हेलो दोस्तों, मेरा नाम मैजेस्टी है। मैं आज अपनी जिंदगी के कुछ हसीन और गर्म पल आपके साथ शेयर करने जा रहा हूँ। मेरी उम्र 20 साल है, और मेरे परिवार में सिर्फ तीन लोग हैं—मैं, मेरी मम्मी जो 45 साल की हैं, और मेरी दीदी कामिनी, जो 30 साल की हैं और जिनकी शादी हो चुकी है। हम लोग गाजियाबाद के पास एक गाँव में रहते हैं। गाँवों में तो आप जानते ही हैं, लड़कियों की शादी छोटी उम्र में हो जाती है। मम्मी की शादी 15 साल की उम्र में हुई थी, और दीदी की भी 18 साल की उम्र में। हमारा परिवार अच्छे खाते-पीते घर से है। पिताजी के जाने के बाद भी हमें रुपये-पैसे की कोई कमी नहीं। खेती से अच्छी कमाई हो जाती है।
मैं इन दिनों शहर में रहकर पढ़ाई करता हूँ। मैंने यहाँ एक कमरा किराए पर लिया है। हालाँकि दीदी की ससुराल भी यहीं है, लेकिन मैं रिश्तेदारी में रहकर पढ़ाई नहीं करना चाहता था। वैसे भी, मैंने एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में कमरा लिया है, जहाँ पड़ोसी आपस में ज्यादा दखल नहीं देते। सब अपने में मस्त रहते हैं। अब असल बात पर आता हूँ। मेरी सेक्स लाइफ काफी मस्त है। कॉलेज की कई लड़कियों को मैं अपने कमरे पर लाकर चोद चुका हूँ। जब कोई नहीं मिलती, तो मुठ मार लेता हूँ। मस्तराम की किताबें पढ़ता हूँ, जिनमें ज्यादातर रिश्तों में सेक्स की कहानियाँ होती हैं। इन्हें पढ़कर मन करता है कि किसी को पकड़कर चोद डालूँ। लेकिन फिर सोचता हूँ, क्या सचमुच रिश्तों में चुदाई होती है? क्या कोई अपनी माँ या बहन को चोद सकता है? पर दीदी के साथ चुदाई के बाद मुझे ये बात माननी पड़ी।
बात उस दिन की है जब मैं अपने कमरे पर था। दीदी अक्सर मेरे पास आती रहती थीं, कुछ न कुछ सामान लाती थीं। उस दिन भी वो शॉपिंग करके मेरे कमरे पर आईं। कामिनी दीदी 30 साल की हैं, लेकिन उनकी खूबसूरती और कामुकता ऐसी है कि कोई भी देखकर पागल हो जाए। उनका फिगर 38-28-36 का है। उनकी चूंचियाँ और गाँड इतनी मस्त हैं कि किसी का भी लंड खड़ा हो जाए। जैसे ही वो कमरे में आईं, बोलीं, “क्या अविनाश, तू घर नहीं आ सकता क्या?” मैंने कहा, “दीदी, मेरी पढ़ाई खराब हो जाती है।”
“बड़ा आया पढ़ने वाला! मुझे सब पता है, तू क्या करता है!” दीदी ने तपाक से कहा।
मैंने पूछा, “क्या दीदी?”
“अच्छा, चल, मुझे पानी तो पिला।”
“सॉरी दीदी, अभी लाता हूँ।” मैंने फ्रिज से पानी की बोतल निकालकर दी। वो पानी पीते हुए बोलीं, “उफ्फ, कितनी गर्मी है!”
मैंने कहा, “हाँ दीदी।”
हमारी ऐसी ही बातें चल रही थीं कि अचानक हम चौंक पड़े। पूरे शहर में कर्फ्यू लग गया था। पुलिस की गाड़ियों से अनाउंसमेंट हो रहा था कि हिंदू-मुस्लिम दंगों की वजह से धारा 144 लागू कर दी गई है। ये सुनकर दीदी परेशान हो गईं, “अरे, अब मैं घर कैसे जाऊँगी?”
