Students ne milkr vidhwa teacher ka gangbang kiya sex story – करीब तीन साल पहले मेरी जिंदगी में एक तूफान आया था। मैं तब सिर्फ अठाइस साल की थी, जब मेरे शौहर की सड़क हादसे में मौत हो गई। हम उस वक्त दिल्ली में रहते थे। उनकी मौत ने मुझे अंदर तक तोड़ दिया था। दो-तीन महीने बाद मैंने दिल्ली का मकान किराए पर दे दिया और मेरठ के पास अपने माता-पिता के घर वापस आ गई। मेरा खानदान रसूखदार था, मेरे अब्बू की शुगर मिल थी और वो इलाके के मशहूर सियासतदां भी थे। पैसों की कोई कमी नहीं थी। मैं शुरू से ही ऐशो-आराम में पली-बढ़ी थी। बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई की, फिर दिल्ली के एक नामी कॉलेज से बीए और बीएड पूरा किया। मैं आजाद ख्यालों वाली थी, लेकिन तहजीब और इखलाक मेरे खून में थे। मैंने हमेशा अपनी परहेजगारी और शराफत को बरकरार रखा।
माता-पिता के पास आने के बाद मैंने वक्त गुजारने के लिए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए शुरू किया, वो भी पत्राचार के जरिए। मुझे यहाँ आए हुए कुछ ही महीने हुए थे कि मेरे अब्बू के एक दोस्त ने अपने प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश पढ़ाने का ऑफर दे दिया। उनका स्कूल मेरठ से कुछ किलोमीटर दूर था और बारहवीं तक की पढ़ाई होती थी। मैंने कम क्वालिफिकेशन के बावजूद बारहवीं तक की क्लास पढ़ाना शुरू कर दिया। इसकी दो वजहें थीं—एक तो मैं शुरू से इंग्लिश मीडियम में पढ़ी थी और मेरी बीए भी इंग्लिश में थी, दूसरा, स्कूल मेरे अब्बू के दोस्त का था, और उन्हें कोई और काबिल टीचर नहीं मिल रहा था।
स्कूल में सबको पता था कि मैं मालिक की करीबी रिश्तेदार और एक मशहूर सियासतदां की बेटी हूँ। इस वजह से मेरा रुतबा कुछ ज्यादा ही था। मैं सख्त टीचर थी। स्कूल के बिगड़े और नालायक लड़कों को मैं सबके सामने डांटती और कई बार उनकी पिटाई भी कर देती थी। मेरी सख्ती की वजह से स्टूडेंट्स मुझसे खौफ खाते थे। कुछ ही हफ्तों में मैं स्कूल की डिसिप्लिन इंचार्ज और स्टूडेंट काउंसलर बन गई। मुझे एक छोटा-सा ऑफिस भी मिल गया था। प्रिंसिपल मैडम ने स्कूल के इंतजामात में भी मुझे शामिल करना शुरू कर दिया।
स्कूल मेरे घर से तकरीबन पच्चीस किलोमीटर दूर था। शुरू-शुरू में मैं अपनी कार ड्राइव करके जाती थी, लेकिन बाद में स्कूल की बस से आने-जाने लगी। हमारी रूट की बस हमेशा खचाखच भरी रहती थी। टीचरों और छोटे बच्चों को बैठने की जगह मिल जाती थी, लेकिन बड़े स्टूडेंट्स को खड़े होकर सफर करना पड़ता था। सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन छुट्टी के बाद घर लौटते वक्त मैंने नोटिस किया कि बारहवीं की एक लड़की, सुहाना, उदास चेहरा लिए बस से उतरी। उसकी सहेली फातिमा उसके कान में फुसफुसा रही थी, “सुहाना, तू घबरा मत… कल हम इंग्लिश वाली तबस्सुम मैम से बात करेंगे… वो उन बदमाशों को अच्छा सबक सिखाएंगी!”
मुझे बात कुछ समझ नहीं आई, लेकिन मैंने सोचा कि अगले दिन जब वो मुझसे बात करेंगी, तो सब साफ हो जाएगा। स्कूल की बड़ी लड़कियाँ अक्सर अपने मसले मेरे साथ शेयर करती थीं, शायद इसलिए कि मैं बाकी टीचरों से उम्र में काफी छोटी थी। बारहवीं के स्टूडेंट्स से मैं सिर्फ दस-ग्यारह साल बड़ी थी। कुछ लड़के-लड़कियाँ, जो पहले दो-तीन बार फेल हो चुके थे, उनसे तो मैं महज आठ-नौ साल ही बड़ी थी। खैर, अगले दिन मैं इंतजार करती रही कि सुहाना और फातिमा आएंगी और मुझे बताएंगी, लेकिन वो नहीं आईं। एक हफ्ता बीत गया, मैं भी उनकी बात भूल गई। फिर एक दिन सुहाना फिर से रोते हुए बस से उतरी। बाकी टीचरों ने उसकी सहेलियों से पूछा तो फातिमा बोली, “मैम, इसका सिरदर्द बहुत तेज है!”
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टीचरों के लिए बात यहीं दब गई, लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ। सुहाना और फातिमा दोनों दबंग किस्म की लड़कियाँ थीं, जो छोटी-मोटी बातों पर रोने वालों में से नहीं थीं। अगले दिन मैंने उन्हें खाली पीरियड में अपने ऑफिस में बुलाया और सख्ती से पूछा, “बताओ, मसला क्या है? उस दिन भी मैंने तुम्हें रोते देखा था, और फातिमा, तू कह रही थी कि तुम मुझसे बात करोगी। अब छुपाओ मत, खुलकर बताओ!”
सुहाना फूट-फूटकर रोने लगी। फातिमा ने हिम्मत करके कहा, “तबस्सुम मैम, आप तो जानती हैं कि हमारी बस कितनी भरी रहती है। हमें पीछे खड़े होकर सफर करना पड़ता है। पिछले एक महीने से हमारी क्लास के वो बास्केटबॉल वाले लड़के, जो फेलर हैं, वो हमें रोज तंग करते हैं। कभी हमारी कमर में उंगली डालते हैं, कभी ब्रेस्ट पर चिकोटी काटते हैं। कल तो हद हो गई, मैम! उन चारों ने हमें पीछे से कसकर पकड़ लिया और हमारी ब्रेस्ट्स को जोर से मसल दिया!”
