मेरा नाम शामी है। मैं रायपुर में रहता हूँ, बी.ए. सेकंड ईयर में हूँ। हमारा घर किराए का है, पुराना मकान, तंग कमरे, पतली दीवारें। बाहर गली में बच्चे चिल्लाते रहते हैं, और गर्मी में पसीना चिपचिपा करता है। मेरे घर में मैं, मेरे पापा और मेरी मम्मी सुनिता रहते हैं। पापा व्यापारी हैं, सुबह-सुबह दुकान चले जाते हैं, रात को देर से आते हैं, थके-हारे। मम्मी घर का काम करती हैं—खाना बनाती हैं, कपड़े धोती हैं, पड़ोस की औरतों से गप मारती हैं। मैंने कई बार देखा, मम्मी की आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई अधूरी चाहत उनके दिल में दबी हो। वो कभी-कभी रसोई में गुनगुनाती थीं, पर उनकी मुस्कान में कुछ छिपा सा लगता था।
हमारे मकान में और किराएदार भी रहते हैं। हमारे सामने वाले कमरे में अजीत अंकल रहते हैं। वो बंगाल से आए हैं, फैक्ट्री में काम करते हैं। उनके साथ चार-पाँच मज़दूर रहते हैं, जो रात को ताश खेलते, गंदे मज़ाक करते, और ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं। अजीत अंकल साँवले, लंबे, मज़बूत। उनकी छाती चौड़ी है, और आवाज़ में एक भारीपन। वो मम्मी से खुलकर हँसते-बोलते थे, और उनकी बातों में मज़ा था। वो हमारे घर अक्सर आते, पर पापा के रहते कम। पापा के जाते ही उनका आना-जाना बढ़ जाता। मैं छोटा था, ज्यादा समझ नहीं पाता था, पर इतना देखता था कि मम्मी उनके सामने कुछ ज्यादा हँसती थीं। उनकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक जाता, और अजीत अंकल की आँखें मम्मी के जिस्म पर रुकती थीं। मम्मी भी उनकी बातों में खो सी जाती थीं, और उनकी मुस्कान में एक शरारत सी झलकती थी।
पिछले कुछ हफ्तों से मैंने नोटिस किया, अजीत अंकल का आना बढ़ गया था। कभी चाय के बहाने, कभी कुछ उधार मांगने, वो मम्मी से मिलने चले आते। एक दिन दोपहर को मैं कॉलेज से जल्दी आया। पापा दुकान पर थे। मैंने देखा, अजीत अंकल हमारे घर बैठे थे। मम्मी उनके लिए पानी लाई, और उनकी साड़ी का पल्लू नीचे सरक गया। अंकल की आँखें मम्मी के ब्लाउज़ पर टिकी थीं। “सुनिता, तू तो दिन-ब-दिन मस्त होती जा रही,” अंकल ने मज़ाक में कहा। मम्मी हँसी, “बस कर, अजीत। कोई सुन लेगा।” पर उनकी आवाज़ में शरम कम और शरारत ज्यादा थी। मैं चुपके से अपने कमरे में चला गया, पर मन में कुछ शक सा हुआ।
एक और दिन की बात है। मैं घर पर था, किताब पढ़ने की कोशिश कर रहा था। बाहर गर्मी थी, और पंखा धीमे-धीमे घूम रहा था। मम्मी रसोई में चाय बना रही थीं। उनकी साड़ी पसीने से चिपकी थी, और ब्लाउज़ उनके मम्मों को कस रहा था। मम्मे बाहर आने को बेताब थे। तभी दरवाज़े पर खटखट हुई। अजीत अंकल थे। उनकी कमीज़ पसीने से गीली थी, और साँवला सीना बाहर झलक रहा था। “सुनिता, चाय मिलेगी?” वो मुस्कुराए। मम्मी ने हँसकर कहा, “अरे, अजीत, आ जा, बैठ!” वो चाय की प्याली लेकर आई, उनके पास बैठ गई।
