ननद और देवर को चुदाई का ज्ञान दिया

Nanad Bhabi aur Devar chudai मेरा नाम है कैलाश। मैं एक देहाती लड़की हूँ, हाई स्कूल तक पढ़ी हुई। मेरी शादी दो साल पहले हुई थी। मेरे पति गंगाधर किसान हैं। वो 22 साल के हैं और मैं 18 साल की। घर में हम दोनों ही रहते हैं, उनके माता-पिता कई सालों से गुजर चुके हैं। मैं एक साधारण सी लड़की हूँ, गाँव की मिट्टी में पली-बढ़ी, मेरे बाल लंबे और काले हैं, रंग गोरा और बदन भरा हुआ। गंगाधर लंबे-चौड़े हैं, गठीला बदन और गहरी आँखें, जो मुझे देखते ही प्यार से चमक उठती हैं। आज मैं आपको अपनी निजी कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो मेरे दिल के करीब है और शायद आपको भी पसंद आए।

मेरी छोटी उम्र से ही सेक्स के बारे में जिज्ञासा थी। गाँव में रहते हुए हम बच्चे बचपन से ही गाय, भैंस, कुत्ते जैसे जानवरों की चुदाई देखते आए हैं। मेरे पिताजी के घर कई गायें थीं। जब वो हीट में आती थीं, तब हमारा नौकर सांड लाता था। मैंने बचपन से ही सांड का पतला, लंबा लंड गाय की चूत में जाते देखा था। दस साल की उम्र तक ये सब देखकर मुझे कुछ नहीं होता था, बस एक खेल सा लगता था। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, गाय की चुदाई देखकर मेरे बदन में कुछ अजीब सा होने लगा। मेरे मन में सवाल उठते, और बदन में एक गुदगुदी सी दौड़ने लगती।

बारह साल की उम्र में मेरी महवारी शुरू हुई। मेरी बड़ी बहन ने मुझे समझाया कि पति जो करे, उसे करने देना, बस पाँव लंबे करके सोते रहना। उस वक्त मेरे सीने पर बड़े-बड़े स्तन उभर आए थे, मेरे नितंब भारी और चौड़े हो गए थे। मेरी चूत पर काले, घुंघराले बाल उग आए थे, जो मुझे देखकर शर्मिंदगी भी होती थी और उत्सुकता भी। उसी साल मेरी मंगनी गंगाधर से हो गई। पहली बार जब वो हमारे घर आए, हम अकेले में मिले। गंगाधर ने मेरी कच्ची चूचियों को सहलाया, मेरा हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। मुझे गुदगुदी हुई, मन में एक अजीब सी हलचल मची। अगर उस दिन जीजी नहीं आ जातीं, तो शायद मैं उस दिन ही चुद जाती।

खैर, 16 साल की उम्र में शादी हो गई और मैं ससुराल आ गई। पहली रात की बात मैं कभी नहीं भूल सकती। गंगाधर ने मुझे इतने प्यार से चोदा कि वो पल मेरे दिल में बस्ता है। आधे घंटे तक उन्होंने मेरे होंठों को चूमा, मेरे स्तनों से खेला, मेरी चूत को सहलाया। फिर मेरे हाथ से उनका लंड सहलवाया और आखिरकार मेरी चूत में डाल दिया। योनि का पर्दा टूटा, दर्द तो हुआ, लेकिन चुदवाने के उत्साह में कुछ पता नहीं चला। एक घंटे तक चली चुदाई में मैं दो बार झड़ी। आज भी वो मुझे ऐसे ही चोदते हैं, जैसे हर रात हमारी सुहागरात हो। हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। हमने आपस में समझौता किया है कि वो जिस लड़की को चाहें, चोद सकते हैं और मैं जिस मर्द से चाहूँ, चुदवा सकती हूँ। लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं था।

शादी के दो साल बाद गंगाधर के एक दूर के चाचा कई साल अफ्रीका में रहकर लौटे। उनके परिवार में एक लड़का था, परेश, मेरी ही उम्र का, और एक लड़की, मधवी, जो मुझसे दो साल छोटी थी। परेश और मधवी दोनों सुंदर और गोरे-चिट्टे थे। परेश का कद मुझसे थोड़ा लंबा, भरा हुआ बदन और हँसमुख चेहरा। मधवी नाजुक सी, लंबे बाल और बड़ी-बड़ी आँखें, जो हमेशा कुछ कहती सी लगती थीं। अफ्रीका में दोनों भाई-बहन रेजिडेंशियल स्कूल में पढ़े थे। चाचा नया घर बनवा रहे थे, इसलिए उस दौरान वो सब हमारे घर ठहरे।

परेश और मधवी बहुत प्यारे थे। उनके साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी। नए घर में जाने के बाद भी वो रोज मेरे घर आते, और हम दुनिया भर की बातें करते। मैंने देखा कि दोनों बहुत होशियार थे, लेकिन सेक्स के बारे में बिल्कुल अनजान। परेश को लगता था कि लड़की के मुँह से लड़के का मुँह लगाने से बच्चा पैदा होता है। मधवी को थोड़ा ज्यादा पता था, लेकिन उसे नहीं मालूम था कि चुदाई कैसे होती है।

