कहानी का पिछला भाग: पति के सामने दर्जी ने चोदा-1
मैंने एक अनजान मर्द, एक दर्जी को अपने पति के सामने मुझे चोदने की इजाजत दे दी थी। मेरी चूत की आग इतनी भड़क चुकी थी कि अब मुझे कोई शर्म नहीं थी। दर्जी ने मेरी कमर के नीचे मुझे नंगा कर दिया था। मेरी चूत के झांटों को सहलाते हुए उसकी उँगलियाँ मेरे बदन में बिजली दौड़ा रही थीं। लेकिन उसने अभी तक मेरे ब्लाउज को हाथ नहीं लगाया था। मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर कैद थीं, और मेरे निप्पल सख्त होकर कपड़े को तान रहे थे। विनोद चुपचाप किनारे बैठा सब देख रहा था, और उसकी चुप्पी मेरे लिए हरी झंडी थी।
दर्जी ने मुझे फुर्ती से घुमाया। अब मेरा सामने का हिस्सा विनोद की आँखों के ठीक सामने था। मेरी नंगी चूत और उभरे हुए चूतड़ विनोद को साफ दिख रहे थे। दर्जी का एक हाथ मेरी चूत को सहला रहा था, उसकी उँगलियाँ मेरी गीली चूत के होंठों पर फिसल रही थीं। दूसरा हाथ अब मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा। उसका स्पर्श इतना गर्म था कि मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं- आह्ह…।
दर्जी ने विनोद की ओर देखकर कहा- साहब, क्या मस्त माल है आपकी घरवाली। इतनी खूबसूरत, इतनी गर्म! आप तो इसे रोज चोदते होंगे, इसकी चूत में अपना लौड़ा पेलते होंगे। लेकिन आप खुद चोदते हैं, इसलिए आपको नहीं पता कि आपके लौड़े के हर धक्के पर इस हसीना का बदन कैसे जवाब देता है। अब आप खुद देखिए, जब औरत को सच्ची चुदाई मिलती है, तो वो कितनी खुश होती है।
उसकी बातें सुनकर मेरी चूत और गीली हो गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि विनोद, जो बाहर से इतना हट्टा-कट्टा और मर्दाना दिखता है, इतना नमर्द होगा। एक अनजान मर्द उसकी घरवाली को नंगा करके चोदने की बात कर रहा है, और वो चुपचाप बैठा है। उसकी चुप्पी ने मेरे अंदर की सारी शर्म को जला दिया। मैंने अपने बदन को पूरी तरह ढीला छोड़ दिया, जैसे कह रही हो- जो करना है, कर लो।
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दर्जी ने मेरी चूत से हाथ हटाया और दोनों हाथों से मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगा। एक-एक बटन खुलने के साथ मेरी साँसें तेज हो रही थीं। ब्लाउज खुला और उसने उसे मेरे बदन से खींचकर विनोद की ओर फेंक दिया। फिर उसने मेरी ब्रा के हुक खोले और ब्रा को भी विनोद की ओर उछाल दिया। अब मैं ऊपर से नीचे तक पूरी नंगी थी। मेरी गोरी, मांसल चूचियाँ आजाद थीं, और मेरे निप्पल सख्त होकर तन गए थे। दर्जी की भूखी नजरें मेरे बदन को चाट रही थीं। उसका एक हाथ मेरी चूत की क्लिट को मसल रहा था, और दूसरा मेरे निप्पल को रगड़ रहा था। मैं सिसकार रही थी- ऊह्ह… और जोर से…।
दर्जी ने विनोद को ताने मारते हुए कहा- साहब, देख रहा हूँ, इस हसीना को नंगा देखकर आपका लौड़ा भी तन गया है। कपड़े उतारकर तमाशा देखिए, ज्यादा मजा आएगा। नहीं तो लौड़ा पानी छोड़ देगा, और आपका ट्राउजर खराब हो जाएगा। रानी, यहाँ सामने लेट जाओ।
उसने मुझे लेटने को कहा, लेकिन मैं अपनी जगह पर खड़ी रही। मैं चाहती थी कि वो मुझे और तड़पाए। दर्जी ने मेरे बदन से हाथ हटाए और अपने कपड़े उतारने लगा। उसने पहले अपनी बनियान उतारी। उसकी चौड़ी, मस्कुलर छाती देखकर मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। उसके बाजू इतने मजबूत थे कि लगता था वो मुझे एक हाथ से उठा लेगा। मैं एकटक उसके गठीले बदन को देखती रही। उसका पसीना उसकी छाती पर चमक रहा था, और उसकी हर साँस के साथ उसकी मांसपेशियाँ उभर रही थीं।