मैंने कहा, “दीदी, अब तो जब तक कर्फ्यू नहीं हटता, आपको रुकना पड़ेगा।”
“लेकिन…?”
“अरे दीदी, हो सकता है सुबह तक कर्फ्यू हट जाए।”
“लेकिन घरवाले चिंता करेंगे,” दीदी बोलीं।
मैंने कहा, “दीदी, आपके पास मोबाइल है, फोन कर दो।”
“लेकिन मैं यहाँ उफ्फ, क्या करूँ?”
“क्या दीदी, लाओ मैं करता हूँ!”
दीदी ने मुझे फोन दिया। मैंने डायल किया। रिंग बजी, फिर जीजाजी की आवाज आई, “हेलो, कामिनी, कहाँ हो तुम?”
मैंने कहा, “हेलो जीजाजी, नमस्ते, मैं अविनाश। दीदी यहीं मेरे पास हैं। लेकिन शहर में कर्फ्यू लगा है, दीदी बहुत परेशान हैं।”
जीजाजी बोले, “थैंक्स गॉड, मैं तो डर ही गया था। अच्छा, तुम दीदी को बोलो कि वहीं रुकें। सुबह कोशिश करता हूँ, आकर ले जाऊँगा।”
मैंने कहा, “आप ही बात कर लो, दीदी बहुत परेशान हैं।” मैंने दीदी को फोन दे दिया।
दीदी बोलीं, “हेलो, हाँ जी, लेकिन मैं यहाँ कैसे…?” फिर कुछ देर बात करके बोलीं, “जी ठीक है।”
मैंने पूछा, “क्या हुआ दीदी?”
वो बोलीं, “हुआ क्या, अब तो रुकना ही पड़ेगा।”
“तो क्या हुआ? यहाँ आपको क्या परेशानी है?” मैंने कहा।
“अरे यार, लेकिन मैं रात को पहनूँगी क्या? मेरे पास और कपड़े तो हैं नहीं!”
“हाँ,” मैंने कहा, “ये परेशानी तो है। आप मेरी लुंगी और कुर्ता पहन लेना।”
“हम्म, यही ठीक रहेगा। अच्छा, खाने का क्या?”
“खाना तो बनाना पड़ेगा दीदी। चलो, ठीक है, दाल-चावल तो होंगे, वही बना लेते हैं,” दीदी बोलीं।
मैंने कहा, “हाँ, दाल-चावल हैं, और कुछ सब्जियाँ भी हैं जो फ्रिज में हैं।”
शाम के 8 बज चुके थे। दीदी किचन में खाना बना रही थीं, और मैं पढ़ रहा था। तभी दीदी ने आवाज दी, “अविनाश, इधर तो आ!”
मैं उनके पास गया और बोला, “हाँ दीदी, क्या बात है?”
वो बोलीं, “अरे, घी कहाँ है?”
मैंने उन्हें घी का जार दिया और वहीँ खड़ा हो गया। उस वक्त दीदी पेटीकोट और ब्लाउज में थीं। गर्मी की वजह से उनका ब्लाउज और पेटीकोट पसीने से भीग चुका था। उन्होंने साड़ी उतार दी थी। भीगे पेटीकोट और ब्लाउज से उनका पूरा बदन साफ दिख रहा था। उनकी सफ़ेद ब्रा और चूतड़ों का रंग साफ नजर आ रहा था। लगता था उन्होंने पैंटी नहीं पहनी थी। उफ्फ, ये सब देखकर मेरा लंड एकदम खड़ा हो गया। मन में गंदे-गंदे ख्याल आने लगे। लेकिन फिर सोचा, वो मेरी बड़ी बहन हैं। मैं जाने लगा तो दीदी बोलीं, “कहाँ जा रहा है? यहीं रह ना, मैं अकेली बोर हो रही हूँ। चल, कुछ बातें करते हैं, खाना भी बन जाएगा, और बोरियत भी नहीं होगी।”
मैंने कहा, “ठीक है दीदी। और बताओ, यहाँ कोई परेशानी तो नहीं?”
दीदी बोलीं, “नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं। मैं आराम से हूँ। तुम्हारे कॉलेज का क्या हाल है?”
