Sasur ne Bahu ko garm kiya – कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-4
होली की घटना के बाद काम्या अपने ससुर से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रही थी। उसका मन शर्म से भरा था, क्योंकि ससुर ने उसे ऊपर से पूरी तरह नंगा कर दिया था, वो भी उसकी सहमति से। मदनलाल ये सब नोट कर रहा था। उसे इस बात की तसल्ली थी कि काम्या गुस्सा नहीं थी, बस हिचक रही थी। चार दिन तक ये लुका-छिपी चलती रही। मदनलाल ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी, क्योंकि औरतें स्वभाव से ऐसे मामलों में आगे नहीं बढ़तीं। उसने रात को छत से काम्या को फोन किया।
काम्या का दिल बाबूजी का नंबर देखकर धक-धक करने लगा। कुछ देर पहले ही सुनील से गर्मागरम बातें हुई थीं, और वो पहले से ही मूड में थी। उसने फोन रिसीव किया।
काम्या: हाँ, बाबूजी।
मदनलाल: बहू, क्या कर रही हो? सो गई थी क्या?
काम्या: नहीं, बाबूजी, बस गाने सुन रही थी।
मदनलाल: दिनभर गाने ही सुनती रहती हो? थोड़ा घूमो-फिरो, शरीर स्वस्थ रहेगा।
काम्या: रात को कहाँ घूमें?
मदनलाल: अरे, रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी है। और जगह की कमी है क्या? इतनी बड़ी छत पड़ी है। चलो, ऊपर आ जाओ।
काम्या: ऊपर? ऊपर तो आप हैं।
मदनलाल: तो? हम हैं तो क्या हुआ? कोई भूत-प्रेत हैं क्या?
काम्या: नहीं, वो बात नहीं, पर… स्स्स…
मदनलाल: तो फिर क्या बात है? साफ-साफ बोलो, डरती क्यों हो?
काम्या: छत पर तो अँधेरा भी रहता है।
मदनलाल: अँधेरा है तो क्या? अपना घर है, कोई जंगल थोड़े जाना है। चलो, आओ, थोड़ा वॉकिंग कर लो।
काम्या: बाबूजी, आप तंग तो नहीं करेंगे?
मदनलाल: क्या! हम तंग करते हैं क्या?
काम्या: वो… उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किया था।
मदनलाल: पगली, वो तो त्योहार था। यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या? तुम तो फालतू घबराती हो।
काम्या: सच्ची बताइए, आपका कोई भरोसा नहीं।
मदनलाल: अरे, बहू, हम पर भरोसा नहीं करोगी, तो इस शहर में किस पर करोगी?
काम्या: नहीं, आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी की, तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
मदनलाल: बहू, तुम भी डरपोक हो। खुली छत पर कुछ हो सकता है क्या? चलो, ऊपर आ जाओ।
काम्या: पहले कसम खाइए कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। तब आएँगे।
मदनलाल: अरे, तुम्हारी कसम, खुले में नो बदमाशी, नो लफड़ा। अब जल्दी आ जाओ।
काम्या ने ससुर को कसम से बाँध लिया, तो वो दिलेर हो गई। उसने ससुर के सब्र का इम्तिहान लेने के लिए होली वाला कातिलाना ऑउटफिट पहना—टाइट टी-शर्ट और लेगिंग, जिसमें उसकी चूचियाँ और गांड उभरकर जानलेवा लग रही थीं। छत पर पहुँचते ही मदनलाल की आँखें चमक उठीं। उसे पक्का यकीन हो गया कि बहू की ठरक अभी भी चढ़ी हुई है।
दोनों छत पर पास-पास चलने लगे। मदनलाल जानबूझकर सुनील से विरह की बातें कर रहा था, ताकि काम्या हीट में आए। उसका असर हुआ। कुछ देर बाद काम्या की आवाज भारी होने लगी, उसमें चंचलता आ गई। वो ससुर के और करीब चिपककर चलने लगी। थोड़ी देर बाद मदनलाल ने नीचे चलने को कहा और पहले सीढ़ियों की ओर बढ़ा। घर की छत पर टावर था, जिसमें दरवाजा लगा था। काम्या पीछे थी, तो उसने दरवाजा बंद किया। जैसे ही वो पलटी, मदनलाल ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और उसके रसीले होंठ चूसने लगा। उसके हाथ काम्या की चूचियों पर पहुँच गए। इस अचानक हमले से काम्या हड़बड़ा गई, मगर छुड़ा नहीं पाई।
काम्या: बाबूजी, प्लीज छोड़िए। आपने कहा था, खुले में तंग नहीं करेंगे।
मदनलाल: बहू, यहाँ खुला कहाँ है? देखो, चारों तरफ से बंद है।
काम्या ने देखा, वो टावर के अंदर थी।
काम्या: लेकिन आपने कहा था, बदमाशी नहीं करेंगे। ये चीटिंग है!