एक दिन गंगाधर को दूसरे गाँव जाना पड़ा। इतने बड़े घर में रात को अकेले रहने से मुझे डर लगता था। मैंने परेश और मधवी को सोने के लिए बुला लिया, चाचा-चाची की इजाजत के साथ। रात का खाना खाकर हम ताश खेलने बैठ गए। परेश ने रानी डाली, उस पर मैंने राजा डाला। मधवी शरमाते हुए हँसी और बोली, “रानी पर राजा चढ़ गया, अब बच्चा होगा।” परेश ने गुस्से में कहा, “क्या बकवास करती है?” मधवी ने जवाब दिया, “तू नहीं समझेगा। है ना भाभी?” मैंने हँसकर कहा, “ये तो ताश है, इसमें बच्चा-वच्चा कुछ नहीं होता।”

खेल आगे बढ़ा। मधवी की रानी पर मैंने गुलाम डाला। मधवी फिर बोली, “भाभी, रानी पर गुलाम चढ़ेगा तो राजा उसे मार डालेगा।” परेश अब गुस्से में पत्ते फेंककर बोला, “ये क्या चढ़ने-उतरने की बातें चला रखी हैं?” मैंने उसे शांत किया। मधवी मुँह छिपाकर हँस रही थी। वो बोली, “भैया, भाभी से पूछो ना, बच्चा कैसे पैदा होता है।” परेश चुप रहा। मैंने धीरे से पूछा, “कहो तो सही, मैं जानूँ तो।” परेश ने मधवी से कहा, “चिबावली, तू ही बता दे ना, होशियार कहीं की।” मधवी शरम और हँसी में डूबी थी। मैंने कहा, “मधवी, तू ही बता।” सिर झुकाकर, दाँतों में उँगली डालकर वो बोली, “भैया कहते हैं कि लड़का लड़की का हाथ पकड़कर मुँह से मुँह लगाता है, तब बच्चा पैदा होता है।” मैंने पूछा, “और तू क्या कहती है?” मधवी ने मुँह फेर लिया और बोली, “नहीं बताती, मुझे शर्म आती है।” अब परेश बोला, “मैं कहूँ। वो कहती है कि जब लड़का लड़की पर चढ़ता है, तब बच्चा होता है। क्या ये सच है, भाभी?” मैंने कहा, “सच तो है, लेकिन पूरा नहीं। मधवी, जानती है कि ऊपर चढ़कर लड़का क्या करता है?” मधवी ने सिर हिलाकर हाँ कहा और बोली, “चोदता है।” ये सुनकर परेश अवाक रह गया। फिर बोला, “मधवी, गंदा बोलती है।” मैं समझ गई कि दोनों को चोदने का मतलब नहीं पता था। मैंने पूछा, “जानती हो चोदना क्या होता है?” मधवी बोली, “एक-दूसरे के मुँह से मुँह मिलाते हैं।” परेश ने कहा, “वो तो मैं कब का कह रहा हूँ।” मैंने कहा, “रुको। मुँह से मुँह लगाना चुदाई में होता है, लेकिन इससे ज्यादा और कुछ भी होता है।” मधवी बोली, “भाभी, तुम बताओ ना। बड़े भैया तुम्हें रोज… रोज चोदते होंगे ना?” परेश ने कहा, “मधु, तू बहुत गंदा बोलती है।” मधवी बोली, “तुझे क्या? तू भी बोल।” मैंने कहा, “झगड़ो मत। अब कौन बताएगा कि लड़के और लड़की में फर्क क्या है?” परेश बोला, “लड़के को दाढ़ी-मूँछ होती है और लड़की के सीने पर चूचियाँ।” मैंने कहा, “सही। लेकिन मुख्य फर्क कौन सा है?” मधवी बोली, “जाँघों के बीच लड़की की पिक्की होती है और लड़के की नुन्नी।” मैंने कहा, “बिल्कुल। जब वो बड़े होते हैं, तब उसे भोस और लौड़ा कहते हैं।”

इतनी बातों से हम तीनों उत्तेजित हो चुके थे। मधवी बार-बार अपनी निकर ठीक करने के बहाने अपनी चूत खुजला रही थी। परेश का तना हुआ लंड पजामे में तंबू बना रहा था। मैंने आगे कहा, “जब चोदने का मन होता है, तब आदमी का लौड़ा तनकर लंबा, मोटा और कड़ा हो जाता है। लड़की की भोस गीली हो जाती है। आदमी अपना कड़ा लौड़ा, जिसे लंड भी कहते हैं, उसे लड़की की चूत में डालकर अंदर-बाहर करता है। इसे चोदना कहते हैं।” मधवी ने पूछा, “ऐसा क्यों करते हैं?” मैंने कहा, “ऐसा करने में बहुत मजा आता है। आदमी का वीर्य लड़की की चूत में गिरता है। वीर्य में पुरुष बीज होता है, जो लड़की के स्त्री-बीज से मिलकर नया बच्चा बनाता है।” मधवी ने हँसते हुए कहा, “भाभी, देखो, भैया का… वो खड़ा हो गया है।” परेश बोला, “तुझे क्या?” फिर मेरी तरफ देखकर बोला, “भाभी, एक बात बताऊँ? मेरा तो रोज रात को खड़ा हो जाता है। उसमें कुछ बुरा तो नहीं ना?” मैंने कहा, “कुछ बुरा नहीं। खड़ा भी होता होगा और स्वप्न देखकर वीर्य भी निकलता होगा।” परेश शरमाया, “भाभी, मधु के सामने क्यों…?” मैंने कहा, “अब उसकी बारी है। मधु, तुझे महवारी शुरू हो गई होगी। नीचे भोस पर बाल उगे हैं?” मधवी ने सिर हिलाकर हाँ कहा। मैंने पूछा, “तू उँगली से खेलती है ना?” फिर सिर हिलाकर हाँ। मैंने कहा, “तूने लंड देखा है कभी?” शरमाकर नीचे देखते हुए उसने ना कहा। मैंने पूछा, “परेश, तूने कभी चूचियाँ देखी हैं?” उसने ना कहा। मैंने कहा, “ऐसा करते हैं, मधवी तू अपने स्तन दिखा और परेश तू लंड दिखा।” परेश बोला, “तू क्या दिखाएगी, भाभी?” मैंने कहा, “मैं भोस दिखाऊँगी। परेश, पहले तू।” परेश ने पजामा नीचे सरकाया। लंड के पानी से उसकी निकर गीली थी। वो थोड़ा झिझका, तो मधवी ने हाथ बढ़ाया। परेश ने झट से निकर उतार दी।

