Family me chudai “अच्छा चलो एक बात बताओ, जिस माली ने पेड़ लगाया है, क्या उसे उस पेड़ के फल खाने का हक नहीं होना चाहिए? या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है, उसे उस अनाज को खाने का हक नहीं होना चाहिए? अब अगर मैं अपनी बेटी को चोदना चाहता हूँ, तो क्या गलत है?”
मेरा नाम तरुण है। उम्र 20 साल, कॉलेज में पढ़ता हूँ। एक ई-मित्र है मेरा, जिससे ऑनलाइन जान-पहचान हुई। वो मेरी सेक्सी कहानियों का बड़ा प्रशंसक था। उसे लड़कियों को पटाने के टोटके चाहिए थे। एक दिन मेल चेक करते वक्त उससे चैट हुई, और फिर बातों का सिलसिला चल पड़ा। ये कहानी उसी की जुबानी है, जो उसने मुझे बताई। सुनिए:
मैं, तरुण, 20 साल का हूँ। कॉलेज में पढ़ता हूँ। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने ननिहाल अमृतसर गया था। मामा का छोटा-सा परिवार है। मामा रुस्तम सेठ, 45 साल के, दबंग और हट्टे-कट्टे। खालसा कॉलेज के सामने उनका जनरल स्टोर है, जिसमें पब्लिक टेलीफोन, कंप्यूटर, नेट, जूस बार और फलों की दुकान भी है। मामी शिवता, 42 की, लेकिन ऐसी कयामत कि देखने वाले का लंड खड़ा हो जाए। गोरी, मोटे-मोटे नितंब, गोल-गोल स्तन, गहरी नाभि, और जब काली साड़ी में कमर लचकाती हैं, तो मोहल्ले के लौंडे सीटियाँ बजा देते हैं। उनकी बेटी किनका, 18 साल की, ऐसी हसीना कि अच्छे-अच्छों का पानी निकल जाए। गोरी, नाजुक, और अब वो जवानी में नैन-मटक्का करने लगी है।
मेरे नानाजी का परिवार 1947 में लाहौर से अमृतसर आया था। पहले छोटी-सी दुकान थी, अब मामा ने सब बड़ा कर लिया। दो मंजिला मकान, हर सुख-सुविधा। रोटी, कपड़ा, मकान के बाद बस सेक्स की जरूरत रह जाती है।
मैं बचपन से शरारती रहा हूँ। सेक्स का ज्यादा अनुभव नहीं था। बस एक बार, छोटी उम्र में चाचा ने मेरी गांड मारी थी। जवानी में लंड को हाथ में लेकर घूमता रहता। नेट पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ता, ब्लू फिल्में देखता। सच कहूँ, किसी चूत को चोदने के लिए मर रहा था। मामा-मामी को रात में चुदाई करते कई बार देखा। 42 की उम्र में भी मामी जवान पटाखा लगती है। उनके हिलते नितंब, गोल स्तन, और गहरी नाभि देखकर लंड तन जाता है। वो ज्यादातर सलवार-कुरता पहनती हैं, पर काली साड़ी और टाइट ब्लाउज में उनकी कमर और नाभि देखकर लौंडे पागल हो जाते। लेकिन दो-दो चूतों के बावजूद मैं प्यासा ही था।
जून की रात थी। सब छत पर सो रहे थे। रात के दो बजे मेरी नींद खुली। मामा-मामी गायब। किनका बगल में बेसुध सोई थी। मैं पेशाब करने नीचे गया। लौटते वक्त मामा के कमरे की लाइट जलती दिखी। हल्की आवाजें आईं – “हाय… ओह… उई…” मैंने खिड़की से झाँका। पर्दा थोड़ा हटा था। अंदर का नजारा देख मैं जड़ हो गया। मामा बेड पर लेटे थे, 8 इंच का लंड तना हुआ। मामी उनकी गोद में बैठी, चूत में लंड लिया, धीरे-धीरे धक्के मार रही थी। उनके मोटे नितंब ऊपर-नीचे हो रहे थे, जैसे कोई फुटबॉल को ठोकर मार रहा हो। उनकी चूत पर काली झांटों का जंगल था, जो मामा के लंड को लपेटे था।
मामी की साँसें तेज थीं। “आह… रुस्तम… और जोर से… उई…” वो मामा के सीने पर हाथ रखकर उछल रही थी। मामा के धक्के गहरे थे। “शिवता, ले… मेरी रानी… आह…” कोई 10 मिनट तक चुदाई चली। मामी की रफ्तार बढ़ी। “उई… माँ… और तेज…” एक जोर की सीत्कार के साथ वो ढीली पड़ी, मामा पर लुढ़क गई। मामा ने उन्हें कस लिया, होंठ चूम लिए।
“शिवता, एक बात बोलूँ?” मामा बोले।
“क्या?” मामी की साँसें भारी थीं।
“तुम्हारी चूत अब ढीली हो गई है, मजा कम आता है।”
मामी हँसी, “तो मेरी गांड मार लो, वो तो टाइट है!”
