मेरा नाम हिमानी है। मैं 22 साल की हूँ, और अभी दो महीने पहले ही मेरी शादी हुई है। शादी के बाद मैं अपने गाँव, अपने पापा से मिलने आई थी। मेरे पापा, कमलेश सिंह, हमारे गाँव के सबसे रसूखदार और अमीर इंसान हैं। गाँव में उनकी बात कोई नहीं टालता। वो सचमुच चौधरी हैं—उनकी चाल, बोलने का अंदाज़, सब कुछ मर्दाना। बचपन से मैंने पापा को एक सख्त और ताकतवर शख्स के रूप में देखा है। उनकी मर्दानगी हमेशा मुझे आकर्षित करती थी, हालाँकि मैंने कभी इस बात को ज़ाहिर नहीं किया। मेरी मम्मी का देहांत चार साल पहले हो चुका था, और मेरा छोटा भाई पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया है। पापा घर में अकेले रहते हैं। हमारे घर में दीक्षा नाम की 19 साल की लड़की काम करती है, जो दिखने में ठीक-ठाक है।
मेरे पति उपेन सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, सीधे-सादे और मासूम। वो अच्छे हैं, लेकिन पापा जैसी सख्ती और मर्दानगी उनमें नहीं है। मैं हमेशा चाहती थी कि मेरा पति पापा जैसा हो—कड़क, ताकतवर, और मर्दाना। पर उपेन का स्वभाव बिल्कुल उलट है। खैर, एक दिन मैंने पापा को दीक्षा के साथ बुलेट पर जाते देखा। वो उसे पीछे बिठाकर जंगल की ओर निकल गए। मुझे कुछ गलत लगा। मैंने कभी पापा के बारे में गलत नहीं सोचा, लेकिन जैसे-जैसे मैं जवान हुई, उनकी सख्ती, गुस्सा, और मर्दाना अंदाज़ मुझे अपनी ओर खींचने लगा था। फिर भी, मैंने कभी हिम्मत नहीं की कि उनसे इस बारे में बात करूँ।
मुझे शक हुआ, तो मैं उनके पीछे चल पड़ी। वो बुलेट पर थे, तो जल्दी जंगल पहुँच गए। मैं पैदल थी, इसलिए आधे घंटे बाद वहाँ पहुँची। जंगल में उन्हें ढूँढना शुरू किया, लेकिन वो कहीं नहीं मिले। तभी पहाड़ी की ओर से कुछ अजीब आवाज़ें आईं। मैंने ध्यान दिया तो आवाज़ें तेज़ होने लगीं। जैसे-जैसे मैं ऊपर चढ़ी, मुझे समझ आया कि ये चुदाई की आवाज़ें थीं। धीरे-धीरे मैंने दीक्षा की सिसकियाँ पहचान लीं—उसकी “आह्ह… उह्ह…” की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।
मैं एक पल को रुक गई। सोचा, कहीं मैं गलत तो नहीं कर रही? अगर पापा को पता चल गया तो क्या होगा? फिर मन में आया कि शायद रजत अंकल दीक्षा को चोद रहे हों, और पापा उसे सिर्फ़ छोड़ने आए हों। ये सोचकर मैं आगे बढ़ी। थोड़ा और चलने पर मैंने पापा की बुलेट देखी। मैं तुरंत पीछे हटी और छुपने की जगह ढूँढने लगी। पास में एक बड़ा पत्थर था। मैं उस पर चढ़ गई, ताकि ऊपर से सब देख सकूँ और पापा को पता न चले।
पत्थर पर चढ़कर मैंने नीचे देखा तो मेरा दिमाग़ चकरा गया। दीक्षा कुत्तिया की तरह झुकी हुई थी, पूरी नंगी। उसके दोनों हाथ बुलेट की सीट पर टिके थे। और पापा… पापा भी पूरी तरह नंगे थे, और उसे पीछे से ज़ोर-ज़ोर से चोद रहे थे। पापा का लंड इतना बड़ा और मोटा था कि मैं उसे देखकर दंग रह गई। ऐसा जालिम लंड मैंने पहले कभी नहीं देखा था—लगभग 8 इंच लंबा, मोटा, और सख्त। पापा की हर धक्के में दीक्षा की जाँघें लाल हो रही थीं। उसके बाल पापा ने पकड़ रखे थे, और उसका सिर पीछे खींचा हुआ था। दीक्षा की सिसकियाँ और चीखें जंगल में गूँज रही थीं—”आह्ह… बापजी… उह्ह… धीरे… आआह्ह…”
