा नीचे पीछे की ओर आता यानि पापा अपने लौड़े को पीछे खींचते तो लैंड का सुपाड़ा बिलकुल मेरी चूत के मुंह पर आ जाता. क्योंकि मेरी चूत से पानी बह रहा था तो पापा को गीलापन महसूस होता और पापा थोड़ा नीचे हो कर लण्ड का सुपाड़ा चूत के छेद में घुसेड़ने की कोशिश करते थे.

मुझे डर लगा कि यदि इस एंगेल में पापा ने जोश में कोई जोरदार झटका लगा दिया तो अब उनका लण्ड जो लोहे की तरह सख्त हो गया है, मेरी कच्छी को फाड़ कर अंदर घुस जायेगा.

पर मैं इस तरह चुदवाने को तैयार नहीं थी, मैं तो पहली बार की पापा के साथ की चुदाई खूब प्यार से और अच्छे से करवाना चाहती थी, तो इस स्थीति से बचने के लिए अगल झटके में ज्योंही पापा का लण्ड मेरी चूत के छेद से आगे यानि चूत की दरार में आया तो मैंने तुरंत अपनी दोनों टांगें कस कर बंद कर ली।

अब पापा का लौड़ा मेरी दोनों टांगों के बीच में फंस गया.

मुझे अब ज्यादा अच्छा लग रहा था क्योंकि लौड़े का ऊपर का हिस्सा तो मेरी पैंटी (जो मेरी चूत पर कसी थी ) पर लग रहा था पर नीचे तो मेरी दोनों टांगें नंगी थी तो दोनों जांघों में लौड़ा फंस जाने से मुझे ऐसा लग रह था जैसे पापा का लण्ड किसी चूत में ही घुस गया हो.

इस पोज़ में पापा का लौड़ा चूत में घुस जाने का भी डर नहीं था और पापा को धक्के मारने पर ऐसा लग रहा था की जैसे उन का लन्ड किसी चूत में ही घुसा हुआ हो.

पापा ने मुझे इसी पोज़ में चोदना शुरू कर दिया और पापा के धक्के तेज हो गए. ऊपर पापा दोनों हाथों से मेरी चूचीआं मसल रहे थे और निप्पल को भी रगड़ रहे थे. अब इस से ज्यादा आनंद का क्षण मेरी जिंदगी में और क्या हो सकता था.

मेरा शरीर अब पापा के धक्के तेज होने के कारण हिल रहा था.

पापा मुझे और मजा लेने के लिए बोले

“सुमन! आटा ठीक से गूंध हो रहा है न. एक काम करो कि तुम आगे से अपना शरीर थोड़ा नीचे को झुका लो (यानि डॉगी पोज़ में आ जाओ) तो एंगल और भी बढ़िया हो जायेगा और तुम आटा ठीक से गूंध पाओगी,”

मैं समज गयी की पापा मुझे घोड़ी बनने को बोल रहे है, इस तरह से पापा का लौड़ा और भी ज्यादा अच्छे से रगड़ा जा सकेगा.

मैं तो त्यार थी ही,

चुपचाप मैंने अपनी आगे की शरीर झुका ली और अपनी गांड थोड़ी ऊपर को उभार दी और पीछे को भी कर दी.

अब पूरा चुदाई का पोज़ बन गया था.

पापा ने मेरी चूचिओं को कस के पकड़ा ओर जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए.

मेरी चूत में भी पानी आ रहा था. मुझे लग रहा था की यदि पापा इसी तरह थोड़ी देर और धक्के लगते रहे तो मैं यहीं झड़ जाऊंगी.

पापा की भी सांसें तजे हो गयी थी,

लगता था की उनका भी स्खलन नजदीक आ रहा है.

पर शायद इतना कुछ हो जाने पर भी बाप बेटी की शर्म की दीवार शायद थोड़ी बची थी तो पापा बोले

“सुमन! आटा ठीक से गूंध पा रही हो न? ऐसा करता हूँ की मैं तुम्हारा नीचे का शरीर थोड़ा हिलाता हूँ तो आटा गूंधने में तुम्हे आसानी होगी. ”

यह कह कर पापा ने मेरे उत्तर का इंतज़ार किये बिना तेज तेज चोदना शुरू कर दिया.

(यह अब चुदाई ही तो थी, बस इतना ही फर्क था कि पापा का मोटा सा लौड़ा मेरी चूत के अंदर न हो कर मेरी टांगों की नकली चूत को चोद रहा था. मैं घोड़ी भी हुई थी और पापा ने अपने दोनों हाथों में मेरी दोनों चूचीआं पकड़ रखी थी और जोर जोर से मसल रहे थे. इधर पापा का लौड़ा नंगा था जो मेरी नंगी टांगों के नकली चूत में कस कर फंसा हुआ अंदर बाहर हो रहा था. बस असली चुदाई में इतनी ही कसर थी की लौड़ा चूत में नहीं अंदर बाहर हो रह था पर मैंने अपनी दोनों टांगों को इतना कस कर टाइट किया हुआ था की पापा को तो शायद असली चूत से भी ज्यादा मजा आ रहा था.)

पापा का स्खलन पास था तो मेरा अपना भी कोई दूर नहीं था.

पापा ने झटके तेज कर दिए और बोले

“बेटी आटा गूंध जाने में कितनी देर है?”

मैंने भी तेज तेज अपनी गांड आगे पीछे करनी शुरु कर दी और बोली

“पापा आप इसी तरह मेरी मदद करते रहो बस मेरा आटा गूंधने ही वाला है, ज्यादा देर नहीं है. थोड़ा और तेज गूंध लें?”

पापा समझ गए की मेरा भी काम तमाम होने ही वाला है,

पापा ने तेज तेज चोदना शुरू कर दिया अब पापा से चोद रहे थे.

अचानक पापा की स्पीड बहुत तेज हो गयी और उनका लौड़ा खूब फूल गया.

पापा के शरीर ने एक झटका खाया और पापा जोर से मेरे पिछवाड़े से चिपक गए और पापा के लण्ड का सुपाड़ा मेरी जांघों से आगे निकल कर मेरी चूत पर जोर से कस गया।

पापा के सुपाडे ने वीर्य की अपनी पहली धार इतने जोर से मारी की वो आगे जा कर मेरी स्कर्ट पर गिरी (पीछे से तो पापा ने स्कर्ट ऊपर उठा रखी थी पर आगे से तो स्कर्ट नीचे थी, तो जब पापा के लण्ड ने अपनी आग ऊगली तो वो सीढ़ी स्कर्ट के अंदर के हिस्से पर गिरी.)

पापा एक जोर से आह कह कर मेरी पीठ से चिपक गए और उनके दांत मेरी पीठ पर गड गए।

ज्योंही पापा का गर्म गर्म वीर्य मुझे अपनी चूत पर महसूस हुआ तो मेरा भी न जाने कब से रुका हुआ लावा निकल गया और मेरी चूत ने भी अपना पानी इतनी ज्यादा छोड़ना शुरू कर दिया कि जैसे कोई बाँध टूट गया हो,

मेरे मुंह से भी अपने आप आवाज़ निकली

“आह।…….. आह।…….. पापा मैं गयी. पापा गूंध गया आपकी सुमन का आता. मेरा आटा ओह।….. ओह।……… पापा मेरा आटा गूंध गया. हो गया आप की सुमन का काम। ”

और जोर से सांस लेने लगी,

पापा भी टूटती साँसों में से धीरे धीरे बोले

“ओह।.ओह……. बेटी मेरा भी काम हो गया. ओह सुमन हो गया तेरे पापा का काम तमाम। ”

पापा मेरी पीठ पर ही जैसे गिर गए उनके लण्ड से कितनी ही देर तक पिचकारियां छूटती रही.

और मेरी भी चूत से पानी निकलता रहा.

मेरी स्कर्ट पापा के वीर्य से लबालब हो गयी थी और चूत का पानी पापा के माल के साथ मिल कर मेरी टांगों पर बह रहा था.

हम दोनों इतना थक चुके थे की कुछ देर तक तो पापा इसी तरह मेरी पीठ पर पड़े रहे. और मैं भी अपनी दोनों बाहें किचन की स्लैब पर रख कर उसी तरह घोड़ी बनी खड़ी रही,

थोड़ी देर बाद हमारी साँसें कुछ सयंत हुई तो हमें होश आया की आटा गूंधते गूंधते हमने और भी क्या गूंध दिया है,

पापा का लौड़ा भी अपना सारा अमृत मेरी टांगों पर गिरा कर ढीला हो गया था.

पापा ने अपना लण्ड पीछे को खींच कर मेरी टांगों से निकाला। मैंने भी अपनी टांगों की जकड थोड़ी कम कर अपनी टांगें खोल दी.

पापा ने अपने लण्ड का बचा खुचा माल मेरी पैंटी पर लंड रगड़ कर साफ़ किया और अपने लौड़े को अपनी लुंगी में छुपा लिया.

फिर मेरी स्कर्ट को नीचे करते हुए बाहर को चल पड़े और बोले

“सुमन! बेटी आटा तो बहुत अच्छे से गूंध गया है, तुम भी थोड़ा आराम कर लो फिर रात को तुम्हारे जांघों के रेशेस भी ठीक करने हैं. ”

यह कह कर पापा अपने कमरे में चले गए. मैंने सोचा की अभी पापा को अपना माल निकाले दो मिनट भी नहीं हुए और उन्हें रात वाले प्रोग्राम की लगी पड़ी है, यह सेक्स भी साला क्या चीज है, मन भरता ही नहीं, पर मैं पापा को क्या कहूं मेरा अपना मन भी कहाँ भरता है.

मैंने अपनी स्कर्ट तो थोड़ा ऊपर उठाकर देखा तो मेरी दोनों टांगें मेरे और पापा के सम्मिलित माल से लथपथ हुई पड़ी थी,

मैंने अपने हाथ वाशबेसिन पर आटे से साफ़ किये और अपने कमरे को चल पड़ी ताकि वहां अपने कपडे बदल सकूं

(और थोड़ा आराम करके रात के लिए भी कुछ ताकत जुटा लूँ। )

अभी तो हमारा आटा गूंध गया अब देखते हैं रात को पापा मेरी रेशेस कैसे ठीक करते हैं.