मैं गुस्से से लाल हो गई। “क्या! उनकी इतनी हिम्मत? मैं अभी प्रिंसिपल से शिकायत करती हूँ और उनकी पिटाई भी करूँगी। तुमने पहले क्यों नहीं बताया? और बाकी लड़कियाँ चुप क्यों हैं?”
“नहीं, मैम! प्लीज, किसी को मत बताइए!” सुहाना घबराते हुए बोली। “अगर ये बात फैल गई तो हमारी बदनामी होगी। लोग हम पर हँसेंगे। आप चाहें तो उनकी पिटाई कर दीजिए, लेकिन प्लीज ये मत बताइएगा कि हमने शिकायत की, वरना वो हमें और तंग करेंगे।”
“ठीक है, मैं देख लूँगी,” मैंने गुस्से को थामते हुए कहा। उसी दिन क्लास में मैंने उन चारों लड़कों—कुलदीप, संजय, सुरिंदर और अनिल—को खड़ा कर लिया और बिना कुछ बताए उनकी जमकर पिटाई की। मेरे हाथ दुखने लगे, उनके गालों पर मेरे थप्पड़ों के निशान पड़ गए। जब कुलदीप ने पूछा, “अख्तर मैम, आप हमें क्यों मार रही हैं?” तो मैंने तल्खी से कहा, “तुम्हें बस में तमीज सिखा रही हूँ!” वो चारों सिर झुकाकर चुप खड़े हो गए।
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कुछ दिन सब ठीक रहा, लेकिन फिर सुहाना और फातिमा मेरे पास दोबारा शिकायत लेकर आईं। “मैम, आपने पिटाई की थी तो कुछ दिन वो चुप रहे, लेकिन अब फिर से वही हरकतें शुरू कर दी हैं।” मैंने कहा, “लगता है अब प्रिंसिपल से बात करनी पड़ेगी।” वो दोनों गिड़गिड़ाने लगीं, “नहीं, मैम! प्लीज, प्रिंसिपल को कुछ मत बताइए। हमारा मजाक बनेगा। बस आप हमारे साथ पीछे खड़ी रहा कीजिए।”
मैंने गुस्से में कहा, “ठीक है, आज मैं तुम्हारे साथ बस में पीछे खड़ी रहूँगी। अगर उन बदमाशों ने कुछ किया, तो वहीं उनकी पिटाई करूँगी।” उस दिन मैंने क्लास में फिर उन चारों को होमवर्क न करने के बहाने पिटाई की। छुट्टी के बाद मैं बस में लड़कियों के साथ पीछे खड़ी हो गई। जब दूसरी टीचरों ने पूछा, तो मैंने कहा, “मैं स्टूडेंट्स के साथ घुलने-मिलने की कोशिश कर रही हूँ, ताकि वो मुझसे इतना न डरें।”
पहले कुछ दिन सब ठीक रहा। मैं तीन-चार दिन तक बस में पीछे खड़ी रही। वो चारों लड़के हमारे पीछे ही रहते, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए कि कुछ करें। फिर मैं दोबारा आगे की सीट पर बैठने लगी। लेकिन दो दिन बाद ही सुहाना और फातिमा फिर शिकायत लेकर आईं। मैंने फिर पीछे खड़े होने का फैसला किया।
एक दिन, सफर के दौरान अचानक मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे चूतड़ों के बीच में कुछ घुसा दिया। मेरा जिस्म एकदम काँप गया। मेरे शौहर को गुजरे आठ महीने हो चुके थे, और मैंने अपनी जिस्मानी ख्वाहिशों को पूरी तरह दबा रखा था। कभी-कभार रात को उंगलियों से खुद को तसल्ली दे लेती थी, लेकिन वो भी अपने शौहर की याद में। मैं गोरी, स्लिम और खूबसूरत थी, और अपने शौहर के साथ मेरी सेक्स लाइफ शानदार थी। लेकिन उनके अलावा किसी ने मुझे कभी छुआ तक नहीं था। उस पल मुझे बिजली का झटका-सा लगा। मेरी टाँगें कमजोर हो गईं, हाई हील सैंडल में मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा। मैं लड़खड़ाई, लेकिन बस की सीट के हैंडल को पकड़कर संभल गई। मेरे हाथ काँप रहे थे। सुहाना और फातिमा ने पूछा, “मैम, आप ठीक हैं?”
“हाँ, ठीक हूँ,” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा। लेकिन मेरे चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। दूसरी टीचरों ने भी पूछा तो मैंने बहाना बनाया, “शायद मुझे बुखार है।” उस रात मुझे नींद नहीं आई। बार-बार मेरे चूतड़ों के बीच वो अहसास लौट-लौटकर आता रहा। उसने मेरे अंदर की दबी हुई आग को जैसे हवा दे दी। मैंने उस रात तीन बार उंगलियों से मास्टरबेशन किया, लेकिन चैन नहीं पड़ा।
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अगले दो दिन मैं स्कूल नहीं गई, बीमारी का बहाना बनाया। जब गई, तो बस में आगे की सीट पर चुपचाप बैठ गई। सुहाना और फातिमा मुझे उदास चेहरों से देखती रहीं। दूसरी टीचरों ने पूछा, “तब्बू, आज स्टूडेंट्स के साथ पीछे नहीं खड़ी हो?” मैंने कमजोरी का बहाना बनाया। अगले दिन सुहाना और फातिमा फिर मेरे पास आईं, “मैम, जब आप पीछे नहीं खड़ी होतीं, तो वो फिर हमें तंग करते हैं। प्लीज, हमारे साथ खड़ी हुआ कीजिए!”
