अधकटी चोली में चाची ने उरोज दिखाए

मैंने आखिरकार चाचाजी के बार-बार आग्रह पर गर्मी की छुट्टियां गांव के पुश्तैनी घर में बिताने का फैसला किया। जब मैं गांव पहुंचा, तो चाचाजी की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने शीला चाची को पुकारते हुए कहा, “देखो, मनीष आ गया तुम्हारा साथ देने। अब मैं बेफिक्र होकर अपने दौरे पर जा सकता हूं। नहीं तो तुम महीने भर अकेले बोर हो जातीं।”

शीला चाची ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और बोलीं, “हां लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गए। वैसे, मैंने अपनी भांजी को भी फोन किया है, शायद वो अगले हफ्ते आ जाए। तेरा आना पक्का नहीं था ना, इसलिए।”

चाचाजी ने अपना सामान बैग में भरते हुए कहा, “चलो, दो से तीन भले। मैं तो निकल रहा हूं। भाग्यवान, संभालकर रहना। मनीष बेटे, चाची का पूरा खयाल रखना, उनकी हर जरूरत पूरी करना। महीने भर घर और चाची को तेरे हवाले छोड़कर जा रहा हूं।” इतना कहकर चाचाजी बैग उठाकर दौरे पर निकल गए।

मेरे राजीव चाचा बेहद हैंडसम थे। गठीला बदन, गेहूंआ रंग, और गांव के उस बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे। वो एक कंपनी के लिए आसपास के शहरों में मार्केटिंग का काम करते थे, इसलिए अक्सर बाहर रहते। घर में चाची के सिवा कोई न था। चाचाजी ने पांच साल पहले, बत्तीस की उम्र में, घरवालों की जिद पर शादी की थी। वरना उनका शादी का कोई इरादा न था। शीला चाची उनसे सात-आठ साल छोटी थीं, शादी के वक्त शायद पच्चीस-छब्बीस की रही होंगी।

उनका कोई बच्चा नहीं था। घरवालों को इस बात से हैरानी न हुई, क्योंकि चाचाजी को शादी में दिलचस्पी ही न थी। मुझे तो लगता है कि उन्होंने शीला चाची को कभी चूमा भी न होगा, चुदाई तो दूर की बात।

मैं चाचाजी की शादी में छोटा था, शायद अठारह साल का। उस वक्त शादी के जोड़े में सजी शीला चाची मुझे बहुत पसंद आई थीं। उनके बाद मैं उनसे सिर्फ एक बार, दो दिन के लिए मिला था। गांव आने का मौका ही न मिला। आज उन्हें फिर से देखकर मेरा दिल धक-धक करने लगा। सच कहूं तो, कितना भी संयम बरतने की कोशिश की, मेरा लंड खड़ा होने लगा। मुझे अजीब-सा लगा, क्योंकि चाचाजी की मैं बहुत इज्जत करता था। उनकी जवान बीवी की ओर ऐसे विचार मन में लाना मुझे शर्मिंदगी दे रहा था। लेकिन मेरा उन्नीस साल का जोश और चाची का भरपूर जवानी भरा बदन—क्या करता?

चाची अब इकतीस-बत्तीस की थीं, पूरी तरह परिपक्व, भरी-पूरी जवान औरत। घूंघट वाली साड़ी में भी उनका रूप छुपाए न छुप रहा था। माथे पर बड़ा-सा सिंदूर, बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल, उभरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे लाल। साड़ी उनके बदन से चिपकी थी, फिर भी उनके उरोजों का उभार साफ दिख रहा था। हरी चूड़ियां, गोरी बांहें, और अचानक मेरे मन में खयाल आया—चाची का नंगा बदन कैसा दिखेगा? इस विचार पर मैंने खुद को कोसा।

शायद मेरी नजर चाची ने पढ़ ली थी। वो शरारती अंदाज में बोलीं, “क्या बात है लल्ला, कितने जवान हो गए हो! इतना सा देखा था तुझे। अब तो शादी कर डालो। गांव के हिसाब से तो अब तक तेरी बहू आ जानी चाहिए थी।” उनके बोलने और देखने के अंदाज से मैं समझ गया—शीला चाची बड़ी चालू थीं। मेरे साथ तो खूब इठला रही थीं। मैं शरमाकर इधर-उधर देखने लगा। अब हम अकेले थे, तो उन्होंने घूंघट छोड़ दिया। कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पें मारने लगीं। उनके लंबे, खूबसूरत बालों का जूड़ा बड़ा आकर्षक था।

