मेरा नाम डिंपल है। मैं बिल्कुल कच्ची कली थी, अभी तक किसी मर्द के हाथों की गर्मी से अनजान। मेरी उम्र अब 19 साल की थी, पर उस वक्त मैं 18 की थी जब मेरे जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने मुझे हमेशा के लिए बदल दिया। मेरे सगे बाबूजी ने मेरी जवानी को अपने आगोश में ले लिया। ये कहानी दो साल पहले की है, जब मेरे घर में सब कुछ उथल-पुथल हो गया था। मेरी माँ एक लाइलाज बीमारी से चल बसी थीं, और मेरे चाचा जी को ब्रेन ट्यूमर ने जकड़ लिया था। घर में मातम सा छाया था। मेरे बाबूजी अकेले पड़ गए थे, और मेरी सेक्सी चाची, संध्या, जो अभी भरी जवानी में थीं, विधवा हो गई थीं।
धीरे-धीरे बाबूजी और चाची के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। चाची का गोरा, गदराया बदन और उनकी भरी-पूरी जवानी बाबूजी को लुभाने लगी। दोनों के बीच प्यार पनपने लगा, और जल्द ही वो रातों को एक-दूसरे की बाहों में खोने लगे। बाबूजी का 10 इंच लंबा और मोटा लंड हर रात चाची की चूत को रगड़ता था। मैं उस वक्त अबोध थी, मर्द और औरत के जिस्मानी रिश्तों की मुझे कोई समझ नहीं थी। पर धीरे-धीरे मुझे सब समझ आने लगा।
एक रात मैंने अपनी आँखों से वो मंजर देख लिया, जिसने मेरी मासूमियत को झकझोर दिया। संध्या चाची बाबूजी के कमरे में गईं और उनके सीने से लिपट गईं। दोनों के होंठ एक-दूसरे से मिले, और धीरे-धीरे उनकी साँसें गर्म होने लगीं। चाची का बदन किसी अप्सरा सा था—गोरा, भरा हुआ, और 36 इंच की चूचियां जो ब्लाउस में कसी हुई थीं। बाबूजी ने उनकी कमर में हाथ डाला और उन्हें अपने सीने से चिपका लिया।
“संध्या, आज रात को रंगीन कर दूँ क्या?” बाबूजी ने आँख मारते हुए कहा।
“जेठ जी, मैं तो बस उसी रंग में डूबने आई हूँ,” चाची ने शरारती अंदाज में जवाब दिया।
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बस फिर क्या, बाबूजी ने चाची को बाहों में कस लिया और उनके होंठों पर टूट पड़े। चाची ने गहरी लाल लिपस्टिक लगाई थी, जो बाबूजी के चूसने से धीरे-धीरे गायब होने लगी। दोनों एक-दूसरे को चूमते रहे, जैसे दुनिया में बस वही दो लोग बचे हों। चाची की साँसें भारी होने लगीं। बाबूजी ने उनके ब्लाउस पर हाथ रखा और चूचियों को दबाने लगे। चाची का फिगर एकदम मस्त था—न ज्यादा मोटा, न पतला, बिल्कुल सही शेप में।
“आह्ह… जेठ जी… धीरे… उह्ह्ह…” चाची की सिसकारियां कमरे में गूँजने लगीं।
बाबूजी ने चाची को बिस्तर पर लिटाया और उनकी चूचियों को ब्लाउस के ऊपर से मसलने लगे। चाची की चूचियां इतनी रसीली थीं कि ब्लाउस के ऊपर से ही उनके गोरेपन का अंदाजा लग रहा था। बाबूजी का जोश बढ़ता गया। उन्होंने जल्दी से चाची का ब्लाउस खोला और ब्रा के ऊपर से उनकी चूचियों को दबाने लगे।
“जेठ जी… जब आप मेरे अनार दबाते हो… आह्ह… मजा आता है… उह्ह्ह…” चाची ने सिसकारी भरी।
