कुंवारी बहन को ट्रेन में चोदा

मेरी पिछली कहानी: गोवा में माँ को चोदा

दोस्तो, ये भेनचोद भाई की सेक्स कहानी मेरे एक दोस्त की है। उसी के शब्दों में सुनिए।

मेरा नाम यासीन है, और ये मेरी पहली कहानी है। अगर कुछ गलती हो जाए, तो माफ करना, मगर भेनचोद भाई की सेक्स कहानी का मज़ा ज़रूर लेना। मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, अब नागपुर में जॉब करता हूँ, एक कॉलेज में पढ़ाता हूँ। मेरे घर में तीन लोग हैं—मैं, मेरी अम्मी और मेरी छोटी बहन नज़मा। मेरे अब्बू अब इस दुनिया में नहीं हैं। मैं 26 साल का हूँ, मास्टर डिग्री कर चुका हूँ। नज़मा 22 की है, उसने बेचलर डिग्री पूरी की है। वो जवान, हसीन, और गदराई हुई है। उसकी चूचियाँ 34डी, कमर 28 और गाँड 36 इंच की है। गोरी, नशीली आँखों वाली, एकदम माल। उसकी चाल में एक ठुमका है, जो किसी का भी लंड खड़ा कर दे।

ये कहानी दो साल पुरानी है, जब मैं छुट्टियों में घर आया था। गर्मियों की दोपहर थी, धूप में सब सुस्त पड़े थे। घर पहुँचते ही अम्मी ने मुझे बिठाया और चाय के साथ बात शुरू की। बोलीं, “यासीन, नज़मा के लिए कोई अच्छा लड़का देख, इसकी शादी कर दे।” मैं चौंका, “अम्मी, अभी तो नज़मा और पढ़ना चाहती है।” अम्मी ने सख्त लहजे में कहा, “बस, बहुत पढ़ लिया। ये लड़की किसी लड़के से मिलती है, कहीं नाक न कटा दे।” मैंने पूछा, “क्या बात है? कुछ हुआ है?” अम्मी ने बताया कि नज़मा को किसी लड़के के साथ देखा गया है, मोहल्ले में बातें होने लगी हैं। मैंने कहा, “ठीक है, मैं उससे बात करता हूँ।”

शाम को नज़मा घर लौटी। उसने टाइट कुर्ता और सलवार पहनी थी, जिससे उसकी चूचियाँ और गाँड उभरकर सामने आ रहे थे। मैंने उसे बुलाया, “नज़मा, अम्मी कह रही हैं तू किसी लड़के से मिलती है। सच बता, क्या चक्कर है?” वो गुस्से में बोली, “भाई, अम्मी बेकार शक करती हैं। मेरा कोई चक्कर नहीं। मैं तो आगे पढ़ना चाहती हूँ।” मैंने पूछा, “तो शादी या पढ़ाई, क्या चाहती है?” वो बोली, “पढ़ाई।” मैंने कहा, “अम्मी यहाँ पढ़ने नहीं देंगी। मेरे साथ नागपुर चल, वहाँ एडमिशन करा दूँगा।” वो खुश हो गई, “ठीक है, भाई। तुम अम्मी से बोल दो।”

मैंने अम्मी को मना लिया। वो बोलीं, “ठीक है, पर इसका ध्यान रखना, कोई गलत काम न करे।” मैंने हामी भरी। नज़मा को ये बात बताई तो वो खुशी से मेरे गले लग गई। उसकी चूचियाँ मेरी छाती से टकराईं, मुलायम, भारी, गर्म। मैंने उसकी कमर पकड़ी, उसका बदन रसीला था, जैसे कोई फल हाथ में आ गया। उसने भी अपनी चूचियों को मेरे सीने पर रगड़ा, जैसे जानबूझकर उकसा रही हो। उसकी आँखों में एक चमक थी, जैसे कह रही हो, “भाई, मैं तैयार हूँ।” मुझे शक हुआ कि ये चुदने को मचल रही है। उसकी जवानी पूरे शबाब पर थी, और उसकी हर अदा में आग थी।

कुछ दिन घर पर रहा। नज़मा रोज मेरे आसपास मंडराती, कभी चाय लाती, कभी मज़ाक करती। एक दिन उसने टाइट टी-शर्ट पहनी, जिसमें उसके निप्पल साफ दिख रहे थे। वो जानबूझकर मेरे सामने झुकती, अपनी चूचियाँ दिखाती। मैं समझ गया, ये मुझे ललचा रही है। मगर मैंने खुद को रोका, सोचा पहले उसका इरादा पक्का कर लूँ।

