मेरा नाम धर्मेश है। मैं बलिया, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, उम्र 19 साल। पतला-दुबला सा हूँ, लेकिन चेहरा ठीक-ठाक है, और कॉलेज में लड़कियाँ मुझे नोटिस करती हैं। मैं कलकत्ता में इंजीनियरिंग के पहले साल का स्टूडेंट था। मेरे सेमेस्टर एग्जाम खत्म हुए थे, और कुछ दिन की छुट्टी के लिए मैं घर आया था। हमारा परिवार संयुक्त है। मेरे मम्मी-पापा के अलावा मेरे चाचा-चाची भी साथ रहते हैं। चाचा, जिनका नाम सुरेश है, 35 साल के हैं। गठीला बदन, सख्त मिजाज, और हार्डवेयर का थोक बिजनेस चलाते हैं। खूब पैसा कमाया है, लेकिन चेहरा हमेशा तना रहता है। उनकी पत्नी, मेरी चाची रवीना, 28 साल की हैं। बलिया के ही एक गाँव की हैं। गोरा रंग, भरा हुआ जिस्म, कसी हुई कमर, और चूचियाँ जो साड़ी से भी उभरी रहती हैं। देहाती हैं, लेकिन हाव-भाव में एक अजीब सा ठसका है। चेहरा ऐसा कि मासूमियत और शरारत का मिक्सचर लगता है। शादी को सात साल हो गए, लेकिन उनकी कोई औलाद नहीं।
हमारा घर बड़ा है। चाचा-चाची ऊपरी मंजिल पर रहते हैं। चाचा सुबह दुकान चले जाते, और पापा अपने ऑफिस। मैं और चाची दिन भर ऊपर गप्पें मारते। रवीना मुझे दोस्त की तरह ट्रीट करती थी। मेरे सामने बेझिझक रहती। साड़ी का पल्लू लटकता रहता, और उनकी चूचियों की दरार दिखती। कभी-कभी डबल मीनिंग बातें करती, जैसे, “तेरा डंडा कितना बड़ा है, धर्मेश?” या “बछड़ा भी दूध देता है, जानता है ना?” मैं हँस देता, लेकिन मन में गुदगुदी होती। वो मेरे कॉलेज और कलकत्ता के किस्से बड़े चाव से सुनती।
जब मेरे कलकत्ता वापस जाने में छह दिन बचे थे, रवीना ने कहा, “हम भी कलकत्ता घूमने चलें?” मैंने तुरंत हामी भरी। “हाँ, क्यों नहीं? चाचा-चाची, दोनों मेरे साथ अगले शनिवार चलो। मैं पूरा शहर दिखाऊँगा।” रवीना ने चाचा को मनाया, और वो मान गए। मैंने ऑनलाइन तीनों के लिए एसी फर्स्ट क्लास के टिकट बुक कर लिए। शनिवार सुबह हम ट्रेन से रवाना हुए। अगले दिन, रविवार शाम सात बजे, हम कलकत्ता पहुँचे।
मैंने चाचा-चाची के लिए एक अच्छा होटल बुक करवाया और खुद हॉस्टल चला गया। वहाँ पता चला कि कॉलेज के क्लर्क लोग अगले दिन से हड़ताल पर जा रहे हैं। कॉलेज बंद रहने वाला था। ज्यादातर दोस्त पहले ही जा चुके थे, सिर्फ 25-30% स्टूडेंट्स बचे थे।
अगले दिन सुबह 11 बजे मैं चाचा के होटल गया। वो दोनों नाश्ता कर रहे थे। रवीना ने मेरे लिए भी नाश्ता लगाया। चाचा परेशान लग रहे थे। पूछने पर पता चला कि उनकी कंपनी ने दुबई में एक बड़ा सेल ऑफर किया है। परेशानी ये थी कि अगर वो रवीना को बलिया छोड़ने जाते, तो सेल खत्म हो जाती। और रवीना को साथ ले जाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि उनका पासपोर्ट नहीं था।
