बारिश की रात में 2 जवान जिस्म करीब आ गए

ये उस समय की बात है जब मैं भुवनेश्वर शहर में रहने वाली 19 वर्षीय आकर्षक युवती थी। मेरे पिताजी का काफी बड़ा कारोबार है और मैं बचपन से ही अमीर परिवार में हूँ। मैं सांवले रंग की पांच फीट दस इंच लंबी और मादक शरीर की मालकिन हूँ। मेरे सौंदर्य की विशेषता हैं मेरी भावविभोर आँखें।

मेरे कई लड़के दोस्त हैं मगर किसी को भी मैंने ज्यादा भाव नहीं दिया था। मैं पढ़ाई से ज्यादा फिल्में देखना, मौज मस्ती करना और श्रृंगार प्रसाधन (मेकअप) में ज्यादा रुचि रखती थी। मेरे विद्यालय में कई शर्मीले लड़के मुझ पर मरते रहते थे मगर मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

मैंने बड़ी मुश्किल से बारहवीं की परीक्षा पास की, मगर मुझे मुंबई शहर के सबसे बड़े कॉलेज में संगणक विज्ञान (कंप्यूटर साइंस) पढ़ने की इच्छा थी। पिताजी ने उस कॉलेज को बड़ी राशि चंदे के रूप में दी और फिर मैंने उसी कॉलेज में दाखिला ले लिया।

मुझे कंप्यूटर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, बस गर्मी की छुट्टियों में एक कोर्स किया हुआ था। पहले दिन की पहली क्लास होते ही मैं समझ गई कि ये कोर्स मेरे बस की बात नहीं है। तभी मेरी नजर थोड़ी दूरी पर खड़े एक हसीन युवक पर गई।

उसका चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। शायद वो मेरे साथ भुवनेश्वर के विद्यालय में पढ़ता था। मैंने उसकी ओर हाथ हिलाकर हाय कहा। उसकी तो जैसे सांस रुक गई हो। मेरी जैसी सुंदर और हॉट लड़की पहचान दिखाते ही वो तो जैसे बावला हो गया।

मैंने आगे बढ़कर उससे कहा, “हेलो, लगता है तुम भी मेरे स्कूल से ही हो।”

“हाँ, रागिनी, मेरा नाम ऋषभ है,” उसने कहा।

“ओह, तुम तो मेरा नाम भी जानते हो!”

“तुम पूरे स्कूल में सबसे लोकप्रिय लड़की थी, फिर मैं तुम्हारा नाम कैसे नहीं जानता।”

मैंने कहा, “चलो मुझे अच्छा लगा कि कोई तो मेरी पहचान का है यहाँ पर। क्या तुमने भी डोनेशन देकर दाखिला लिया है?”

“अरे नहीं, मैं तो मेरिट में आया हूँ इसलिए इतने बड़े कॉलेज में मुझे एडमिशन मिला है,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

उसी समय मुझे यह चार साल का कोर्स पास करने का रास्ता मिल गया। अब बस अपनी सुंदरता से इस होशियार लड़के को अपने जाल में फंसाना था।

“ओह ऋषभ, चलो आज से हम एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड्स (सबसे अच्छे दोस्त) बनके रहेंगे। मैं भी किसी और को यहाँ जानती नहीं हूँ।”

फिर मैंने यहाँ-वहाँ की बातें करते हुए पता लगाया कि वो कॉलेज के छात्रावास (हॉस्टल) में ही रहता है। उसके पास कोई कंप्यूटर नहीं था, इसलिए उसे कॉलेज की सुविधा पर ही निर्भर रहना था और कई बार कॉलेज के लैब में घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी।

मुझे तो मेरे पिताजी ने कॉलेज के नजदीक ही एक आलीशान फ्लैट भाड़े पर लेकर दिया था। उसमें एक नया कंप्यूटर भी था। भोजन बनाने के लिए और घर का काम करने के लिए एक कामवाली भी थी। कमी थी बस पढ़ाई करने की। अब इस स्मार्ट और स्कॉलर लड़के को लुभाकर वो कमी भी पूरी करनी थी।

