बहकती बहू-19

Bahu ne Saas Sasur ki chudai dekhi  – कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-18

काम्या नंगी ही बिस्तर पर पसर गई। घंटे भर में दो बार की ताबड़तोड़ ठुकाई ने उसके अस्थि-पंजर हिला दिए थे। खुली आँखों से अपनी चुदाई के पल याद करने लगी। मधु, पिंकी ने सही कहा था—सुहागरात के बाद दूसरा दिन ढंग से चलना मुश्किल। बाबूजी ने भी उसकी कमर तोड़ दी थी, तभी तो मम्मी ने लंगड़ाहट देख पूछा था। अभी-अभी की चुदाई का लुत्फ याद कर रही थी कि मोबाइल बजा। स्क्रीन पर सुनील का चेहरा देख घबरा गई, मानो वो फोन में नहीं, सामने खड़ा हो। अभी ससुर के साथ अवैध संबंध का मजा लिया, और अब पति का फोन। चादर से बदन ढका, चेहरा पसीने से तर। हिम्मत कर फोन उठाया।

काम्या: हेलो।
सुनील: हाँ, जानेमन, हम बोल रहे। तुम कैसी हो?
काम्या: ठीक हूँ। आप कैसे हैं?
सुनील: मेरा हाल मत पूछ, यार।
काम्या: क्यों, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?
सुनील: तबीयत ठीक है, पर न भूख लग रही, न नींद आ रही।
काम्या: ऐसा क्या हो गया? इतने बेचैन क्यों?
सुनील: तुम्हारी याद ने जीना मुहाल कर रखा है।

काम्या अब थोड़ा संभल गई थी।
काम्या: झूठ मत बोलिए। इतनी याद आती, तो इतने दिन न रुकते। जल्दी छुट्टी ले आते। झूठ बोलना कोई आपसे सीखे।

बैठने की कोशिश की, चूत में दर्द की चुभन, मुँह से सिसकारी निकल गई। सुनील ने तड़पकर पूछा,

सुनील: क्या हुआ? ठीक हो ना?
काम्या: कुछ नहीं, मैं ठीक हूँ।
सुनील: नहीं, कुछ तो है। अभी कराह रही थी। प्लीज बताओ।

काम्या के दिमाग में आइडिया कौंधा। बाबूजी ने उसकी चूत का भोसड़ा बना दिया था। सुनील देखेगा, तो क्या सोचेगा? मौका सही था।

काम्या: जान, ऐसा कुछ नहीं, जिससे तुम परेशान हो।
सुनील: जैसा भी है, बताओ।
काम्या: तुम नाराज हो जाओगे, इसलिए नहीं बता रही।
सुनील: क्या बोल रही हो? मैं तुमसे नाराज? तुम मेरी जान हो। कॉम ऑन, बताओ।
काम्या: जी, वो… मैं मूली से खेल रही थी।
सुनील: वॉट! मूली से खेल रही थी? ये कौन-सा खेल?
काम्या: मतलब, वहाँ पर खेल रही थी।
सुनील: तुम क्या बोल रही? कुछ समझ नहीं आया। क्लियर बोलो।
काम्या: जी, मैं मूली से वहाँ कर रही थी, जहाँ तुम अपनी मूली से करते हो।

सुनील को बात समझ में आई।
सुनील: डार्लिंग, कहीं तुम मास्टरबेट तो नहीं कर रही?
काम्या: जी, वो… ऐसा ही। कुछ नहीं।
सुनील: अरे, जान, इसमें शरम क्या? ये तो नेचुरल है। इट हैपन्स समटाइम। अच्छा, बताओ, कब से शुरू किया?

