स्नेहा भाभी की चूत में मेरा लंड

दोस्तो, मैं आपका आशु फिर से एक ऐसी कहानी लेकर आया हूँ, जो मैंने सिर्फ़ सपनों में देखी थी, लेकिन वो हक़ीक़त में मेरे सामने आ गई। ये कहानी मेरे दिल के बहुत क़रीब है, क्योंकि इसमें मैंने अपनी ज़िंदगी की सबसे हसीन औरत, स्नेहा भाभी, को अपने प्यार और जुनून से रंगीन किया।

मेरा नाम आशु है, और मैं 22 साल का हट्टा-कट्टा नौजवान हूँ। जब मैं स्कूल ख़त्म करके शहर में कॉलेज की पढ़ाई के लिए आया, तो मेरे दोस्त राजेश के घर पर रहने लगा। राजेश के परिवार के साथ मेरा गहरा रिश्ता बन गया। उस दौरान मैंने राजेश की माँ उर्मिला भाभी और उसकी बहन रिमी के साथ जिस्मानी ताल्लुक़ात बनाए। लेकिन मेरी नज़रें हमेशा पड़ोस में रहने वाली स्नेहा भाभी पर थीं।

पहली बार जब मैंने स्नेहा भाभी को देखा, तो मेरे दिल में आग सी लग गई। वो 22 साल की थीं, गोरी, नाज़ुक, और इतनी ख़ूबसूरत कि उनकी एक झलक से ही मेरा लंड पैंट में तन जाता था। उनका फिगर 34-28-36 का था, और उनकी चाल ऐसी कि उनके कूल्हे लहराते हुए हर मर्द का ध्यान खींच लेते। उनके होंठों के पास एक काला तिल था, जो उनकी हुस्न में चार चाँद लगाता था। लेकिन स्नेहा भाभी बहुत शर्मीली थीं। जब भी मैं उन्हें देखता, वो सिर झुकाकर घर में घुस जाती थीं।

स्नेहा भाभी की शादी को दो साल हुए थे। उनके पति, जो 40-41 साल के थे, राजेश के पापा के साथ एक ही ऑफिस में काम करते थे। दोनों दोस्त शराब के शौक़ीन थे और रात को देर से घर लौटते। स्नेहा भाभी की शादी के बाद उनके पति ने उन्हें शुरुआत में महीने में एक-दो बार ही छुआ, लेकिन जब उनकी बेटी पैदा हुई, तो वो बिल्कुल ठंडे पड़ गए। स्नेहा भाभी की जवानी उनकी आँखों में साफ़ दिखती थी, लेकिन उनके पति को ना तो उनकी क़दर थी, ना ही उनकी ज़रूरतों का ख़याल।

स्नेहा भाभी ने अपनी ये सारी तकलीफ़ उर्मिला भाभी को बताई थी। जब मैं उर्मिला भाभी के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहा था, तो उन्होंने मुझे स्नेहा भाभी की हालत के बारे में बताया। ये सुनते ही मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। मैंने सोचा, अगर स्नेहा भाभी इतनी प्यासी हैं, तो मैं उनकी आग को बुझा सकता हूँ। लेकिन वो मुझसे बात तक नहीं करती थीं, तो मैंने उर्मिला भाभी से मदद माँगी।

उर्मिला भाभी ने हँसते हुए कहा, “अगर तू स्नेहा को चोद ले, तो उस बेचारी की जवानी की तमन्ना पूरी हो जाएगी। लेकिन हमें भूल मत जाना!” मैंने उन्हें यक़ीन दिलाया कि वो मेरे लिए हमेशा ख़ास रहेंगी। फिर उर्मिला भाभी और रिमी ने मिलकर स्नेहा भाभी को मेरे क़रीब लाने का जाल बिछाया। वो रोज़ स्नेहा भाभी से मेरी तारीफ़ करतीं, मेरे मज़ाकिया स्वभाव और जवान मर्दानगी की बातें करतीं। धीरे-धीरे स्नेहा भाभी का रवैया बदला। पहले वो मुझे देखकर भागती थीं, लेकिन अब वो मुस्कुराने लगीं।

