नीमी का दिल तेज़ी से धड़क रहा था जब वह अपने नए दूल्हे, विक्रम, के साथ उस शाम अपनी सुहागरात के कमरे में दाखिल हुई। उसकी शादी एक छोटे से गाँव में हुई थी, जहाँ परंपरा और रिश्तों का बोझ उसके कंधों पर था। नीमी, एक 22 साल की सुंदर लड़की, अपनी गहरी आँखों और मुलायम बालों के साथ सबकी नज़र का केंद्र थी। लेकिन आज, उसकी वह मासूमियत एक अजीब से डर और उत्तेजना के साथ मिल रही थी। विक्रम, 28 साल का, एक मज़बूत जवान मर्द, उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक भूख थी जो नीमी के दिल को और तेज़ी से धड़का रही थी। कमरा फूलों से सजा था, मोमबत्तियों की रोशनी से चमक रहा था। नीमी का लहँगा अभी भी उसके जिस्म पर सजा हुआ था, लेकिन उसकी साँसें भारी हो रही थीं।
विक्रम ने उसका हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर बिठाया। “नीमी, तू डरती है क्या?” उसने पूछा, उसकी आवाज़ में एक गर्मी थी। नीमी ने शरमा कर सर झुका लिया, लेकिन उसकी आँखों में एक छुपा हुआ जोश था। “थोड़ी सी घबराहट है, विक्रम जी,” उसने धीरे से कहा। “पहली बार है ना।” विक्रम ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया, उसकी आँखों में देखते हुए। “मैं तुझे दर्द नहीं दूँगा, नीमी। बस थोड़ी सी मोहब्बत दूँगा,” उसने कहा और उसके होठों को अपने होठों से छू लिया। नीमी का जिस्म एक करंट से काँप गया। उसका पहला चुम्बन था, और वह इस एहसास में खोने लगी।
विक्रम के हाथ अब उसके लहँगे के धागे खोलने लगे, धीरे-धीरे उसकी नंगी पीठ को सहलाते हुए। नीमी की साँसें और तेज़ी से चलने लगीं जब उसका लहँगा ज़मीन पर गिर गया, और वह सिर्फ़ अपने ब्लाउज़ और पेटीकोट में रह गई। विक्रम ने उसके ब्लाउज़ के बटन खोले, उसकी नंगी कमर को देखते हुए। “कितनी सुंदर है तू, नीमी,” उसने कहा, अपनी उंगलियों से उसकी कमर पर गोल-गोल घूमते हुए। नीमी के जिस्म में एक आग सी लग गई। उसने अपने आप को रोकने की कोशिश की, लेकिन जब विक्रम ने उसके पेटीकोट को भी उतार दिया, और उसकी नंगी गाँड को अपने हाथों में लिया, तो नीमी के मुँह से एक धीमी सी सिसकी निकल गई। “विक्रम जी, ये… ये गलत तो नहीं?” उसने पूछा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक छुपा हुआ जोश था।
विक्रम ने उसकी तरफ देखा, उसका लुंड अब उसके पजामे में उभार रहा था। “ये गलत नहीं, नीमी। ये तो हमारा प्यार है,” उसने कहा और अपने कपड़े उतार दिए। नीमी की नज़र उसके मज़बूत जिस्म पर पड़ी, और जब उसने उसका लुंड देखा, तो उसके दिल में एक अजीब सी उत्तेजना जगी। वह बड़ा था, और नीमी के लिए ये एक नई दुनिया थी। विक्रम ने उसके पैरों को धीरे से खोला, उसकी चूत पर अपनी उंगलियाँ फेरते हुए। नीमी के मुँह से एक सिसकी निकल गई, उसका जिस्म अब उसके हाथों के नीचे काँप रहा था। “थोड़ा दर्द होगा, नीमी, लेकिन मैं धीरे करूँगा,” विक्रम ने कहा और अपने लुंड को उसकी चूत के मुँह पर रखा।