पापा रुके नहीं। वो बोले, “रजत, तू अगली बार मत आना। बस बैठकर तमाशा देखता है। सही है ना, दीक्षा?” उनकी आवाज़ में वही चौधरी वाला रौब था। दीक्षा की ज़बान लटपटाई, “हाँ… हाँ… बापजी… उह्ह…” वो थक चुकी थी, लेकिन पापा का जोश कम नहीं हुआ। उनकी धक्कों की आवाज़—”थप… थप… थप…”—और दीक्षा की चीखें मेरे कानों में गूँज रही थीं। मेरा जिस्म गर्म होने लगा। मेरी चूत गीली हो गई, और जाने कब मेरा हाथ साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को मसलने लगा।
दीक्षा की छाती बुलेट की सीट से टकरा रही थी। वो सीट को मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश कर रही थी, जैसे दर्द और मज़े के बीच जूझ रही हो। तभी उसका जिस्म अकड़ गया, और वो ज़ोर से चिल्लाई, “आआह्ह… बापजी… निकल गया… उह्ह…” उसकी चूत का पानी निकल गया, और वो बुलेट के पास ही ढेर हो गई। पापा का लंड बाहर आ गया, और मैंने उसे साफ देखा—वो किसी जंगली जानवर के लंड जैसा था, चमकता हुआ, गीला, और अभी भी सख्त। मैं उसे देखकर पागल हो गई।
पापा ने दीक्षा को उठाया और उसे घुटनों पर बिठाया। दीक्षा ने तुरंत पापा का लंड पकड़ा और उसे मुँह में ले लिया। पापा ने उसके सिर को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू किए। दीक्षा की हालत खराब थी, वो थक चुकी थी, लेकिन पापा रुके नहीं। “चूस… और ज़ोर से चूस, रंडी…” पापा की आवाज़ में गुस्सा और जोश था। रजत अंकल बस पास में खड़े तमाशा देख रहे थे। तभी पापा ने लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से उसे तेज़ी से हिलाने लगे। “आह्ह… उह्ह…” उनकी सिसकी निकली, और उनके लंड से वीर्य की पिचकारी छूटी, जो दीक्षा के चेहरे और सीने पर गिरी।
मैं पापा के लंड को देखने में इतनी खो गई कि भूल गई मैं पत्थर पर खड़ी हूँ। अचानक पत्थर हिला, और मैं धड़ाम से नीचे गिरी—सीधे पापा, दीक्षा, और रजत अंकल के सामने। तीनों मुझे देखकर सन्न रह गए। पापा ने फटाक से अपनी धोती उठाई और लपेट ली। मैं शर्म से पानी-पानी हो गई। कुछ सूझा नहीं, तो मैं वहाँ से भागने लगी। मन में डर था कि पापा क्या सोचेंगे। एक पल तो मैंने सोचा कि उपेन के पास वापस चली जाऊँ।
मैं तेज़ी से चल रही थी, तभी पीछे से बुलेट की आवाज़ आई। मुड़कर देखा तो पापा थे। उन्होंने मेरी ओर देखा, और मैंने शर्म से नज़रें झुका ली। मेरी उंगलियाँ साड़ी के पल्लू से खेलने लगीं। पापा रुके और बोले, “बैठो, घर अभी दूर है।” उनकी आवाज़ में वही चौधरी वाला रौब था। मैं बिना कुछ सोचे बुलेट पर बैठ गई। रास्ते में मैं सोचने लगी—मैं डर क्यों रही हूँ? गलत तो पापा ने किया, फिर भी वो कितने बेफिक्र हैं। उनकी मर्दानगी पर मैं फिर से फ़िदा हो गई।
डर अब प्यार में बदल रहा था। मैंने पापा के कंधे पर हाथ रख दिया, जैसे बीवी अपने पति के कंधे पर रखती है। मेरे मन में बस एक ही ख्याल था—पापा का वो जालिम लंड किसी भी हाल में छूना है। घर पहुँचे तो कुछ लोग पापा से मिलने आए थे—शायद कोई नेता टाइप के लोग। मैं पापा के सामने नहीं आना चाहती थी, तो बुलेट से उतरकर सीधे घर में चली गई। पापा बाहर उनसे गाँव की बातें करने लगे।
शाम हो गई। मेहमानों ने पापा के साथ खाना खाया और चले गए। मैंने फटाफट खाना बनाया और सोचने लगी कि पापा को कैसे पटाऊँ। रात हो चुकी थी, और तभी लाइट चली गई। मैं डर गई और चिल्लाई, “पापा!”