दर्जी ने मेरी ओर देखकर कहा- रानी, अब हमारे बीच कोई शर्म नहीं। जैसे मैंने तुम्हें नंगा किया, वैसे ही तुम मुझे नंगा कर दो।
वो मुझसे खेलना चाहता था, और मैंने भी उसे तड़पाने का मन बनाया। मैं बिना कुछ बोले विनोद के पास गई। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वो मेरी हरकतों का मजा ले रहा हो। मैंने विनोद के दोनों हाथ पकड़े और उन्हें अपनी चूचियों पर रख दिया। दर्जी को दिखाते हुए मैंने विनोद के हाथों को अपनी चूचियों पर जोर-जोर से दबवाया। फिर मैंने विनोद के ट्राउजर के ऊपर से उसके लौड़े को सहलाना शुरू किया। विनोद खुद को कंट्रोल नहीं कर पाया। उसने मेरी चूचियों को जोर-जोर से मसला, और उसका एक हाथ नीचे सरककर मेरी चूत को सहलाने लगा। मैं लगातार दर्जी की ओर देख रही थी, और उसे आँख मारकर और तड़पा रही थी।
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मैंने विनोद को कुछ देर मेरी चूत के साथ खेलने दिया। फिर उसका हाथ हटाया और उसकी उँगलियों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ ही मैंने विनोद का बेल्ट खोला, जिप नीचे की, और उसके ट्राउजर को अंडरवियर समेत नीचे खींच दिया। विनोद का लौड़ा स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर आया। मैंने झट से उसे पकड़ लिया और कहा- राजा, तुम्हारा डंडा तो पूरा तैयार है। पेल दो अपनी इस रंडी की चूत में।
मैंने जान-बूझकर विनोद से चुदाई की बात की, ताकि दर्जी जलन महसूस करे। और ठीक वैसा ही हुआ। दर्जी तुरंत मेरे पास आया। उसने मेरे चूतड़ों और पीठ के नीचे हाथ डालकर मुझे उठाया, जैसे मैं कोई हल्की गुड़िया हो। उसने मुझे सामने रखी कटिंग टेबल पर लिटा दिया। उसने अपना पजामा और अंडरवियर उतारने में एक मिनट भी नहीं लगाया। जैसे ही उसका लौड़ा बाहर आया, मेरी आँखें फट गईं। मैंने बड़बड़ाया- बाप रे, कितना मोटा और लंबा है…
मेरा वाक्य खत्म होने से पहले ही दर्जी मेरे ऊपर चढ़ गया। उसने एक हाथ से अपने लौड़े के सुपारे को मेरी चूत के झांटों के बीच सेट किया। उसका सुपारा मेरी चूत के होंठों को चीरता हुआ अंदर घुसा, और मेरी चीख निकल गई- बाप रे, चूत फट गई…। मैंने जोर से चिल्लाया, लेकिन दर्जी ने मेरी चीख की परवाह नहीं की। उसने एक के बाद एक जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए। हर धक्के के साथ उसका लौड़ा मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था।
दर्जी ने चोदते हुए कहा- साली जी, तुम्हारी दीदी की चूत में पहली बार लौड़ा पेला था, तो वो भी तुम्हारी उम्र की थी, लेकिन बिल्कुल कुँवारी थी। उसकी चूत में लौड़ा डालने में मुझे इतनी तकलीफ नहीं हुई, जितनी तुम्हारी चुदाई हुई चूत में डालने में हो रही है। साहब, आपका लौड़ा भी बढ़िया है, लेकिन लगता है आप अपनी साली जी का पूरा ख्याल नहीं रखते। इसे रोज लौड़ा नहीं खिलाते क्या? उफ्फ, कितनी टाइट और गर्म चूत है। साहब, आपकी घरवाली को चोदने में बहुत मजा आ रहा है।
उसके हर धक्के से मेरा बदन हिल रहा था। टेबल के नीचे की चरमराहट और मेरी सिसकारियों की आवाज पूरे कमरे में गूँज रही थी। 8-10 धक्कों के बाद मेरी चूत उसके लौड़े के साथ तालमेल बिठाने लगी। मैं भी अपने चूतड़ उछालने लगी और सिसकारियाँ लेने लगी- आह्ह… और जोर से…। सच कहूँ, विनोद के साथ चुदाई में मुझे कभी इतना मजा नहीं आया, जितना इस अनजान दर्जी के साथ आ रहा था। उसका लौड़ा मेरी चूत को फाड़ रहा था, और मैं हर धक्के का मजा ले रही थी।