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मैंने कहा, “चाचा, आप दुबई चले जाइए। मेरा कॉलेज एक हफ्ते बंद है। मैं चाची को बलिया छोड़ दूँगा, या आपके आने तक यहीं रहूँगा। आप दुबई से यहाँ आ जाइए, फिर चाची के साथ घूमकर बलिया चले जाना।” चाचा को मेरा सुझाव पसंद आया।
रवीना बोली, “हाँ जी, आप बेफिक्र जाओ। धर्मेश मुझे घुमा देगा। आप वापस यहीं आना, फिर आपके साथ घूमकर बलिया जाऊँगी।” चाचा ने हामी भरी।
लैपटॉप पर चेक किया, तो उसी दिन दोपहर दो बजे की फ्लाइट में सीट थी। चाचा ने तुरंत बुकिंग की। हम तीनों एयरपोर्ट गए। दो बजे चाचा की फ्लाइट दुबई रवाना हुई, और मैं और रवीना कलकत्ता के बाजार में निकल पड़े।
लंच किया, फिर घूमते-घूमते मल्टीप्लेक्स पहुँचे। शाम सात बज चुके थे। रवीना बोली, “कई महीनों से सिनेमा नहीं देखा। आज देखूँगी।” नई फिल्म की टिकटें बिक चुकी थीं। एक हॉल में एडल्ट टाइप की इंग्लिश फिल्म का हिंदी वर्जन चल रहा था। चार हफ्ते पुरानी थी, इसलिए भीड़ नहीं थी। मैंने कोने की दो टिकट लीं। हमें सबसे ऊपरी कतार मिली, जहाँ कोई और नहीं था। पीछे सिर्फ दीवार थी। मैंने जानबूझकर ऐसी सीट चुनी।
तीन कतार नीचे, कोने में एक जोड़ा था। उनकी कतार में भी कोई नहीं। अगली कतार में, दूसरे कोने पर एक और जोड़ा। 300 सीटों के हॉल में 20-22 लोग ही थे। रवीना मेरे दाहिनी ओर बैठीं, उनके दाहिनी ओर दीवार थी। फिल्म शुरू हुई। तुरंत चौथी कतार का जोड़ा एक-दूसरे को चूमने लगा।
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रवीना ने इशारा करके कहा, “देख धर्मेश, कैसे खुलेआम चूस रहे हैं।”
मैंने कहा, “चाची, यहाँ ज्यादातर लोग यही करने आते हैं। सिनेमा हॉल इसके लिए बेस्ट है। उस कोने वाले जोड़े को देख, वो भी वही कर रहे हैं। अभी तो बस किस है, आगे देख क्या करते हैं। तू ध्यान मत दे, मस्ती कर।”
रवीना ने पूछा, “तूने कभी ऐसी मस्ती की?”
मैंने कहा, “अभी तक नहीं। आगे पता नहीं।”
फिल्म में सेक्सी सीन शुरू हुए। रवीना मेरे कान में बोली, “हाय राम, ये कैसी फिल्म है?”
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मैंने कहा, “चाची, ये कलकत्ता है। यहाँ ऐसी फिल्में नॉर्मल हैं। चुपचाप मजा ले। बलिया में कहाँ मिलेगा ये सब?”
फिल्म पूरी तरह सेक्स पर थी। रवीना की साँसें तेज हो रही थीं। उनका जिस्म ऐंठ रहा था। शायद पहली बार एडल्ट फिल्म हॉल में देख रही थीं। मैंने पूछा, “चाची, पहले कभी ऐसी फिल्म देखी?”
वो बोली, “नहीं रे, कभी नहीं।”
मैंने धीरे से अपना दाहिना हाथ उनकी पीठ के पीछे ले जाकर कंधे पर रखा। देखा, वो साड़ी के ऊपर से अपनी चूत सहला रही थीं। उनकी चूत शायद गीली हो चुकी थी। मेरा लंड भी तन गया। मैंने बायाँ हाथ अपने लंड पर रखकर जींस के ऊपर से सहलाया। रवीना की पीठ पर हाथ फेरा, उन्होंने कुछ नहीं कहा। वो अपनी चूत जोर से रगड़ रही थीं।
मैंने पीठ छोड़कर उनके गले पर हाथ डाला और उन्हें अपनी ओर खींचा। वो मेरी तरफ झुकीं। मैंने पूछा, “मजा आ रहा है ना, चाची?”