काम्या को राहत मिली।
काम्या: जी, जब तुम्हारा आने का फोन आया, तब से तुम्हारी याद सताने लगी। कंट्रोल नहीं हुआ।
सुनील: कोई बात नहीं, हनी। टेक इट ईजी। मूली बहुत बड़ी तो नहीं?
काम्या: ज्यादा बड़ी नहीं। थोड़ी बड़ी थी, पर मैनेज कर लिया। Initially it was painful, but now I can take it easily. Don’t take it otherwise, honey.
सुनील: ओके, बेबी। कीप इट ऑन टिल आय कम। कल मेरे बाद इन सब की जरूरत नहीं पड़ेगी। बाय, बेबे।

इसे भी पढ़ें   ऑटो वाले ने मुझे पटाकर छोड़ दिया | Hot Sex Young Girl Porn Story

फोन कटने पर काम्या सोचने लगी, “हनी, अब इस नए मूले की हमेशा जरूरत पड़ेगी। बिना इसके कैसे रह पाएँगे?” मन-ही-मन शुक्र मनाया कि सुनील को चूत ढीली होने का शक नहीं होगा।

अगले दिन सुबह से काम्या ने ढंग के कपड़े पहने। दोपहर में सुनील आने वाला था। पहले भी सुनील के आने से पहले बाबूजी से नैन-मटक्का चलता, पर उसके सामने ढंग से रहती। सुनील के आते ही घर में खुशी का माहौल। मदनलाल भी खुश था—आखिर बेटा था, महीनों बाद आया। सुनील ने सबके लिए कपड़े लाए। काम्या के लिए जींस, टी-शर्ट, शॉर्ट्स। कपड़े देख काम्या चौंकी।

काम्या: ये क्या कपड़े लाए? अब मैं ये पहनूँगी?
सुनील: तो क्या हुआ? आजकल सब पहनते हैं।
काम्या: शादी के बाद कोई ये सब पहनता है? शॉर्ट्स उठाकर ये क्या? शादी से पहले भी नहीं पहना।
सुनील: डोंट बी सिली। आजकल सब चलता है। मम्मी, आपको ऐतराज?

शांति खुले विचारों वाली थी। मदनलाल के मिलिट्री जीवन की वजह से आधा हिंदुस्तान देखा था।
शांति: कोई प्रॉब्लम नहीं, बहू। तुम क्यों परेशान? सुनील है, तो पहन लो। जींस सब पहनते, शॉर्ट्स घर में ठीक हैं। क्यों जी, सही ना?
मदनलाल: हाँ, क्यों नहीं। बच्चों को मन करने दो। मन-ही-मन काम्या को शॉर्ट्स में देखने के सपने देखने लगा। बहू, घर के काम में शॉर्ट्स पहन लिया करो, कंफर्टेबल रहता है।

रात को खा-पीकर सब अपने कमरों में। छह महीने बाद सुनील आया, तो काम्या पर पिल पड़ा। फटाफट नंगी कर, चढ़कर जोर-आजमाइश शुरू। पहले सुनील का लंड हल्का अहसास देता, आज कुछ पता न चला। चौड़ी बोतल को चम्मच टटोल रहा था। चुदाई का अहसास सिर्फ सुनील के नितंबों के टकराने से। सिक्के के दो पहलू जैसे, हर घटना के दो असर। चौड़ी चूत का फायदा—सुनील दस-बारह की जगह बीस धक्कों में निपटा, फ्रिक्शन नहीं था। चुदाई के बाद सुनील संतरों से खेलने लगा। छत पर मदनलाल की चहलकदमी सुनाई दी। सुनील सो गया, काम्या बाबूजी के मूसल के सपने देखने लगी। ग्यारह बजे मदनलाल नीचे आकर सो गया।

दूसरे दिन सुनील काम्या को जींस, स्लीवलेस पहनाकर सिनेमा ले गया। काम्या जींस में निकली, तो मदनलाल के प्राण हलक में। फिगर बेमिसाल, लाखों में एक। दूसरी रात वही कहानी। सुनील तेज हमला, तेज मैदान छोड़ देता। जोश माचिस-सा, फुर्र बुझ जाता। काम्या कोयले-सी सुलगती रही। सुनील सो गया, काम्या बाबूजी के पदचाप सुनती रही। कामग्नि में जलती काम्या को शरारत सूझी। सोचा, हम जल रहे, बाबूजी को चैन न लें। खिड़की के पास गई, पर्दा छह इंच खिसकाया, ताकि अंदर दिखे। कल रात महसूस किया था, बाबूजी खिड़की पर खड़े थे। सोफे पर पट लेटी, ब्रा-पैंटी में। मदनलाल की सीढ़ियों की आवाज सुनी, पैंटी घुटनों तक सरकाई।

