सुनसान खेत में ससुर ने बहू को चोदा

Desi Bahu Village Outdoor Sex मेरा नाम हीरा लाल है, उम्र 45 साल, लेकिन शरीर अभी भी खेतों में मेहनत करने की वजह से कस हुआ है। चेहरा सख्त, कद ठीक-ठाक, और आँखों में वो तेज जो गांव के लोग मुझसे बात करते वक्त थोड़ा झिझकते हैं। मेरे तीन बेटे हैं। दो छोटे बेटे, गोपाल और श्याम, शहर में पढ़ाई कर रहे हैं, वहीं हॉस्टल में रहते हैं। बड़ा बेटा रमन, 26 साल का, कंधों पर मेहनत का बोझ उठाता है और खेतों का सारा काम संभालता है। उसकी शादी को अभी सिर्फ एक महीना हुआ है। उसकी बीवी, यानी मेरी बहू, कम्मो, 22 साल की है। कम्मो एकदम देसी हसीना है – गोरी, भरी-पूरी जवानी, काले लंबे बाल, और वो कटाक्ष भरी आँखें जो किसी का भी दिल चुरा लें। उसकी चोली में कसे हुए बूब्स और लहंगे में उभरी गांड देखकर कोई भी मर्द का मन डोल जाए। गांव की औरतों में वो बात कहाँ, जो कम्मो की हर अदा में झलकती है।

घर में कम्मो के आने से रौनक सी आ गई थी। पहले सूना-सूना लगता था, लेकिन अब उसकी हंसी और उसकी चूड़ियों की खनक से घर गुलज़ार रहता। मैं उसे हमेशा “बहू” कहकर बुलाता, और वो मुझे “पिताजी” कहती, उसकी मीठी आवाज में एक अजीब सी कशिश थी। लेकिन पिछले हफ्ते रमन को कुछ जरूरी काम से शहर जाना पड़ा। वो तीन दिन के लिए गया था, और उसी दिन से मेरी नजरें कम्मो पर टिकने लगीं। मन में एक अजीब सी हलचल थी, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी।

उस शाम कम्मो अपने कमरे में सो रही थी। गर्मी की वजह से उसने सिर्फ पतली चोली और लहंगा पहना था। सोते वक्त करवट बदलते हुए उसका लहंगा जांघों तक सरक गया था। मैं बस पानी लेने के बहाने कमरे के पास गया, और मेरी नजर उसकी नरम, मखमली जांघों पर पड़ी। उसकी गोरी त्वचा चांदनी रात में चमक रही थी। मेरा लंड एकदम से खड़ा हो गया, जैसे कोई करंट सा दौड़ गया हो। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और मैं बस उसे घूरता रहा। थोड़ी देर बाद कम्मो जाग गई। उसने मुझे देखा, हल्का सा मुस्कुराई, और लहंगा नीचे खींच लिया।

“पिताजी, आप यहाँ?” उसने नींद भरी आवाज में पूछा।

“हाँ बहू, बस पानी लेने आया था,” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा, लेकिन मेरी नजरें उसकी चोली पर अटक गईं, जहाँ उसके बूब्स सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे।

वो उठी और किचन की तरफ चली गई। मैं भी पीछे-पीछे गया। वो खाना बनाने लगी, और मैं बस उसे घूरता रहा। उसकी चोली पीठ पर पसीने से चिपक गई थी, और उसकी कमर का उभार साफ दिख रहा था। लहंगे में उसकी गांड का गोलाइपन ऐसा था कि मेरे हाथ खुद-ब-खुद उसकी तरफ बढ़ने को बेताब थे। डिनर के वक्त मैंने जानबूझकर उसकी छातियों पर नजरें गड़ा दीं। कम्मो को शायद भनक पड़ गई थी। वो चोरी-छिपे मुझे देखने लगी, और उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वो समझ रही हो कि मेरे मन में क्या चल रहा है।

खाने के बाद मैंने बात शुरू की, “बहू, आज रात को खेत पर जाना पड़ेगा। नहर में पानी आया है, उसे खेतों में छोड़ना है। तुम मेरे साथ चलोगी?”

कम्मो ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “पिताजी, इतनी रात को? मुझे तो अंधेरे से बहुत डर लगता है। और आपने बताया था कि हमारे खेत जंगल के पास हैं। रात में जाना रिस्की नहीं होगा?”