फिर मैं अपने कमरे में गयी जहाँ मैंने सब से पहले अपनी स्कर्ट उतरी जो की पापा के माल से तर बे तर हो गयी थी.

फिर मैंने अपनी चड्डी उतरी वो भी मेरे अपने और पापा के वीर्य से लथपथ थी. सचमुच हम दोनों बाप बेटी का खूब पानी निकला था.

मैंने अपनी नंगी चूत पर हाथ फेरा और उसकी दरार में ऊँगली चलाई. मेरी छूट पापा की याद में गीली हो रही थी, मैं उसमे ऊँगली घुसा दी और ऊँगली को अंदर बाहर चलाते हुए बोली

“अरे मेरी प्यारी चूत, रो मत, बस लगता है की ज्यादा देर नहीं है, जल्दी ही तेरी तपस्या सफल होने वाली है, पापा का बेलन जैसा लौड़ा जल्दी ही तेरे अंदर होगा. थोड़ा सबर कर। जल्दी ही या शायद आज ही तुजे पापा से मजे मिलने वाले हैं. ”

पर सब्र करना इतना आसान थोड़े ही होता है,

खैर मैं किचन में आयी और खाना बनाया. हम दोनों बाप बेटी ने ड्राइंग रूम में जहाँ पापा सोफे पर बैठे थे वहीँ बैठ कर खाना खाया.

पापा आज बहुत ही खुश मूड में थे. होते भी क्यों नहीं अभी ही तो अपनी जवान बेटी की चूत में अपना लौड़ा रगड़ कर झड़े थे वो, और सब से ऊपर उन्हें जल्दी ही अपनी प्यारी और जवान बेटी की चूत चखने का मौका मिलने वाला था. पापा खुश तो होने ही थे.

खाना खाने के बाद और कुछ देर पापा से बात करने पर मैं उठी और अपने रूम की और जाने लगी तो पापा मुझसे बोले

“सुमन! कहाँ जा रही हो कुछ देर और बैठो ना। ”

मैं समझ रही थी की पापा थोड़ी मस्ती करने के मूड में है, तो मैं शर्माते हुए एक अदा से अपनी आंख उठाकर पापा को देखते कहा,

“जी वो नींद आ रही ही ”

तो पापा बोले “अरे बेटी, चली जाना कुछ देर बाद कुछ देर तो बैठो.”

पापा ने मुझे अपने पास ही सोफे पर बिठा लिया. पापा खुश मूड में होने के कारण कुछ गुनगुना रहे थे.

और पापा ने रुम में म्यूजिक ऑन कर दिया तो मैं मन ही मन धीरे से बोली कि पापा सुन ना ली,

“सुमन लगता ही तेरे पापा के इरादे नेक नहीं है आज रात ही तेरा बाजा बजा डालेंगे।”

तो फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए खुद ही मन मैं बोली, “बजाना तो इन्होने ही है तेरा बाजा आज बजे या कल” और मैं चलती पापा के पास आ गई.

पापा म्यूजिक के साथ-साथ धीरे-धीरे डांस करने लगे अपनी कमर हिलाते पापा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया कर मुझसे बोले आओ ना सुमन कुछ देर डांस करते हैं पापा का ये रोमांटिक अंदाज देख जहां मैं अंदर से खुशी से झूम रही थी पर अभी थोड़ी शर्म और झिझक भी थी पापा ने हाथ बढ़ाया और बोले

“आओ ना सुमन.”

तो मैंने अपने बालों को ठीक किया कहा

“मुझे नाचना नहीं आता” तो पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचे हुए बोले “आओ ना जानता हूं तुम कितना अच्छा डांस करती हो ।”

पापा के इस तरह खिंचने पर मैं खिंची चली गई तो पापा ने मुझे अपनी बाहो में भर लियामैं पापा से चिपकी मुस्कराते हुए बोली

“मुझे नहीं पता था कि अपने ऐसे शौक पाल रखे हैं.”

पापा मेरा एक हाथ अपने हाथ में थामे और अपने दूसरे हाथ को मेरी कमर मैं डाल कर धीरे-धीरे नाचने लगे मैंने अपना दूसरा हाथ पापा के कंधे पर रख दिया और पापा की आंखें मुझे देख कर मुस्कुराती हुई अपनी गांड को धीरे हिलाने लगी।

जिस से मेरे मुँह से प्यार और मस्ती भारी आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह निकल जाती है।

हम दोनों के बदन एक दम से चिपके हुए थे पापा के गाल मेरे चिकने गालों से रगड़ खा रहे थे जिस से मेरे अंदर एक अलग ही उत्तेजना सी उठ रही थी। कि पापा से एक दम चिपक गई जिस से पापा का खड़ा लंड मुझे मेरी स्कर्ट के ऊपर से मेरी चूत के ऊपर टकराता हुआ महसूस हुआ।

मेरी सांसे और तेज चलने लगी। जिस से मैं और भी कामातुर हो गई और मेरे पापा के साथ और भी चिपक गई।

पापा के होठों और मेरे होठों के बीच बस एक ही इंच की दुरी थी

पापा और मैं काफी देर तक ऐसे ही डांस करते और एक दूसरे के साथ चिपके रहे तो थोड़ी देर बाद मैं पापा की बाहो से निकल बोली

“पापा क्या सारी रात ऐसे ही नाचने का इरादाहै.”

तो पापा मेरा हाथ पकड़ कर बोले

“दिल तो यहीं करता है मेरी बेटी की बस तुम्हें बांहों मैं ले कर सारी जिंदगी ऐसे ही प्यार करता रहु.”

मैं शर्माते हुए पापा की बाँहों से बाहर निकल गई और मूड कर उनकी और देखते हुई बोली

“पापा आप भी न, कभी कभी बच्चों की तरह करने लग जाते हैं। ”

और पापा की बाहो से अलग हो कर अपने कमरे की और जाने लगी.

पापा अपनी में अपने लण्ड को सहलाते रहे. तो मैं बस नज़ारे झुकाए खड़ी थी।

पापा न जाने क्यों अपनी लुंगी खोल कर फिर से कस कर बाँधने लगे. जैसे की उनकी लुंगी थोड़ी ढीली हो रही हो.

मेरी नज़र अंडरवियर मैं खड़े पापा के लंड पर पड़ी। पापा का लंड वो छोटा सा अंडरवियर संभाल नहीं पा रहा था।

अंडरवियर के साइड से पापा की बड़ी बड़ी झांटे और बाल साफ दिखाई दे रहे थे। पापा का अंडरवियर पापा के लंड को संभाल नहीं पा रहा था पर मुझे तो अब पापा के लंड को संभालना ही था।

मेरे पापा के लंड को इस तरफ से बाहर निकला देख पहले से पापा से बोली,

“आप ना अंडरवियर बड़ा ले आइए, यह तो छोटा हो रहा है,”

तो पापा मेरे सामने अपने लंड को सहलाते हैं. और बिना किसी शर्म के मेरे कान में बोले,

“सुमन अभी तुम कह रही हो बड़ा लाने के लिए, अभी जब तुम्हारी मम्मी आ जाएगी तो वो कहेगी की आखिर अंडरवियर पहनने की क्या जरूरी है. तुम दोनों माँ बेटी की अलग अलग इच्छा है.”

और ये बोल कर मेरे सामने ही अपने लंड को सहलाने लगे और मेरे चेहरे को अपने और करते बोले

“सुमन चाहे तो छुप कर सुन लेना, तुम्हारी मामी यहीं कहोगी कि इसको पहनने की क्या जरूरत है. असल में तुम्हारी मम्मी को मैं ऐसे ही पसंद हूँ. ”

इस “ऐसे ही पसंद हूँ ” का मतलब मैं सब समझती थी. तो मैं ये सुन कर और देख कर वही खड़ी शर्माते रही।

और बोली “पापा आप भी न पूरे बेशरम हो गए हैं. अब जैसे आप मम्मी के साथ रहते हैं, वैसे मैं थोड़े ही हूँ. थोड़ा फर्क भी तो है न ”

पापा भी मुस्कुराते बोले

“हाँ अभी तो फर्क है. पर देखता हूँ कब तक रहता है?”

और यह कह कर अपने लण्ड को सहलाते रहे। ”

“आप भी ना पापा, बेशर्म हैं,” और ये बोल कर मुस्कुराते हुए अपने रूम में आ गई।

मुझे नींद नहीं आ रही थी कि तभी मुझे ध्यान आया कि क्यों ना मैं कोई सेक्सी सी ब्रा और पैंटी पहन कर देखूं कि उसमें मुझे कैसी लगती हूं. आखिर रात की भी तो तयारी करनी थी, आज रात को पापा मेरी जांघों की रेशेस ठीक करने वाले जो थे.

अभी तो मुझे अपनी चूत की शेविंग भी करनी थी, मैं चाहती थी की जब पापा मेरी चूत के पास आएं तो मेरी प्ले ग्राउंड बिलकुल घास फूस और झाडिओं वगैरह से साफ़ हो, ताकि पापा को खेलने मैं मजा आये.

और मैंने झट से बैग खोला और एक जोड़ा ब्रा और पैंटी का निकाला और जैसी ही वो पहन कर आईने के सामने खुद को देखा तो खुद ही शर्मा गई मैं सोचने लगी क्या सचमैं पापा मुझे इस रूप मैं देखने के लिए बेचैन हैं मैं कैसे इस हालत में मैं उनके सामने लेट जाऊंगी

और मुझे यकीन था कि पापा आज मुझे इस रूप में सोच कर अपना लंड निकाल कर हिला रहे होंगे।

मुझे मन में आया की चल कर देखूं की क्या पापा भी अपनी बेटी की याद में मगन हैं.

मैं ये देखने के लिए कि पापा क्या कर रहे हैं हो भी सकता है की अपनी बेटी की जवानी के बारे में सोच कर अपना हिला रहे हो.

मेरे उनके कमरे की और चल पड़ी और बाहर से देखा तो पापा के कमरे का दरवाजा खुला था और पापा अपना मूसल लंड अपना अंडरवियर में हाथ डाल कर बाहर निकाल रहे थे और पापा का विशाल लंड देख कर मेरी दरवाजे की ओट में खड़ी खड़ी उसे निहारने लगी और खुद मेरा हाथ मेरी स्कर्ट में से हो गया और अपनी चूत पर पहुंच गया.