पापा बोले, “हाँ, क्या हुआ? लाइट ही गई है, कुछ नहीं। अभी लालटेन लाता हूँ।” वो लालटेन लेकर आए और मेरे पास रखकर चले गए। मैंने खाना खाया, बर्तन धोए, और देखा कि पापा अपने कमरे में बिछौना बिछा रहे थे। मुझे लगा वो मुझसे बचना चाहते हैं। मैंने शर्म छोड़कर कहा, “पापा, इतनी जल्दी सोना है?”
वो बोले, “हाँ बेटा, लाइट नहीं है, तो क्या करें? तू भी सो जा।” वो अपना कुर्ता उतारने लगे। उनकी चौड़ी छाती देखकर मैं खो गई। उन्होंने बनियान नहीं पहनी थी। पापा ने मुझे देखते हुए पकड़ लिया और बोले, “क्या देख रही है, हिमानी? जा, सो जा।”
मैंने कहा, “पापा, लाइट के बिना डर लगता है।”
वो हँसे, “इसमें कैसा डर? तू बचपन से इस गाँव में रही है। यहाँ तो लाइट अक्सर जाती है।” वो अपने बिछौने पर बैठ गए। मैंने हिम्मत की और बोली, “हाँ पापा, पर आज डर लग रहा है।” इससे पहले कि वो मना करें, मैं उनके बिछौने पर बैठ गई और सेक्सी अंदाज़ में कहा, “पापा, प्लीज… जब तक लाइट न आए, मुझे यहीं सोने दो। फिर मैं चली जाऊँगी।”
पापा ने मेरी ओर देखा। उनके पास अब कोई बहाना नहीं था। वो बोले, “ठीक है, सो जा।” वो लेट गए, एक हाथ सिर के नीचे और दूसरा छाती पर रखकर। मैंने हिम्मत करके उनके छाती वाले हाथ को हटाया और उनकी छाती पर सिर रखकर लेट गई। पापा ने फिर से मेरी ओर देखा। मैंने उन्हें एक कातिलाना मुस्कान दी और उनकी छाती सहलाने लगी। वो सिर्फ़ धोती में थे। मैंने कहा, “पापा, आपकी छाती पर कितने बाल हैं।”
वो बोले, “क्यों, तुझे कोई तकलीफ है?”
मैंने भोलेपन से कहा, “नहीं पापा, मुझे तो ये बाल बहुत अच्छे लगते हैं। इन्हें सहलाने में मज़ा आता है।” मैं और करीब चली गई। मेरे पैर उनके पैरों को छूने लगे। मैं धीरे-धीरे उनके पैर सहलाने लगी। पापा चुप रहे। मैंने उनके सीने के बालों को चूमना शुरू किया। असल में मैं तो पापा को चूम रही थी। मैंने उनके निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगी। पापा के जिस्म में सिहरन दौड़ गई। वो बोले, “हिमानी, ये क्या कर रही है?”
मैंने मासूमियत से कहा, “कुछ नहीं पापा, बस आपके बाल पसंद आ गए। कितने मुलायम हैं। आप सो जाइए।” मैंने उनकी होंठों पर उंगली रख दी। फिर मैं उनकी गर्दन चूमने लगी। पापा अब मुझे डाँट नहीं रहे थे, लेकिन मेरे हर चुम्बन पर उनकी गर्दन दूसरी ओर हट रही थी। मैंने कहा, “पापा, आपकी मूँछें चूम लूँ?”