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क्या लंड था उसका! सात इंच लंबा और दो इंच मोटा। डंडी एकदम सीधी, मट्ठा बड़ा और टोपी से ढका हुआ। चिकना पानी से लंड गीला था। मधवी आश्चर्य से देखती रही। मैंने परेश को धक्का देकर लेटाया और उसका लंड पकड़ लिया। मेरे छूते ही लंड ने ठुमका लगाया। मखमल में लिपटा लोहे का डंडा जैसा था, बड़ा प्यारा। मैंने कहा, “मधु, ये लंड की टोपी चढ़ सकती है और मट्ठा खुला हो सकता है। देख।” मैंने टोपी चढ़ाई तो लंड से स्मेग्मा की बदबू आई। मैंने कहा, “परेश, नहाते समय इसे साफ नहीं करता? ऐसा गंदा लंड से कौन चुदवाएगी? जा, साफ कर आ।” परेश बाथरूम चला गया।

मैंने मधवी से पूछा, “पसंद आया परेश का लंड? अच्छा है ना?” मधवी बोली, “मैं इसे छू सकती हूँ?” मैंने कहा, “क्यों नहीं? लेकिन चुदवा नहीं सकती।” मधवी ने कहा, “क्यों नहीं? मेरे पास भोस तो है।” मैंने कहा, “सही, लेकिन भाई-बहन आपस में चुदाई नहीं करते।”

इतने में परेश आ गया। ठंडे पानी से धोने से लंड थोड़ा नरम पड़ गया था। मैंने परेश को फिर लेटाया। लंड पकड़कर टोपी चढ़ाई। बड़ा मशरूम जैसा चिकना मट्ठा खुल गया। मैंने हल्के हाथ से मुठ मारी तो लंड फिर तन गया। मैंने पूछा, “मजा आता है ना?” परेश बोला, “खूब मजा आता है, भाभी, रुकना मत।” मैंने धीरे-धीरे मुठ मारना जारी रखा और कहा, “मधवी, कुर्ती खोल और स्तन दिखा।” मधवी बहुत शरमाई, पलटकर खड़ी हो गई। उसने कुर्ती के हुक खोले, लेकिन खुले पखों से स्तन ढककर सामने हुई। मैंने लंड छोड़कर मधवी के हाथ हटाए और कुर्ती उतार दी। उसने ब्रा नहीं पहनी थी, जवानी के स्तन खुले हुए थे।

मधवी के स्तन उसकी उम्र के हिसाब से बड़े थे, गोल और कड़े। पतली, नाजुक चमड़ी के नीचे खून की नीली नसें दिख रही थीं। एक इंच की एरियोला थोड़ी उभरी थी। बीच में किशमिश जैसे छोटे निप्पल्स थे। उत्तेजना से निप्पल्स कड़े हो गए थे, जिससे स्तन नुकीले लग रहे थे। स्तन देखकर परेश का लंड ने ठुमका लिया और और सख्त हो गया। वो बोला, “मैं छू सकता हूँ?” मैंने कहा, “ना, भाई बहन के स्तन नहीं छूता।” परेश बोला, “भाभी, तू तो मेरी बहन नहीं है। अपने स्तन दिखा और छूने दे।”

मैं भी चाहती थी कि कोई मेरी चूचियाँ दबाए, मसले। मैंने चोली उतार दी। दोनों देखते रह गए। मेरे स्तन भी सुंदर हैं, लेकिन शादी के बाद थोड़े झुक गए हैं। मेरी एरियोला बड़ी है, पर निप्पल्स अभी छोटे हैं। मेरे निप्पल्स बहुत संवेदनशील हैं। गंगाधर उन्हें छूते हैं तो मेरी चूत पानी छोड़ने लगती है। चोदते वक्त जब वो उन्हें मुँह में लेकर चूसते हैं, तो मुझे झड़ने में देर नहीं लगती।

बिना कुछ कहे परेश ने मेरे स्तनों पर हाथ फेरा। तुरंत मेरे निप्पल्स कड़े हो गए। उसने हथेली से निप्पल्स रगड़े। स्तनों के नीचे हाथ रखकर उठाया, जैसे वजन नाप रहा हो। मेरे बदन में झुरझुरी फैल गई। मैंने उसके हाथ पर हाथ रखकर अपने स्तन दबवाए। आगे सिखाने की जरूरत नहीं पड़ी, परेश ने बेदर्दी से मेरे स्तन मसले। मेरी चूत पानी बहाने लगी।

