सिनेमा हॉल में अपना लण्ड दीदी के हाथों में पकड़ा दिया

मेरा नाम दीपक है, और मैं शुरू से ही सेक्स का दीवाना रहा हूँ। मैंने अपनी 20 साल की उम्र में कई देसी लड़कियों और आंटियों की गीली चूत को अपने तगड़े लंड से चोदा है। लेकिन जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो मेरे और मेरी दीदी के बीच की है। दीदी शादीशुदा हैं, और ये घटना तब की है जब मैं जवान था और दीदी अपने मायके आई थीं। मेरे घर में चार लोग थे—मम्मी, पापा, मैं, और दीदी। पापा ज्यादातर बाहर रहते थे, तो घर में मम्मी, मैं, और दीदी ही थे। दीदी को मायके आए हुए 10 दिन हो चुके थे। उनका फिगर कमाल का था—32-27-37, रंग थोड़ा सांवला, लेकिन बदन ऐसा कसा हुआ कि किसी का भी लंड खड़ा हो जाए। उनकी उम्र उस वक्त 25-26 साल थी।

उस दिन दोपहर को मैं घूमकर घर लौटा। दीदी हॉल में बैठी थीं, नीली सलवार-कमीज में, जो उनके बदन से चिपकी हुई थी। उनके चुंचे कमीज के ऊपर से उभरे हुए थे, और उनकी कमर का कर्व देखकर मन में हल्का सा ख्याल आया। दीदी ने मुझे देखा और बोलीं, “दीपक, बोर हो रही हूँ। चल, कहीं घूमने चलते हैं।” मैंने कहा, “दीदी, मम्मी से पूछ लो।” दीदी ने मम्मी से बात की, और मम्मी ने हाँ कर दी। मैंने सोचा, चलो, दीदी के साथ टाइम पास हो जाएगा। उस वक्त मेरे मन में दीदी के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था। मैंने जींस और टी-शर्ट पहनी, और दीदी तैयार होकर आईं। उनकी सलवार-कमीज टाइट थी, और जैसे ही वो चलीं, उनकी गांड का उभार साफ दिख रहा था।

मैंने अपनी बाइक निकाली, और दीदी को पीछे बिठाया। ये पहली बार था जब मैंने दीदी को अपनी बाइक पर बिठाया। दीदी ने दोनों तरफ पैर किए और मेरे से पूरी तरह चिपककर बैठ गईं। उनके मुलायम चुंचे मेरी पीठ पर दब रहे थे, और उनकी जांघें मेरी कमर से सटी थीं। मैंने बाइक स्टार्ट की, और जैसे ही हम चले, दीदी के चुंचों का दबाव मेरी पीठ पर और बढ़ गया। मेरा लंड धीरे-धीरे टाइट होने लगा। मैंने सोचा, “ये क्या हो रहा है? दीदी के साथ ऐसा कैसे फील हो रहा है?” लेकिन उस वक्त मैंने अपने मन को काबू किया।

रास्ते में दीदी ने कहा, “दीपक, चल ना, सिनेमा देखते हैं।” मैंने कहा, “ठीक है, दीदी।” सिनेमा हॉल हमारे घर से थोड़ा दूर था। रास्ते में हम बातें करते रहे। दीदी ने बताया कि उनका पति बाहर रहता है, और वो यहाँ बोर हो रही थीं। उनकी आवाज में एक अजीब सी बेचैनी थी, जो मुझे तब समझ नहीं आई। मैंने बाइक की स्पीड बढ़ाई, और दीदी और टाइट चिपक गईं। उनके चुंचे अब मेरी पीठ पर रगड़ रहे थे, और मेरा लंड पैंट में तंबू बन गया। मैंने सोचा, “क्या करूँ? दीदी के साथ ऐसा सोचना गलत है।” लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था।

सिनेमा हॉल पहुंचे तो वहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी। शायद 25-30 लोग ही थे। हमने बालकनी के टिकट लिए और कोने की सीट पर बैठ गए। बालकनी में हम अकेले थे। लाइट्स बंद हुईं, और फिल्म शुरू हो गई। फिल्म रोमांटिक थी, और कुछ सीन में हीरो-हीरोइन के बीच गर्मागर्म सीन आने लगे। मैं दीदी की तरफ देखा, वो चुपचाप स्क्रीन देख रही थीं। उनकी सांसें थोड़ी तेज थीं, और उनके चेहरे पर हल्की सी लालिमा थी। मैंने हिम्मत करके धीरे से दीदी का हाथ पकड़ लिया। दीदी ने कुछ नहीं कहा, बस चुप रही। उनका हाथ गर्म था, और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।