“चाय बना लाती हूं, लल्ला,” कहकर वो रसोई की ओर चली गईं। उनकी साड़ी कमर से हट गई थी। वो गोरी, चिकनी कमर और नितंबों का डोलना देखकर मेरा लंड और कसकर खड़ा हो गया। शायद चाची ये जानती थीं, क्योंकि जानबूझकर रसोई से पुकारा, “यहीं रसोई में आ जा, लल्ला। हाथ-मुंह भी धो ले।”

मेरा लंड इतना तना था कि मैं उठने की हिम्मत न जुटा सका। “बाद में धो लूंगा, चाची। नहा ही लूंगा। चाय यहीं ले आइए, प्लीज,” मैंने कहा। वो चाय लेकर आईं। उनकी नजरें ऐसी थीं, जैसे मेरी हालत भांप चुकी हों।

बातें करते-करते उन्होंने बड़े सहज अंदाज में अपना ढीला आंचल ठीक किया। वो दस सेकंड का काम करने में उन्हें दो मिनट लगे। बार-बार झुककर साड़ी की चुन्नट ठीक की, और हर बार उनके उरोजों का उभार मेरे सामने आया। लाल, अधकटी चोली में उनके मांसल, गोरे उरोज समा नहीं रहे थे। जब वो झुकीं, तो उन उरोजों के बीच की गहरी खाई ने मुझे इतना उत्तेजित किया कि मैंने मुश्किल से अपने हाथ लंड की ओर जाने से रोके। हस्तमैथुन का मन था, पर मैं रुका।

मेरी हालत देखकर चाची को दया आ गई। वो अपना छिछोरापन रोककर मेरा कमरा ठीक करने ऊपर चली गईं। मुझे लंड शांत करने का वक्त मिला। कुछ देर बाद वो मुझे कमरे में ले गईं और बोलीं, “शाम हो गई, मनीष। नहा ले और नीचे आ जा। मैं खाना तैयार करती हूं।”

“इतनी जल्दी खाना, चाची?” मैंने पूछा।

वो मेरी पीठ पर हाथ रखकर बोलीं, “जल्दी खाना, जल्दी सोना—गांव में यही होता है, लल्ला। आदत डाल ले।” उनकी नजर में गजब की शरारत थी। मैं हड़बड़ा गया। नहाने जाने लगा, तो पीछे से चाची बोलीं, “जल्दी नहाना, अच्छे बच्चों की तरह। अकेले में कोई शरारत नहीं करना।” उनकी खिलखिलाहट सुनकर मुझे शर्मिंदगी हुई। शायद वो इशारा कर रही थीं कि नहाते वक्त मैं मुठ न मारूं।

उनके इस खेल ने मेरे मन में एक हसीन उम्मीद जगा दी। वो उम्मीद तब यकीन में बदली, जब मैं नहाकर रसोई पहुंचा। मैंने पूरी तैयारी कर ली थी। मन मारकर हस्तमैथुन से खुद को रोका था। लंड को पेट से सटाकर, जांघिया और पाजामा पहन लिया था। ऊपर से कुर्ता डाल लिया, ताकि लंड तन भी जाए, तो दिखे न।

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चाची रसोई में सब्जी काट रही थीं। मैं कुर्सी पर बैठकर उनसे बातें करने लगा। चाची ने कुछ बैंगन उठाए और हंसिया लेकर मेरे सामने जमीन पर बैठ गईं। साड़ी को घुटनों के ऊपर उठाकर एक टांग नीचे रखी, दूसरी मोड़कर हंसिए के पाट पर पांव रखा। उनकी गोरी, चिकनी पिंडलियां और खूबसूरत पैर देखकर मैं मस्ती में डूब गया। वो बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थीं।

अचानक मेरे लंड में ऐसा उछाल आया, जैसे झड़ जाएगा। हुआ ये कि चाची ने आराम से बैठने के लिए टांगें और फैलाईं। उनकी गोरी, मांसल जांघें दिखीं, और उनके बीच काले, घने बालों से ढकी उनकी बुर का दर्शन हुआ। चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था! मैं शरमाया, लेकिन उत्तेजना चरम पर थी।

पहले मुझे लगा, शायद उन्हें नहीं पता कि उनका खजाना मुझे दिख रहा है। मैंने नजर फेर ली और बातें करने लगा। लेकिन चाची कहां छोड़ने वाली थीं। दो मिनट बाद वो शरारती अंदाज में बोलीं, “चाची इतनी बुरी है, लल्ला, कि बात करते वक्त उसकी ओर देखता भी नहीं?”