मेरे दिमाग में चुदवाने का खयाल आया कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। फटाफट कपड़े पहनकर मैंने दोनों को सुला दिया और दरवाजा खोला। सामने गंगाधर खड़े थे। मैंने कहा, “आप? अब कैसे आ गए?” गंगाधर बोले, “एक गाड़ी आ रही थी, जगह मिल गई।” मैंने कहा, “अच्छा हुआ। चलिए, खाना खा लीजिए।” मुझे आगोश में लेते हुए वो बोले, “खाना बाद में खाएँगे, पहले जरा प्यार कर लें।” मैं कुछ बोल पाती, इससे पहले उन्होंने मेरे होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। कपड़े उतारे बिना मुझे पलंग पर पटक दिया। चूमते-चूमते घाघरा ऊपर उठाया और निकर खींचकर उतार दी। मैं उन्हें कभी चुदाई के लिए मना नहीं करती। मैंने जाँघें फैलाईं और वो ऊपर आ गए। उनका लंड खड़ा था। घच से मेरी चूत में घुसेड़ दिया। बोलने का मौका ही नहीं दिया, घचाघच, घचाघच जोर-जोर से चोदने लगे। पंद्रह-बीस धक्कों बाद वो धीमे पड़े और लंबे, गहरे धक्के मारने लगे। स..र..र..र..र.. लंड अंदर, स..र..र..र.. बाहर। थोड़ी देर चुदाई का मजा लेकर मैंने कहा, “घर में मेहमान हैं।” चुदाई रुक गई। वो बोले, “मेहमान? कौन मेहमान?”

मैंने परेश और मधवी के बारे में बताया और कहा, “वो शायद जाग रहे होंगे।” गंगाधर घबरा कर उतरने लगे। मैंने रोका, “उन दोनों को चुदाई दिखानी जरूरी है। मैं उन्हें बुला लेती हूँ।” गंगाधर बोले, “अरे, वो तो अभी बच्चे हैं, चाचा-चाची क्या कहेंगे?” मैंने कहा, “तुम फिकर मत करो। दो दिन पहले चाची ने मुझसे कहा था कि इन दोनों को चुदाई के बारे में सिखाना है।” गंगाधर ने पूछा, “क्यों?” मैंने बताया, “चाची के मायके में एक नई दुल्हन को उसके पति ने पहली रात इतनी जोर से चोदा कि उसकी चूत फट गई। लड़की को अस्पताल ले गए, लेकिन बचा नहीं सके। खून बह जाने से वो मर गई। ये सुनकर चाची घबरा गई हैं कि कहीं मधवी के साथ ऐसा न हो। इसलिए वो चाहती हैं कि हम उन्हें चुदाई की सही शिक्षा दें। जरूरत पड़े तो उसकी झिल्ली भी तोड़ दें। वैसे भी दोनों कुछ नहीं जानते।” गंगाधर बोले, “बुला लूँ उन्हें?”

परेश और मधवी को बुलाने की जरूरत नहीं थी। वो दरवाजे पर खड़े थे। मैंने गंगाधर को उतरने नहीं दिया। उनका लंड थोड़ा नरम पड़ गया था। मैंने चूत सिकोड़कर दबाया तो फिर कड़ा हो गया। वो चोदने लगे। चुदाई के धक्के खाते-खाते मैंने कहा, “म..म..मधवी… तुम… ओह्ह… सीी… तुम और प..प..परेश यहाँ… आ…आ…कर, गंगाधर जरा धी…धीरे… ऊई… तुम देखो।” वो पलंग के पास आ गए। गंगाधर हाथों के बल ऊपर उठे ताकि हमारे पेट के बीच से दिखे कि लंड कैसे चूत में आता-जाता है। मधवी खड़े-खड़े एक हाथ से अपना स्तन मसल रही थी, दूसरा हाथ चूत पर था। परेश धीरे-धीरे मुठ मार रहा था। गंगाधर मेरे कान में बोले, “देखा परेश का लंड? ऐसा कर, तू उससे चुदवा ले। मैं मधवी के साथ खेलता हूँ।” मैंने कहा, “मधवी को चोदना नहीं।” गंगाधर बोले, “ना, ना। चूत में लंड डाले बिना स्वाद चखाऊँगा।”

गंगाधर उतरे। उनका आठ इंच लंबा, गीला लंड देखकर मधवी शरमाई। उसने मुस्कुराते हुए मुँह फेर लिया। मैंने परेश का लंड पकड़कर पूछा, “परेश, चोदना है ना?” बिना बोले वो मेरी जाँघों के बीच आ गया। लंड पकड़कर धक्के मारने लगा। वो इतनी जल्दी में था कि लंड चूत पर इधर-उधर टकराया, लेकिन चूत का मुँह नहीं मिला। बाहर ही चूत पर झड़ जाए, इससे पहले मैंने लंड पकड़कर चूत पर रखा। एक ही धक्के में पूरा लंड चूत में उतर गया। आगे सिखाने की जरूरत नहीं पड़ी। धनाधन, घचाघच धक्कों से वो मुझे चोदने लगा।