कुछ ही दिनों में ऋषभ नियमित रूप से मेरे किराए के घर पर आने लगा। मैं भी उससे मीठी-मीठी बातें करती थी और वो मुझे पढ़ा दिया करता था। उसे भी कंप्यूटर के लिए कॉलेज के लैब में घंटों प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती थी। मेरे जैसी सुंदर लड़की का साथ जैसे मानो बोनस था।

मुझे पढ़ाते-पढ़ाते उसकी भी फिर से पढ़ाई (रिवीजन) हो जाती थी। वो जितना दिखने में अच्छा था, उससे भी ज्यादा दिमाग से तेज था। उसका स्वभाव बहुत सीधा और हंसमुख था। मुझे भी ऋषभ अच्छा लगने लग गया था। अब वो शाम का खाना भी मेरे साथ ही खाया करता था, सिर्फ सोने के लिए हॉस्टल चला जाता था।

ऋषभ अक्सर छुप-छुपकर मेरी सुंदरता को निहारता रहता था। अमीर घर से होने के कारण मैं मिनी स्कर्ट, खुले गले के टॉप्स और छोटे-छोटे फ्रॉक्स आम तौर पर पहनती थी। कभी-कभी तो ऋषभ मेरे सुडौल स्तनों के बीच की दरार, मदमस्त गांड और अधनंगी मांसल टांगों को देखकर उत्तेजित भी हो जाता था।

अपने पैंट में तने हुए लौड़े को छुपाने की चेष्टा करता रहता। मुझे भी अपनी जवानी के जलवे बिखेरकर उसे तड़पाने में बड़ा आनंद मिलता था। थोड़ा दिखाना और थोड़ा छुपाना, यही तो लड़कियों का सबसे बड़ा अस्त्र होता है!

दो-तीन महीनों के बाद एक दिन मैंने देखा कि ऋषभ का चेहरा किसी समस्या में उलझा हुआ है। बार-बार पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। फिर मैंने उसके करीबी दोस्त अमित से पूछा, तब पता चला कि उसे आर्थिक समस्या हो गई थी। हॉस्टल में रहना और सुबह का नाश्ता तथा भोजन के खर्चे के लिए दिक्कत हो रही थी। मैंने तुरंत अपने डैड को फोन किया।

“डैड, मैंने आपको ऋषभ के बारे में बताया था ना। वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त और मेरा प्राइवेट शिक्षक भी है।”

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“हाँ-हाँ बेटी, मुझे याद है। क्या बात है, उसने कुछ…”

“नहीं डैड, वो तो बहुत ही अच्छा लड़का है मगर अभी मुसीबत में है और मैं उसकी मदद करना चाहती हूँ।”

सारा मामला मैंने डैड को फोन पर बता दिया। दो दिन में ही उन्होंने मेरी ही बिल्डिंग में एक छोटा सा कमरा ऋषभ के लिए ले लिया। अब उसे हॉस्टल और खाने-पीने का कोई भी खर्चा नहीं उठाना पड़ेगा। होशियार के साथ बहुत स्वाभिमानी भी होने के कारण ऋषभ इस बात के लिए मान नहीं रहा था।

फिर मैंने उससे कहा, “देखो, तुम्हें मेरी सौगंध, चलो इसे कर्जा समझ कर ले लो। जब तुम्हारी बढ़िया सी नौकरी लग जाए, तब सूद समेत सारा वापस कर देना।” आखिरकार मैंने उसे मना ही लिया। अब तो सुबह अपने फ्लैट में नहाकर वो सीधा मेरे कमरे पर ही आ जाता।

हम दोनों मिलके नाश्ता बना लेते थे। दोपहर के खाने के लिए कामवाली एक दिन पहले ही बना के जाती थी। फिर शाम को घर लौटकर पढ़ाई और रात का खाना भी साथ में ही खाते थे। ऐसे लगता था कि पति-पत्नी हैं, सिर्फ रात को साथ में सोते नहीं हैं, बस! रविवार के दिन हम घूमने या फिल्म देखने चले जाते थे। ऋषभ अब मेरे लिए बहुत प्रोटेक्टिव हो गया था।

