Family Taboo story माँ-बाप को अपने बच्चों की शादी बहुत सोच-समझकर करनी चाहिए। ये नहीं कि किसी ने कह दिया कि लड़का अच्छा है, अच्छा कमाता है, विदेशी टूर पर काम के सिलसिले में जाता है, तो बस घरवाले खुश हो गए और रिश्ते की बात पक्की कर दी। लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि लड़के और लड़की के विचार मिलते हैं या नहीं। मेरी शादी भी ऐसी ही हुई थी, तीन साल पहले। शादी के कुछ ही महीनों बाद मेरे पति टूर पर जाने लगे—कभी यूरोप, तो कभी अमेरिका। मुझे कहते थे, “तू घर में मम्मी-पापा का ध्यान रख।” मेरी सास एक स्कूल में प्रिंसिपल हैं, और ससुर रिटायर्ड हो चुके थे। शादी के बाद घर का सारा काम मैंने ही संभाल लिया।
शुरुआत में मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन मेरे ससुर मुझे कुछ ज्यादा ही घूरते थे। बात करते-करते उनकी नजरें मेरी छाती पर चली जाती थीं। कभी-कभी बातों-बातों में उनका हाथ मेरी पीठ या कंधों पर चला जाता था। एक बार मुझे कुछ कपड़े हाथ से धोने थे। मैं झुकी हुई थी, और वो बार-बार मेरे पास चक्कर काटने लगे। बाद में मुझे एहसास हुआ कि कपड़े धोते वक्त मेरी साड़ी का पल्लू काफी नीचे सरक गया था, और मेरी छाती का काफी हिस्सा दिख रहा था। एक और बार, जब घर की सफाई करने वाली नहीं आई, मैं झाड़ू लगा रही थी। ससुर सामने कुर्सी पर बैठ गए और मुझे घूरने लगे। जब मैं उनके पास पहुंची और कहा कि वो थोड़ा हट जाएं ताकि मैं नीचे झाड़ू लगा सकूं, तो उन्होंने हटने की बजाय अपनी टांगें फैला दीं।
जैसे ही उन्होंने टांगे फैलाईं, मैंने देखा कि उनके पजामे में तंबू बना हुआ था। मैंने फट से अपनी नजरें हटा लीं। मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या कर सकती थी? थोड़ा और पास जाकर मैंने उनके नीचे झाड़ू लगाई। मुझे पूरे वक्त लग रहा था कि उनकी आँखें मेरी छाती पर टिकी हैं। ऐसे कई छोटे-मोटे वाकये हुए, लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी? ऐसी बातें किसी को बता भी नहीं सकती थी। कई बार मैं स्टडी रूम में गई, तो देखा कि वो कंप्यूटर पर कुछ उल्टी-सीधी चीजें देख रहे थे। मेरे आने पर एकदम हड़बड़ा जाते और स्क्रीन बंद कर देते।
एक दिन न जाने उनके दिमाग में क्या सूझा। मुझसे पूछने लगे, “बेटी, तू 2-3 हफ्ते अपने पति से दूर अकेली कैसे रह लेती है? इस उम्र में तो शरीर में बहुत कुछ उबाल मारता होगा।” उनकी ये बात सुनकर मैं एकदम सन्न रह गई। मैंने कहा, “बाबूजी, मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं है। इनका काम इन्हें मुझसे दूर ले जाता है।” उन्होंने कहा, “तुझमें बहुत हिम्मत है, बहू। मुझे तो अब भी 2-3 दिन में तेरी सास की जरूरत पड़ती है।” उनकी बात सुनकर मेरी शर्म से आँखें झुक गईं। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करूं।
इससे पहले कि मैं कुछ और सोच पाती, उन्होंने पहली बार अपना हाथ मेरी कमर पर रख दिया—बिल्कुल साड़ी और ब्लाउज के बीच, जहाँ मेरी नंगी त्वचा को छू सकें। मेरा चेहरा सफेद पड़ गया। मैं वहाँ से जाने लगी, तो उनका दूसरा हाथ मेरी कमर की दूसरी तरफ आ गया। मैं घबरा कर बोली, “बाबूजी!” इससे पहले कि मैं और कुछ कह पाती, उन्होंने मेरी बात काट दी और मेरी कमर को अपने हाथों से दबाते हुए कहा, “तू तीन हफ्ते अकेली रही, और अभी एक हफ्ता और है उसे वापस आने में। कैसे गुजारा करती होगी तू?” मैंने घबराते हुए कहा, “बाबूजी, प्लीज मुझे छोड़ दीजिए, मुझे घर में बहुत काम है।” लेकिन इससे पहले कि वो और कुछ करते, मैं कपड़े ठीक करने के बहाने वरांडे में चली गई और फिर अपने कमरे में।
