मेरा नाम मयंक है। मैं दिल्ली में रहता हूँ। ये कहानी आज से चार साल पहले की है, जब मैं किराए के मकान में रहकर नौकरी करता था। मेरे नीचे के फ्लोर पर एक परिवार रहता था—पति-पत्नी और उनकी दो बहनें। उनके माँ-बाप गाँव में रहते थे। दोनों बहनें, 18 और 19 साल की, एक से बढ़कर एक खूबसूरत थीं। उनके नैन-नक्श, उनकी चाल, उनका हँसना-बोलना, सब कुछ ऐसा कि दिल धक-धक कर उठे। बड़ी बहन का नाम राधिका था, और छोटी का नाम अनुपमा। दोनों का हुस्न ऐसा कि किसी का भी मन डोल जाए। अनुपमा की खास बात थी उसकी मासूमियत और वो चंचलता, जो उसे और भी आकर्षक बनाती थी।
मेरी शादी हो चुकी थी, लेकिन मेरी पत्नी प्रेग्नेंट होने की वजह से गाँव गई हुई थी। मैं अकेला था, और दिन-रात काम और घर के बीच बीत रहे थे। एक दिन की बात है, अनुपमा घर पर अकेली थी। उसका भाई, भाभी और बड़ी दीदी किसी रिश्तेदार के यहाँ गए थे। मुझे नहीं पता कि अनुपमा अकेली क्यों रह गई, लेकिन मेरे लिए ये किसी सुनहरे मौके से कम नहीं था।
मैं अपने कमरे में म्यूजिक सिस्टम पर गाना सुन रहा था। धीमी-धीमी बीट्स कमरे में गूँज रही थीं, और मैं सोफे पर लेटकर आराम कर रहा था। तभी दरवाजे पर खटखट की आवाज आई। मैंने दरवाजा खोला तो अनुपमा खड़ी थी। उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, “क्या कर रहे हो भैया? मेरा मन नहीं लग रहा, तो सोचा तुमसे मिलने चली आऊँ।” उसकी आवाज में एक अजीब सी मासूमियत थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और ही चमक थी। मैंने हँसते हुए कहा, “हाँ हाँ, आ जाओ, बैठो।” वो अंदर आई और सोफे पर मेरे बगल में बैठ गई।
उसने एक टाइट कुर्ती और सलवार पहनी थी, जो उसके बदन से चिपकी हुई थी। अंदर उसने कुछ नहीं पहना था, और उसकी चूचियाँ साफ दिख रही थीं। निप्पल इतने टाइट थे कि कुर्ती के ऊपर से उभर रहे थे। जब वो हिलती, तो उसकी चूचियाँ हल्का-हल्का हिलतीं, और मेरा मन बेचैन होने लगा। मैंने उससे बात शुरू की, “तो, अनुपमा, अकेले बोर हो रही थी क्या?” वो शरमाते हुए बोली, “हाँ भैया, सब चले गए, और मैं अकेली रह गई।” उसकी आवाज में एक अजीब सी शरारत थी।
बातों-बातों में वो हँसने लगी और अचानक उसने मेरे पेट में हल्के से उंगली मार दी। “ये क्या था?” मैंने हँसते हुए कहा और मैंने भी उसकी कमर पर उंगली मार दी। वो हँस पड़ी और फिर से मेरे पेट पर उंगली मारी। ये सिलसिला चल पड़ा। वो उंगली मारती, मैं मारता। धीरे-धीरे मेरा हाथ उसके पेट से ऊपर खिसकने लगा और उसकी चूची को छू गया। वो चुप रही, बस हल्का सा शरमा गई। मैंने फिर से उसकी चूची को हल्के से छुआ। वो कुछ नहीं बोली, बस मेरी तरफ देखने लगी। उसकी साँसें तेज हो रही थीं।
मैंने हिम्मत की और उसकी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लिया। “उफ्फ, अनुपमा, तेरी चूचियाँ कितनी टाइट हैं,” मैंने धीरे से कहा। वो शरमाकर बोली, “भैया, ये क्या कर रहे हो? छोड़ो ना…” लेकिन उसकी आवाज में वो ना नहीं थी। मैंने उसकी चूचियों को हल्के-हल्के दबाया। वो “आह्ह” करके सिहर उठी। मैंने उसकी कुर्ती के ऊपर से ही उसके निप्पल को उंगलियों से सहलाया। “भैया, ये गलत है ना…” वो धीरे से बोली, लेकिन उसने मुझे रोका नहीं।
मैंने उसकी कुर्ती को धीरे-धीरे ऊपर उठाया। उसकी गोरी-गोरी चूचियाँ मेरे सामने थीं। छोटी-छोटी, गोल-गोल, और निप्पल इतने टाइट कि जैसे पत्थर के बने हों। मैंने एक निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। “उई माँ… भैया… ये क्या… आह्ह…” वो सिसकारियाँ लेने लगी। मैंने दूसरी चूची को हाथ से मसला और उसकी कमर को सहलाने लगा। “अनुपमा, तू तो बिल्कुल मलाई है,” मैंने कहा। वो शरमाकर बोली, “भैया, गंदी बातें मत करो… उफ्फ… ये क्या कर रहे हो…”
मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे धीरे से नीचे खींचा। उसने अंदर कुछ नहीं पहना था। उसकी बुर साफ-सुथरी थी, बिना बालों वाली, जैसे अभी-अभी जवान हुई हो। मैंने उसकी बुर पर हल्के से उंगली फेरी। वो सिहर उठी और बोली, “भैया, वहाँ मत छुओ… उफ्फ… गुदगुदी हो रही है।” मैंने उसकी बुर को सहलाते हुए कहा, “अनुपमा, तेरी बुर तो इतनी टाइट है, जैसे कोई कमसिन कली।” वो शरमाकर हँस पड़ी।