“नहीं, बात ये नहीं। तुम्हारी बहन बबिता की चूत और गांड मस्त थीं। और तुम्हारी भाभी जया, उफ, उसकी टाइट चूत चोदने में मजा आ जाता है!”
मामी ने मुंह बनाया, “तो कहो, मुझसे जी भर गया?”
“नहीं, शिवता रानी, मैं तो सोच रहा था, तुम्हारे छोटे भाई की बीवी, वो कयामत है। उसे चोदने का मन करता है।”
“पर उसकी नई शादी हुई है, वो कैसे मानेगी?”
“तुम चाहो तो सब हो सकता है।”
“वो कैसे?”
“तुम अपने बड़े भाई से चुदवा चुकी हो, अब छोटे से भी चुदवा लो। मैं उस हसीना को चोदकर निहाल हो जाऊँ!”
“बात ठीक है, पर अविनाश नहीं मानेगा।”
“क्यों?”
“उसे मेरी इस ढीली चूत में क्या मजा आएगा?”
“उसे किनका का लालच दो!”
“किनका? नहीं! वो अभी बच्ची है!”
“बच्ची कहाँ? 18 की हो गई! तुम 16 की थीं जब हमारी शादी हुई, और मैंने सुहागरात में तुम्हारी गांड मार ली थी!”
“हाँ, पर…”
“पर क्या? मुझे भी जवान लंड चाहिए। तुम बस नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो!”
“तुमने भी अपने जीजा और भाई से चुदवाया था, गांड मरवाई थी!”
“पर वो पुराने थे। मुझे नया, ताजा लंड चाहिए!”
“तो तरुण को पटा लो। तुम उसे मजे दो, मैं किनका की सील तोड़ लूँ!”
“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद है। ये ठीक होगा?”
“क्या बुराई है? जिस माली ने पेड़ लगाया, उसे फल खाने का हक है। मैं अपनी बेटी को चोदना चाहता हूँ, तो क्या गलत है?”
“तुम एक नंबर के ठरकी हो। ठीक है, बाद में सोचेंगे।”
मामी ने मामा का मुरझाया लंड मुंह में लिया, चूसने लगी। मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हुआ कि लंड पकड़कर बाथरूम की ओर बढ़ा। तभी ख्याल आया, किनका ऊपर अकेली है। उसका नाम दिमाग में आते ही मेरा 7 इंच का लंड ठुमके लगाने लगा। मैं दौड़कर छत पर आया।
किनका पीली स्कर्ट में करवट लेकर सोई थी। स्कर्ट थोड़ी ऊपर उठी थी, पेंटी में उसकी चूत का चीरा साफ दिख रहा था। पेंटी उसकी चूत की दरार में घुसी थी, गीली थी। उसकी गोरी, मोटी जांघें देख मेरे लंड ने जोर मारा। मैं उसके पास बैठा, उसकी जांघों पर हाथ फेरा। मुलायम, संगमरमर सी। मैंने पेंटी के ऊपर से उसकी चूत पर उंगली फिराई। वो पहले से गीली थी। मेरी उंगली भीग गई। मैंने उसे सूँघा – कच्चे नारियल की मादक खुशबू। मैंने उंगली चाटी। खट्टा, नमकीन, लजीज रस।
मैंने उसकी जांघ पर चुम्बन लिया। वो हल्के से कुनमुनाई, पर नहीं जगी। मैंने उसके स्तनों को देखा। गोल-गोल, अमरूद जैसे। पहले नींबू जितने थे, अब संतरे जैसे। चाँद की रोशनी में उसके गोरे गाल चमक रहे थे। मैंने एक चुम्बन उसके गाल पर लिया। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही किनका जाग गई। आँखें मलते हुए बोली, “क्या कर रहे हो, भाई?”