इधर गंगाधर मधवी को गोद में लिए बैठे थे। मधवी ने अपना मुँह उनके सीने में छिपा लिया था। गंगाधर का एक हाथ स्तन सहला रहा था, दूसरा निकर में घुसा था। बार-बार मधवी छटपटाती और गंगाधर का निकर वाला हाथ पकड़ लेती। मुझे लग रहा था कि गंगाधर उसकी क्लिटोरिस छेड़ रहे थे। इतने में गंगाधर ने मधवी का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा। पहले तो मधवी ने झटके से हाथ हटाया, लेकिन जब गंगाधर ने फिर पकड़ाया, तब सिर्फ उँगलियों से छुआ, पकड़ा नहीं। गंगाधर बोले, “मधु, मुट्ठी में पकड़, मीठा लगेगा।” थोड़ी ना-नुकुर के बाद मधवी ने लंड मुट्ठी में पकड़ लिया। गंगाधर के दिखाने के मुताबिक वो धीरे-धीरे मुठ मारने लगी।

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मधवी का चेहरा उठाकर गंगाधर ने उसके मुँह पर चुम्बन लिया। मैं देख सकती थी कि गंगाधर ने अपनी जीभ से मधवी के होंठ चाटे और खोले। मैंने परेश को ये नजारा दिखाया। अपनी बहन के स्तन पर गंगाधर का हाथ और उसके हाथ में गंगाधर का लंड देखकर परेश की उत्तेजना बढ़ गई। घचाघच, घचाघच तेज धक्कों से वो चोदने लगा। अचानक मैं झड़ गई, “आह्ह… ऊऊ… सीी…” मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज उठीं।

गंगाधर का काम मुश्किल था, लेकिन वो सब्र से काम ले रहे थे। मधवी अब बिना शरमाए लंड पकड़े मुठ मार रही थी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “उम्म… आह…” और नितंब डोलने लगे थे। इधर तेज रफ्तार से धक्के देकर परेश झड़ गया, “ओह्ह… भाभी…” थोड़ी देर तक वो मुझ पर पड़ा रहा, फिर उतरा। उसका लंड अभी भी तना था। मैं मधवी के पास गई। गंगाधर को हटाकर मैंने मधवी को गोद में लिया। मैं पलंग की धार पर बैठी और मधवी की जाँघें चौड़ी पकड़ रखीं। उसकी गीली-गीली चूत खुली थी।

मधवी 16 साल की थी, लेकिन उसकी चूत मेरी चूत जितनी बड़ी थी। ऊँची मोन्स पर और बड़े होंठों के बाहरी हिस्से पर काले, घुंघराले जटाएँ थीं। बड़े होंठ मोटे थे, बड़े संतरे की फाँक जैसे, एक-दूसरे से सटे हुए। बीच की दरार चार इंच लंबी थी। क्लिटोरिस एक इंच लंबी और मोटी थी, जो उत्तेजना से कड़ी होकर बड़े होंठों के अगले कोने से बाहर निकल आई थी। गंगाधर फर्श पर बैठ गए। दोनों हाथों के अँगूठों से उन्होंने चूत के बड़े होंठ चौड़े किए और चूत खोली। अंदर का कोमल गुलाबी हिस्सा नजर आया। छोटे होंठ पतले थे, लेकिन सूजे हुए। चूत का मुँह सिकुड़ा था और कामरस से गीला था। गंगाधर की उँगली जब क्लिटोरिस पर लगी, मधवी उछल पड़ी, “आह्ह…” मैंने पीछे से उसके स्तन थाम लिए और निप्पल्स मसल दिए। गंगाधर अब चूत चाटने लगे। चूत के होंठ चौड़े पकड़े हुए उन्होंने क्लिटोरिस को जीभ से रगड़ा। साथ-साथ जितनी जा सके, एक उँगली चूत में डालकर अंदर-बाहर करने लगे। मधवी को ऑर्गेज्म होने में देर न लगी। उसका सारा बदन अकड़ गया, रोंगटे खड़े हो गए, आँखें मूँद गईं, “ओह्ह… आआ… सीी…” मुँह और चूत से पानी निकल पड़ा। हल्की सी कंपन उसके बदन में फैल गई। ऑर्गेज्म बीस सेकंड चला। मधवी बेहोश सी हो गई।

मैंने उसे पलंग पर सुलाया। थोड़ी देर बाद वो होश में आई। वो बोली, “भाभी, क्या हो गया मुझे?” गंगाधर बोले, “बिटिया, जो हुआ उसे इंग्लिश में ऑर्गेज्म कहते हैं। मजा आया कि नहीं?” मधवी बोली, “बहुत मजा आया, अभी भी आ रहा है। नीचे पिक्की में फट-फट हो रहा है। क्या तुमने मुझे चोदा?” गंगाधर बोले, “ना, चोदा नहीं है, तू अभी कुँवारी ही है। अब मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। तुम दोनों चुपचाप सो जाओ और आराम करो।” परेश बोला, “आप क्या करेंगे?” मैंने कहा, “हमारी बाकी रही चुदाई पूरी करेंगे।” परेश ने अपना लंड दिखाया, जो फिर से तन गया था, और बोला, “ये मुझे सोने नहीं देगा।” मधवी लेटी रही और करवट बदलकर हमें देखने लगी।

