बाजी को चोदने होटल ले गया

मेरा नाम ग़ालिब है, उम्र 21 साल। मैं पतला-दुबला हूँ, पाँच फुट आठ इंच लंबा, गेहुँआ रंग, छोटे-छोटे बाल, और चेहरा साधारण, लेकिन दोस्त कहते हैं कि मेरी मुस्कान में कुछ बात है। मैं मुंबई के एक मिडिल-क्लास परिवार से हूँ। हमारा घर छोटा-सा है—एक हॉल, डायनिंग रूम, दो छोटे बेडरूम, एक किचन, और सिर्फ़ एक बाथरूम, जो हम सब शेयर करते हैं। मेरे अम्मी, शहनाज़, 45 साल की, गोल चेहरा, कंधों तक भूरे बाल, जो अब हल्के-हल्के सफ़ेद हो रहे हैं। वो एक सरकारी स्कूल में क्लर्क हैं, हमेशा साड़ी में, और घर में काम करते वक़्त चेहरा थोड़ा थका-थका रहता है। मेरे पिताजी, यूसुफ़, 48 साल के, लंबे, पतले, चश्मा पहनते हैं, और ज्यादातर समय ख़ामोश रहते हैं। वो एक छोटी सी कंपनी में अकाउंटेंट हैं, और सुबह-सुबह अखबार पढ़ना उनकी आदत है। मेरी बाजी, नूरजहाँ, 25 साल की, मेरी तरह पाँच फुट आठ इंच लंबी, गोरा रंग, काली आँखें, लंबे घने बाल, जो वो अक्सर खुला छोड़ती हैं। उनकी बॉडी सुडौल है, चूचियाँ मध्यम साइज़ की, शायद 34B, भरी-भरी, कमर पतली, और फुद्दियाँ गोल, जो उनकी चाल को और आकर्षक बनाती हैं। वो एक प्राइवेट कंपनी में डेटा एंट्री का काम करती हैं, और अक्सर सलवार-कुर्ती या स्कर्ट-टॉप में रहती हैं।

बाजी मुझे “ग़ालिब” बुलाती हैं, और मैं उन्हें “बाजी”। हमारा रिश्ता बचपन से खुला-खुला रहा है। वो मुझे चिढ़ाती हैं, मैं उन्हें तंग करता हूँ। लेकिन जब मैं सोलह-सत्रह का हुआ, मेरे अंदर कुछ बदला। स्कूल में दोस्तों की बातें, चोरी-छिपे देखी पॉर्न मैगज़ीन्स, और मोबाइल पर कुछ क्लिप्स ने मेरे दिमाग़ में सेक्स का ख़याल भरा। हमारी बिल्डिंग में मेरी उम्र की कोई लड़की नहीं थी, तो मेरा ध्यान बाजी पर गया। उनकी चाल, उनके टाइट ब्लाउज़ में उभरी चूचियाँ, और उनकी हँसी—सब कुछ मुझे खींचने लगा।

पहला अनुभव

मुझे वो रविवार की सुबह आज भी याद है। मैं बारहवीं में था, और उस दिन घर में सिर्फ़ मैं और बाजी थे। अम्मी-पिताजी सुबह जल्दी बाज़ार गए थे। बाजी बाथरूम से नहाकर निकलीं, उनके गीले बाल उनकी गुलाबी नाइटगाउन पर चिपके थे। वो रसोई में चाय बनाने चली गईं। मैं जल्दी से बाथरूम में घुसा, दरवाज़ा बंद किया, और अपने कपड़े उतारे। मेरा लंड, सात इंच और मोटा, पहले से ही उत्तेजित था। पेशाब करने के बाद मैं उसे सहलाने लगा। तभी मेरी नज़र बाथरूम के कोने में पड़ी, जहाँ बाजी के कपड़े रखे थे। उनकी नाइटगाउन के नीचे एक काली ब्रा और नीली कॉटन पैंटी थी।

मैंने ब्रा उठाई। उसमें साबुन की हल्की-सी महक थी, और बाजी की देह की गंध भी। मेरा लंड तुरंत तन गया। मैंने पैंटी उठाई—वो नरम थी, और फुद्दी वाली जगह पर हल्की नमी थी, शायद नहाने की वजह से। मैंने उसे सूंघा; उसकी खुशबू ने मेरे होश उड़ा दिए। मैंने पैंटी को अपने लंड पर रगड़ा, ब्रा को अपनी छाती पर रखा, और फिर पैंटी को अपने लंड पर चढ़ा लिया। वो टाइट थी, मेरे लंड को जकड़ रही थी। मैंने नाइटगाउन को दीवार पर हैंगर से टांगा, ब्रा को ऊपर और पैंटी को कमर के पास पिन से फँसाया, जैसे बाजी मेरे सामने खड़ी हों।

