एयर होस्टेस और उसकी कुंवारी बहन की चुदाई

आदरणीय पाठकों को मेरा सादर प्रणाम! गोपनीयता के लिए जगह और नाम बदल दिए गए हैं, पर ये कहानी 100% सच्ची है। आप सब मुझे जानते ही हैं, लेकिन नए दोस्तों और हसीन पाठिकाओं के लिए मेरा परिचय ज़रूरी है। मैं हूँ विशु कपूर, 26 साल का, आगरा का रहने वाला—एक ऐसा मर्द जो चूत की आग बुझाने में माहिर है। मेरी पिछली कहानी थी “विधवा दीदी ने अपनी कुंवारी सहेली को चुदवाया।” अब सुनिए ये नया किस्सा, जो 15 दिन पहले का है।

मैं सुबह अपने बिस्तर पर गहरी नींद में डूबा था कि फोन की घंटी ने नींद तोड़ दी। आँखें मलते हुए मैंने फोन उठाया, “हैलो?” उधर से कोयल सी मीठी आवाज़ आई, “क्या मैं विशु कपूर जी से बात कर सकती हूँ?” मैंने सीना तानकर कहा, “मैडम, बोलिए। मैं ही विशु हूँ।” वो बोली, “मैंने आपका बहुत नाम सुना है।” मैंने थोड़ा बनावटी अंदाज़ में कहा, “मैडम, ये तो आप जैसों की मेहरबानी है। बताइए, आपकी क्या सेवा करूँ?” वो बोली, “मैं इंटरनेशनल फ्लाइट की एयर होस्टेस हूँ। अभी अमेरिका जा रही हूँ। क्या आप दो दिन बाद मुझे और मेरी सहेली को अपनी सर्विस दे सकते हैं?” मैंने तुरंत पूछा, “कौन सी सर्विस चाहिए—2 घंटे वाली या पूरी रात वाली?”

वो अपनी सहेली से थोड़ी देर फुसफुसाई, फिर बोली, “हमें पूरी रात वाली चाहिए।” उसने अमेरिका से लौटकर मुझे उनके साथ आने को कहा, “हम फोन पर एड्रेस और लोकेशन भेज देंगे।” इतना कहकर फोन कट गया। मैं बिस्तर से उछला, फ्रेश हुआ, नहाया, नाश्ता ठूँसा, और अपने काम पर निकल गया। दिन भर मेहनत की—दिमाग़ में बस उसकी मादक आवाज़ गूँजती रही।

शाम को घर लौटा, हाथ-मुँह धोया, खाने बैठा। तभी स्काइप पर वीडियो कॉल आई। कॉल उठाई—स्क्रीन पर वही सुबह वाली लड़की और उसकी सहेली नज़र आईं। मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था, पर आवाज़ से पहचान लिया। दोनों बला की खूबसूरत थीं—फिगर 36-24-36, बदन ऐसा कि भगवान ने फुर्सत से तराशा हो। मेरा लंड पजामे में खड़ा हो गया—खाना गले से नीचे नहीं उतर रहा था। जैसे-तैसे खाना खत्म किया, खुद को काबू में किया, और टीवी देखने लगा। देखते-देखते नींद लग गई।

दो दिन बाद सुबह 4 बजे फोन बजा। हड़बड़ाकर उठा—कोई अनजान नंबर। अगर सेव्ड होता तो शायद न उठाता, पर अनजान था तो “हैलो” बोला। उधर से वही लड़कियाँ—बोलीं, “हम इंडिया पहुँच गईं, अभी फ्लाइट से उतरी हैं।” वो मेरी सर्विस लेने वाली थीं। मुझे गुस्सा तो आया—सुबह-सुबह नींद खराब की—पर कुछ बोला नहीं। “ओके-ओके” कहकर फोन रखा और फिर सो गया। सुबह उठा, रूटीन काम निपटाया, और अपने धंधे पर चला गया।

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अगली सुबह 8 बजे उनका फोन आया, “विशु जी, ठीक 10 बजे मेरे फार्महाउस पहुँच जाना।” एड्रेस और लोकेशन बताकर फोन कट गया। मैं नहाया, तैयार हुआ, बाइक उठाई, और बताए पते पर जा पहुँचा। घंटी बजाई—एक औरत ने दरवाज़ा खोला, “जी, क्या काम है?” मैंने कहा, “मैडम से मिलना है।” वो बोली, “मैडम यहाँ नहीं हैं। मैं और मेरा पति केयरटेकर हैं—पास के सर्वेंट क्वार्टर में रहते हैं। मैडम का नंबर हो तो उनसे बात कर लीजिए।” मैंने कहा, “मैडम ने मुझे बुलाया है।” फोन मिलाया। मैडम ने पूछा, “विशु जी, कहाँ हो?” मैंने कहा, “आपके फार्महाउस पर।” वो बोली, “केयरटेकर से मेरी बात करवाइए।” मैंने फोन स्पीकर पर कर उसे दे दिया।

