Gaon me Maa ki chudai मेरा नाम दीपक है। मैं 19 साल का हूँ और दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ता हूँ। वैसे तो मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ, लेकिन पिछले पाँच साल से दिल्ली में ही रह रहा हूँ। मेरी उम्र 19 साल है, रंग गोरा है, कद 5 फीट 10 इंच, और शरीर फिट है क्योंकि मैं जिम जाता हूँ। मेरे गाँव में मेरे परिवार में दादी, पिताजी और माँ रहते हैं। मेरी माँ, राधा, 38 साल की हैं, उनकी कद-काठी मध्यम है, रंग साँवला, और शरीर भरा हुआ। उनकी कमर पतली, चूचियाँ भारी और टाइट, और गाँड गोल-मटोल, जो साड़ी में हमेशा उभरी हुई लगती है। पिताजी, रामलाल, 45 साल के हैं, गठीले बदन के मालिक, गाँव में खेती-बाड़ी और व्यापार देखते हैं। दादी 65 साल की हैं, और गाँव की औरतों के साथ मिलकर घर संभालती हैं। आज मैं आपको वो सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया।
यूनिवर्सिटी में दाखिला मिलने के बाद मैं बहुत खुश था। मेरे घरवाले काफी अमीर और पढ़े-लिखे हैं, फिर भी मैं अपने गाँव का पहला लड़का था, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने गया। इस बात पर मेरे घरवाले मुझ पर बहुत गर्व करते थे। कॉलेज के पहले साल में ही मैंने कुछ गर्लफ्रेंड्स बना ली थीं और उनके साथ चुदाई का मजा भी लिया। मेरी जिंदगी मस्त चल रही थी। एक दिन नेट सर्च करते वक्त मैंने इंटरनेट पर कुछ सेक्स स्टोरीज पढ़ीं। उनमें से एक स्टोरी थी, जिसका नाम था “माँ-बेटे का इन्सेस्ट”। उस स्टोरी में माँ और बेटे के बीच चुदाई का रिश्ता दिखाया गया था। उसे पढ़कर मेरे पूरे बदन में आग-सी लग गई। मैंने ऐसी और स्टोरीज ढूँढनी शुरू कीं। मुझे माँ-बेटे की इन्सेस्ट स्टोरीज सबसे ज्यादा पसंद आने लगीं। धीरे-धीरे मेरा रुझान उम्रदराज औरतों की तरफ बढ़ने लगा। मैं उनके बारे में सोचकर फंतासियाँ बनाने लगा।
पहले साल के इम्तिहान खत्म होने के बाद कॉलेज की छुट्टियाँ हो गईं। मैंने गाँव जाने का फैसला किया और ऑनलाइन ट्रेन की टिकट बुक कर ली। मैंने घर आने की बात किसी को नहीं बताई थी। सुबह-सुबह मैं अपने गाँव पहुँचा। जब मैं घर पहुँचा, तो उस वक्त घर में सिर्फ दादी और माँ थीं। पिताजी किसी काम से बाहर गए थे। मुझे देखकर माँ बहुत खुश हुईं। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। मैंने भी माँ को गले लगाया, लेकिन उस वक्त मेरे दिमाग में कोई गलत खयाल नहीं था। माँ ने मुझे नहाने और नाश्ता करने को कहा। दादी भी मुझे देखकर बहुत खुश हुईं। दोपहर में सफर की थकान के कारण मैंने आराम किया और मुझे नींद आ गई।
शाम को जब मैं उठा, तो गाँव घूमने निकल गया। गाँव के लोग मुझे दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने की वजह से बहुत इज्जत दे रहे थे। सबसे मिलने के बाद मैं अपने खेतों में घूमने गया। वहाँ हमारे खेतों में कुछ औरतें काम कर रही थीं। उनकी उम्र 35 से 40 साल के बीच थी। खेतों में काम करने की वजह से वे पसीने से भीगी हुई थीं। साड़ी का पल्लू कमर में बाँधे हुए वे बहुत सेक्सी लग रही थीं। उनमें से एक औरत की चूचियों पर मेरी नजर अटक गई। मेरा लंड मेरे लोअर में उछलने लगा। जब मैंने नजर उठाई, तो वो मुझे ही देख रही थी और मुस्कुरा रही थी। मैं शरमा गया।