मैंने उनकी ओर देखा और कहा, “नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी। मैं तो आपको लगातार देखना चाहता हूं, पर डरता हूं कि आप बुरा न मान जाएं।”

“तो देख न, लाला। ठीक से देख। मुझे अच्छा लगता है कि तेरा जैसा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे। तू मेरा भतीजा है, घर का लड़का। तुझे क्या बुरा मानूंगी?” कहकर चाची ने और टांगें फैलाईं और बैंगन काटने लगीं।

अब तो साफ था—चाची मुझे रिझा रही थीं। मैंने भी शरम छोड़कर उनकी उस मादक बुर का आनंद लिया। गोरी, फूली बुर पर रेशमी काले बाल, और उसकी गहरी लकीर में लाल योनिमुख की झलक। पांच मिनट का काम चाची ने पंद्रह मिनट में किया। मुझसे उकसाने वाली बातें करती रहीं—गर्लफ्रेंड है या नहीं, आज के लड़के-लड़कियां कितने चालू होते हैं, मैं इतना दबा-दबा क्यों हूं।

मैं समझ गया कि चाची आज रात मुझ पर मेहरबान होंगी। चाचाजी का खयाल आया, तो थोड़ा अपराध-बोध हुआ। आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगीं। मैं बाहर कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा। अपनी उबलती वासना शांत करने के लिए मुठ मारने के सिवा कोई चारा न था, पर मैंने किताब में मन लगाया।

कुछ देर बाद चाची ने खाने के लिए बुलाया। हमने यारों की तरह गप्पें मारते हुए खाना खाया। खाना खत्म कर मैं अपने कमरे में सामान खोलने लगा। सोच रहा था कि चाची कहां सोती हैं और रात कैसे कटेगी। तभी चाची ऊपर आईं और बोलीं, “मनीष, छत पर आ, बिस्तर लगाने में मदद कर।”

छत पर गया। दिल धक-धक कर रहा था। गर्मी के दिन थे, सब बाहर सोते थे। ऐसी हालत में चाची के साथ क्या बात बनती? छत पर दो खाटें थीं। हमने गद्दियां बिछाईं। चाची बोलीं, “गर्मी में बाहर सोने का मजा ही अलग है, लाला।” मुझे चिढ़ाती हुई वो मच्छरदानी लेने चली गईं।

वापस आईं, तो मच्छरदानियां फटी थीं। चाची ने मेरी आंखों में देखकर कहा, “मच्छर बहुत हैं, मनीष। सोने नहीं देंगे। गर्मी इतनी है कि नीचे नहीं सोया जाएगा। ऐसा कर, खाटें सरका कर मिला ले। मैं डबल मच्छरदानी ले आती हूं। मेरे साथ सोने में शरमाएगा तो नहीं? वैसे मैं तेरी चाची हूं, मां जैसी ही समझ ले।”

मैं शरमाकर बुदबुदाया। चाची मुस्कुराकर डबल मच्छरदानी लेने चली गईं। वापस आईं, तो हमने उसे बांधा। मैंने हिम्मत कर पूछा, “चाची, आजू-बाजू वाले देखेंगे तो नहीं?” वो हंस पड़ीं, “तूने छत ठीक से नहीं देखी।” मैंने गौर किया—हमारा मकान ऊंचा था, दीवारें भी। कोई बाहर से नहीं देख सकता था।

चाची ने ताना मारा, “दूसरे देखें भी, तो क्या? तू तो इतना सयाना बच्चा है, सिमटकर सो जाएगा।” मैंने मन में कहा, “चाची, मौका दो, तो दिखाता हूं ये बच्चा तुम्हारे मतवाले बदन का रस कैसे निकालता है।”

चाची नीचे गईं, ताला लगाया, बत्ती बुझाई, और ऊपर आईं। मैं मच्छरदानी खोंसकर खाट पर लेट गया था। चाची दूसरी खाट पर लेट गईं। उनके बदन की मादक खुशबू ने फिर मेरा लंड तना दिया। वो गप्पें मारने के मूड में थीं। फिर वही गर्लफ्रेंड वाली बातें शुरू कीं। मेरा लंड अब पाजामे में तंबू बनाकर खड़ा था। हल्की चांदनी में सब साफ दिख रहा था। मैंने करवट बदलकर पीठ उनकी ओर कर ली।