मैडम बोली, “साहब को मेरे रूम में इज़्ज़त से बिठाओ। इनके सत्कार में कोई कमी न हो—ये हमारे खास दोस्त हैं। जब तक मैं न आऊँ, इनका पूरा ख्याल रखना।” फिर स्पीकर ऑफ कर बात की। केयरटेकर ने फोन लौटाया, “आइए साहब!” मुझे एक शाही कमरे में ले गई—सजा-सजाया, हर सुख-सुविधा से लैस। गर्मी थी, तो सोचा स्विमिंग पूल में नहा लूँ। कपड़े उतारे, तंग स्विमिंग शॉर्ट्स पहने, और पूल की तरफ बढ़ा। छलांग लगाने को था कि देखा—केयरटेकर ब्रा में नहा रही थी। मैं रुक गया, कमरे की तरफ लौटा।

तभी उसने आवाज़ दी, “कहाँ जा रहे हैं? नहा लीजिए न!” मेरी कमर में हाथ डालकर पूल की ओर खींच लाई। उसके गर्म हाथों का स्पर्श पाते ही मेरा लंड लोहे सा तन गया—उसके हाथ से टकराया। वो बोली, “आपका लंड तो बहुत बड़ा-मोटा है। इसे कैसे संभालते हो?” मैं चुप रहा, कुछ न बोला, और पूल से बाहर निकल आया।

थोड़ी देर बाद एक काली मर्सिडीज़ बेंज़ रुकी। उसमें से तीन हसीनाएँ उतरीं—दो 25-26 साल की, एक 19-20 की। बड़ी वाली थीं संयोगिता और संजना—एयर होस्टेस, इंडिया-अमेरिका फ्लाइट की। छोटी थी प्रतीक्षा—संयोगिता की बहन। फार्महाउस संजना का था। संजना ने केयरटेकर को फोन कर चाय-नाश्ता मँगवाया। तीनों ने पैक कराया खाना लाया था—हम चारों ने साथ खाया। वो तीनों थोड़ी-थोड़ी पेग मार रही थीं। मुझे ऑफर किया, पर मैंने मना कर दिया—शराब नहीं पीता।

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खाने के बाद मैं शॉर्ट्स में बिस्तर पर लेट गया। 5-7 मिनट बाद वो तीनों मेरे पास आ धमकीं। संजना ने शॉर्ट्स के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया। मैं प्रतीक्षा से थोड़ा नर्वस था—उसका ज़िक्र नहीं था, और वो छोटी थी। संयोगिता ने भाँप लिया, “विशु जी, टेंशन मत लो। प्रतीक्षा की फीस मैं दूँगी। बिना हिचक शुरू करो।” फिर तीनों ने कपड़े उतारे—नंगी होकर मेरे चारों ओर बैठ गईं। मैंने लंड बाहर निकाला, “पहले कौन चुदेगी?” संजना बोली, “विशु जी, मैं और संयोगिता अपनी सील अमेरिकन लंड से तुड़वा चुकी हैं—हम तो चुदक्कड़ हैं। पर प्रतीक्षा पहली बार लंड देख रही है। पहले उसकी सील तोड़ो।”

प्रतीक्षा बोली, “दीदी, लंड ऐसा होता है?” आँखें फाड़कर देखने लगी। संयोगिता से पूछा, “इसे हाथ से पकड़ सकती हूँ?” मैंने कहा, “क्यों नहीं!” प्रतीक्षा ने मेरा गर्म लंड हथेली में भरा, सुपारा खोलकर हिलाने लगी, “दीदी, इसका लंड बहुत बड़ा-मोटा है। मेरी छोटी चूत में कैसे घुसेगा?” संयोगिता बोली, “प्रतीक्षा, चूत लचीली होती है। बड़ा, मोटा, छोटा—हर लंड ले लेती है। बस मोटा लंड पहले दर्द देता है। जब जड़ तक घुस जाए, फिर धक्कों से मज़ा आता है।”