थोड़ी देर बाद मैं घर लौटा और अपना मोबाइल लेने के लिए कमरे में गया। कमरे का नजारा देखकर मेरे होश उड़ गए। माँ सिर्फ पेटीकोट में खड़ी थीं। उनकी पीठ मेरी तरफ थी। लगता था कि माँ अभी-अभी नहाकर कपड़े बदल रही थीं। मैं तो वहीँ जम गया। पेटीकोट में माँ की गाँड गीली होने की वजह से चिपकी हुई थी। ऊपर से उनकी पीठ पूरी नंगी थी। मेरा लंड फटने को तैयार हो गया। माँ अब ब्रा पहन रही थीं। ब्रा पहनने के बाद उन्होंने ब्लाउज पहना और पीछे मुड़ीं। मुझे देखकर माँ हैरान रह गईं।
मेरी तो हालत खराब हो गई। डर के मारे मेरा दिमाग सुन्न हो गया और लंड बैठ गया। थोड़ी देर बाद माँ मुस्कुराईं और पूछा कि मैं कब आया। माँ को मुस्कुराते देखकर मेरी जान में जान आई। मैंने भी ऐसे बर्ताव किया जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं और हँसकर कहा कि अभी-अभी आया हूँ। इसके बाद मैं मोबाइल लेकर छत पर चला गया। आज पहली बार मैंने माँ को एक औरत की नजर से देखा था। मैं माँ की गाँड के बारे में सोच रहा था, जो पेटीकोट में चिपकी हुई थी। मेरा लंड फिर से मचलने लगा। मैं छत से घर के आँगन में देखने लगा। माँ आँगन की सफाई कर रही थीं। मेरी नजर उनकी गोल-गोल गाँड पर टिक गई। मुझे माँ-बेटे की चुदाई वाली सारी कहानियाँ याद आने लगीं। अब मैं माँ को एक औरत की तरह देखने लगा। माँ सुंदर थीं, ये तो मैं पहले से जानता था, लेकिन अब वो मुझे सेक्सी भी लगने लगी थीं। उनकी चूचियाँ टाइट और कसी हुई थीं, कमर पतली थी, और गाँड तो ऐसी थी कि किसी नमर्द का लंड भी खड़ा कर दे। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा हाथ मेरे लोअर में चला गया और मैं अपने लंड से खेलने लगा। थोड़ी ही देर में मेरे लंड से पानी निकल गया। अब मैं माँ के साथ चुदाई करने के प्लान बनाने लगा।
रात को खाना खाने के बाद मैं माँ के कमरे में गया और उनसे बातें करने लगा। गाँव में रात को लाइट न होने की वजह से माँ ने लालटेन जला रखी थी। लालटेन की रोशनी में माँ और भी सेक्सी लग रही थीं। मैं और माँ बिस्तर पर लेटे हुए थे। गर्मी की वजह से माँ ने पल्लू छाती से हटा रखा था, जिससे ब्लाउज के ऊपर उनकी चूचियों का उभार साफ दिख रहा था। मेरे लोअर में मेरा लंड खड़ा था। तभी माँ ने पूछा कि मैं काफी देर से परेशान लग रहा हूँ, आखिर बात क्या है। मैंने अपने लंड का उभार और चेहरे की बेचैनी छुपाते हुए कहा कि कुछ नहीं, माँ। माँ ने जिद करते हुए पूछा तो मैंने झूठ बोला कि दोस्तों की याद आ रही है। माँ मुस्कुराईं और पूछा कि दोस्तों की याद आ रही है या किसी सहेली की। मैं और माँ एक साथ हँसने लगे। फिर मैंने कहा, “माँ, दिल्ली में लड़कियाँ तो बहुत हैं, लेकिन कोई तुम्हारी जैसी सुंदर नहीं मिली।” ये सुनकर माँ का चेहरा खिल गया, लेकिन अपनी मुस्कुराहट छुपाते हुए बोलीं, “मैं तो बुढ़िया हो रही हूँ, मैं कहाँ सुंदर हूँ।” मैंने कहा, “माँ, आपको अपने बारे में कुछ नहीं पता। पिताजी बहुत खुशकिस्मत हैं, जिन्हें आप जैसी पत्नी मिली। अगर आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं तो सारा दिन…” इतने में माँ का चेहरा लाल हो गया और वो बोलीं, “अपनी माँ से कोई ऐसी बात करता है क्या? लगता है अब तू बड़ा हो गया है। तेरी शादी करनी पड़ेगी।”