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दो दिन बाद वो फिर स्टडी रूम में देर तक थे। जब बाहर आए, मैं रसोई में बर्तन साफ कर रही थी। वो मेरे पीछे आए और फिर से मेरी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। इस बार उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचकर अपने शरीर से मेरा शरीर सटा लिया। मेरे कान के पास आकर बोले, “अरे बहू, कभी आराम भी कर लिया कर।” मैं एकदम चौंक गई। मैंने उनके हाथ पकड़कर छुड़ाने की कोशिश की और बोली, “बाबूजी, घर के काम तो करने ही पड़ते हैं।” लेकिन इस बार उन्होंने मेरे हाथ पकड़ लिए और अपनी बाहों को मेरी कमर पर लपेटते हुए फिर मेरे कान के पास बोले, “अरे, काम कभी खत्म नहीं होते। लाइफ को इंजॉय भी करना पड़ता है।” ये कहते हुए उन्होंने मेरा एक हाथ छोड़कर अपना दूसरा हाथ मेरे पेट पर रख दिया और वहाँ फेरने लगे। मुझे उनके शरीर का वो हिस्सा मेरे पीछे महसूस हो रहा था। मैंने एकदम झटके से उनका हाथ हटाया और रसोई से भागकर अपने कमरे में चली गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। वो मुझे इस तरह क्यों परेशान कर रहे हैं?
अगले दिन जैसे ही सास स्कूल के लिए निकलीं, मुझे डर लगने लगा कि कहीं आज फिर कोई हरकत न हो। ये सोचते ही ससुर फिर स्टडी रूम में चले गए। मैं उनकी इन हरकतों से तंग आ चुकी थी। मैंने ठान लिया कि आज मैं उन्हें कोई मौका नहीं दूंगी। मैं जल्दी-जल्दी काम निपटाकर अपने कमरे में चली जाऊँगी। लेकिन जितनी जल्दी मैंने काम खत्म करने की कोशिश की, उतना ही काम खत्म नहीं हुआ। और फिर से मैंने अपनी कमर पर उनके हाथ महसूस किए। इस बार उन्होंने मुझे अपनी तरफ और जोर से खींचा। उनका वो हिस्सा पहले से ही काफी सख्त था। जैसे ही वो मेरे पीछे सटे, उन्होंने उसे मेरे खिलाफ रगड़ना शुरू कर दिया। मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने अपनी पकड़ और सख्त कर ली।
“बाबूजी, मुझे छोड़ दीजिए, घर में बहुत काम है,” मैंने घबराते हुए कहा। उनका कोई जवाब नहीं आया, बस वो रगड़ते रहे। “बाबूजी, प्लीज मुझे छोड़ दीजिए,” मैंने फिर कहा और अपनी गर्दन घुमाई। उनके चेहरे पर उनकी नीयत साफ दिख रही थी—वो बिल्कुल सही नहीं थी। मुझे ऐसा लगा जैसे वो कोई भूखा शेर हों और मैं एक हिरनी, जो उनके शिकार में फंस गई हो। वो कुछ बोल भी नहीं रहे थे, जिससे मेरा डर और बढ़ रहा था।
अचानक उन्होंने मुझे खींचते हुए दीवार की तरफ ले गए और मुझे दीवार से सटा दिया। पीछे से और तेजी से रगड़ना शुरू कर दिया। उनकी साँसें तेज हो चुकी थीं। मैंने हिम्मत जुटाकर कांपती आवाज में कहा, “बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं? प्लीज मुझे छोड़ दीजिए, जाने दीजिए।” लेकिन उन्होंने गुस्से में कहा, “चुप! तेरी आवाज तभी निकले जब मैं तुझसे कुछ पूछूं।” मेरे बालों को गर्दन से हटाते हुए उन्होंने मेरी गर्दन और कंधे के बीच चूसना शुरू कर दिया। फिर हल्के से काट लिया। मैं दर्द से चीख पड़ी।
उनकी गुर्राहट मेरे कानों में गूंजी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। ये मेरे ससुर हैं, और ये मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? उन्होंने मेरे निचले हिस्से को दीवार और अपने बीच में दबा रखा था। फिर मेरे कंधों को पकड़कर मुझे पीछे की तरफ झुकाया और अपने हाथ मेरी छाती पर ले गए। मेरे टिट्स को पकड़कर जोर-जोर से दबाने लगे। मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे। “बाबूजी, प्लीज मुझे छोड़ दीजिए, मुझे जाने दीजिए,” मैंने रोते हुए कहा। लेकिन मेरी बात को अनसुना करते हुए वो अपनी हवस मिटाने में लगे रहे।