मदनलाल: नहीं, बहू, बिल्कुल चीटिंग नहीं। हम अपनी कसम नहीं तोड़ते।
वो फिर से काम्या की जवानी लूटने लगा। उसकी हरकतों से काम्या गर्म होने लगी। उसकी चूचियाँ तन गईं, और बदन में करंट दौड़ने लगा। मदनलाल ने मौका देखकर उसकी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की।
काम्या: बाबूजी, नहीं, कपड़े मत उतारिए। हमें ये अच्छा नहीं लगता।
मदनलाल: ठीक है, बहू। हमारी जिंदगी तो नीरस थी। सोचा, शायद तुम कुछ सुकून दे सको। मगर हमारा भाग्य ही खराब है।
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मदनलाल की भावनात्मक बात ने काम्या को पिघला दिया।
काम्या: हमने तो सिर्फ इतना कहा कि कपड़े मत उतारिए।
मदनलाल: चॉकलेट का रैपर बिना उतारे खाने में स्वाद कहाँ? बिना देखे रहा भी नहीं जाता।
काम्या: लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
मदनलाल: आगे मतलब?
काम्या: मतलब नीचे जाने लगते हैं। हमें वो बिल्कुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहाँ पहुँच गए थे।
मदनलाल: लेकिन तुमने मना किया, तो रुक गए ना? तुम्हारी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
इस बार काम्या चुप रही। मदनलाल ने उसकी टी-शर्ट उतार दी। एक पल में वो फिर अधनंगी थी। उसने अपनी जीभ से काम्या के निप्पल के चारों ओर चक्कर लगाए। काम्या गनगना उठी। “आह… स्स्स…” उसकी सिसकारियाँ शुरू हो गईं। मदनलाल ने चूचियाँ चूसनी शुरू कीं, तो काम्या उसके बाल सहलाने लगी। मदनलाल ने दाँत भी गड़ाए। काम्या की चूत तक करंट पहुँच रहा था। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, बाबूजी, खा जाओ इनको। ये आपके लिए ही हैं। खूब मसल डालो। बहुत परेशान करती हैं ये।”
मदनलाल: बहू, अब तुम्हारी सारी परेशानी खत्म। इनकी देखभाल हम करेंगे। जब भी तंग करें, हमें बता देना, हम इनकी खबर लेंगे।
टावर में तूफान आ गया। मदनलाल ने काम्या के ऊपरी जिस्म पर अपने होंठों से मुहर लगाई, जैसे उस पर अपनी मिल्कियत जता रहा हो। काम्या बेसुध पड़ी थी। आधे घंटे बाद जब वो अपने कमरे में पहुँची, उसकी चूचियाँ मदनलाल के दाँतों के निशानों से भरी थीं।
दो दिन बाद मदनलाल ने फिर काम्या को बुलाने का सोचा। वो नहीं चाहता था कि काम्या की आदत छूटे, वरना वो ठंडी पड़ सकती थी। दूसरा, उसे खुद अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उसने रात को फोन किया और सीधे टावर में बुलाया।
काम्या के लिए ये धर्मसंकट था। अब तक जो हुआ, वो अचानक हुआ था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो मदनलाल को कड़ाई से रोक नहीं पाई। मगर आज वो उसे सीधे टावर में बुला रहा था। अगर वो जाती, तो इसका मतलब वो खुद अपना जिस्म ससुर को परोसने जा रही थी। इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी? उसने फैसला किया और कमरे में ही रही।
जब वो नहीं आई, तो मदनलाल ने फिर फोन किया।
काम्या: हाँ, बाबूजी।
मदनलाल: बहू, आओ ना, हम इंतजार कर रहे हैं।
काम्या: बाबूजी, हम नहीं आएँगे।
मदनलाल: क्यों नहीं? क्या बात हो गई?