मैंने कहा, “माँ, मुझे तो आप जैसी ही लड़की से शादी करनी है।” हमने थोड़ी देर और बात की और बातों-बातों में मैं माँ के साथ फ्लर्ट करता रहा। थोड़ी देर बाद पड़ोस की एक औरत माँ को बुलाने आई। माँ ने मुझे आराम करने को कहा और उस औरत के साथ चली गईं। गाँव में औरतें रात को एक साथ खेतों में टॉयलेट के लिए जाती हैं। माँ के जाने के बाद मैं उनके बारे में ही सोचता रहा। जब माँ घर लौटीं, तो मैं जाग रहा था। माँ ने पूछा कि मैं सोया क्यों नहीं। मैंने शरारत भरी आवाज में कहा, “आपके बिना नींद ही नहीं आ रही, माँ। मुझे तब नींद आती है, जब कोई साथ सोता है।” माँ मेरे डबल मीनिंग वाले मतलब को समझ गईं और हल्का-सा मुस्कुराकर चुप हो गईं।
माँ और मैं बिस्तर पर लेट गए। मैं माँ को देख रहा था। उनकी उभरी हुई छाती, पतली कमर, और गोल-गोल गाँड। थोड़ी देर बाद हमें नींद आ गई। सपने में मैंने देखा कि माँ और मैं एक साथ सोए हुए हैं। माँ मेरे नीचे और मैं उनके ऊपर। मेरा लंड माँ की चूत में है। हम दोनों पसीने से तर-बतर हैं। तभी दादी की आवाज सुनाई दी और मैं जाग गया। सुबह हो चुकी थी। दादी माँ से नहाने के बाद मुझे उठाने को कह रही थीं। लगता था माँ नहा रही थीं। मैं बिस्तर पर ही लेटा रहा। तभी माँ नहाकर कमरे में आईं। मैं सोने का बहाना करते हुए हल्की आँखें खोलकर सब देख रहा था। माँ सिर्फ पेटीकोट में थीं। पेटीकोट उनकी छाती पर बंधा हुआ था, जिसकी वजह से वो उनकी जाँघों तक आ रहा था। क्या भारी-भारी जाँघें थीं! मन तो कर रहा था कि उठकर उन्हें चूम लूँ। माँ ने अलमारी से अपने कपड़े निकाले। सबसे पहले माँ ने चड्डी पहननी शुरू की। जब माँ चड्डी पहनने के लिए थोड़ा झुकीं, तो पेटीकोट जाँघों से और ऊपर खिसक गया और माँ की नंगी गाँड मेरे सामने थी। मैं तो पागल ही हो गया। ओह, क्या लम्हा था! माँ की गाँड एकदम गोल-गोल और टाइट थी। मेरा लंड मेरे लोअर को फाड़कर बाहर निकलना चाहता था। माँ ने चड्डी पहनी। W-शेप की चड्डी माँ की गाँड पर एकदम कसी हुई थी। जाने माँ इसे कैसे पहनती थीं। फिर माँ ने पेटीकोट नीचे किया और कमर पर बाँध लिया। इसके बाद उन्होंने ब्रा उठाई और पहनने लगीं, लेकिन ब्रा बहुत टाइट थी और पीछे से उसका हुक नहीं लग रहा था। माँ ने थोड़ी देर कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी तो माँ ने मुझे आवाज दी। दो-तीन बार आवाज देने के बाद मैंने उठने का नाटक किया और पूछा, “क्या हुआ, माँ?” माँ ने मुझे ब्रा का हुक लगाने को कहा। मैंने माँ की ब्रा को जोर से खींचकर हुक लगाने की कोशिश की। ब्रा इतनी टाइट थी कि लगाते-लगाते मेरा लंड माँ की गाँड को छूने लगा। माँ के मुँह से “आह” निकल गई। तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मैं तो काँप