उर्मिला भाभी ने एक दिन स्नेहा भाभी को बाहर के मर्द से चुदवाने का आइडिया दिया। पहले तो स्नेहा भाभी डर गईं, क्योंकि वो अपने पति से बहुत डरती थीं। लेकिन उर्मिला भाभी की बातों ने उनकी छुपी हुई वासना को जगा दिया। फिर एक दिन उर्मिला भाभी ने मेरा और स्नेहा भाभी का परिचय करवाया। उस दिन मैंने पहली बार उनसे बात की। वो सिर झुकाकर, शरमाते हुए जवाब दे रही थीं। उस मुलाक़ात के बाद मैं जब भी उन्हें अकेले देखता, तो हल्का-फुल्का मज़ाक करता। धीरे-धीरे वो मुझसे खुलने लगीं।

एक दिन उर्मिला भाभी ने स्नेहा भाभी से पूछा, “आशु तुझे कैसा लगता है? अगर तू कहे, तो मैं उसे तेरे लिए पटा दूँ!” स्नेहा भाभी पहले तो घबरा गईं, लेकिन फिर मुस्कुराकर चली गईं। पिछले सात-आठ महीनों से उनकी चूत में आग लगी थी, और उर्मिला भाभी की बातों ने उस आग को और भड़का दिया। ये सुनकर मैं ख़ुशी से झूम उठा।

फिर एक दिन मैंने हिम्मत जुटाई और उनके घर चला गया। उनके पति ऑफिस जा चुके थे, और उनकी बेटी सो रही थी। मुझे देखते ही स्नेहा भाभी समझ गईं कि उर्मिला भाभी ने मुझे भेजा है। मैंने उनसे इधर-उधर की बातें शुरू कीं, और फिर उनका हाथ पकड़ लिया। वो डर गईं और हाथ छुड़ाकर बेडरूम में भाग गईं। मैं भी उनके पीछे गया और उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। उनकी साँसें तेज़ थीं, और वो थोड़ा घबरा रही थीं। मैंने उन्हें सोफे पर बिठाया और समझाया, “स्नेहा भाभी, आप कुछ ग़लत नहीं कर रही हैं। ये आपका हक़ है कि आप अपनी जवानी का मज़ा लें। मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगा और आपको पूरा प्यार दूँगा।”

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मेरी बातों से वो थोड़ा शांत हुईं। फिर मैंने उनके गालों को छुआ और धीरे-धीरे उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उनकी साँसें गर्म थीं, और उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने उनके ब्लाउज़ के ऊपर से उनके भरे हुए चूचों को दबाना शुरू किया। स्नेहा भाभी की बेटी अभी छोटी थी और दूध पीती थी, इसलिए उनके चूचे इतने रसीले और मुलायम थे कि मेरे हाथों में समा ही नहीं रहे थे। उनका गोरा रंग, उनके होंठों का काला तिल, और उनकी गहरी आँखें मुझे पागल कर रही थीं।

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मैंने उनकी आँखों में देखते हुए उन्हें चूमना शुरू किया। उनके होंठ रसभरे थे, जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ियाँ। हमारी जीभें एक-दूसरे से टकरा रही थीं, और मैं उनके मुँह में अपनी जीभ घुमाकर उनका रस चूस रहा था। करीब 15 मिनट तक हम एक-दूसरे को चूमते रहे। स्नेहा भाभी ने कहा, “आज से तुम मुझे सिर्फ़ स्नेहा बुलाओ। भाभी मत कहो, मुझे अच्छा लगेगा।” उनकी ये बात सुनकर मेरा जोश और बढ़ गया।

मैंने स्नेहा को सोफे पर लिटाया और उनके ब्लाउज़ के बटन एक-एक करके खोलने लगा। अंदर उन्होंने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी थी, जिसके ऊपर से उनके भूरे निप्पल साफ़ दिख रहे थे। मैंने ब्रा के ऊपर से ही उनके चूचों को चूसना शुरू किया। फिर मैंने उनकी ब्रा का हुक खोल दिया, और उनके रसीले चूचे आज़ाद हो गए। जैसे ही मैंने उनके निप्पल मुँह में लिए, उनके चूचों से दूध की धार मेरे मुँह में भर गई। मैंने वो दूध पी लिया, और स्नेहा की सिसकारियाँ सुनकर मेरा लंड और सख्त हो गया।

