नौकरानी की गर्म बुर ने मेरी वर्जिनिटी तोड़ दी

Maid sex story – Naukrani ki chudai sex story: हैलो दोस्तों, मेरा नाम राघव है और मैं पुणे में रहता हूँ। साल 2017 था, मैं और मेरी नौकरानी चंचल दोनों ही बीस साल के थे। चंचल गाँव से हमारे घर काम करने आई थी, बचपन से हमारे साथ ही बड़ी हुई थी, इसलिए हम दोनों के बीच कोई परदापन नहीं था।

उसकी जवानी अब पूरी तरह खिल चुकी थी। साँवली-गोरी रंगत, भरी-भरी चूचियाँ, चौड़े चूतड़ और पतली कमर, कोई भी देखता तो लंड खड़ा हो जाता। मैं भी अब पूरा जवान हो चुका था, दोस्तों से चुदाई की सारी बातें सुन-सुन कर मेरा मन बेकाबू रहता था, पर किसी लड़की के साथ मौका नहीं मिला था।

हर सुबह जब चंचल झाड़ू-पोंछा लगाती, मैं चुपके से उसकी झुकती चूचियों को घूरता। रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे उसी के नाम की मुठ्ठ मारता और सोचता कि कब मौका मिलेगा।

एक बार चंचल तीन महीने के लिए गाँव गई। लौटी तो उसकी शादी पक्की हो चुकी थी। अब वो सलवार-कमीज छोड़ साड़ी पहनने लगी थी। साड़ी में उसकी कमर और भी पतली, चूचियाँ और भी उभरी हुई लगती थीं। ब्लाउज़ इतना टाइट कि चूचियाँ जैसे बाहर कूदने को बेताब हों। चलती तो गोल-गोल चूतड़ मटक-मटक कर लंड में आग लगा देते।

वापस आने के बाद चंचल का व्यवहार ही बदल गया। वो मेरे आसपास ज्यादा घूमने लगी, काम करते वक्त जानबूझकर झुकती, पल्लू सरक जाता तो गहरी कट देखकर मेरी साँसें अटक जातीं। मैं भी अब खुलकर उसके माल की तारीफ करने लगा था।

इसे भी पढ़ें  गाँव वाली काकी को चुदवाते हुए पकड़ा

फिर एक दिन मौका खुद चलकर आया। मम्मी-पापा को किसी रिश्तेदार की शादी में पूरे हफ्ते के लिए बाहर जाना था। घर में सिर्फ मैं और चंचल। घरवालों को हम पर जरा भी शक नहीं था, वो बेफिक्र चले गए।

पहले दिन कॉलेज से लौटा तो गर्मी जोरों पर थी। चंचल रसोई में सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। पेटीकोट कमर में खोंसा हुआ था, उसकी गोरी कमर और गोल-मटोल चूतड़ देखकर मेरा लंड पैंट में उछलने लगा।

मैं ड्राइंग रूम में बैठ गया, चंचल खाना लेकर आई। उसने गले वाला पुराना ब्लाउज़ पहना था, आधी चूचियाँ बाहर झलक रही थीं, गुलाबी ब्रा भी साफ दिख रही थी। वो मेरे सामने सोफे पर बैठी तो पेटीकोट जाँघों तक खिसक गया, चिकनी-चिकनी जाँघें देखकर मैं पागल होने को हो गया।

वो टाँगें फैलाकर बैठी थी, बीच में हल्का सा गीला निशान दिख रहा था। मैं खाना खाते-खाते बस उसे ही देख रहा था। चंचल मुस्कुराई और बोली, “और कुछ चाहिए राघव बाबू?”