मैंने कहा, “ठीक है,” लेकिन पूरा दिन टेंशन में रही। उस दिन का वाकया बार-बार याद आ रहा था। छुट्टी के बाद मैं हिम्मत जुटाकर फिर पीछे खड़ी हो गई। सफर शांत रहा, मैं निश्चिंत हो गई। लेकिन मेरा स्टॉप आने से ठीक पहले, किसी ने फिर मेरे चूतड़ों के बीच में हाथ घुसा दिया। इस बार वो नीचे से ऊपर तक सरकाया। मैं पलटी, लेकिन सब इधर-उधर देख रहे थे। मुझे नहीं पता चला कि किसने किया। सुहाना और फातिमा मेरे पास ही खड़ी थीं। उन्होंने पूछा, “मैम, सब ठीक है न?” उनके लहजे में फिक्र कम, तंज ज्यादा लगा। मुझे शक हुआ कि शायद उन्हें पता था कि मेरे साथ क्या हुआ।
उस रात भी मैं सो नहीं पाई। उन लड़कों की हरकत ने मेरी जिस्मानी हवस को भड़का दिया था। मैं इसे नहीं चाहती थी, लेकिन मेरे जिस्म की सनसनाहट मुझे कमजोर कर रही थी। अगले दिन क्लास में मैंने उन चारों को मुश्किल सवाल पूछे और न जवाब देने पर उनकी पिटाई की। शाम को बस में मैं कॉन्फिडेंट होकर उनके पास खड़ी हो गई। लेकिन फिर किसी ने मेरे चूतड़ों में हाथ डाला। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो चारों ने मेरी आँखों में आँखें डालकर मुस्कुरा दिया। मैं आगे देखने लगी। उनमें से कुलदीप सबसे लंबा और हट्टा-कट्टा था। मेरी हाइट पाँच फुट पाँच इंच थी, और चार-पाँच इंच की हाई हील सैंडल पहनने के बावजूद मैं उसके कंधे तक ही पहुँचती थी।
फिर उन्होंने दोबारा मेरे चूतड़ों में हाथ डाला। मैं थोड़ा आगे सरक गई। उन्होंने फिर कोशिश की, मैं और आगे खिसक गई। ऐसा चार-पाँच बार हुआ। उस रात मैंने फिर तीन-चार बार मास्टरबेशन किया, लेकिन शर्मिंदगी और गुनाह का अहसास मुझे खाए जा रहा था। अगले दिन मैंने फिर उनकी पिटाई की और क्लास के बाहर खड़ा कर दिया। उस शाम बस में उन्होंने मुझे नहीं छुआ। मैं खुश थी, लेकिन तीन दिन बाद फिर वही हरकत हुई। मैं चिहुँककर आगे सरक गई। मेरी सैंडल के हील से फर्श पर आवाज हुई। फातिमा ने मुस्कुराकर पूछा, “मैम, क्या हुआ?” मैंने कहा, “कुछ नहीं, पैर सो गया था।”
लेकिन अब मैंने ठान लिया था कि इस बार नहीं हटूँगी। देखती हूँ, इनमें कितनी हिम्मत है। जब फिर से किसी ने मेरे चूतड़ों में हाथ डाला, मैं टस से मस नहीं हुई। उसने दो-तीन बार और कोशिश की, मैं फिर भी नहीं हटी। फिर उसने हाथ मेरे चूतड़ों के बीच टिका दिया। मैंने अपनी रानें जोड़कर उसके हाथ को दबा लिया। न वो हिला, न मैं। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कुलदीप मेरे ठीक पीछे खड़ा था। मेरे मुड़ने पर भी उसने हाथ नहीं हटाया, बल्कि उसे मेरी टाँगों के बीच सरकाकर मेरी चूत तक ले गया और सलवार के ऊपर से मसलने लगा।
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मेरे चेहरे का रंग उड़ गया। मेरी टाँगें काँपने लगीं, आँखें बंद हो गईं। मेरे पेट में बल पड़ा, और मेरी चूत ने धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। मैंने होंठ दबाकर सिसकारियाँ रोकने की कोशिश की। पहली बार मैंने पब्लिक प्लेस में, वो भी स्टूडेंट्स से भरी बस में, इस तरह झड़ने का अनुभव किया। मुझे बेहद अच्छा लगा। मेरी चूत ने इतना पानी छोड़ा कि मेरी सलवार रानों तक गीली हो गई।
घर पहुँचकर मैं बार-बार उस सीन को याद करती रही। रात को बेडरूम लॉक करके मैंने सारे कपड़े उतार दिए और नंगी होकर वही सीन याद करते हुए दो बार अपनी चूत को उंगलियों से सहलाकर झड़ी। फिर भी चैन नहीं पड़ा। मैंने जिंदगी में पहली बार गाजर अपनी चूत में डालकर मास्टरबेट किया। इससे पहले मैं सिर्फ उंगलियों का इस्तेमाल करती थी। फिर मैं नंगी ही सो गई, लेकिन सपने में भी वो बस का सीन और कुलदीप का मेरी चूत को सहलाना बार-बार याद आता रहा। मैं सोते-सोते अपनी चूत सहलाती रही। सुबह उठी तो मेरा हाथ मेरी टाँगों के बीच चूत पर ही था।
अगले दिन क्लास में मैंने फिर उन चारों को होमवर्क न करने के बहाने पिटाई की, लेकिन इस बार दिल से नहीं। शायद मैं दिखाना चाहती थी कि बस के वाकये के बावजूद मेरा रौब बरकरार है। उस दिन बस में मैं उनके करीब खड़ी थी, लेकिन उन्होंने मुझे नहीं छुआ। मुझे थोड़ी मायूसी हुई। पहली बार मैं चाह रही थी कि वो मुझे छूएँ, मेरी चूत को सहलाएँ। मैं रोज उनके पास पीछे खड़ी होती, लेकिन अगले दो-तीन दिन उन्होंने कुछ नहीं किया। फिर चार-पाँच दिन वो स्कूल ही नहीं आए। मैं तड़पकर रह जाती, मायूस होकर अपने स्टॉप पर उतर जाती।
वो लड़के मेरे दिलो-दिमाग में बस गए थे। मैं रात को उनके बारे में सोचकर बार-बार अपनी चूत सहलाती और गाजर से मास्टरबेट करती। स्कूल में भी कई बार उनका ख्याल आता तो मेरी चूत गीली हो जाती। मैं अपने ऑफिस या टॉयलेट में जाकर खुद को तसल्ली देती। मुझे पोर्न से नफरत थी, लेकिन एक रात मैंने लैपटॉप पर पोर्न वेबसाइट खोल ली। मैंने पहले कभी ऐसी चीजें नहीं देखी थीं, लेकिन उस रात और अगली दो-तीन रातें मैंने घंटों चुदाई की क्लिप्स देखीं। मेरे जिस्म में हवस की आग इस कदर भड़क गई कि मेरी सारी तहजीब और इखलाक उसमें जलने लगे।