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वो शर्माते हुए बोली, “धत, शर्म आ रही है।”
मैंने कहा, “शर्म कैसी? चाचा के साथ तो करती ही होगी? तेरे हाथ से तो लगता है तुझे मजा मिल रहा है।”
वो बोली, “हाय, तू तो कलकत्ता जाकर बेशरम हो गया। मेरे हाथ पर नजर रखता है।”
मैंने उनके कान में मुँह सटाकर कहा, “चाची, ऐसी फिल्म देखकर मेरा भी लंड तन जाता है।”
वो मेरे होंठों के पास मुँह लाकर बोली, “क्या होता है तुझे?”
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मैंने लंड घिसते हुए कहा, “वही जो तुझे हो रहा है। मन करता है यहीं निकाल दूँ।”
वो बोली, “सिनेमा हॉल में निकालता है क्या?”
मैंने कहा, “कई बार। आज तू है, तो रुका हूँ।”
वो बोली, “यहाँ मत निकाल। बाद में कर लेना।”
फिल्म में नायिका की चूचियाँ मसली जा रही थीं। मैंने रवीना के कान में कहा, “देख, साली की चूचियाँ कितनी मस्त हैं।”
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वो बोली, “ऐसी तो सबकी होती हैं।”
मैंने कहा, “तेरी भी ऐसी हैं?”
वो बोली, “और नहीं तो क्या?”
मैंने कहा, “छूकर देखूँ?”
वो बोली, “हाँ, देख ले।”
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मैंने उनकी चूचियाँ पकड़कर दबाईं। वो मेरे कंधे पर सिर रखकर चूचियाँ दबवाने लगीं। मैंने उनका ब्लाउज खोला, ब्रा के अंदर हाथ डाला, और उनके बड़े चूचों को मसला। वो “आह…” की आवाज निकाल रही थीं।
मैंने कहा, “ब्लाउज खोल दे, और मजा आएगा।”
वो बोली, “यहाँ?”
मैंने कहा, “हाँ, साड़ी से ढक लेना। कोई नहीं देखेगा।”
वो गरम थी। ब्लाउज और ब्रा उतार दी। नंगी चूचियाँ साड़ी से ढकीं। मैंने उनकी चूचियाँ हॉल में दबाईं। मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा। बोला, “देख, कितना तना है।” वो जींस के ऊपर से लंड दबाने लगीं।
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मैंने उनका ब्लाउज छोड़कर पेट पर हाथ फेरा, फिर साड़ी के अंदर डाला। उनकी पैंटी गीली थी। मैंने चूत पर हाथ रखा। घने बाल, चिपचिपी चूत। मैंने सहलाया, वो मेरे लंड को दबा रही थीं। मैंने चूत में उंगली डाली। वो सिहर उठीं। आसपास देखकर साड़ी जाँघों तक उठाई, मेरा हाथ नीचे से चूत पर रखकर बोली, “अब आराम से कर।”
मैंने चूत में उंगली डाली। वो बोली, “जींस खोल, मैं भी तेरा लंड सहलाऊँ।”
मैंने चेन खोली। मेरा लंड रॉड सा था। वो उसे सहलाने लगीं। मैं उनकी चूत में उंगली अंदर-बाहर करता रहा। वो “आह… ऊह…” कर रही थीं। मेरा लंड चिपचिपा हो गया।
मैंने कहा, “चाची, अब नहीं रुक सकता। मुठ मारनी पड़ेगी।”
वो बोली, “मैं मार दूँ? मुझसे मरवाएगा?”
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मैंने कहा, “तुझे आता है?”
वो बोली, “तेरे चाचा का हर रात मारती हूँ। सिर्फ हाथ से नहीं, मुँह से भी।”
मैंने पूछा, “चाचा का लंड चूसती है?”
वो बोली, “हाँ, मजा आता है।”
मैंने कहा, “उनका माल पीया?”