मैं कोने में था, उनकी बातें सुन रहा था। अजीत अंकल मम्मी के करीब झुके। उनकी आँखें मम्मी के ब्लाउज़ पर रुकी, जहाँ मम्मे साफ़ झलक रहे थे। “सुनिता, तू आज तो मस्त लग रही है,” अंकल ने धीरे कहा। मम्मी हँसी, “बस कर, शरम आती है।” पर उनकी आँखें चमक रही थीं। अंकल ने मम्मी की जाँघ पर हल्का सा हाथ रखा। मम्मी ने हाथ हटाया, पर मुस्कुराई। “क्या कर रहा है, कोई देख लेगा,” मम्मी बोली, पर उनकी आवाज़ में मज़ा था। अंकल ने मम्मी के कान में कुछ फुसफुसाया। मम्मी ने मेरी तरफ देखा। मैं समझ गया, मैं रुकावट हूँ। “मम्मी, मैं ज़रा दूसरा कमरा देखूँ,” मैंने बहाना बनाया और चला गया।
मैंने दरार से झाँका। अजीत अंकल मम्मी के इतने पास थे कि उनकी जाँघें मम्मी की साड़ी को छू रही थीं। मम्मी ने ब्लाउज़ का बटन खोला। अंकल उनकी चूचियों को घूर रहे थे। “सुनिता, ये मम्मे तो मज़ा दे रहे,” अंकल बोले। मम्मी सिसकारी, “देख ले, पर जल्दी कर।” अंकल ने मम्मी की कमर पकड़ी, उन्हें अपनी ओर खींचा। “तेरे को चोदने का मन है,” अंकल बोले। मम्मी हँसी, “तो चोद ना, कितना तड़पाएगा?” तभी मम्मी ने मुझे देख लिया। “शामी, यहाँ क्या?” वो ब्लाउज़ ठीक करती बोली। “कुछ नहीं,” मैंने कहा और चला गया। पर वो नज़ारा मेरे दिमाग में अटक गया। अंकल की भूखी आँखें, मम्मी की शरारती चमक—कुछ होने वाला था।
उस रात मैं सो नहीं पाया। मम्मी का व्यवहार बदला सा लग रहा था। वो ज़्यादा सजने लगी थीं, और अजीत अंकल का आना-जाना बढ़ गया था। एक दोपहर मैंने देखा, मम्मी बाहर कपड़े सुखा रही थीं। अजीत अंकल उनके पास आए। मम्मी की साड़ी का पल्लू नीचे था, और अंकल की आँखें उनके मम्मों पर टिकी थीं। “सुनिता, रात को मिलेगी?” अंकल ने धीरे कहा। मम्मी ने हँसकर कहा, “देख लूँगी, पर शामी घर पर रहता है।” मैं सुन रहा था, और मेरा शक पक्का हो गया।
अगली शाम की बात है। पापा दुकान पर थे। मैं घर पर था, किताब लिए बैठा। मम्मी रसोई में थी। अजीत अंकल आए। “सुनिता, आज चाय नहीं पिलाएगी?” वो बोले। मम्मी ने हँसकर उन्हें अंदर बुलाया। वो चाय लेकर आई, और इस बार उनके ब्लाउज़ का बटन पहले से खुला था। अंकल की आँखें मम्मी के मम्मों पर टिकी थीं। “सुनिता, तू तो आग लगा रही है,” अंकल बोले। मम्मी सिसकारी, “बस कर, कोई सुन लेगा।” पर वो अंकल के और करीब सरक गई। अंकल ने मम्मी की कमर पर हाथ रखा। मम्मी ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराई। मैं समझ गया, आज कुछ होगा। “मम्मी, मैं बाहर जा रहा हूँ,” मैंने झूठ बोला और दरार से झाँकने की जगह ढूँढने लगा।