एक दिन भारी बारिश हुई। स्कूल में बच्चे कम आए, तो जल्दी छुट्टी हो गई। बस में भीड़ कम थी। मैं कहीं भी खड़ी हो सकती थी, लेकिन मैंने जानबूझकर उन चारों लड़कों के पास पीछे जाकर खड़ी हो गई। सुहाना और फातिमा भी वहीं थीं। मुझे यकीन हो गया था कि वो दोनों सब जानती थीं और शायद उन लड़कों से मिली हुई थीं। बस चलने के थोड़े देर बाद कुलदीप मेरे पीछे करीब आ गया। मैं मोबाइल पर बात करने में व्यस्त थी तभी मुझे लगा कि वो मेरे साथ चिपक गया। मैंने फोन बंद करके पीछे मुड़कर देखा तो वो बोला, “अख्तर मैम, आप ज्यादा पीछे आ गई हैं, थोड़ा आगे सरकें।”
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मैंने गौर किया कि मैं ही फोन पर बात करते-करते पीछे सरक गई थी। सुहाना और फातिमा भी दो लड़कों से चिपककर खड़ी थीं। मैंने उनकी तरफ देखा तो वो मुस्कुराने लगीं। मुझे अहसास हुआ कि वो दोनों भी इन लड़कों से उंगली करवाकर मजा लेती थीं। मैं थोड़ा आगे सरक गई, लेकिन कुलदीप ने हल्के से मेरी गाँड में हाथ डाला। मैं तो यही चाह रही थी। मैंने अपनी रानें थोड़ा खोलकर फिर बंद कीं, ताकि उसका हाथ मेरी टाँगों के बीच अच्छे से घुस जाए। उसने एक हाथ मेरी गाँड पर फेरा और दूसरा मेरी टाँगों के बीच डालकर मेरी चूत को सलवार के ऊपर से सहलाने लगा।
मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने कोई विरोध नहीं किया। उसने मेरे कान में फुसफुसाया, “तब्बू मैम, अगले स्टॉप पर पीछे की सीट खाली हो रही है। आप मेरे और मेरे दोस्त के बीच बैठ जाएँ। बाकी दो लड़के और ये लड़कियाँ आगे चले जाएँगे, ताकि किसी को पता न चले।”
मैं चुप रही। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मेरी चूत पहले ही गीली हो चुकी थी। बारिश की ठंडक मेरे जिस्म की गर्मी को और बढ़ा रही थी। हवस ने मुझे इतना अंधा कर दिया था कि मुझे अपनी इज्जत, आबरू या समाज में बदनामी की जरा भी परवाह नहीं थी। मैंने देखा कि सुहाना और फातिमा भी दो लड़कों के हाथ अपनी स्कूल यूनिफॉर्म की ट्यूनिक के अंदर ले रही थीं। वो मेरी तरफ देखकर बेहयाई से मुस्कुरा रही थीं।
कुलदीप ने फिर मेरे कान में कहा, “ये दोनों तो हमसे अक्सर चुदती हैं। तब्बू मैम, आप इनकी परवाह न करें। इनका काम पूरा हो गया। अब अगले संडे को हम इन्हें मजे से चोदेंगे। आज आपका नंबर है!” उसकी हिम्मत और गंदी बातें सुनकर मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया, लेकिन मुझे बुरा नहीं लगा। मैं चुप रही, क्योंकि मेरी हवस मुझे बेकाबू कर रही थी।
अगले स्टॉप पर पीछे की सीट खाली हुई। कुलदीप दायीं तरफ बैठ गया। मैं चुपचाप उसके बगल में बैठ गई। संजय मेरी बायीं तरफ आकर बैठ गया। बाकी दो लड़के, सुरिंदर और अनिल, और सुहाना-फातिमा हमारे आगे खड़े हो गए। बस चलने लगी तो दोनों लड़कों को जैसे मेरे साथ खेलने की खुली छूट मिल गई। कुलदीप ने एक बाँह मेरे सिर के पीछे सीट पर फैला दी और दूसरा हाथ मेरी दायीं रान पर रखकर सहलाने लगा। संजय मेरी बायीं रान को सहलाने लगा। मेरी साँसें तेज और गर्म हो गईं। मेरा सिर हल्का-हल्का महसूस होने लगा। मैंने आँखें बंद कर लीं।
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दोनों ने अपने हाथ मेरी रानों से ऊपर सरकाए और मेरी कमीज़ के पल्ले के नीचे से मेरे पेट की तरफ बढ़ाए। कुलदीप ने अपना हाथ मेरी चूत की तरफ सरकाया तो मेरे मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गई, “उम्म्म…” मैंने अपनी टाँगें जोर से बंद कर दीं और उनके हाथ पकड़ लिए। मेरे मुँह से एक अटकती हुई साँस निकली। कुलदीप ने तुरंत अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और जोर से चूमने लगा। मेरे होश उड़ गए। मेरा जिस्म काँपने लगा। उसने मेरे सिर को पीछे से पकड़कर हमारे होंठों को कसकर सी लिया। यह मेरी जिंदगी का पहला असली फ्रेंच किस था।
इसी बीच संजय ने मेरी छाती पकड़ ली और कमीज़ के ऊपर से मेरे बूब्स मसलने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ रोकने की कोशिश की, लेकिन दोनों ने हल्का सा जोर लगाकर मेरी टाँगें खोल दीं। कुलदीप ने तपाक से अपना हाथ मेरी सलवार के ऊपर मेरी चूत पर रख दिया और उसे सहलाने लगा। मेरे पेट में अकड़न होने लगी। “आह्ह… उम्म्म…” मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं। अचानक एक जोर का झटका लगा, और मेरी चूत में फव्वारे फूटने लगे। मैं फिर झड़ गई। मेरी पैंटी और सलवार पूरी तरह गीली हो गई।