मेरी छोटी से छोटी चीज का ख्याल रखता और मुझे भीड़ के धक्कों से भी बचा लेता था। मैं भी उसके साथ अपने आप को सुरक्षित पाती थी। एक दिन हम फिल्म देखने थोड़ी देरी से पहुँच गए। पूरा थिएटर घना अंधेरा था। उसने मुझसे बिना पूछे मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे धीरे-धीरे सही जगह पर ले गया और सीट पर बिठा दिया।

मैंने उसका हाथ पकड़कर धीरे से कहा, “थैंक यू ऋषभ।”

उसने मेरे हाथ को हल्के से दबाया और मेरी तरफ मुस्कुराया।

कुछ देर तक हम दोनों के हाथ मिले हुए थे। कुछ समय बाद उसने मेरे हाथ को बड़े प्यार से सहलाया और फिर अपना हाथ हटाना चाहा। तब मैंने उसके हाथ को रोका और फिर अगले ढाई घंटे वो मेरे हाथों को सहलाता रहा। मैंने स्लीवलेस ड्रेस पहनी थी, इसलिए उसके हाथों की उंगलियाँ मेरी भुजाओं पर भी बीच-बीच में थिरकती थी।

अब जब भी हम दोनों फिल्म देखने जाते थे, ऋषभ मेरी मुलायम बाहों को और कंधों को सहलाता। बगीचे में हम एक दूसरे की कमर में हाथ डालकर चलते। शनिवार और रविवार की सुबह हम दोनों नजदीक के पार्क में सुबह पांच बजे दौड़ने जाते थे।

मेरे तंग चोली नुमा टॉप और शॉर्ट्स में मचलते हुए भरपूर वक्ष, गदराई हुई मांसल जाँघें और गोलाकार नितंब उसे दीवाना कर देते थे। ऋषभ नहीं चाहता था कि मेरी यह भड़कती जवानी कोई और आदमी देखे और मुझे छेड़े, इसलिए हम इतनी सुबह जाते थे और छह बजे से पहले वापस आ जाते थे। गर्मी के दिनों में ऋषभ टी-शर्ट नहीं पहनता था, सिर्फ शॉर्ट्स पर ही दौड़ता था।

उसकी कसी हुई बालों से भरी छाती पर छलकता पसीना देखना मुझे भी अच्छा लगता था। कुछ और समय के बाद परीक्षा समाप्त कर हम दोनों छुट्टियाँ मनाने के लिए भुवनेश्वर आ गए। मेरे डैड मेरे लिए हवाई जहाज की टिकट कराना चाहते थे, मगर मैं और ऋषभ दोनों एक साथ रेलवे से आए। पहले दो-तीन दिन तो अपनी सहेलियों से और रिश्तेदारों से मिलने में चले गए। फिर मैंने ऋषभ से फोन पर बात की।

“हाय रागिनी, कैसी हो तुम?”

“मैं तो एकदम मजे में हूँ, और तुम?”

“मैं भी ठीक हूँ मगर तुम्हारे साथ की इतनी आदत हो गई है, कि यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा।”

मैं समझ गई कि ये लड़का मेरे प्यार में पागल हुए जा रहा था। उसी शाम को हम दोनों मिले। वो अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर आया था। साथ में घूमे, बहुत सारी बातें की, डिनर और आइसक्रीम साथ में खाया। अब ऋषभ बड़ा प्रसन्न लग रहा था। रात के करीब साढ़े नौ बजे उसने मुझे मेरे घर के करीब मोटरसाइकिल से उतार दिया।

“मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी रागिनी,” ऋषभ ने कहा।

“जब भी याद आए, फोन कर दो,” कहते हुए मैंने उसके हाथ को चूमा।

छुट्टियों के दौरान हम बीच-बीच में मिलते रहे। जब वापस जाने का दिन आया, तब वो प्लेटफॉर्म पर मेरा इंतजार कर रहा था। ट्रेन के चलते ही मैं नाइट सूट पहनकर आई। बाजू की बर्थ पर लेटे-लेटे हम धीरे-धीरे बातें करते रहे। मुंबई सेंट्रल कब आया पता ही नहीं चला।