“जी, बढ़िया है। मैं तो बस कॉलेज जाता हूँ और घर पर रहता हूँ।”
“अच्छा अविनाश, जरा एक बात तो बता?”
“क्या दीदी?”
“तू कॉलेज में पढ़ाई पर ध्यान देता है या लड़कियों पर?”
“क्या दीदी, आप भी!”
“क्यों, क्या तेरे कॉलेज में कोई सुंदर लड़की नहीं है?”
“है दीदी, बहुत सी हैं, लेकिन मैं सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देता हूँ।”
“चल हट, मुझे बेवकूफ बना रहा है। मैं खूब जानती हूँ, लड़कों को लड़की देखकर क्या हालत होती है। और वो भी अगर लड़का गाँव से हो, तो शहर की लड़कियों को देखकर पागल हो जाता है।”
“लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ।”
“अच्छा, चल, कोई तो अच्छी लगती होगी?”
“नहीं दीदी।”
“नहीं दीदी, चल, मैं नहीं मानती। एक जवान लड़का, जिसे कोई लड़की अच्छी नहीं लगती, ये हो ही नहीं सकता!”
“हाँ दीदी, आप भी। मुझे कोई अच्छी नहीं लगती।”
“क्यों, तू जवान नहीं है?”
“हूँ।”
“क्या तुझमें कोई कमी है?”
“क्या दीदी, आप भी, बात कहाँ ले गईं!”
“मैं जवान भी हूँ, मुझमें कोई कमी भी नहीं, पर मुझे जवान लड़कियाँ अच्छी नहीं लगतीं।”
“क्यों, जवान लड़कियाँ क्यों नहीं?”
“अब जाने भी दो ना, आप मेरी बड़ी बहन हो, और बहन-भाई में ऐसी बातें होती हैं क्या?”
“अरे, तू शहर में पढ़ रहा है, 21वीं सदी में जी रहा है, और बातें पुराने जमाने की करता है। आजकल तो भाई-बहन दोस्तों की तरह होते हैं। जो अपने मन की सारी बातें एक-दूसरे को बता देते हैं, बिना किसी शर्म या झिझक के। अच्छा, ये बता, बीयर वगैरह पीता है?”
मैंने कहा, “हाँ दीदी, कभी-कभी दोस्तों के साथ पी लेता हूँ।”
“है, तेरे पास?” दीदी बोलीं।
“हाँ, फ्रिज में चार बोतलें हैं। क्या आप भी पीती हो?”
“हाँ रे, जब गर्मी ज्यादा होती है, तो तेरे जीजाजी पिला देते हैं। कभी-कभी तो वो व्हिस्की भी पिला देते हैं।”
“आप बहुत बदल गई हो दीदी,” मैंने कहा।
हँसते हुए वो बोलीं, “अरे बेटा, ये सब शहर की लाइफ का असर है। अब तुम्हारे जीजाजी के साथ पार्टियों में जाती हूँ, तो पीनी पड़ती है। और जितनी बड़ी पार्टियाँ होती हैं, वहाँ ये सब तो आम है। कभी तू भी चलना हमारे साथ।”
“ठीक है दीदी!” मैंने कहा, “अब आप नहा लो, फिर बीयर पीते हुए बातें करेंगे।”
“ठीक है,” कहकर वो अपनी गाँड मटकाती हुई नहाने चली गईं।
मैं अपने लंड को पकड़कर मसल रहा था और सोच रहा था, आज दीदी बड़ी फ्रैंक होकर बातें कर रही हैं। हो सकता है, आज उन्हें चोदने का मौका मिल जाए। मैं सोचने लगा, जब दीदी नहाकर मेरी लुंगी और कुर्ता पहनेंगी, बिना पैंटी के, तो शायद रात को लुंगी हट जाए या खुल जाए, तो उनकी चूत के दर्शन हो जाएँ। तभी दीदी नहाकर आ गईं। मैंने फौरन अपने लंड को अंडरवियर में एडजस्ट किया और बोला, “नहा लिया दीदी?”