चाची हंसकर बोलीं, “शरमाओ मत, लल्ला। क्या बात है, ऐसे क्यों बिचक रहे हो?” उन्होंने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपनी ओर खींचा। उनका हाथ मेरे लंड को लगा, और वो हंसने लगीं, “तो ये बात है! सचमुच बड़ा हो गया मेरा भतीजा। ये क्यों हुआ, रे? किसी गर्लफ्रेंड की याद आ रही है?” कहकर उन्होंने पाजामे के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया और सहलाने लगीं।

अब मुझसे रुका न गया। मैं उनकी ओर खिसका, बांहें डालकर चिपट गया, जैसे बच्चा मां से चिपटता है। उनके सीने में मुंह छुपाकर बोला, “चाची, क्यों तड़पाती हो? तुम्हें मालूम है, तुम्हारे रूप को देखकर शाम से मेरा क्या हाल है।”

चाची ने मेरा मुंह ऊपर किया और जोर से चूमा, “तो मेरा हाल भी कुछ अच्छा नहीं, लल्ला। तेरा ये जवान बदन देखकर मैं ही जानती हूं मेरा क्या हाल है।”

बातों का अब कोई मतलब न था। हम दोनों कामातुर थे। एक-दूसरे से लिपटकर होंठ चूमने लगे। चाची के रसीले होंठों ने मुझे चरमसुख की कगार पर ला खड़ा किया। उनका आंचल ढल गया था। चोली से उरोज बाहर निकल रहे थे, मेरी छाती से भिड़े हुए। मेरा तना लंड कपड़ों के ऊपर से उनकी जांघों को धक्के मार रहा था। मेरे मुंह से सिसकारी निकली, “आह्ह!”

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चाची ने चुंबन तोड़ा, मेरे लंड को टटोला, और मुझे चित लिटा दिया। “लल्ला, अब तेरी खैर नहीं। मुझे ही कुछ करना होगा,” कहकर वो मेरे बाजू में बैठ गईं। पाजामे के बटन खोलकर, जांघिए की स्लिट से मेरा उछलता लंड बाहर निकाला। चांदनी में मेरा तना लंड और उसका लाल सुपाड़ा देखकर उनकी सिसकारी निकली, “हाय!”

उन्होंने लंड को हाथ में लिया, पुचकारते हुए बोलीं, “हाय, कितना प्यारा है! मैं तो निहाल हो गई, मेरे राजा!” झुककर सुपाड़े को मुंह में लिया और चूसने लगीं। उनकी जीभ के स्पर्श से मैं तड़प उठा, “आह्ह, चाची!” जैसे बिजली का झटका लगा। उनकी चोली से लटकते मम्मे रसीले फलों जैसे लुभा रहे थे।

चाची ने आवेश में मेरा पूरा लंड जड़ तक निगल लिया। मैंने चीखकर कहा, “चाची, ये क्या कर रही हो? मैं झड़ जाऊंगा तुम्हारे मुंह में!” मैंने उनका मुंह हटाने की कोशिश की, पर उन्होंने हल्के से दांतों से लंड को काटकर सावधान किया और आंख मारी। उनकी नजर में गजब की वासना थी। फिर वो जोर-जोर से लंड चूसने लगीं, “स्लर्प… स्लर्प…”

दो मिनट में मैं मचल उठा। उनके सिर को पकड़कर कसमसाया और झड़ गया, “आह्ह… उह्ह!” लगा, वो लंड निकाल लेंगी, पर वो गन्ने का रस निकालती रहीं। पूरा वीर्य निगलकर ही रुकीं। मैं हांफता हुआ चित पड़ा था, स्वर्गिक सुख में डूबा।

चाची मुंह पोंछकर मुझसे लिपट गईं, मेरे गाल और होंठ चूमने लगीं, “लल्ला, तू तो कामदेव है मेरे लिए! मैं धन्य हो गई तेरा प्रसाद पाकर!”