मैं नाइटगाउन से चिपक गया, ब्रा को चूसने लगा, और सोचने लगा कि मैं बाजी की चूचियाँ चूस रहा हूँ। मेरा लंड पैंटी पर रगड़ रहा था, और मैं कल्पना कर रहा था कि मैं उनकी फुद्दी में पेल रहा हूँ। कुछ ही मिनटों में मेरा लंड फटने को हुआ, और मैं झड़ गया toothbrush. मेरा गाढ़ा वीर्य पैंटी और नाइटगाउन पर बिखर गया। मेरे पैर काँप रहे थे, और मैं फर्श पर बैठ गया, हाँफता हुआ।

थोड़ी देर बाद मैंने शॉवर लिया, कपड़े धोए, और उन्हें वापस रख दिया। उस दिन से ये मेरा रविवार का रूटीन बन गया। मैं बाजी के नहाने का इंतज़ार करता, और उनकी पैंटी-ब्रा के साथ मुठ मारता। उनकी गीली पैंटी की महक और उसका चिपचिपा पानी मुझे पागल कर देता था।

कॉलेज और बढ़ती चाहत

स्कूल खत्म हुआ, और मैं कॉलेज गया। वहाँ कुछ लड़कियों से दोस्ती हुई, और दो-तीन के साथ मैंने सेक्स भी किया। लेकिन हर बार मैं उन्हें बाजी से कम्पेयर करता। उनकी चूचियाँ, उनकी कमर, उनकी फुद्दियाँ—कोई भी बाजी जैसी नहीं थी। मैं दिन-रात उनके बारे में सोचता। घर छोटा होने की वजह से मुझे मौके मिलते। जब वो कपड़े बदलतीं, मैं कनखियों से उनकी चूचियों को ब्लाउज़ या टी-शर्ट के ऊपर से देखता। कभी उनका कूल्हा मेरे हाथ से टकराता, तो मेरा लंड जीन्स में तन जाता।

मेरा पसंदीदा टाइमपास था बालकनी में खड़े होकर सड़क देखना। हमारी बालकनी संकरी थी, गली के बराबर। मैं रेलिंग के सहारे खड़ा रहता, हाथ सीने पर मोड़े। बाजी जब आतीं, मैं थोड़ा हटकर जगह बनाता, और वो मेरे बगल में सटकर खड़ी हो जातीं। उनकी चूचियाँ मेरे सीने से टकरातीं। मैं अपनी उंगलियों से उनकी चूचियों को हल्के-हल्के छूता, जैसे अनजाने में। मुझे लगता था कि उन्हें कुछ पता नहीं, लेकिन मैं गलत था।

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पकड़े जाने का डर

एक दिन बाजी किचन में कपड़े बदल रही थीं। हॉल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला था। मैं हॉल में टीवी देख रहा था, लेकिन मेरी नज़रें उन पर थीं। उन्होंने अपनी नीली कुर्ती उतारी, और उनकी काली ब्रा में उनकी चूचियाँ साफ़ दिख रही थीं—गोल, भरी-भरी, और उभरी हुई। मैं उन्हें घूर रहा था, तभी उनकी नज़र दीवार के शीशे में मुझ पर पड़ी। हमारी आँखें मिलीं। मैं शरम से लाल हो गया और नज़रें टीवी पर मोड़ लीं। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मुझे डर था कि वो अम्मी-पिताजी को बता देंगी।

अगले दो-तीन दिन मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पाया। मैं सोचता रहा कि अब क्या होगा। लेकिन बाजी ने कुछ नहीं कहा। मेरी हिम्मत धीरे-धीरे लौटी, और मैं फिर से उन्हें चुपके से घूरने लगा। उन्होंने मुझे कई बार पकड़ा, लेकिन चुप रहीं। मुझे लगा कि उन्हें मेरी चाहत का अंदाज़ा हो गया है।