वो बोलीं, “हाँ, अब तू भी नहा ले।”
“जी ठीक है,” मैंने कहा।
बाथरूम में आकर जैसे ही मैंने अपने कपड़े उतारे और उन्हें टांगने के लिए खूँटी की तरफ बढ़ा, तो मैं हैरान रह गया। दीदी की ब्रा और पैंटी वहाँ टंगी थी। मुझे कुछ अजीब सा लगा। फिर सोचा, शायद उन्होंने पैंटी तब उतारी होगी, जब वो पहली बार टॉयलेट के लिए आई थीं। मैंने पैंटी उठाकर हाथ में ली और सूँघने लगा। हाय! दोस्तों, सच कहता हूँ, उनकी चूत की महक से मैं पागल हो गया और मुठ मारने लगा। जब मेरा लंड झड़ गया, तब मैं जल्दी से नहाकर बाहर आया।
“बड़ी देर लगा दी नहाने में,” दीदी बोलीं।
मैं घबरा गया और बोला, “वो दीदी, गर्मी बहुत है ना।”
“अच्छा, चल अब बीयर खोल।”
मैंने दो बोतल बीयर खोलीं, एक उन्हें दी और एक खुद ले ली। दीदी बेड पर पैर लंबा करके, सरहाने से पीठ लगाकर बैठी थीं। मैं उन्हें गौर से देखने लगा। वो बोलीं, “क्या बात है अविनाश, क्या देख रहा है?”
मैं सकपका गया और बोला, “कुछ नहीं दीदी, मैं देख रहा था, आप मेरे कपड़ों में बहुत अच्छी लग रही हो।”
“अच्छा बेटा, तुझे तो लड़कियाँ अच्छी नहीं लगतीं, फिर मैं कैसे अच्छी लगने लगी?”
“ओहो, दीदी, आप कोई लड़की थोड़ी हो,” कहकर मैं चुप हो गया।
“अरे, मैं लड़की नहीं, तो क्या मर्द हूँ?” वो गुस्से से बोलीं।
“अरे नहीं दीदी, मेरा वो मतलब नहीं था।”
“तो फिर?”
“ओहो, अब मैं आपको कैसे बताऊँ। आप मेरी बड़ी बहन हो,” मैंने कहा।
“अरे यार, फिर वही दकियानूसी बातें। अब हम दोस्त हैं। देख, तू मेरे साथ बीयर पी रहा है, अब मुझसे कैसे शर्म? बोल खुलकर, मैं बुरा नहीं मानूँगी।” वो बीयर की बोतल खाली करके बोलीं। फिर बोलीं, “लेकिन पहले दूसरी बोतल खोलकर मुझे दे दे।”
मैंने कहा, “ठीक है।”
दीदी बोलीं, “तू नहीं लेगा और?”
“लूँगा दीदी, पर पहले अगर आप नाराज़ न हों, तो मैं एक सिगरेट पी लूँ?”
वो पलथी मारकर बैठ गईं और बोलीं, “धत, इसमें नाराज़ होने वाली कौन सी बात है? ला, एक मुझे भी दे।”
मैं हैरान रह गया। मैंने कहा, “आप भी?”
दीदी बोलीं, “हाँ, कभी-कभी। लेकिन आज सोच रही हूँ, क्यों ना आज तेरे साथ मस्ती मारूँ।”
मैंने एक सिगरेट उन्हें दी और एक खुद सुलगा ली। दो कश खींचने के बाद, बीयर का घूँट भरकर दीदी मुझसे बोलीं, “हाँ, अब तू बोल।”
अब तक मैं उनसे काफी खुल चुका था। मेरा डर कुछ कम हो चुका था। मैंने कहा, “वो क्या है दीदी, आप तो शादीशुदा हो। मुझे बड़ी उम्र की, यानी 28 से ऊपर की लेडीज़ अच्छी लगती हैं।”
“अच्छा, और?”
“और मुझे 45-50 की सुडौल बदन वाली अच्छी लगती हैं।”
दीदी हैरानी से मेरी तरफ देख रही थीं। बीयर का एक घूँट लेकर बोलीं, “लेकिन भाई, 45-50 की तो बूढ़ी होती हैं। अच्छा, ये बता, अपने से बड़ी उम्र की लेडीज़ में तुझे ऐसा क्या नज़र आता है जो तुझे वो अच्छी लगती हैं?”
