बहकती बहू-16

कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-15

काम्या बेकाबू हो गई। गरम, खुरदुरी जीभ की छुअन से ऐंठी, सिसकारी निकली, और झर-झर बहने लगी। मदनलाल अमृत को लपर-लपर पीने लगा, जैसे जन्मों का प्यासा हो। काम्या निढाल होकर साँसें संयत करने लगी। मदनलाल बाजू में लेट गया, बहूरानी की नंगी जवानी निहारने लगा। धीरे से एक संतरा मुँह में लिया, रसपान शुरू किया। उसका हाथ मलाई-सी जाँघों पर फिसला। महीनों के अनुभव से काम्या के कमजोर पॉइंट्स पहचान चुका था।

मदनलाल ने ठान लिया, “आज हर हाल में गर्भधान संस्कार करूँगा। लंड तभी डालूँगा, जब बहू गिड़गिड़ाए।” अनुभवी चोदू अपनी कला दिखाने लगा। जाँघों की मालिश करते हुए उंगली चूत में डाली। काम्या तड़प उठी। संतरों का जूस पहले से पी रहा था, अब उंगली ने आग लगाई। साँसें भारी, आँखें गुलाबी। उंगली अंदर-बाहर, काम्या मदहोश। दो उंगलियाँ डालीं।

काम्या: उई माँ! आह, मर गई! हाय दैया!

सिसकारियाँ गूँजीं। मदनलाल ने उंगलियाँ ऊपर की, जी-स्पॉट पर हमला। काम्या उछल पड़ी। चीटियाँ रेंगने लगीं, जैसे फुलझड़ी जल रही हो। पाँच मिनट में दोबारा ऑर्गेज्म की ओर। कुदरत की नेमत—मल्टीपल ऑर्गेज्म। काम्या की कमर कमान-सी उठी। डर थी कि बाबूजी उंगली से ही पार न करें। उसे मूसल चाहिए था।

काम्या: बाबूजी, प्लीज करिए ना!
मदनलाल: कर तो रहे, जान।
काम्या: उंगली से नहीं, उससे!
मदनलाल: किससे? बताओ।

काम्या ने मूसल पकड़कर कहा, “इससे करिए ना!”

मदनलाल: बोलो, किससे?
काम्या: बता तो रहे, इससे!
मदनलाल: इसका नाम बताओ।
काम्या: हमें नहीं मालूम नाम-वाम।
मदनलाल: लंड बोलते हैं। नाम लेकर बोलो।
काम्या: जी, नाम जरूरी है?
मदनलाल: जानू, सेक्स में खुलकर बोलो, तो मजा दोगुना।
काम्या: अभी मजा नहीं आ रहा?
मदनलाल: आ रहा है, पर और चाहिए। बोलो।
काम्या: अरे, जिद्दी हो! लंड से करिए।
मदनलाल: लंड से करिए नहीं, लंड से चोदो कहो।
काम्या: ओफ! ठीक है, लंड से चोदो। खुश?
मदनलाल: सोच लो। बाद में “चीटर” मत कहना।
काम्या: पहले की बात और थी। अब आप पति हो, चीटर नहीं कह सकते।
मदनलाल: क्यों?
काम्या: पहले सिर्फ ससुर थे, अब पति। आपका हक है।
मदनलाल: फिर करने का? चोदने का बोलो।
काम्या: हे राम, कैसा झल्ला आशिक! आपको चोदने का हक है। अब चोदोगे या पूछते रहोगे?

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मदनलाल का मूसल बेकाबू था। टाँगें फैलाईं, टाँगों के बीच सेट हुआ। काम्या ने आँखें बंद कीं। मदनलाल ने सुपाड़ा चूत के मुहाने पर रगड़ा। गरम लोहे-सा सख्त लंड, सुखद छुअन। चूत लार टपकाने लगी। अनुभवी मदनलाल ने देखा, चूत तैयार है। सुपाड़ा नन्हे छेद में फिट किया। कठोर मर्दाना अंग का अहसास काम्या में कयामत ढा रहा था। सुनील का तो पता ही नहीं चलता, और बाबूजी का मुहाने पर ही जैसे आस्तित्व ढक गया। विशालता से घबराई, दर्द के डर से सहमी, पर जवानी की आग में तैरना था। कमर अपने आप उठी, सुपाड़ा धस गया।

मदनलाल ने किला फतह करने का फैसला किया। सुपाड़ा ज्वालामुखी के मुहाने पर सेट, बोझ भुजाओं में, नितंबों में तनाव, धक्का लगाने ही वाला था कि सुनील की याद आई। सुनील ने पीछे से चोदा था, मोरनी बनी काम्या का पिछवाड़ा इतना सेक्सी था कि मदनलाल ने उसी पोज में चोदने का मन बनाया था। पोजीशन छोड़ी, बाजू में बैठ गया।

काम्या: क्या हुआ? रुक क्यों गए? करेंगे नहीं?
मदनलाल: करेंगे, क्यों नहीं? तरस रहे हैं।
काम्या: तो रुके क्यों?
मदनलाल: पीछे से करेंगे।
काम्या: ओह! ऐसे ही कर लो। देर क्यों?