“वो… मैं तो प्यार कर रहा था।”
“रात को ऐसे प्यार करते हैं क्या?”
“प्यार तो रात को ही होता है,” मैंने हिम्मत करके कहा।
वो कुछ समझी नहीं। मैंने कहा, “किनका, एक मजेदार खेल देखोगी?”
“क्या?” उसने हैरानी से देखा।
“आओ मेरे साथ!” मैंने उसका हाथ पकड़ा, बिना आवाज किए खिड़की के पास ले गया। अंदर का नजारा देख किनका की आँखें फटी रह गई। मैंने जल्दी से उसका मुंह दबाया, नहीं तो चीख निकल जाती। मैंने इशारे से चुप रहने को कहा।
मामी घोड़ी बनी थी, बेड पर हाथ टिकाए। उनका सिर बेड पर, नितंब हवा में। मामा उनकी कमर पकड़कर धक्के मार रहे थे। उनका 8 इंच का लंड मामी की गांड में पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था। मामा नितंबों पर थपकी मार रहे थे। हर थपकी पर मामी के नितंब हिलते, वो सीत्कारती, “हाय… और जोर से, मेरे राजा… मेरी गांड की प्यास बुझा दो… आह…”
“ले, मेरी रानी… उफ… शिवता… आह…” मामा के धक्के तेज हुए।
पता नहीं कितनी देर से ये चुदाई चल रही थी। मैंने किनका के स्तन मसलने शुरू किए। वो अपने मम्मी-पापा की रासलीला देखकर मस्त हो गई थी। मैंने उसकी पेंटी में उंगली डाली। छोटे-छोटे झांटों से ढकी उसकी चूत नम थी। मैंने उसके नाजुक छेद को टटोला। वो इतनी मस्त थी कि उसे तब ध्यान आया, जब मैंने उंगली पूरी अंदर डाल दी।
“उई… माँ…” उसने हल्के से कहा।
“क्या कर रहे हो, भाई?” उसकी आँखें भारी थीं, लाल डोरे तैर रहे थे।
मैंने उसे बाहों में भरा, होंठ चूम लिए।
तभी ‘पुच्क’ की आवाज हुई। मामा का लंड मामी की गांड से निकला, और मामी बेड पर लुढ़क गई। अब वहाँ रुकने का मतलब नहीं था। हम छत पर लौट आए।
“किनका?”
“हाँ, भाई?” उसकी आवाज काँप रही थी। उसकी आँखों में नई चमक थी। मैंने उसे फिर बाहों में लिया, होंठ चूसे। उसने भी मुझे बेतहाशा चूमना शुरू किया। मैंने उसके स्तन मसलने शुरू किए। जब मैंने उसकी पेंटी पर हाथ फिराया, उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा, “नहीं, भाई… इससे आगे नहीं!”
“क्यों, क्या हुआ?”
“मैं तुम्हारी ममेरी बहन हूँ। भाई-बहन में ऐसा नहीं होना चाहिए!”
“किनका, ये पुराने जमाने की बातें हैं। लंड और चूत का बस एक रिश्ता है – चुदाई का। ये समाज और धर्म का ढकोसला है। पूरी कायनात चुदाई के रस में डूबी है।”
वो मेरी ओर देखती रही। “पर इंसान और जानवर में फर्क होता है ना?”