बाबूजी ने ब्रा भी उतार दी और चाची की नंगी चूचियों को देखकर पागल हो गए। वो सनी लियोन जैसे मुलायम और गोरे मम्मों को चूसने लगे। चाची की सिसकारियां और तेज हो गईं—
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“ओह्ह्ह… आह्ह्ह… जेठ जी… उह्ह्ह… और चूसो… आआआ…”
बाबूजी ने चाची की साड़ी उतारी, उनकी पैंटी खींच दी, और उनकी चूत को चाटने लगे। चाची की चूत गुलाबी और गीली थी। बाबूजी ने जीभ से उसे चाट-चाटकर और गीला कर दिया। फिर उन्होंने अपना लंड मुठ मारकर खड़ा किया और चाची की चूत में घुसा दिया। “खटाखट… खटाखट…” की आवाज कमरे में गूँजने लगी। चाची की चीखें और सिसकारियां मिलकर एक अजीब सा संगीत बना रही थीं—
“आह्ह्ह… जेठ जी… और जोर से… उह्ह्ह… मारो मेरी चूत… आआआ…”
ये सब देखकर मेरे मन में एक अजीब सी हलचल होने लगी। मैं समझ गई थी कि मर्द और औरत का रिश्ता क्या होता है। लेकिन तब तक बाबूजी की नजर मुझ पर पड़ने लगी थी।
दो साल बीत गए। अब मैं 19 साल की जवान लड़की बन चुकी थी। मेरा बदन कमल के फूल सा खिल गया था। मेरी चूचियां 34 इंच की हो गई थीं, जो टी-शर्ट में कसी हुई साफ दिखती थीं। मैं घर में ज्यादातर टी-शर्ट और लोअर पहनती थी। जब भी मैं बाबूजी के सामने झुकती, मेरी चूचियां टी-शर्ट के गले से झाँकने लगतीं। बाबूजी का लंड उनके पैंट में तन जाता था। वो मुझे छूने के बहाने ढूंढने लगे।
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एक रात बाबूजी ने संध्या चाची को खूब चोदा और फिर सो गए। मैं अपने कमरे में सो रही थी। आधी रात को बाबूजी मेरे कमरे में आए। वो मेरे पास लेट गए और मेरी गांड सहलाने लगे। मैं डर गई, पर खुद को सोता हुआ दिखाया। बाबूजी ने मेरी चूत में उंगली डाली और धीरे-धीरे रगड़ने लगे। मेरे मुँह से अनायास सिसकारी निकल गई—
“आह्ह… उह्ह्ह… मम्मी…”
इसके बाद तो बाबूजी का सिलसिला शुरू हो गया। वो हर रात पहले चाची को चोदते, फिर मेरे पास आते। मेरी चूचियों को दबाते, मेरी चूत सहलाते। एक रात चाची किसी दोस्त के घर गई हुई थीं। शाम के 8 बजे थे। बाबूजी लुंगी पहनकर मेरे सामने आए और उसे खोल दिया। उनका 10 इंच का काला, मोटा लंड मेरे सामने था।
“ये क्या दिखा रहे हो, बाबूजी?” मैंने डरते हुए पूछा।
“डिंपल, इसे पकड़ और जोर-जोर से मुठ मार,” बाबूजी ने सख्त लहजे में कहा।
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“क्यों?” मैंने हिचकिचाते हुए पूछा।
“जो कहता हूँ, कर! वरना मार पड़ेगी!” बाबूजी ने गुस्से में कहा।
मैं डर गई और उनका लंड पकड़कर मुठ मारने लगी। धीरे-धीरे ये रोज का काम हो गया। बाबूजी जब चाहते, मेरे पास आते और मुठ मरवाते। फिर उन्होंने मुझे लंड चूसना सिखाया। पहले तो मुझे घिन लगती थी, पर धीरे-धीरे आदत पड़ गई।
एक रात बाबूजी मेरे कमरे में आए और बोले, “डिंपल, तुझे मर्द-औरत की चुदाई का कुछ पता है?”