मैंने कहा, “दीदी, मैं सोचता हूँ कि… खैर, जाने दो, आप बुरा मान जाओगी। मेरे ख्यालात जानकर आप सोचोगी, मैं कितना गंदा हूँ।”
“अरे नहीं यार, हर आदमी की अपनी एक पसंद होती है। अब तो तुम्हारी बातों में मुझे भी मज़ा आ रहा है। बोल ना, प्लीज़ बता!” वो मेरा हाथ पकड़कर बोलीं।
“दीदी… बड़ी उम्र की लेडी का बदन, खासकर उनके हिप्स और चेस्ट, बहुत भरे-भरे होते हैं। मुझे बड़े हिप्स और चेस्ट वाली अच्छी लगती हैं।”
“अरे यार, हिंदी में बता ना कि तुझे बड़े चूतड़ और बूब्स वाली पसंद हैं।”
मैं उन्हें देखता रह गया। उनके मुँह से ये सुनकर मेरे लंड ने जोर का झटका खाया। “दीदी… आप… मुझे बेशरम बना कर छोड़ोगी आज,” मैंने कहा। दोस्तों, बेशरमी होती है, पागल, दिल की बात छुपानी नहीं चाहिए।
“कभी किसी बड़ी उम्र की लेडी के साथ कुछ किया भी है, या बस ख्यालों में?” वो झूमते हुए बोलीं।
“नहीं दीदी… अब तक तो कोई नहीं।”
“हाय, मेरा प्यारा भाई, फिर तू क्या करता है?”
“कुछ नहीं, बस ऐसे ही काम चला लेता हूँ।”
“यानी अपना हाथ जगन्नाथ, क्यों?”
“धत… हाँ,” मैं शरमाते हुए बोला।
“रोज़ाना या कभी-कभी?”
“कभी-कभी दीदी।”
“ठीक है, रोज़ाना नहीं करना चाहिए, सेहत खराब हो जाती है।”
“लेकिन क्या करूँ दीदी, कंट्रोल ही नहीं होता। जब भी कोई 28-35 की सुंदर सी औरत देखता हूँ, जी मचल उठता है। अब तो और बुरा हाल है। अब तो रिश्तेदारी की औरत को देखकर भी बुरा हाल हो जाता है। इसीलिए आपके यहाँ भी नहीं आता।”
“क्यों, मेरे यहाँ कौन है? मैं हूँ, मेरी सास है। ननद हमेशा नहीं रहती, फिर?”
“सच बोलूँ?”
“हाँ, भाई?”
“आप… और आपकी सास की वजह से।”
“क्या… तुझे मैं भी… और मेरी सास… हे भगवान! तुझे मैं इतनी अच्छी लगती हूँ… और क्या सोचता है तू हम सास-बहू के बारे में?” वो चीखती सी बोलीं।
मेरी तो गाँड ही फट गई। मैंने कहा, “दीदी, मैंने तो पहले ही कहा था, आप बुरा मान जाओगी।”
वो बोलीं, “अरे नहीं, मेरे प्यारे भाई, मैं तो सोचकर हैरान हूँ कि अब भी मुझमें ऐसी क्या बात है जो तू मुझे पसंद करता है। बता ना, प्लीज़!”
मैंने कहा, “सचमुच बताऊँ दीदी?”
वो बोलीं, “अरे यार, बोल भी अब।”
“दीदी, आप मुझे बहुत सेक्सी लगती हो। आपकी बड़ी-बड़ी चूंचियाँ और चूतड़ देखकर मेरा बुरा हाल हुआ पड़ा है। और मेरे लंड की तो पूछो ही मत… हाय, आपके होंठ, बड़ी-बड़ी आँखें, आपको एकदम कामुक बनाती हैं। मैं ही क्या, कोई 70 साल का बूढ़ा भी देखे, तो पागल हो जाए।” मैं एक ही साँस में सब बोल गया।
“सच में, तुझे इतनी अच्छी लगती हूँ?”
