छुपन छुपाई खेलते 4 चचेरी बहनों को पेल लिया

ये कहानी मेरे गांव की है, जहाँ मैंने अपनी जवानी के दिन बिताए। अब मैं लखनऊ में रहता हूँ, पर उस वक्त की बात आज भी मेरे दिल में ताजा है। मैं उस समय 18 साल का था, राजीव, लंबा-चौड़ा, गेंहुआ रंग, और सेक्स की समझ पूरी थी। मेरी चार चचेरी बहनें थीं—खुशी, रितु, काजल और प्रिया। खुशी 18 साल की, पतली, गोरी, छोटी-छोटी चूचियों वाली, और हमेशा हँसती रहती थी। रितु 19 की, थोड़ी भारी, गोल चेहरा, और चूचियाँ मध्यम साइज की। काजल 20 की, सबसे हॉट, लंबी, भरी-पूरी चूचियाँ, और थोड़ा बोल्ड स्वभाव। प्रिया 21 की, सबसे बड़ी, जवान, गदराया बदन, और आँखों में शरारत। सब समझदार थीं, और जवानी की उमंग उनमें भी थी।

इस चुदाई का आइडिया उनका था। मैं तो बस मौके का फायदा उठाने वाला था। शायद हमारी एक चुदक्कड़ भाभी ने उन्हें उकसाया था, जो अक्सर मजे की बातें करती थी। बोली थी, “जवानी है, मजे करो।” उस ठंड की शाम को मौका मिल गया। हमारे और उनके घरवाले एक शादी में गए थे। घर पर सिर्फ हम पाँचों थे—मैं, खुशी, रितु, काजल और प्रिया। शाम हो चुकी थी, और ठंड बढ़ रही थी। हम बोर हो रहे थे। तभी खुशी ने कहा, “छुपन-छुपाई खेलें, पर कुछ मस्ती के साथ।” रितु ने हँसते हुए कहा, “हाँ, पर इस बार कुछ अलग।” मैंने पूछा, “क्या अलग?” काजल ने मेरी तरफ देखा और बोली, “तू ढूँढेगा, और जो मिलेगी, उसे तू… थोड़ा मजा देगा।”

प्लान बन गया। मैं ढूँढने वाला था। नियम था—जो बहन मिलेगी, उसे दो मिनट तक चूचियाँ दबानी हैं। जगह थी खलिहान, जहाँ धान की कटाई के बाद पुआल के ढेर लगे थे। अँधेरा हो चुका था, और ठंडी हवा चल रही थी। मेरे बदन में सिहरन थी, लौड़ा हल्का-हल्का तन रहा था।

खेल शुरू हुआ। मैंने पीछे मुड़कर एक से दस तक गिना। “एक… दो… तीन…” गिनते हुए मेरे दिमाग में बस यही था कि क्या होने वाला है। गिनती खत्म की, पलटा, कोई नहीं दिखा। चारों छुप गई थीं। मैंने पुकारा, “खुशी! रितु! कहाँ हो?” कोई जवाब नहीं। तभी पुआल के ढेर से हल्की सी खुसुर-फुसुर की आवाज आई। मैं दबे पाँव वहाँ गया।

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खुशी थी, पुआल के पीछे दुबकी हुई। उसने नीली कुर्ती और सलवार पहनी थी, और ठंड से उसकी साँसें तेज थीं। मैंने उसे पकड़ा, “पकड़ लिया!” वो शरमाई, “चुप रह, जल्दी कर।” मैंने उसकी कुर्ती के ऊपर से चूचियाँ दबाईं। छोटी, मुलायम, जैसे निम्बू। “खुशी, ये तो बिल्कुल नरम हैं,” मैंने धीरे कहा। वो बोली, “बस कर, राजीव, कोई सुन लेगा।” मेरा लौड़ा पैंट में फड़फड़ाने लगा। दो मिनट बाद मैंने उसे छोड़ा और अगली को ढूँढने निकला।

रितु एक बड़े पुआल के ढेर में बैठी थी। उसने लाल स्वेटर पहना था, और उसके गाल ठंड से लाल थे। मैंने उसे पकड़ा और उसकी चूचियाँ दबानी शुरू की। वो थोड़ी कसमसाई, “राजीव, धीरे… किसी को मत बताना।” उसकी चूचियाँ खुशी से बड़ी थीं, और दबाने में मजा आ रहा था। “रितु, ये तो मस्त हैं,” मैंने कहा। वो सिर्फ शरमाकर चुप रही।

फिर काजल मिली। उसने टाइट जीन्स और काला टॉप पहना था। उसकी चूचियाँ सबसे बड़ी थीं, जैसे दो पके आम। मैंने दबाना शुरू किया, वो बोली, “धीरे, राजीव, मजा आ रहा है।” उसकी आवाज में शरारत थी। मैंने और जोर से दबाया, “काजल, तेरी चूचियाँ तो कमाल हैं।” वो हल्की सिसकारी लेने लगी, “उम्म… ऐसे ही कर।” दो मिनट तक मैंने खूब दबाया।