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फिर वो दिन आया जब हमें नागपुर जाना था। मैंने चुपके से गोवा की टिकट बुक कर रखी थी, अपनी गर्लफ्रेंड के साथ हनीमून का प्लान था। मगर वो नहीं आ सकी, और नज़मा मेरे साथ थी। टिकट कन्फर्म नहीं हुए, हमें एक ही सीट मिली। ट्रेन में बैठे, नज़मा मेरे बगल में थी। उसने लो-कट कुर्ता पहना था, जिसमें उसकी चूचियों की दरार साफ दिख रही थी। मैं उसे देखता रहा, वो मुस्कुराकर बोली, “क्या देख रहे हो, भाई?” मैंने हँसकर कहा, “तुझे।”

टीटीई आया, “मिस्टर एंड मिसेज़ यासीन, गोवा जा रहे हैं?” मैंने हँसकर कहा, “हाँ, गोवा ही जा रहे हैं।” टीटीई के जाने बाद नज़मा चौंकी, “ये क्या चक्कर है, भाई?” मैंने बताया, “मेरी गर्लफ्रेंड के साथ गोवा जाना था, पर अब तू है।” वो बोली, “सॉरी भाई, मगर तुम मेरे साथ गोवा चल सकते हो।” मैंने मज़ाक किया, “लोग गोवा बीवी या माशूका के साथ जाते हैं, बहन के साथ नहीं।” वो हँसी, “तो मुझे बीवी बना लो।” मैंने कहा, “तू कहीं से बीवी नहीं लगती।” वो इठलाई, “फिर माशूका बना लो न।”

मैंने सोचा, ये इतना खुलकर बोल रही है, टटोल लूँ। पूछा, “तुझे पता है माशूका और आशिक के बीच क्या होता है?” वो बिंदास बोली, “सब कुछ, और आखिर में चुदाई। भाई, तुमने मेरे लिए इतना किया, मैं तुम्हारे लिए चुदाई भी कर दूँगी।” मैं हैरान था। फिर भी उसे और खोलने की कोशिश की, “मुझे फ्रेश माल चाहिए, किसी की चुदी चूत नहीं।” वो बोली, “अगर मैं कुँवारी न निकली, तो जिंदगी भर तुम्हारी रंडी बनकर रहूँगी। जिससे कहोगे, चुदवा लूँगी।”

मैंने कहा, “अगर तू कुँवारी निकली, तो मेरी बीवी बनेगी। कोई एतराज?” वो बोली, “ये मेरा सौभाग्य होगा।” फिर उसने मज़ाक में कहा, “गोवा में बिकिनी पहननी पड़ती है, मेरे नाप की खरीद देना।” मैंने पूछा, “तेरा नाप क्या है?” वो हँसी, “जब तुम्हारे लंड से चुदूँगी, तब नाप लेना।” अब साफ था—नज़मा मेरे लंड की भूखी थी।

रात हो गई। कम्पार्टमेंट की लाइटें बंद हुईं। हमने चादर ओढ़ ली, एक-दूसरे की तरफ मुँह करके लेट गए। ट्रेन की खटपट और ठंडी हवा ने माहौल को और गर्म कर दिया। मैंने नज़मा को चूमना शुरू किया। उसके होंठ रसीले, गर्म, जैसे शहद में डूबे हों। मैंने उसकी जीभ चूसी, वो मेरी जीभ से लिपट गई। उसकी साँसें तेज थीं, मेरे सीने पर उसकी चूचियाँ दब रही थीं। पांच मिनट तक हम एक-दूसरे को चूमते रहे, जैसे कोई प्यासा कुँए पर लिपट गया हो।

मैंने उसकी चूचियों को कुर्ते के ऊपर से दबाना शुरू किया। ब्रा के नीचे उसके मम्मे सख्त, भरे हुए थे। मैंने निप्पल पकड़े, हल्का मसला। वो सिसकारी, “आह, जान, क्या कर रहे हो…” मैंने कहा, “चुप रंडी, जान बोल, भाई मत बोल। कोई सुन लेगा।” मैंने उसकी सलवार में हाथ डाला। उसकी पैंटी गीली थी, चूत गर्म, जैसे भट्टी जल रही हो। मैंने उसकी चूत की फांकों को मसला, क्लिट रगड़ा। वो तड़पने लगी, उसकी साँसें और तेज हो गईं।