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मैंने सोचा, “ये मौका है।” धीरे से अपना हाथ दीदी के कंधे पर रखा और उनकी कमर की तरफ स्लाइड किया। दीदी ने कोई विरोध नहीं किया। मेरी हिम्मत बढ़ी, और मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाकर दीदी के चुंचे पर रख दिया। उनकी कमीज के ऊपर से उनके चुंचे मुलायम और भरे हुए लग रहे थे। मैंने धीरे से दबाया, और दीदी की सांस और तेज हो गई। वो चुप थीं, लेकिन उनकी आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं। मैंने उनके चुंचे को और जोर से दबाया, और उनकी ब्रा की आउटलाइन मेरी उंगलियों में महसूस हुई। मेरा लंड अब पैंट में दर्द करने लगा था।

दीदी ने अचानक मेरी तरफ देखा और धीरे से बोलीं, “दीपक, ये क्या कर रहा है?” लेकिन उनकी आवाज में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब सी नरमी थी। मैंने कहा, “दीदी, बस थोड़ा मजा ले रहा हूँ। आपको बुरा तो नहीं लग रहा?” दीदी ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराकर स्क्रीन की तरफ देखने लगीं। मैंने इसे हरी झंडी समझा। मैंने धीरे से अपनी उंगलियां दीदी की कमीज के अंदर डाली और उनकी ब्रा की स्ट्रिप को खोल दिया। दीदी ने एक पल के लिए मेरी तरफ देखा, लेकिन फिर चुप हो गईं। मैंने उनका एक चुंचा ब्रा से बाहर निकाला और उसका निप्पल अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। निप्पल टाइट हो गया था, और दीदी की सिसकारियां शुरू हो गई थीं।

मैंने दीदी के कान के पास मुंह ले जाकर धीरे से कहा, “दीदी, आप कितनी गर्म हो।” दीदी ने शरमाते हुए कहा, “चुप रह, कोई देख लेगा।” लेकिन उनकी आवाज में वो मजा साफ झलक रहा था। मैंने दीदी की सलवार का नारा ढूंढा और उसे खोलने की कोशिश की। दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और इशारे से मना किया। लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था? मैंने उनका हाथ हटाया और धीरे से अपनी उंगलियां उनकी सलवार के अंदर डाल दीं। उनकी पैंटी गीली हो चुकी थी, और उनकी चूत की गर्मी मेरी उंगलियों तक पहुंच रही थी। मैंने पैंटी के ऊपर से उनकी चूत को सहलाया, और दीदी की सिसकारियां और तेज हो गईं।

दीदी ने अब मेरे लंड को पैंट के ऊपर से दबाना शुरू कर दिया। उनकी उंगलियां मेरे लंड की शेप को ट्रेस कर रही थीं, और मैं पागल हो रहा था। मैंने अपनी जिप खोली और अपना तगड़ा लंड बाहर निकाला। दीदी ने एक पल के लिए मेरी तरफ देखा, और उनकी आँखें चमक उठीं। मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा। दीदी ने पहले थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन फिर मेरे लंड को धीरे-धीरे सहलाने लगीं। उनकी कोमल उंगलियां मेरे लंड पर जादू कर रही थीं। मैंने उनकी पैंटी को साइड में खिसकाया और उनकी गीली चूत में एक उंगली डाल दी। दीदी की चूत टाइट थी, और उनकी गर्मी मुझे पागल कर रही थी। मैंने धीरे-धीरे उंगली अंदर-बाहर की, और दीदी की सिसकारियां अब दबी-दबी चीखों में बदल गई थीं।

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मैंने दीदी के एक चुंचे को मुंह में लिया और उनके निप्पल को चूसने लगा। दीदी ने मेरे सिर को अपने चुंचे पर दबाया और बोलीं, “आह, दीपक, ये क्या कर रहा है? इतना मजा आ रहा है।” मैंने उनकी चूत में दूसरी उंगली डाली और तेजी से अंदर-बाहर करने लगा। दीदी का शरीर कांपने लगा, और वो मेरे लंड को जोर-जोर से मसलने लगीं। अचानक दीदी का शरीर अकड़ गया, और उनकी चूत ने मेरी उंगलियों को जकड़ लिया। वो झड़ गई थीं, और उनकी चूत से गर्म पानी मेरी उंगलियों पर बह रहा था। दीदी ने शरमाते हुए अपनी चूत को रुमाल से पोंछा और मेरी तरफ देखकर मुस्कुराईं।

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मैंने दीदी से कहा, “दीदी, मेरा लंड अभी भी खड़ा है। इसे भी तो शांत करो।” दीदी ने पहले मना किया, लेकिन मैंने उनके हाथ को फिर से अपने लंड पर रखा। वो धीरे-धीरे मेरे लंड को हिलाने लगीं। मैंने कहा, “दीदी, इसे मुंह में लो ना।” दीदी ने पहले इंकार किया, लेकिन मेरे बार-बार कहने पर वो झुकीं और मेरे लंड को अपने होंठों से छुआ। उनकी गर्म सांसें मेरे लंड पर लग रही थीं, और मैं सातवें आसमान पर था। दीदी ने धीरे से मेरे लंड का टोपा मुंह में लिया और चूसने लगीं। उनकी जीभ मेरे लंड के टोपे पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं सिसकारियां ले रहा था।