काम्या: कोई बात नहीं, बस आना नहीं चाहते।
मदनलाल: प्लीज, बहू, ऐसा मत करो। अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।
काम्या: बाबूजी, जो हो रहा है, वो गलत है। पाप है।
मदनलाल: कोई पाप नहीं। तुम जानती हो, पाप क्या होता है? शास्त्र कहते हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।’ जिससे सुख मिले, वही धर्म है। हमारी दोस्ती से दोनों को खुशी मिलती है।
काम्या: बाबूजी, हमें शास्त्र नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं कि ये रिश्ता गलत है।
मदनलाल: तुम हमें मझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे बिना हमारा जीवन बेमानी है।
मदनलाल की प्रेम भरी बातों से काम्या का मन डोल गया, मगर वो टस से मस न हुई। मदनलाल की सारी योजना धरी रह गई। मगर वो पक्का फौजी था। उसने “इमोशनल अत्याचार” का हथियार निकाला।
अगले दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाजार चला गया। देर रात तक नहीं लौटा, तो शांति ने काम्या से कहा, “फोन करके पूछो, कहाँ हैं?”
काम्या: बाबूजी, कहाँ हो? खाना खाने का टाइम हो गया।
मदनलाल: हमें देर हो जाएगी। खाना खाकर आएँगे। —और फोन काट दिया।
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मदनलाल देशी शराब के ठेके पहुँचा। उसने सालों पहले पीना छोड़ दिया था, मगर आज उसने देशी ठर्रा पिया, ताकि बदबू आए और घर में पता चले। उसने चिकन खाया और घंटे भर बाद घर लौटा। काम्या ने दरवाजा खोला, तो शराब की बदबू से पीछे हट गई। मदनलाल ने लड़खड़ाने की एक्टिंग की और अपने कमरे में चला गया। सास-बहू एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं।
अगले दिन फिर मदनलाल ठर्रा पीकर आया। उसने एक रोटी खाई और गुमसुम अपने कमरे में चला गया। शांति बड़बड़ाने लगी, “इन्हें क्या हो गया? बड़ी मुश्किल से पीने की आदत छुड़ाई थी, अब फिर शुरू। इस बुढ़ापे में शराब शरीर खोखला कर देगी। पता नहीं किसकी नजर लग गई!” काम्या चुपचाप सुनती रही। वो कैसे बताती कि बाबूजी का टेंशन वो खुद है?
तीसरे दिन जब मदनलाल फिर निकला, तो काम्या समझ गई कि वो पीने जा रहे हैं। अब वो टेंशन में थी। सास कह रही थी कि शराब बाबूजी को खोखला कर देगी। दूसरा, घर को नजर लगने की बात। तीसरा, उसकी चूचियाँ बार-बार “बाबूजी-बाबूजी” पुकार रही थीं। मदनलाल के दीवानापन ने उसके दिल में प्यार का अंकुर जगा दिया था। आधे घंटे बाद उसने फोन उठाया।
काम्या: बाबूजी, हमें क्यों परेशान कर रहे हो? ये पीना क्यों शुरू किया?