अब प्रिया की बारी थी। वो सबसे जवान थी, और उसने गुलाबी कुर्ती पहनी थी। मैंने उसे पुआल के ढेर के पीछे पकड़ा। वो हँसी, “आ गया तू!” उसने मुझे खींचा और अपनी चूचियाँ मेरे मुँह पर रगड़ दीं। “चूस, राजीव,” उसने कहा। मैंने उसकी कुर्ती उठाई और चूचियाँ चूसने लगा। “आह्ह… उह्ह,” वो सिसक रही थी। वो मेरे ऊपर चढ़ गई, उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर थीं। मैंने उसकी कमर पकड़ी, “प्रिया, तू तो आग है।” वो बोली, “कर ना, जो करना है।” अँधेरा गहरा गया, और पहला राउंड खत्म हुआ।

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अब दूसरा राउंड शुरू हुआ। नियम था—जो मिलेगी, वो घर जाएगी, लेकिन उसकी चूत में एक बार लौड़ा घुसाना है। ऊपर-नीचे नहीं करना, वरना वीर्य निकल सकता है। मेरे दिल की धड़कन तेज थी। ये पहली बार था जब मैं चुदाई करने जा रहा था। खलिहान में सिर्फ पुआल की सरसराहट और हमारी साँसें थीं।

प्रिया पहले मिली। उसका नाड़ा खुला था, जाँघिया नीचे सरकाया हुआ। मैंने उसकी चूत सहलाई—गीली और गर्म। “प्रिया, तेरी चूत तो पूरी तैयार है,” मैंने कहा। वो बोली, “चुप कर, जल्दी कर।” मैंने लौड़ा निकाला, जो तनकर लोहे जैसा था। मैंने धीरे से उसकी चूत में डालने की कोशिश की। “आह्ह… धीरे,” उसने सिसकारी ली। थोड़ा ही गया, और मुझे दर्द हुआ। शायद मेरा पहला मौका था, और टोपी पूरी नहीं खुली थी। फिर भी मैंने धीरे-धीरे लौड़ा घुसाया, “उह्ह… ओह्ह,” वो सिसक रही थी। मैंने उसकी चूचियाँ दबाईं और होठों को चूमा। “मजा आ रहा है,” मैंने कहा। वो बोली, “बस, मैं जा रही हूँ।” वो उठी और चली गई।

खुशी अगली थी। उसे पुआल के कोने में पकड़ा। उसका पैंट नीचे किया, चूत सहलाई। “खुशी, तेरी चूत तो बहुत टाइट है,” मैंने कहा। वो बोली, “धीरे, दर्द हो रहा है।” मैंने लौड़ा उसकी चूत पर रखा और दबाया। “आह्ह… उह्ह,” वो सिसक रही थी। चूत इतनी टाइट थी कि लौड़ा पूरा नहीं गया। मैंने कोशिश की, थोड़ा डाल पाया। “बस, राजीव,” वो बोली। मैंने उसकी चूचियाँ दबाईं और चूमा। वो उठकर चली गई।

रितु को पकड़ा। उसकी चूत में लौड़ा एक बार में घुस गया। “रितु, तेरी चूत तो गर्म है,” मैंने कहा। वो बोली, “हाँ, तेरा लौड़ा भी मस्त है।” “पच-पच” की आवाज गूँजी। मैंने उसकी चूचियाँ दबाईं और जोर से पेला। “आह्ह… और कर,” वो सिसक रही थी। फिर वो चली गई।

अब काजल बची थी। बाकी तीनों जा चुकी थीं। मैंने उसके कपड़े उतारे। उसकी गोरी चूत और चूचियाँ चमक रही थीं। “काजल, तू तो माल है,” मैंने कहा। वो बोली, “तो चोद ना मुझे।” मैंने लौड़ा उसकी चूत में डाला। “आह्ह… उह्ह… जोर से,” वो चिल्लाई। “पच-पच… फच-फच” की आवाजें गूँज रही थीं। मैंने उसकी चूचियाँ दबाईं, वो मुझे चूमने लगी। “राजीव, मेरी चूत को चोद दे,” उसने कहा। मैंने पूरी ताकत लगाई। “काजल, तेरी चूत तो जन्नत है,” मैंने सिसकते हुए कहा। वो बोली, “और पेल, रुकना मत।”

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हम पुआल पर लेट गए। मैंने उसकी टाँगें चौड़ी कीं और जोर-जोर से पेला। “आह्ह… ओह्ह… उह्ह,” उसकी सिसकारियाँ और चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं। उसकी चूत गीली थी, और मेरा लौड़ा गहरा जा रहा था। “राजीव, और जोर से,” वो चिल्ला रही थी। मैंने उसके निप्पल्स चूसे, और वो सिहर उठी। दस मिनट तक मैंने उसे पेला, फिर मेरे लौड़े में दर्द हुआ। मैंने लौड़ा निकाला। “बस, काजल, चलें,” मैंने कहा।

वो उठी, कपड़े पहने, और बोली, “किसी को मत बताना।” हम घर की तरफ चले। रास्ते में वो बोली, “ये बात यहीं रहनी चाहिए।”

घर पहुँचकर मैं वॉशरूम गया। लौड़े से खून निकल रहा था। शायद टोपी खुल गई थी। दर्द था, लेकिन मजा भी था। उन चारों की चूत से खून निकला या नहीं, नहीं पता, पर मेरा लौड़ा लहूलुहान था। वो रात जिंदगी की सबसे मस्त रात थी।

उसके बाद ये सिलसिला चला। वो चारों मुझसे चुदवाने लगीं, पर कंडोम के साथ। आज भी वो रात याद आती है, तो लौड़ा तन जाता है।

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