मम्मी ने थोड़ी देर बाद कहा, “शामी, मैं पड़ोस जा रही हूँ। खाना तैयार है।” मैंने हामी भरी, पर ठान लिया, आज सब देखूँगा। मम्मी अजीत अंकल के कमरे में घुसी। मेरा दिल धक-धक कर रहा था। मैं चुपके से पीछे गया। अंकल का दरवाज़ा बंद था, पर एक छेद था। मैंने आँख लगाई। मेरे होश उड़ गए।
मम्मी और अजीत अंकल लिपटे थे। अंकल मम्मी के होंठ चूस रहे थे, जैसे कोई भूखा। मम्मी उनकी कमीज़ खींच रही थी। “सुनिता, तुझे चोदने का मन कब से था,” अंकल बोले। “अजीत, मैं भी तेरा लवड़ा चाहती हूँ। मेरा मर्द तो बस दुकान में पड़ा रहता है,” मम्मी बोली। अंकल ने मम्मी को बिस्तर पर पटका। कमरा छोटा, चादर गंदी, पसीने की बू। अंकल ने मम्मी की साड़ी का पल्लू खींचा। मम्मी का गोरा पेट दिखा। “सुनिता, तू मस्त माल है,” अंकल बोले। “बस चोद दे, भोसड़ी!” मम्मी बोली।
अंकल ने मम्मी का ब्लाउज़ फाड़ा। ब्रा में चूचियाँ थी। ब्रा उतारी। मम्मी की चूचियाँ गोरी, निप्पल गुलाबी। अंकल ने एक चूची मुँह में ली, जोर से चूसी। “आह, चूस ना, मादर चोद!” मम्मी चिल्लाई। अंकल ने दूसरी चूची दबाई, मसली। मम्मी सिसकारी, “उफ, और चूस, मज़ा आ रहा!” अंकल ने मम्मी की साड़ी और पेटीकोट उतारा। मम्मी चड्डी में थी। चड्डी गीली थी। अंकल ने चड्डी खींचकर उतारी। मम्मी की बुर गीली, झाँटें हल्की। “तेरी बुर तो तरस रही,” अंकल हँसे। “हाँ, लवड़ा डाल, जल्दी!” मम्मी बोली।
अंकल ने अपनी पैंट उतारी। उनका लवड़ा मोटा, सात इंच। मम्मी ने देखा, “हाय, ये तो मेरी बुर फाड़ देगा!” “लेगी ना, रंडी?” अंकल बोले। मम्मी ने लवड़ा पकड़ा, मुँह में लिया, चूसने लगी। “आह, सुनिता, तू तो मस्त चूसती है!” अंकल सिसकारे। मम्मी ने लवड़ा गले तक लिया, जीभ से चाटा। अंकल का लवड़ा थूक से गीला हो गया। मम्मी चूसती रही, “मज़ा दे, अजीत!” वो बोली। अंकल ने मम्मी का सिर पकड़ा, लवड़ा उनके मुँह में अंदर-बाहर किया। मम्मी की सिसकारियाँ और चूसने की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी।
मैं बाहर छेद से देख रहा था। मेरा लवड़ा पैंट में फट रहा था। गलत था, पर आँखें नहीं हटी। अंकल ने मम्मी की बुर में उंगली डाली, अंदर-बाहर की। मम्मी चिल्लाई, “उफ, लवड़ा डाल, भोसड़ी, तड़पा मत!” अंकल ने अपनी जीभ मम्मी की बुर पर रखी, चाटने लगे। मम्मी की कमर उछली, “आह, चाट ना, और चाट!” बुर का रस अंकल के मुँह में गया। मम्मी सिसकारी, “लवड़ा दे, अब चोद!” अंकल ने मम्मी की चूचियाँ फिर मसली, निप्पल काटे। मम्मी चीखी, “उफ, मज़ा आ रहा, चोद ना!”