मैं पापा के विशाल लंड को देख कर अपनी चूत को सहलाने लगी और खुद ही अपना मन में कहने लगी कि अब तो हम दोनों बाप बेटी से बिल्कुल भी कंट्रोल नहीं होता। ये अब कुछ दिनों की बात है.

वो अपना घोड़े जैसा लंड निकाल जोर जोर से हिला रहे थे मेरी नज़र पापा के घोड़े जैसे लंड पर टिक गयी वह अपने लंड तकिया पर दबा कर धक्के मारते हुए बड़बड़ा रहे थे.

और मैं अपने मन में कह रही थी कि पापा मेरी जवानी आपके लिए ही तो है तो मेरे होते हुए कैसे बेचैन हो कर हिला रहे हो। पापा बस कुछ देर के और बात है और फिर आप को ऐसे इसको हिलाने नहीं दूंगी और अपना छेद मैं नहीं तो कम से कम अपने हाथ से पकड़ कर आपका जोश निकाल देती.

अपने हाथ में पापा का लंड पकड़ने के बारे में मेरी सोच कर मुझे ऐसा एहसास होने लगा कि पापा का गधे जैसा मोटा लंड मैंने अपने हाथ में पापा का लंड पकड़ लिया है राम क्या शाही लंड था पापा का और मेरा एक हाथ अपनी चूत पर चला गया और फिर से मुझे याद आया कि मैं कहां खड़ी हूं, मैं शर्मा अपने कमरे में आ गई हूं,

यहां मेरी हालत भी पापा के जैसी ही हो रही थी, मेरी चूत पानी छोड़ रही थी, मुझसे रहा नहीं गया और मैं पापा के लंड के बारे में सोचते सोचते नंगी हो गई और अपनी चूत को सहलाने लगी और पापा को सोचते सोचते मेरी चूत गीली होने लगी और अब मुझे उसने ठंडा किए बिना सोना भी मुश्किल हो रहा था.

मैंने अपने मुँह को तकिये में छुपा लिया जिससे मुझे लगा कि मैं पापा के चौड़े सीने से मैं अपना मुँह छुपा लिया और अपनी चूत मैं उंगली ऐसे डालने लगी जैसे कि वो मेरी उंगली नहीं पापा का लंड हो।

पापा के लंड के ख्याल से मेरा चेहरा शर्म से लाल हो उठा। मेरे अंदर की आग तो धीरे-धीरे भुजने की बजाये खराब रही थी पर हमारे समय मेरे पास उस समय मेरे पास सिवाये उंगली के दूसरा रास्ता नहीं था।

मेरी आँखो बंद थी पर बंद आँखो के सामने मुझे पापा दिखायी दे रहे थे। उनका वो मजबूत गठेला शरीर, मजबूत कंधे, उनका चौड़ा सीना और सीना के घने बाल और सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी दीवानी हो चुकी थी मेरी नज़र पापा के घोड़े जैसे लंड पर टिक गयी.

मैं अपनी चूत में अपनी उंगलियों को घचाघच खेल रही थी और कभी तकिये को अपनी टांगों के बीच में दबाकर चूत पर रगड़ रही थी.

सच मेरे पापा का क्या शाही लंड था अब इस शाही लंड पर मेरी माँ का नाम लिखा था पर जल्दी ही मैं इस के सुपाडे पर अपना नाम लिख ही लूंगी।

आज मैं अपनी चूत की आग को अपनी उंगली से ठंडा करने की कोशिश कर रही हूं लेकिन कुछ समय के बाद पापा अपने उसी शाही लंड को चूत के अंदर डालकर मेरी चूत के अकड़ को ठंडा कर रहे होंगे.

मेरे अंदर भयानक आग लगी हुई थी मैं अपनी चूत में उंगली डालें सिर्फ को उधर झटका करेगी थी मैं उंगली डालकर उसका पानी निकालने लगी.

एक हाथ से अपने चूत को और दूसरे हाथ से अपने चूचियों को सहलाने लगी फिर निपल को धीरे धीरे मसलने लगी मेरे मुँह से आआआआआआह्हह्हह्हह्हह्ह की आवाज निकल रही थी।

मैं पापा के हथियार के बारे में मैं सोच कर अपनी चूत मैं उंगली कर रही थी। मेरे लाख चाहने पर भी अपनी चूत की आग को ठंडा नहीं कर पा रही थी बल्की मैं तो आग में घी डाल रही थी.

मेरी उंगली वो काम कैसे कर सकती थी जो काम पापा का लंड कर सकता था.

खैर जब तक पापा का लौड़ा मेरी चूत में नहीं जाता तब तक तो मुझे भगवान् के दिए हाथ का ही सहारा था.

खैर थोड़ी देर पापा को अपने लण्ड से खेलते देख कर मैं अपने कमरे में आ गयी,

मुझे रात की भी तो तैयारी करनी थी, चूत की शेविंग तो करनी थी तो मैंने सोच की चलो नहा भी लेती हूँ.

किचन में काम करके पसीना भी आ गया था तो शरीर से अच्छी सुगंध भी आएगी और पापा को रात में मजे ज्यादा मिलेंगे.

मैंने सोचा की पहले नहा लेती हूँ और अपनी चूत की सफाई भी कर लेती हूँ ताकि रात को ज्यादा मजा आये.

यह सोच कर मैंने एक शेविंग रेज़र लिया और गुसलखाने में चली गयी,

मैं बहुत खुश थी,,,,घर में बने गुसलखाने में मैं अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगी होकर नहा रही थी,,, वैसे तो अगर मैं न भी नहाती तो भी कोई कह नहीं सकता था कि मैं नहाई नहीं। एकदम गोरी चिट्टी होने के नाते मैं हमेशा तरोताजा दिखाई देती थी लेकिन आज का दिन मेरे लिए भी बहुत खास था आज मैं अपने हुस्न का जादू पूरी तरह से पापा पर बिखेर देना चाहती थी,,,, इसलिए अपने बदन को रगड़ रगड़ कर नहा रही थी,,,,,,,

बड़े घराने की होने के नाते घर में ही सब सुख सुविधा मौजूद थीं,,, घर में बने गुशलखाने में आदम कद का आईना लगा हुआ था जिसमें मैं अपने प्रतिबिंब को देख रही थी और मन ही मन अपनी खूबसूरती पर गर्व कर रही थी,,,,,, एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतार कर वह नंगी हो चुकी थी,,,,। मेरे बदन पर केवल मरून रंग की कच्छी थी.

आईने के सामने खड़ी होकर,,, मैंने अपनी कच्छी को अपनी नाजुक उंगलियों में फंसाकर धीरे-धीरे उतारना शुरू कर दी,,,,, और देखते ही देखते अपनी मांसल चिकनी सुडोल जांघों से होते हुए मैंने अपनी लंबी टांग में से उस कच्छी को निकालकर वही नीचे रखदी,,,

और बड़ी प्यार भरी नजरों से अपनी दोनों टांगों के बीच बस दो इंच की ऊभरी हुई दरार को देखने के लिए जो कि हल्के हल्के बालों से घीरी हुई थी,,,,, अपनी हथेली को उस पर रखकर हल्के से दबाते हुए अपने मन में सोचने लगी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी यही है जिसके चलते और इस दुनिया में किसी को भी अपने वश में कर सकती हैं अपना मनचाहा काम करा सकती है,,,,,,

जैसा कि मैं अपनी बुरके बदोलत अपने पापा को पूरी तरह से अपने वश में की हुई थी,,, और मेरा पापा भी अपनी जवान बेटी के रूप जाल में पूरी तरह से बंध सा गया था,,,।

मैं अपनी बुर की दरार में अपनी एक ऊँगली रख कर उसे हल्के हल्के से सहला भी रही थी और उसे रगड़ कर गर्म भी कर रही थी,,, जिससे मेरे बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,

फिर मैंने अपनी चूत को पानी डाल कर गीला किया और एक छोटे से स्टूल पर बैठ गयी..

मैंने अपनी टाँगें पूरी खोल ली ताकि मेरी चूत का दरवाज़ा पूरी तरह से खुल गया और मुझे मेरी चूत साफ दिखाई दे रही थी,

असल में मैं डरती थी की कहीं शेविंग करते हुए चूत के पास या चूत पर कट न लग जाये.

फिर मैंने रेजर उठा कर धीरे धीरे अपनी छोटी छोटी झांटें साफ करनी शुरू कर दी.

मुझे ऐसे अनुभव हो रहा था कि जैसे कोई दुल्हन अपने दूल्हे के लिए सज धज कर तैयार हो रही हो. वैसे ही मैं अपनी चूत को अपने पापा के लिए तैयार कर रही थी, मेरी चूत पर बहुत छोटे छोटे रोएं जैसे ही तो बाल थे पर मैंने वो भी सबसाफ़ कर दिया.

थोड़ी ही देर में मेरी चूत इस तरह साफ़ होकर चमक उठी जैसे कोई सुन्दर इस्त्री का चमकदार चेहरा मेकअप के बाद चमक जाता है,

मेरी चूत मेरे हाथ की हथेली की तरह साफ हो चुकी थी,

शेव करने के बाद मैंने अपनी चूत को पानी डाल कर साफ किया और अपनी चूत में ऊँगली फेरी. मेरी चूत पापा के लौड़े को याद कर कर के खूब पानी छोड़ रही थी,

ऐसे लग रहा था की आने वाले पलों के इन्तजार में ख़ुशी के आंसू बहा रही हो.

मुझे रात का इन्तजार था. और मुझे पापा याद आने लगे,,,, उनका मोटा तगड़ा लंबा लंड हवा में लहराता हुआ नजर आने लगा जिसके बदौलत मैं इतना तर कट रची थी,,,,यह सारा ताम झाम पापा के मोटे तगड़े लंबे लंड के प्रति आकर्षण का ही नतीजा था,,,मैं किसी भी कीमत पर पापा के मोटे तगड़े लंबे लंड को अपनी बुर के अंदर लेना चाहती थी,,,,, उत्तेजना से भरी हुई मैं वैसे भी पहले से ही कामुक औरत थी,,, और इस समय पापा चुदाई के टैलेंट को याद करके मैं मेरी बुर से काम रस टपक रहा था,,, ऊससे रहा नहीं जा रहा था। मेरे मन पर कामवासना का जोर इतना चढ़ चूका था कि मुझे बिना चुदे रहा नहीं जा रहा था. समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करून.