मैं फर्श पर चित लेट गई। गंगाधर ने मेरी जाँघें इतनी उठाईं कि मेरे घुटने मेरे कानों से लग गए। घच से एक धक्के में उन्होंने पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया। हम दोनों बहुत उत्तेजित थे। घचाघच, घचाघच धक्कों से वो चोदने लगे। मैं चूत सिकोड़कर लंड को भींचती रही। बीस-पच्चीस तल्ले बाद गंगाधर उतरे और झटपट मुझे चार पाँव कर दिया, घोड़ी की तरह। वो पीछे से चढ़े। जैसे ही उन्होंने लंड चूत में डाला, मुझे ऑर्गेज्म हो गया, “आह्ह… ऊऊ… सीी…” वो रुके नहीं, धक्के मारते रहे। दस-बारह धक्कों बाद मेरी कमर पकड़कर उन्होंने लंड को चूत की गहराई में घुसेड़ दिया और पिच्च, पिच्च पिचकारी लगाकर झड़ गए। मुझे दूसरा ऑर्गेज्म हुआ, “ओह्ह… आआ…” मेरी योनि उनके वीर्य से छलक गई। मैं फर्श पर चपट हो गई। थोड़ी देर तक हम पड़े रहे, फिर जाकर सफाई की।

मधवी बैठ गई थी। वो बोली, “भाभी, परेश ने मेरी पिक्की देख ली, पर अपना लंड दिखाने नहीं देता।” गंगाधर बोले, “कोई बात नहीं, बेटा, मेरा देख ले। कैलाश, तू ही दिखा।” गंगाधर लेट गए। एक ओर मैं बैठी, दूसरी ओर मधवी। परेश बगल में खड़ा देखने लगा।

एक हाथ में लौड़ा पकड़कर मैंने कहा, “ये है डंडी, ये है मट्ठा। यूं तो मट्ठा टोपी से ढका रहता है। चूत में पैठते वक्त टोपी ऊपर चढ़ जाती है और नंगा मट्ठा चूत की दीवारों से घिसता है। ये जगह जहाँ टोपी मट्ठे से चिपकी है, उसे फ्रेनम बोलते हैं। लड़की की क्लिटोरिस की तरह फ्रेनम भी बहुत संवेदनशील होता है। ये है लौड़े का मुँह, जहाँ से पेशाब और वीर्य निकलता है।” लौड़े की टोपी ऊपर-नीचे करके मैंने कहा, “मुठ मारते वक्त टोपी से काम लेते हैं। लंड मुँह में भी लिया जाता है। देख, ऐसे…” मैंने लौड़े का मट्ठा मुँह में लिया और चूसा। तुरंत वो अकड़ने लगा। मधवी बोली, “मैं पकड़ूँ?” गंगाधर बोले, “जरूर पकड़ो। दिल चाहे तो मुँह में भी ले सकती हो।” आधा तना हुआ लौड़ा मधवी ने हाथ में लिया तो वो पूरा तन गया। उसकी अकड़न देख मधवी को हँसी आ गई। वो बोली, “मेरे हाथ में गुदगुदी होती है।” मैंने लंड मुँह से निकाला और कहा, “मुँह में ले, मजा आएगा।” सिर झुकाकर डरते-डरते मधवी ने लंड मुँह में लिया। मैंने कहा, “कुछ करना नहीं, जीभ और तालू के बीच मट्ठा दबाए रख। जब वो ठुमका लगाए, तब चूसना शुरू कर दे।” मधवी स्थिर हो गई। परेश ये सब देख रहा था और मुठ मार रहा था। वो बोला, “भाभी, मैं मधु की चूचियाँ पकड़ूँ? मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।” गंगाधर बोले, “हल्के हाथ से पकड़ और धीरे से सहला, दबाना मत। स्तन अभी कच्चे हैं, दबाने से दर्द होगा।” मधवी गंगाधर का लंड मुँह में लिए आगे झुकी थी। परेश उसके पीछे खड़ा हो गया। हथेलियों में दोनों स्तन भरकर सहलाने लगा। वो बोला, “भाभी, मधु के स्तन कड़े हैं और निप्पल्स भी छोटी-छोटी हैं। तेरे स्तन इनसे बड़े हैं और निप्पल्स भी बड़ी हैं।” मैं बगल में खड़ी थी। मेरा एक हाथ परेश का लंड पकड़े मुठ मार रहा था। दूसरा हाथ मधवी की क्लिटोरिस से खेल रहा था। क्लिटोरिस के स्पंदन से मुझे पता चला कि मधवी बहुत उत्तेजित हो गई थी और दूसरे ऑर्गेज्म के लिए तैयार थी। अचानक मुँह से लंड निकालकर वो खड़ी हो गई। अपने हाथ से चूत रगड़ते हुए बोली, “बड़े भैया, चोद डालो मुझे, वरना मैं मर जाऊँगी।” गंगाधर बोले, “पगली, तू अभी कम उम्र की है।” मधवी बोली, “देखिए, मैं 16 साल की हूँ, लेकिन मेरी चूत पूरी विकसित है और लंड लेने काबिल है। भाभी, तुमने पहली बार चुदवाया तब तुम भी 16 साल की थीं ना?” गंगाधर बोले, “फिर भी, तू मेरी छोटी बहन है।” मधवी बोली, “सही, लेकिन आप चाहते हैं कि मैं किसी और के पास जाऊँ और चुदवाऊँ?” गंगाधर बोले, “बेटे, चाहे कुछ कहो, तेरे माय-बाप हमें क्या कहेंगे?” मधवी ने गुस्से में पाँव पटके और बोली, “अच्छा, तो मैं चलती हूँ घर। परेश, चल। घर जाकर तू मुझे चोद लेना।” गंगाधर बोले, “अरी पगली, जरा सोच-विचार कर आगे चल।” मुँह लटकाए वो बोली, “भाभी ने परेश को चोदने दिया क्योंकि वो लड़का है। मेरा क्या कसूर? मुझसे अब रहा नहीं जाता। परेश न बोलेगा तो किसी नौकर से चुदवा लूँगी।” मधवी रोने लगी। मैंने उसे शांत किया और कहा, “घर जाने की जरूरत नहीं है इतनी रात को। तेरे भैया तुझे जरूर चोदेंगे।”

