खून के रिश्तों में चुदाई की देहाती कहानी

मेरा नाम है मधु। मैं देहाती लड़की हूँ, हाई स्कूल तक पढ़ी हूँ। मेरी शादी दो साल पहले हुई है। मेरे पति राजाराम किसान हैं। वो 22 साल के हैं और मैं 18 साल की। घर में हम दोनों ही हैं, उनके माता-पिता कई सालों से गुजर गए थे। आज मैं आपको मेरी निजी कहानी सुनाने जा रही हूँ।

छोटी उम्र से ही मुझे सेक्स का भान था। हम देहाती बच्चे बचपन से ही गाय, भैंस, कुत्ते वगैरह प्राणियों की चुदाई देख पाते हैं। मेरे पिताजी के घर कई गायें थीं। वो जब चुदवाने के लिए हीट में आती थीं, तब हमारा नौकर साँड़ ले आता था। बचपन से ही मैंने साँड़ का पतला लंबा लंड गाय की चूत में जाता देखा था।

दस साल की उम्र तक ऐसे सेक्स देखने से मुझे कुछ नहीं होता था। बढ़ती उम्र के साथ गाय की चुदाई देख मैं उत्तेजित होती जाती थी। बारह साल में मेरी माहवारी शुरू हुई, तब मेरी बड़ी बहन ने मुझे वो कहा जो मैं जानती थी। उसने कहा कि पति जो करे वो करने देना, पाँव लंबे रखकर सोते रहना।

मेरे सीने पर बड़े-बड़े स्तन उभर आए थे और नितंब भारी चौड़े हो गए थे। भोस पर काले घुंघराले बाल निकल आए थे। उसी साल मेरी मंगनी महेश से हो गई। पहली बार वो हमारे घर आए और हम मिले, तब महेश ने मेरी कच्ची चुचियाँ सहलाई थीं, मेरा हाथ थामकर अपना लंड पकड़ा दिया था। मुझे गुदगुदी हो गई थी। इतने में जीजी ना आ जाती तो उस दिन मैं अवश्य चुद जाती।

खैर, 18 साल की उम्र में शादी करके मैं ससुराल आई। पहली रात ही मेरे पति ने मुझे जिस तरह चोदा, ये मैं कभी भूल ना पाऊँगी। आधा घंटे तक चूमा-चाटी और स्तन से खिलवाड़ किया, भोस सहलाई, मेरे हाथ से लंड सहलवाया, बाद में चूत में डाला। योनि पटल टूटा, तब दर्द तो हुआ लेकिन चुदवाने के आवेश में मालूम ना पड़ा।

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एक घंटे तक चली चुदाई के दौरान मैं दो बार झड़ी। आज भी वो मुझे ऐसे चोदते हैं कि जैसे हमारी सुहागरात हो। हम दोनों एक-दूसरे से खूब प्यार करते हैं। हमारे बीच समझौता हुआ है कि वो मन चाहे तो कोई लड़की चोद सकते हैं और मैं किसी भी मर्द से चुदवा सकती हूँ। लेकिन ऐसा अब तक हुआ नहीं था।

शादी के दो साल बाद मेरे पति के एक दूर के चाचा कई साल दुबई रहकर वापस लौटे। उनके परिवार में एक लड़का था, सतीश, मेरी उम्र का, और एक लड़की थी, रेशमा, जो 18 साल की थी। दुबई में वो भाई-बहन रेसिडेंशियल स्कूल में पढ़े थे। चाचा नया घर बनवा रहे थे, उस दौरान वो सब हमारे मकान में ठहरे।

सतीश और रेशमा बड़े प्यारे थे। उनके साथ मेरी अच्छी बन गई थी। नए घर में जाने के बाद भी वे रोज मेरे घर आते थे और दुनिया भर की बातें करते थे। मैंने देखा कि दोनों काफी होशियार थे, लेकिन सेक्स के बारे में बिल्कुल अनजान थे। सतीश मानता था कि लड़की के मुँह से लड़के का मुँह लगने से बच्चा पैदा होता है।

रेशमा कुछ ज्यादा जानती थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि चुदाई कैसे की जाती है। एक दिन महेश को दूसरे गाँव जाना हुआ। इतने बड़े मकान में रात को अकेले रहने से मुझे डर लगता था। मैंने सतीश और रेशमा को सोने के लिए बुला लिया, चाचा-चाची की मंजूरी के साथ। रात का खाना खाकर हम ताश खेलने लगे। सतीश ने रानी डाली, उस पर मैंने राजा डाला।

रेशमा शरमाती हुई हँसी और बोली, “रानी पर राजा चढ़ गया, अब बच्चा होगा।”

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सतीश: क्या बकवास करती हो?

रेशमा: तू नहीं समझेगा। है ना भाभी?

मैं: ये तो ताश है। इसमें बच्चा-कच्चा कुछ नहीं होता।

बाजी आगे चली। रेशमा की रानी पर मैंने गुलाम डाला। रेशमा फिर बोली: भाभी, रानी पर गुलाम चढ़ने से तो राजा उसे मार डालेगा।

सतीश अब गुस्सा हो गया, पन्ने फेंक दिए और बोला: ये क्या चढ़ने-उतरने की चला रखी है?