“चाची, तुम्हें गंदा नहीं लगा?” मैंने पूछा।

“अरे, बेटे, ये तो गाढ़ी मलाई है मेरे लिए! अब देख, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूं,” वो हंसकर बोलीं। मुझे चूमते हुए कहा, “तू बड़ा पोंगा पंडित है, लल्ला। शाम से रिझा रही हूं, पर तू तो शरमाता रहा।”

मैंने उनके गाल चूमकर कहा, “नहीं, चाची, मैं तो कब का तुम्हारा गुलाम हो गया था। बस, चाचाजी का डर था।”

वो हंसकर चपत मारते हुए बोलीं, “मूर्ख, उन्हें सब मालूम है।” मेरे हैरान होने पर वो हंसीं, “सच कह रही हूं, मनीष। मैं कब से भूखी हूं। चाचाजी भले हैं, पर अलग किस्म के। उन्हें मेरे बदन में जरा भी दिलचस्पी नहीं। मैंने सब्र किया, उन्हें धोखा नहीं देना चाहती थी। पर पिछले महीने उनसे झगड़ा हुआ। जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी? वो बोले, ‘घर में जवान लड़का है, उसे बुला लिया कर। उसके साथ जो करना हो, कर। मुझे बुरा नहीं लगेगा।’ इसलिए वो तुझे बुला रहे थे।”

मेरे मन का बोझ उतर गया। मैंने पूछा, “चाचा को ऐसी सुंदर औरत से भी लगाव क्यों नहीं?” वो हंसकर टाल गईं, “बाद में बताऊंगी।” मैंने चाची को बांहों में भर लिया।

उनकी वासना अब चरम पर थी। उन्होंने चोली के बटन खोले, और उनके मोटे, गोरे उरोज उछलकर बाहर आए। निपल्स तने हुए, अंगूर जैसे। वो झुककर एक उरोज मेरे मुंह में दे दिया और मुझ पर चढ़कर लेट गईं, “आह्ह…” उनकी टांगों ने मेरी कमर जकड़ ली, और वो धक्के लगाने लगीं, जैसे चुदाई कर रही हों।

मैंने उनका निपल चूसा, “स्स… स्स…” उनकी चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फेरा। साड़ी के ऊपर से उनके नितंब दबाए। वो सिहर उठीं, “उह्ह!” मेरे चेहरे को अपनी छाती में दबाकर आधा उरोज मेरे मुंह में ठूंस दिया। मैं चूसता रहा, “स्लर्प…” सोचने लगा—चाची को चोदने मिले, तो क्या मजा आएगा!

दस मिनट में मेरा लंड फिर तन गया। मैंने कहा, “चाची, कपड़े उतार दो। तुम्हारा बदन देखने को मर रहा हूं।”

वो बोलीं, “नहीं, लल्ला। छत पर हैं, आज सावधानी ठीक है। कल दोपहर को घर में अकेले होंगे।”

“तो चोदने दो, चाची। मैं पागल हो जाऊंगा,” मैंने गिड़गिड़ाया।

वो उरोज मेरे गालों पर रगड़ती हुई बोलीं, “इतनी जल्दी क्या, राजा? सब्र कर, तभी स्वर्ग का मजा आएगा।” उन्होंने दूसरा निपल मेरे मुंह में दे दिया।

मैं चूसने में जुट गया, “स्स… स्स…” हमारी सुखी चुदाई शुरू हुई। मैं नीचे से, वो ऊपर से धक्के लगा रही थीं, “थप… थप…” कपड़े अभी बीच में थे। बीस मिनट मस्ती में गुजरे। मैं उन्हें भोगने को बेताब था।

चाची ने मेरे कान में फुसफुसाया, “मनीष, उनसठ का खेल खेलेगा? उज्र तो नहीं?” मैं समझ गया—सिक्सटी नाइन। मेरा रोम-रोम सिहर उठा। उनकी बुर के दर्शन से ही मैं चोदने और चाटने को आतुर था। मैंने कहा, “क्या बात करती हो, चाची? मैं तो मरा जा रहा हूं इस अमृत के लिए!”

वो उलटी लेट गईं, साड़ी कमर तक उठाकर एक टांग मेरे सिर पर रखी, “आ जा, लल्ला। इतना रस पिलाऊंगी कि तृप्त हो जाएगा!” उनकी मांसल जांघें नंगी थीं। मैं उनकी जांघ पर लेटा, उंगलियों से रेशमी झांटें हटाकर उनकी बुर देखने लगा। चांदनी में लाल चूत की झलक ने मुझे पागल कर दिया। मैंने सीधे उसका चुंबन लिया, “चप…”

उसकी मादक खुशबू ने मुझे दीवाना बना दिया। जीभ निकालकर मैं उनकी बुर चाटने लगा, “स्लर्प… स्लर्प…” वो गीली थी, गाढ़ा, खट्टा-मीठा रस टपक रहा था। मैं बेतहाशा चूसने लगा, “आह्ह… उह्ह!”