अंकल ने लवड़ा बुर पर रगड़ा। “तैयार है?” अंकल बोले। “हाँ, पेल दे, मादर चोद!” मम्मी बोली। अंकल ने धक्का मारा। आधा लवड़ा घुसा। मम्मी चीखी, “आह, धीरे, फट जाएगी!” अंकल ने दूसरा धक्का मारा, पूरा लवड़ा अंदर। “उफ, चोद ना, जल्दी!” मम्मी चिल्लाई। अंकल ने पेलना शुरू किया। फच-फच की आवाज़। मम्मी की चूचियाँ हिल रही थी। “आह, और जोर से, पेल दे!” मम्मी बोली। अंकल ने उनकी कमर पकड़ी, तेज़ पेला। बुर का रस लवड़े पर चिपक रहा था। “मज़ा आ रहा, चोद!” मम्मी चिल्लाई।
अंकल ने मम्मी को घोड़ी बनाया। मम्मी की गांड हवा में थी। अंकल ने पीछे से लवड़ा पेला। “आह, भोसड़ी, और पेल!” मम्मी बोली। अंकल ने गांड पर थप्पड़ मारा, तेज़ धक्के मारे। “तेरी बुर तो मस्त टाइट है,” अंकल बोले। मम्मी सिसकारी, “चोद, मज़ा दे!” बिस्तर चरमरा रहा था। मम्मी गांड हिला रही थी। “पेल ना, और जोर से!” मम्मी चिल्लाई। अंकल ने मम्मी की चूचियाँ पकड़ी, पीछे से तेज़ पेला। मम्मी की सिसकारियाँ और बिस्तर की चरमराहट कमरे में गूंज रही थी।
अंकल ने मम्मी को दीवार के पास खड़ा किया। एक टाँग उठाई, लवड़ा पेला। “उफ, मार डाला!” मम्मी बोली। अंकल तेज़ पेल रहे थे। “मज़ा है, सुनिता?” अंकल बोले। “हाँ, पेलता रह, रुक मत!” मम्मी बोली। अंकल ने मम्मी की चूचियाँ मसली, बुर में गहरे धक्के मारे। मम्मी चिल्लाई, “आह, झड़ने वाली हूँ!” उनकी बुर ने रस छोड़ा, शरीर काँपा।
अंकल नहीं रुके। मम्मी को फिर बिस्तर पर लिटाया। उनकी टाँगें कंधों पर रखी, लवड़ा गहरे पेला। “उफ, अजीत, तू जान लेगा!” मम्मी बोली। अंकल बोले, “तेरी बुर का मज़ा लूँगा!” वो तेज़ पेलते रहे। मम्मी सिसकारी, “चोद, और चोद!” अंकल ने मम्मी को पलटा, गांड में उंगली डाली। मम्मी चीखी, “उफ, ये क्या?” “मज़ा ले, रंडी!” अंकल बोले। अंकल ने फिर बुर में लवड़ा पेला, तेज़ धक्के मारे। मम्मी चिल्लाई, “पेल ना, भोसड़ी, और जोर से!”
अचानक बाहर से किसी मज़दूर की आवाज़ आई। “अजीत भाई, खाना तैयार है!” मम्मी और अंकल रुक गए। मम्मी हाँफ रही थी। “जल्दी कर, कोई आ जाएगा,” मम्मी बोली। अंकल हँसे, “अभी तो बुर का मज़ा बाकी है।” वो फिर पेलने लगे। मम्मी सिसकारी, “चोद, मज़ा दे!” अंकल ने मम्मी की चूचियाँ पकड़ी, तेज़ धक्के मारे। मम्मी की बुर फिर रस छोड़ने वाली थी। “आह, अजीत, मैं फिर झड़ूँगी!” मम्मी चिल्लाई। उनकी बुर ने रस छोड़ा, और वो हाँफने लगी।
अंकल की साँसें तेज़ हुई। “सुनिता, झड़ने वाला हूँ!” “बुर में छोड़, मादर चोद!” मम्मी बोली। अंकल ने जोर का धक्का मारा, रस बुर में छोड़ा। दोनों हाँफ रहे थे। मम्मी बोली, “अजीत, तूने बुर फाड़ दी। मज़ा दे दिया।” अंकल हँसे, “अब जब मन करे, बुला ले।” मम्मी ने अंकल को चूमा, “फिर चोदना, ऐसा मज़ा पहले नहीं मिला।”
मैं बाहर देख रहा था। मेरा लवड़ा फट रहा था। मैं चुपके से घर आया। उस रात के बाद मम्मी कई बार अजीत अंकल के पास गई। मैंने चुपके से देखा, हर बार उनका खेल और जोशीला होता था। गलत था, पर वो नज़ारा मेरे दिमाग से नहीं निकला। मम्मी की सिसकारियाँ, अंकल का लवड़ा, और उनकी चुदाई की आवाज़ मेरे दिमाग में गूंजती रही।