Hot Sasur Bahu Sex Story कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-1
मदनलाल ने हाथ धोने का बहाना बनाया और किचन की ओर बढ़ चला, लेकिन उसका असली मकसद था अपनी बहू काम्या की कातिल जवानी को निहारना। उसकी आँखें काम्या के हर अदा पर टिकी थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को ताक रहा हो। किचन में काम्या आटा गूँथ रही थी, उसकी साड़ी नाभि से काफी नीचे बँधी थी, जिससे उसका गोरा, चिकना पेट और गहरी नाभि साफ नजर आ रही थी। साड़ी का पतला कपड़ा उसके कूल्हों पर चिपका हुआ था, और हर बार जब वो हिलती, उसकी गोलमटोल गांड का उभार ससुर की आँखों में चुभता।
मदनलाल खामोशी से कोने में खड़ा हो गया, उसकी नजरें काम्या के नितंबों पर जाकर टिक गईं। उसकी लुंगी में उसका लंड तनने लगा, जैसे कोई बेकाबू जंगली जानवर। उसने अपने आप को संभालने की कोशिश की, लेकिन काम्या की जवानी का जादू उसे बेचैन कर रहा था। वो धीरे से पीछे हटने लगा, मगर तभी काम्या ने पलटकर उसे देखा। उसकी तिरछी नजरें ससुर की लुंगी पर पड़ीं, जहाँ उभार साफ दिख रहा था। काम्या का चेहरा एक पल को लाल हो गया, वो समझ गई कि ससुर की नजरें उसकी देह पर भूखी भेड़ियों की तरह टिकी थीं।
अगले कुछ दिनों तक मदनलाल का यही खेल चलता रहा। वो हर मौके पर काम्या को घूरता, उसकी हरकतों को ताड़ता। काम्या शुरू-शुरू में इस घूरने से थोड़ा असहज हो जाती, मगर धीरे-धीरे उसे ये सब नॉर्मल लगने लगा। बल्कि, अब तो उसके दिल के किसी कोने में ससुर की ये भूखी नजरें अच्छी लगने लगी थीं। उसे अपनी जवानी पर गर्व होने लगा, और वो जानबूझकर ससुर के सामने इठलाने लगी। कभी साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसकाती, कभी जानबूझकर झुककर अपनी चूचियों का उभार दिखाती। वो देखना चाहती थी कि ससुर कितना बेकाबू हो सकता है।
मदनलाल भी कोई नौसिखिया नहीं था। उसने काम्या के चेहरे पर ना तो गुस्सा देखा, ना ही नफरत। बल्कि, अब तो काम्या खुद उसके करीब आने के बहाने ढूंढने लगी थी। मदनलाल समझ गया कि बहू अब उसके जाल में फंस चुकी है। उसने सोचा, अब वक्त है अगला कदम बढ़ाने का। आँखों की बातें तो हो चुकी थीं, अब कुछ असली बातचीत होनी चाहिए। मगर सीधे-सीधे फ्लर्ट करना जोखिम भरा था। काम्या शरमा सकती थी, या बात को टाल सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी—मोबाइल! रात के अंधेरे में, मोबाइल की स्क्रीन की आड़ में बात करना आसान होगा। उसने ठान लिया कि आज रात वो काम्या से मोबाइल पर बात करेगा, उसकी तारीफ करेगा, क्योंकि औरत को अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनना हमेशा पसंद होता है।
रात को खाना खाने के बाद सास शांति अपनी नींद की गोली खाकर सोने चली गई। काम्या ने भी किचन का काम निपटाया और अपने कमरे में चली गई। मदनलाल टीवी देखता रहा, मगर उसका दिमाग कहीं और था। करीब दस बजे वो उठा, मोबाइल जेब में डाला और छत पर चला गया। उधर, काम्या अपने कमरे में थी। उसने कपड़े बदले, एक पतली सी नाइटी पहनी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। वो बिस्तर पर लेटी, मोबाइल में रोमांटिक गाना चला रही थी। नींद नहीं आ रही थी। सुबह की घटना उसके दिमाग में घूम रही थी।