इसे भी पढ़ें   भाभी ने फटी सलवार में लंड घुसवाया

काम्या जानती थी, गोलमटोल, गद्देदार गाण्ड देख बाबूजी की नींद हराम होगी। बाबूजी गाण्ड के रसिया थे। रसिया बालम को उसी दाँव से चित करने का मन बनाया। खुदा साथ हो, तो मिट्टी सोना बन जाती। ये चाल मदनलाल को नए अनुभव की ओर ले जा रही थी।

मदनलाल नीचे आया, खिड़की की ओर बढ़ा। सिसकारी सुनने की उम्मीद थी। पर्दा सरका देख चेहरा खिल गया। काम्या सोफे पर ब्रा-पैंटी में। लगा, बेटे-बहू में विवाद हुआ। सुनील की कमजोरी पर काम्या ने कुछ कहा होगा। जवानी निहारता, हथियार मुठियाता रहा। धीरे-धीरे समझा, झगड़ा नहीं। काम्या ने ललचाने को पर्दा सरकाया, पैंटी आधी उतारी। काम्या के कान पदचाप पर। आवाज रुकी, समझ गई, बाबूजी नशीली जवानी निहार रहे। हाथ पेट के नीचे से चूत पर, मुनिया सहलाने लगी। क्लिट मसली, मुनिया भींची। मदनलाल पागल हुआ। बर्दाश्त न हुआ, लुंगी से पप्पू निकाला, सटका मारने लगा। काम्या ने दो उंगलियाँ चूत में घुसाईं। मर्द लंड पेलता-सा दृश्य। हथेली बिस्तर पर, गाण्ड ऊपर-नीचे कर चुदाई शुरू। मदनलाल को काटो, खून नहीं। मन-ही-मन बोला, “रुक, जानेमन, मौका मिले, गर्मी निकाल दूँगा। पतली उंगली से मेरे लंड की बराबरी? अबकी सूखा पेलूँगा, तब समझेगी मर्द कौन।”

काम्या उत्तेजित थी। उंगलियाँ चूत में, बाबूजी देख रहे—कल्पना से आग लगी। कमर जोर-जोर से पटकी, मिनटों में झड़ गई। मदनलाल को माल व्यर्थ न करने की। चुपके निकल गया। काम्या हाँफते हुए सोफे पर लुढ़क गई।

मदनलाल कमरे में दाखिल हुआ। शांति गहरी नींद में, साड़ी कमर तक, नंगी, टाँगें फैली, चूत पूरे शबाब पर। काम्या की चूत का जलवा देखा, अब शांति की दुकान। पप्पू दुश्मन बना था। शांति की चूत समाधान लाई। करीब आकर गौर से देखने लगा। पच्चीस साल चोदी थी, पिछले चार-पाँच साल बंद। आज कुछ करना था। शांति को जगाया, तो मना कर देगी। सोते में हमला करने का फैसला। धीरे चूत पर हाथ फेरा। शांति नींद में, शरीर प्रतिक्रिया देने लगा। चूत गीली हुई। टाँगें और फैलाईं, मूसल सेट किया। फोरप्ले का वक्त नहीं, नसें फटी जा रही थीं। गहरी साँस ली, करारा शॉट मारा। शांति की चूत ने सालों लंड खाया, आधा से ज्यादा दनदनाता घुसा। शांति की चीख निकली, आँखें खुलीं। मदनलाल ने हथेली मुँह पर रखी, कहीं बेटा-बहू न आएँ। शांति गों-गों करने लगी। मदनलाल ने जोरदार धक्का मारा, पूरा लंड जड़ तक समा गया। एक के बाद एक शॉट। शांति कसमसाई, फिर वासना में बहने लगी। आँखों में काम, चेहरे पर लाली। इशारे से हाथ हटाने को कहा।