चाची मेरी हरकत देख रही थीं। मेरी अधीरता पर सिसक उठीं, “हाय, लल्ला! तू तो जादूगर है! बस, बीच-बीच में जीभ अंदर डाल दे!” वो मेरे लंड पर टूट पड़ीं, “स्लर्प…” पहले चाटा, फिर चूसा।

आधे घंटे तक हम एक-दूसरे के गुप्तांग चूसते रहे। चाची पांच मिनट में झड़ गईं, “आह्ह… ओह्ह!” उनकी चूत ने खूब रस चखाया। वो दो बार और झड़ीं। मैंने उनकी चूत में जीभ डालकर चोदा, “स्लर्प… स्लर्प…” आखिर मैंने उनके मुंह को चोदकर झड़ गया, “उह्ह… आह्ह!”

हम तृप्त थे, पर नींद कोसों दूर। पेशाब लगी, तो छत की नाली में मूत लिया। चाची ने बेझिझक मेरे सामने बैठकर पेशाब किया। उनकी बुर से निकलती धार देखकर मैं रोमांचित हो उठा। वापस बिस्तर पर चिपटकर चूमाचाटी शुरू की। चाची गंदी बातें करने लगीं, “कितना मस्त लंड है तेरा, लल्ला!”

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मैंने पूछा, “चाची, तुमने इतने साल संयम कैसे रखा?”

वो हंसीं, “कौन कहता है मैंने संयम रखा? खूब मजा लिया।”

मैंने कहा, “तुम तो कह रही थीं कि किसी से संबंध नहीं रखे।”

वो मेरे लंड को दबाकर बोलीं, “संबंध नहीं रखे, तो और रास्ते हैं। तू भी तो मुठ मारता है न?”

मैं समझ गया। उनके स्तन दबाने का मन हुआ। वो पीठ करके लेट गईं। मैं पीछे से चिपटकर उनके मम्मे दबाने लगा। उनके कड़े निपल्स हथेलियों में चुभ रहे थे। उनके नितंबों की गहरी लकीर में लंड रगड़ने लगा, “स्स… स्स…” जल्द ही मेरा लंड फिर तन गया।

“अब चोदने दो, चाची!” मैं मचल उठा।

वो इतरा कर बोलीं, “ठीक है, लल्ला। मैदान में आ जा। पर इतने दिन बाद चुदवाऊंगी, तो मन भरकर। घंटे भर बिना झड़े मेहनत करनी पड़ेगी। मंजूर?”

मैंने हामी भरी, पर मन में लगा—इसे बिना झड़े चोदना मुश्किल है। चाची चित लेट गईं, साड़ी ऊपर की, तकिया चूतड़ों के नीचे रखा, और टांगें फैलाकर बोलीं, “आ जा, राजा!”

उनकी रिसती बुर देखकर मैं फिर चूसने लगा, “स्लर्प… स्लर्प…” चाची सिसक उठीं, “आह्ह, लल्ला! तुझे मेरी चूत बहुत भा गई! चूस, बेटे, मन भरकर चूस!”

उन्हें झड़ाकर मैंने रस चाटा, “स्स… स्स…” फिर टांगों के बीच बैठकर सुपाड़ा उनकी चूत पर रखा और जोर से पेल दिया, “थप!” चाची की बुर टाइट थी, पर गीली। मेरा छह इंच का लंड जड़ तक उतर गया। चाची सिसक उठीं, “आह्ह… शाबाश, मेरे शेर! चोद अब, ढीली कर दे मेरी कमर!”