गया। समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। मेरा दिमाग पूरी तरह सुन्न पड़ गया और लंड पूरे जोश में हरकत करने लगा। मैंने माँ को बाँहों में भर लिया और उनसे चिपक गया। मेरा लंड माँ की गाँड में दबा हुआ था। माँ की ब्रा नीचे जमीन पर गिरी और उनकी दोनों चूचियाँ मेरे हाथों की पकड़ में थीं। मैं उन्हें दबाए जा रहा था। इतनी सॉफ्ट चीज मैंने पहले कभी नहीं पकड़ी थी। मैं तो मस्त हो गया। मेरा एक हाथ माँ की जाँघ को सहला रहा था। सहलाते-सहलाते मैंने माँ का पेटीकोट उठाना शुरू किया। माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे मना करने लगीं। मैंने माँ की चूचियों को और जोर से दबाया और उनकी पीठ और गर्दन पर चूमने लगा। माँ सिसकियाँ ले रही थीं, “आह… दीपक… रुक जा…” लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने फिर से माँ का पेटीकोट उठाना शुरू किया। इस बार माँ ने फिर मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और उनकी कमर को सहलाने और चूमने लगा। माँ मुझे रुकने को कह रही थीं, लेकिन मुझे हटा नहीं रही थीं। मैंने तभी एकदम से उनके पेटीकोट का धागा खोल दिया। माँ का पेटीकोट जमीन पर गिर गया। अब मेरी माँ मेरे सामने सिर्फ चड्डी में थीं। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अपनी माँ को चोदने वाला हूँ।
मेरे लंड और माँ की गाँड के बीच में अब बस माँ की चड्डी और मेरा लोअर था। मैंने अपना लोअर नीचे सरकाया। मेरा लंड एकदम फौलाद की तरह टाइट था और माँ की गाँड की गहराई में जाना चाहता था। मैंने माँ की चड्डी की स्ट्रिप पकड़ी और जैसे ही नीचे सरकाने लगा, बाहर से पिताजी की आवाज सुनाई दी। माँ भी उनकी आवाज सुनकर एकदम डर गईं। उनके पास कपड़े पहनने का समय नहीं था। मैंने जल्दी से अपना लोअर ऊपर किया और भागकर दूसरे कमरे में चला गया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मुझे डर था कि कहीं माँ पिताजी को सब कुछ न बता दें। कुछ ही देर में मेरे साथ ऐसी दो घटनाएँ हो गई थीं, जो मैंने सोची भी नहीं थीं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि खुद को खुशकिस्मत समझूँ या बदकिस्मत।
थोड़ी देर बाद पिताजी मेरे कमरे में आए और कॉलेज व इम्तिहानों के बारे में पूछने लगे। मैंने बताया कि इम्तिहानों में मेरे फर्स्ट डिवीजन आने के चांस हैं। ये सुनकर वो बहुत खुश हुए और मुझे और मेहनत करने को कहा। पिताजी ने कहा कि मेरे गाँव आने से घर के सारे लोग बहुत खुश हैं। मैंने कहा, “गाँव आकर तो सबसे ज्यादा मैं खुश हूँ।” थोड़ी देर बात करने के बाद पिताजी फिर से माँ के पास चले गए। मैं समझ गया कि माँ ने पिताजी को कुछ नहीं बताया। अब तो मैं एकदम खुल गया था। मौका मिलने पर मैं कभी माँ की गाँड सहलाता, कभी ब्लाउज के ऊपर से उनकी चूचियाँ दबाता। माँ कभी-कभी नकली गुस्सा दिखातीं और पिताजी को बताने की बात कहतीं, लेकिन मैं जानता था कि वो अपने इकलौते बेटे से बहुत प्यार करती हैं और ऐसा कभी नहीं करेंगी। लेकिन पिताजी के आने के बाद मुझे इतना समय नहीं मिल पा रहा था कि मैं अपने लंड की प्यास बुझा सकूँ।