“जब चूत की किस्मत में चुदना लिखा है, तो लंड किसका है, क्या फर्क पड़ता? तुम्हारा बाप अपनी बहन, भाभी, साली, सलहज सबको चोद चुका है। और तुम्हारी मम्मी? अपने देवर, जेठ, ससुर, भाई, जीजा से चुदवा चुकी है!”
“नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो!”
“मैंने सुना है, किनका। तुम्हारा बाप तुम्हें भी चोदना चाहता है!”
मैंने उसे सारी बातें बता दीं। वो हैरान थी। “क्या?”
“बोलो, तुम क्या चाहती हो? मुझसे प्यार से अपनी चूत की सील तुड़वाना, या 45 साल के ठरकी बाप से?”
“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा…”
“बताओ, क्या शादी के बाद नहीं चुदवाओगी?”
“वो तो शादी के बाद की बात है!”
“शादी तो बस चुदाई का लाइसेंस है। असल में शादी का मतलब चुदाई ही है!”
“पर पहली बार दर्द होता है, खून निकलता है!”
“अरे, मैं आराम से करूँगा। तुम्हें मजा आएगा!”
“पर तुम गांड तो नहीं मारोगे ना, पापा की तरह?”
“पहले चूत तो मरवा लो, गांड बाद में!”
मैंने उसे फिर बाहों में भरा। उसने मेरे होंठ अपने मुंह में लिए, जैसे संतरे की फाँक चूस रही हो। हम देर तक चूमते रहे। मैंने उसकी चूत पर उंगली फिराई। उसने मेरा 7 इंच का लंड पकड़ लिया, सहलाने लगी। मेरे लंड ने ठुमके लगाए। मैंने उसके स्तन दबाए, वो सीत्कारने लगी, “आह… भाई, कुछ करो… मुझे कुछ हो रहा है…”
उसका शरीर काँप रहा था। साँसें तेज थीं। मैंने उसकी स्कर्ट और टॉप उतारे। ब्रा तो थी ही नहीं। उसके गोरे, अमरूद जैसे स्तन मेरे सामने थे। गुलाबी निप्पल्स, मूंग के दाने जैसे। मैंने एक स्तन पर चुम्बन लिया। फिर उसकी नाभि पर ध्यान गया। मैंने उसकी पेंटी की ओर हाथ बढ़ाया। उसने कहा, “भाई, तुम भी कपड़े उतारो!”
मैंने नाइट सूट उतार फेंका। मेरा लंड, 7 इंच, लोहे की रॉड सा खड़ा था। उस पर प्री-कम की बूँद चमक रही थी।
“किनका, इसे प्यार करो!”
“कैसे?”
“मुंह में लेकर चूसो!”
“मुझे शर्म आती है…”
उसकी शर्म देख मैं पागल हो गया। मैंने कहा, “मैं पहले तुम्हारी चूत को प्यार करूँ?”
“ठीक है!”