मदनलाल: तुम्हें इससे क्या? तुम ऐश करो। —रूखी आवाज में बोला।
काम्या: पीना जरूरी है क्या? अपने शरीर का ख्याल करिए।
मदनलाल: इस शरीर का क्या करना, जब ये सुख नहीं दे सकता? अब शराब ही सहारा है।
काम्या: और आपका परिवार? उसका ख्याल नहीं?
मदनलाल: सब ठीक हैं। सास पूजा में, बहू अपने मस्ती में। इस बूढ़े के लिए किसके पास टाइम है?
काम्या: प्लीज, बाबूजी, शराब मत पियो। हमें ये पसंद नहीं।
मदनलाल: हम तुम्हारी पसंद से नहीं चल सकते, जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चलतीं।
काम्या: हम हाथ जोड़ रहे हैं। बिना पिए लौट आइए। जो चाहते हैं, वो मिल जाएगा।
मदनलाल: क्या मिल जाएगा?
काम्या: आप बहुत गंदे हैं। हमारे मुँह से बुलवाना चाहते हैं।
मदनलाल: अरे, कुछ पता तो चले।
काम्या: हम टावर में आ जाएँगे, बस। शरारती कहीं के! —और फोन काट दिया।
काम्या की हरी झंडी से मदनलाल झूम उठा। उसे यकीन नहीं था कि काम्या इतनी जल्दी मान जाएगी। वो गुनगुनाता हुआ घर लौटा। घर में सास-बहू टीवी देख रही थीं। काम्या चाय बनाने गई, और मदनलाल हाथ-मुँह धोने। लौटा, तो देखा काम्या किचन में है और शांति टीवी में मगन। मदनलाल किचन में घुसा और काम्या को पीछे से पकड़ लिया। उसका कोबरा फन फैलाकर काम्या की गांड में चोट मारने लगा। उसके हाथों ने चूचियों पर कब्जा कर लिया। काम्या चिहुँक गई, “बाबूजी, ये क्या कर रहे हो? मम्मी बगल में हैं। प्लीज छोड़िए।”
मदनलाल: छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है।
काम्या की चूचियाँ उसकी कमजोरी बन चुकी थीं। मदनलाल के हाथों का जादू और होंठ उसकी पीठ व गर्दन पर चल रहे थे। काम्या सनसना रही थी, मगर बोली, “बाबूजी, प्लीज, अभी चले जाइए। जो करना है, रात को कर लेना।” मदनलाल ने शांति के डर से उसे छोड़ा और बोला, “ठीक है, बस एक किस दे दो।” उसने काम्या को घुमाया और उसके होंठों पर अपने होंठ जोड़ दिए। काम्या ने उसे जोर से चिपका लिया।
रात को शांति नींद की गोली खाकर सो गई। मदनलाल ने टावर से फोन किया।
काम्या: हाँ, बाबूजी।
मदनलाल: बहू, तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। भूख लगी है।
काम्या: कुछ खाना ले आएँ?
मदनलाल: नहीं, बस थोड़ा दूध पी लेंगे।
काम्या: ठीक है, दूध ले आते हैं।
मदनलाल: अरे, तुम आ जाओ, डायरेक्ट पी लेंगे।
काम्या: डायरेक्ट मतलब?
मदनलाल: जैसे कन्हैया पीता था, मुँह लगाकर।
काम्या उसकी बात समझकर शरमा गई। “हाय राम, आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहू से ऐसा बोलता है?”