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बालकनी में हिम्मत

एक शाम हम बालकनी में खड़े थे। बाजी मेरे बगल में सटकर सड़क देख रही थीं। वो हल्के हरे रंग की सलवार-कुर्ती में थीं। मैंने धीरे से अपनी उंगलियाँ उनकी चूची पर रखीं। उनकी कुर्ती पतली थी, और मुझे उनकी ब्रा की बनावट महसूस हुई। वो हल्के से अकड़ गईं, लेकिन कुछ नहीं बोलीं। मैंने उनकी चूची को हल्के-हल्के दबाया। उनकी साँसें तेज़ हो गईं, और उनकी निप्पल कुर्ती के ऊपर से उभर आई। मैंने और ज़ोर से दबाया। वो हल्के से सिसकी, “आह…” लेकिन मुझे नहीं रोका।

मैं उनकी चूची को मसल रहा था, और वो सड़क की तरफ देख रही थीं। तभी अम्मी की आवाज़ आई, “नूरजहाँ, ज़रा रसोई में आ!” बाजी ने मेरा हाथ हटाया और चली गईं। मैं हाँफ रहा था, मेरा लंड जीन्स में तन गया था। उस रात मैं सो नहीं पाया। उनकी मुलायम चूचियाँ और तनी निप्पल मेरे दिमाग़ में घूम रही थीं।

अगली शाम मैं फिर बालकनी में था। बाजी आईं, इस बार काले रंग की टी-शर्ट और नीली स्कर्ट में। वो मेरे पास सटकर खड़ी हो गईं। मैंने धीरे से कहा, “बाजी, तुम्हारी चूचियाँ छूना चाहता हूँ।”

वो शरमाकर बोलीं, “ग़ालिब, अम्मी आ जाएँगी।”

“पता चल जाएगा,” मैंने कहा।

मैंने उन्हें पास खींचा और उनकी चूची पर हाथ रखा। वो काँप गईं, लेकिन कुछ नहीं बोलीं। मैं उनकी निप्पल को उंगलियों से दबाने लगा। उनकी साँसें तेज़ हो गईं, “आह… ग़ालिब… धीरे…” मैं उनकी चूची को मसलता रहा। उनकी निप्पल कड़क हो गई थीं। तभी अम्मी ने फिर बुलाया, “नूरजहाँ!” वो मेरा हाथ हटाकर रसोई में चली गईं। मेरा लंड जीन्स में दर्द कर रहा था।

हॉल में जोखिम

एक शाम मैं हॉल में टीवी देख रहा था। बाजी किचन से काम निपटाकर बिस्तर पर बैठ गईं। उन्होंने काली टी-शर्ट और नीली स्कर्ट पहनी थी। उनकी ब्रा की स्ट्रैप टी-शर्ट के नीचे से दिख रही थी। वो पालथी मारकर अखबार पढ़ रही थीं। मेरा पैर उनकी जाँघों को छू रहा था। मैंने धीरे से अपनी उंगलियाँ उनकी जाँघ पर फेरीं, और फिर उनकी पीठ पर हाथ रखा।

“ये क्या कर रहा है, ग़ालिब? अम्मी देख लेंगी,” उन्होंने फुसफुसाया।

“अखबार के पीछे कुछ नहीं दिखेगा,” मैंने कहा।

मैंने उनकी चूची पर हाथ रखा और मसलने लगा। वो काँप गईं, लेकिन अखबार पढ़ती रहीं। मैंने उनकी टी-शर्ट को पीछे से उठाया और उनकी नंगी पीठ पर हाथ फेरा। उनकी त्वचा मुलायम थी। मैंने उनकी ब्रा का हुक खोला। उनकी चूचियाँ आज़ाद हो गईं। मैंने दोनों चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से मसला। वो सिसकारी भरी, “आह… ग़ालिब… धीरे…”

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मैं उनकी निप्पल को उंगलियों में पकड़कर मसल रहा था। तभी अम्मी किचन से निकलीं। मैंने जल्दी से उनकी टी-शर्ट नीचे की। बाजी ने अखबार के पीछे अपनी ब्रा का हुक लगाने की कोशिश की। “ग़ालिब, मेरी ब्रा लगा,” उन्होंने फुसफुसाया।