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मैंने उसे शांत किया। मुँह छुपाए रेशमा हँस रही थी। वो बोली: भैया, भाभी से कहो तो बच्चा कैसे पैदा होता है।

सतीश चुप रहा। मैंने धीरे से पूछा: कहो तो सही, मैं जानूँ तो।

सतीश ने रेशमा से कहा: छिपकली, तू ही बता दे ना, होशियार कहीं की।

रेशमा की शर्म और हँसी थमती ना थी, सतीश का गुस्सा थमता ना था।

मैंने कहा: रेशमा, तू ही बता।

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सर झुकाकर, दाँतों में उंगली डालकर वो बोली: भैया कहते हैं कि लड़का लड़की का हाथ पकड़कर मुँह से मुँह लगाता है, तब बच्चा पैदा होता है।

मैं: और तुम क्या कहती हो?

रेशमा ने मुँह फेर लिया और बोली: नहीं बताती, मुझे शर्म आती है।

अब सतीश बोला: मैं कहूँ। वो कहती है कि जब लड़की पर लड़का चढ़ता है, तब बच्चा होता है। क्या ये सच है भाभी?

मैं: सच तो है, लेकिन पूरा नहीं। रेशमा, जानती हो कि ऊपर चढ़कर लड़का क्या करता है?

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सर हिलाकर रेशमा ने हाँ कहा और बोली: चोदता है।

ये सुनकर सतीश अवाक हो गया। फिर बोला: रेशमा गंदा बोली।

मैं समझ गई कि दोनों में से किसी को पता नहीं था कि चोदना क्या है।

मैं: जानती हो चोदना क्या होता है?

रेशमा: एक-दूजे के मुँह से मुँह मिलते हैं।

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सतीश: वो तो मैं कब का कह रहा हूँ।

मैं: रुको। मुँह से मुँह लगता है चुदाई में, लेकिन इससे ज्यादा और कुछ भी होता है।

रेशमा: भाभी, तुम बताओ ना… बड़े भैया तुम्हें रोज… रोज… चोदते होंगे ना?

सतीश: रेशमा, तुम बहुत गंदा बोलती हो।

रेशमा: तुम्हें क्या? तुम भी बोलो।

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मैं: झगड़ो मत। अब कौन बताएगा कि लड़का और लड़की में फर्क क्या है?

सतीश: लड़के को दाढ़ी-मूँछ होते हैं और लड़की के सीने पर चुचियाँ।

मैं: सही। लेकिन मुख्य फर्क कौन-सा है?

रेशमा: जाँघों बीच लड़की की पिंकी होती है और लड़के की नुन्नी।

मैं: बराबर। जब वो बड़े होते हैं, तब उसे भोस और लौड़ा कहते हैं।

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इतनी बात होते-होते हम तीनों उत्तेजित होते चले थे। रेशमा बार-बार अपनी निक्कर ठीक करने के बहाने अपनी भोस खुजला लेती थी। सतीश के टट्टर लंड ने पाजामे का तंबू बना दिया था।

मैंने आगे कहा: जब चोदने का दिल होता है, तब आदमी का लौड़ा तनकर लंबा, मोटा और कड़ा हो जाता है। लड़की की भोस गीली हो जाती है। आदमी अपना कड़ा लौड़ा, जिसे लंड भी कहते हैं, उसे लड़की की चूत में डालकर अंदर-बाहर करता है। इसे चोदना कहते हैं।

रेशमा: ऐसा क्यों करते हैं?

मैं: ऐसा करने में बहुत मजा आता है और आदमी का वीर्य लड़की की चूत में गिरता है। वीर्य में पुरुष बीज होता है, जो लड़की के स्त्री-बीज साथ मिल जाता है और नया बच्चा बन जाता है।

रेशमा: भाभी, देखो, भैया का… वो खड़ा हो गया है।

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सतीश: तुझे क्या? भाभी, एक बात बताऊँ? मेरा तो रोज रात को खड़ा हो जाता है। उसमें कुछ बुरा तो नहीं ना?

मैं: कुछ बुरा नहीं। खड़ा भी होता होगा और स्वप्न देखकर वीर्य भी निकलता होगा।

सतीश: भाभी, मधु के आगे क्यों…?

मैं: अब उनकी बारी है। मधु, तुझे माहवारी शुरू हो गई होगी। नीचे भोस पर बाल उगे हैं?

रेशमा ने सर हिलाकर हाँ कहा।

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मैं: तू उंगली से खेलती हो ना?

फिर सर हिलाकर हाँ।

मैं: तूने लंड देखा है कभी?

शर्माकर नीचे देखकर उसने ना कहा।

मैं: सतीश, तूने कभी चुचियाँ देखी हैं?

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उसने ना कहा।

मैं: ऐसा करते हैं, रेशमा तू तेरे स्तन दिखा और सतीश तू लंड दिखा।

सतीश: तू क्या दिखाएगी, भाभी?

मैं: मैं भोस दिखाऊँगी। सतीश, पहले तुम।

सतीश ने पाजामा खोलकर नीचे सरकाया। लंड के पानी से उसकी निक्कर गीली हो गई थी। वो जरा खिचकाया तो रेशमा ने हाथ लंबा किया। सतीश तुरंत हट गया और निक्कर उतार दी। क्या लंड था उसका? सात इंच लंबा और दो इंच मोटा होगा। डंडी एकदम सीधी थी। मट्ठा बड़ा था और टोपी से ढका हुआ था। चिकने पानी से लंड गीला था।

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रेशमा आश्चर्य से देखती रही। सतीश को मैंने धक्का देकर लेटा दिया और उसके हाथ हटाकर लंड पकड़ लिया। मेरे छूते ही लंड ने ठुमका लगाया। वेलवेट में लिपटा लोहे का डंडा जैसा उसका लंड था, बड़ा प्यारा था।

मैं: रेशमा, ये लंड की टोपी चढ़ सकती है और मट्ठा खुला किया जा सकता है। देख।

मैंने टोपी चढ़ाई तो लंड से स्मेग्मा की बदबू आई।

मैंने कहा: सतीश, नहाते समय उसको साफ करते नहीं हो? ऐसा गंदा लंड से कौन चुदवाएगी? जा, साफ कर आ।

सतीश बाथरूम में गया।

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मैं: रेशमा, पसंद आया सतीश का लंड? अच्छा है ना?