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तो मैं,,,, गुसलखाना का दरवाजा खोलकर गुसलखाने से बाहर निकल गई,, और वह भी एकदम नंगी,,, बेझिझक चेहरे पर शर्म का कोई भाव नहीं था,,, वैसे भी मैं जानती थी कि घर में कोई भी नहीं है सिर्फ पापा ही तो हैं जो इस समय अपने कमरे में हैं.

(और अगर पापा मुझे इस तरह नंगी देख भी लेते तो भी क्या हो जाता. जहां इतना कुछ तो हम बाप बेटी के बीच हो ही चूका था तो अधिक से अधिक जो बाकि था वो भी हो जाता. और उसके लिए ही तो यह सब तयारी हो रही थी,

इसलिए मैं बिना झिझक बिना कपड़ों के गुशल खाने से बाहर निकल गई और चहल कदमी करते हुए रसोई घर की तरफ जा रही थी,,,,

मेरी चाल एकदम मादक थी, नितंबों की थिरकन अद्भुत थी,,, कमर की बलखाहट,,, कयामत ढा रही थी छातियों की शोभा बढ़ा रही दोनों दशहरी आम सीना ताने किसी सरहद पर तैनात जवान कि तरह, मैं आगे बढ़ रही थी,,, मेरी चूचीयों की कडकपन बरकरार थी,,,,

पतली कमर के नीचे मेरी मदमस्त उभार ली हुई गांड,,, जिसकी दोनों फांकें आपस में रगड़ खा रही थी जिससे पूरे बदन में और ज्यादा गर्मी पैदा हो रही थी,,, मैं अपनी खूबसूरती और अपनी खूबसूरत बदन पर गर्व करते हुए और ज्यादा इतरा कर चल रही थी वह तो अच्छा था कि इस हाल में मुझे देखने वाला इस समय कोई नहीं था।

मेरे लिए यह पहली बार नहीं था कि मैं घर में इधर से उधर पूरे कपड़े उतार कर नंगी घूम रही होऊं. कई बार जब कोई घर में नहीं होता तो मैं सारे कपडे उतार कर नंगी रहने का भी अनुभव लेती थी,

बिना कपड़ों के घर में इधर से उधर खूब मुझे ज्यादा तेजना का अनुभव होता था और वैसे भी मैं इस समय काफी उत्तेजित हो चुकी थी,,, रसोई घर में पहुंचते ही मैं लाई हुई ताजी सब्जियों के बीच रखे हुए उस मोटे तगड़े लंबे बैगन को ढुंढने लगी जो कि वह आज सुबह-सुबह ही अपने लिए लाई थी,,, उसे हाथ में लेते ही मेरे गोरे गोरे गाल शर्म के मारे लाल हो गए ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे हाथों में बैगन नहीं पापा का लंड आ गया हो,,,

मैं तुरंत उस बेगन को लेकर वापस गुसल खाने में आ गई,,,।

ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं गुसल खाने में बेगन नहीं बल्कि किसी लण्ड को लेकर आई हूँ मैं काफी उत्साहित नजर आ रही थी,,, मैं अपनी हथेली में उस बेगन की मोटाई को लेकर पापा के लंड के बारे में सोच रही थी,,,

अपने मन में उस बैगन की तुलना पापा के लंड से कर रही थी,,,, उस पर ढेर सारा थूक लगाकर मैंने एक टांग उठा कर टेबल पर रख दी और उस बैगन के टॉप को अपनी चूत के छेद के मुहाने पर रखकर धीरे धीरे उसे अंदर की तरफ जाने लगी और अपनी आंखों को बंद कर ली,,, आंखों को बंद करके मैं पापा के बारे में कल्पना कर रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे पापा मेरी पतली कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़कर अपने मौटे तगड़े लंड को मेरी बुर में डाल रहा हो,,,। इस ख्याल से मैं पूरी तरह से उत्तेजित हो गई थी और एक ही बार में,, पूरे बैगन को अपनी बुर की गहराई में डाल दी,,, फिर उसे धीरे धीरे अंदर बाहर करते हो यह सोचने लगी कि पापा अपने लंड को मेरी बुर में डालकर धीरे-धीरे अपनी कमर हिला कर उसे चोद रहे हों।

यह ख्याल मेरे लिए पूरी तरह से मदहोश कर देने वाला था मैं एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,,ओहहह पापा और जोर से पापा और जोर से,,,, ऐसा कहते हुए मैं पूरी तरह से बावली होकर बैगन से मजा ले रही थी,,,, और देखते ही देखते मैं एकदम से झड़ गई,,, इतनी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव एक बैंगन के साथ में मैं पहली बार कर रही थी,,,, शांत होने के बाद मैं बैंगन को पानी से धोकर रख दीऔर नहाने के बाद उसे अपने साथ वापस लेकर आई और रसोई घर में रखकर अपने कमरे की तरफ चल दी और वह भी उसी तरह से एकदम नंगी,,,,।

थोड़ी ही देर में मैं बड़े अच्छे से तैयार हो गई मैं पहले से ही ज्यादा खूबसूरत थी लेकिन आज उसकी खूबसूरती निखर कर सामने आ रही थी।

आज मैंने एक लम्बी सी मैक्सी पहनी थी और उसके नीचे एक ब्रा और चड्डी भी पहनी थी,

मुझे पापा ने कहा था कि वो मेरी जाँघों को चाट कर मेरे रेशेस ठीक करने वाले थे. और मैं जानती थी कि रेशेस के बहाने से पापा कुछ और शरारत भी करने वाले थे.

बस मैं जा कर बिस्तर पर लेट गयी और अब इन्तजार था तो पापा का।

पापा ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठे थे. तो मैं भी जा कर पापा के पास बैठ गयी,

पापा ने देखा की मैं नहा धो कर और सज धज कर आयी हूँ तो वो समझ गए की मैंने रात की तैयारी की हुई है. पापा बहुत खुश हो गए.

पर मुझे एक लम्बी से मैक्सी पहने देख कर वो थोड़ा मायूस से हो गए. उन्हें तो आशा थी की मैंने कोई सेक्सी सी स्कर्ट पहनी होगी और नीचे ब्रा और पैंटी भी नहीं होगी,

पर मेरी मैक्सी के नीचे से मेरी ब्रा दिखाई दे रही थी. पापा ने ध्यान से देखा तो मैंने पैंटी भी पहन राखी थी, असल में मैं पापा को छेड़ने और चिढ़ाने के लिए ही उसे पहना था.

पापा मुझे प्यार से बोले

“सुमन! अभी तुम्हारी जांघों की रेशेस कैसी है, मैं अपने वायदे पर कायम हूँ. मैं रात को अपनी मुंह के लार से तुम्हारी रेशेस को चाट कर ठीक कर दूंगा. तुम कोई चिंता मत करो। ”

मैं पापा की जल्दबाजी और उत्सुकता को समझ सकती थी, मैं तो खुद तैयार थी ही पर पापा को छेड़ने और तंग करने के लिए बोली

“पापा! वैसे तो मेरी रेशेस अभी दिन से कुछ ठीक लग रही है. दर्द भी थोड़ा कम है, मुझे लगता है की कल तक तो वैसे ही ठीक हो जाएँगी, आप को तकलीफ करने की जरूरत नहीं है,”

पापा मायूस से हो गए। वो बेचारे तो न जाने मन में क्या क्या सोचे बैठे थे और मैं मना कर रही थी, उन्हें लगा की यह तो मामला बिगड़ गया. तो वो बात को सँभालते हुए बोले

“सुमन! बेटी यह ठीक होना कई बार ऐसे ही होता है, यह रेशेस बड़े खतरनाक होते हैं. यदि ठीक न किये जाएँ तो कई बार यह बढ़ जाते है, और जख्म भी हो सकते हैं. तुम इन्हे हलके में मत लो. इनका एक ही और सबसे बढ़िया इलाज है, इंसान का थूक यानि मुंह की लार. मैंने बताया था न की जब भी जंगल में किसी भी जानवर या पक्षी को कोई चोट लग जाती है. तो वो उसे खुद ही चाट चाट कर ठीक कर देता है, वहां जंगल में कोई डॉक्टर तो होता नहीं. तुम्हारे जांघों के जोड़ पर यह रेशेस हुए हैं, तो तुम खुद तो वहां पर चाट नहीं सकती तो एक इलाज है की कोई दूसरा इसे चाट कर ठीक कर दे. तुम्हारी माँ को भी जब कभी ऐसा होता है तो मैं हे तुम्हारी माँ की जांघें और उनके जोड़ पर चाट देता हूँ तो वो ठीक हो जाती है, अब घर में कोई और तो है नहीं तो मुझे ही अपनी प्यारी बेटी की मदद करनी पड़ेगी. मैं तुम्हारा बाप हूँ और कोई भी बाप अपनी बेटी को तकलीफ में नहीं देख सकता. तो तुम कोई विचार मत करो, जाओ अपने कमरे में जा कर लेटो मैं अभी आता हूँ और तुम्हारी जांघें और उनके जोड़ चाट चाट कर ठीक कर दूंगा. ”

मैं समझ सकती थी की पापा को जल्दी है की कहीं मैं अपना मन बदल न लूँ और उन्हें अपनी बेटी की जांघें चाटने का मौका गंवाना न पढ़ जाये.

मैं तो खुद पापा से अपने वहां पर चटवाने को मरी जा रही थी तो ज्यादा देर न करते हुए मैं उठ कर अपने बैडरूम की तरफ चल पड़ी.