कुलदीप ने मेरे होंठ चूसना बंद किया तो मेरी साँसें सामान्य हुईं। फिर संजय ने मुझे फ्रेंच किस करना शुरू किया। कुलदीप बोला, “वाह यार, मजा आ गया! आज तो इंग्लिश वाली को अच्छे से चूसा है। अब इसे जमकर चोदेंगे। साली क्लास में बहुत मारती है, आज हम इसकी उतने ही जोर से मारेंगे!” दोनों बारी-बारी से मुझे चूमने लगे।
इतने में आगे खड़े अनिल और सुरिंदर, जो सुहाना और फातिमा की गाँड में उंगली कर रहे थे, बोले, “बस करो यार! हमें भी तबस्सुम मैम का मजा लेने दो। तुम इधर आकर इन लड़कियों के मम्मे मसलो। ये बारिश की ठंडक में बहुत गरम हैं!” चारों ने जगह बदल ली। अब अनिल और सुरिंदर मेरे अगल-बगल बैठ गए। वो मुझे चूमने और मेरे बूब्स व चूत को सहलाने लगे। सुरिंदर ने मेरी सलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया। मैंने अपने हाथों से नाड़ा पकड़ लिया। दोनों ने मेरी कमीज़ के गले में हाथ डालकर मेरे बूब्स पकड़ लिए और मसलने लगे।
मैं पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी। मैंने उनके चूमने का जवाब देना शुरू किया। उनके मुँह से पोलो मिंट की खुशबू आ रही थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी। तभी सुरिंदर ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार और गीली पैंटी को एक साथ मेरे घुटनों तक खींच दिया। मैंने बिना सोचे अपनी गाँड सीट से उठा दी, जिससे सलवार और पैंटी मेरे टखनों तक आ गई। सुरिंदर ने अपनी उंगली मुँह में डालकर गीली की और मेरी चूत के ऊपरी हिस्से को हल्के-हल्के सहलाने लगा। “हाय अल्लाह! आह्ह… उम्म्म…” मैं पागल सी हो गई। मेरे मुँह से तेज सिसकारियाँ निकलने लगीं। स्कूल की बस में, बच्चों के बीच, मैं अपनी चूत खोलकर अपने स्टूडेंट से उंगली करवा रही थी। इस अहसास ने मेरी उत्तेजना को दोगुना कर दिया। मैं कुछ ही पलों में फिर झड़ गई।
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सुरिंदर ने मेरी सलवार और पैंटी ऊपर खींचकर नाड़ा बाँध दिया। फिर बोला, “तबस्सुम मैम, अगर आपको चुदाई का पूरा मजा लेना है तो घर फोन करके बता दीजिए कि आप अपनी सहेली के घर जा रही हैं। हमारे स्टॉप पर उतर जाइए। संजय पास से कार ले आएगा। हम खेत पर चलेंगे ऐश करने। शाम को अंधेरा होने पर आपको घर के पास छोड़ देंगे।”
मैंने शरमाते हुए सहमति में सिर हिलाया। मेरे अब्बू-अम्मी एक हफ्ते के लिए अजमेर गए थे, लेकिन मैंने इन लड़कों को ये नहीं बताया। मैंने पर्स से मोबाइल निकालकर झूठमूठ एसएमएस करने का नाटक किया। उनके स्टॉप पर मैं उनके साथ उतर गई। एक टीचर ने पूछा, “तब्बू, तुम यहाँ क्यों उतर रही हो?” मैंने कहा, “मैं अपनी सहेली के घर जा रही हूँ। आज छुट्टी जल्दी हुई तो सोचा उससे मिल लूँ। मेरा सिरदर्द भी हो रहा था, तो पीछे की सीट पर लेटकर सो गई थी।”
सकीना आंटी, जो मेरी अम्मी को जानती थीं, बोलीं, “अरे, तू अभी कुछ दिन पहले भी बीमार थी। तेरी अम्मी से कहूँगी कि तुझे अच्छा खाना खिलाएँ। स्लिम दिखने के चक्कर में सूखकर मर रही है!” मैंने हँसते हुए कहा, “जी, सकीना आंटी, जरूर बता देना। लेकिन मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ। मेरी पिटाई देखकर आपको पता चलेगा!”
बस से उतरकर मैं एक साइड की गली में मुड़ गई और एक सुनसान जगह पर खड़ी हो गई। हवस ने मुझे इतना बेकाबू कर दिया था कि मुझे शरमिंदगी का जरा भी अहसास नहीं था। मेरी टाँगें काँप रही थीं, चूत गीली थी, और निप्पल्स में सनसनाहट हो रही थी। कुछ ही देर में एक काले शीशों वाली टाटा सफारी मेरे सामने रुकी। इसका पिछला दरवाजा खुला, और अनिल उतरकर बोला, “अंदर आ जाइए, तब्बू मैम!”
मैं गाड़ी में बैठने लगी तो सुरिंदर ने मुझे कमर से पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया। अनिल ने दरवाजा बंद किया, और गाड़ी चल पड़ी। सुरिंदर ने एक हाथ मेरी छाती पर रखकर मेरे बूब्स जोर से मसलने शुरू किए। दूसरा हाथ मेरी चूत पर रखकर सहलाने लगा। अनिल ने मेरे हाई हील सैंडल वाले पैर पकड़े और मेरी टाँगें अपनी तरफ खींच लीं। अब मैं सुरिंदर की गोद में थी, और मेरी टाँगें अनिल की तरफ थीं। अनिल बोला, “साली रंडी! क्लास में बहुत मारती है ना! आज तेरी गाँड फाड़ देंगे!” उसने मेरी चूत को जोर से मसलना शुरू किया। सुरिंदर ने मेरे कंधे पर दाँत गड़ाए और मेरे होंठ चूसने लगा।
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मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह्ह… उम्म्म…” मैं उनके लंड उनकी पैंट के ऊपर से मसलने लगी। तभी संजय, जो ड्राइव कर रहा था, बोला, “यार, पहले दारू के ठेके पर रोक। दारू पीकर तब्बू मैम को चोदने में ज्यादा मजा आएगा!” अनिल बोला, “हाँ, इस साली को भी पिलाएँगे, तो खुलकर चुदवाएगी!”