रेशमा: मैं उसे छू सकती हूँ?

मैं: क्यों नहीं? लेकिन चुदवा नहीं सकोगी।

रेशमा: क्यों नहीं? मेरे पास भोस जो है?

मैं: सही, लेकिन भाई-बहन आपस में चुदाई नहीं करते।

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इतने में सतीश आ गया। ठंडा पानी से धोने से लंड जरा नर्म पड़ा था। मैंने सतीश को फिर लेटा दिया। लंड पकड़कर टोपी चढ़ा दी। बड़ा मशरूम जैसा चिकना मट्ठा खुल गया। मैंने हल्के हाथ से मूठ मारी तो लंड फिर से तन गया।

मैंने पूछा: मजा आता है ना?

सतीश: खूब मजा आता है भाभी, रुकना मत।

मैं होले-होले मूठ मारती रही और बोली: रेशमा, कुर्ती खोल और स्तन दिखा।

रेशमा खूब शरमाई, पलटकर खड़ी हो गई। उसने कुर्ती के हुक खोल दिए, लेकिन खुले कपड़े से स्तन ढके रख सामने हुई। लंड छोड़ मैंने रेशमा के हाथ हटाए और कुर्ती उतार दी। उसने ब्रा पहनी नहीं थी, जवान स्तन खुले हुए। उम्र के हिसाब से रेशमा के स्तन काफी बड़े थे, संपूर्ण गोल और कड़े। पतली नाजुक चमड़ी के नीचे खून की नीली नसें दिखाई दे रही थीं।

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एक इंच की अरेवला जरा-सी उभरी थी। बीच में किसमिस के दाने जैसी छोटी-सी निप्पल थी। एक्साइटमेंट से उस वक्त निप्पल कड़ी हो गई थी, जिससे स्तन नोकदार लगता था। स्तन देखकर सतीश के लंड ने ठुमका लिया और कुछ ज्यादा तन गया।

वो बोला: मैं छू सकता हूँ?

मैं: ना, बहन के स्तन भाई नहीं छूता।

सतीश: भाभी, तू तो मेरी बहन नहीं हो। तेरे स्तन दिखा और छूने दे।

मैं भी चाहती थी कि कोई मेरी चुचियाँ दबाए और मसले। मैंने चोली उतार दी। वो दोनों देखते ही रह गए। मेरे स्तन भी सुंदर हैं, लेकिन शादी के बाद जरा झुक गए हैं। मेरी अरेवला बड़ी है, पर निप्पल्स अभी छोटी हैं। मेरी निप्पल्स बहुत सेंसिटिव हैं। महेश उसे छूते हैं कि मेरी भोस पानी बहाना शुरू कर देती है। चोदते हुए वो जब मुँह में लिए चूसते हैं, तब मुझे झड़ने में देर नहीं लगती।

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बिना कुछ कहे सतीश ने स्तन पर हाथ फिराया। तुरंत मेरी निप्पल कड़ी हो गई। उसने हथेली से निप्पल को रगड़ा। स्तन के नीचे हाथ रखकर उठाया, जैसे वजन नापता हो। मेरे बदन में झुरझुरी फैल गई। उसके हाथ पर हाथ रखकर मैंने मेरे स्तन दबाए।

आगे सीखना ना पड़ा, सतीश ने बेदर्दी से स्तन मसल डाले। मेरी भोस पानी बहाने लगी। मेरे दिमाग में चुदवाने का खयाल आया कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। फटाफट कपड़े पहनकर उन दोनों को सुला दिया और मैंने जाकर दरवाजा खोला। सामने खड़े थे महेश।

मैं: आप? अभी कैसे आ सके?

महेश: एक गाड़ी आ रही थी, जगह मिल गई।

मैं: अच्छा हुआ, चलिए, खाना खा लीजिए।

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मुझे आगोश में लेते हुए वो बोले: खाना बाद में खाएँगे, पहले जरा प्यार कर लें।

मैं कुछ बोलूँ इससे पहले उन्होंने मेरे होठों से होठ चिपका दिए। कपड़े उतारे बिना मुझे पलंग पर पटक दिया। किस करते-करते घाघरी ऊपर उठाई और निक्कर खींच उतारी। मैं उनको कभी चुदाई की ना नहीं कहती हूँ। मैंने जाँघें पसारी और वो ऊपर आ गए। उनका लंड खड़ा ही था। घच्छ से चूत में घुसेड़ दिया।

मुझे बोलने का मौका ही ना दिया, घचा-घच्छ, घचा-घच्छ जोर-जोर से चोदने लगे। “आह… महेश… आह्ह… धीरे… उफ्फ…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। पंद्रह-बीस धक्के बाद वो धीरे पड़े और लंबे और गहरे धक्के से चोदने लगे। स..र..र..र..र्ररर लंड अंदर, स…र…र…र.. बाहर। थोड़ी देर चुदाई का मजा लेकर मैं बोली: घर में मेहमान हैं।

चुदाई रुक गई।

वो बोले: मेहमान? कौन मेहमान?