मैंने कोशिश की, लेकिन उनकी ब्रा टाइट थी। “ये बहुत टाइट है,” मैंने कहा।

“तूने खोला, अब तू ही लगाएगा,” उन्होंने झिड़कते हुए कहा।

मैंने फिर कोशिश की, लेकिन हुक नहीं लगा। तभी अम्मी फिर से हॉल में आ गईं। बाजी ने अखबार मुझे पकड़वाया और खुद हुक लगाया। वो शरमाकर बोलीं, “हम पकड़े जा सकते थे।”

“तुम सामने हुक वाली ब्रा क्यों नहीं पहनती?” मैंने मज़ाक में कहा।

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“वो महँगी होती हैं,” उन्होंने हँसकर जवाब दिया।

“मैं दूँगा पैसे,” मैंने कहा और 100 का नोट निकाला।

“पागल है तू,” वो हँसीं, लेकिन नोट ले लिया। “काले रंग की ब्रा और पैंटी खरीदूँगी, तुझे पसंद है ना?”

मैं मुस्कुराया और बोला, “हाँ, बिल्कुल।”

मार्केट का मज़ा

अगले दिन बाजी अपनी सहेली के साथ मार्केट जाने वाली थीं। मैंने कहा, “मैं भी चलूँ?”

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वो हिचकिचाईं, लेकिन बोलीं, “ठीक है, लेकिन अम्मी को बता दूँगी कि तू साथ है।”

अम्मी मान गईं। मार्केट में भीड़ थी। बाजी ने गुलाबी सलवार-कुर्ती पहनी थी। मैं उनके पीछे खड़ा था, और उनके चूतड़ मेरी जाँघों से टकरा रहे थे। वो कपड़े देखतीं, मैं सटकर खड़ा हो जाता और उनकी चूचियों को हल्के से छू लेता। कभी उनके फुद्दियों को सहलाता। भीड़ में कोई कुछ समझ नहीं पाता था।

बाजी ने गुलाबी पंजाबी ड्रेस, एक स्कर्ट, दो टी-शर्ट्स, और अंडरगारमेंट्स खरीदे। मैंने एक जीन्स और टी-शर्ट लिया। फिर वो एक अंडरगारमेंट्स की दुकान में गईं। मैं बाहर इंतज़ार करता रहा। वो काली लेस वाली ब्रा और पैंटी लेकर आईं। वो शरमाकर बोलीं, “चल, कुछ मत बोल।”

“समुंदर के किनारे भेलपुरी खाएँ?” मैंने पूछा।

“देर हो जाएगी,” उन्होंने कहा।

“बस थोड़ी देर,” मैंने मनाया।

वो मान गईं। हम समुंदर के किनारे बैठे। हवा तेज़ थी, और उनकी स्कर्ट उनकी गोरी जाँघों तक उठ गई। वो शरमाकर उसे नीचे करने लगीं। मैंने कहा, “पत्थरों के पीछे चलें, वहाँ कोई नहीं देखेगा।”

वो हँसीं और मेरे साथ चली गईं। मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “तुम बहुत अच्छी लगती हो।”

“बकवास मत कर,” उन्होंने चिढ़ाते हुए कहा।

मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रखे। उनके होंठ नरम और गर्म थे। वो सिसकी, “उह…” मैंने उनकी चूची पकड़कर दबाई। उनकी टी-शर्ट के ऊपर से उनकी निप्पल उभर रही थी। मैंने उनकी ब्रा का हुक खोला और उनकी नंगी चूचियाँ मसलीं।

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“आह… ग़ालिब… धीरे…” वो सिसकारी भरी।

मैंने उनकी एक निप्पल मुँह में ली और चूसने लगा। उनकी साँसें तेज़ हो गईं, “ओह… हाँ…” मैं उनकी दूसरी चूची मसल रहा था। मैंने उनकी स्कर्ट में हाथ डाला और उनकी पैंटी के ऊपर से उनकी फुद्दी को सहलाया। वो गीली थी।

“ग़ालिब… यहाँ नहीं,” उन्होंने काँपते हुए कहा।

मैंने उनकी पैंटी में उंगली डाली। उनकी फुद्दी गर्म थी। मैंने उनकी क्लिट को रगड़ा, और वो चिल्लाईं, “आह… ग़ालिब…” वो झड़ गईं। उनकी फुद्दी से गर्म पानी मेरी उंगलियों पर बहने लगा।