दीदी ने अब मेरे लंड को पूरा मुंह में ले लिया और जोर-जोर से चूसने लगीं। उनका एक हाथ मेरे टट्टों को सहला रहा था, और दूसरा हाथ मेरे लंड को हिला रहा था। मैंने दीदी के सिर को पकड़ा और उनके मुंह में धक्के मारने लगा। दीदी की चूसने की आवाज सिनेमा हॉल में गूंज रही थी, लेकिन हमें किसी की परवाह नहीं थी। मैंने कहा, “दीदी, आप तो कमाल हो। इतना मजा पहले कभी नहीं आया।” दीदी ने मेरे लंड को मुंह से निकाला और मुस्कुराते हुए बोलीं, “तू भी तो बड़ा शैतान है।”

मैंने दीदी की सलवार को पूरी तरह नीचे खिसका दिया और उनकी पैंटी भी उतार दी। उनकी चूत गुलाबी और गीली थी, और उसकी खुशबू मुझे पागल कर रही थी। मैंने दीदी को अपनी गोद में उठाया और अपने लंड पर बैठाने की कोशिश की। मेरा लंड उनकी चूत में फिसल गया, और दीदी की जांघों पर ठोकर मारी। दीदी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत पर सेट किया। वो धीरे से मेरे लंड पर बैठ गईं, और मेरा लंड उनकी टाइट चूत में एकदम से घुस गया। दीदी के मुंह से जोर की सिसकारी निकली, “आह, दीपक, मर गई! तेरा लंड तो बहुत बड़ा है।”

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मैंने दीदी की कमर पकड़ी और उन्हें धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगा। उनकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी, और उनकी गर्मी मुझे जन्नत का मजा दे रही थी। दीदी ने अपने हाथ मेरे कंधों पर रखे और मेरे लंड पर उछलने लगीं। उनके चुंचे मेरे सामने हिल रहे थे, और मैंने एक चुंचे को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। दीदी की सिसकारियां अब तेज हो गई थीं, “आह, दीपक, चोद दे मुझे। और जोर से!” मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई और दीदी की चूत में गहरे धक्के मारने लगा। उनकी चूत का पानी मेरे लंड पर बह रहा था, और हम दोनों पसीने से तर हो गए थे।

करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद दीदी का शरीर फिर से अकड़ गया, और वो जोर से चिल्लाईं, “दीपक, मैं झड़ रही हूँ!” उनकी चूत ने मेरे लंड को और टाइट जकड़ लिया, और मैं भी झड़ने वाला था। मैंने दीदी की चूत में गहरे धक्के मारे और अपना सारा वीर्य उनकी चूत में डाल दिया। हम दोनों हांफते हुए एक-दूसरे से चिपक गए। दीदी ने मेरी तरफ देखा और शरमाते हुए बोलीं, “तू मूवी देखने आया था या मुझे चोदने?” मैंने हंसते हुए कहा, “दीदी, आप चुदवाने दोगी तो रोज चोदूंगा।” दीदी ने मेरे गाल पर एक चपत मारी और बोलीं, “चल, कपड़े पहन।”

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हमने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए और सिनेमा हॉल से बाहर निकल आए। दीदी मेरे साथ बाइक पर सटकर बैठीं, और उनका हाथ मेरे लंड पर था। रास्ते में मैंने मजाक में कहा, “दीदी, उस औरत की गांड देखो, कितनी मस्त है।” दीदी ने हंसते हुए कहा, “सब मर्द एक जैसे होते हैं। अभी मेरी चूत चोदकर आया, और अब दूसरी की गांड देख रहा है।” मैंने कहा, “दीदी, आपकी चूत और गांड के सामने कोई टिकता ही नहीं।” दीदी ने मेरे लंड को दबाया और बोली, “चल, घर जा। वहाँ देखूंगी तेरा जादू।”

घर पहुंचते ही मैंने दीदी को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन दीदी ने कहा, “दीपक, घर में नहीं। हम भाई-बहन हैं।” मैंने कहा, “दीदी, सिनेमा हॉल में जो हुआ, वो क्या था?” दीदी ने शरमाते हुए कहा, “वो बाहर की बात थी। घर में कुछ नहीं होगा।” लेकिन उनकी आँखों में वो शरारत थी, जो मुझे बता रही थी कि ये कहानी यहीं खत्म नहीं होने वाली। मैंने मन में ठान लिया कि दीदी की चूत और गांड का मजा फिर से लूंगा।

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