मैं सपासप चोदने लगा, “थप… थप…” इतना सुख कभी न मिला। पहली चुदाई, वो भी ऐसी मस्त औरत के साथ! मैं निहाल हो गया। बीस मिनट तक चोदा। दो बार झड़ने से मेरा संयम बढ़ गया था। चाची बार-बार मुझे रोकतीं, “रुक, लल्ला! अभी झड़ मत!” मेरी कमर जकड़कर स्थिर कर देतीं।

मैं उनके होंठ चूसता, “स्लर्प…” निपल्स चूसता, “स्स… स्स…” और हचक-हचक चोदता, “थप… थप…” चाची बोलीं, “लगता नहीं, ये तेरी पहली चुदाई है!” मैंने उनकी कसम खाकर विश्वास दिलाया।

थककर मैंने गिड़गिड़ाया, “चाची, अब झड़ने दो!” उनकी चुदास मिटी नहीं थी, पर मेरी हालत देखकर बोलीं, “ठीक है, लल्ला। आज छोड़ देती हूं।”

आखिरी पांच मिनट की चुदाई जोरदार थी। चाची उकसाने लगीं, “चोद, राजा! अपनी चाची को चोद! फाड़ दे मेरी चूत! हचक के मार!” मैंने शक्तिशाली धक्के लगाए, “थप… थप…” खाट चरमराने लगी। चाची नीचे से चूतड़ उछालकर चुदवा रही थीं, “आह्ह… उह्ह!” उनकी चूड़ियां खनक रही थीं, “खन… खन…” मैं मदहोश हो गया।

झड़ते वक्त मेरी चीख निकलने वाली थी, पर चाची ने मेरा मुंह अपने होंठों से दबा लिया, “स्लर्प…” उस अपूर्व सुख के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आने पर नींद खुली।

चाची नहाकर, शायद मंदिर होकर, चाय लेकर आईं। नीली साड़ी में उनका रूप देखकर मैं फिर लिपटने वाला था, पर उन्होंने उंगली मुंह पर रखकर मना किया। दिन निकल आया था। चाय पीते हुए चाची ने मुस्कुराकर पूछा, “कैसी कटी रात, मेरे लल्ला?”

मैंने उनकी आंखों में देखकर कहा, “चाची, तुमने मुझे स्वर्ग पहुंचा दिया। मैं तुम्हारा गुलाम हूं।”

वो हंसीं, “ठीक है, गुलाम ही बनाकर रखूंगी। अब नीचे चल, नहा ले।”

दोपहर तक नौकरानी थी, तो टाइम पास किया। एक बजे वो गई, और चाची ने दरवाजा बंद किया। मैं उनसे चिपट गया। सोफे पर बैठकर हम चूमने लगे। चाची बोलीं, “चुंबन का असली मजा जीभ से आता है।” उन्होंने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाली, “स्लर्प…” मैं उनकी रसीली जीभ चूसने लगा।

चाची मुझे अपने कमरे में ले गईं। दरवाजा बंद कर बोलीं, “कल तू मुझे नंगी देखना चाहता था न? आज दिखाती हूं। पहले तू कपड़े उतार।”

मैं नग्न हो गया। मेरे जवान बदन और तने लंड को देखकर वो बोलीं, “बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम! ये सोंटा तो मस्त है!” स्केल लाकर मेरा लंड नापा, “छह इंच! सालभर में चोद-चोदकर आठ इंच कर दूंगी!”

“चाची, अब तुम नंगी हो जाओ,” मैंने कहा।

वो मुस्कुराकर साड़ी उतारने लगीं, “शर्त है, लल्ला। चुपचाप बैठ। लंड को हाथ न लगाना।” साड़ी और पेटीकोट उतरते ही उनकी गोरी, मोटी जांघें दिखीं। काली पैंटी और ब्रा में वो गजब ढा रही थीं। थोड़ी देर मुझे तंग किया, इधर-उधर घूमीं।

आखिर मैंने उनके सामने घुटने टेके, पैंटी में मुंह छुपाया, और मिन्नत की। वो हंसकर बोलीं, “ठीक है, लल्ला। तू ही उतार।” मैंने कांपते हाथों से उनकी ब्रा खोली। उनके भारी उरोज लटककर डोलने लगे। मैंने उन्हें चूमना शुरू किया, “चप… चप…”

“थोड़े लटक गए हैं, राजा। पहले कड़क थे,” चाची बोलीं।

“मेरे लिए तो स्वर्ग के फल हैं,” मैंने कहा। मंगलसूत्र उनके उरोजों के बीच लटक रहा था, जो हमारे नाजायज रिश्ते को और मसालेदार बना रहा। चाची ने पूछा, “मंगलसूत्र उतार दूं?”

“नहीं, चाची। बहुत प्यारा लगता है,” मैंने कहा।

क्या आपको चाची-भतीजे की ये नाजायज चुदाई की कहानी पसंद आई? अपनी राय कमेंट में बताएं।

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