सुबह जब वो पोंछा लगा रही थी, उसने लो-कट ब्लाउज पहना था। झुकते वक्त उसकी चूचियाँ आधी बाहर झांक रही थीं। मदनलाल उसे एकटक घूर रहा था, उसकी नजरें काम्या की चूचियों पर जमी थीं, जैसे कोई भूखा शेर मांस को देख रहा हो। काम्या शर्म से पानी-पानी हो गई थी और भागकर कमरे में चली गई थी। अब उस दृश्य को याद करके उसका बदन सिहर उठा। “हाय राम, बाबूजी की नजरें कितनी भूखी थीं! सुनील ने तो कभी ऐसे नहीं देखा,” उसने मन ही मन सोचा।
इधर, छत पर मदनलाल टहल रहा था। वो सोच रहा था कि बात कैसे शुरू करे, क्या बोले। आखिरकार, उसने हिम्मत जुटाई और काम्या का नंबर डायल कर दिया। काम्या का गाना बंद हुआ, और फोन की घंटी बजी। उसने सोचा शायद सुनील है, जो कभी-कभी रात को फोन करके फोन सेक्स करता था। मगर स्क्रीन पर बाबूजी का नंबर देखकर वो चौंक गई। उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। “लगता है बाबूजी की नींद हराम हो चुकी है,” उसने सोचा और फोन उठाया।
काम्या: हेलो…
मदनलाल: हेलो, बहू? हाँ, मैं बाबूजी बोल रहा हूँ। सो गई थी क्या?
काम्या: अरे, बाबूजी! नहीं, अभी नहीं सोई।
मदनलाल: तो क्या कर रही थी? नींद नहीं आ रही?
काम्या: बस, गाने सुन रही थी। आप बताइए, कहाँ से फोन कर रहे हैं?
मदनलाल: छत पर हूँ।
काम्या: क्या बात है, बाबूजी? आपको नींद नहीं आ रही?
मदनलाल: अरे बहू, नींद तो उड़ गई है।
काम्या समझ गई कि ससुर का इशारा किस तरफ है, मगर उसने अनजान बनते हुए पूछा, “क्यों बाबूजी, नींद क्यों नहीं आ रही? तबीयत तो ठीक है ना?”
मदनलाल: तबीयत तो ठीक है, मगर बुढ़ापे में नींद कहाँ आती है?
काम्या: अच्छा, बताइए न, फोन क्यों किया?
मदनलाल: बस, तुमसे सॉरी बोलना था।
काम्या: सॉरी? किस बात की, बाबूजी?
मदनलाल: वो… उस दिन बाथरूम वाली बात। मुझे लगता है, तुम उस दिन से नाराज हो।
काम्या: अरे, नहीं बाबूजी, हम नाराज नहीं हैं। वो तो हमारी गलती थी, दरवाजा खुला नहीं रखना चाहिए था।
मदनलाल: हाँ, मगर बहू, हम भी तो बहक गए। तुम्हें वैसा देखकर हमारा दिमाग काम करना बंद कर गया। सॉरी।
काम्या: अरे, बाबूजी, सॉरी मत बोलिए। हम सचमुच नाराज नहीं हैं।
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मदनलाल अब मौके की नजाकत भांप चुका था। उसने बात को थोड़ा और मोड़ा। “दरअसल, बहू, जब दरवाजा खुला और हमने तुम्हें देखा, तो हमारी आँखें चौंधिया गईं। ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सामने खड़ी हो। बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला, मगर तुमने तो और बड़ी गलती कर दी।”
काम्या: गलती? हमने क्या किया, बाबूजी?
मदनलाल: अरे, तुम पलटकर घूम गईं ना!
काम्या: वो तो शरम के मारे पलट गई थी।
मदनलाल: बस, वही तो गलती थी। तुम्हारा पीछे वाला हिस्सा… हाय, ऐसा कि अगर कोई मुर्दा भी देख ले, तो उठ बैठे। अगर कोई हिजड़ा देख ले, तो वो भी जोर-जबरदस्ती करने लगे। और हम तो फिर भी इंसान हैं, बहू!