“हाँ दीदी।”
“और क्या-क्या मन करता है तेरा?”
“मेरा दीदी, जब आप खाना बना रही थीं, तो आपको भीगे ब्लाउज और पेटीकोट में देखकर मन किया कि पीछे से आपके चूतड़ों पर से पेटीकोट उठाकर आपकी गाँड चाट डालूँ, आपकी चूंचियाँ पी जाऊँ, आपके होंठों को चूस लूँ, उन पर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ डालूँ। हाय दीदी, आप कितनी प्यारी हो। उफ्फ, कोई भी भाई आप जैसी बहन को जरूर चोदना चाहेगा। देखो मेरे लंड का हाल,” कहते हुए मैंने अपनी लुंगी उतार दी।
दीदी मेरा लंड देखकर बोलीं, “हाय… तेरा लंड तो तेरे जीजा से भी बड़ा है। उनसे ही क्या, अब तक जितने लंड मैंने खाए हैं, सबमें सबसे अच्छा है। हाय! इसे तो मैं अपनी चूत में जरूर लूँगी, मेरे राजा। हाय, इसे मेरे हाथ में तो दे, उफ्फ, कितना चिकना है।” वो मेरा लंड पकड़कर सहलाने लगीं। उनके हाथ लगते ही मैं पागल हो गया। मैंने कहा, “ह्ह्हीीी, दीदी, अपने कपड़े भी तो उतारो ना, प्लीज़।”
वो मेरी आँखों में झाँककर बोलीं, “जिसे जरूरत हो, वो उतारे।”
मैंने उन्हें पकड़कर खड़ा किया और कुर्ता उतार दिया। लुंगी एक झटके में ही खुल गई। अब मेरी बड़ी बहन पूरी नंगी मेरे सामने थी। हम दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। फिर दीदी ने हाथ बढ़ाकर मुझे अपनी तरफ खींच लिया। इस तरह मेरा लंड उनकी चूत से और उनकी चूंचियाँ मेरे सीने से चिपक गईं। वो मेरे गालों को चूमती, काटती, कहती जा रही थीं, “हाय! तू… कहाँ था अब तक, पागल। मुझे पता होता, तो मैं तुझसे पहले ही चुद लेती। मेरे भाई, चोद डाल आज अपनी बहन को और बन जा बहनचोद। हाय, कितने दिनों बाद आज जवान लंड मिलेगा। ह्ह्हीीी, आज तो बस रात भर चोद मुझे, जैसे चाहे चोद।”
“हाँ… दीदी… आज जी भर… कर… चोदूँगा तुम्हें… हाय, तुम्हारी चूत पहले तो चाटूँगा, फिर चोदूँगा… (चूमते हुए) पुच-पुच चाटने दोगी ना दीदी?”
“हाँ मेरे राजा… तुम चूत चाटो। मैं तुम्हारा लंड चूसूँगी।”
हम एक-दूसरे को चूमते रहे। थोड़ी देर बाद दीदी मुझे बेड पर ले गईं और लिटा दिया। मेरा लंड छत की तरफ तना हुआ था। वो अपने दोनों पैर मेरे मुँह की तरफ करके मेरा लंड चूमने लगीं। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया। उउउम्म्म्म… उनके मुँह का गीलापन महसूस करके मैं सिसक पड़ा। उनकी चूत ठीक मेरे मुँह के पास थी। उफ्फ, क्या चूत थी! मस्त मोटे होंठों वाली, फूली हुई। मैंने पहले तो उनकी चूत पर एक किस किया। वो उछल पड़ीं, पर मेरा लंड मुँह से नहीं निकाला। फिर मैंने अपनी पूरी जीभ बाहर निकालकर उनकी चूत पर फिराई, ऊपर से नीचे तक। दीदी बोलीं, “हाय, कितना प्यारा लंड है तेरा, उउउम्म्म… पुुुच्।”
मैंने कहा, “हाय दीदी, आपकी चूत भी बड़ी नमकीन है। जी करता है, खा जाऊँ।”
“तो खा ले ना साले, रोक कौन रहा है,” दीदी बोलीं।