कुछ ही मिनट में उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मेरा हाथ गीला हो गया। मैंने उसे चाटकर साफ किया, नमकीन स्वाद मेरे मुँह में फैल गया। नज़मा झड़कर रिलैक्स हो गई थी। मैंने कहा, “तेरा तो हो गया, मेरा क्या?” वो बोली, “जो कहोगे, कर दूँगी।” मैंने कहा, “मुझे चोदना है।” वो डरी, “यहाँ नहीं, पहली बार है, दर्द होगा। खून भी निकलेगा, सब गंदा हो जाएगा।” मैंने कहा, “फिर कैसे करेगी?” वो बोली, “चूत में लंड डालने के अलावा जो कहोगे, करूँगी।”

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मैंने कहा, “लंड मुँह में ले और चूस। तू अपनी चूत मेरे मुँह पर रख, मैं भी मज़ा लूँ।” वो मान गई। हम 69 की पोजीशन में आ गए। चादर ओढ़कर मैंने उसकी सलवार और पैंटी नीचे सरकाई। उसकी चूत की खुशबू मेरे नाक में चढ़ी, गीली, मादक। मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और चूत चाटना शुरू किया। उसकी फांकें मुलायम, रसीली थीं। मेरी जीभ उसके क्लिट पर नाचने लगी, वो सिसकारियाँ लेने लगी।

उधर नज़मा ने मेरे लोअर और चड्डी नीचे की, मेरा लंड हाथ में लिया। मेरा 7 इंच का लंड तनकर लोहे की रॉड जैसा था। उसने उसे मुँह में लिया, गर्म होंठों से चूसना शुरू किया। उसकी जीभ मेरे टोपे पर फिर रही थी, जैसे कोई आइसक्रीम चाट रहा हो। मैं अपनी गाँड हिलाकर लंड उसके मुँह में अंदर-बाहर करने लगा। उसका मुँह तंग था, मगर वो लंड को गले तक लेने की कोशिश कर रही थी। मुझे मज़ा आ रहा था, जैसे स्वर्ग मिल गया हो।

पांच मिनट तक चुसाई चली। नज़मा फिर झड़ने वाली थी। उसकी चूत अकड़ने लगी, मैंने चाटना तेज किया। वो तड़पकर बोली, “जान, चूसो न, रुक क्यों गए?” मैंने कहा, “अब मुँह से नहीं होगा, लंड डाल दूँ?” वो बोली, “डाल दे, मगर दर्द होगा। मेरी पैंटी मेरे मुँह में ठूंस दो, ताकि चीख न निकले।”

मैंने उसकी सलवार और पैंटी पूरी उतार दी। उसकी गोरी चूत चमक रही थी, छोटी-सी झांटों से सजी। मैंने उसकी पैंटी उसके मुँह में ठूंस दी। उसे नीचे लिटाया, उसकी टाँगें फैलाईं। मेरा लंड उसकी चूत की फांकों पर रगड़ने लगा। मैंने कहा, “अब झेल, मैं पेल रहा हूँ।” उसने ‘हूँ’ की आवाज़ निकाली। मैंने एक जोरदार धक्का मारा। मेरा लंड उसकी कुँवारी चूत की झिल्ली फाड़ता हुआ आधा अंदर घुस गया। वो तड़पी, मगर पैंटी की वजह से चीख दबी रही।

मैंने एक और धक्का मारा। मेरा पूरा लंड उसकी चूत में जड़ तक समा गया। उसकी चूत तंग थी, गर्म, जैसे मेरे लंड को जकड़ रही हो। मैं रुका, उसकी चूचियों को सहलाने लगा। उसकी सख्त चूचियाँ मेरे हाथों में मसल रही थीं, निप्पल कड़क हो गए थे। मैंने उसके निप्पल चूसे, जीभ से चाटे। वो कराह रही थी, दर्द और मज़े में डूबी हुई। मैंने उसकी गर्दन चूमी, उसके कानों में फुसफुसाया, “मेरी रंडी, कैसा लग रहा है मेरा लंड?” वो पैंटी के पीछे से कराही, “आह, जान, फाड़ डाला।”