काम्या समझ गई कि ससुर उसकी गांड की बात कर रहा है, मगर उसने नादानी का नाटक किया। “बाबूजी, आप क्या बोल रहे हैं? हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
मदनलाल: अरे बहू, अब हम कैसे समझाएँ? अगर तुम गुस्सा ना होने का वादा करो, तो बताएँ।
काम्या: गुस्सा होने की क्या बात? आप बताइए ना।
मदनलाल अब खुलकर खेलने के मूड में था। “हम तुम्हारी उस चीज की बात कर रहे हैं, जो तुम पैंटी में छुपाती हो।”
काम्या हँसते हुए बोली, “बाबूजी, कसम से, हम वहाँ कुछ नहीं छुपाते। पैंटी में तो जेब भी नहीं होती!”
मदनलाल को पता था कि काम्या सब समझ रही है, मगर मजा ले रही है। वो बोला, “अरे, हम जेब की बात नहीं कर रहे। हम तुम्हारी उस शत्रुहंता गांड की बात कर रहे हैं!”
“हाय राम!” काम्या के बदन में सनसनी दौड़ गई। ससुर के मुँह से इतना खुला शब्द सुनकर उसकी साँसें तेज हो गईं। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मदनलाल को फोन में उसकी तेज साँसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। वो समझ गया कि उसका तीर निशाने पर लगा है।
काम्या: बाबूजी, आप क्या बोल रहे हैं!
मदनलाल: सच बोल रहे हैं, बहू। तुम्हारी गांड को देखकर हम तो पागल हो गए। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो हमने नहीं, तुम्हारी उस मादक गांड ने करवाया।
काम्या की साँसें और तेज हो गईं। उसका हाथ अनायास ही अपनी नाइटी के नीचे चला गया। उसकी पैंटी भीग चुकी थी। उसने अपनी चूत को सहलाना शुरू किया, और उसका काजू-दाना तनकर खड़ा हो गया। “हाय बाबूजी, आप तो चालाक हैं। सारा दोष हम पर डाल रहे हैं। सारे मर्द एक जैसे होते हैं!”
मदनलाल: हाँ बहू, मर्द तो एक जैसे होते हैं, मगर औरतें नहीं। तुम्हारी जैसी गांड हमने जिंदगी में कभी नहीं देखी। सच कहें, सुनील बहुत किस्मत वाला है, जो उसे तुम जैसा खजाना मिला।
काम्या को सुनकर एक पल को मायूसी हुई। सुनील ने तो कभी उसकी गांड की तारीफ नहीं की थी, ना ही कभी उसे इस तरह छुआ था। उसने बिना सोचे कह दिया, “जिसे खजाने से मतलब ही नहीं, उसकी बात ना करें, बाबूजी।”
मदनलाल तुरंत समझ गया कि सुनील काम्या की कदर नहीं करता। ये उसके लिए सुनहरा मौका था। “तुमने कभी अपना दुख बताया ही नहीं, बहू। वरना…”
काम्या: बताया तो क्या करते? वो तो मुंबई में रहते हैं।
मदनलाल: तो क्या हुआ? यहाँ तो घरवाले हैं। कोई ना कोई रास्ता निकाल लेते।
काम्या: उनके बिना कैसे?
काम्या अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। उसकी उंगलियाँ उसकी चूत को तेजी से मसल रही थीं। “आआह…” एक हल्की सी सिसकारी उसके मुँह से निकली।
मदनलाल: क्यों बहू, हमें कमजोर समझ रही हो? घर में ही सब कुछ सुलझ सकता है।
काम्या: आप क्या कह रहे हैं, बाबूजी?
