दोस्तो, मैं सैम, एक बार फिर अपनी ज़िंदगी की रसीली कहानी लेकर हाज़िर हूँ। जैसा कि मैंने अपनी पिछली कहानी में बताया था, पूनम दीदी को जीजू से सेक्स का पूरा मज़ा नहीं मिलता था, और उन्होंने मुझे अपने जिस्म से लुभाकर 20 दिन तक चुदाई का मज़ा दिया।
कहानी का पिछला भाग: जीजू दीदी को पति वाला सुख नहीं दे पाए- 2
अब दीदी के ससुर जी की तबीयत खराब होने की खबर आई थी, और मम्मी ने मुझे दीदी को उनकी ससुराल छोड़ने और ससुर जी की हालत देखने के लिए कहा। पिताजी नहीं जा सकते थे, तो ये ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर थी।
हमने विदर्भ एक्सप्रेस में फर्स्ट एसी कोच में टिकट बुक की। ट्रेन सुबह 7:40 बजे वीटी स्टेशन से निकलती थी और अगले दिन दोपहर में बैंगलोर पहुँचती थी। पिताजी ने सरकारी कोटे से हमें एक अलग केबिन दिलवाया था, जो सिर्फ़ दो लोगों के लिए था। घर से निकलने का वक्त हुआ तो दीदी बेडरूम में जल्दी-जल्दी तैयार हो रही थीं। उन्होंने नींबू-पीली साड़ी नाभि के नीचे बाँधी थी, और उनका लो-कट ब्लाउज़ उनके भरे हुए बूब्स को आधे से ज़्यादा दिखा रहा था। उनका गोरा बदन उस साड़ी में स्वर्ग की अप्सरा जैसा लग रहा था। मेरा लंड उसे देखते ही तन गया, और मन कर रहा था कि अभी दीदी को पकड़कर चोद दूँ। लेकिन मम्मी घर में थीं, तो मैंने खुद को रोका।
मैंने दीदी को अपनी बाँहों में लिया और उनके बूब्स पर किस करने लगा। दीदी ने मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लंड को सहलाना शुरू किया। मैंने उनका ब्लाउज़ थोड़ा ऊपर किया और उनकी चूचियों को चूसने और दबाने लगा। दीदी सिसकारियाँ भरने लगीं, “आह… सैम, अभी नहीं! रात भर तूने सोने नहीं दिया, और अब फिर से शुरू हो गया? सुन, ट्रेन में पहले सोएँगे, फिर रात को ये सब करेंगे। मौका मिला तो तू मुझे ट्रेन में चोद लेना।”
मैंने दीदी के होंठों पर एक लंबा चुम्मा लिया और उन्हें छोड़ दिया। तभी मम्मी रूम में आ गईं। मुझे लगा कि उन्होंने सब देख लिया। मम्मी ने दीदी की तरफ देखा और बोलीं, “आज मेरी बेटी बहुत सुंदर लग रही है। किसी की नज़र न लगे।” फिर उन्होंने मेरी पैंट में बने तंबू की तरफ देखा और नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “ट्रेन में इसका ध्यान रखना, और जो चाहिए, वो सब देना। सब कुछ, समझी?”