मैंने सर हिलाया। खाना खत्म कर कमरे में चला गया। चंचल पीछे-पीछे आ गई और दरवाजा बंद कर दिया।

“क्या हुआ, खाना अच्छा नहीं लगा?” उसने पूछा। “नहीं चंचल, खाना तो बहुत अच्छा था,” मैंने कहा। “तो फिर इतनी जल्दी कमरे में क्यों भागे? जो देखा वो पसंद नहीं आया?” यह कहते हुए उसने पेटीकोट के ऊपर से अपनी बुर पर हाथ फेरा।

बस इतना काफी था। मैं उठा और उसका हाथ पकड़कर खींच लिया। चंचल मेरी बाहों में थी, उसकी गर्म साँसें मेरे गले पर लग रही थीं। मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए, वो भी पूरा साथ देने लगी।

इसे भी पढ़ें  माँ बेटे का प्यार और संस्कार भाग 2

मैंने उसका ब्लाउज़ खोला, ब्रा ऊपर उठाई तो दो बड़े-बड़े रसीले बूब्स बाहर आ गए। गुलाबी निप्पल तने हुए थे। मैंने एक चूची मुँह में ली और जोर-जोर से चूसने लगा, दूसरी को हाथ से मसल रहा था। चंचल की सिसकियाँ शुरू हो गईं, “आह्ह राघव… ह्ह्ह… जोर से… आह्ह्ह”

फिर मैंने उसका पेटीकोट खोला। कोई पैंटी नहीं थी। चंचल की चूत एकदम चिकनी और गीली थी। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी टाँगें चौड़ी कर दीं। उसकी बुर को जीभ से चाटने लगा, ऊपर से नीचे तक। चंचल तड़प उठी, “आअह्ह्ह्ह… राघव… उइइई… क्या कर रहे हो… आह्ह्ह्ह… मर जाऊँगी… ह्ह्ह्हीईई”

उसका सारा रस मेरे मुँह में था। मैंने दो उँगलियाँ उसकी बुर में डालीं और तेजी से अंदर-बाहर करने लगा। चंचल की कमर ऊपर उठने लगी, वो चादर पकड़कर जोर-जोर से चिल्ला रही थी, “आह्ह्ह… बस… और तेज… फाड़ दो आज… ऊऊईईई”

अब मेरा लंड फटने को था। मैंने पैंट उतारी, सात इंच का मोटा लंड तना हुआ था। चंचल ने उसे हाथ में लिया और प्यार से सहलाने लगी। फिर झुककर मुँह में ले लिया। “ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग… गी… गी… गों… गों…” वो पूरा लंड गले तक ले रही थी। मैं उसका सिर पकड़कर धक्के मारने लगा।

बस अब और नहीं सहा जाता था। मैंने चंचल को घोड़ी बनाया, उसकी कमर पकड़ी और एक जोरदार झटका मारा। मेरा पूरा लंड उसकी गर्म बुर में समा गया। चंचल चीखी, “आअह्ह्ह्ह… राघव… मर गई… आह्ह्ह… बहुत मोटा है… धीरे…”

पर मैं कहाँ रुकने वाला था। मैंने कमर पकड़कर जोर-जोर से ठोकना शुरू कर दिया। चंचल की चूचियाँ लहरा रही थीं, उसकी चीखें पूरे कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… ह्ह्ह… और जोर से… फाड़ दो मेरी बुर… आह्ह्ह्ह… आज से तेरी रंडी हूँ मैं… ऊईईई”

इसे भी पढ़ें  भाभी ने भाई बहन को चुदाई का खेल खिलाया

मैंने उसे पलटकर मिशनरी में लिया, उसकी टाँगें कंधों पर रखीं और और गहराई तक घुसाने लगा। चंचल की आँखें पलट चुकी थीं, वो बस चिल्ला रही थी, “ह्ह्हीईई… बस… आ गया… आह्ह्ह्ह… झड़ रही हूँ… ऊउइइइ” उसकी बुर ने मेरे लंड को जोर से जकड़ लिया और वो झड़ गई।

मैं भी अब कंट्रोल नहीं कर पाया। आखिरी तेज-तेज धक्के मारकर मैंने उसकी बुर के अंदर पूरा माल उड़ेल दिया। हम दोनों पसीने से तर, एक-दूसरे से लिपटकर लेटे रहे।

उसके बाद पूरे हफ्ते हमने घर के हर कोने में चुदाई की। किचन में, बाथरूम में, सोफे पर, बालकनी में। चंचल की शादी होने से पहले मैंने उसकी बुर का पूरा रस निचोड़ लिया। आज भी जब वो कभी आती है, हम चुपके से एक-दूसरे को चोदते हैं।

Leave a Comment