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इतने में फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। फटाफट ताश खेलते हुए जैसा माहौल बना दिया। मैंने जाकर दरवाजा खोला। सामने चाची खड़ी थीं। अंदर आकर उन्होंने दरवाजा बंद किया और बोलीं, “सब ठीक तो है ना?” मैंने कहा, “वो आ गए हैं। इन दोनों ने काफी कुछ देख लिया है। एक मुसीबत है लेकिन।” चाची ने पूछा, “क्या मुसीबत है?” मैंने कहा, “परेश से तो वो… वो करवा लिया, समझ गईं ना? अब मधवी भी माँग रही है।” चाची बोलीं, “तो परेशानी किस बात की है? तुझे तो मालूम होगा कि गंगाधर झिल्ली तोड़ने में कैसा है।” मैंने कहा, “उनकी होशियारी की बात ही न करें। कौन जाने कहाँ से सीख आए हैं तकनीक।” चाची बोलीं, “बस तो मैं चलती हूँ। गंगाधर से कहना कि सब्र से काम ले।”

चाची चली गईं। मैं अंदर आई तो देखा कि मधवी गंगाधर से लिपटी हुई लेटी थी। उसकी एक जाँघ सीधी थी, दूसरी गंगाधर के पेट पर पड़ी थी। उसकी चूत गंगाधर के लंड से सटी थी। उनके मुँह फ्रेंच किस में जुटे थे। गंगाधर का हाथ मधवी की पीठ और नितंब सहला रहा था। कुर्सी में बैठा परेश देख रहा था और मुठ मार रहा था। अब निश्चित था कि क्या होने वाला था। मैंने इशारे से गंगाधर को आगे बढ़ने का संकेत दिया। मैं परेश के पास गई। उसे उठाकर मैं कुर्सी में बैठ गई और उसे गोद में ऐसे बिठाया कि हम गंगाधर और मधवी को देख सकें। परेश का लंड मैंने जाँघें चौड़ी कर चूत में ले लिया।

इधर चित लेटे हुए गंगाधर पर मधवी सवार हो गई थी, जैसे घोड़े पर। गंगाधर का लंड सीधा पेट पर पड़ा था। चौड़ी की हुई जाँघों के बीच मधवी की चूत लंड के साथ सट गई थी। चूत में पैठे बिना लंड चूत की दरार में फिट बैठ गया था। अपने नितंब आगे-पीछे कर मधवी अपनी चूत को लंड से घिस रही थी। हर धक्के पर उसकी क्लिटोरिस लंड से रगड़ी जा रही थी और लंड की टोपी चढ़-उतर रही थी। चूत और लंड कामरस से तर-ब-तर हो गए थे। वो गंगाधर के सीने पर बाहें टिका कर आगे झुकी थी और आँखें बंद कर सिसकारियाँ कर रही थी, “उम्म… आह…” गंगाधर उसके स्तन सहला रहे थे और कड़े निप्पल्स को मसल रहे थे।

थोड़ी देर में वो थक गई। गंगाधर के सीने पर ढल पड़ी। अपनी बाहों में उसे जकड़कर गंगाधर पलटे और ऊपर आ गए। मधवी ने जाँघें चौड़ी कर अपने पाँव गंगाधर की कमर से लिपटाए, बाहें गले से लिपटाईं। चूत की दरार में सीधा लंड रखकर गंगाधर धक्के देने लगे, चूत में लंड डाले बिना। मधवी की क्लिटोरिस अच्छी तरह रगड़ी गई तो वो छटपटाने लगी, “आह्ह… भैया… और करो…” गंगाधर बोले, “मधवी बिटिया, ये आखिरी घड़ी है। अभी भी समय है। ना कहे तो उतर जाऊँ।”

मधवी ने ना नहीं बोली। गंगाधर को जोरों से जकड़ लिया। वो समझ गए। गंगाधर अब बैठ गए। टोपी उतारकर लंड का मट्ठा ढक दिया। एक हाथ से चूत के होंठ चौड़े किए और दूसरे हाथ से लंड पकड़कर चूत के मुँह पर रखा। एक हल्का दबाव दिया तो मट्ठा सरकता हुआ चूत में घुसा और योनि पर्दे तक जाकर रुका। गंगाधर रुके। लंड पकड़कर गोल-गोल घुमाया, जितना हो सके अंदर-बाहर किया। चूत का मुँह जरा खुला और लंड का मट्ठा आसानी से अंदर-बाहर होने लगा। अब लंड को चूत के मुँह में फँसाकर गंगाधर ने लंड छोड़ दिया और मधवी पर लेट गए। उन्होंने मधवी का मुँह फ्रेंच किस से सील कर दिया, दोनों हाथों से नितंब पकड़े और कमर का एक झटका ऐसा मारा कि झिल्ली तोड़कर आधा लंड चूत में घुस गया। दर्द से मधवी छटपटाई और उसके मुँह से चीख निकल पड़ी, “आआ… ऊई…” जो गंगाधर ने अपने मुँह में झेल ली। गंगाधर रुक गए।