नीमी ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। जब विक्रम ने धीरे से अपना लुंड उसके अंदर डाला, तो नीमी के मुँह से एक चीख निकल गई। “आह, विक्रम जी, दर्द हो रहा है!” उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक अजीब सा मज़ा भी था। विक्रम ने रुककर उसके होठों को चूमा, उसके निप्पल को अपने मुँह में लेते हुए। नीमी का दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा, और उसकी जगह एक नई सी गर्मी ने ले ली। विक्रम अब धीरे-धीरे अपने लुंड को अंदर-बाहर करने लगा, नीमी की चूत के गीलेपन में खुद को खोता हुआ। नीमी के मुँह से अब चीखें नहीं, बल्कि सिसकियाँ निकल रही थीं।
“विक्रम जी, और करो,” उसने कहा, अपनी गाँड को उठाते हुए। विक्रम ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी, उसकी गाँड को पकड़ कर और ज़ोर से चुदाई करने लगा। कमरा उनकी सिसकियों और जिस्म के टकराने की आवाज़ से भर गया। नीमी का जिस्म अब एक आग का गोला बन चुका था, उसकी चूत में एक अजीब सा सुख महसूस हो रहा था। विक्रम ने उसके एक निप्पल को अपने दाँतों से धीरे से काटा, और नीमी के मुँह से एक ज़ोर की सिसकी निकल गई। “तुम्हारी गाँड कितनी मुलायम है, नीमी,” उसने कहा, अपने हाथों से उसकी गाँड को दबाते हुए। नीमी ने शरमा कर अपना मुँह छुपा लिया, लेकिन उसका जिस्म अब विक्रम के हर धक्के के साथ झूम रहा था।
वे दोनों एक दूसरे में खोने लगे, उनका प्यार और चुदाई एक अनोखा संगम बन गया। जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, विक्रम की रफ़्तार और तेज़ी से बढ़ने लगी। नीमी अब खुलकर अपने जिस्म के मज़े ले रही थी, उसकी सिसकियाँ अब चिल्लाहटों में बदल चुकी थीं। “विक्रम जी, मैं… मैं कुछ महसूस कर रही हूँ,” उसने कहा, उसकी चूत अब एक नए एहसास से भर रही थी। विक्रम ने उसके क्लिट को अपनी उंगलियों से रगड़ा, और नीमी का जिस्म एक ज़ोर के झटके के साथ काँप उठा। उसका पहला ऑर्गेज़म था, और वह इस सुख में डूब गई।
विक्रम भी अब अपने चरम पर था। “नीमी, मैं अब नहीं रुक सकता,” उसने कहा और एक ज़ोर के धक्के के साथ उसने अपना लुंड बाहर निकाला, अपने वीर्य को उसकी कमर पर छोड़ दिया। नीमी का जिस्म अभी भी काँप रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक संतुष्टि थी। वे दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए, उनकी साँसें अभी भी तेज़ी से चल रही थीं। सुबह के उजाले में, नीमी और विक्रम एक दूसरे के पास लेटे थे, उनके जिस्म एक दूसरे से लिपटे हुए।
नीमी का दर्द अब एक याद बन चुका था, और उसकी जगह एक नई सी मोहब्बत ने ले ली थी। “विक्रम जी, ये दर्द भी कितना सुंदर था,” उसने धीरे से कहा। विक्रम ने उसके माथे को चूमा और कहा, “ये तो बस शुरुआत है, नीमी। अभी तो हमारी पूरी ज़िंदगी बाकी है।” नीमी ने उसकी छाती पर अपना सर टिका दिया, उसका दिल अब शांति से धड़क रहा था। उसकी सुहागरात का दर्द अब एक मीठी याद बन चुका था, और वह जानती थी कि यह प्यार और जोश से भरी यात्रा की सिर्फ़ शुरुआत थी।