मैंने हँसते हुए कहा, “मम्मी, चिंता मत करो। दीदी को मैं पेट भरके सब कुछ दूँगा, जितना माँगेंगी, उससे ज़्यादा!” दीदी मेरी तरफ देखकर मुस्कराईं। फिर हमने मम्मी के पैर छुए और घर से निकल गए।
मैंने टैक्सी बुलाई, और हम वीटी स्टेशन के लिए निकल पड़े। टैक्सी में हम पीछे बैठे थे, लेकिन कुछ नहीं किया क्योंकि ड्राइवर हमारा पड़ोसी था। स्टेशन पहुँचते ही दीदी टैक्सी से उतरीं, और वहाँ खड़े टैक्सी ड्राइवर्स की नज़रें उन पर टिक गईं। एक ड्राइवर ने दूसरे से कहा, “पलट, बे! क्या माल है, एकदम कड़क!” मैं ये सब सुन रहा था, लेकिन चुप रहा। सामान लेकर हम प्लेटफॉर्म नंबर नौ पर गए। दीदी आगे-आगे चल रही थीं, उनके हाथ में खाने का बैग था, और मैं पीछे-पीछे। उनकी साड़ी में उनकी गांड का उभार साफ़ दिख रहा था, और मेरा लंड फिर से तन गया।
ट्रेन में हम अपने फर्स्ट एसी केबिन में पहुँचे। दीदी पहले अंदर गईं, और मैं पीछे। हमने सामान रखा और रिलैक्स होकर बैठ गए। तभी टीटीई आया और बिना नॉक किए दरवाज़ा खोल दिया। दीदी गुस्से में बोल पड़ीं, “आपको नॉक करना चाहिए! ऐसे कोई केबिन में घुसता है?” टीटीई की हालत खराब हो गई। वो बोला, “सॉरी, मैडम, आगे से ध्यान रखूँगा।” दीदी ने “आगे से ध्यान रखूँगा” सुनकर मुझे एक अर्थपूर्ण नज़र दी, और मैं हँसी रोकने की कोशिश करने लगा। टीटीई ने हमारी आईडी चेक की, टिकट कन्फर्म किया, और सॉरी बोलकर चला गया।
उसके जाने के बाद हमने केबिन का दरवाज़ा लॉक किया और लंबी साँस लेकर बैठ गए। दीदी ने पानी की बोतल निकाली और पीने लगीं। ट्रेन कल्याण स्टेशन तक पहुँची, जहाँ 15-20 मिनट रुकी। हमने केबिन की लाइट बंद की, पर्दे डाले, और 90% अंधेरा कर लिया। रात की चुदाई से हम दोनों थक चुके थे, तो सो गए।
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शाम 5:30 बजे मेरी आँख खुली। दीदी सो रही थीं, उनकी साड़ी का पल्लू सरककर उनकी गोद में था, और उनके बूब्स ब्लाउज़ से बाहर झाँक रहे थे। मैं उन्हें देखता रहा, लेकिन नींद ने फिर से पकड़ लिया, और मैं सो गया। रात पौने सात बजे ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी, और इंजन की सीटी से हम दोनों की आँखें खुल गईं। दीदी बोलीं, “सैम, चाय तो ले आ।”
मैंने पर्स और फ्लास्क लिया और बाहर निकला। साइड के केबिन से एक औरत निकली, जिसने साड़ी और लो-कट ब्लाउज़ पहना था। उसके बूब्स इतने सेक्सी लग रहे थे कि मैं उसे देखता रह गया। प्लेटफॉर्म पर मैंने चायवाले से चार चाय फ्लास्क में डलवाईं और समोसे-पकौड़े लिए। वो औरत भी मेरे पीछे थी, और उसने भी चाय और नाश्ता लिया। चायवाला उसकी चूचियों को घूर रहा था, और मैं भी उसकी खूबसूरती में खो गया था।
केबिन में लौटकर मैंने फ्लास्क और नाश्ता साइड में रखा और दरवाज़ा लॉक किया। दीदी अभी भी सो रही थीं। मैं उनके पास गया और उनके होंठों को चूमने लगा। दीदी ने नींद में ही रिस्पॉन्स देना शुरू किया। हम एक-दूसरे के होंठ चूसने लगे, और मेरे हाथ उनकी चूचियों पर चले गए। मैंने उनका ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी। दीदी अब टॉपलेस थीं, और उनका गोरा बदन पीली साड़ी में और सेक्सी लग रहा था। मैंने उनकी एक चूची मुँह में ली और ज़ोर से चूसने लगा, दूसरी चूची को मसलने लगा।