पापा मुझे कमरे की ओर जाते देख कर खुश हो गए और पीछे से आवाज दे कर बोले

“बेटी. यह तुमने इतनी बड़ी मैक्सी क्यों पहन ली है, इसे उतार कर कुछ छोटे कपडे पहन लेना. चाटने में आसानी होगी,”

मैं पापा का उतावलापन देख कर मुस्कुरा पड़ी और हाँ में गर्दन हिला कर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।

मैंने पापा को और भी ज्यादा तड़पाना और छेड़ना उचित नहीं समझा और कमरे में आ कर अपनी वो मैक्सी उतार कर रख दी और फिर अपनी ब्रा भी उतार दी और एक छोटी और खुली सी टी शर्ट पहन ली

फिर मैंने पैंटी उतार कर एक स्कर्ट पहनने की सोची. पर फिर मेरे ध्यान में आया कि यदि मेरी पैंटी मेरे प्यारे पापा अपने हाथों से उतारेंगे तो मुझे कितना अच्छा लगेगा. यह सोच कर मैंने अपनी पैंटी पहनी रहने दी और वही पुराणी छोटी सी स्कर्ट पहन कर लेट गयी,

अँधेरा तो हो ही गया था. थोड़ी ही देर में पापा भी आ गए. पापा ने सिर्फ एक लुंगी पहन रखी थी और ऊपर एक बनियान ही थी,

पापा का लौड़ा पहले से ही, या शायद अपनी बेटी की चूत के बारे में सोच सोच कर खड़ा हो गया था और लुंगी के अंदर से पापा के लण्ड का उभार साफ दिखाई दे रहा था.

जब पाप मेरे पास चल कर आये तो उनके चलने से उनका लण्ड लुंगी में इधर उधर झूल रहा था. जो कच्छा न पहना होने के कारण पेंडुलम की तरह दाएं बाएं झूलता साफ दिख रहा था.

पापा के लण्ड को देखते ही मेरी चूत में पानी आ गया. और वो खूब गीली होने लग गयी.

पापा मेरे पास आ कर बैठ गए।

पापा टी शर्ट के नीचे नाचती मेरी नंगी चूचियों (जिनकी घुंडीआं पतली सी टी शर्ट में साफ़ दिखाई दे रही थी )को देख कर मस्त हो गए.

मैं बीएड पर लेटी हुई थी वो मेरे पास बैठ गए. और प्यार से मेरी नंगी टांगों पर हाथ फेरते हुए बोले

“सुमन! यह स्कर्ट भी उतार दो ताकि मुझे तुम्हरी जांघें चाटने में दिक्कत न हो और काम ठीक से हो सके (पर पापा काम तो ठीक कच्छी उतार कर ही होगा ).

मैं शर्माने का नाटक करती हुई बोली

“पापा! मुझे शर्म आती है. आप कमरे की लाइट बंद कर दें.”

पापा मुस्कुराते बोले

“बेटी लाइट तो जलने दो. वरना मुझे ठीक से दिखाई नहीं देगा और फिर गलती से हो सकता है की तुम्हारी जांघें जहाँ पर रेशेस है, चाटने में कहीं इधर उधर भी जीभ लग जाये। लाइट होगी तो मुझे सब ठीक से दिखेगा न। ”

(जीभ तो मैं जानती ही थी की इधर उधर लगनी ही है ) तो मैं इंकार करते बोली

“पापा नहीं मुझे शर्म आती है. यदि लाइट जलती रखनी है तो मैं सिर्फ स्कर्ट उतरूंगी पर अपनी पैंटी नहीं. आप खुद सोच लो.वैसे थे मेरी पैंटी छोटी सी ही तो है. और जहाँ रेशेस पड़े हैं वो जगह तो पैंटी नहीं है, ”

पापा बेचारे मुझे नंगी करने को तो मरे जा रहे थे तो पैंटी पहने रखने को कैसे राजी हो सकते थे. उन्होंने हथियार डाल दिए और बोले

“बेटी देखो. पैंटी पहनी होगी तो रेशेस पर ठीक से थूक से चाटा नहीं जा सकेगा, इसलिए मैं लाइट बंद करके अँधेरा कर देता हूँ. पर फिर न कहना कि पापा अँधेरे में जीभ ठीक से सिर्फ रेशेस पर नहीं फिर पायी।”

मैं तो सिर्फ रेशेस पर जीभ न फिर इसके लिए तैयार थी ही, तो मान गयी।

पापा ने उठ कर लाइट बंद कर दी. कमरे में अँधेरा हो गया. बस ऊपर रोशनदान से बाहर गली की थोड़ी सी लाइट आ रही थी, पर उस में कुछ ख़ास दिखाई नहीं दे रहा था.

पापा मेरी नंगी टांगों पर हाथ रख कर बोले

“अब तो ठीक है न सुमन! लाइट बंद हो गयी है और खूब अँधेरा हो गया है, अब अपनी स्कर्ट उतार दो. ”

मैं तो खुद नंगी होने के लिए मरी जा रही थी तो मैंने भी ज्यादा देर न करते हुए अपनी छोटी सी स्कर्ट तुरंत खोल कर साइड में रख दी और लेट गयी.

पापा नई मेरी टांगों पर हाथ रख दिया और उसे ऊपर की ओर ले जाने लगे.

पापा को मालूम था कि घर में कोई नहीं है तो वो पूरा टाइम ले ले कर और मजे से यह खेल खेल रहे थे.

धीरे धीरे पापा के हाथ मेरी जांघों की जड़ तक पहुँच गए. फिर पापा ने अँधेरे का फ़ायदा उठाते हुए हाथ मेरी चूत की ओर बढ़ाया।

ज्योंही उनका हाथ मेरी जांघों के जोड़ पर पहुंचा तो उनका हाथ उनके अनुमान के विपरीत मेरी नंगी चूत पर नहीं बल्कि मेरी पैंटी पर पड़ा.

पापा तो मेरी चूत नंगी होने का सोच रहे थे. वो थोड़ा मायूस हो कर बोले

“अरे सुमन बेटी! अभी तो तुमने नीचे के कपडे उतारने का कहा था. पर तुमने तो सिर्फ स्कर्ट उतारी है. अभी भी चड्डी पहनी हुई है. अभी अँधेरा है और कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा तो तुम यह चड्डी भी उतार दो ताकि ठीक से रेशेस ठीक किये जा सकें. ”

मैं तो तैयार थी ही बस पापा के हालात का मजा ले रही थी की पापा अपनी बेटी को नंगा करने को कितने उतावले हैं.

तो मैं फिर उन्हें बहकाती हुई बोली

“पापा रेशेस तो जांघ के जोड़ पर ही हैं, और वहां तो पैंटी का कोई ज्यादा कपडा नहीं है, पर फिर भी यदि आप को लगता है की ठीक से रेशेस ठीक करने के लिए इसे भी उतारना होगा तो आप ही इसे उतार दो. मुझे तो शर्म आती है. एक जवान लड़की कैसे अपने पापा के आगे अपनी कच्छी खोल कर नंगी लेट सकती है, मुझसे तो कच्छी उतारी नहीं जाएगी. आप खुद ही यह काम करो। ”

वाकई में छोटी सी चड्डी में मेरी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी जिसे देखकर पापा मदहोश हुआ जा रहे थे, और उनकी आंखों में खुमारी छाने लगी थी,,,।

पापा हँसते से बोले

“अरे सुमन! शर्मा क्यों रही हो। उतार दो अपनी यह छोटी सी चड्डी भी. और इसे उतारने से तुम नंगी कैसे हो जाओगी, तुमने अभी अपनी टी शर्ट भी तो पहनी है, नंगी का मतलब होता है, कि शरीर पर वस्त्र न होना. जब इतनी बड़ी टी शर्ट है तो चड्डी उतरने से नंगी थोड़े ही न होगी तुम.”

पापा तो मुझे पटा रहे थे और मैं खुद पटने को तैयार थी ही,

पापा उतावले पन से बोले

“इसे भी उतार तो बेटी, मैं तुम्हें पूरी तरह से रेशेस ठीक कर देनाचाहता हूं”,,,,(पापा एकदम से मदहोश जा रहे थे )

मैं फिर न में गर्दन हिलाते बोली

“पापा,अब सब कुछ मैं हीं करूंगी,,,, यह शुभ काम तो अपने हाथों से करन बहुत अच्छा लगेगा,”

पापा को देर करना मंजूर नहीं था तो बोले

“क्या बेटी सच में यह काम में अपने हाथों से करु,,तो क्या अपने हाथों से उतारकर ही इसे उतार कर देखना होगा कि कितने रेशेस हैं तुम्हारी जांघों पर। ”

“पापा, तो वहां क्यों खड़े है आप, आकर उतार दे इसे”

(आंखों के इशारे से पापा को अपने पास बुलाते हुए बोली,,,,पापा आप कहां पीछे हटने वाले थे, उन्हें तो खुला आमंत्रण मिल रहा था उनका दिल जोरों से धड़क रहा था आज पहली बार वो अपनी प्यारी बेटी की चड्डी अपने हाथों से उतारने जा रहे थे.

पापा उसे अपने हाथों से उतारकर नंगी करने का सुख वह अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहते थे इसलिए मेरी बात सुनते ही उन्होंने धीरे-धीरे अपने हाथ मेरी कमर पर रखे।

पापा के साथ साथ मेरा भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, कईयो बार वह मैं अपने पुराने हरामी बॉयफ्रेंड के साथ इस तरह के अनुभव से गुजर चुकी थी लेकिन आज की बात कुछ और थी आज ऐसा लग रहा था कि मेरी जिंदगी की यह पहली सुनहरी घड़ी थी जिसमे मैं अपने पापा के हाथों से अपनी चड्डी उतरवा रही थी,,, यह सब मेरे लिए बेहद उत्तेजनात्मक पल था जिसमें वह पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी,,,,।

पापा मेरे बेहद करीब बैठे थे और उनकी आंखों के ठीक सामने मेरी चड्डी नजर आ रही थी जो कि मेरे काम रस से गीली हो चुकी थी,,,।

उत्तेजना के मारे मेरा गला सूखता जा रहा था पापा के दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि नहीं वे भी पहली बार अपने हाथों से अपनी ही बेटी की चड्डी उतार कर उसे नंगी करने वाले थे।

अपने दोनों हाथों को बढ़ाकर पापा ने मेरी चड्डी पर रख दिया,,,,, पापा की उंगलियों का स्पर्श अपनी चिकनी कमर पर होते ही मैं एकदम से उत्तेजना के मारे सिहर उठी,,,

ऊपर नीचे हो रही सांसों के साथ साथ मेरी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर पापा की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,,,

धीरे-धीरे पापा चड्डी की साइड्स में अपनी उँगलियाँ फँसायी और चड्डी को नीचे खींचने की कोशिश की. पर चड्डी उतर नहीं सकती थी क्योंकि वो मेरे चूतड़ों के कारण उस से नीचे नहीं जा सकती थी,

पापा मुझे मुस्कुराते हुए बोले

“सुमन अपनी गां… मेरा मतलब अपनी चूतड़।…….. यानि की अपनी कमर ऊपर उठाओ तभी तो मैं कच्छी नीचे कर सकूंगा. ”

पापा उत्तेजना के कारण हकला रहे थे और में उनकी स्थिति का आनंद ले रही थी,

मैं पापा को छेड़ते हुए बोली

“पापा क्या उठाऊं? आप कभी कुछ कहते हो कभी कुछ. एक चीज बोलो तो मैं समज सकूं.”