मैंने इंकार किया, “नहीं, मैं शराब नहीं पीती। तुम लोग पियो, मैं नहीं पियूँगी।” लेकिन वो कहाँ मानने वाले थे। कुलदीप ने बोतल खोली और मेरे होंठों से लगाई। मैंने मुँह फेर लिया, लेकिन उसने फिर कोशिश की। “अरे, तब्बू मैम, थोड़ा पी लो। नशा होगा तो चुदाई में मजा आएगा। पहले कभी नहीं पी, तो आज पी लो। अपने स्टूडेंट्स के साथ चुदवाने भी तो पहली बार आई हो!” सब हँसने लगे।
संजय बोला, “थोड़ा पी लो, मैम। हर एक के नाम पर दो-दो घूँट। अच्छा न लगे तो और नहीं पिलाएँगे।” मैंने हार मान ली और एक बड़ा घूँट पी लिया। मेरे गले और पेट में जलन हुई, मैं खाँसने लगी। सुरिंदर ने मेरी कमर सहलाते हुए कहा, “बस, मैम, अब ठीक हो जाएगा। पहली बार है न!” दूसरा घूँट पीने पर जलन कम हुई, और उन्होंने जबरदस्ती मुझे आठ-दस घूँट पिला दिए। कुछ ही देर में मुझे खुशनुमा नशा चढ़ गया। मैं उनके बीच झूमने लगी।
जल्दी ही हम संजय के खेत पर पहुँच गए। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन काले बादल छाए थे। सूरज की हल्की गुलाबी रोशनी आसमान को रंगीन बना रही थी। खेत में पानी की मोटर के पास एक छोटा कमरा था। बाहर तीन-चार मजदूर बैठे थे। अनिल ने उनसे कहा, “आज तुम सबकी छुट्टी। घर जाओ!”
मजदूरों ने मुझे देखा और एक बोला, “अरे, ये तो वो मास्टरनी है न! खुर्शीद साहब की बेटी? बाबू, आपने तो दिल खुश कर दिया! ऐसी चिकनी गोरी कहाँ मिलेगी, वो भी अपनी मास्टरनी! जमकर चोदना, रंडी बना देना इसे!”
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संजय ने कहा, “हाँ, हाँ, अब जाओ यहाँ से!” मजदूर बोला, “जाते हैं, बाबू। लेकिन चारपाई टूटी हुई है, बनने गई है। आपको सूखे चारे पर चोदना पड़ेगा।”
उस पल मुझे अपनी बिगड़ी हालत का अहसास हुआ, लेकिन अगले ही पल चार जवान लड़कों से चुदने का ख्याल मेरी हवस को और भड़का गया। सुरिंदर ने मुझे गोद से उतारा। मैं नशे में झूमती हुई कमरे की तरफ बढ़ी। मेरी हाई हील सैंडल और शराब का नशा मुझे लड़खड़ा रहा था। दरवाजे पर पहुँचकर मैंने पीछे मुड़कर देखा तो चारों मुझे देखकर हँस पड़े।
कुलदीप बोला, “वाह, तबस्सुम मैम को चुदने की कितनी जल्दी है!” अनिल ने कहा, “हाँ, जल्दी चलो!” सुरिंदर बोला, “पहले पूछ तो लो कि चुदना है कि नहीं!” कुलदीप ने मुझसे पूछा, “तबस्सुम मैम, चुदोगी हमसे?”
शराब के नशे में मैं बेशरम हो चुकी थी। मैंने अपने सख्त टीचर वाले अंदाज में कहा, “क्या, अब तुम नालायकों को दो-दो थप्पड़ मारकर समझाना पड़ेगा?” कुलदीप ने डायलॉग मारा, “हाय, मैम, आपके थप्पड़ से डर नहीं लगता, आपकी सेक्सी अदाओं से लगता है!” सब हँस पड़े, और मैं भी जोर से हँसी।
वो मुझे कमरे में ले गए और दरवाजा बंद करके मद्धम रोशनी वाला बल्ब जला दिया। कुलदीप ने पीछे से मेरी कमर पकड़कर मुझे दबोच लिया और मेरे गाल, गर्दन को चूमने लगा। उसका दूसरा हाथ मेरे चूतड़ों को दबा रहा था। “आह्ह… उम्म्म…” मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं। संजय ने आगे से मेरे बूब्स पकड़ लिए और मेरे निप्पल्स को मसलने लगा। मैं उनके बीच सैंडविच बन गई। कुलदीप का लंड मेरी गाँड से टकरा रहा था, और संजय का लंड मेरी नाभि के नीचे चुभ रहा था।
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कुलदीप ने कपड़ों के ऊपर से ही अपने लंड से मेरी गाँड में धक्के मारने शुरू किए। मैंने तड़पते हुए अपनी गाँड को उसके लंड पर दबा दिया। अनिल बोला, “देखो, साली तबस्सुम मैम को कितना मजा आ रहा है! बोल, चूतमरानी, मजा आ रहा है?” मैं चुप रही। सुरिंदर चिल्लाया, “बोल, साली, शरमा क्यों रही है? खुलकर बता!”