प्रतीक्षा गर्म हुई—मेरे लंड को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, मुँह में डाला, लॉलीपॉप सा चूसने लगी। संजना मेरे टट्टे चाटने लगी। प्रतीक्षा नौसिखिया थी—सुपारा बिना खोले चूस रही थी। उसकी जीभ मेरे लंड के छेद को रगड़ रही थी—मज़ा जबरदस्त था। संयोगिता ने उसका मुँह हटाया, “पागल है तू! सुपारा खोलकर चूस—वरना बीज जल्दी निकलेगा, चुदाई नहीं हो पाएगी।” प्रतीक्षा ने सुपारा खोला, 5 मिनट चूसा। मैं संजना को चूमते हुए उसके चूचे चूसने लगा, फिर उसकी चूत चाटने पहुँचा। प्रतीक्षा और संयोगिता को लंड-टट्टे चूसने में दिक्कत हुई।

मैंने कहा, “मैं पीठ के बल लेटता हूँ। प्रतीक्षा और संयोगिता लंड-टट्टे चूसें। संजना अपनी चूत मेरे मुँह पर रखे—मैं चाटूँगा।” तीनों ने मान लिया। संजना की चूत मेरे मुँह पर—मैं जीभ से चाटने लगा। प्रतीक्षा ने लंड मुँह में ठूँसा, संयोगिता टट्टे चूसने लगी। 10 मिनट बाद मैंने संजना को हटाया। प्रतीक्षा और संयोगिता ने जगह बदली—10 मिनट और चूसा। फिर संजना मेरे लंड पर बैठ गई—जड़ तक घुसा। वो सीत्कारी, 2 मिनट रुकी, फिर कूदने लगी। 10 मिनट बाद मैंने पोज़ बदला—संजना नीचे, मैं ऊपर—ताबड़तोड़ चोदा। 15 मिनट बाद उसे घोड़ी बनाया, पीछे से ठोका—एक धक्के में जड़ तक। धीरे-धीरे, फिर तेज़—संजना सिसकारी, “आह… मज़ा आ रहा है!” आधे घंटे अलग-अलग पोज़ में चोदा। झड़ने को हुआ, “संजना, बीज कहाँ निकालूँ?” संयोगिता बोली, “मेरे लिए रुको।” मैं रुका। उसने प्रतीक्षा से कटोरी मँगवाई। मैंने लंड निकाला—10-12 पिचकारियाँ मारी। 2-3 ज़मीन पर गिरीं, बाकी कटोरी में। संयोगिता और प्रतीक्षा ने चाटा—प्रतीक्षा ने ज़मीन की बूँदें भी चाटीं, मेरा लंड साफ किया।

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फिर संयोगिता को चोदा—35 मिनट बाद उसकी चूत में झड़ा। दोनों एयर होस्टेस को चोदने के बाद प्रतीक्षा मचल उठी—उसकी चूत रस छोड़ रही थी। संयोगिता और संजना ने उसकी चूचियाँ-चूत लपकी—संजना चूचे चूसने लगी, संयोगिता चूत चाटने। मैं उसे चूम रहा था—प्रतीक्षा सिसकारने लगी। मैं उसके सिरहाने बैठा, लंड मुँह में डाला—वो चूसने लगी। संयोगिता की चूत चाटाई से प्रतीक्षा गीली हो गई। मैंने उंगली डाली—वो कसमसाई—कुंवारी थी। संयोगिता को चूचे चूसने भेजा, संजना को होंठ। मैंने लंड सेट कर धक्का मारा—3 इंच घुसा। प्रतीक्षा की चीख संजना के मुँह में दबी—आँखों से आँसू निकले। मैंने चूचा सहलाते हुए धीरे-धीरे ठोका। फिर पूरा खींचा, दुगुना ज़ोर से मारा—7 इंच घुसा। प्रतीक्षा तड़पी—मैंने 7 इंच पर धक्के लगाए। 5 मिनट बाद संजना से पूछा, “कितना बाहर है?” वो बोली, “1.5 इंच।” मैंने फिर खींचा, ज़ोर से ठोका—पूरा घुसा, टट्टे उसकी गांड से टकराए। 2 मिनट रुका, फिर तेज़ चोदा। प्रतीक्षा को मज़ा आया—कमर हिलाने लगी। आधे घंटे अलग-अलग पोज़ में ठोका। झड़ने को हुआ, “कहाँ निकालूँ?” प्रतीक्षा बोली, “अंदर मत।” संयोगिता ने लंड मुँह में लिया—2 मिनट में पिचकारी छूटी।

तीनों की चूत और गांड 1-1 बार मारी। दोस्तों, कहानी कैसी लगी? बताइए!

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