पापा मेरी शैतानी जानते हुए खुद मजा लेते बोले

“सुमन! तुम मेरी बेटी हो और मैं तुम्हारा बाप (साला जैसे अभी बाप बेटी वाली कुछ बात बाकि रह भी गयी थी,), अब मैं तुम्हे यह कैसे कह सकता हूँ की बेटी अपनी गांड ऊपर को करो ताकि मैं तुम्हारी गांड के नीचे से कच्छी निकाल सकूं। आखिर मैं तुम्हारे आगे गांड या चूत जैसे शब्द थोड़े ही बोल सकता हूँ.”

पापा बहुत शरारती थे. उन्होंने खुले तौर पर गांड चूत दोनों बोल भी दिया और बोलने से इंकार भी कर दिया. मैं भी इस बातचीत का मजा ले रही थी,

मैं भी पापा की तरह दो अर्थी पर गंदे शब्दों का प्रयोग करते बोली

“हाँ पापा. हम दोनों बाप बेटी हैं. हम ऐसे गंदे शब्द जैसे गांड, चूत या लण्ड जैसे थोड़े ही बोल सकते हैं. आखिर आपसी संबंधों की भी तो कुछ मर्यादा होती है, आप ऐसे न बोलें की सुमन अपनी गांड ऊपर उठाओ पर ऐसे ही कहें की सुमन अपनी कमर ऊपर करो. ”

मैं शरारत से मुस्कुरा रही थी, हम दोनों बाप बेटी गंदे शब्द बोल भी रहे थे और मना भी कर रहे थे.

मैंने मुस्कुराते हुए अपनी कमर ऊपर को उठा दी ताकि पापा मेरी पैंटी उतार सकें।

पापा भी तो मेरे बाप थे. वो कोई कम शरारती थोड़े ही थे. उन्होंने एक नई हरकत की और मेरी पैंटी उतारने के लिए मेरी कमर के साइड में उंगलिया डालने की बजाए एक हाथ मेरी कमर के नीचे ले गए और उसे मेरी गांड की दरार की सीध में चड्डी में फंसा लिया. ऊपर वाले दुसरे हाथ को पापा ने ठीक मेरी नाभी के नीचे यानि एन चूत के ऊपर कच्ची में डाला. मैं थोड़ा हैरान हुई पर कुछ न बोली.

पापा इसी पोजीशन में मेरी चड्डी को नीचे की तरफ सरकाने लगे,, पापा और मेरे दोनों के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था और एकदम कामोत्तेजना से भरा हुआ जिसका हम पूरा फायदा और मजा ले रहे थे.

धीरे-धीरे पापा चड्डी को नीचे की तरफ करने लगे और जैसे-जैसे चड्डी नीचे की तरफ आ रही थी वैसे वैसे चड्डी के अंदर छुपा खजाना उजागर होता जा रहा था दोनों टांगों के बीच की हुआ वह जगह के ऊपरी भाग काफी उभरा हुआ नजर आ रहा था, और मेरी चूत का वो स्थान पूरा गीला भी हो चूका था. जिससे जाहिर हो रहा था कि मैं कितनी उत्तेजित हो चुकी थी,,,,,,,

देखते-देखते पापा मेरी चड्डी को मेरी चूत तक ले आये और मेरी रसीली मद भरी बेशकीमती बुर नंगी हो गई, पर क्योंकि कमरे में अँधेरा था तो पापा को मेरी नंगी होती हुई चूत दिखाई तो दे नहीं रही थी,

अब चड्डी काफी नीचे आ चुकी थी. पापा का नीचे वाला हाथ मेरी गांड की दरार में रगड़ते हुए कच्छी को नीचे कर रहा था. और अब पापा के हाथ की उँगलियाँ मेरी चूतड़ों की दरार में से घुसती हुई नीचे को पैंटी को उतारती हुई आ रही थी, तभी पापा की ऊँगली बिलकुल मेरी गांड के छेद पर आ गयी. और पापा ने ऊँगली के पोर से मेरी गांड के सुराख को सहलाना शुरू कर दिया.

अब तक पापा की ऊपर वाली ऊँगली भी मेरी चूत की फांकों के बीच में घिसती हुई बिलकुल मेरी चूत पर आ गयी, और पापा की उँगलियाँ मेरी भगनासा पर आ कर रुक गयी,

अब स्थिति बहुत ही नाजुक हो गयी थी, नीचे पापा की ऊँगली मेरी गांड के छेद पर रगड़ रही थी और ऊपर मेरी भगनासा पर. यह दो तरफ़ा हमला मेरे लिए असहनीय था. मैं अब समझ गयी थी की पापा ने कमर के साइड से मेरी पैंटी क्यों नहीं उतारी थी और इस अजीब से ढंग से क्यों उसे उतार रहे थे.

मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, पापा मेरे आनंद को समझ रहे थे. वो अपनी दोनों उँगलियों से मेरी गांड और चूत को सहला रहे थे.

पापा के हाथ की ऊँगली ज्योंही मेरी गांड के छेड़ पर आयी, तो मैं सिसकारी लेते हुए अपने आप मेरी कमर हिल गयी, कमर के हिलते ही पापा की ऊँगली मेरी गांड में घुस गयी, (अब यह पता नहीं की वो पापा ने जानबूझ कर घुसाई थी या मेरे अचानक हिल जाने से हुआ,)

इधर ज्योंही मेरी गांड में ऊँगली घुसी अपने आप मेरी कमर ने ऊपर को झटका खाया. उसका असर यह हुआ की पापा की जो ऊपर वाली ऊँगली मेरी चूत पर सेहला रही थी, एक इंच तक मेरी चूत में घुस गयी, अब मेरी गांड और चूत दोनों में पापा की ऊँगली थी,

मेरे मुंह से आह आह की आवाज निकल रही थी, पापा।…. आह।…आह मर गयी, इस तरह से मेरे मुंह से अपने आप सिसकारियां निकलने लगी,

मन कर रहा था की पापा देर क्यों कर रहे हैं. अपनी पूरी उंगलिया मेरी गांड और चूत में क्यों नहीं डाल देते और अंदर बाहर करके मुझे चोद दें.

पर पापा तो खेले खाये हुए और अनुभवी इंसान थे. वो इतनी जल्दी यह सब थोड़े ही करने वाले थे.

थोड़ी देर वहीँ पर रुक कर पापा थोड़ी ही ऊँगली से छेद के अंदर मजा लेते रहे. मेरी चूत बहुत पानी बहा रही थी, जिसे देखते ही पापा के तन बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी उनकी आंखों की चमक बढ़ गई काम का नशा बढ़ने लगा,,,,

अपने सूखते गले को अपने थूक से गीला करते हुए पापा ने ऊपर नजर करके मेरी तरफ देखा तो मैं भी उन्ही को ही देख रही थी

आपस में दोनों की नजरें टकराई,,,, आंखों ही आंखों में इशारा हो गया था मैं ने आंखों के इशारों में ही मैं ने उसे अपनी चड्डी उतारने के लिए बोल दी थी,,,,

पापा ने भी मेरे आमंत्रण को स्वीकार करते हुए मेरी चड्डी नीचे घुटनों तक ला दिया,,, लेकिन अब उनमे सब्र बिल्कुल भी नहीं था उनकी आँखों के सामने मेरा बेशकीमती खजाना पड़ा था.

ठीक है की कमरे के अंदर अँधेरा होने के कारण सब साफ़ नहीं था पर अब तक हमारी आँखें अँधेरे की आदि हो चुकी थीं. तो हमें अँधेरे में भी हल्का हल्का दिखाई दे ही रहा था..

बल्कि यह कहें की हल्का सा यह दर्शन कामुकता को और भी बढ़ा रहा था.

पापा ने मेरी पैंटी उतार कर साइड में रख दी. और वे अब अपना हाथ बढ़ा कर अपनी उंगलियों से मेरी बुर को स्पर्श करने लगे,,, और एक दम मस्त होने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे पापा वाकई में कोई बेशकीमती खजाना पा गए हो

और उस पर अपनी हथेली रख कर अपने आपको विश्वास दिला रहे हो कि अब यह सब तेरा है,,,।

पापा की उंगलियों का स्पर्श पाकर मेरा भी सब्र का बांध टूटता हुआ महसूस होने लगा था क्योंकि अब मेरी चूत में से मदन रस की बूंदे अमृतधारा बनकर गिरने लगी थी,,,

उस अमृतधारा को पापा जमीन पर गिर कर जाया नहीं होने देना चाहते थे।

इसलिए वो मुझे बोले

“सुमन अपनी दोनों टांगें चौड़ी करके पूरी तरह से खोल लो ताकि मैं तुम्हारी जांघों के जोड़ पर अपने मुंह की लार से चाट चाट कर तुम्हारी रेशेस ठीक कर दूँ. ”

मैं तो कब से इन शब्दों का इन्तजार कर रही थी, तो मैंने तुरंत अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर ली और उन्हें जितना खोल सकती थी खोल कर ऊपर को मोड़ लिया और अपने घुटनों से टांगों को पकड़ लिया. ऐसा लग रहा था की मैं अपने पापा के लिए पूरा पोज़ तैयार कर दिया था.