एक रात खाना खाने के बाद मैं आँगन में लेटा हुआ था। तभी पड़ोस की औरत आई और माँ को बुलाकर ले गई। मेरे दिमाग में बिजली-सी चमकी और मैंने एक प्लान बनाया। अगले दिन जब पिताजी थोड़ी देर के लिए गाँव में किसी काम से गए, तो मैं माँ के कमरे में गया। माँ ने आज गहरे गुलाबी रंग की बंगाली साड़ी पहनी थी, जिसमें वो बहुत खूबसूरत लग रही थीं। इस साड़ी में माँ की गाँड और भी उभरी हुई और मस्त लग रही थी। मन तो कर रहा था कि यहीं पर माँ को चोद दूँ, लेकिन मैंने खुद को कंट्रोल किया और चुपचाप बैठ गया। अब तक माँ भी मेरी हरकतों की आदी हो चुकी थीं। मुझे कोई हरकत न करता देख माँ हैरान हुईं और पूछा, “क्या बात है, दीपक?” मैंने कहा, “माँ, दिन के समय खेत में टॉयलेट जाने में मुझे बहुत शरम आती है।” माँ ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “तुझे कब से शरम आने लगी?” फिर थोड़ी देर मुस्कुराने के बाद माँ बोलीं, “दिन में शरम आती है तो रात को चले जाया कर।” मैंने कहा, “माँ, गाँव में रात को मुझे डर लगता है।” माँ बोलीं, “डर कैसा? हम सब भी तो रात में ही खेतों में जाते हैं।” इस पर मैंने तुरंत कहा, “आप अकेले थोड़े ही जाती हो। अगर आप मेरे साथ रात को चलो, तो मैं बिल्कुल न डरूँ।” माँ चुप हो गईं। मैंने माँ से कहा, “प्लीज, माँ, आज मुझे भी अपने साथ ले चलना।” इतने में पिताजी आ गए और पूछा, “कहाँ जाने की बात हो रही है माँ-बेटे में?” इस पर माँ ने कहा, “दीपक कुल देवता के मंदिर जाना चाहता है।” पिताजी ये सुनकर बहुत खुश हुए और जल्दी वहाँ जाने को कहा।
मैं पूरी दोपहर और शाम यही प्रार्थना करता रहा कि रात को माँ मुझे अपने साथ ले जाएँ। रात को खाना खाने के बाद जब पड़ोस की औरत माँ को बुलाने आई, तो माँ ने उससे कुछ कहा और वो चली गई। मुझे लगा कि माँ आज खेत जाएँगी ही नहीं, लेकिन करीब पंद्रह मिनट बाद माँ मेरे पास आईं और मुझे खेत चलने को कहा। मैं बहुत खुश हुआ और एक लोटा, जिसमें मैंने थोड़ा सरसों का तेल रखा था, लेकर माँ के साथ चल दिया।
वैसे तो गाँव की औरतें उत्तर दिशा के खेतों में जाती थीं, लेकिन माँ और मैं दक्षिण दिशा के खेतों की तरफ चल पड़े। कई खेतों में फसल लगी थी, तो कई खेत सपाट थे। मैं माँ के चलने पर उनकी गाँड को ऊपर-नीचे होते देख रहा था। जब मैंने देखा कि हम गाँव के घरों से काफी दूर आ गए हैं, तो मैंने अपना हाथ माँ की गाँड पर रख दिया और उसे सहलाने लगा। माँ और मैं चुपचाप आगे बढ़ते जा रहे थे। मैं माँ की गाँड को सहलाए जा रहा था। एक जगह पहुँचकर माँ रुक गईं और एक जगह इशारा किया। वो एक साफ खेत था, जो चारों तरफ से गन्ने के खेत से घिरा हुआ था। माँ ने कहा, “तू यहाँ कर ले, मैं दूसरे खेत में जाती हूँ।” मैंने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा, “आप भी मेरे साथ बैठो, मुझे अकेले में डर लगता है।” माँ ने कहा कि वो खाना खाने से पहले ही टॉयलेट करके आ चुकी हैं और यहाँ सिर्फ मेरी वजह से आई हैं। मैंने खेत में जाकर अपनी पैंट खोली और माँ को पकड़ा दी। मैंने अंदर अंडरवियर नहीं पहना था, इसलिए