बहू की बेताबी देख ससुर की तबीयत हरी।

मदनलाल: तुम्हारी गाण्ड कितनी पसंद है। रात-दिन यही घूमते हैं। पहली बार पीछे से करेंगे।
काम्या: बाबूजी, क्या-क्या सोच रखा है? दोनों बाप-बेटे एक जैसे! शरमाते हुए।
मदनलाल: मतलब?
काम्या: साहबजादे को भी पीछे से पसंद। खानदान को यही बीमारी!
मदनलाल: बीमारी नहीं, तुम्हारा पिछवाड़ा बीमार कर देता है। भगवान की कृपा है तुम पर।
काम्या: कृपा तो रही, आप कब करेंगे? सारी रात बहस?
मदनलाल: अभी करते हैं। पलटकर तैयार हो। जी भरकर गाण्ड देख लें।
काम्या: बहूरानी नहीं, बीवी हूँ। चौपाया हुई।
मदनलाल: जानू, किनारे पर। खड़े होकर करेंगे।

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मदनलाल को सुनील वाली पोजीशन याद थी। काम्या बेड के किनारे मोरनी बनी।

काम्या: मर्दों की फंतासियाँ! बस चलता, तो औरतों को लिटाए रखें।
मदनलाल: चिंता मत करो, शांति न हो, तो तुम्हें नंगी रखूँगा, जैसे मधु का ससुर।
काम्या: आहा, न्यूड रखने वाले! बेटा नहीं रखता, पापा को मस्ती चढ़ी!

काम्या ने कंधे बेड पर टिकाए, नितंब ऊपर उठे। मोरनी आसन में गाण्ड इतनी मनोहारी कि ऋषि-मुनि ललचाएँ। मदनलाल समझ गया, इंद्र क्यों युद्ध छोड़ अप्सरा चुनता था। गाण्ड देखकर चाटने का मन। घुटनों पर बैठा, साँड़ की तरह चाटा। चूत पर मुँह रखा, ऊपर चाटा। गाण्ड के छेद पर जीभ लगी, काम्या गनगनाई। मदनलाल मन में बोला, “पड़ोसियों को भी प्यार करते हैं।” काम्या उत्तेजना के शिखर पर।

काम्या: जानू, अब मत तड़पाओ! चोदो ना! नाउ, आई नीड योर कॉक इनसाइड मी! फक मी हार्ड, लाइक योर स्लट! टियर मी अपार्ट!

मदनलाल ने लंड छेद पर सेट किया। काम्या सख्त माँस को योनि में महसूस कर तड़पी। कमर पकड़कर करारा शॉट मारा। काम्या चीखी, लड़खड़ाकर बेड पर गिरी। चेहरे पर दर्द, भय। चूत चेक की, फटी तो नहीं?

काम्या: बाबूजी, नहीं हो पाएगा! जान निकल जाएगी! बाप रे, कितना दर्द! नहीं करवाना!

ससुर परेशान। समझ गया, घोड़ी बनाकर पहली चुदाई असंभव। बहू हर धक्के में गिर जाएगी। पहली बार नीचे दबाकर करना होगा। पुराने अनुभव याद आए। शांति, मोहिनी, नौकरानी की लड़की, मजदूरनी—चार-पाँच का शील भंग किया था। कुंवारी का चुदना बुरा सपना होता है। काम्या टेक्निकली कुंवारी थी।

मदनलाल: जान, इतना डर क्यों? पहली बार ऐसा होता है। थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा।
काम्या: बहुत दर्द हुआ। मर न जाएँ!
मदनलाल: पगली, सुहागरात में कोई मरी? शांति को देख, कितनी मस्त।
काम्या: आपका बहुत बड़ा! कहीं फट न जाए।
मदनलाल: योनि हर साइज में अडजस्ट होती है। “टियर मी अपार्ट” बोल रही थी। बड़ा है, तो बेहतर। सौ ग्राम से डर रही हो, तीन किलो का बच्चा कैसे पैदा करोगी? माँ बनना है?
काम्या: हर हाल में बनना है, चाहे मरना पड़े।
मदनलाल: तो डरो मत। भरोसा करो, कुछ नहीं होने देंगे। तुम जान हो।
काम्या: ठीक है, आपके भरोसे छोड़ रहे हैं। धीरे करिए। घोड़ी बनने लगी।
मदनलाल: नहीं, लेटी रहो। ऊपर चढ़कर करेंगे।

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काम्या लेटी, टाँगें उठाईं, मुस्कराकर बोली,

काम्या: जानू, “करेंगे” नहीं, “चोदेंगे” बोलिए।

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-17

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