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कुछ देर मेरे टिट्स को मसलने के बाद, उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे पीछे ले जाकर मेरे बाल हटाए और एक-एक करके मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगे। मैंने अपने दोनों हाथ दीवार पर टिका रखे थे। अचानक मैंने हिम्मत जुटाई और उन्हें जोर से धक्का देकर वहाँ से अपने कमरे की तरफ भागी। लेकिन जैसे ही मैं थोड़ा आगे बढ़ी, उन्होंने मेरे बाल पकड़ लिए और जोर से अपनी तरफ खींच लिया। मेरी चीख निकल गई। तभी उनके हाथ ने मेरे चेहरे पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। “दिखा, कितना जोर है तुझमें! अब तेरी सारी अकड़ निकालता हूँ, कुतिया!” ये कहते हुए उन्होंने 3-4 और थप्पड़ मेरे चेहरे पर जड़ दिए। मेरे बाल अब भी उनके हाथ में थे। “चल, दिखा और कितनी अकड़ है तुझमें, कुतिया!” मेरे रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। बल्कि जितना मैं रो रही थी, उतना ही उनकी हिम्मत बढ़ रही थी।
उन्होंने मेरा पल्लू नीचे खींच दिया। मैं अपने हाथ उठाकर खुद को बचाने की कोशिश करने लगी, तो उन्होंने एक हाथ से मेरे बाल खींचे और दूसरे हाथ से तीन और थप्पड़ मारे। “हाथ वापस नीचे ले जा! जहाँ थे, वहीं रख!” मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। मैंने उनकी बात मानी। फिर उन्होंने मेरे बाल छोड़कर मुझे घुमाया और मेरे ब्लाउज के बाकी हुक खोल दिए। दोनों हाथों से उसे उतार दिया। मैंने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं।
फिर उन्होंने मेरी ब्रा के हुक खोले। जैसे ही वो खुली, मेरा रोना और तेज हो गया। उन्होंने दोनों हाथों से ब्रा को भी उतार दिया। अब मुझे फिर से घुमाकर सामने से देखा। मेरे बाल खुले और बिखरे हुए थे, चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ, आँखें बंद, और ऊपर से मैं पूरी तरह नंगी थी। मेरा पल्लू जमीन पर गिरा हुआ था। “उफ्फ, बहू, क्या टिट्स हैं ये!” वो एक-एक करके मेरे टिट्स को अपने मुँह में लेने लगे और चूसने लगे। फिर ऊपर आकर अपनी जीभ निकालकर मेरे आंसुओं को चाटने लगे। मैं रोए जा रही थी, और वो मेरे आंसू चाट रहे थे।
फिर मैंने उनके दोनों हाथ अपनी कमर पर महसूस किए। वो मेरी साड़ी को खींचकर उतारने लगे। साड़ी को निकालकर जमीन पर गिरने दिया। फिर पेटीकोट का नाड़ा पकड़कर उसे भी खींच दिया। वो भी साड़ी के ऊपर जमीन पर गिर गया। मेरी टांगें कांप रही थीं। अब मैं सिर्फ अपनी पैंटी में अपने ससुर के सामने खड़ी थी। उन्होंने अपने हाथ मेरे पीछे ले जाकर मेरी पैंटी के अंदर डाल दिए और मेरी गांड को दबाने लगे। फिर दोनों हाथ साइड में ले जाकर मेरी पैंटी को नीचे खींच दिया। वो भी मेरे पैरों पर पेटीकोट के ऊपर गिर गई। “अरे बहू, तू तो नीचे बाल नहीं रखती! वाह, ये तो बहुत अच्छा करती है!” ये कहते हुए उनका एक हाथ नीचे जाकर मेरे निचले हिस्से को सहलाने लगा।
अचानक उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया, जैसे छोटे बच्चों को उठाते हैं। “अब चल, तू अपने कमरे में जाना चाहती थी ना?” कमरे में ले जाकर मुझे बिस्तर के पास खड़ा कर दिया। फिर पीछे से मेरे बाल पकड़कर मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। एक हाथ मेरे सिर के पीछे था, और दूसरा मेरी गांड को दबा रहा था। कुछ देर तक यही चलता रहा। फिर वो बिस्तर के कोने पर बैठ गए और मुझे अपनी तरफ खींचकर दोनों हाथों से मेरी गांड को दबाने लगे। मेरी झांटों पर चाटने लगे और नीचे सूंघकर आहें भरने लगे। अपने हाथों को मेरी गांड से मेरी कमर तक ले गए और मुझे नीचे की तरफ दबाने लगे। मुझे उनके सामने घुटनों पर बैठा दिया।