मेरा लंड पूरा जोश में तना हुआ खड़ा था। माँ मेरा लंड देखकर थोड़ी हैरान-सी लग रही थीं। फिर मैं लोटा लेकर एक कोने में बैठ गया और अपने लंड पर तेल लगाने लगा। थोड़ी देर बाद मैं उठा और माँ के पास गया। माँ मुझे लंड पर तेल लगाते हुए देख रही थीं। उनका चेहरा एकदम लाल हो गया था। मेरे उठते ही माँ ने पूछा, “तू ये क्या कर रहा था?” मैंने माँ का हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रखते हुए कहा, “आप खुद ही देख लो।” माँ ने अपना हाथ पीछे हटा लिया और बोलीं, “मैं समझ गई कि तू रात को डरने का बहाना कर रहा था और तेरा मकसद भी मैं समझ गई हूँ।”
बस, अब क्या था! माँ के इतना बोलते ही मैंने उन्हें अपनी बाँहों में ले लिया और चूमने लगा। माँ ने पहले तो मुझे दूर करने की कोशिश की, लेकिन फिर वो शांत हो गईं। मैं माँ के पूरे बदन को चूमने लगा। दोनों हाथों से उनकी चूचियाँ दबाने लगा। धीरे-धीरे मैं माँ के पेट को चूमने और चाटने लगा और नीचे बैठ गया। फिर मैंने माँ की साड़ी और पेटीकोट को ऊपर उठाना शुरू किया। माँ ने तभी मुझे धक्का दिया और मुझसे दूर हो गईं। बोलीं, “कोई देख लेगा, दीपक!” मैंने माँ का हाथ पकड़ा और उन्हें पास के गन्ने के खेत में ले गया। मैंने फिर से माँ को चूमना शुरू किया। इस बार मैंने माँ की साड़ी खोल दी। अब वो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थीं। मैंने माँ का ब्लाउज भी खोल दिया। धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए मैंने माँ का पेटीकोट भी आजाद कर दिया। अब माँ मेरे सामने सिर्फ चड्डी और ब्रा में थीं। चाँदनी रात में माँ किसी अप्सरा की तरह लग रही थीं। मैंने एक हाथ माँ की चूची पर और दूसरा उनकी चूत पर रखा और सहलाने लगा। माँ सिसकियाँ भरने लगीं, “आह… दीपक… क्या कर रहा है… आह…” फिर मैंने माँ को जमीन पर लिटा दिया। मैं माँ के ऊपर लेट गया और उनके होंठों को चूमने लगा। इस बार माँ भी कामुक हो गई थीं और वो मुझे चूमने लगीं। हमारी जीभें एक-दूसरे के मुँह में कुश्ती कर रही थीं। माँ ने अपने हाथों से मेरी टी-शर्ट निकाल दी और मेरे लोअर को नीचे करने लगीं। मैंने अपना लोअर उतारकर नीचे फेंक दिया। अब माँ मेरा लंड सहलाने लगीं। माँ के छूने से मेरा लंड और टाइट और मोटा हो गया। मैंने माँ की ब्रा खोल दी और उनकी नंगी चूचियों को मुँह में ले लिया। मैं एक चूची को मुँह में चूस रहा था और दूसरी को दबा रहा था। माँ आँखें बंद करके सिसकियाँ ले रही थीं, “आह… दीपक… ओह…” मैं भी मस्त हो रहा था। मैंने माँ की चड्डी नीचे करने की कोशिश की, लेकिन वो बहुत टाइट थी और एक हाथ से नहीं निकल रही थी। माँ ने अपनी गाँड उठाई और अपनी चड्डी जाँघों तक सरका दी। मैंने माँ की जाँघों से चड्डी निकालकर फेंक दी। मैं माँ की जाँघों को चूमने लगा और चूमते-चूमते उनकी चूत पर पहुँच गया। पहली बार मुझे माँ की चूत के दर्शन हो रहे थे। कुछ देर बाद मेरा मुँह माँ की चूत को चाट रहा था और मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी। पूरे खेत में माँ की सिसकियों की आवाज गूँज रही थी, “आह… ओह… दीपक… क्या कर रहा है…” माँ मुझे अपनी चूत में दबाए जा रही थीं। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं उठा और अपना लंड उठाकर माँ की चूत पर रखा। मैंने एक जोर का धक्का मारा। माँ के मुँह से “आह…” निकल गया और मैं तो जन्नत में पहुँच गया। चाँदनी रात में, गन्ने के खेत में, एक माँ और बेटा, काम भावना में डूबे, अपनी जिस्म की भूख मिटा रहे थे। पूरे खेत में चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं, “थप-थप… आह… ओह…” मैं माँ की गहराई में डूब जाना चाहता था। माँ भी गाँड उठा-उठाकर मेरे लंड को अंदर लेने में मदद कर रही थीं, “हाँ… दीपक… और जोर से… आह…”
थोड़ी देर चोदने के बाद माँ की चूत से पानी निकल गया। मैंने माँ को उल्टा लिटाया और उनकी गाँड चाटने लगा। माँ सिसकियाँ और आहें भर रही थीं, “आह… दीपक… ये क्या कर रहा है…” मैंने माँ की गाँड पर सरसों का तेल लगाया और अपने लंड पर रखकर एक धक्का मारा। लंड थोड़ा-सा अंदर गया। फिर मैंने एक और धक्का मारा और लंड पूरी तरह माँ की गाँड में घुस गया। माँ की तो चीख निकल गई, “आह… दीपक… धीरे…” मैं माँ को जोर-जोर से चोदने लगा। माँ भी पूरी मस्त थीं, “आह… हाँ… और जोर से…” तभी हमें अंदर किसी के आने की आवाज सुनाई दी। लेकिन अब मैं कपड़े पहनने या भागने की हालत में नहीं था। मैं माँ की गाँड में लंड घुसाए ही रुक गया। हम दोनों पकड़े जाने वाले थे। तभी सामने से एक सियार हमारे सामने निकला। उसे देखकर मेरी जान में जान आई।
अगले दिन जब मेरी नींद खुली, तो सुबह के 7 बज चुके थे। मैं कमरे से बाहर निकला तो माँ चाय बना रही थीं। दादी भी वहीं थीं और माँ की मदद कर रही थीं। माँ ने मरून रंग की कॉटन की साड़ी पहनी थी, जिसमें वो बहुत सेक्सी लग रही थीं। मेरी नजर माँ से टकराई और उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई। थोड़ी देर बाद पिताजी भी घर आ गए और मुझसे बातें करने लगे। कुछ देर बाद माँ चाय लेकर आईं। मैं और पिताजी आमने-सामने बैठे थे। माँ जैसे ही पिताजी को चाय देने के लिए झुकीं, मेरी नजर उनकी गोल-गोल गाँड पर पड़ गई। कॉटन की साड़ी माँ की गाँड पर बहुत टाइट थी। तुरंत ही मेरे लोअर में मेरा लंड उछलने लगा। पिताजी को चाय देने के बाद माँ मुझे चाय देने के लिए झुकीं। माँ के झुकते ही उनके ब्लाउज में से उनकी चूचियों का क्लीवेज दिखने लगा। मैं तो पागल हो गया। चाय उठाते वक्त मैंने अपने हाथ से माँ की चूचियाँ छू दीं। माँ का चेहरा लाल हो गया।
चाय पीने के बाद पिताजी बाहर चले गए। माँ रसोई का काम करने लगीं। मैं आँगन में बैठा माँ को देख रहा था। जब भी माँ चलतीं, उनकी गाँड का मटकना मुझे मस्त किए जा रहा था। मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि जल्दी रात हो जाए। लेकिन लगता है कि मेरी किस्मत अब मुझ पर पूरी तरह मेहरबान हो चुकी थी। बाहर से गाँव के हजाम की पत्नी दादी को बुलाने आई कि राकेश्वर के घर बच्चे की बधाई गाने जाना है। माँ ने दादी को तैयार करवाया और दादी राकेश्वर के घर चली गईं। अब घर में सिर्फ मैं और माँ थे। माँ गैस पर खाना रखकर एक तरफ बैठ गईं। तभी मैंने माँ से कहा, “मुझे भूख लगी है।”