मदनलाल: अच्छा, ठीक है, बोलेंगे नहीं, करेंगे। दूध पीयेंगे।
काम्या: आपको और कोई काम है ही नहीं। सुई एक ही जगह अटकती है।
मदनलाल: अरे, तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। जल्दी आओ।
काम्या टावर की ओर बढ़ी। उसे शर्म महसूस हो रही थी। वो अपने ससुर के पास जा रही थी, जो उसके जिस्म से खेलने को बेताब था। हर कदम भारी लग रहा था। टावर के दरवाजे पर पहुँचते ही मदनलाल ने उसे खींचकर बाँहों में भींच लिया। वो काम्या को दबोचने-मसलने लगा। काम्या उसके दीवानापन पर गर्व महसूस कर रही थी। मदनलाल ने उसके स्ट्रॉबेरी होंठ चूसने शुरू किए। उसका कोबरा काम्या की नाभि पर चोट मार रहा था। उसने काम्या का चेन वाला गाउन खोला। अगले पल उसकी चूचियाँ फड़फड़ाकर बाहर आ गईं। जीरो वाट की रोशनी में वो जानलेवा लग रही थीं।
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काम्या: क्या देख रहे हो, बाबूजी?
मदनलाल: कुदरत की नायाब कारीगिरी।
काम्या: उसमें ऐसा क्या है? सभी का तो ऐसा होता है।
मदनलाल: नहीं, बहू, सबका ऐसा नहीं होता। ये अद्भुत हैं। मैंने जिंदगी में इतने सुंदर नहीं देखे।
काम्या: कई बार देख लिया, अब तक मन नहीं भरा?
मदनलाल: पागल हो गई? इनसे मन कभी भरेगा? तुम ऐसे ही खोलकर बैठो, तो सारा जीवन इनको देखते बिता दूँ।
काम्या: हाय राम, बाबूजी, आप तो पागल हो गए। हमें भी पागल करने में लगे हैं।
मदनलाल: तो हो जाओ पागल। जिंदगी का असली आनंद पागलपन में है।
मदनलाल ने काम्या की चूची मुँह में ले ली और निचोड़ने लगा। काम्या सिसकारने लगी। उसने काम्या को दरी पर लिटाया और बारी-बारी से उसकी चूचियाँ पीने लगा। काम्या की जाँघें आपस में रगड़ने लगीं। तभी उसका मोबाइल बजा। मदनलाल बोला, “देखो, कौन विघ्नसंतोषी है?” काम्या ने देखा, सुनील का कॉल था। उसने बाबूजी को दिखाया। मदनलाल खिन्न हुआ, फिर बोला, “लाउडस्पीकर पर बात करो।”
काम्या: हाँ, जानू, नींद नहीं आ रही?
सुनील: नहीं, दूध पीने का मन कर रहा है।
काम्या: तो छुट्टी लेकर आ जाओ।
सुनील: यहीं से पी लेंगे। तुम दूध तो बाहर निकालो।
काम्या ने बाबूजी की ओर देखा और बोली, “जानू, निकाल लिया। अब पी लो।” मदनलाल ने तुरंत चूची चूसना शुरू कर दिया। सुनील की बातें सुनकर वो साँय-साँय हो गया और उसने दाँत गड़ा दिए। काम्या चीख पड़ी।
सुनील: डार्लिंग, क्या हुआ?
काम्या: इतनी जोर से क्यों काटा? हमने पीने को कहा, काटने नहीं। नो चीटिंग।
सुनील: सॉरी, डार्लिंग, दाँत लग गया होगा।
मदनलाल ने मौका देखकर काम्या की चूत मसलनी शुरू की। काम्या हीट में थी, उसकी गांड उछलने लगी। थोड़ी देर में उसका पानी छूट गया। उसे होश आया, और वो चिल्लाई, “हाथ हटाओ वहाँ से!” मदनलाल ने तुरंत हाथ हटाया।
सुनील: कहाँ से?
काम्या: आप नीचे क्यों हाथ लगा रहे हैं? अभी बिल्कुल नहीं। नौ दिन का उपवास चल रहा है।
सुनील: सॉरी, यार, गलती से लग गया।
कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-6