मैंने धीरे से कहा, “हाँ… अच्छा लग रहा है…” और संजय की गर्दन में बाँहें डाल दीं। संजय ने मेरी कमीज़ का दामन उठाकर मेरा नाड़ा खोल दिया। अनिल और सुरिंदर नीचे बैठ गए और मेरी हाई हील सैंडल खोलने लगे, क्योंकि मेरी टाइट चुड़ीदार सलवार बिना सैंडल उतारे नहीं निकल सकती थी। उन्होंने एक-एक पैर से सलवार निकाली और फिर सैंडल दोबारा पहना दीं।
मैं अब सिर्फ कमीज़ और पैंटी में थी। दोनों लड़के मुझे चूमते हुए मेरे जिस्म पर हाथ फेर रहे थे। मैं मस्ती में अपनी गाँड आगे-पीछे हिलाकर उनके लंडों पर दबा रही थी। कुलदीप बोला, “अरे, इतनी बेसब्री क्यों, मैम? बहुत टाइम है। जरा ढंग से ऐश करेंगे!” दोनों मुझसे अलग हो गए।
संजय गाड़ी से शराब की बोतल ले आया। उन्होंने पाँच गिलासों में व्हिस्की और पानी मिलाकर पैग बनाए। मुझे भी एक गिलास थमा दिया। चारों ने अपने गिलास मेरे गिलास से टकराए और “चियर्स” बोला। मैंने भी “चियर्स” कहा और गिलास पी लिया। पानी मिला होने से इसका स्वाद बुरा नहीं लगा।
सुरिंदर बोला, “यार, अपने फोन पर कोई गरम आइटम सॉन्ग बजा। आज तब्बू मैम का मुजरा देखेंगे!” मैं चौंकी, “नहीं, मुझे नाचना नहीं आता!” कुलदीप बोला, “अरे, तब्बू मैम, नखरे क्यों? तुम कटरीना से कम हो क्या? बस धीरे-धीरे नंगी होकर ठुमके लगाओ। अंग्रेजी में कहते हैं न, स्ट्रिपटीज!” मैं मान गई।
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चारों जमीन पर बैठ गए। सुरिंदर ने फोन पर “चिकनी चमेली” बजा दिया। मैंने गिलास खाली किया और सिर्फ कमीज़, पैंटी और हाई हील सैंडल में नाचने लगी। वो “वाह-वाह” करने लगे। मैं बारी-बारी उनके करीब जाती, किसी को चूम लेती, किसी के लंड को सैंडल के पंजे से दबा देती। अनिल मेरे साथ चिपककर नाचने लगा और मेरी कमीज़ की पीछे की जिप कमर तक खोल दी। मैंने उसे धक्का देकर बिठा दिया और शोख अंदाज में अपनी कमीज़ उतारने लगी।
कुछ ही पलों में मैं सिर्फ ब्रा, पैंटी और हाई हील सैंडल में थी। चारों अपनी पैंट के ऊपर से लंड मसल रहे थे। मैंने अपनी ब्रा उतारकर अनिल के चेहरे पर फेंक दी। गाना खत्म हुआ तो सुरिंदर ने वही गाना फिर बजाया। मैं अपने बूब्स उछालते हुए नाचती रही। फिर मैंने अपनी पैंटी धीरे-धीरे खिसकाई। चारों हवस भरी नजरों से मुझे देख रहे थे। पैंटी उतारकर मैंने हवा में उछाली। कुलदीप ने उसे पकड़ लिया और सूँघने लगा।
अब मैं सिर्फ हाई हील सैंडल में बिल्कुल नंगी थी। मैं वैक्सिंग करती थी, इसलिए मेरा जिस्म मक्खन की तरह चिकना था। कुलदीप बोला, “साली, तबस्सुम मैम, तू तो मक्खन से भी चिकनी है! तेरे बूब्स, चूत, गाँड—सब कितने सेक्सी हैं! आज तेरी चूत और गाँड फाड़ देंगे!”
चारों ने अपनी यूनिफॉर्म उतार दी। उनके तने हुए लंड देखकर मेरी धड़कनें तेज हो गईं। कुलदीप का लंड सबसे बड़ा था, करीब दस-ग्यारह इंच। बाकी तीनों के भी आठ-नौ इंच के थे। अनिल बोला, “क्या देख रही है, तब्बू मैम? ये चार लंड आज तेरी चूत की अकड़ निकाल देंगे!”
सुरिंदर ने कहा, “चल, मैम, पहले हमारे लंड चूस!” वो मुझे घेरकर खड़े हो गए। मैं उनके बीच उकड़ू बैठ गई। कुलदीप ने अपना लंड मेरे चेहरे के सामने किया। उसकी टोपी मजी से भीगी थी। मैंने बिना देर किए उसके लंड की टोपी अपने मुँह में ले ली। उसका तीखा स्वाद मुझे लजीज लगा। मैंने अपनी जीभ उसके सुपाड़े पर घुमाई, जैसे कोई कुल्फी चूस रही हो। फिर मैंने और गहराई तक उसका लंड मुँह में लिया।
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बाकी तीनों मेरे चारों तरफ थे। मैंने अनिल और संजय के लंड अपने हाथों में पकड़कर उनकी चमड़ी आगे-पीछे करने लगी। सुरिंदर का लंड मेरी गर्दन से टकरा रहा था। मैं बारी-बारी चारों के लंड चूसने लगी। “आह्ह… उम्म्म…” मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उनके मजी का स्वाद मेरे जिस्म में सनसनी पैदा कर रहा था।
कुलदीप बोला, “साली, क्या मस्त लंड चूसती है! इसका मुँह इतना गरम है तो चूत कितनी गरम होगी!” वो मेरे मुँह में लंड ठेलते हुए मेरे हलक तक ले गए। मेरी साँस अटक गई, लेकिन मुझे देखकर वो हँसने लगे। करीब दस मिनट तक मैं उनके लंड चूसती रही। मेरा मुँह और गला उनके लंडों से भीगा हुआ था।
फिर अनिल बोला, “बस, यार! अब इस साली को चोदना है!” उन्होंने अपने लंड मेरे मुँह और हाथों से निकाले। मैं जमीन पर चूतड़ टिकाकर बैठ गई और अपने दुपट्टे से चेहरा, गला और छाती पोंछने लगी। इतने में उन्होंने फिर से पाँच पैग बनाए। मैंने बिना विरोध किए गिलास पी लिया। कुलदीप बोला, “वाह, तब्बू मैम, कमाल की लंड-चुसक्कड़ हो!”
