आह.. बेटा… पापा को हरा दे…

मैं 12वीं में था, 18 साल का, और हमारा घर इतना छोटा कि माँ-पापा के साथ एक ही कमरे में सोना पड़ता था। मैं उनका इकलौता बेटा, तो अपनी चटाई उनके बेड के पास बिछा कर सो जाता। स्कूल में दोस्त रोज चुदाई की बातें करते—कौन सी लड़की मस्त है, किसने किसकी चूत मारी। मैं चुप रहता, लेकिन उनकी बातें सुन-सुन कर मेरा भी मन डोलने लगा। सोचता, कब मौका मिलेगा, कब मैं किसी को पेलूँगा।

एक रात की बात है, गर्मी की, जब बिजली नहीं थी। मैं चटाई पर पसीना बहा रहा था। तभी बेड से कुछ आवाज आई—हल्का सा चर्र-चर्र। मैंने आँख खोली। चांद की रोशनी में देखा, पापा माँ के ऊपर चढ़े थे। माँ की साड़ी कमर तक उठी थी, और पापा धक्के मार रहे थे। माँ “उह… आह…” कर रही थी, दबी-दबी आवाज में। मेरा दिमाग घूम गया। पहली बार ऐसा कुछ देखा था। पापा करीब 15 मिनट तक माँ को चोदते रहे, फिर हांफते हुए रुक गए। माँ उठी, उसने पापा का लंड पकड़ा और मुँह में ले लिया। वो चूस रही थी, जैसे कोई भूखी औरत। पापा “हां… ऐसे ही…” बोल रहे थे। मैं चुपचाप देखता रहा, मेरा लंड पजामे में खड़ा हो गया।

वो सीन मेरे दिमाग में अटक गया। माँ को अब मैं अलग नजरों से देखने लगा। वो 38 की थी, लेकिन क्या माल थी! गोरी, भरे-भरे चूचे, और गांड ऐसी कि साड़ी में हिलती तो लंड सलामी दे। दिन में वो खाना बनाती, मैं उसकी कमर, उसके पेट की झलक देखता। मन करता, बस पकड़ कर पेल दूँ।

कुछ दिन बाद मौका मिला। पापा का ट्रांसफर कोलकाता हो गया। वो हफ्ते में एक बार आते। माँ चुप-चुप रहने लगी, जैसे कुछ कमी खल रही हो। मैं अब उनके बेड पर ही सोता था, उनके पास। उनकी साड़ी की खुशबू, उनकी गर्म सांसें—हर रात मुझे पागल करती थीं।

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एक दिन मैं स्कूल नहीं गया। पापा ऑफिस गए थे, घर पर मैं और माँ। माँ बोली, “मैं नहाने जा रही हूँ।” हमारा बाथरूम टूटा-फूटा था, दरवाजे के नीचे गैप, और दीवार में एक छोटा सा छेद। माँ के अंदर जाते ही मेरा दिमाग खराब हो गया। मैंने सोचा, बस एक झलक। बाथरूम के पास गया, नीचे झुका, और गैप से देखा। माँ नंगी थी। उसका गोरा बदन साबुन और पानी से चमक रहा था। वो अपने चूचों पर साबुन मल रही थी, फिर उसका हाथ चूत पर गया। उसने चूत को रगड़ा, उंगलियां अंदर-बाहर कीं, और हल्की सी “आह…” निकली। उसकी चूत गीली थी, बालों में पानी चमक रहा था। उसकी गांड गोल, जैसे कोई रसीला फल। मैं पागल हो गया। बाहर आया, अपने कमरे में गया, और जोर से मुठ मारी। मन में बस एक बात—माँ को चोदना है, किसी भी हाल में।

पापा के जाने के बाद मैं और माँ रात को एक बेड पर। एक रात, मैंने हिम्मत की। माँ सो रही थी, उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया था। मैंने धीरे से हाथ उसके चूचों पर रखा। वो मुलायम थे, गर्म। माँ नहीं हिली। मैंने हल्का सा दबाया। फिर भी कुछ नहीं। मेरा लंड तन गया। मैंने सोचा, शायद माँ भी तड़प रही है। मैंने उसका ब्लाउज खोलने की कोशिश की। तभी मेरा लंड किसी ने पकड़ा। मैं चौंका। माँ का हाथ था, वो मेरे पजामे में घुस गया था। उसकी आँखें खुली थीं, और होंठों पर हल्की सी हंसी। “बेटा, ये क्या कर रहा है?” उसने पूछा।
“माँ, तुझे देख कर रहा नहीं जाता,” मैंने हड़बड़ा कर कहा।
वो बोली, “तो कर ले जो करना है, पर चुपके से।”