“हाँ मेरी जान, दीदी, मेरी रंडी बहन, खाऊँगा तेरी चूत को। तू भी मेरा लंड चूस साली।”
“साले, मादरचोद, मुझे रंडी बोल रहा है, रंडी की औलाद। साले, तेरी माँ की चूत ले, तेरा सारा रस चूस जाऊँगी।”
“हाय… चूस ले साली। मैं रंडी की औलाद हूँ, तो तू भी तो उसी की हुई ना? उउउफ्फ… क्या चिकनी चूत है तेरी।”
ऐसे ही गालियाँ बकते हुए हम एक-दूसरे के लंड और चूत को चूसते रहे। फिर दीदी बोलीं, “हाय अविनाश, अब चोद डाल मुझे। मेरी चूत में बहुत खujली हो रही है। अपने इस मोटे लंड से मेरी चूत की प्यास बुझा दे, मेरे हरामी भाई।”
दीदी सीधी होकर लेट गईं। मैंने एक तकिया उनकी गाँड के नीचे लगाया और उनकी टाँगों के बीच में बैठ गया। मैंने अपना लंड हाथ से पकड़कर उनकी चूत पर रगड़ने लगा। दीदी सिसकारी लेकर कहने लगीं, “अरे बहनचोद, तड़पा क्यों रहा है? चोद ना, कुत्ते, चोद मुझे। देख नहीं रहा कि मैं चूत की खujली से मरी जा रही हूँ।”
मैंने कहा, “लो दीदी,” और अपना लंड उनकी चूत के मुँहाने पर रखकर एक झटका मारा। मेरा सुपाड़ा उनकी चूत में घुस गया। वो तड़प उठीं और बोलीं, “उउउउईई… माँ, मर गई साले। मैं तेरी बहन हूँ, जरा आराम से नहीं चोद सकता? रंडी ही समझ लिया क्या? अरे अविनाश भाई, जरा धीरे-धीरे, आराम से चोद। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ।”
मैंने एक और झटका मारा और अपना सारा लंड दीदी की चूत में घुसेर दिया। मैंने उनसे कहा, “हाय… साली, नखरे तो ऐसे कर रही है, जैसे पहले कभी तेरी चूत चूदी ही न हो। साली, इतने बड़े बच्चे क्या बिना चूत में लंड लिए पैदा कर दिए?” मैं धक्के मारता हुआ बोला, “साली, अब तक पता नहीं कितने लंड खा चुकी अपनी चूत से। हाय, मेरे लंड से जान निकल रही है। ह्ह्हीीी… मैं भी क्या करूँ, तेरी चूत ही ऐसी प्यारी है, कामिनी, कि मैं अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ।”
“अअअअ… उउउईई… गाँडू… लंड तो मैंने बहुत खाए हैं… पपप्पार… तेरा लंड… उउउईई… माँ… सीधा मेरी चूत की जड़ पर टकरा रहा है। और पहला धक्का भी तो तूने जोर से मारा था। चल, अब चोद मुझे। और आज मैं देखती हूँ, कितना दम है तेरे लंड में। हाय…”
मैं उनकी चूंचियाँ दबाते हुए चोदने लगा। उनके होंठों को चूसते हुए मैंने कहा, “दीदी, अब तक कितने लंडों से चुदवा चुकी हो?”
दीदी बोलीं, “अरे मेरे राजा भैया, अब तो गिनती भी याद नहीं। तेरे जीजा जी बहुत चुदक्कड़ आदमी हैं। अब भी वो रोज़ मुझे चोदते हैं। मुझे भी उन्होंने अपनी बना लिया है। वो कहते हैं, चूत और लंड का मज़ा हर आदमी और औरत को दिल खोलकर लेना चाहिए। हमारे यहाँ सब चोदू हैं। मेरी सास, ससुर, ननद भी। और तो और, तुम यकीन नहीं करोगे, मेरे ससुर मुझे हफ्ते में तीन-चार बार चोद डालते हैं।”
ये सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया और उनकी चूत पर धक्के मारता हुआ बोला, “और दीदी, आपकी सास?”