मैंने उसकी जाँघों को फैलाया और उसकी बुर पर जीभ लगाई। “आह्ह… भैया… ये क्या… उई माँ…” वो सिसकारियाँ लेने लगी। उसकी बुर गीली हो रही थी। मैंने उसकी क्लिट को जीभ से चाटा और उंगली से सहलाया। “भैया… ये बहुत अच्छा लग रहा है… और करो…” वो अब मजे में थी। मैंने उसकी बुर को चूसते हुए कहा, “अनुपमा, तू तो स्वाद में जन्नत है।” वो “आह्ह… उह्ह…” करती रही।
करीब दस मिनट तक मैंने उसकी बुर को चाटा और सहलाया। वो बार-बार सिसकारियाँ ले रही थी। “भैया… कुछ हो रहा है… उफ्फ… रुको ना…” और तभी उसका पहला ऑर्गेज्म हुआ। उसका पूरा बदन काँप रहा था। वो हाँफते हुए बोली, “भैया… ये क्या था… इतना मजा…” मैंने हँसकर कहा, “अभी तो शुरूआत है, मेरी जान।”
मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसकी सलवार पूरी उतार दी। मैंने अपना लंड निकाला और उसकी बुर के ऊपर रखा। वो डर गई और बोली, “भैया, ये तो बहुत बड़ा है… डालो मत… डर लग रहा है।” मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, “अनुपमा, डर मत, मैं धीरे करूँगा।” मैंने लंड को उसकी बुर पर रगड़ा। वो “आह्ह… उफ्फ…” कर रही थी। मैंने धीरे से लंड को अंदर धकेला। उसकी बुर इतनी टाइट थी कि लंड आधा ही गया। वो चिल्ला उठी, “उई माँ… भैया… दर्द हो रहा है… निकाल लो… प्लीज…”
मैंने उसे चूमते हुए कहा, “बस थोड़ा सा दर्द है, मेरी जान, फिर मजा आएगा।” मैंने फिर से धीरे से धक्का मारा। “थप” की आवाज के साथ लंड थोड़ा और अंदर गया। वो “आह्ह… भैया… रुको… बहुत दर्द हो रहा है…” कहकर तकिए को जकड़ रही थी। मैंने उसकी चूचियों को चूसते हुए धीरे-धीरे धक्के मारे। तीसरी बार में मेरा लंड पूरा अंदर चला गया। वो चीख पड़ी, “उई माँ… भैया… मर गई… निकाल लो…” उसकी आँखों में आँसू थे।
मैं रुक गया और उसकी चूचियों को सहलाते हुए कहा, “बस हो गया, अब दर्द नहीं होगा।” पाँच मिनट बाद उसका दर्द कम हुआ। मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। “थप-थप” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। वो अब “आह्ह… उह्ह… भैया… और करो…” कहने लगी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और जोर से धक्के मारे। “चटाक-चटाक” की आवाज के साथ उसकी बुर मेरे लंड को जकड़ रही थी। “अनुपमा, तेरी बुर तो जन्नत है,” मैंने कहा। वो सिसकारते हुए बोली, “भैया… और तेज… उफ्फ… कितना मजा है…”
करीब दस मिनट बाद वो फिर से झड़ गई। “आह्ह… भैया… फिर से कुछ हो रहा है… उह्ह…” उसका दूसरा ऑर्गेज्म था। मैंने और जोर से चोदा। “अनुपमा, तेरी बुर को आज चोद-चोदकर फाड़ दूँगा,” मैंने गंदी बात करते हुए कहा। वो हँसकर बोली, “हाँ भैया… फाड़ दो… और चोदो… आह्ह…” उसकी सिसकारियाँ “आह्ह… उह्ह… हाय…” कमरे में गूँज रही थीं।
मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी बुर में लंड डाला। “फच-फच” की आवाज के साथ मैंने उसे और जोर से चोदा। वो “आह्ह… भैया… और तेज… उफ्फ…” कर रही थी। उसका तीसरा ऑर्गेज्म हुआ, और वो हाँफते हुए बेड पर गिर पड़ी। मैंने भी आखिरकार झड़ गया। उसका चेहरा लाल था, आँखें नशीली। “भैया… इतना मजा… मैंने कभी नहीं सोचा था,” वो हाँफते हुए बोली।
उसके बाद अनुपमा मेरे साथ रोज चुदवाने लगी। “भैया, मेरी बुर फिर गीली हो रही है… चोदो ना,” वो कहती। करीब एक महीने बाद मैंने उसकी गांड भी मारनी शुरू की। पहली बार जब मैंने उसकी गांड में लंड डाला, वो चिल्ला उठी, “उई माँ… भैया… ये तो फट जाएगी… निकाल लो…” लेकिन धीरे-धीरे उसे मजा आने लगा। “हाँ भैया, अब गांड भी मारो… उफ्फ… कितना मजा है,” वो सिसकारियाँ लेती। “फच-फच” की आवाज के साथ मैं उसकी टाइट गांड मारता, और वो “आह्ह… उह्ह…” करती।
अनुपमा को मैंने कमसिन कली से फूल बना दिया। उसकी चुदाई का एहसास गजब का था। वो हर बार मेरे साथ ऐसे चुदवाती जैसे पहली बार हो। उसकी बुर और गांड, दोनों को मैंने इतना चोदा कि वो मेरी दीवानी हो गई।
क्या आपको मेरी और अनुपमा की ये चुदाई की कहानी पसंद आई? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएँ। आपकी ऐसी कौन सी फंतासी है जो आप असल जिंदगी में जीना चाहते हैं?
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