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उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे गालों पर फेरने शुरू किए। “आँखें खोल, बहू! मैं कह रहा हूँ, आँखें खोल!” मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। “बाहू, घर की लक्ष्मी होती है। घर का कोई भी लक्ष्मी को यूज कर सकता है। घबराओ मत, ये सब सिर्फ हमारे बीच रहेगा। इसकी जरूरत तुझे भी है और मुझे भी। मैं जानता हूँ कि तुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे भी देख, 3-4 कोशिशों के बाद तुझे काबू कर पाया हूँ। अब मैं जो-जो कहूंगा, तू वैसा ही करेगी। मैं तुझे मारना बिल्कुल नहीं चाहता, लेकिन तुझे काबू में लाने के लिए अगर मारना पड़े, तो वो भी करूंगा। लेकिन ये तुझ पर निर्भर है। अगर तू मेरी बात मानती जाएगी, तो ये तुझ पर भी आसान होगा।” ये कहते ही उन्होंने मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया।
मुझे पता ही नहीं चला कि कब उन्होंने अपने पजामे का नाड़ा खोला। थोड़ा ऊपर उठकर उन्होंने अपना पजामा नीचे कर दिया। उन्होंने नीचे कुछ नहीं पहना था। जैसे ही उन्होंने अपने होंठ हटाए, मैंने देखा कि वो नीचे से पूरी तरह नंगे थे, और उनका लंड एकदम कड़क खड़ा था। उन्होंने एक हाथ मेरे सिर पर रखा और मुझे नीचे खींचना शुरू कर दिया। फिर मुझे उसका लंड मुँह में लेने का हुक्म दिया।
मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी मुँह खोलने की, और मैं रोए जा रही थी। “चल, अब नखरे मत कर और मुँह खोल,” बाबूजी ने मेरे बाल पीछे खींचते हुए कहा। मेरे न खोलने पर उन्होंने मेरे बाल और जोर से खींचे और एक थप्पड़ मारा। मैं और तेज रोने लगी। जैसे ही मेरा मुँह रोते-रोते खुला, उन्होंने अपना लंड मेरे मुँह में तेजी से डाल दिया—एक ही झटके में। जैसे ही वो अंदर गया, मैं चौंक पड़ी। उन्होंने जल्दी से उसे बाहर निकाला और फिर तेजी से अंदर डाल दिया। इस बार उसे अंदर ही दबा के रखा। मैं घबरा रही थी। मैं अपना सिर पीछे करके उसे बाहर निकालना चाह रही थी, लेकिन उन्होंने उसे अच्छी तरह दबा रखा था। फिर उन्होंने आधा बाहर निकाला, तो मेरी साँसें थोड़ी ठीक हुईं।
बाबूजी ने मुझे उनकी तरफ देखने के लिए कहा। मैंने हिम्मत करके उनकी तरफ देखा, तो उनके चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान थी। “क्या लग रही है बहू, मेरा लंड अपने मुँह में लेकर! तेरे गाल आंसुओं से भरे हुए, आँखों में पानी, डरी-डरी, घबराई हुई!” फिर उन्होंने मेरा सिर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया। मेरा रोना अब खुद को संभालने में बदल गया। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा। फिर जब उन्होंने मेरा सिर बाहर निकाला, मेरे बाल पीछे खींचकर मुझे फिर आँखें खोलकर उनकी तरफ देखने को कहा। मेरे मुँह के आसपास की जगह पूरी तरह थूक से गीली थी। वो अपने लंड को मेरे पूरे चेहरे पर रगड़ रहे थे, जिससे मेरा सारा चेहरा मेरे ही थूक से गीला हो गया। मेरे बाल अब भी उनके हाथ में थे।
जैसे-जैसे वो बिस्तर से खड़े हुए, मैं भी उनके साथ खड़ी हो गई। उनका दूसरा हाथ मेरे दूध पर गया, और वो उसे मसलने लगे। अब मुझे घुमाकर बिस्तर के कोने पर बिठा दिया और मेरे बाल पीछे खींचते रहे, जब तक मैं बिस्तर पर लेट नहीं गई। फिर मेरे बाल छोड़कर खड़े हो गए और मेरे नंगे बदन को देखने लगे।
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