फिर से कॉलेज, पढ़ाई और प्रोजेक्ट का काम चलने लगा। एक दिन रात के ग्यारह बजे तक हम पढ़ रहे थे। ऋषभ निकलने के लिए उठ रहा था तभी अचानक बिजली चली गई। कड़कती बिजली और गरजते बादलों की आवाज से मुझे बड़ा डर लगता है, इसलिए मैंने उसे रोक लिया।

टॉर्च और मोमबत्ती के सहारे थोड़ा उजाला कर दिया। उसके सोने के लिए हॉल में बिस्तर बिछाया और मैं अंदर बेडरूम में चली गई। जाते-जाते मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “ऋषभ, क्योंकि बाथरूम बेडरूम के अंदर है इसलिए मैं दरवाजा खुला ही छोड़ देती हूँ।” थोड़ी ही देर में फिर से बादलों का गरजना शुरू हुआ, मैं तुरंत बाहर आई और ऋषभ को नींद से जगाया।

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“तुम अंदर आ जाओ मुझे बहुत डर लग रहा है।”

तभी फिर से बिजली कड़की, और मैं ऋषभ से लिपट गई। पहली बार वो मेरे शरीर को इतने करीब से अनुभव कर रहा था। उसने मुझे बाहों में लेकर मेरे सिर को प्यार से सहलाया। हम दोनों बेडरूम के अंदर तो आ गए, मगर अब साथ में सोते कैसे? फिर ऋषभ ने मुझे बेड पर लिटाया और थोड़ी सी दूरी पर खुद लेट गया।

बस मेरा हाथ उसके मजबूत हाथ में था, ताकि मुझे डर न लगे। थोड़ी सी आँख लगी थी कि पांच-दस मिनट के बाद बिजली, बादल और तेज बारिश फिर से शुरू हो गई। मैं डर के मारे करवट बदलकर उसके एकदम पास चली गई और एक मोटे कम्बल के अंदर हम दोनों एक दूसरे से लिपट गए।

हम दोनों एक दूसरे के नाम लेते हुए और भी करीब आ गए। अब मेरे कठोर स्तन उसकी छाती पर दब रहे थे और मेरी जाँघें उसकी हेयरी जाँघों से सटी हुई थी। उसका कड़क लौड़ा मेरी मुनिया पर अपना फन मार रहा था।

“सॉरी रागिनी, मैंने कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की मगर…”

“ऋषभ, ये तो स्वाभाविक है, और मुझे खुशी हुई कि मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ,” यह कहकर मैंने उसके गालों पर एक हल्का सा चुम्बन जड़ दिया।

“ओह रागिनी, तुम कितनी स्वीट हो,” ऋषभ ने मेरे गालों को चूमते हुए मुझे और करीब खींचा।

मेरे बालों को हटाकर मेरी गर्दन पर जैसे ही उसने किस किया, मैं तो पूरी उत्तेजित हो गई। समय न गंवाते हुए, ऋषभ ने अपने होठ मेरे रसीले होठों पर रख दिए। यह हमारा पहला चुम्बन था, मेरे लिए भी और शायद ऋषभ के लिए भी। उसके टी-शर्ट के अंदर हाथ डालकर मैं उसकी पीठ सहलाने लगी।

ऋषभ अब मेरे होठों को चूस रहा था। उसकी जीभ मेरी जीभ से खेलते हुए मेरे मुँह के अंदर चली गई। अब उसका एक हाथ मेरी नाइट गाउन को ऊपर की तरफ सरकाने लगा। मैंने उसे रोकने की विफल कोशिश की मगर उसके बलिष्ठ हाथों ने नाइट गाउन को घुटने के ऊपर तक सरका दिया।

अब मेरी गर्दन, गला, कान और क्लीवेज को चूमते हुए उसने मुझे पूरी तरह बेबस कर दिया। जैसे ही ऋषभ का हाथ मेरी मांसल, पुष्ट और मुलायम जांघों को सहलाने लगा, मेरी भी चूत गीली होने लग गई। अब ऋषभ ने अपना चेहरा मेरे वक्षों के बीच कर दिया और मेरे उन्नत स्तनों को चूमने लगा।