“नहीं बहू, सुबह तक इंतज़ार करेंगे तो पानी कोई और ले जाएगा। फिर हमें उनके खेत की सिंचाई खत्म होने का इंतज़ार करना पड़ेगा। डरने की कोई बात नहीं, मैं हूँ ना साथ में। मेरी तो पूरी ज़िंदगी इन खेतों में बीती है, हर कोना जानता हूँ,” मैंने उसे भरोसा दिलाया।

थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोली, “ठीक है पिताजी, मैं चलूँगी।”

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रात के ग्यारह बजे हम घर से निकले। मेरे हाथ में पुरानी लालटेन थी, जिसकी मद्धम रोशनी रास्ते को हल्का-हल्का उजागर कर रही थी। पांच मिनट चलते ही रास्ता तंग हो गया। दोनों तरफ घना जंगल था, और सन्नाटे में सिर्फ झींगुरों की आवाज़ गूंज रही थी। कम्मो थोड़ा घबरा रही थी। उसका लहंगा हवा में हल्का-हल्का उड़ रहा था, और उसकी चूड़ियों की खनक रात के सन्नाटे में गूंज रही थी।

“पिताजी, मुझे डर लग रहा है,” उसने कांपती आवाज़ में कहा।

“डरने की क्या बात है, बहू? मैं हूँ ना। आ, मेरा हाथ पकड़ ले,” मैंने कहा और उसका नरम हाथ अपने खुरदरे हाथ में ले लिया। उसकी उंगलियाँ छूते ही मेरे बदन में सिहरन दौड़ गई। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। हम थोड़ी दूर और चले, फिर मैं अचानक रुक गया।

“क्या हुआ, पिताजी?” कम्मो ने डरते हुए पूछा।

“श्श्श… चुप रहो, बहू। लगता है कोई सांप है आसपास,” मैंने धीमी आवाज़ में कहा, हालाँकि मुझे कुछ दिखा नहीं था।

कम्मो डर के मारे कांपने लगी। मैंने मौका देखकर उसे अपनी छाती से चिपका लिया। उसके मुलायम बूब्स मेरी छाती पर दब गए, और मैंने अपने हाथ उसकी पीठ पर रखकर धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। उसकी सांसें गर्म थीं, और मैं महसूस कर सकता था कि वो भी थोड़ा घबरा रही थी, लेकिन मेरे करीब आने से उसे कुछ राहत भी मिल रही थी।

“बस ऐसे ही चुप खड़ी रह, बहू,” मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा। मेरी गर्म सांसें उसके कानों को छू रही थीं।

“पिताजी, मुझे सच में डर लग रहा है,” उसने दबी आवाज़ में कहा।

मैंने मौका देखकर अपने हाथ उसकी गांड पर ले गया। उसकी गोल-मटोल गांड को हथेलियों से दबाया। वो इतनी मुलायम थी कि मेरा लंड धोती में और सख्त हो गया। कम्मो के मुँह से हल्की सी सिसकारी निकली, “अह्ह… पिताजी…”

वो मेरे और करीब आ गई। मैंने अपनी उंगलियाँ लहंगे के ऊपर से उसकी गांड की दरार में फेरनी शुरू की। ऊपर से नीचे, धीरे-धीरे, जैसे उसकी हर नस को छू रहा हूँ। कम्मो ने मेरी पीठ पर अपने नाखून गड़ा दिए और बोली, “पिताजी, ये क्या कर रहे हो? सांप गया कि नहीं?”

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“लगता है सांप चला गया,” मैंने हँसते हुए कहा, लेकिन मेरे हाथ उसकी गांड पर ही टिके रहे।

अचानक कम्मो ने शर्माते हुए कहा, “पिताजी, मुझे बहुत जोर से पेशाब आ रहा है। लेकिन यहाँ तो जंगल ही जंगल है।”

मैंने उसकी गांड से हाथ हटाते हुए कहा, “तो क्या हुआ, बहू? यहीं कर ले। यहाँ कोई देखने वाला थोड़ी है।”

वो शरमाई, फिर बोली, “जी, पिताजी।”

उसने अपना लहंगा थोड़ा नीचे सरकाया और रास्ते के किनारे झाड़ियों के पास बैठ गई। लालटेन की मद्धम रोशनी में उसकी चूत साफ दिख रही थी। उसकी चूत से निकलती पेशाब की धार की आवाज़ सुनकर मेरा लंड और बेकाबू हो गया। धार 30 सेकंड तक चली, लेकिन वो पूरी तरह खाली नहीं हुई।

“क्या हुआ, बहू? पेशाब पूरा हुआ?” मैंने पूछा।

“नहीं पिताजी, डर की वजह से आधा रुक गया,” उसने शर्माते हुए कहा।

मैं उसके पास गया। लालटेन की रोशनी उसकी चूत पर डाली और उंगली से उसकी चूत को सहलाने लगा। उसकी चूत गीली और गर्म थी। “अब ट्राई कर, बहू,” मैंने कहा।