वो बोले, “नहीं बेटा, उधर नहीं।”
मैंने कहा, “प्लीज पापा, मुझे आपकी मूँछें बहुत पसंद हैं।” और मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। पापा चुप रहे, लेकिन मैं उन्हें बेशर्मी से चूमने लगी। मैं उनके ऊपर चढ़ गई और उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियाँ फँसा दीं। धीरे-धीरे पापा भी पिघलने लगे। उन्होंने मेरे होंठ चूमने शुरू किए। मैं जोश में आ गई और जंगली की तरह उन्हें चूमने लगी। पापा ने मेरे जिस्म को सहलाना शुरू किया। मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में डाल दी, और वो उसे चूसने लगे।
मैं उनकी धोती के ऊपर से उनके लंड को छूने लगी। वो पहले से ही सख्त हो चुका था। जैसे ही मेरा हाथ धोती में गया, पापा ने उसे पकड़ लिया और बोले, “हिमानी, ये क्या कर रही है? मैंने भी ये क्या कर दिया?” वो उठकर बैठ गए। मैं भी उनके सामने बैठ गई और सर झुकाकर बोली, “पापा, आई एम सॉरी। पर शाम को आपको दीक्षा के साथ देखकर मुझे जलन हुई। उपेन तो 5 मिनट भी नहीं टिकता, और आपको देखकर मुझे पता नहीं क्या हो गया।” मैं उनकी गोद में सिर रखकर लेट गई।
पापा ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोले, “नहीं बेटा, तुम्हारी परेशानी ठीक है, पर ये गलत है।” मैं उनकी बात सुन रही थी, लेकिन मेरा ध्यान उनके लंड पर था। मैंने धोती के ऊपर से ही उसे पकड़ लिया और मसलने लगी। पापा बोले, “हिमानी, ऐसा मत कर। तू समझदार है।”
मैंने उनकी धोती की गाँठ खोल दी और उनके लंड को आज़ाद कर दिया। इतना बड़ा और मोटा लंड देखकर मैं दंग रह गई। मैं उठकर बैठ गई और उसे देखने लगी। पापा ने चादर से उसे ढक लिया। मैंने पापा को धक्का देकर लिटा दिया और 69 की पोजीशन में आ गई। मैंने चादर हटाई और उनके लंड को मुँह में ले लिया। वो इतना मोटा था कि मेरे मुँह में मुश्किल से समा रहा था। “उह्ह… पापा… कितना बड़ा है…” मैं सिसकते हुए बोली।
पापा ने मुझे हटाने की कोशिश की, लेकिन मैंने लंड नहीं छोड़ा। अचानक पापा को गुस्सा आ गया। उन्होंने मुझे ज़ोर से धक्का दिया, और मैं दीवार से टकरा गई। मैं हार मान चुकी थी। मुझे लगा कि पापा अब कभी नहीं मानेंगे। मैं दीवार से सटकर खड़ी हो गई और उसे मारने लगी। तभी पापा मेरे पास आए और मुझे दीवार से सटा दिया। मेरे दोनों हाथ पकड़कर फैला दिए और मेरे कान में बोले, “किसी को पता तो नहीं चलेगा?”
मैं मन ही मन खुश हो गई, लेकिन जवाब नहीं दिया। पापा ने मुझे पलटकर अपनी ओर किया और मेरे होंठ चूमने लगे। मैंने उन्हें धक्का दिया और बोली, “पापा, ऐसा प्यार तो उपेन भी करता है। मुझे दीक्षा वाला जंगली प्यार चाहिए।”
पापा मेरी बात सुनकर थोड़ा पीछे हटे और मुझे देखने लगे। फिर अचानक वो मेरे पास आए और मेरे ब्लाउज़ को दोनों हाथों से फाड़ दिया। मेरे बूब्स बाहर आ गए। मैं सिर्फ़ पैंटी में थी। पापा ने मेरे बूब्स को इतनी ज़ोर से दबाया कि मैं दर्द से उछल गई। “आह्ह… पापा… धीरे…” मैं चीखी।
वो बोले, “जंगली प्यार चाहिए ना? अब ले।” उन्होंने मुझे बिछौने पर धकेल दिया। मैं सिर्फ़ पैंटी में थी। पापा मेरे ऊपर झपटे, मेरे बाल पकड़े, और मुझे घुटनों पर बिठा दिया। उनका लंड मेरे मुँह में डाल दिया। मैं चूसने लगी, लेकिन लंड इतना बड़ा था कि मेरे गले में अटक रहा था। “उह्ह… पापा… आह्ह…” मैं सिसक रही थी। पापा ने मेरे सिर को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे। “चूस… और ज़ोर से… रंडी…” उनकी आवाज़ में शैतानी थी।
मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैंने उनके घुटनों पर हाथ मारे, लेकिन पापा नहीं रुके। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे छोड़ा। मैं हाँफ रही थी। पापा ने मुझे नीचे गिराया और मेरे पैर पकड़कर खींच लिया। मेरी पैंटी फाड़ दी। मेरी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे। पापा ने उन्हें अलग किया और अपनी उंगली से मेरी चूत को मसलने लगे। “आह्ह… उह्ह… पापा… धीरे…” मैं तड़प रही थी।
पापा ने मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल दीं और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगे। “कैसी चूत है तेरी… इतनी टाइट…” वो बोले। मैं चीख रही थी, “आह्ह… पापा… उह्ह…” फिर उन्होंने मुझे पलट दिया और 69 की पोजीशन में ले आए। वो मेरी चूत चाटने लगे, और मैं उनके लंड को चूसने लगी। उनकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी। “उह्ह… पापा… आआह्ह…” मैं सिसक रही थी।
पापा ने मुझे नीचे पटका और कुत्तिया की स्टाइल में बिठा दिया। “अब ले, जंगली चुदाई…” वो बोले और अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया। “आआह्ह… पापा… फट गई…” मैं चीखी। उनका लंड आधा ही गया था, लेकिन मुझे लगा कि मेरी चूत फट जाएगी। पापा ने मेरी कमर पकड़ी और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। “थप… थप… थप…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। “चोद… ले मेरे लंड को… रंडी…” पापा चिल्लाए।
मैं दर्द और मज़े के बीच थी। “आह्ह… पापा… उह्ह… और ज़ोर से…” मैं चीख रही थी। पापा की स्पीड बढ़ती गई। करीब 20 मिनट तक वो मुझे चोदते रहे। मैं झड़ने वाली थी। “पापा… आह्ह… निकल रहा है…” मैं चीखी। पापा ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और चोदने लगे। मैं उनकी गोद में थी, उनके होंठ चूम रही थी। “उह्ह… पापा… चोदो… और ज़ोर से…” मैं बेकरार थी।
पापा ने मुझे हवा में उठा लिया और चोदने लगे। उनकी ताकत देखकर मैं दंग थी। मेरी चूत में दबाव बढ़ रहा था। “आआह्ह… पापा… उह्ह… निकल गया…” मेरा पानी निकल गया, और मैं नीचे गिर गई। पापा ने मेरी चूत को देखा, जो गीली थी। उन्होंने धोती से उसे पोंछा और फिर मेरी चूत को चाटने लगे। “क्या चूत है… इतना रस…” वो बोले। मैं फिर से गर्म हो गई।
पापा ने मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल दीं और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगे। मैं फिर से तड़पने लगी। “आह्ह… पापा… उह्ह…” मैं सिसक रही थी। फिर पापा ने मेरी गांड की ओर देखा। मैं डर गई। “पापा, मैंने कभी गांड नहीं मरवाई।”
वो बोले, “पता है। वरना अब तक खून निकाल देता।” उन्होंने पास में पड़ा तेल लिया और मेरी गांड में डाल दिया। फिर धीरे-धीरे अपनी उंगली डाली। “आह्ह… पापा… दर्द हो रहा है…” मैं चीखी। उन्होंने दूसरी उंगली डाल दी। मैं दर्द से कराह रही थी। फिर उन्होंने अपना लंड मेरी गांड पर रखा और धीरे-धीरे अंदर डाला। “आआह्ह… पापा… फट गई…” मैं चीख रही थी।
पापा मेरे होंठ चूमने लगे, ताकि मेरी चीख दब जाए। वो धीरे-धीरे मेरी गांड चोदने लगे। “उह्ह… कितनी टाइट गांड है…” वो बोले। मैं दर्द से तड़प रही थी, लेकिन पापा नहीं रुके। करीब 15 मिनट तक वो मेरी गांड मारते रहे। मैं फिर से झड़ गई। “आह्ह… पापा… उह्ह…” मैं चीखी।
पापा का पानी अभी बाकी था। मैंने उनके लंड को पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी। फिर उसे मुँह में लिया और चूसने लगी। “आह्ह… हिमानी… चूस… और ज़ोर से…” पापा सिसक रहे थे। आखिरकार उनके लंड से पिचकारी निकली, जो मेरे मुँह और चेहरे पर गिरी। मैंने हर बूँद चाट ली।
पापा थककर नीचे गिर गए। मैं भी थक चुकी थी। हम दोनों बस लेट गए। अगले दिन मेरी गांड और चूत में इतना दर्द था कि चलना मुश्किल था। लेकिन मन में सुकून था—मुझे असली चुदाई का मज़ा मिला था।
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