इतने दिनों से हम दोनों भी खुद को रोक रहे थे, मगर आज सब्र का बाँध टूट रहा था। मैंने दोनों हाथों से ऋषभ की टी-शर्ट ऊपर उठा दी। उसने भी एक झटके में अपनी टी-शर्ट खोलकर फेंक दी। उसी पल वो नीचे सरक गया और मेरी मुलायम जांघों को चूमने लगा। अब मेरी नाइट गाउन कमर तक आ गई थी और नंगी जाँघों पर चुम्बनों की बौछार हो रही थी।

“ओह, ऋषभ डार्लिंग, अब और मत तड़पाओ,” आज पहली बार मैंने उसे डार्लिंग कहा था।

“रागिनी, मेरी जान, तुम कितनी सुंदर, हॉट और सेक्सी हो,” जांघों को चूमते हुए उसने अब मेरी पैंटी को चूमना शुरू कर दिया।

अब मुझसे भी रहा नहीं गया, और मैंने अपनी नाइट गाउन सिर के ऊपर से निकाल दी। मैंने ऋषभ को ऊपर खींचकर बाहों में ले लिया। ब्रा में कसे मेरे स्तनों को वो फिर से चूमने और चाटने लगा।

“तुम्हारी शॉर्ट्स निकाल दो ना डार्लिंग,” मैंने चुपके से कहा।

अगले ही क्षण उसकी शॉर्ट्स और फ्रेंची अंडरवियर शरीर से अलग हो गई। अब वो पूरा नंगा था और उसका लंबा चौड़ा कड़क लंड मेरी चूत की गुफा में सवार होने के लिए मचल रहा था। अब ऋषभ ने आव देखा न ताव, और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया।

कंधों पर से ब्रा के पट्टे हट गए और मेरे दोनों उन्नत कठोर वक्ष अपने बंधनों से मुक्त हो गए। बेताब होकर ऋषभ बारी-बारी दोनों वक्षों को मुँह में लेकर चूसने लगा। एक वक्ष को चूसकर दूसरे को मुँह में लेने से पहले वो मेरी आँखों में देखता और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलतीं, “आह… ओह…”

जोश में आकर मैं भी अब अपना आपा खो चुकी थी। अब ऋषभ ने अपनी दोनों हाथों की उंगलियाँ मेरी पैंटी में डाल दी और उसे नीचे की तरफ खिसकाने लगा। मैंने भी अपने नितंबों को धीरे से उठाकर उसकी सहायता की। अब हम दोनों पूर्ण रूप से नग्नावस्था में थे। मेरी गीली योनि से चिकनाहट का रिसाव हो रहा था।

“ऋषभ, मेरी योनि को चूमो और चाटो न,” मैंने अपनी आँखें मूंदते हुए कहा।

भुवनेश्वर में देखी हुई हर ब्लू फिल्म में ओरल सेक्स शुरू में हमेशा रहता था। इसलिए, मैंने उसे फरमाइश की। तुरंत नीचे जाकर उसने मेरी टांगों को खोल दिया और अपना मुँह घुसेड़ दिया। जैसे ही उसके होंठ और जीभ मेरी योनि को प्यार करने लगे, मैं पूर्ण रूप से कामोत्तेजित हो गई। लगातार बीस मिनट तक वो मुझे चाटता और चूमता रहा।

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“आह… ओह… यस्स… फक… चाटो मुझे… हाँ… वहीँ पर… आह… ओह ऋषभ… यस्स हाँ…”

“आह… ओह… ऋषभ, तुम उल्टा होकर सिक्सटी नाइन में आ जाओ,” अब मैं अपने जीवन के पहले संभोग के लिए पूरी तरह से तैयार हो रही थी।

जैसे ही पलटकर ऋषभ का कड़क लौड़ा मेरे मुँह के पास आया, मैंने उसे निगल लिया। उसके लौड़े पर वीर्य की दो-चार बूँदें थीं जिन्हें मैंने अपनी जीभ से चाट लिया। अब ऋषभ के मुँह से सेक्सी आवाजें निकलने लगीं, “आह… रागिनी…” और उसने मेरी चूत के होंठों को हटाकर जोर-जोर से दाना चाटने लगा।