तभी उनकी बेटी जाग गई और रोने लगी। स्नेहा उठकर बेड पर लेट गईं और अपनी बेटी को दूध पिलाने लगीं। मैं उनके पीछे लेट गया और उनकी कमर पर हाथ फेरने लगा। उनकी बेटी सो गई, तो स्नेहा ने उसे झूले में सुला दिया और मेरे सीने पर सिर रखकर लेट गईं। वो अपने दुख बता रही थीं, “मेरी सुहागरात को भी मेरे पति शराब पीकर आए थे। उनकी साँसों से शराब की बदबू आ रही थी। उन्होंने मेरी घूंघट उठाई, और बिना मेरे कपड़े पूरी तरह उतारे मेरी पैंटी खींचकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। मुझे बहुत दर्द हुआ, लेकिन वो नशे में थे। 10-12 मिनट बाद वो मेरी चूत में झड़ गए और सो गए। मैं पूरी रात दर्द से तड़पती रही। फिर मैं जल्दी प्रेगनेंट हो गई, और उसके बाद उन्होंने मुझे कभी नहीं छुआ।”

उनकी आँखों में आँसू थे। मैंने उनके माथे को चूमा और कहा, “अब तुम चिंता मत करो, स्नेहा। मैं तुम्हें वो सुख दूँगा, जो तुम्हें कभी नहीं मिला।” फिर मैंने उन्हें अपने ऊपर खींच लिया और उनके चूचों को फिर से चूसना शुरू किया। स्नेहा ने मेरी पैंट के ऊपर से मेरा लंड सहलाना शुरू कर दिया। मैंने उनके कपड़े उतार दिए। उनकी साड़ी और पेटीकोट खुलते ही मैंने देखा कि उनके पेट पर सिजेरियन के टाँके थे। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ऑपरेशन से हुई थी। ये सुनकर मैं और ख़ुश हुआ, क्योंकि उनकी चूत अभी टाइट होगी।

स्नेहा ने लाल रंग की पैंटी पहनी थी। मैंने उनकी पैंटी उतारी, तो उनकी चूत के हल्के भूरे बाल दिखे। उनकी गोरी चमड़ी के साथ वो बाल इतने सुंदर लग रहे थे कि चूत पर बाल हैं, ये दूर से पता ही नहीं चलता था। मैंने उनकी चूत पर हाथ फेरा, तो स्नेहा के मुँह से “आह्ह… श्ह्ह…” की आवाज़ निकली। उनकी चूत से पानी टपक रहा था, और उसकी गुलाबी दीवारें मुझे बुला रही थीं। मैंने उनकी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी रसीली चूत का स्वाद मेरे मुँह में घुल गया। स्नेहा मेरे बाल पकड़कर अपनी चूत में मेरे मुँह को दबाने लगीं। उनकी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं, “आह्ह… क्या कर रहे हो… श्ह्ह…!”

मैंने उनकी चूत को तब तक चाटा, जब तक वो चीखते हुए झड़ नहीं गईं। उनका गरम पानी मेरे मुँह पर गिरा, और मैंने उसे चाट लिया। स्नेहा ने बताया कि आज तक किसी ने उनकी चूत नहीं चाटी थी। फिर मैंने उनसे मेरा लंड चूसने को कहा। पहले तो उन्होंने मना किया, क्योंकि उन्होंने कभी अपने पति का लंड भी नहीं चूसा था। मेरे बहुत समझाने पर वो मानीं। मैंने उन्हें बताया, “लंड को आइसक्रीम की तरह चूसो, और मुँह में अंदर-बाहर करो।” स्नेहा ने मेरे लंड को मुँह में लिया और चॉकलेट की तरह चूसने लगीं। उनकी अजीब सी चूसने की स्टाइल मुझे पागल कर रही थी। मेरे लंड को उन्होंने लोहे की रॉड बना दिया।

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फिर मैंने स्नेहा को बेड पर लिटाया और उनकी टाँगें फैलाईं। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि टाँगें पूरी खोलने के बाद भी उसका मुँह बंद था। मैंने उनकी चूत के होंठों को उंगलियों से खोला और अपने लंड को उस पर रगड़ने लगा। स्नेहा बहुत सेंसिटिव थीं। मेरे लंड का स्पर्श होते ही वो सिसकारियाँ लेने लगीं। मैंने एक हाथ से उनकी चूत खोली और दूसरे हाथ से लंड को अंदर धकेलना शुरू किया। लेकिन उनकी चूत इतनी टाइट थी कि लंड बार-बार फिसल रहा था। स्नेहा हर धक्के पर चीख रही थीं, “आह्ह… धीरे… दर्द हो रहा है!”