कम्मो ने आँखें बंद कर लीं। मैंने अपनी उंगली उसकी चूत की फांकों पर रगड़नी शुरू की, धीरे-धीरे, फिर थोड़ा तेज। वो सिसकारियाँ लेने लगी, “अह्ह… ओह्ह… पिताजी, ये क्या… अच्छा लग रहा है।” उसकी चूत से फिर पेशाब की धार छूटी, जो मेरी उंगलियों पर गिरी। मैंने गमछे से उसकी चूत को पोंछा, फिर उंगलियों से उसकी चूत को मसलने लगा। वो चिल्लाई, “आह्ह… पिताजी, और करो!”

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मैंने उसे रास्ते के किनारे घास पर लेटने को कहा। वो लेट गई, उसका लहंगा अब भी जांघों तक सरका हुआ था। मैं उसके पास लेट गया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसके नरम, रसीले होंठों को चूसते हुए मैंने उसके निचले होंठ को हल्का सा काटा। “अपनी जीभ निकाल, बहू,” मैंने कहा। उसने अपनी जीभ बाहर निकाली, और मैंने उसे चूसना शुरू किया। उसकी जीभ का स्वाद ऐसा था जैसे कोई मीठा अमृत। कम्मो ने मेरी गर्दन पर अपने हाथ डाल दिए और मुझे और करीब खींच लिया।

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हम दोनों के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “अह्ह… उह्ह… हम्म…” कम्मो बोली, “पिताजी, आपका थूक कितना टेस्टी है।”

“मेरा तो सब कुछ टेस्टी है, बहू,” मैंने हँसते हुए कहा।

“तो आज अपनी बहू को सबका स्वाद चखा दो, पिताजी,” उसने चुदासी अंदाज़ में कहा।

मैंने उसकी चोली के बटन खोल दिए। उसकी गोरी छातियाँ बाहर निकल आईं। मैंने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया, फिर जीभ से चाटते हुए नीचे की तरफ बढ़ा। उसके बूब्स पर हाथ फेरते हुए मैंने उसके निपल्स को उंगलियों से मसला। वो सिसकारी लेने लगी, “अह्ह… पिताजी, और जोर से दबाओ ना!”

मैंने उसके बूब्स को दोनों हाथों से जोर-जोर से दबाना शुरू किया। उसके निपल्स सख्त हो गए थे। मैंने अपने मुँह में थूक इकट्ठा किया और उसके मुँह में डाल दिया। उसने उसे निगल लिया और बोली, “आह्ह… मजा आ गया, पिताजी!”

मैंने उसके निपल्स को उंगलियों से रगड़ा, फिर चिमटी काटी। वो चिल्लाई, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, और करो!” मैंने कहा, “अपने बूब्स पर थूक, बहू।” उसने अपने बूब्स पर थूक दिया, और मैंने झट से उसके बूब्स को चूसना शुरू कर दिया। मैंने उसके निपल्स को दाँतों से हल्का सा काटा, जिससे उसके बूब्स पर हल्के निशान पड़ गए।

कम्मो ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोली, “पिताजी, अपनी बहू की चूचियों को चूस लो!” मैंने जवाब दिया, “चूस रहा हूँ, रंडी!”

“आपको अपनी रंडी बहू की जवानी कैसी लगी, पिताजी?” उसने हँसते हुए पूछा।

मैंने उसकी चूचियों पर जीभ फेरी, उसका थूक चाटा, फिर उसके पेट को चूमते हुए उसकी नाभि में जीभ डाली। मैंने उसकी नाभि को चाटा और हल्का सा काटा। वो सिसकारी लेने लगी, “आह्ह… पिताजी, आप तो रंडियों को अच्छे से संभालते हो!”

मैंने उसका लहंगा पूरा उतार दिया और कहा, “कुतिया बन जा!” वो तुरंत घुटनों और हथेलियों पर आ गई। मैंने उसकी कच्छी नीचे खींची और उसकी नंगी गांड पर हाथ फेरने लगा। उसकी गांड गोल और मुलायम थी, जैसे कोई रसीला फल। वो मुड़कर हँसी, “पिताजी, कैसी लगी आपकी रंडी की गांड?”

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“तेरी गांड तो मस्त है, छिनाल,” मैंने कहा और उसकी गांड को जोर-जोर से दबाने लगा। फिर मैंने उसकी गांड पर थूककर उंगली से मलना शुरू किया। कम्मो बोली, “पिताजी, मेरी गांड में उंगली डाल दो ना!” मैंने अपनी उंगली उसकी गांड में डाली और जोर-जोर से हिलाने लगा। वो सिसकारियाँ लेने लगी, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, और तेज!”