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मैंने सतीश और रेशमा के बारे में बताया और कहा: वो शायद जागते होंगे।

घबड़ाकर महेश उतरने लगे। मैंने रोक दिया: उन दोनों को चुदाई दिखानी जरूरी है। मैं उनको बुला लेती हूँ।

महेश: अरे, वो तो अभी बच्चे हैं, चाचा-चाची क्या कहेंगे?

मैं: तुम फिकर ना करो। दो दिन पहले चाची ने मुझसे कहा था कि उन दोनों को चुदाई के बारे में शिक्षा दूँ।

महेश: क्यों?

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मैं: बात ऐसी हुई कि चाची के मायके में एक नई दुल्हन को उसके पति ने पहली रात ऐसे चोदा कि उसकी चूत फट गई। लड़की को हॉस्पिटल ले गए, लेकिन बचा ना सके। खून बह जाने से लड़की मर गई। ये सुनकर चाची घबड़ा गई हैं कि कहीं रेशमा को ऐसा ना हो। इसलिए वो चाहती हैं कि हम उन्हें चुदाई की सही शिक्षा दें। जरूरत लगे तो उसकी झिल्ली भी तोड़ दें। वैसे भी वो दोनों कुछ नहीं जानते।

महेश: बुला लूँ उनको?

सतीश और रेशमा को बुलाने की जरूरत ना थी। वो दरवाजे में खड़े थे। महेश को मैंने उतरने ना दिया। उनका लंड जरा नर्म पड़ा था, मैंने चूत सिकोड़कर दबाया तो फिर कड़ा हो गया। वो चोदने लगे। चुदाई के धक्के खाते-खाते मैंने कहा: मा..मया…रेशमा…त…तुम….ऊओ, सीईइ, तुम और पा…पा…सतीश यहाँ..आ…आ…कर, महेश जरा धी..धीरे…उउउइई …तुम देखो।

वो पलंग के पास आ गए। महेश हाथों के बल ऊपर उठे, जिससे हमारे पेट के बीच से देखा जा सके कि लंड कैसे चूत में आता-जाता है। रेशमा खड़े-खड़े एक हाथ से अपना स्तन मसल रही थी, दूसरा भोस पर लगा हुआ था। सतीश होले-होले मूठ मार रहा था।

महेश मेरे कान में बोले: देखा सतीश का लंड? ऐसा कर, तू उनसे चुदवा ले। मैं रेशमा साथ खेलता हूँ।

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मैं: रेशमा को चोदना नहीं।

महेश: ना, ना। चूत में लंड डाले बिना स्वाद चखाऊँगा।

महेश उतरे। उनका आठ इंच लंबा गीला लंड देख रेशमा शरमाई। उसने मुस्कुराते हुए मुँह फेर लिया। सतीश का लंड पकड़कर मैंने पूछा: सतीश, चोदना है ना?

बिना बोले वो मेरी जाँघों के बीच आ गया। “भाभी… मैं… सचमुच…?” उसकी आवाज में हिचक थी। लंड पकड़कर धक्के मारने लगा। वो इतनी जल्दी में था कि लंड भोस पर इधर-उधर टकराया, लेकिन उसे चूत का मुँह ना मिला। “अरे… रुक… कहाँ घुसेड़ रहा है…?” मैंने हँसते हुए कहा। बाहर ही भोस पर झड़ जाए, उससे पहले मैंने लंड पकड़कर चूत पर धर दिया।

एक ही धक्के से पूरा लंड चूत में उतर गया। “उफ्फ… भाभी… कितना टाइट है… आह्ह…” सतीश सिसकारा। आगे सिखाने की जरूरत ना रही। धना-धन, घचा-घच्छ धक्के से वो मुझे चोदने लगा। “हाय… सतीश… जोर से… और जोर से… चोद मुझे…” मैंने उकसाया। उधर महेश रेशमा को गोद में लिए बैठे थे। रेशमा ने अपना मुँह उसके सीने में छुपा दिया था। महेश का एक हाथ स्तन सहला रहा था और दूसरा निक्कर में घुसा हुआ था।

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बार-बार रेशमा छटपटाती थी और महेश का निक्कर वाला हाथ पकड़ लेती। मेरे खयाल से महेश उसकी क्लिटोरिस छेड़ रहे थे। इतने में महेश ने रेशमा का हाथ पकड़कर लंड पर रख दिया। पहले तो झटके से रेशमा ने हाथ हटा लिया, लेकिन जब महेश ने फिर पकड़ाया, तब मात्र उंगलियों से छुआ, पकड़ा नहीं।

महेश बोले: रेशमा, मुट्ठी में पकड़, मीठा लगेगा।

कुछ आनाकानी के बाद रेशमा ने मुट्ठी में लंड पकड़ लिया। “हाय… ये तो… गर्म है…” वो शरमाते हुए बोली। महेश के दिखाने मुताबिक वो होले-होले मूठ मारने लगी। रेशमा का चेहरा उठाकर महेश ने मुँह पर चुंबन किया। मैं देख सकती थी कि महेश ने अपनी जीभ से रेशमा के होठ चाटे और खोले। मैंने सतीश को ये नजारा दिखाया।

अपनी बहन के स्तन पर महेश का हाथ और बहन के हाथ में महेश का लंड देख सतीश की उत्तेजना बढ़ गई। घच-घच्छ, घचक-घच्छ तेज धक्के से चोदने लगा। “भाभी… हाय… तुम्हारी चूत… उफ्फ… कितनी गीली है…” वो बड़बड़ाया। अचानक मैं झड़ गई। “आह्ह… सतीश… मैं… मैं गई… उफ्फ…” मेरी सिसकारियाँ गूँजीं। महेश का कम मुश्किल था, लेकिन वो सब्र से काम लेते थे। रेशमा अब शरमाए बिना लंड पकड़े मूठ मार रही थी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ती थीं और नितंब डोलने लगे थे।