गंगाधर को देख परेश भी धक्का लगाने लगा। हम कुर्सी में थे, इसलिए आधा लंड ही चूत में जा सकता था। मैंने परेश को हटाया और फर्श पर आ गई। जाँघें फैलाकर उसे फिर अपने ऊपर लिया। तेज रफ्तार से परेश मुझे चोदने लगा, “भाभी… आह… कितना मजा है…”

इधर मधवी शांत हुई तो गंगाधर ने पूछा, “कैसा है अब दर्द?” मधवी ने उनके कान में कुछ कहा, जो मैं सुन नहीं पाई। गंगाधर ने लेकिन उनकी कमर से उसके पाँव छुड़ाए और इतने ऊपर उठा लिए कि घुटने कानों तक पहुँच गए। मधवी के नितंब अधर हो गए। गंगाधर की चौड़ी जाँघों के बीच से मधवी की चूत और उसमें फँसा हुआ गंगाधर का लंड साफ दिखने लगा। आधा लंड अभी बाहर था, जो गंगाधर धीरे-धीरे चूत में पेलने लगे। थोड़ा अंदर, थोड़ा बाहर, ऐसे करते-करते दो-चार इंच और अंदर घुस पाया, लेकिन पूरा नहीं। बाद में गंगाधर ने बताया कि मधवी की चूत पूरा लंड ले सके इतनी गहरी नहीं थी। उसे इजा न लग जाए, इसलिए सावधानी से चोदना जरूरी था। अच्छा हुआ कि मधवी की पहली चुदाई गंगाधर ने की, वरना चाची का डर हकीकत में बदल जाता।

यहाँ परेश और मैं झड़ चुके थे, “आह्ह… ऊऊ…” परेश का लंड नरम हो रहा था। गंगाधर हल्के, धीरे और गहरे धक्कों से मधवी को चोदने लगे। मधवी के नितंब डोलने लगे थे। लंड-चूत की पच-पच आवाज के साथ मधवी की सिसकारियाँ, “उम्म… आह… भैया…” और गंगाधर की आहें कमरे में गूँज रही थीं। परेश बोला, “भाभी, देख, चूत के होंठ कैसे लंड से चिपक गए हैं? बड़े भैया का लंड मोटा है ना?” मैंने कहा, “देवरजी, तुम्हारा भी कुछ कम नहीं है।”

गंगाधर के धक्के अब अनियमित हो रहे थे। स..र..र..र की बजाय कभी-कभी घच से लंड घुसेड़ देते। लग रहा था कि गंगाधर झड़ने के करीब थे। मधवी लेकिन इतनी तैयार नहीं थी। उसने खुद रास्ता निकाला। अपने ही हाथ से क्लिटोरिस रगड़ दी और छटपटाती हुई झड़ गई, “आआ… ऊई… भैया…” गंगाधर स्थिर थे, लेकिन मधवी के चूतड़ ऐसे हिल रहे थे कि लंड चूत में आया-जाया करता था। मधवी का ऑर्गेज्म शांत हुआ तो तेज रफ्तार से धक्के मारकर गंगाधर झड़ गए और उतरे। करवट बदलकर मधवी सो गई। सफाई के बाद हम सब सो गए।

दूसरे दिन सुबह परेश ने मुझसे एक और चुदाई माँगी। गंगाधर ने भी अनुरोध किया। मैं क्या करती? दस मिनट की मस्त चुदाई हो गई। परेश की खुशी समा नहीं रही थी। शर्म की मारी मधवी किसी से नजर नहीं मिला पा रही थी। फिर भी गंगाधर ने उसे बुलाया तो वो उनके पास चली गई। गले में बाहें डालकर उनकी गोद में बैठ गई। गंगाधर ने चूमकर पूछा, “कैसा है दर्द? नींद आई ठीक से?” शरमाकर मधवी ने अपना मुँह उनके सीने में छिपा लिया। कान में कुछ बोली। गंगाधर बोले, “ना, अभी नहीं। दो दिन तक कुछ नहीं। चूत का घाव रुज जाए, इसके बाद।” लेकिन मधवी जैसी हठीली लड़की कहाँ किसी की सुनती है? वो गंगाधर का मुँह चूमती रही और लंड टटोलती रही। गंगाधर भी तो जवान आदमी, क्या करें बेचारे? उठाकर वो मधवी को अंदर ले गए और आधे घंटे तक चोदा।

उस रात के बाद वो भाई-बहन अक्सर हमारे घर आने लगे और चुदाई का मजा लेते रहे। जब स्कूल खुला, तो उन्हें शहर जाना पड़ा। मैं और गंगाधर इंतजार कर रहे हैं कि कब छुट्टियाँ पड़ें और वो दोनों घर आएँ। आखिर नए-नए लंड से चुदवाने और नई-नई चूत को चोदने में एक अनोखा आनंद आता है। है ना?

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