मैंने माँ का ब्लाउज फाड़ दिया। उसके चूचे बाहर उछल पड़े—गोरे, गोल, निप्पल काले। मैंने एक चूचा मुँह में लिया और चूसने लगा। माँ “आह… धीरे…” बोली, लेकिन उसका हाथ मेरे लंड पर चल रहा था। मैंने उसकी साड़ी खींची, नीचे कुछ नहीं था। उसकी चूत गीली थी, जैसे कोई नदी बह रही हो। मैंने पजामा उतारा, मेरा लंड खड़ा था। माँ ने देखा और बोली, “ये तो पापा से भी बड़ा है।”

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मैंने माँ को बेड पर धकेला। उसकी चूत पर जीभ रखी। उसका स्वाद नमकीन, गर्म। मैंने चूसा, उंगलियां अंदर डालीं। माँ चिल्लाई, “बेटा… उई… क्या कर रहा है…” लेकिन उसकी कमर मेरे मुँह की ओर धकेल रही थी। मैंने उसकी चूत को चाटा, उसका पानी मेरे मुँह में आया। माँ सिसकार रही थी, “और… चूस… मार डाला…”

माँ ने मुझे खींचा और मेरा लंड मुँह में लिया। उसकी जीभ मेरे लंड पर लपलप कर रही थी। वो चूस रही थी, जैसे कोई भूखी। मैं “माँ… आह…” चिल्ला रहा था। उसने लंड को बाहर निकाला, सहलाया, और बोली, “अब चूत में डाल, बेटा।”

मैंने माँ की टांगें फैलाईं। उसकी चूत गीली, गर्म। मैंने लंड सेट किया और एक धक्का मारा। पूरा लंड अंदर। माँ “उई… मर गई…” चीखी। मैंने धक्के मारना शुरू किया। हर धक्के के साथ माँ “आह… और तेज…” चिल्ला रही थी। “बेटा, पापा को भूलने दे… और पेल…” उसकी बातें मुझे जंगली बना रही थीं। मैंने उसकी कमर पकड़ी, और जोर-जोर से पेला। उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। बेड चर्र-चर्र कर रहा था।

कुछ देर बाद मैंने माँ को उल्टा किया। उसकी गांड मेरे सामने थी। “माँ, गांड में?” मैंने पूछा।
“हां, लेकिन धीरे,” वो बोली।

मैंने थूक लगाया, उसकी गांड के छेद को सहलाया। फिर लंड सेट किया और धीरे से धक्का मारा। माँ “आह… फट गई…” चीखी। मैं रुका, फिर धीरे-धीरे अंदर डाला। उसकी गांड टाइट थी, जैसे कोई चूस रही हो। मैंने धक्के मारे, माँ “बेटा… और… मार डाला…” चिल्ला रही थी। मैं उसकी गांड में झड़ गया।

हम दोनों हांफ रहे थे। माँ मेरे पास लेटी, उसका पसीना मेरे बदन पर। “एक बार और?” मैंने पूछा।
“हां, लेकिन चूत में,” वो बोली।

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इस बार माँ मेरे ऊपर चढ़ी। उसकी चूत मेरे लंड पर थी। वो ऊपर-नीचे हो रही थी, उसके चूचे उछल रहे थे। मैंने उन्हें पकड़ा, चूसा। माँ “बेटा… तेरा लंड… आह… गजब है…” बोल रही थी। मैंने उसे लिटाया, उसकी टांगें कंधों पर रखीं, और फिर से पेला। उसकी चूत गीली, गर्म। हर धक्के के साथ उसकी सिसकारियां तेज। “पापा को हरा दे… और तेज…” वो चिल्लाई। मैंने पूरी ताकत से पेला, और उसकी चूत में झड़ गया।

हम लिपट कर लेट गए। माँ बोली, “तूने तो पापा को पीछे छोड़ दिया।”

अगले दिन मैं स्कूल जाने को तैयार था। माँ रसोई में थी, साड़ी में। मैंने उसे पीछे से पकड़ा। वो हंसी, “क्या, सुबह-सुबह भी?”
“माँ, तू है ही ऐसी,” मैंने कहा।
वो मेरे गाल पर चूम कर बोली, “जा, स्कूल जा। रात को मिलेंगे।”

उसके बाद जब भी पापा नहीं होते, हम चुदाई करते। माँ कभी मेरे लंड को चूसती, कभी अपनी चूत चटवाती। हर रात मस्ती। फिर मुझे पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ा। माँ ने गले लगाया और बोली, “बेटा, अपनी माँ को याद रखना।” मैंने हंसी, और आज भी उसकी चूत, उसकी गांड, और उसकी सिसकारियां मेरे दिमाग में हैं। पापा को मैंने हर बार हराया।

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