थोड़े ही समय में मुझे एक और जबरदस्त ऑर्गैज़म आया और दो मिनट के बाद ऋषभ का सख्त लौड़ा मेरे मुँह में झड़ गया। ये मेरा लंड चूसने का पहला अनुभव था फिर भी मैं बिना संकोच उसका सारा वीर्य पी गई।

अब हम दोनों फिर से एक दूसरे की बाहों में आ गए और ऋषभ मेरे वक्षों को चूमते हुए बोला, “रागिनी डार्लिंग, तुम कितनी प्यारी हो। आय लव यू जान।”

“हाँ डार्लिंग, आय टू लव यू हनी,” मैंने अपनी मीठी आवाज में उसके कानों में कहा।

“आज अपने पास कंडोम नहीं है और तुम पिल्स भी नहीं ले रही हो, इसलिए आज चुदाई नहीं कर सकते रागिनी डार्लिंग,” ऋषभ के मुँह से चुदाई जैसा शब्द नया और एकदम सेक्सी लग रहा था। हम दोनों ने तय किया कि कंडोम पहनने के बाद संभोग का असली मजा नहीं आएगा।

इसलिए अगले ही दिन से मैंने गर्भनिरोधक गोलियाँ लेना शुरू किया और हमारा संभोग सुख का आदान-प्रदान शुरू हो गया। मेरी योनि का सील दो साल पहले ही साइकिल चलाते समय फट गया था। शावर के नीचे नहाते हुए कई बार मैं अपनी दो-तीन उंगलियों से हस्तमैथुन भी करती थी।

भुवनेश्वर में पोर्न फिल्म देखने के बाद खीरा, गाजर और मूली भी घुसेड़ चुकी थी। इसलिए मुझे चुदाई से कोई डर नहीं था। बस मनपसंद लड़का मिलना था, जो अब पूरा हो गया था। अगली रात में पहली बार जब उसने मेरी चूत में अपना कड़क लंड पेल दिया, तब थोड़ा दर्द हुआ मगर जल्द ही दर्द घट गया और मजा आने लगा।

मेरी टाँगें फैलाकर मिशनरी पोज में ऋषभ मुझे चोद रहा था। दोनों हाथों से मेरे स्तन मसलकर मुझे चोदे जा रहा था। “रागिनी डार्लिंग, कितने सालों से तुझे चोदने के लिए तरस रहा था मैं, अब तू मेरी रानी और मैं तेरा राजा। रोज रात में कम से कम तीन-चार बार चोद-चोद कर तुझे पूरा खुश कर दूँगा मेरी रानी। फक, तेरी चूत कितनी मस्त है, और कितनी टाइट है।”

“आह मेरे राजा, चोद मुझे, फक मी हार्डर, आह… आह… चोद मुझे,” मैं जोर-जोर से चिल्लाती रही।

पंद्रह मिनट तक लगातार चुदाई का दौर चला। हम दोनों पसीने से तर-तर हो गए थे। पोर्न फिल्म तो ऋषभ ने भी देखी थी, इसलिए उसे भी डॉगी पोज के बारे में पता था। “चल मेरी जान, अब तुझे पीछे से लेता हूँ, आजा।” “क्या मस्त गांड है तेरी रागिनी डार्लिंग,” कहते हुए उसने पीछे से अपना लंड पेल दिया। मुझ पर झुककर मेरे स्तनों को निचोड़ता रहा और डॉगी पोज में चोदता गया। करीब पंद्रह मिनट के बाद जब उसका पानी छूटने वाला था तब उसने पूछा, “कहाँ निकालूँ मेरा पानी?”

मैंने कहा, “अंदर ही छोड़ दे गर्मागर्म पानी। मेरी प्यास बुझा दे जानू।”

अगले ही पल मुझे गरम वीर्य का मेरी चूत के अंदर विस्फोट होता महसूस हुआ। दोनों ही बिल्कुल निढाल होकर काफी देर तक लेटे रहे। फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भरके प्यार से चूम लिया। फिर हम दोनों सपनों की दुनिया में खो गए। सुबह के चार बजे के करीब फिर से चूत और लौड़े का घमासान युद्ध हुआ और अब की बार सिक्सटी नाइन की पोज में उसका पानी मेरे मुँह में झड़ गया।

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