दीदी बोलीं, “मुझे पता है, तेरी नज़र मेरी सास पर है। चुदवा दूँगी उसको भी तुझसे। तेरे लंड को देखकर तो वो पागल हो जाएगी।”
मैंने कहा, “सच दीदी? और बताओ ना, अपनी फैमिली के बारे में। बड़ा मज़ा आ रहा है तुझे चोदते हुए सुनने में। ह्ह्हीीी… मेरी जान, बता ना!”
तब दीदी बोलीं, “तो सुन… उउउम्म्म… मेरी चूंची भी चूसता जा… हाँ… ऐसे ही… ह्ह्हीीी… तेरा लंड बहुत मज़ेदार है। मुझे तुझसे चुदवाने में बहुत मज़ा आ रहा है। और चोद, जोर-जोर से चोद मुझे। तेरे जीजा को गाँड मारने और मरवाने का बड़ा शौक है। जब भी मेरी ननद अपने पति के साथ आती है, तो तेरे जीजा उनके पति की गाँड मारते हैं। ननद मेरे ससुर से चुदवाती है, और सास को उनका दामाद चोदता है। और मुझे भी। वैसे अक्सर बाप-बेटे एक-दूसरे की गाँड मारते हैं। जब ससुरजी मुझे चोदते हैं, तो तेरे जीजा उनकी गाँड मारते हैं। और जब तेरे जीजा अपनी माँ को चोदते हैं, तब ससुरजी उनकी गाँड मारते हैं।”
“हाय दीदी, तुम्हारे घर में तो मस्त माहौल है।”
दीदी बोलीं, “हाँ। पिछली बार जब मम्मी आईं, तो तेरे जीजा और मेरे ससुर ने उन्हें भी चोदा था।”
“क्या… मम्मी को भी? मम्मी तो बहुत बिगड़ी होंगी?”
दीदी अपनी कमर उछकाते हुए बोलीं, “अरे नहीं, शुरू-शुरू में थोड़ा नाराज़ हुईं। फिर मेरी सास को तेरे जीजा से चुदवाते देखा, तो उनकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया। फिर तो वो खूब चुदवाई दोनों से।”
“हाय दीदी, मम्मी की चूत कैसी थी? तुम्हारी तरह थी? तुमने तो देखी होगी।”
“देखी! मैंने और मेरी सास ने खूब चाटी थी उनकी चूत। उफ्फ, क्या मस्त चूत थी साली की। जब वो मेरे खसम से चुदवा रही होतीं, मैं तब भी चाटती रहती थी… ह्ह्हीीी… अब मैं झड़ने वाली हूँ। और जोर से चोद, साले, कुत्ते, मादरचोद, चोद अपनी बहन को… चोद… फाड़ दे मेरी चूूूत…”
“ले… साली… हरामजादी… मेरी लुगाई… मैं भी झड़ने वाला हूँ… तेरी चूूत में गिराऊँ अपना माल या बाहर?”
“मेरे मुँह में दे… तेरा रस पीऊँगी…”
मैंने उनकी चूत से लंड निकाला। वो मेरे लंड पर टूट पड़ीं और चूसने लगीं। मैं उनके मुँह में धक्के मारता हुआ चिल्लाया, “उउउईई… खा जा साली, मेरी रंडी बहन, अपने भाई का लंड से चूस ले मेरा सारा रस… उउउम्म्म… हाय…” मेरे लंड से पिचकारी सी दीदी के मुँह में गिरने लगी, जिसे वो चूसने लगीं। दीदी ने मेरे लंड का सारा पानी एक-एक बूँद निचोड़ डाला। फिर चटखारे लेते हुए अपने होंठों से मेरा लंड आज़ाद करके बोलीं, “हाय… बड़ा मज़ेदार है तेरा रस, साले। मज़ा आ गया।” फिर वो मेरे होंठों को चूमकर बोलीं, “हाय, मज़ा आया मेरे राजा भैया, साले।”
मैंने कहा, “हाँ, मेरी चुदक्कड़ रानी बहन, बहुत मज़ा आया तुझे चोद के!”
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