मैंने उनके ऊपर लेटकर उनके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया। फिर मैंने अपने लंड पर ढेर सारा थूक लगाया और ज़ोर से धक्का मारा। मेरा आधा लंड उनकी चूत में घुस गया। स्नेहा तड़प उठीं और मेरे कंधों पर नाख़ून गड़ाने लगीं। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड अटक सा गया था। मैंने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया। स्नेहा की सिसकारियाँ दर्द और मज़े का मिश्रण थीं। फिर मैंने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत की गहराइयों में समा गया।

स्नेहा की चीख निकल गई, और उनकी चूत से ख़ून टपकने लगा। मैं समझ गया कि उनके पति ने कभी उन्हें पूरी तरह नहीं चोदा था। उनकी चूत अभी भी कुंवारी सी थी। मैंने उन्हें चूमना शुरू किया, उनके चूचों को चूसा, और धीरे-धीरे चोदना शुरू किया। स्नेहा की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन वो मेरे साथ थीं। वो मेरी पीठ पर हाथ फेर रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ अब मज़े में बदल रही थीं।

हम दोनों चुदाई की मस्ती में खो गए थे। उनकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी, जैसे वो उसे कभी छोड़ना ही ना चाहे। करीब 15 मिनट तक मैंने उन्हें ऐसे ही चोदा। फिर मैंने उन्हें उल्टा लेटने को कहा। स्नेहा को नहीं पता था कि गाँड में भी लंड लिया जा सकता है। उन्होंने कहा, “गाँड नहीं, सिर्फ़ चूत में चोदो। गाँड की छेद छोटी है, इतना बड़ा लंड गया तो मैं मर जाऊँगी।” मैंने उन्हें समझाया, “एक बार ट्राई करो, अगर मज़ा नहीं आया तो कभी नहीं करूँगा।”

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आख़िरकार वो मानीं। मैंने उनकी गाँड के छेद पर वैसलीन लगाई और अपनी उंगलियाँ अंदर-बाहर कीं। फिर मैंने अपने लंड पर भी वैसलीन लगाया और उनकी गाँड को दोनों हाथों से फैलाकर लंड अंदर धकेला। उनकी गाँड इतनी टाइट थी कि लंड का सुपाड़ा ही मुश्किल से घुसा। स्नेहा चीख पड़ीं, “आह्ह… निकालो… दर्द हो रहा है!” मैंने उनकी पीठ चूमी, उनके चूचों को दबाया, और धीरे-धीरे लंड को और अंदर धकेला। एक ज़ोरदार धक्के से मेरा पूरा लंड उनकी गाँड में समा गया।

स्नेहा की गाँड की दीवारें मेरे लंड को जकड़ रही थीं। वैसलीन की चिकनाहट से लंड पच-पच की आवाज़ के साथ अंदर-बाहर हो रहा था। मैंने धीरे-धीरे चोदना शुरू किया, और फिर स्पीड बढ़ा दी। स्नेहा चीख रही थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें मज़ा आने लगा। मैंने उनकी गाँड को 20 मिनट तक चोदा, और फिर उन्हें सोफे के किनारे बिठाया। उनकी एक टाँग ज़मीन पर थी, और दूसरी मेरे कंधे पर। मैंने उनका जांघ पकड़ा और लंड को उनकी चूत में पेल दिया।

मैं इतनी तेज़ी से चोद रहा था कि मेरा लंड उनकी चूत की गहराइयों तक जा रहा था। स्नेहा सोफे पर झुक गईं और सिसकारियाँ ले रही थीं, “आह्ह… और ज़ोर से…!” फिर मैंने उन्हें गोद में उठा लिया और खड़े-खड़े चोदने लगा। स्नेहा ने मेरे गले में हाथ डाले हुए थे। मैंने उन्हें सोफे पर बिठाया और उनके ऊपर चढ़ गया। उनकी पीठ मेरी तरफ़ थी। मैंने उनके चूचों को पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। फिर मैंने लंड को उनकी चूत से निकाला और उनकी गाँड में पेल दिया।