मदनलाल: हम कह रहे हैं, तुम्हारे खजाने की सेवा हम कर देंगे, अगर तुम्हें ऐतराज ना हो। जवानी का बोझ कोई उठा ले, तो सफर आसान हो जाता है।
ये सुनते ही काम्या का बदन झनझना उठा। उसने अपनी चूत को इतनी जोर से मसला कि “उउउह्ह!” एक तेज चीख निकल गई। उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला, उसकी उंगलियाँ पूरी तरह भीग गईं। ऐसा ऑर्गेज्म उसे सुनील के साथ फोन सेक्स में भी कभी नहीं हुआ था। वो सोचने लगी, “हाय राम, बाबूजी इतना खुलकर बोल रहे हैं, जैसे मैं उनकी बहू नहीं, कोई गर्लफ्रेंड हूँ।” उसकी गांड का जादू तो पहले भी कई बार चल चुका था।
शादी से पहले की बात थी। एक बार वो अपनी सहेली मधु के साथ बाजार गई थी। दोनों ने टाइट जींस पहनी थी। काम्या की गोलमटोल गांड उस जींस में ऐसी लग रही थी, जैसे कोई मक्खन का गोला। पूरा बाजार उसकी गांड को घूर रहा था। दुकानदार हों या ग्राहक, सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। मधु को ये बात चुभ गई। लौटते वक्त वो बोली, “काम्या, अगली बार तू अकेले बाजार जा। सारा बाजार तेरी गांड को देख रहा था, मुझे तो कोई पूछ ही नहीं रहा!” काम्या ने हँसकर टाल दिया, मगर उसे भी अंदर ही अंदर अपनी जवानी पर गर्व हुआ।
एक दूसरी घटना कॉलेज की थी। छमाही परीक्षा का रिजल्ट आया था। काम्या की दोस्त पिंकी, जो थोड़ी चालू थी, बोली, “काम्या, तुझे पता है, तू जिन सब्जेक्ट्स में अच्छे नंबर लाई, वो सब मेल टीचर्स के हैं। और लेडी टीचर्स ने तुझे कम नंबर दिए। जानती है क्यों? क्योंकि वो तेरी इस गोलमटोल गांड से जलती हैं, और मेल टीचर्स इसके दीवाने हैं!” काम्या ने उसे डाँटा, मगर पिंकी हँसते हुए बोली, “अगर मेरे पास तेरी जैसी गांड होती, तो मैं टीचर्स से अपने पैर दबवाती!”
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अब आगे… मदनलाल को काम्या की तेज साँसों और चीख से पता चल गया था कि वो झड़ चुकी है। वो समझ गया कि बहू अब उसके जाल में पूरी तरह फंस चुकी है। अगले दिन उसने ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाई। काम्या का व्यवहार सामान्य था, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। मदनलाल ने फिर से उसका चक्षु चोदन शुरू कर दिया। दो दिन तक यही आँखों की गुस्ताखियाँ चलती रहीं।
एक शाम काम्या ने पतली सी साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। साड़ी इतनी नीचे बँधी थी कि उसकी नाभि और पेट का गोरा मांस साफ दिख रहा था। मदनलाल का लंड बार-बार तन रहा था। काम्या किचन में गई, और शांति पूजा करने चली गई। मदनलाल को मौका मिल गया। वो किचन में घुसा। काम्या आटा गूँथ रही थी, और उसके कूल्हों पर थोड़ा आटा लग गया था। मदनलाल ने मौके का फायदा उठाया। “अरे, ये क्या लगा है पीछे?” कहते हुए उसने काम्या की गांड पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा।
काम्या का बदन सिहर उठा। “हाय, बाबूजी, क्या है?” वो बोली, मगर उसकी आवाज में शरम के साथ-साथ एक अजीब सी उत्तेजना थी।
मदनलाल: शायद आटा लगा है, हम साफ कर देते हैं।
काम्या: गलती से लग गया होगा।
मदनलाल ने आटा साफ करने के बाद भी अपना हाथ नहीं हटाया। वो काम्या की गांड को सहलाते हुए बोला, “आज क्या सब्जी बना रही हो, बहू?”
काम्या: अभी कुछ पक्का नहीं किया। आप बताइए, क्या पसंद है?