फिर मैंने कहा, “अब तेरी चूत की बारी है।” उसने अपने पैर फैलाए और मेरा हाथ अपनी चूत पर रखवा दिया। “आपकी छिनाल आपके लिए सब करेगी, पिताजी,” वो बोली। मैंने उसकी चूत में उंगली डाली। उसकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी उंगली आसानी से अंदर-बाहर होने लगी। मैंने उंगली को जोर-जोर से हिलाया, फिर उसकी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी चूत का स्वाद नमकीन और उत्तेजक था। “पिताजी, और जोर से चाटो अपनी रंडी की बुर को!” कम्मो चिल्लाई।

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मैंने उसकी चूत की फांकों को चूसा, फिर दाँतों से हल्का सा काटा। वो चिल्लाई, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, और!” मैंने अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर तक डाली और चाटने लगा। उसकी सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आह्ह… ओह्ह… पिताजी, आपकी जीभ तो जादू करती है!”

मैंने अपनी धोती खोली और मेरा 7 इंच का लंड बाहर निकाला। वो पहले से ही सख्त और गर्म था। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा। कम्मो ने सिसकारी ली, “पिताजी, मैं आपके लंड की दीवानी हूँ!” मैंने धीरे से अपने लंड का सुपारा उसकी चूत में डाला। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मुझे थोड़ा जोर लगाना पड़ा। जैसे ही लंड अंदर गया, वो चिल्लाई, “आह्ह… पिताजी, धीरे… आपका लंड बहुत बड़ा है!”

“चुप कर, साली,” मैंने उसके बाल पकड़कर कहा और धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगा। उसकी चूत की गर्मी और गीलापन मेरे लंड को और उत्तेजित कर रहा था। मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ाई। ठप-ठप-ठप की आवाज़ जंगल में गूंजने लगी। कम्मो के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, और जोर से चोदो अपनी रंडी को!”

मैंने उसके बूब्स को जोर-जोर से दबाते हुए चुदाई जारी रखी। उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी। मैंने एक हाथ से उसकी गांड पर थप्पड़ मारा, जिससे वो और जोर से चिल्लाई, “आह्ह… पिताजी, मारो और!” मैंने और जोर से थप्पड़ मारा और चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी। ठप-ठप-ठप की आवाज़ तेज हो गई। कम्मो की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, फाड़ दो अपनी बहू की चूत!”

मैंने उसे पलटकर घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी चूत में लंड डाल दिया। इस बार मैंने पूरा जोर लगाया। मेरा लंड उसकी चूत की गहराई तक जा रहा था। वो चिल्ला रही थी, “आह्ह… उह्ह… पिताजी, और गहरा!” मैंने उसके बाल पकड़े और जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए। उसकी गांड मेरे धक्कों से थरथरा रही थी। मैंने एक उंगली उसकी गांड में डाल दी और साथ-साथ चुदाई जारी रखी।

कम्मो चिल्लाई, “पिताजी, मैं झड़ने वाली हूँ!” उसकी चूत ने मेरे लंड को और जोर से जकड़ लिया। उसका बदन कांपने लगा, और वो जोर से सिसकारी लेते हुए झड़ गई। उसकी चूत से गर्म रस बहने लगा, जो मेरे लंड को और गीला कर रहा था। मैंने और जोर से धक्के मारे, और कुछ ही पलों में मेरा लंड भी फट पड़ा। मैंने अपना सारा वीर्य उसकी चूत में उड़ेल दिया। ठप-ठप की आवाज़ धीमी पड़ गई।

कम्मो हाँफते हुए बोली, “पिताजी, आप मेरी चूत में झड़ गए। कहीं मैं प्रेग्नेंट हो गई तो?”

मैंने हँसते हुए कहा, “तो क्या, बहू? मेरे लंड से संतान नहीं चाहती?”

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वो शरमाते हुए बोली, “पिताजी, अगर आपका वीर्य है तो मैं जरूर बच्चा पैदा करूँगी।”

हम दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और लालटेन लेकर खेत की तरफ बढ़ गए। रास्ते में कम्मो मेरे कंधे से चिपककर चल रही थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

क्या आपको लगता है कि कम्मो और हीरा लाल का ये रिश्ता अब और गहरा होगा, या ये सिर्फ एक रात की बात थी? अपनी राय कमेंट में बताएँ।

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