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इधर तेज रफ्तार से धक्के देकर सतीश झड़ा। “भाभी… मेरा… निकल रहा है… आह्ह…” उसने लंड चूत में गहराई तक घुसेड़ दिया। थोड़ी देर तक वो मुझ पर पड़ा रहा और बाद में उतरा। उसका लंड अभी भी टाइट था। मैं रेशमा के पास गई। महेश को हटाकर मैंने रेशमा को गोद में लिया। मैं पलंग की धार पर बैठी और मैंने रेशमा की जाँघें चौड़ी पकड़ रखीं। उसकी गीली-गीली भोस खुली हुई थी।

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रेशमा 18 साल की थी, लेकिन उसकी भोस मेरी भोस जैसी बड़ी थी। ऊँची मॉन्स पर और बड़े होठ के बाहरी हिस्से पर काले घुंघराले झाँट थे। बड़े होठ मोटे थे, बड़े संतरे की फाँक जैसे और एक-दूजे से सटे हुए। बीच की दरार चार इंच लंबी होगी। क्लिटोरिस एक इंच लंबी और मोटी थी।

उस वक्त वो खड़ी हुई थी और बड़े होठ के अगले कोने में से बाहर निकल आई थी। महेश फर्श पर बैठ गए। दोनों हाथ के अँगूठे से उन्होंने भोस के बड़े होठ चौड़े किए और भोस खोली। अंदर का कोमल गुलाबी हिस्सा नजर आया। छोटे होठ पतले थे, लेकिन सूजे हुए थे। चूत का मुँह सिकुड़ा हुआ था और काम-रस से गीला था।

महेश की उंगली जब क्लिटोरिस पर लगी, तब रेशमा कूद पड़ी। “उफ्फ… भैया… ये क्या…” वो छटपटाई। मैंने पीछे से उसके स्तन थाम लिए और निप्पल्स मसल डाली। महेश अब भोस चाटने लगे। भोस के होठ चौड़े पकड़े हुए उन्होंने क्लिटोरिस को जीभ से रगड़ा। साथ-साथ जा सके इतनी एक उंगली चूत में डालकर अंदर-बाहर करने लगे।

रेशमा को ऑर्गेजम होने में देर ना लगी। “हाय… मैं… मैं मर गई… आह्ह…” उसका सारा बदन अकड़ गया, रोएँ खड़े हो गए, आँखें मिच गईं और मुँह से और चूत से पानी निकल पड़ा। हल्की-सी कंपन बदन में फैल गई। ऑर्गेजम बीस सेकंड चला। रेशमा बेहोश-सी हो गई।

मैंने उसे पलंग पर सुलाया। थोड़ी देर बाद वो होश में आई। वो बोली: भाभी, क्या हो गया मुझे?

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महेश: बिटिया, जो हुआ इसे इंग्लिश में ऑर्गेजम कहते हैं। मजा आया कि नहीं?

रेशमा: बहुत मजा आया, अभी भी आ रहा है। नीचे पिंकी में फट-फट हो रहा है। क्या तुमने मुझे चोदा?

महेश: ना, चोदा नहीं है, तुम अभी कुँवारी ही हो। अब मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। तुम दोनों चुपचाप सो जाओ और आराम करो।

सतीश: आप क्या करेंगे?

मैं: हमारी बाकी रही चुदाई पूरी करेंगे।

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सतीश: मैं देखूँगा। ये मुझे सोने नहीं देगा।

सतीश ने अपना लंड दिखाया, जो वाकई पूरा तन गया था। रेशमा लेटी रही और करवट बदलकर हमें देखने लगी। मैं फर्श पर चित लेट गई। महेश ने मेरी जाँघें इतनी उठाई कि मेरे घुटने मेरे कानों से लग गए। “मधु… तैयार हो ना… आज तेरी चूत फाड़ दूँगा…” महेश ने गंदी बात की। घच्छ सा एक धक्के से उन्होंने पूरा लंड चूत में घुसेड़ दिया। “आह्ह… महेश… धीरे… उफ्फ… कितना मोटा है…” मैं सिसकारी। हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे।

घचा-घच्छ, घचा-घच्छ धक्के से वो चोदने लगे। “हाय… मधु… तेरी चूत… कितनी गर्म है… आह्ह…” महेश बड़बड़ाए। चूत सिकोड़कर मैं लंड को बींचती रही। बीस-पच्चीस धक्कों के बाद महेश उतरे और झटपट मुझे चारों हाथ-पाँव के बल कर दिया, घोड़ी की तरह। “अब ले… मेरी रानी… पीछे से चुद…” वो बोले। वो पीछे से चढ़े। जैसे ही उन्होंने लंड चूत में डाला कि मुझे ऑर्गेजम हो गया। “आह्ह… मैं… मैं झड़ रही हूँ… उफ्फ…” मैं चीखी।

वो लेकिन रुके नहीं, धक्के मारते रहे। “हाय… मधु… तेरी गांड… कितनी मस्त है…” महेश ने मेरे नितंबों को थपथपाया। दस-बारह धक्कों के बाद मेरी कमर पकड़कर उन्होंने लंड को चूत की गहराई में घुसेड़ दिया और पक्फ, पक्फ पिचकारियाँ लगाकर झड़े। “आह्ह… ले… मेरा माल… सारा ले…” वो गुर्राए। मुझे दूसरा ऑर्गेजम हुआ। मेरी योनि उनके वीर्य से छलक गई। मैं फर्श पर चपट हो गई। थोड़ी देर तक हम पड़े रहे, बाद में जाकर सफाई कर आए।