दीदी सिसकारने लगीं, “आह… सैम, और ज़ोर से चूस… मेरी चूत में लंड पेल दे, नीचे आग लगी है!” मैंने कहा, “जान, थोड़ा धैर्य रखो। पूरी रात बाकी है।” दीदी ने मेरी ट्रैक पैंट उतार दी और मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगीं। उनका गर्म मुँह मेरे लंड को स्वर्ग में ले जा रहा था। मैंने दीदी को स्लीपर पर लिटाया, उनकी साड़ी और पेटीकोट पेट तक उठाया। उनकी चूत सुबह ही साफ की थी, और वो चिकनी चमक रही थी। मैंने अपनी जीभ उनकी चूत में डाली और कुत्ते की तरह चाटने लगा।
दीदी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारने लगीं और मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगीं। कुछ सेकंड बाद उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया। कुछ रस मेरे मुँह में गया, कुछ मेरे चेहरे पर। मैंने मुँह का रस पी लिया और चेहरे को टी-शर्ट से साफ़ किया। फिर मैंने अपना लंड दीदी के मुँह में दे दिया। वो बर्थ पर बैठकर मेरा लंड चूस रही थीं, और मैं उनकी चूचियों को दबा रहा था। ट्रेन फुल स्पीड पर थी, और हमारी सिसकारियों की आवाज़ें ट्रेन की रफ्तार के साथ मिल रही थीं।
मैंने कहा, “जान, मेरा रस निकलने वाला है!” दीदी बोलीं, “मेरे मुँह में ही निकाल दे!” कुछ सेकंड बाद मेरे लंड से पिचकारी निकली, और दीदी ने सारा रस पी लिया। उन्होंने मेरे लंड को चाटकर साफ़ किया। मैं अपनी सीट पर बैठ गया, और दीदी मेरी गोद में बैठ गईं। हमने फ्लास्क से चाय निकाली और पीने लगे। मैंने चाय का एक घूँट लिया और उनकी एक चूची चूसने लगा। फिर दूसरा घूँट लिया और दूसरी चूची चूसी।
दीदी बोलीं, “ये क्या कर रहा है?” मैंने मज़ाक में कहा, “चाय में दूध कम है, तो थन से सीधे पी रहा हूँ!” हम दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। दीदी की हँसी में उनके गालों पर डिंपल पड़ रहे थे, और वो और खूबसूरत लग रही थीं। मैं उन्हें देखता रहा। दीदी बोलीं, “क्या देख रहा है?” मैंने कहा, “आज बहुत दिनों बाद तुम्हें ऐसे हँसते देखा।” वो बोलीं, “हाँ, यार, आज दिल से हँसी हूँ।”
हमने समोसे खाए और कपड़े पहन लिए। दीदी ने एक पारदर्शी वन-पीस मिडी पहनी, जिसमें उनकी पैंटी साफ़ दिख रही थी। मैंने टी-शर्ट और ट्रैक पैंट पहनी। हम एक-एक करके वॉशरूम गए। जब मैं वापस आया, तो साइड के केबिन की वो औरत, शीना, दीदी से बात कर रही थी। दीदी ने मेरा परिचय करवाया, “ये शीना जी हैं, मुंबई से। और शीना, ये मेरा दोस्त सैम है।”
मैंने कहा, “हाय, शीना।” उसने जवाब दिया, “हाय, सैम।” मैंने पूछा, “आप कहाँ जा रही हैं?” वो बोली, “बैंगलोर, एक इंटरव्यू के लिए।” दीदी ने पूछा, “आप वहाँ रहती हैं?” शीना बोली, “नहीं, बस दो दिन के लिए।” मैंने कहा, “वापसी भी इसी ट्रेन से?” वो बोली, “हाँ।” दीदी ने कहा, “अरे, सैम को भी दो दिन बाद इसी ट्रेन से वापस आना है।” शीना ने मुस्कराकर बाय कहा और अपने केबिन में चली गई।
हम अपने केबिन में आए, और मैंने दरवाज़ा लॉक किया। मैंने दीदी की गांड पर हाथ फेरना शुरू किया। दीदी ने पलटकर मुझे देखा और अपनी मिडी ऊपर उठा दी। उनकी पैंटी उनकी गांड में घुसी हुई थी। मैंने एक झटके में उनकी पैंटी खींचकर नीचे कर दी। उनकी गोरी, गोल गांड देखकर मेरे मुँह में पानी आ गया। मैंने दीदी को घोड़ी बनाया और उनकी गांड चाटने लगा। दीदी सिसकारने लगीं, “आह… सैम, और अंदर चाट… मज़ा आ रहा है!”