“थोड़ा-थोड़ा,” मैंने शरमाते हुए कहा।
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“कहाँ देखा तूने?” उन्होंने पूछा।
“आप और संध्या चाची… मैंने देखा था,” मैंने धीरे से कहा।
“मुझसे चुदेगी? पर ये बात किसी को नहीं बतानी, चाची को भी नहीं,” बाबूजी ने कहा।
“ठीक है,” मैंने सिर हिलाया।
उस रात मैंने पिंक रंग की फ्रॉक पहनी थी। बाबूजी मेरे पास आए और मुझसे लिपट गए। रात के 3 बजे थे, और चाची गहरी नींद में थीं। बाबूजी ने मेरे गालों को चूमा। मेरे गोरे गाल उनकी मूंछों से गुदगुदा रहे थे। फिर उन्होंने मेरी चूचियों को फ्रॉक के ऊपर से मसलना शुरू किया।
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“आह्ह… बाबूजी… धीरे…” मैं सिसकारी।
बाबूजी ने मेरे होंठों को चूसा, मेरी चूचियों को दबाया। मैं सिसकारियां ले रही थी—
“उह्ह्ह… मम्मी… आह्ह… सीसीसी… हा हा…”
“मेरा लंड चूस, डिंपल,” बाबूजी ने कहा और लुंगी खोल दी। उनका 10 इंच का लंड मेरे सामने था। मैं जमीन पर बैठ गई और उसे पकड़कर फटना शुरू किया। धीरे-धीरे लंड टनटना उठा। मैंने उसे मुँह में लिया और चूसने लगी।
“हुत… हूँउ… हूँउ… सीसीसी… चूस… मेरी रानी…” बाबूजी सिस्कर रहे थे।
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मैं उनके लंड को लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी। उनके अंडों को सहलाने लगी।। बाबूजी का जोश बढ़ रहा था। उन्होंने मेरे सिर को पकड़ा और मेरे मुँह को चोदना शुरू किया। मैं साँस नहीं ले पा रही थी। फिर उन्होंने लंड निकाला और मेरे चेहरे पर रगड़ने लगे—मेरी आँखों पर, गालों पर, माथे पर।
“उह्ह्ह… बाबूजी… ये क्या…” मैं सिसकारी।
“फ्रॉक उतार, बेटी,” बाबूजी ने कहा। मैंने फ्रॉक उतार दी। अंदर मैंने सफेद स्मीज़ और पैंटनी पहनी थी। बाबूजी ने मुझे बेड पर लटाया। वो खुद भी नंगे हो गए। उनकी छाती पर घने बाल थे, जो मुझे देखकर हिल रहे थे। उन्होंने मेरी चूचियों को स्मीज़ के ऊपर से मसला, फिर स्मीज़ खींचकर उतार दी।
“बेटी, तू तो सनी लियोन से भी सेक्सी है,” बाबूजी ने कहा।
“आप चाची को चोदते थे… तभी मैं जवान हो गई,” मैंने शरमाते हुए कहा।
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बूलजी ने मेरी चूचियों को मूँह में लिया और चूसने लगे। मेरी निप्पल्स को काट-काटकर चूस रहे थे। मैं सिस्कर रही थी—
“आह्ह्ह… उँह… बबूजी… धीरे… आइई… आआ…”
“तेरे दूध चाची से भी जूसी हैं… आह्ह… रस निकाल दूँगा!” बाबूजी ने कहा।
वो 40 मिनट तक मेरी चूचियों को चूसे। फिर मेरी पैंट्सी के ऊपर से मेरी चूत को रगड़ा। मैं कुलबुलाने लगी।
“मादरचोद… तू तो बड़ी गर्म है… आज तेरी चूत को फूल बना दूँगा!” बाबूजी बोले।
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उन्होंने मेरी पैंट्सी उतार दी और मेरी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को रगड़ रही थी। मैं अपनी गांड उठाने लगी—
“चूसो… बाबूजी… और चूसो… आह्ह… मजा… उह्ह्ह…”
बाबूजी ने मेरी चूत को चाट-चाटकर गीला कर दिया। फिर उन्होंने अपना लंड फटाया और मेरी चूत में घुसा दिया। “खटाखट… खटाखट…” की आवाज गूँजने लगी।
“आउ… आउ… आह्ह… बाबूजी… धीरे… उह्ह्ह…” मैं चीखी।
बाबूजी ने मेरी टाँगें ऊपर उठाईं और जोर-जोर से चोदने लगे। मैं सिस्कर रही थी, दर्द और मजा दोनों एक साथ हो रहा था।
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“आइ… आइ… बाबूजी… धीरे… दर्द… उह्ह… हा हा…”
बाबूजी रुके नहीं। वो मेरी चूत को पेलते रहे। फिर लंड निकालकर मेरी चूत को फिर चाटा।
“कुतिया बन, बेटी… इस पोज में मजा आएगा,” बाबूजी बोले।
मैं कुतिया बन गई। बाबूजी ने मेरी 38 इंच की गोरी गांड को सहलाया, चूमा।
“आइ… बाबू… हा हा… उह्ह्ह…”
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उन्होंने मेरी गांड को चाटा, फिर लंड घुसा दिया।
“सीसी… धीरे… गांड… टाइट है… आआ…” मैं चीखी।
बाबूजी ने मेरी गांड को 15 मिनट तक चोदा और वहीं झड़ गए। अब दो साल और बीत गए। बाबूजी हर रात पहले चाची की चूत चटकाते हैं, फिर मेरी चूत की बासुरी बजाते हैं। मैं अब चुदाई की आदी हो गई हूँ। मेरी चूत ढीली हो चुकी है, और मैं कली से फूल बन गई हूँ।
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