संजय ने कहा, “सुहाना और फातिमा तो तेरे सामने अनाड़ी हैं। इन्हें भी लंड चूसना सिखा दे!” अनिल ने मेरा गिलास लेते हुए कहा, “लो, अपने लंड साफ कर लो!” उसने अपना लंड मेरे गिलास में डुबोया। बाकी तीनों ने भी बारी-बारी अपने लंड मेरे गिलास में धोए। मैं हैरान थी, लेकिन उन्होंने इसरार किया तो मैंने वो गिलास पी लिया। वो तालियाँ और सीटियाँ बजाने लगे।
फिर कुलदीप और संजय ने मुझे उठाकर सूखे चारे पर लिटा दिया। कुलदीप मेरे ऊपर झुककर मेरे गाल, होंठ और गर्दन चूमने लगा। उसका लंड मेरी चूत को छू रहा था। “आह्ह… उम्म्म…” मैं सिसक रही थी। उसने बोतल से व्हिस्की मेरे पेट और नाभि पर उड़ेली और चाटने लगा। फिर उसने मेरी टाँगें खोल दीं और मेरी चूत पर व्हिस्की डालकर चाटने लगा। “आह्ह… हाय अल्लाह… ऊँह…” मैं पागल सी हो गई। मैंने उसके बाल पकड़कर उसका चेहरा अपनी रानों में दबा लिया। मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया।
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कुलदीप ने अपना लंड मेरी चूत पर रखा। “ऊँह… उम्म्म…” मैं सिसक उठी। अनिल ने पूछा, “कंडोम नहीं डालेगा?” कुलदीप बोला, “कौन साला कंडोम लाया? पता थोड़े था कि ये छिनाल इतनी आसानी से चुदवाने आएगी!” संजय बोला, “कोई बात नहीं, घर छोड़ते वक्त आई-पिल ले लेंगे।”
कुलदीप ने कहा, “चल, साली तबस्सुम, तुझे स्वर्ग की सैर कराता हूँ!” उसने अपना लंड मेरी चूत में डालना शुरू किया। मेरी चूत महीनों से नहीं चुदी थी। उसका लंड इतना बड़ा था कि मुझे दर्द होने लगा। “आआआ… हाय… कुलदीप… रुक जाओ… बहुत बड़ा है… आह्ह…” मैं चींख रही थी। उसने मेरे होंठ अपने होंठों से सी दिए और जोर से लंड अंदर ठेल दिया। मुझे लगा जैसे कोई गरम लोहा मेरी चूत में घुस रहा हो। मैं छटपटा रही थी, लेकिन उसने मुझे जकड़ रखा था।
“चिल्ला, साली! क्लास में बहुत मारती है न!” वो बोला। मैं गिड़गिड़ाई, “प्लीज… छोड़ दो… आह्ह… बहुत दर्द हो रहा है…” लेकिन उसने पूरा लंड मेरी चूत में पेल दिया। कुछ देर बाद दर्द कम हुआ, और मेरी चींखें सिसकारियों में बदल गईं, “आह्ह… उम्म्म… हाय…” मैंने अपनी टाँगें उसकी कमर पर लपेट लीं। अब मैं खुद अपनी गाँड उठाकर चुदवा रही थी। “आह्ह… कुलदीप… और जोर से… ऊँह…” मैं सिसक रही थी।
वो मुझे पागलों की तरह चोद रहा था। मैं तीन-चार बार झड़ चुकी थी। आखिरकार उसने मेरी चूत में गहराई तक अपनी मनी छोड़ दी। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ा, फिर मुझे चूमकर हट गया। मेरी गाँड के नीचे का चारा मेरे पानी से भीग चुका था।
संजय मेरे ऊपर आया। “मेरी प्यारी तबस्सुम मैम, अब मेरी बारी है!” उसने मेरे होंठ चूमे और मेरी छाती मसली। उसका लंड भी कुलदीप से कम नहीं था। मैं फिर मस्त हो गई। “आह्ह… संजय… ऊँह…” मैं उससे लिपट गई। उसने मुझे उलटा किया और मेरी गाँड ऊपर उठा दी। अब मैं कुत्तिया की तरह घुटनों और कुहनियों पर थी। उसने मेरी गाँड खोली और उंगली से थूक लगाकर रगड़ा।
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मैं डर गई। “नहीं, संजय! वहाँ नहीं… मैंने कभी वहाँ नहीं किया… प्लीज…” लेकिन उसने मेरी गाँड में लंड डालना शुरू कर दिया। “आआआ… संजय… मर गई… ऊँह… अल्लाह…” मैं चींख रही थी। उसका लंड मेरी गाँड फाड़ रहा था। मैं रो रही थी, लेकिन उसने मुझे जकड़ रखा था। कुछ मिनट बाद दर्द कम हुआ, और मुझे अजीब सा मजा आने लगा। मैं अपनी चूत रगड़ने लगी। संजय ने मेरी गाँड में मनी छोड़ दी।
सुरिंदर मेरे ऊपर आया। उसका लंड मोटा था। उसने एक ही धक्के में अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। “आआआ… सुरिंदर… ऊँह…” मैं चींखी। उसका मोटा लंड मेरी चूत को फैला रहा था। मैंने उसकी कमर पर टाँगें लपेट दीं। वो मेरे बूब्स चूसने और काटने लगा। मैं फिर झड़ गई।
अनिल बोला, “जल्दी कर, यार!” सुरिंदर ने मुझे पलटकर अपने ऊपर बिठा लिया। मैं उसके लंड पर उछलने लगी। “आह्ह… सुरिंदर… ऊँह…” मैं सिसक रही थी। तभी अनिल ने मेरी गाँड में लंड डाल दिया। “आआआ… अनिल… नहीं… मर गई…” मैं चींखी। दोनों एक साथ मेरी चूत और गाँड चोद रहे थे। कुछ देर बाद दर्द कम हुआ, और मुझे दोहरे मजे का अहसास होने लगा। “आह्ह… ऊँह… हाय… और जोर से…” मैं सिसक रही थी। दोनों ने मेरी चूत और गाँड में मनी छोड़ दी।
फिर चारों ने अपने लंड मेरे मुँह और चेहरे पर इखराज किए। मैं नंगी, सिर्फ हाई हील सैंडल में, चारे पर लेटी थी। थकान और नशे में मैं चल भी नहीं पा रही थी। अनिल बोला, “अरे, तब्बू मैम, कमर लचक जाएगी। पहले नहला दें!” उसने मुझे गोद में उठाकर हौज में फेंक दिया। हम सबने साथ नहाया। चारों ने मेरा जिस्म तौलिये से पोंछा, लेकिन मुझे कपड़े नहीं पहनने दिए।
मैं नंगी खेत में खड़ी थी। कुलदीप ने मुझे गोद में उठाकर गाड़ी में बिठाया। रास्ते में चारों ने मुझे बारी-बारी चूमा और मसला। मेरे घर के पास पहुँचकर उन्होंने मुझे कपड़े पहनने दिए। मैंने कहा, “ये Paki Horny Teacher की कहानी मस्त लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ फेसबुक और व्हाट्सएप पर शेयर करें।”
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Kewal fantasy hai . socha or likh diya reality aaspas bhi nhi h