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मैं उनकी गांड से चूत तक चाट रहा था। उनकी चूत पूरी गीली हो गई थी। मैंने उन्हें और नीचे झुकने को कहा और अपने लंड पर थूक लगाया। दीदी ने अपनी गांड फैलाई, और उनका छेद थोड़ा बड़ा हो गया। मैंने अपने लंड का सुपारा उनकी गांड के छेद पर रखा और ज़ोर लगाया। लंड थोड़ा अंदर सरका, लेकिन दीदी चिल्लाईं, “आह, सैम! बाहर निकाल, मेरी गांड फट जाएगी!” मैंने कहा, “जान, थोड़ा दर्द सह लो, मज़ा आएगा।”
मैंने उनके निप्पल्स को मसलना शुरू किया और कुछ मिनट तक उनके बूब्स के साथ खेलता रहा। फिर एक ज़ोरदार झटके में मैंने अपना लंड उनकी गांड में जड़ तक उतार दिया। दीदी चिल्लाईं, “आह, मार डाला! मेरी गांड फट गई, सैम! निकाल बाहर!” मैं चुप रहा और इंतज़ार किया। जब वो शांत हुईं, तो मैंने लंड को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। अब दीदी मेरे हर झटके को एंजॉय करने लगीं, और मैं उनकी चूचियों को मसल रहा था।
लगभग 15 मिनट की गांड चुदाई के बाद मैं उनकी गांड में ही झड़ गया। दीदी ने भी मज़ा लिया। जब मैंने लंड बाहर निकाला, तो उस पर हल्का खून लगा था। मैंने उसे नैपकिन से साफ़ किया और बैग में रख लिया ताकि दीदी न देखें। दीदी मेरे ऊपर लेट गईं, और हम दोनों नंगे थे।
मैंने कहा, “जान, तुम्हारी गांड मारने में बहुत मज़ा आया।” दीदी बोलीं, “मज़ा तो मुझे भी आया, लेकिन शुरू में बहुत दर्द हुआ। मुझे लगा, खून निकल रहा है।” मैंने कहा, “हाँ, थोड़ा सा खून निकला था, मैंने साफ़ कर दिया। तुम्हारी गांड और चूत दोनों सील पैक थीं। सील तोड़ने में ही मज़ा है।” दीदी बोलीं, “पिछले 20 दिन में हमने जो मज़ा किया, वो ज़िंदगी भर याद रहेगा। तू तो बड़ा चोदू निकला।”
मैंने बताया, “जान, मैंने सबसे पहले रोशनी दीदी के नाम की मुठ मारी थी। मैं उन्हें पुराने घर में कॉमन बाथरूम से नहाते हुए देखता था।” दीदी ने पूछा, “तूने रोशनी के साथ कुछ किया?” मैंने कहा, “एक बार रात में उनके बूब्स मसले थे।” दीदी बोलीं, “सच बता, और किस-किस को चोदा?” मैंने बताया, “तुम्हारी फ्रेंड रचना की बहन काजल को, जो मेरे बच्चे की माँ है। उसका पति तो कुछ कर ही नहीं पाता।”
दीदी बोलीं, “रोशनी ने मुझे बताया था कि उसके पति का लंड सिर्फ़ 4 इंच का है, और उसे चुदाई में कोई इंटरेस्ट नहीं। वो महीने में एक-दो बार ही सेक्स करती है, वो भी 3-4 मिनट में खत्म।” मैंने कहा, “लगता है जीजू लोग बेकार हैं।” दीदी बोलीं, “तू है ना, तू काम आएगा। रोशनी दिसंबर में इंडिया आ रही है।” मैंने कहा, “उनसे मेरी गांड फटती है।” दीदी हँसते हुए बोलीं, “वाह, गांड फटती है, और उनके बूब्स मसलता था!”
दीदी मेरी गोद में थीं, और मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। उन्होंने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं। फिर मैंने उन्हें अपनी गोद में बिठाया और लंड उनकी चूत में पेल दिया। हम बैठे-बैठे चुदाई करने लगे। दीदी सिसकार रही थीं, “आह… और अंदर पेल… पूरा डाल दे, तेरा बीज मेरी चूत में डाल!” मैंने ज़ोर-ज़ोर से चोदा, और 20 मिनट बाद उनकी चूत में झड़ गया।
ट्रेन में हमने कुल 5 बार चुदाई की। बैंगलोर पहुँचते ही हम उतरे, और सामने शीना खड़ी थी। उसने कहा, “बाय, गाइज़। उम्मीद है, आपकी जर्नी सुखद रही।” दीदी बोलीं, “अगर तुम चाहो, तो रिटर्न में सैम के साथ एंजॉय कर सकती हो।” मैंने कहा, “हाँ, शीना, मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगेगा।” शीना मुस्कराई और चली गई। हम टैक्सी लेकर दीदी की ससुराल पहुँच गए। इसके आगे क्या हुआ, वो अगली कहानी में।
कहानी का अगला भाग: दीदी की जेठानी और उसकी बहन को चोदा
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