अँधेरे का अपना लाभ भी तो है, मैं अब पूरी नंगी अपने पापा के आगे टांगें चौड़ी करके लेटी थी पर मुझे इतनी शर्म नहीं आ रही थी, यदि कमरे में लाइट होती तो मैं लाख चाह कर भी ऐसा न कर पाती.

खैर पापा के लिए भी अब रुक पाना असंभव हो गया था. तो उन्होंने अपनी जीभ मेरी टांगों के जोड़ पर रख कर उन्हें चाटना शुरू कर दिया.

पापा थोड़ी देर मेरी जाँघों के जोड़ पर चाटते रहे.

(आखिर रेशेस ठीक करने का भरम भी तो रखना था. अभी भी हम बाप बेटी के रिश्ते में थोड़ी से दीवार तो बाकि थी ही ). पापा दो तीन मिनट तक मेरी जांघें ही चाटते रहे। मैं तो उनके होंठ अपनी चूत पर पाने के लिए तड़प रही थी पर पापा थे कि मेरी टाँगें ही चाटते जा रहे थे.

(अब पापा अनुभवी थे तो मेरी तड़प बढ़ा रहे थे और इधर मैं बेचैन हुई जा रही थी, हालाँकि घर में हम दोनों बाप बेटी ही थे तो हमारे पास पूरी रात थी मजा लेने के लिए पर मेरे लिए तो एक एक पल निकालना एक एक साल के समान हो रहा था. )

खैर थोड़ी देर बाद पापा ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूत पर रख दिया. चूत पर हाथ आते ही मेरा शरीर अपने आप झटका खा गया.

(अब यह तो पापा जाने कि यह अचानक हुआ या यह उनकी चाल थी पर मेरी कमर के झटका खाते ही उनका मुंह सीधे मेरी चूत पर आ गया और पापा ने मेरी भगनासा अपने होंठों में दबा ली )

अब यह सब तो पापा के लिए भी असहनीय था. इसलिए पापा ने तुरंत अपने होठों को आगे बढ़ा कर मेरी तपती हुई चूत पर रख दिया,,, मैं पापा के इस अद्भुत कार्य शैली को देखकर एकदम से सिहर उठी,,,, पर तुरंत अपने दोनों हाथों को उसके सर पर रख कर उसे अपनी बुर से चिपका दी,,,,,

पापा मंत्रमुग्ध मदहोश हुआ जा रहे थे,,, पापा ने अपनी प्यासी जीभ निकालकर,,, तुरंत मेरी रसीली बुर के छेद में डाल दिया और उसे चाटना शुरू कर दिया,,,, शायद मेरी माँ ने उन्हें चूत चाटने की कला में पूरा पारंगत कर दिया था और वे अब अपनी उस कला का उपयोग अपनी बेटी की चूत पर कर रहे थे.

मैं पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी पुराने बॉयफ्रेंड के बाद अब कोई इस तरह से बुर चाट कर मुझे मस्त कर रहा था

मैं भी पागल की तरह पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी गांड को गोल-गोल घुमाते हुए अपनी बुर को पापा के होंठों पर रगड़ रही थी,,,

जिससे मेरे साथ-साथ पापा की भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,।

मेरे ऊपर वासना का ऐसा भूत सवार था कि मैं किसी तरह का कोई इंतज़ार नहीं करना चाह रही थी, मुझे मेरी गरम चूत का इलाज तुरंत चाहिए था।

पापा ने मेरी दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैलाया हुआ था और अपना मुंह सीधा मेरी चूत पर रख दिया था और जीभ निकालकर तेजी से चूत चाट रहे थे।

मेरी मुंह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगीं.

इधर पापा तेजी से मेरी चूत चाटे जा रहा थे और मैं पापा के सिर को पकड़े कमर हिलाते हुए तेजी से चूत चटवा रही थी।

पापा को भी मजा आ रहा था पर उनके लण्ड ने भी उन्हें तंग कर रखा था तो कमरे के अँधेरे का पापा ने भी लाभ उठाते हुए अपनी लुंगी में से अपना सख्त और मोटा लौड़ा बाहर निकाल लिया और धीरे धीरे उसे सहलाना शुरू कर दिया.

कमरे की थोडी सी हलकी रौशनी में मुझे पापा का लण्ड सहलाना दिख रहा था.

पापा का लौड़ा भी बिलकुल खड़ा था. मेरा तो मन कर रहा था की पापा के मुंह को परे करके, पापा का लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत में घुसवा लूँ. या खुद पापा का लौड़ा पकड़ कर मुठ मारना शुरू कर दूँ.

पर पापा क्योंकि मेरी दोनों टांगों के बीच में थे, तो मेरी चूत में जीभ डालने के लिए उन्हें मेरी टांगों के बीच लेटना पड़ा था. लेटने के कारण उनका लौड़ा मेरे हाथ से बहुत दूर था.

मैं पापा को मुठ मारते हुए देख ही सकती थी,

मैंने अपने होठों को दांतों से भींच रखा था ताकि मुंह से सिसकारी की आवाज तेज न निकले।

उसके बावजूद मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकल रही थी- आआआ आआह हहह … पापा … तेज और तेज चाटो पापा … आह!

मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि चूत चाटते हुए बीच-बीच में पापा आराम से अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डालकर घुमा रहे थे।

मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी कि मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था।

मैं तो बस यही सोच रही थी कि जब पापा के साथ शुरुआत इतनी जबरदस्त है तो चरम कितना आनंददायक होगा,,,,

मैं तो बस लेती हुई थी, और पापा अपनी जीभ से मुझे और अपने हाथों से खुद को आनंद दे रहे थे.

वो मेरी चूत भी चाट रहे थे और अपना लण्ड भी हिला रहे थे.

नीचे से मैं पूरी नंगी थी और पापा एक औरत की खूबसूरत बदन से खेलना अच्छी तरह से जानते थे इसलिए उन्होंने अपनी जीभ मेरी चूत से बाहर निकाली और अपनी हथेली को अपनी बेटी की बुर पर रखकर सहलाने लगे जो की पूरी तरह से पानी पानी हुई थी उनकी हथेली भी पूरी तरह से उनकी बेटी सुमन के काम रस में डूब गई,,,, मुझे को बहुत मजा आ रहा था,,,।

“आहहहहह पापा,,,मर गयी आप ने यह क्या कर दिया पापा?”

पापा बोले

“कैसा लग रहा है सुमन,,,. तुम्हारे रेशेस ठीक हो रहे हैं क्या. देखो तुम्हारे सारे रेशेस ठीक हो जाने चाहिए। कोई कसर रह रही हो तो बता दो. ”

अब मैं क्या कहती, कसर तो यही रह रही थी कि पापा झट से अपना यह मूसल जैसा लण्ड, जिसे आप अभी मुठ मार रहे हो, इसे अपनी बेटी की चूत में डाल दो और जोर से चोद दो अपनी प्यारी सुमन को. पर अभी भी हम बाप बेटी अपने सामजिक संबंधों का नाटक कर रहे थे तो मैं भी उसी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली

“बहुत अच्छा लग रहा है पापा,,,. मेरे रेशेस ठीक हो रहे हैं. (अब साली पापा की जीभ रेशेस पर तो थी ही नहीं. वोह तो उनकी अपनी बेटी की चूत में घुसी हुई थी. रेशेस तो कहीं आस पास भी नहीं थे, पर हम बोल तो यही रहे थे.). आप लगे रहिये। लगता है आज मेरी सारी समस्या ठीक हो जाएगी. आप का इलाज बिलकुल ठीक है, बस थोड़ी ही देर है, मेरे रेशेस ठीक होने में. ”

मैंने अब साफ़ साफ़ इशारों में बता दिया था की मेरा काम तमाम होने वाला है,

पापा भी खुश हो कर बोले

“अभी तो और मजा आएगा,,’ मेरा इलाज तुम्हे बहुत जल्दी ठीक कर देगा. और तुम्हे अच्छा भी लगेगा. बस मेरी भी थोड़ी ही देर और है,”

पापा यह कह कर मेरी चूत पर से थोड़ा उठे और अपनी बेटी की खुली हुई दोनों टांगों के बीच एक नजर भर कर अपनी बेटी की बुर को देखने लगे जो कि बहुत खूबसूरत थी,,,,

पापा का मन कर रहा था कि बेटी की चूत को खा जाएं उसकी खूबसूरती उन्हें भा गई थी,,, पापा अपनी बेटी के दोनों टांगों के बीच के खजाने को देख रहे थे और मैं अपने पापा को देख रही थी दोनों की स्थिति एक जैसी ही थी दोनों उतावले थे,,,

लेकिन पापा में अनुभव और सब्र पूरी तरह से था वह जानते थे कि किस तरह से मजा लिया जाता है और मजा दिया जाता है इसलिए अगले ही पल उन्होंने फिर से अपने होठों को अपनी बेटी की बुर पर रख दिया,,,

और अपनी मुठ मारने की भी स्पीड बढ़ा दी.