मैंने उनकी पैंटी ठीक की। “मज़ा आया?” मैंने पूछा।

“तू बदमाश है,” वो शरमाकर बोलीं।

रास्ते में उनकी गीली पैंटी की वजह से उन्हें चलने में दिक्कत हो रही थी। मैंने कहा, “पब्लिक टॉयलेट में नई पैंटी पहन लो।” वो मान गईं और नई काली लेस वाली पैंटी और ब्रा पहनकर लौटीं।

घर पर शरारत

घर पहुँचकर बाजी रसोई में कपड़े बदलने गईं। उन्होंने पर्दा थोड़ा खुला छोड़ा। मैं हॉल में बैठा था। वो अपनी टी-शर्ट और स्कर्ट उतार रही थीं। उनकी नई काली ब्रा और पैंटी में वो कमाल लग रही थीं। उनकी फुद्दी की दरार पैंटी में साफ़ दिख रही थी। मैंने इशारे से उनकी ब्रा उतारने को कहा, लेकिन उन्होंने गुलाबी मैक्सी पहन ली।

बाद में मुझे उनकी गीली पैंटी बैग में मिली। मैंने उसे सूंघा—उसमें उनकी फुद्दी का गाढ़ा पानी था। मैं बाथरूम गया, पैंटी चाटी, और मुठ मारी। उसका स्वाद मेरे दिमाग़ में बस गया।

सिनेमा और होटल

अगले दिन मैंने कहा, “बाजी, दोपहर का शो देखने चलें?”

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“कौन-सा सिनेमा?” उन्होंने हँसकर पूछा।

“न्यू थियेटर, शहर से बाहर,” मैंने कहा।

मेरा मकसद सिनेमा देखना नहीं था। हम न्यू थियेटर गए। हॉल लगभग खाली था। हम पीछे की सीट पर बैठे। बाजी ने काली टी-शर्ट और नीली स्कर्ट पहनी थी। मैंने उनका हाथ पकड़ा और उनकी जाँघ पर रखा। वो शरमाईं। मैंने उनकी चूची पर हाथ रखा और मसलने लगा। उनकी साँसें तेज़ हो गईं।

“ग़ालिब, यहाँ नहीं,” उन्होंने फुसफुसाया।

“कोई नहीं देख रहा,” मैंने कहा।

मैंने उनकी टी-शर्ट उठाई और ब्रा का हुक खोला। उनकी नंगी चूचियाँ मेरे सामने थीं। मैंने उनकी निप्पल चूसी। वो सिसकारी भरी, “आह… ग़ालिब… धीरे…” मैं उनकी दूसरी चूची मसल रहा था। मैंने उनकी स्कर्ट में हाथ डाला और उनकी पैंटी के ऊपर से उनकी फुद्दी को सहलाया। वो गीली थी।

मैंने उनकी पैंटी में उंगली डाली और उनकी क्लिट को रगड़ा। वो छटपटाईं, “ओह… ग़ालिब… मत कर…” वो झड़ गईं। उनकी फुद्दी से पानी बहने लगा।

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मैंने उनकी पैंटी ठीक की और कहा, “चलो, कहीं और चलें।”

“कहाँ?” उन्होंने हाँफते हुए पूछा।

“होटल,” मैंने कहा।

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वो चौंकीं, लेकिन बोलीं, “ठीक है, लेकिन जल्दी।”

होटल का कमरा

हम एक छोटे से होटल में गए। कमरा साधारण था—एक डबल बेड, सफ़ेद चादर, और एक खिड़की, जिससे हल्की हवा आ रही थी। बाजी बेड पर बैठ गईं। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास बैठ गया।

“ग़ालिब, ये ठीक है?” उन्होंने धीरे से पूछा।

“मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो,” मैंने कहा और उनके होंठ चूम लिए।

वो मेरे गले लग गईं। मैंने उनकी काली टी-शर्ट उतारी। उनकी काली लेस वाली ब्रा में उनकी चूचियाँ मस्त लग रही थीं। मैंने ब्रा का हुक खोला। उनकी नंगी चूचियाँ—गोल, भरी-भरी, गुलाबी निप्पल कड़क। मैंने एक निप्पल मुँह में ली और चूसने लगा।

“आह… ग़ालिब… धीरे…” वो सिसकारी भरी।

मैं उनकी दूसरी चूची मसल रहा था, निप्पल को उंगलियों में मरोड़ रहा था। वो छटपटाईं, “ओह… ग़ालिब… बहुत मज़ा आ रहा है…” मैंने उनकी नीली स्कर्ट का इलास्टिक ढीला किया और उतार दिया। उनकी काली लेस वाली पैंटी गीली थी। मैंने उसे उतार दिया। उनकी फुद्दी नंगी थी—हल्के भूरे बाल, गुलाबी होंठ, गीली।