माँ: “थोड़ी देर इंतजार कर लो, खाना बन ही रहा है।”
मैं: “माँ, इंतजार नहीं होता, बहुत तेज भूख लगी है।”
माँ: “तो जाकर मेरे कमरे से बिस्किट-नमकीन रखा है, खा लो।”
मैं माँ के कमरे में गया और बिस्किट-नमकीन लेकर एक जगह छुपा दिया। फिर मैंने माँ को आवाज लगाई, “माँ, कहाँ हैं बिस्किट? मुझे तो मिल नहीं रहे।”
माँ: “बेटा, वही मिरर के सामने वाले ड्रावर में रखे हैं।”
मैं: “यहाँ तो कुछ नहीं है।”
माँ: “रुको, मैं आती हूँ।”
माँ ने आकर ढूँढा, लेकिन उन्हें भी कुछ नहीं मिला।
माँ: “यहीं तो रखे थे। लगता है तुम्हारे पिताजी ने कल बाहर आए मेहमानों को खिला दिया।”
मैं: “अब मैं क्या करूँ? मुझे तो बहुत तेज भूख लगी है।”
माँ: “ओहो, दीपक, दिल्ली जाकर तू बहुत जिद्दी हो गया है।”
मैं: “तो ठीक है, मुझे दूध ही पिला दीजिए, मम्मी।”
माँ: “लेकिन बेटा, अभी तो भैंस दुहाई ही नहीं है।”
मैं: “मुझे भैंस का दूध अच्छा नहीं लगता।”
माँ: “तो किसका अच्छा लगता है?”
माँ के ये पूछने पर मैं माँ के पीछे गया और उनकी चूचियों को पकड़ लिया।
मैं: “माँ का दूध ही बच्चे के लिए सबसे स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।”
ये कहकर मैं माँ की चूचियाँ दबाने लगा और उनके कान और गले को चूमने लगा।
माँ: “ओह, अब समझी, तुझे क्या भूख लगी है।”
मैं: “माँ, प्लीज, मुझे ये चूसने दो ना।”
माँ (हँसते हुए): “लेकिन बेटा, अब इनमें दूध नहीं निकलता जो तेरा पेट भर दे।”
मैं (माँ की गर्दन चाटते हुए): “पर माँ, मेरी भूख तो यही शांत कर सकती हैं।”
माँ: “दीपक, अभी नहीं… आह… रात को…”
मैं (माँ की चूचियाँ जोर से दबाते हुए): “माँ, एक समय खाने से पेट थोड़े भरता है।”
माँ: “आह… दीपक, तू सचमुच बहुत जिद्दी हो गया है… आह…”
मैं एक हाथ से माँ की चूचियाँ दबा रहा था और दूसरे हाथ से उनकी साड़ी खोल दी। फिर मैं माँ की पीठ को चूमने-चाटने लगा और पीछे से उनका हुक खोल दिया। माँ ने कहा, “दीपक, छोड़ दे ना… आह… मुझे अभी घर के सारे काम करने हैं।” मैंने माँ का ब्लाउज खोल दिया। अब माँ काले रंग की कॉटन की ब्रा में थीं, जिसमें उनकी कसी हुई चूचियाँ बाहर आने को बेकरार थीं। मैंने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया और उनके जिस्म को चूमने-चाटने लगा। पहले गर्दन, फिर धीरे-धीरे पेट। माँ मुझे बार-बार रुकने को कह रही थीं, “आह… दीपक… रुक जा…” मैं माँ के ऊपर लेट गया और अपना मुँह उनके मुँह पर रख दिया। माँ ने अपनी आँखें बंद कर लीं और वो भी मुझे चूमने लगीं। मैंने माँ की ब्रा नीचे खींच दी। माँ की दोनों चूचियाँ उछलकर बाहर आ गईं। मेरा मुँह अब माँ की चूचियों का स्वाद चखने को बेकरार था। माँ के दोनों निप्पल एकदम टाइट खड़े थे। मैंने एक चूची अपने मुँह में डाली और दूसरी को दबाने लगा। माँ आँखें बंद करके सिसकियाँ ले रही थीं, “आह… ओह… दीपक…” मैं भी मस्त हो रहा था। माँ की चूचियाँ चूसकर मैं फिर उनके पेट पर पहुँचा और उनकी नाभि चाटते हुए नीचे जाने लगा। अब मैं और माँ पूरी तरह पसीने में भीगे हुए मस्त हो रहे थे।