शांति: क्या हो गया? मन था, तो बता के नहीं कर सकते थे?
मदनलाल: तुम सो रही थी। जगाता, तो मना करती।
शांति: क्यों मना करती?
मदनलाल: तुम कहती हो, अब ये अच्छा नहीं लगता।
शांति: तो? अभी जबरदस्ती की, तब भी तो कर सकते थे।
मदनलाल: मालूम था, तुम मानोगी?
शांति: औरतें सीधे नहीं मानतीं, मनाना पड़ता। हमें क्या पता, तुममें इतना जोश बचा है। वरना मना न करती।
मदनलाल: तुमने सोचा, हम काम के नहीं रहे?
शांति: सोचा तो यही, पर अब लगता है, पुराना जुनून बाकी है। देखो, हमारी हालत खराब कर दी।

इसे भी पढ़ें   पति, पत्नी और गैर मर्द

दोनों चुदाई का मजा लेने लगे। शांति की चीख काम्या तक पहुँची। वो सोफे पर बाबूजी का मूसल फील करने की फंतासी में थी। चीख ने ध्यान भंग किया। समझ नहीं आया, माँजी क्यों चीखी? कहीं बाबूजी को खिड़की पर देख लिया? झगड़ा तो नहीं? दम साधे रही, फिर मैक्सी पहन मदनलाल के कमरे की खिड़की पर गई। सिसकारी सुन समझ गई, बाबूजी मम्मी के साथ प्रोग्राम कर रहे।

शांति: आह! धीरे करो, दर्द दे रहा!
मदनलाल: तीस साल से ले रही, अब दर्द?
शांति: पहले की बात मत करो। सालों से कुछ किया नहीं, अब जान निकाल रहे।
मदनलाल: दर्द वाली बात नहीं होनी चाहिए। नई दुल्हन हो?
शांति: इस उम्र में सब सूख जाता। क्रीम तो लगाते। तुममें इतना जोश, लगता है 22-24 की जवान दुल्हन चाहिए।
मदनलाल: तुम भी कुछ भी बोल देती। इस उम्र में कहाँ से दुल्हनिया?

काम्या सुन रही थी। “नई दुल्हनिया” सुन बोली, “मिल गई नई दुल्हनिया। बुढ़िया के पीछे क्यों पड़े?”

शांति: मर्दों का भरोसा नहीं। तुम्हारे बारे में सब पता है।
मदनलाल: कौन-सी कहानी?
शांति: नई ब्याह कर आई थी, तो गाँव की औरतों ने बताया, तुम्हारी कई भुजाई दोस्त थीं।
मदनलाल: दोस्ती का गलत मतलब मत निकालो।
शांति: औरत-मर्द की दोस्ती का एक ही मतलब। रखी बाँधने के लिए दोस्त नहीं बनाए होंगे।
मदनलाल: तुम इतनी शक्की हो, कोई समझा नहीं सकता।
शांति: अच्छा, आज आँख बंद कर क्यों कर रहे? कोई नई दुल्हन याद आ रही?
मदनलाल: अरे, नींद आ रही है।

काम्या समझ गई, बाबूजी उसे याद कर चोद रहे। बुढ़िया में क्या रखा? मन में बुदबुदाई, “हमारी गलती, बाबूजी को तड़पाया। इस चक्कर में खत्म कहानी फिर शुरू। कहीं बुढ़िया शौकीन न बन जाए।”

शांति की शांत चूत में लंड ने दस्तक दी, अशांति फैल गई। मदनलाल का विषधर हाहाकार मचाए था। शांति टिक न पाई, चीखकर बहने लगी। काम्या का मन खट्टा। उसका होना मम्मी को मिल गया।

शांति: आपका नहीं हुआ?
मदनलाल: अभी कहाँ?
शांति: प्लीज जल्दी करो, जलन हो रही।

काम्या ने सुना, बुदबुदाई, “जलन है, तो क्यों चुदवाती बुढ़ापे में?” मदनलाल ने तेज झटके मारे, मंजिल पाकर हाँफने लगा।

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-20

Related Posts

Report this post

Leave a Comment