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वो बोली, “कई बार। नमकीन मक्खन सा।”
मैंने कहा, “तो मेरी भी मार दे।”
वो मेरे लंड को तेजी से सहलाने लगीं। मैंने कहा, “चाची, माल निकलने वाला है।” उन्होंने साड़ी का पल्लू लंड पर लपेटा। मैंने सारा माल साड़ी में गिरा दिया। फिर मैंने उनकी चूत में उंगली डाली। वो “आह…” करके झड़ गईं। उन्होंने मेरा हाथ हटाकर साड़ी से चूत पोंछी।
अचानक बोली, “धर्मेश, चल होटल।”
मैंने कहा, “फिल्म तो खत्म नहीं हुई।”
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वो बोली, “वहाँ आराम से करेंगे।”
हम हॉल से निकले। होटल पाँच मिनट दूर था। कमरे में पहुँचते ही रवीना ने साड़ी उतारी। मेरी शर्ट-जींस खोली। मैं अंडरवियर में था। उन्होंने ब्लाउज, पेटीकोट उतारा। वो ब्रा-पैंटी में थीं। मुझे सीने से लगाकर चूमने लगीं। मेरा बदन चाटा। बोली, “धर्मेश, अब जो करना है, कर। मेरी चूत में आग लगी है। फाड़ दे इसे।”
मैंने अंडरवियर उतारा। मेरा 9 इंच का लंड तोप सा तना था। मैंने रवीना के हाथ में दिया। वो सहलाते हुए बोली, “बाप रे, कितना बड़ा लंड है।”
मैंने उनकी चूचियाँ दबाते हुए कहा, “रवीना, तू चाचा को खूब चोदती होगी।”
वो बोली, “तू भी चोद ले। तेरा भी हक है। मुझे चाची मत बोल, रवीना कह। तू मेरा दूसरा मरद है।”
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मैंने कहा, “ठीक है, रवीना। कितनी चुदाई की तूने?”
वो बोली, “तुझसे पहली बार होगी।”
मैंने उनकी ब्रा खोली। चूचियाँ एकदम गोरी, चिकनी। मैंने निप्पल चूसे। वो “आह…” कर रही थी। मैंने उन्हें लिटाया। पैंटी गीली थी। मैंने चूत चाटी। घने बाल, लाल चूत। मैंने जीभ अंदर डाली। वो “आह… ऊह…” करके मेरे सिर को चूत पर दबाने लगी। दस मिनट चाटने के बाद वो झड़ गई। मैंने सारा माल चाट लिया।
मैंने पूछा, “चाचा से पहले कितनों से चुदवाई?”
वो बोली, “दो से। एक सहेली के भाई ने, दूसरा कॉलेज का दोस्त।”
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मैंने कहा, “तो मैं तेरा चौथा मरद?”
वो बोली, “हाँ, सबसे प्यारा।”
मैं उनके ऊपर लेटा। होंठ चूसे। उनकी चूत में उंगली डाली। वो मेरा लंड पकड़कर चूत पर रख बोली, “डाल दे।” मैंने एक झटके में लंड पेल दिया। वो “आह… निकाल…” चीखी। मैंने उनकी बाँहें पकड़ी और धक्के मारे। वो कराह रही थीं। 70-75 धक्कों बाद वो चुप हुई। बोली, “जालिम है तू। मार ही डालेगा।”
मैंने कहा, “रवीना, तू मेरी जान है।”
दस मिनट चोदने के बाद मेरा माल निकला। मैंने चूत में ही छोड़ा। वो “आह…” कर उठी। फिर हम बाथरूम गए। बाथटब में डालकर शावर चालू किया। मैं उनके ऊपर लेटा। चूचियाँ दबाई, चूत में उंगली की। वो मेरा लंड सहलाती रही। दस मिनट बाद फिर गरम हुए। मैंने उनकी टाँगें टब पर रखी और चूत में लंड डाला। 20 मिनट चोदा। वो दो बार झड़ी। बोली, “तू कितना चोदता है।”
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खाना मँगवाया। चिकन, पुलाव, बियर, सिगरेट। रवीना ने तीन सिगरेट पी। फिर रात भर चुदाई। चूत, गांड, मुँह, चूचियों की चुदाई। सुबह आठ बजे रवीना थक गई। बाथरूम में संडास किया। मैंने उनकी गांड धोई, उन्होंने मेरी। टब में दो बार और चोदा।
शाम को चाचा का फोन आया। रवीना मुझसे चुदवाते हुए बोली, “धर्मेश को फुर्सत नहीं। आपके साथ घूमूँगी।” फोन रखकर सिगरेट जलाई और बोली, “जन्नत की सैर करवाएगा ना?”
मैंने चोदते हुए कहा, “क्यों नहीं, रंडी साली।”
वो बोली, “तू भी मादरचोद है। मौका मिले तो माँ को भी चोद देगा।”
मैंने कहा, “तुझ पर तो तभी से नजर थी जब चाची बनी थी।”
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वो बोली, “पहले क्यों नहीं बताया, प्यासा ना रहता।”
छह दिन तक हम कमरे से नहीं निकले।
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