कुछ देर बाद वो ठीक हुई। मैंने पैंटी उसके मुँह से निकाली। वो बोली, “साले बहनचोद, फाड़ दी मेरी चूत।” मैंने चूमते हुए कहा, “साली रंडी, तेरी चूत तो फटनी ही थी। मेरे लंड से फटी, तो क्या हुआ?” वो दर्द में हँसी। मैंने पूछा, “कैसा लग रहा है?” वो बोली, “तेरा लंड मोटा है, मेरी चूत को चीर डाला।” मैंने एक ठोकर मारी, “कितना अंदर घुसा, मेरी जान?” वो मुझे लिपटकर बोली, “आह, बस चोदते रह, जान।”

मैंने धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसकी चूत गीली थी, मगर तंग। हर धक्के में उसकी चूत मेरे लंड को निचोड़ रही थी। मैंने उसकी चूचियाँ मसलीं, एक निप्पल मुँह में लिया, दाँतों से हल्का काटा। वो सिहर उठी, “आह, जान, धीरे…” मैंने दूसरी चूची दबाई, उसका मम्मा मेरे हाथ में समा नहीं रहा था। उसकी चूत अब और गीली हो गई थी, मेरे लंड को चिकना कर रही थी। मैंने स्पीड बढ़ाई, हर धक्के में मेरी जाँघें उसकी गाँड से टकरातीं, थप-थप की आवाज़ होती।

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मैंने उसे घोड़ी बनाया। उसकी गोरी गाँड मेरे सामने थी, गोल, रसीली। मैंने उसकी गाँड पर थप्पड़ मारा, “क्या माल है, साली।” वो हँसी, “चोद न, बहनचोद।” मैंने लंड उसकी चूत में पीछे से पेला। इस पोजीशन में उसकी चूत और तंग लग रही थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और धक्के मारने शुरू किए। हर धक्के में उसकी गाँड लहराती, जैसे कोई समंदर उठ रहा हो। मैंने उसकी गाँड को मसला, उंगलियाँ उसकी गाँड की दरार में फिराईं। वो सिसकारियाँ ले रही थी, “आह, जान, फाड़ दे मेरी चूत…”

मैंने उसकी चूत को और गहराई से चोदा, मेरा लंड उसकी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था। मैंने उसकी गाँड में उंगली डाली, हल्का-हल्का अंदर-बाहर किया। वो तड़पी, “जान, ये क्या कर रहा है…” मैंने कहा, “तेरी गाँड भी मारूँगा, रंडी।” वो बोली, “आह, अभी चूत ही ले ले, गाँड बाद में।” मैंने उसकी चूचियाँ पकड़ीं, पीछे से मसलीं, और धक्के मारते रहा। उसकी चूत मेरे लंड को निचोड़ रही थी, जैसे दूध निकाल रही हो।

दस मिनट की चुदाई के बाद मैं झड़ने वाला था। मैंने कहा, “नज़मा, मेरा निकलने वाला है।” वो बोली, “अंदर ही छोड़ दे, मैं गोली खा लूँगी।” मैंने स्पीड बढ़ाई, और हम दोनों एक साथ झड़ गए। मेरा गरम माल उसकी चूत में भरा गया, जैसे कोई नदी उफान पर आ गई हो। उसकी चूत ने मेरे लंड को निचोड़ लिया, जैसे आखिरी बूंद तक पी लेना चाहती हो। हम हाँफते हुए लेट गए।

मैंने पूछा, “मज़ा आया?” वो बोली, “बहुत मज़ा आया, मगर तू सच्चा बहनचोद है। ट्रेन में ही चोद डाला।” मैंने हँसकर कहा, “तेरी चूत ने मुझे बहनचोद बना दिया। अब बता, हनीमून पर गोवा चलें, या नागपुर रूम पर?” वो बोली, “हनीमून, गोवा। वहाँ खुलकर मज़ा लेंगे। नागपुर में इतना मज़ा नहीं आएगा।”

मैंने नज़मा को चूमा, उसके होंठ फिर से चूसे। हम एक-एक करके बाथरूम गए, खुद को साफ किया। ट्रेन की खटपट में हमारी चुदाई का राज छिप गया। गोवा में हमारा हनीमून बाकी था, जहाँ मैं अपनी बहन को और मज़े से चोदने वाला था। वो रात मेरे लिए जन्नत थी, और नज़मा मेरी माशूका बन चुकी थी।

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