रेशमा बैठ गई थी, वो बोली: भाभी, सतीश ने मेरी पिंकी देख ली, पर अपना लंड देखने नहीं देता।

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महेश: कोई बात नहीं, बेटा, मेरा देख ले। मधु, तू ही दिखा।

महेश लेट गए। एक ओर मैं बैठी, दूसरी ओर रेशमा। सतीश बगल में खड़ा देखने लगा।

एक हाथ में लौड़ा पकड़कर मैंने कहा: ये है डंडी, ये है मट्ठा। यूँ तो मट्ठा टोपी से ढका रहता है। चूत में घुसते वक्त टोपी ऊपर चढ़ जाती है और नंगा मट्ठा चूत की दीवारों साथ घिस पाता है। ये जगह, जहाँ टोपी मट्ठे से चिपकी हुई है, उसको फ्रेनम बोलते हैं।

लड़की की क्लिटोरिस की तरह फ्रेनम भी बहुत सेंसिटिव है। ये है लंड का मुँह, जहाँ से पिसाब और वीर्य निकल पाता है। लंड की टोपी ऊपर-नीचे करके मैं आगे बोली: मूठ मारते वक्त टोपी से काम लेते हैं। लंड मुँह में भी लिया जाता है। देख, ऐसे…

मैंने लंड का मट्ठा मुँह में लिया और चूसा। तुरंत वो अकड़ने लगा। “उफ्फ… मधु… तू तो… कमाल है…” महेश सिसकारे।

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रेशमा: मैं पकड़ूँ?

महेश: जरूर पकड़ो। दिल चाहे तो मुँह में भी ले सकती हो।

आधा तना हुआ लंड रेशमा ने हाथ में लिया कि वो पूरा तन गया। उसकी अकड़ाई देख रेशमा को हँसी आ गई। वो बोली: मेरे हाथ में गुदगुदी होती है।

मैंने लंड मुँह से निकाला और कहा: मुँह में ले, मजा आएगा।

सर झुकाकर डरते-डरते रेशमा ने लंड मुँह में लिया। मैंने कहा: कुछ करना नहीं, जीभ और तालू के बीच मट्ठा दबाए रख। जब वो ठुमका लगाए, तब चूसना शुरू कर देना। रेशमा स्थिर हो गई।

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सतीश ये सब देख रहा था और मूठ मार रहा था। वो बोला: भाभी, मैं रेशमा की चुचियाँ पकड़ूँ? मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।

महेश: हल्के हाथ से पकड़ और धीरे से सहला, दबाना मत। स्तन अभी कच्चे हैं, दबाने से दर्द होगा।

रेशमा महेश का लंड मुँह में लिए आगे झुकी थी। सतीश उसके पीछे खड़ा हो गया। हथेलियों में दोनों स्तन भरके सहलाने लगा। वो बोला: भाभी, रेशमा के स्तन कड़े हैं और निप्पल्स भी छोटी-छोटी हैं। तेरे स्तन इनसे बड़े हैं और निप्पल्स भी बड़ी हैं।

मैं बगल में खड़ी थी। मेरा एक हाथ सतीश का लंड पकड़े मूठ मार रहा था। दूसरा हाथ रेशमा की क्लिटोरिस से खेल रहा था। क्लिटोरिस के स्पंदन से मुझे पता चला कि रेशमा बहुत उत्तेजित हो गई थी और दूसरे ऑर्गेजम के लिए तैयार थी। अचानक मुँह से लंड निकालकर वो खड़ी हो गई। अपने हाथ से भोस रगड़ती हुई बोली: बड़े भैया, चोद डालो मुझे, वरना मैं मर जाऊँगी।

महेश: पगली, तू अभी कम उम्र की है।

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रेशमा: देखिए, मैं 18 साल की हूँ, लेकिन मेरी चूत पूरी विकसित है और लंड लेने के काबिल है। भाभी, तुमने पहली बार चुदवाया, तब तुम भी 18 साल की थीं ना?

महेश: फिर भी, तू मेरी छोटी बहन है।

रेशमा: सही, लेकिन आप चाहते हैं कि मैं किसी और के पास जाऊँ और चुदवाऊँ?

महेश: बेटे, चाहे कुछ कहो, तेरे माँ-बाप क्या कहेंगे हमें?

रेशमा ने गुस्से में पाँव पटके और बोली: अच्छा, तो मैं चलती हूँ घर को। सतीश, चल। घर जाकर तू मुझे चोद लेना।

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महेश: अरी पगली, जरा सोच-विचार कर आगे चल।

मुँह लटकाए वो बोली: भाभी ने सतीश को चोदने दिया क्योंकि वो लड़का है। मेरा क्या कसूर? मुझसे अब रहा नहीं जाता। सतीश ना बोलेगा तो किसी नौकर से चुदवा लूँगी।

रेशमा रोने लगी। मैंने उसे शांत किया और कहा: घर जाने की जरूरत नहीं है इतनी रात को। तेरे भैया तुम्हें जरूर चोदेंगे।

इतने में फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। फटाफट ताश खेलते हों, ऐसा माहौल बना दिया। मैंने जाकर दरवाजा खोला। सामने चाची खड़ी थीं। अंदर आकर उन्होंने दरवाजा बंद किया और बोली: सब ठीक तो है ना?