मैं पूरी तरह से मदहोश हो गई और मेरे मुंह से हल्की सी चीख निकल भी गई और इसी के साथ मेरी कमर भी अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई जिसे पापा ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे नितंबों को अपनी हथेली में जोर से थाम लिया और भूखे कुत्ते की तरह मेरी बुर को चाटना शुरू कर दिया,,,,,।

ऊमममममममम,,,,,,आहहहहहहहहह,,,ऊमममममममम,,,सहहहहहहहरह,,,ओहहहहह पापा,,,

(मेरा सब्र का बांध टूट चुका था और मैंने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर अपने पापा के सिर पर हाथ रख दिया और उत्तेजना के मारे खुद ही उसे अपनी दोनों टांगों के बीच खींचने लगी पापा बहुत खुश हो रहे थे क्योंकि उसकी हरकत की वजह से उनकी बेटी को बहुत मजा आ रहा था

और यही तो वे चाहते थे।

पापा अपनी जीभ से मेरी बुर के छेद में जीभ घुमा घुमा कर और चूत के दाने से खेल रहे थे और अपनी जीभ की नोक से मेरी बुर की पत्तियों को कुरेद रहे थे,, जिससे मुझे असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,,

पापा बहुत खुश थे कि उनके हाथ एक कुंवारी खूबसूरत जवान लड़की लगी थी जिसकी जवानी को वह होले होले से पी रहे थे,,, जितना हो सकता था पापा अपनी जीभ को बुर के अंदर डालकर उसकी मलाई चाट रहे थे,,,,

कमरे के अंदर बस उनकी बेटी की गरम सिसकारियां गुंज रही थी और मुझे बेहद आनंद आ रहा था,,,,।

पापा ने अपनी बेटी की बुर को जीभ से चाटते हुए अपने लंड के लिए रास्ता बनाने के लिए अपनी उंगली को मेरी चूत में प्रवेश करा दिया।

पापा की ऊँगली भी इस समय मुझे किसी छोटे मोटे लण्ड से कम नहीं लग रही थी, अपने पापा की ऊंगली को अपनी बुर के अंदर महसूस करके मैं पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी

पापा अपनी उंगली को बुर के अंदर गोल गोल घुमा रहे थे जिससे मैं समझ रही थी कि पापा अपने अनुभव का पूरा उपयोग दिखा रहे हैं।

कुछ देर तक पापा अपनी बेटी की जवानी का रस चूसते रहे।

इधर अब तो मेरी चूत लंड के लिए तड़प रही थी पापा के मोटे तगड़े लंड को अपने अंदर लेने के लिए मचल रही थी,,, बुर के अंदर की संकरी दीवारें,,, पापा के मोटे तगड़े लण्ड के मांस को अपने अंदर महसूस करने के लिए उतावली हुए जा रही थी इसलिए बार-बार पानी छोड़ रही थी,,,,।

मेरी मदहोशी देखकर पापा भी मस्त हो गए थे। और वो भी अपना मुठ मार रहे थे.

पापा का हाथ उनके लंड पर तेज तेज चल रहे था. पापा की भी आहें निकल रही थी,

पापा के होठों से मेरी बुर से निकला काम रस टपक रहा था जिसे देखकर मेरी काम भावना बहुत ही अधिक भड़क रही थी क्योंकि इतने प्यार से किसी ने भी मेरी बुर को आज तक इस कदर चाटा नहीं था,,,,।

पापा ने ऊँगली मेरी चूत में अंदर बाहर करते हुए पुछा

“कैसा लगा बेटी? रेशेस का दर्द कुछ कम हुआ क्या?”

पापा इस सब के बीच में भी अभी भी रेशेस का नाटक भूले नहीं थे. अपनी बेटी की चूत को चाटते हुए भी वो यह नाटक बीच बीच में कर रहे थे.

मैं तो मस्त थी ही। इसलिए प्यार से पापा के बालों में उँगलियाँ घुमाती हुई बोली

“पापा आप का इलाज तो बड़ा ही मस्त है, लगता है मेरा सारा दर्द ठीक हो गया है, मजा आ गया पापा। आपके इस इलाज ने तो मुझे मस्त कर दिया।”

मजे में मैं क्या बोले जा रही थी मुझे भी कुछ समज नहीं आ रहा था.

पर यह सब तो ऐसे ही था. क्या बोल रहे हैं इस पर है तो न पापा का ध्यान था न ही मेरा।

हम दोनों बाप बेटी तो अपनी मस्ती में मगन थे.

कमरे में मेरी सिसकारियों की आवाजें गूंज रही थी, जिस से साफ पता चल रहा था कि मुझे कितना मजा आ रहा है। पापा की किसी विशेषज्ञ की तरह जबान चल रही थी।

उनकी जबान इस तरह चल रही थी जैसे किसी कुशल संगीतज्ञ की उँगलियाँ किसी संगीत पर नृत्य कर रही हों.

वो मेरी चूत को अंदर से, बाहर से, उसकी तरफ से चूस चाट रहे थेकि ऐसा लगता था जैसे वो मेरी चूत के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे हों ।

अगर इस वक्त पापा मुझे चोदने की कोशिश करते तो शायद मैं चुद जाती।

मेरे मुंह से अपने आप आवाजें निकल रही थी

ओहह पापा पुरी जीभ अंदर डालकर चाटें और मेरी रेशेस ठीक कर दीजिये,,, आहहहहह पापा बहुत मजा आ रहा है मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आप कितना अच्छा इलाज जानते होंगे. मेरी रेशेस का सारा दर्द आज ठीक हो जायेगा।

आहहहहहह,,,,,आहहहहहहह,,,(आंखों को बंद करके मैं मस्ती की फुहार में नहा रही थी मेरी बुर बार-बार काम रस छोड़ रही थी,,, जिसका स्वाद मेरे पापा अपनी जीभ से ले रहे थे,,,। मेरी गरम सिसकारियों की आवाज को सुनकर पापा पूरी मस्ती के साथ अपनी बेटी की बुर की मलाई की चटाई कर रहे थे.

अब मेरी छूट तेजी से फड़कना शुरू हो गयी थी, चूत की दीवारें अपने आप कस रही थी जिससे पापा की जीभ को घूमाना और अंदर बाहर ककरना पापा के लिए मुश्किल हो रहा था.

पापा तो अनुभवी चोदू थे तो वो मेरी आवाजों और मेरी चूत की धड़कन से समज गए की मेरा काम खलास होने के पास ही है,

तो पापा ने नीचे अपने लण्ड को मुठ मारने की स्पीड भी बढ़ा दी.

पापा चाहते थे की उनकी बेटी और उनका स्खलन एक साथ ही हो.

उस सेक्स का मजा ही क्या जिस में दोनों पार्टनर्स में से एक का ही माल निकले और दूसरा तड़पता रह जाये.

पापा के रहते यह तो संभव ही नहीं था. तो पापा मेरी चूत में अपनी एक ऊँगली और कभी जीभ इस ढंग से प्रयोग कर रहे थे की दोनों बाप बेटी का काम तमाम इस ढंग से हो की दोनों को ही अधिकतम मजा आये।

पापा के भी मुठ मारने की स्पीड बढ़ गयी थी,

मैं तो चाहती थी की पापा का लण्ड मैं अपने हाथों में पकड़ लूँ और मैं अपने पापा का लौड़ा मुठियॉँ दूँ पर पापा क्योंकि मेरी टांगों के बीच बैठे थे तो उनका लौड़ा मेरे हाथों से बहुत दूर था.

खैर कोई बात नहीं. पापा आज आप खुद ही मुठ मार लीजिये आगे से मैं कोशिश करुँगी की आप का काम मैं कर दूँ.

मेरी छूट की फड़कन अब भर बढ़ गयी थी, अचानक मैंने तेजी पापा के सिर को कसकर पकड़ लिया और अपनी चूत से एकदम सटा दिया.

मेरे मुंह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआ आआ आआहह हहह … बस ससस! पापा बीएस. हो गया आप की बेटी का इलाज. ठीक हो गयी मेरी रेशेस. ओह ओह पापा मर गयी मैं.

मेरी चूत अपने आप ऊपर को उठ गयी जिस से पापा की जीभ मेरी चूत में बहुत अंदर तक घुस गयी.

और मेरी चूत ने भरभरा कर ढेर सा पानी छोड़ दिया।

मैं करीब 15-20 सेकेण्ड तक उसी तरहपापा के मुंह को चूत में दबाए रही और मेरी चूत से मेरा कामरस अमृत निकलता ही रहा और पापा उसे पीते गए. ।

ज्योंही मेरी चूत ने पानी छोड़ा तो पापा के लौड़े ने भी उनके हाथ में झटके खाने शुरू कर दिए।

पापा समझ गए की उनका माल निकलने वाला ही है तो उन्होंने झट से पास में पड़ी मेरी पैंटी जो हमने अभी ही उतारी थी, को उठा कर तुरंत अपने लण्ड पर लपेट लिया.

ज्योंही मेरी चूत ने अपना पानी छोड़ा और वो पापा के मुंह में गया तो पापा के मुंह से भी एक जोर की आवाज निकली और उनका भी बदन अकड़ गया. और पापा के भी लौड़े ने अपना गाढ़ा गाढा माखन छोड़ना शुरू कर दिया.

पापा का भी स्खलन इतना जबरदस्त था की काफी देर तक उनका लण्ड मेरी पैंटी में झड़ता रहा और मेरी पैंटी उनके माल से लथपथ हो गयी.

कुछ देर बाद जब पापा का वीर्य निकलना बंद हुआ तो पापा ने एक बार फिर जोर से पैंटी में लंडमुण्ड को साफ करके मेरी पैंटी, जो अब पापा के माल से तर थी, को नीचे ही फेंक दिया.

पापा ने मेरी चूत का सारा पानी चाट लिया उसके बाद उसने चूत से मुंह को हटाया और खड़े हो गए.

मैं भी सांस को जल्दी से काबू में करने की कोशिश करने लगी।

पापा मुझे प्यार से देखते हुए बोले

“सुमन! अब क्या हाल है तुम्हारी रेशेस का. रेशेस की तकलीफ कुछ कम हुई या नहीं?”

मैंने शर्म से अपना मुंह परे को कर लिया और पापा से कहा

“पापा! आप के इलाज से मेरी रेशेस काफी ठीक हो गयी हैं. अब तो सारा दर्द ख़त्म हो गया है, फिर भी यदि थोड़ा बहुत दर्द रह भी गया तो आप कल फिर एक बार मेरा इलाज कर दें ”

पापा को और क्या चाहिए था. वो बहुत खुश हो गए की मैं उनकी इस चूत चटाई से खुश हूँ. और उन्हें फिर दुबारा से भी चूत चाटने का आमंत्रण दे दिया है,

पापा ने एक बार फिर प्यार से मेरी चूत पर हाथ फेरा और मेरी स्कर्ट को नीचे करके अपने कमरे में चले गए.

हम दोनों बाप बेटी अपने इस जांघों के रेशेस के इलाज से इतने थक गए थे की कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला.

मजा तो बहुत आया पर पापा के लण्ड से चुदवाने की इच्छा आज भी अधूरी ही रह गयी।

खैर मैं भी हार नहीं मानने वाली थी,

लगी रहूंगी और एक दिन पापा से चुदवा कर ही दम लूंगी,

देखते हैं सुबह क्या होता है,

कहानी का अगला भाग: शैतान बेटी के जाल में फंस गया बाप – भाग 2

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