मैंने उनकी फुद्दी पर उंगली फेरी। वो काँप गईं, “आह… ग़ालिब… क्या कर रहा है?” मैंने उनकी क्लिट को रगड़ा। वो चिल्लाईं, “ओह… हाँ… वहाँ…” मैंने एक उंगली उनकी फुद्दी में डाली—टाइट, गर्म, गीली। मैंने उंगली अंदर-बाहर की। वो सिसकारी भरी, “आह… ग़ालिब… और तेज़…”

मैंने दो उंगलियाँ डालीं और उनकी क्लिट को रगड़ा। वो चिल्लाईं, “ओह… ग़ालिब… मैं झड़ने वाली हूँ…” उनकी फुद्दी ने मेरी उंगलियों को जकड़ लिया, और वो झड़ गईं। उनका गर्म पानी मेरी उंगलियों पर बहने लगा।

मैंने अपनी जीन्स और अंडरपैंट उतारी। मेरा सात इंच का लंड तनकर खड़ा था। बाजी ने उसे देखा और शरमाकर बोलीं, “ये बहुत बड़ा है।”

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मैंने उनका हाथ अपने लंड पर रखा। वो उसे सहलाने लगीं, धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगीं। मैंने उन्हें बेड पर लिटाया और उनकी टाँगें फैलाईं। उनकी फुद्दी गीली थी। मैंने अपने लंड का सुपारा उनकी फुद्दी पर रगड़ा। वो सिसकारी भरी, “आह… ग़ालिब… डाल दे…”

मैंने धीरे से अपना लंड उनकी फुद्दी में डाला। वो टाइट थी। “आह… धीरे… दर्द हो रहा है,” उन्होंने कहा।

मैं रुक गया और उनकी चूचियों को चूसने लगा। उनकी निप्पल को ज़ोर-ज़ोर से चूसा। वो सिसकारी भरी, “आह… हाँ… चूस…” मैंने फिर धक्का मारा, और मेरा लंड पूरा अंदर चला गया। वो चिल्लाईं, “ओह… ग़ालिब… कितना मोटा है!”

मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी फुद्दी मेरे लंड को जकड़ रही थी। वो हर धक्के के साथ सिसकारियाँ भर रही थीं, “आह… हाँ… और ज़ोर से…” मैंने उनकी चूचियों को मसला, निप्पल को उमेठा। वो मेरे कंधों को कसकर पकड़ने लगीं, “ओह… ग़ालिब… और तेज़…”

मैंने स्पीड बढ़ा दी। उनकी फुद्दी गीली और गर्म थी। वो चिल्लाईं, “आह… ग़ालिब… मैं फिर झड़ने वाली हूँ…” उनकी फुद्दी ने मेरे लंड को ज़ोर से जकड़ा, और वो झड़ गईं। उनका गर्म पानी मेरे लंड पर बहने लगा। मैंने और तेज़ धक्के मारे। वो सिसकारियाँ भर रही थीं, “आह… ग़ालिब… रुक मत… और… ओह…”

मैं भी झड़ने वाला था। “बाजी, कहाँ झड़ूँ?” मैंने हाँफते हुए पूछा।

“बाहर,” उन्होंने काँपते हुए कहा।

मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उनकी चूचियों पर झड़ गया। मेरा गाढ़ा वीर्य उनकी चूचियों पर बिखर गया। वो हाँफ रही थीं, उनका चेहरा लाल था।

बाद में

हमने कपड़े पहने। बाजी ने अपनी पैंटी और ब्रा पहनी, फिर स्कर्ट और टी-शर्ट। मैंने अपनी जीन्स और टी-शर्ट पहनी। हम चुपचाप एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए।

“ग़ालिब, ये बात किसी को नहीं पता चलनी चाहिए,” उन्होंने धीरे से कहा।

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“हाँ, बाजी,” मैंने कहा।

हम घर लौट आए। उस रात मैं उनकी चूचियों, उनकी फुद्दी, और उनकी सिसकारियों के बारे में सोचता रहा। हमारा रिश्ता अब बदल चुका था, लेकिन वो मेरी बाजी थीं, और मैं उनका ग़ालिब।

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