मैं: वो आ गए हैं। उन दोनों ने काफी कुछ देख लिया है। एक मुसीबत है लेकिन।

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चाची: क्या मुसीबत है?

मैं: सतीश से तो वो… वो… करवा लिया, समझ गई ना? अब रेशमा भी माँग रही है।

चाची: तो परेशानी किस बात की है? तुझे तो मालूम होगा कि महेश झिल्ली तोड़ने में कैसा है।

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मैं: उनकी होशियारी की बात ही ना करें। कौन जाने कहाँ से सीख आए हैं तकनीक।

चाची: बस तो मैं चलती हूँ। महेश से कहना कि सब्र से काम ले।

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चाची चली गईं। मैं अंदर आई तो देखा कि रेशमा महेश से लिपटी हुई लेटी थी। उसकी एक जाँघ सीधी थी, दूसरी महेश के पेट पर पड़ी थी। उसकी भोस महेश के लंड साथ सटी हुई थी। उनके मुँह फ्रेंच किस में जुड़ गए थे। महेश का हाथ रेशमा की पीठ और नितंब सहला रहा था।

कुर्सी में बैठा सतीश देख रहा था और मूठ मार रहा था। अब निश्चित था कि क्या होने वाला था। मैंने इशारे से महेश को आगे बढ़ने का संकेत दे दिया। मैं सतीश के पास गई। उसे उठाकर मैं कुर्सी में बैठ गई और उसे गोद में ऐसे बिठाया कि हम महेश और रेशमा को देख सकें। सतीश का लंड मैंने जाँघें चौड़ी करके चूत में ले लिया। “भाभी… फिर से… उफ्फ… तू तो…” सतीश सिसकारा।

उधर चित लेटे हुए महेश पर रेशमा सवार हो गई थी, जैसे घोड़े पर। महेश का लंड सीधा पेट पर पड़ा था। चौड़ी की हुई जाँघों के बीच रेशमा की भोस लंड के साथ सट गई थी। चूत में पैठे बिना लंड भोस की दरार में फिट बैठ गया था। अपने नितंब आगे-पीछे करके रेशमा अपनी भोस लंड से घिस रही थी। “भैया… हाय… ये… कितना गर्म है…” रेशमा सिसकारी।

रेशमा के हर धक्के पर उसकी क्लिटोरिस लंड से रगड़ी जा रही थी और लंड की टोपी चढ़-उतर होती रहती थी। भोस और लंड काम-रस से तर-ब-तर हो गए थे। वो महेश के सीने पर बाहें टिकाकर आगे झुकी हुई थी और आँखें बंद किए सिसकारियाँ ले रही थी। महेश उसके स्तन सहला रहे थे और कड़ी निप्पल्स को मसल रहे थे।

थोड़ी देर में वो थक गई। महेश के सीने पर गिर पड़ी। अपनी बाहों में उसे जकड़कर महेश पलटे और ऊपर आ गए। रेशमा ने जाँघें चौड़ी करके अपने पाँव महेश की कमर से लिपटाए, बाहें गले से लिपटाई। भोस की दरार में सीधा लंड रखकर महेश धक्के देने लगे, चूत में लंड डाले बिना। रेशमा की क्लिटोरिस अच्छी तरह रगड़ी गई, तब वो छटपटाने लगी। “भैया… अब… अब डाल दो… प्लीज…” वो गिड़गिड़ाई।

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महेश बोले: रेशमा बिटिया, ये आखिरी घड़ी है। अभी भी समय है। ना कहे तो उतर जाऊँ।

रेशमा बोली नहीं। महेश को जोरों से जकड़ लिया। वो समझ गए। महेश अब बैठ गए। टोपी उतारकर लंड का मट्ठा ढक दिया। एक हाथ से भोस के होठ चौड़े किए और दूसरे हाथ से लंड पकड़कर चूत के मुँह पर रख दिया। एक हल्का दबाव दिया तो मट्ठा सरकता हुआ चूत में घुसा और योनि पटल तक जाकर रुक गया।

महेश रुके। लंड पकड़कर गोल-गोल घुमाया, हो सके इतना अंदर-बाहर किया। चूत का मुँह जरा खुला और लंड का मट्ठा आसानी से अंदर आने-जाने लगा। अब लंड को चूत के मुँह में फँसाकर महेश ने लंड छोड़ दिया और वो रेशमा ऊपर लेट गए।

उन्होंने रेशमा का मुँह फ्रेंच किस से सील कर दिया, दोनों हाथ से नितंब पकड़े और कमर का एक झटका ऐसा मारा कि झिल्ली तोड़ आधा लंड चूत में घुस गया। “उफ्फ… भैया… दर्द… आह्ह…” दर्द से रेशमा छटपटाई और उसके मुँह से चीख निकल पड़ी, जो महेश ने अपने मुँह में झेल ली। महेश रुक गए।

महेश को देख सतीश भी धक्का लगाने लगा। हम कुर्सी में थे, इसलिए आधा लंड ही चूत में जा सकता था। सतीश को हटाकर मैं फर्श पर आ गई और जाँघें फैलाकर उसे फिर मेरे ऊपर ले लिया। तेज रफ्तार से सतीश मुझे चोदने लगा। “भाभी… तू… हाय… कितनी मस्त है…” वो बड़बड़ाया।

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उधर रेशमा शांत हुई, तब महेश ने पूछा: कैसा है अब दर्द?