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दर्जी को चोदते वक्त बात करने की आदत थी। वो रुका नहीं और बोलता रहा- रानी, मेरी किस्मत देखो। आठ साल पहले जिस पहली लड़की की चूत में मैंने लौड़ा पेला, उसका नाम शालू था। अपनी घरवाली शालू को चोदकर मैं बहुत खुश था। उसकी छोटी बहन आशा ने कई बार मुझे इशारा किया, अपनी चूचियाँ दिखाईं, लेकिन मैंने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। और साली जी, तुम्हें देखते ही मेरा खून खौलने लगा, लौड़ा तन गया। अगर साहब तुम्हें चोदने से रोकते, तो अपने बेटे की कसम, मैं साहब को जान से मार देता और तुम्हें अपने घर में रख लेता। मैंने अब तक जितनी औरतों को चोदा, सबका नाम शालू था। अब से मेरी घरवाली तुम्हारी दीदी है, और तुम मेरी प्यारी साली, यानी आधी घरवाली।
उसकी बातें सुनकर मेरी चूत और गीली हो गई। मैंने इधर-उधर नजर दौड़ाई, तो देखा कि विनोद ऐसी जगह खड़ा था, जहाँ से उसे मेरी चूत में अंदर-बाहर होता दर्जी का लौड़ा साफ दिख रहा था। बेचारा विनोद अपने लौड़े को मुठियाते हुए अपनी घरवाली को किसी और से चुदवाते देख रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर ना दुख था, ना गुस्सा। वो शायद इस तमाशे का मजा ले रहा था।
विनोद ने कहा- मास्टर, तुमने मेरी घरवाली को चोद लिया, लेकिन ये बात किसी को नहीं पता चलनी चाहिए।
दर्जी ने खुश होकर और जोरदार धक्का मारा और बोला- मैं अपनी प्यारी साली जी को कभी बदनाम नहीं करूँगा। लेकिन बीच-बीच में तुम्हारी घरवाली को चोदूँगा, तो मुझे मत रोकना।
मैंने कहा- तुम मुझे चोद रहे हो, चोदना चाहते हो, तो मुझसे कहो ना। औरत कोई भी हो, अगर उसे कोई मर्द पसंद आ जाए, और उस मर्द ने अपनी चुदाई से उसे खुश कर दिया, तो मर्द से ज्यादा औरत को उस चुदाई की जरूरत होती है। अब मुझे खुश करो, फिर आगे का सोचेंगे।
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दर्जी दनादन धक्के मारता रहा। विनोद का लौड़ा पानी छोड़ चुका था। जब उसका लौड़ा ढीला पड़ गया, तो वो मेरे पास आया और मेरी चूचियों को मसलने लगा। दर्जी ने एक मिनट तक विनोद का हाथ मेरी चूचियों पर रहने दिया, फिर उसे हटा दिया। उसने कहा- शालू जब भी मेरी दुकान में आएगी, वो सिर्फ मेरा माल रहेगी। आप भी उसे हाथ नहीं लगाएँगे। इस दुकान में ये औरत आपकी घरवाली नहीं, मेरी छोटी साली है। मैं अपने घर की किसी औरत पर किसी दूसरे मर्द का हाथ बर्दाश्त नहीं करूँगा। लेकिन हाँ, जब आपके घर आकर आपकी घरवाली को चोदूँगा, तब आप भी इसका मजा ले सकते हो। आपके घर में हम दोनों मिलकर इस माल का मजा लेंगे।
मैं पहली बार उससे चुदवा रही थी, लेकिन दर्जी मेरे घर आकर मुझे चोदने के सपने देखने लगा था। विनोद जितनी देर चोदता था, उससे ज्यादा देर की चुदाई हो चुकी थी। दर्जी का लौड़ा मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और उसके दोनों हाथ मेरे हर अंग को सहला रहे थे। मेरे हाथ भी उसकी पीठ, उसके चूतड़ों, और उसकी छाती पर फिसल रहे थे। उसका पसीना मेरी उँगलियों में चिपक रहा था, और उसकी मांसपेशियों की गर्मी मुझे और गर्म कर रही थी।
जब मुझे थकान होने लगती, मैं अपनी जांघों और बाहों से उसे कसकर जकड़ लेती। हर बार जब मैं ऐसा करती, दर्जी कहता- साली जी, देखने में नहीं लगता, लेकिन तुम्हारी जांघों और बाहों में बहुत ताकत है। सैकड़ों मर्द तुम्हें चोदेंगे, फिर भी तुम फ्रेश रहोगी।
मैंने कहा- अब चुदवा ही रही हूँ, बेकार की चापलूसी क्यों कर रहे हो? तुमने शायद आधा घंटा भी नहीं चोदा, लेकिन थकान होने लगी है।
दर्जी बोला- वो इसलिए कि तुम्हारे घरवाले ने तुम्हें कभी आधा घंटा भी नहीं चोदा होगा। जब मिलोगी, तो अपनी दीदी से पूछ लेना। हमारी चुदाई कभी 40-45 मिनट से कम नहीं होती। बहुत मस्त माल हो, रानी।