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मेरा लंड उनकी गाँड की जड़ तक जा रहा था। मेरी जांघें उनके चूतड़ों से टकरा रही थीं, और फटाक-फटाक की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी। मैंने एक हाथ से उनकी चूत में उंगलियाँ डालीं और दोनों तरफ़ से उन्हें चोदा। स्नेहा को अब पूरा मज़ा आने लगा था। वो भी ऊपर-नीचे हो रही थीं। फिर मैंने उन्हें बेड पर लिटाया और उनका लंड फिर से चुसवाया। उनकी टाँगें खोलकर मैंने उनकी चूत में लंड पेला और ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा।

स्नेहा की आँखें आधी बंद थीं, और वो मस्ती में सिसकार रही थीं। मैंने उनके चूचों को दबाया, उनके होंठों को चूमा, और उनकी चूत को धक्कों से रगड़ा। इस बीच स्नेहा पाँच-छह बार झड़ चुकी थीं। उनकी चूत का पानी बेड, सोफा, और ज़मीन पर बिखर गया था। मेरे लंड के बाल और उनकी चूत के बाल पानी से भीग चुके थे। जब मेरा निकलने वाला था, मैं उनके ऊपर लेट गया और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। स्नेहा भी फिर से झड़ने वाली थीं।

हम दोनों चीख रहे थे। स्नेहा की चूत का गरम पानी मेरे लंड पर लगा, और उसी पल मेरा वीर्य निकलने लगा। मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे और सारा माल उनकी चूत में डाल दिया। हम दोनों ने एक-दूसरे को कसकर पकड़ लिया। मेरा आख़िरी बूंद निकलने तक मैं धक्के मारता रहा। फिर मैं थककर उनके ऊपर लेट गया। स्नेहा ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया।

कुछ देर बाद मैंने उनके माथे को चूमा और लंड बाहर निकाला। चूत से फुच की आवाज़ के साथ मेरा वीर्य, उनका पानी, और हल्का ख़ून बाहर निकला। हम दोनों बाथरूम गए, एक-दूसरे को साफ़ किया, और फिर कपड़े पहनकर बेड पर लेट गए। स्नेहा मेरे सीने पर सिर रखकर लेटी थीं। उन्होंने कहा, “मुझे आज तक नहीं पता था कि चुदाई में इतना मज़ा आता है। अगर तुम नहीं होते, तो मेरी जवानी यूँ ही बर्बाद हो जाती। आज से मैं तुम्हारी बीवी हूँ। जो मैं अपने पति के लिए करती हूँ, वो सब तुम्हारे लिए करूँगी।”

उनकी आँखों में आँसू थे। मैंने कहा, “रो मत, स्नेहा। आज से तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो।” इसके बाद हमारी प्रेम कहानी शुरू हो गई। हर रात मैं उनके घर जाता और उन्हें चोदता। सुबह पाँच बजे अपने घर लौट आता। दिन में मैं उर्मिला भाभी को चोदता, और छुट्टी के दिन रिमी और उर्मिला भाभी दोनों को एक साथ। ये मेरा रोज़ का रूटीन बन गया।

एक महीने बाद स्नेहा प्रेगनेंट हो गईं। उर्मिला भाभी की मदद से उनका अबॉर्शन करवाया, क्योंकि उनकी बेटी अभी छोटी थी। फिर वो गर्भनिरोधक गोलियाँ खाने लगीं। जब उनकी बेटी तीन साल की हुई, तो उसे उनके मायके भेज दिया। इससे हमें चुदाई के लिए और ज़्यादा वक़्त मिल गया। दो साल बाद स्नेहा को एक बेटा हुआ, जिसका बाप मैं ही था।

जब तक मैं उस शहर में था, मैं स्नेहा को चोदता रहा। आज भी हमारी फोन पर बात होती है। जब मैं अपने गाँव जाता हूँ, तो स्नेहा को होटल में ले जाकर चोदता हूँ। वो अब थोड़ी मोटी हो गई हैं, लेकिन उनकी ख़ूबसूरती और बढ़ गई है। ये थी मेरी और स्नेहा की चुदाई की कहानी। आपको कैसी लगी, ज़रूर बताएँ, ताकि मैं स्नेहा को भी बता सकूँ।

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