रेशमा ने महेश के कान में कुछ कहा, जो मैं सुन नहीं पाई। महेश ने लेकिन अपनी कमर से उसके पाँव छुड़ाए और इतने ऊपर उठा लिए कि घुटने कान तक जा पहुँचे। रेशमा के नितंब अधर हुए। महेश की चौड़ी जाँघों बीच से रेशमा की भोस और उसमें फँसा हुआ महेश का लंड साफ दिखने लगे।

आधा लंड अब तक बाहर था, जो महेश धीरे-धीरे चूत में पेलने लगे। थोड़ा अंदर, थोड़ा बाहर, ऐसे करते-करते दो-चार इंच ज्यादा अंदर घुस पाया, लेकिन पूरा नहीं। अब महेश ने वो तकनीक आजमाई, जो मेरे साथ सुहागरात को आजमाई थी।

उन्होंने होले से लंड बाहर खींचा स..र..र..र..र करके। अकेला मट्ठा जब अंदर रह गया, तब वो रुके। लंड ने ठुमका लगाया तो मट्ठे ने और मोटा होकर चूत का मुँह ज्यादा चौड़ा कर रखा। रेशमा को जरा दर्द हुआ और उसके मुँह से सिसकारी निकल पड़ी। इस बार महेश रुके नहीं। स..र..र..र..र..र..र करके उन्होंने लंड फिर से चूत में डाला।

आखिरी दो इंच तो बाकी ही रह गया, जा ना सका। बाद में महेश ने बताया कि रेशमा की चूत पूरा लंड ले सके इतनी गहरी नहीं थी। उसे ज्यादा दर्द ना लग जाए, इसलिए सावधानी से चोदना जरूरी था। ये तो अच्छा हुआ कि रेशमा की पहली चुदाई महेश ने की, वरना चाची की दहशत हकीकत में बदल जाती।

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यहाँ सतीश और मैं झड़ चुके थे। “भाभी… मेरा… फिर से… आह्ह…” सतीश का लंड नर्म होता चला था। महेश हल्के, धीरे और गहरे धक्के से रेशमा को चोदने लगे। “रेशमा… मेरी बिटिया… ले… मेरा लंड… मजा आ रहा है ना…” महेश गंदी बातें करते रहे। रेशमा के नितंब डोलने लगे थे। लंड चूत की पक्फ-पुच्च आवाज के साथ रेशमा की सिसकारियाँ और महेश की आहें गूँज रही थीं।

सतीश: भाभी, देख, भोस के होठ कैसे लंड से चिपक गए हैं? बड़े भैया का लंड मोटा है ना?

मैं: देवर जी, तुम्हारा भी कुछ कम नहीं है।

महेश के धक्के अब अनियमित होते चले थे। स..र..र..र..र की आवाज के कभी-कभी घच्छ से लंड घुसेड़ देते थे। लगता था कि महेश झड़ने के नजदीक आ गए थे। रेशमा लेकिन इतनी तैयार नहीं थी। उसने खुद रास्ता निकाल लिया। अपने ही हाथ से क्लिटोरिस रगड़ डाली और छटपटाती हुई झड़ी। “हाय… भैया… मैं… मैं गई… आह्ह…” वो चीखी। महेश स्थिर थे, लेकिन रेशमा के चूतड़ ऐसे हिलाते थे कि लंड चूत में आया-जाया करता था। रेशमा का ऑर्गेजम शांत हुआ, इसके बाद तेज रफ्तार से धक्के मारकर महेश झड़े और उतरे। “ले… मेरा माल… सारी चूत भर दूँगा…” वो गुर्राए।

करवट बदलकर रेशमा सो गई। सफाई के बाद हम सब सो गए। दूसरे दिन जागे, तब सतीश ने एक और चुदाई माँगी मुँह से। महेश ने भी अनुरोध किया। मैं क्या करती? दस मिनट की मस्त चुदाई हो गई। “भाभी… तू… हाय… रोज चुदवाती होगी ना…” सतीश ने हँसते हुए कहा। सतीश की खुशी छुपाए नहीं छुपती थी। शर्म की मारी रेशमा किसी से नजर मिला नहीं पाती थी। फिर भी महेश ने उसे बुलाया तो उसके पास चली गई। गले में बाहें डाल गोद में बैठ गई। महेश ने चूमकर पूछा: कैसा है दर्द? नींद आई बराबर? शरमाकर उसने अपना मुँह छुपा दिया महेश के सीने में। कान में कुछ बोली।

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महेश: ना, अभी नहीं। दो दिन तक कुछ नहीं। चूत का घाव ठीक हो जाए, इसके बाद।

लेकिन रेशमा जैसी हठीली लड़की कहाँ किसी का सुनती है? वो महेश का मुँह चूमती रही और लंड टटोलती रही। “भैया… प्लीज… एक बार और… मैं मर जाऊँगी…” वो गिड़गिड़ाई। महेश भी रहे जवान आदमी, क्या करे बेचारा? उठाकर वो रेशमा को अंदर ले गए और आधे घंटे तक चोदा। “हाय… भैया… जोर से… फाड़ दो मेरी चूत…” रेशमा की सिसकारियाँ बाहर तक सुनाई दीं। उस रात के बाद वो भाई-बहन अक्सर हमारे घर आते रहे और चुदाई का मजा लेते रहे। जब स्कूल खुले, तब उन्हें शहर में जाना पड़ा। मैं और महेश इंतजार कर रहे हैं कि कब वेकेशन पड़े और वो दोनों घर आए। आखिर नए-नए लंड से चुदवाने में और नई-नई चूत को चोदने में कोई अनोखा आनंद आता है। है ना?

तो दोस्तों, आपको ये देहाती चुदाई की कहानी कैसी लगी? अपनी राय और अनुभव कमेंट में जरूर शेयर करें!

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