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कभी वो तेजी से चोदता, तो कभी अचानक लौड़े को मेरी चूत में दबाए रखता और मेरी चूचियों को चूसने लगता। मेरे गालों, होंठों को चूमता। शादी के चार महीने बाद मुझे समझ आया कि चुदाई सिर्फ लौड़े का धक्का नहीं, मर्द का औरत के लिए प्यार का इजहार भी है। दर्जी का मेरे बदन को सहलाना, मेरे हर अंग को चूमना, उसका मेरे लिए प्यार था। वो सिर्फ मेरी चूत में लौड़ा नहीं पेलना चाहता था, वो मुझे प्यार भी करना चाहता था।
विनोद ने कहा- भाई, तुम लोग कितनी देर चुदाई करोगे? 40 मिनट से ज्यादा हो गया। डेढ़ बज रहा है, हमें घर भी जाना है।
उसके लहजे में ना गुस्सा था, ना नाराजगी। दर्जी बोला- क्या करूँ, साहब? मेरे लौड़े को आपकी साली जी की चूत बहुत पसंद आ गई है। लौड़ा चूत से बाहर निकलना ही नहीं चाहता।
मैंने कहा- और स्पीड बढ़ाओ, और अंदर तक पेलो। आह्ह, बहुत मजा आ रहा है।
जैसे विनोद को गुस्सा नहीं था कि कोई उसकी घरवाली को उसकी आँखों के सामने चोद रहा है, वैसे ही मुझे भी अपने पति के सामने अनजान मर्द से चुदवाने में कोई शर्म नहीं थी। दर्जी भी आखिर इंसान ही था। अचानक उसका स्पीड और ताकत दोनों बढ़ गए। उसने मुझे अपनी बाहों में कसकर जकड़ा, जोर-जोर से धक्के मारे। मेरी हर हड्डी चरमराने लगी। मेरी चूत सिकुड़ने लगी, और मैं झड़ गई। ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे बदन का टेंशन मेरी चूत में इकट्ठा हो गया, और जैसे ही दर्जी ने अपनी गर्म पिचकारी मेरी चूत में छोड़ी, मेरा सारा टेंशन खत्म हो गया।
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हम दोनों एक-दूसरे को बाहों में जकड़े लंबी साँसें लेते रहे। जब साँसें नॉर्मल हुईं, हमने एक-दूसरे को बेतहाशा चूमा। फिर हम दोनों टेबल से नीचे उतरे। बिना कुछ बोले दर्जी ने मेरा सलवार और कुर्ते का नाप लिया। फिर वो और नाप लेने लगा। मैंने कहा- सलवार-कुर्ते का नाप ले लिया, अब और क्या नाप ले रहे हो?
दर्जी बोला- परसों रात 11 बजे ट्रायल के लिए आना। तब तक मैं बाकी सबको घर भेज दूँगा।
लेकिन मैं परसों का इंतजार नहीं कर सकती थी। मैंने खड़े-खड़े ही दर्जी के लौड़े को सहलाना शुरू किया। कुछ ही पल में उसका लौड़ा फिर से तन गया—करीब 9 इंच लंबा और मेरी कलाई जितना मोटा। इस बार मैंने सिलाई मशीन की टेबल को पकड़ा और कुतिया की पोज में आ गई। दर्जी मेरे पीछे आया। उसने मेरी चूत पर थूक लगाया और अपने लौड़े को मेरी चूत में एक ही झटके में पेल दिया। मैं चीखी- आह्ह… फाड़ दी…। लेकिन इस बार दर्द के साथ मजा भी दोगुना था। उसने मेरी कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। मेरी चूचियाँ हवा में लटक रही थीं, और हर धक्के के साथ उछल रही थीं। विनोद सामने खड़ा मेरी चुदाई देख रहा था, और उसका लौड़ा फिर से तन गया था।
दर्जी ने मेरी गांड पर जोरदार चपत मारी और बोला- रानी, तेरी चूत तो जन्नत है। इस बार उसने पहले से भी ज्यादा देर चोदा। उसका लौड़ा मेरी चूत की गहराइयों को चीर रहा था, और मैं हर धक्के के साथ सिसकार रही थी- आह्ह… और जोर से… फाड़ दो मेरी चूत। करीब 20 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद उसने मेरी चूत में फिर से अपना माल छोड़ दिया। मैं भी दूसरी बार झड़ गई। मेरा पूरा बदन काँप रहा था, लेकिन मन तृप्त था। उस रात कोई ओरल नहीं हुआ, लेकिन दो बार एक मर्द के मूसल जैसे लौड़े से पति के सामने चुदवाकर मैं बहुत खुश थी।
कहानी का अगला भाग: पति के सामने दर्जी ने चोदा-3
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