मैंने उसकी पेंटी नीचे खिसकाई। उसकी चूत की फाँकें, गुलाबी, संतरे की तरह मोटी, आपस में चिपकी थीं। मैंने पेंटी उतारी। उसकी जांघें कस गईं। मैंने उंगली उसकी फाँकों पर फिराई। वो सीत्कारने लगी, “आह…” उसकी जांघें धीरे-धीरे चौड़ी हुईं। मैंने उसकी चूत की फाँकें खोलीं। अंदर लाल, पके तरबूज जैसी। मैंने होंठ रखे। नमकीन, खट्टा रस मेरी जीभ पर लगा। मैंने जीभ से उसके क्लिट को छुआ। वो चीखी, “उई… माँ…”
उसने मेरे बाल पकड़ लिए। मैंने जीभ ऊपर-नीचे फिराई। वो सीत्कारती रही, “आह… ओह…” उसकी चूत का छेद गीला था, गांड का छेद खुल-बंद हो रहा था। मैंने उसकी चूत को मुंह में लिया, जोर से चूसा। दो मिनट में उसका शरीर अकड़ा, उसने मेरी गर्दन पैरों से लपेटी, और चूत से 4-5 बूँदें मेरे मुंह में गिरीं। मैंने सारा रस पी लिया।
उसकी पकड़ ढीली हुई। मैंने उसके एक स्तन को चूसा। शायद उसे अच्छा नहीं लगा। उसने मेरा लंड मुंह में लिया। पहले प्री-कम चाटा, फिर सुपाड़ा चूसा, जैसे कुल्फी चूस रही हो। मैं मस्त हो गया। उसने पूरा लंड मुंह में लेने की कोशिश की, पर 7 इंच कहाँ समाता। वो उकड़ू बैठी, मेरे लंड को चूस रही थी। मैंने उसकी चूत पर उंगली फिराई। उसकी गुलाबी फाँकें देख मैं पागल हो गया।
मुझे लगा, अगर अब नहीं रुका, तो पानी उसके मुंह में निकल जाएगा। मैंने उसकी चूत में उंगली डाली। वो चिहुंकी, लंड छोड़कर लुढ़क गई। मैं उसके ऊपर आया, होंठ चूमने लगा। एक हाथ से उसके स्तन मसले, दूसरे से चूत। उसने मेरा लंड मसला। मैंने लंड उसकी चूत के मुहाने पर रखा, कमर पकड़ी, और धक्का मारा। लंड थूक और कामरस से गीला था। आधा लंड उसकी कुंवारी चूत की सील तोड़कर अंदर घुसा।
किनका की चीख निकली, “उई… माँ…” मैंने उसका मुंह दबाया। वो कुनमुनाने लगी, “बाहर निकालो… मैं मर जाऊँगी…”
“बस, मेरी रानी, अब दर्द नहीं, मजा आएगा!”
दो मिनट बाद उसका दर्द कम हुआ। मैंने हल्का धक्का मारा। उसने चूत सिकोड़ी। मेरा लंड मस्त हो गया। अब वो भी नीचे से धक्के देने लगी। उसका कामरस और खून मेरे लंड को लाल कर रहा था। “आह… भाई… तेज करो… उई… माँ…” वो बड़बड़ा रही थी।
उसने पैर मेरी कमर पर लपेटे। मैंने उसका सिर सीने से लगाया, धक्के लगाए। हर धक्के में उसके नितंब गद्दे पर टकराते, मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में समाता। वो सीत्कारती रही, “आह… उई… माँ…” उसका शरीर फिर अकड़ा, चूत ने पानी छोड़ा। वो झड़ गई।
मैंने धक्के जारी रखे। 20 मिनट हो चुके थे। मेरा लावा फूटने वाला था। “किनका, मेरा निकलने वाला है!”
“अंदर डाल दो, भाई… मैं इसे अपनी चूत में चाहती हूँ!”
मैंने रफ्तार बढ़ाई। मेरे लंड से गाढ़ा रस निकला, उसकी चूत को भरता चला गया। उसने मुझे कसकर पकड़ा। मैं उसके ऊपर लेटा रहा। थोड़ी देर बाद हम उठे।
“कैसी लगी पहली चुदाई, मेरी जान?”
“मजेदार थी, मेरे सैंया!”
“अब भैया नहीं, सैंया कहो!”
“हाँ, मेरे साजन! मैं तो इस रस की प्यासी थी!”
“क्या मतलब?”
“मुझे सब पता है। तुम मुझे नहाते-मूतते देखते हो, मेरा नाम लेकर मुट्ठ मारते हो!”
“तू भी एक नंबर की चुलबुली है!”
“क्यों ना बनूँ? खानदान का असर है!” उसने आँख मारी। “पर तुम्हें क्या हुआ, मेरे सैंया?”
“चुप, साली! अब दिन में भैया, रात में सैंया!”
मैंने उसे फिर बाहों में भरा। ये थी मेरी कहानी। आपको ये कहानी कैसी लगी, जरूर बताएँ।