मदनलाल: जो हमें पसंद है, वो तुम नहीं पाओगी।
काम्या: आप बोलिए तो, हम वही खिला देंगे।
मदनलाल: सोच लो, बाद में मुकरना नहीं।
काम्या: हम अपनी बात के पक्के हैं, बाबूजी।
मदनलाल अब काम्या के बगल में खड़ा हो गया था। उसकी नजरें काम्या की चूचियों पर टिकी थीं, जो साड़ी के ऊपर से उभरी हुई थीं। काम्या ने उसकी नजरें पकड़ लीं, मगर अनजान बनी रही। “बोलिए ना, क्या खाएँगे?” उसने पूछा।
मदनलाल ने उसकी आँखों में देखा, फिर नजरें नीचे करते हुए बोला, “हमें तो नॉनवेज खाना है।”
काम्या: नॉनवेज? हमारे घर में तो नहीं बनता। मम्मी मना करेंगी।
मदनलाल: घर में नहीं बनता, तो कच्चा ही खिला दो। —कहते हुए उसने काम्या की गांड को जोर से दबा दिया।
काम्या: उउह! बाबूजी, कोई कच्चा मांस खाता है क्या?
मदनलाल: हम तो फौजी आदमी हैं, बहू। हमें कच्चा मांस भी पसंद है। —उसने अपनी उंगली काम्या की गांड की दरार में धीरे से सरकाई।
काम्या: हाय राम, आप कैसे कच्चा मांस खा लेते हैं?
मदनलाल: तुमने अभी दुनिया देखी कहाँ है, बहू? और एक बात बताएँ?
काम्या: क्या, बाबूजी?
मदनलाल: अगर मांस ताजा और जवान हो, तो कच्चा खाने में और मजा आता है। एक बार तुम भी खाओगी, तो दीवानी हो जाओगी।
काम्या की चूत अब पूरी तरह भीग चुकी थी। ससुर की गंदी बातें उसे पागल कर रही थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने ससुर के साथ ऐसी बातें करेगी। तभी पूजा कक्ष से घंटी की आवाज आई। शांति की पूजा खत्म होने वाली थी।
काम्या: बाबूजी, अब आप जाइए। मम्मी आने वाली हैं।
मदनलाल: और हमारा नॉनवेज?
काम्या: मम्मी से परमिशन लीजिए, फिर मिलेगा।
मदनलाल: वो तो कभी नहीं मानेगी। चोरी-छुपे खिलाना पड़ेगा।
काम्या: हाय राम, अब आप पाप भी करवाएँगे?
मदनलाल हँसते हुए किचन से निकल गया और बाथरूम की ओर चला गया। काम्या ने उसे जाते देखा और शरम से लाल हो गई। वो जानती थी कि ससुर बाथरूम में जाकर क्या करने वाला है। वो भी जल्दी से अपने कमरे में चली गई। उसका बदन गर्म था, गाल लाल हो चुके थे। उसकी गांड में अभी भी ससुर की उंगली का स्पर्श महसूस हो रहा था। “हाय राम, अगर बाबूजी ने और जोर लगाया होता, तो उनकी उंगली तो अंदर चली ही जाती,” वो बुदबुदाई।
बिस्तर पर लेटकर वो सोचने लगी कि मर्दों को औरतों की गांड इतनी अच्छी क्यों लगती है। उसकी गांड ने तो पहले भी कई बार लोगों को दीवाना बनाया था। उसे अपने मामा की याद आ गई। मामा गाँव में रहते थे, और अक्सर शहर आते थे। शुरू-शुरू में वो काम्या को बहुत प्यार करते थे, मगर जैसे-जैसे उसकी जवानी खिलने लगी, मामा की नजरें बदलने लगीं। वो उसे जबरदस्ती गोद में बिठाते, और काम्या को उनके तने हुए लंड का अहसास होता। एक बार, जब वो बारहवीं में थी, मामा ने उसे स्कूल यूनिफॉर्म में देखा। उसकी टाइट स्कर्ट से उसकी मांसल जाँघें झांक रही थीं। मामा ने उसे जोर से गले लगाया और उसकी गांड को मसलते हुए कहा, “कम्मो, तू तो पीछे से पूरी साइज की हो गई है। सामने से भी तैयार है। सचमुच, तू तो खाने-खेलने लायक हो गई है!” काम्या शर्म से पानी-पानी हो गई थी, मगर मामा की बेशर्मी ने उसे हैरान कर दिया था।
क्या काम्या और मदनलाल की ये गर्मागर्म बातें अब असल में कुछ करवाएँगी? आप क्या सोचते हैं, कमेंट में बताएँ!
कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-3
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