बहन की असली चुदाई भैया ही कर पाए

मेरा नाम स्मिता है, मेरी उम्र 28 साल की है, मेरे घर में मेरे मम्मी पापा और मेरा एक भाई जिसकी उम्र 31 साल की है। उनकी शादी हो चुकी है, उनकी बीवी दिखने में कुछ खास नहीं है और थोड़ी मोटी भी हैं। पर मेरे भैया ने उनसे इसलिए शादी की है, क्योंकि वो अपने घर में इकलौती लड़की है और उनकी बहुत प्रॉपर्टी भी है।

भैया के ससुराल वालों ने भैया के लिए अलग से बिज़नेस के लिए पैसे दिए थे। इसलिए भैया हमारे साथ घर में नहीं रहते हैं और ना ही अपने ससुराल में रहते हैं, बल्कि वो हमारे ही शहर में अलग घर में भाभी के साथ रहते हैं। अब मैं आपको अपने बारे में बताती हूँ।

दोस्तों मैं देखने में बहुत सुंदर पतले बदन की मालकिन हूँ, मेरे चेहरे पर होंठों के नीचे एक मस्सा है, मैं हमेशा साड़ी ही पहनती हूँ। क्योंकि मेरी सहेली कहती है कि मैं साड़ी पहनकर बहुत सुंदर दिखती हूँ और मुझे भी साड़ी पहनना पसंद है।

मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके एक मोबाइल कंपनी में एक कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करती हूँ। मेरे साथ काम करने वाले सारे लड़के और मेरा बॉस भी मुझसे बात करने का बहाना ढूँढते हैं। सभी मुझे मज़ाक-मज़ाक में छेड़ते रहते हैं और हमेशा मेरी तारीफ करते हैं।

ये सभी बातें मुझे भी अच्छी लगती हैं क्योंकि कौन लड़की अपनी तारीफ नहीं सुनना चाहती है। मेरे पापा पोस्ट ऑफिस में बाबू हैं और मेरी माँ हाउसवाइफ। मैं अपने घर में शुरू से ही बहुत प्यार से पली बढ़ी हूँ। मेरे भैया और भाभी भी मुझे बहुत चाहते हैं और भैया खर्चे के लिए आए दिन पैसे देते रहते हैं।

भाभी भी अक्सर घर आती है और मेरे लिए कुछ ना कुछ लाती ही हैं। मेरी भाभी से खूब बनती है, मेरी भाभी काफी मज़ाकिया है। मैं उनके साथ घंटों बैठ के बातें किया करती हूँ। खाली समय पर मैं भैया-भाभी के घर जाकर भाभी से गप्पे लड़ाती हूँ। मैं घर पर खुले माहौल में रही हूँ।

घर पर मेरी सारी जायज़ या नाजायज़ माँगों को माना जाता है। मेरी जिंदगी में मुझे सब कुछ मिला, मोबाइल कंपनी में जॉब करने का आइडिया भी मेरा था। शुरू में जब मैंने ये बात बताई तो माँ ने कहा, “बेटी, तेरी शादी की उम्र निकलती जा रही है, तेरे लिए कई रिश्ते आ रहे हैं, एक तो तू शादी नहीं करना चाहती और अब तू जॉब करना चाहती है। तुझे किसी चीज़ की कमी तो है नहीं, फिर तू जॉब क्यों करना चाहती है?” तो मैंने उनकी बात पर ज़्यादा ध्यान ना देते हुए अपनी मर्ज़ी से जॉब कर लिया। फिर माँ भी चुप हो गयी। पर सच्चाई तो यही थी कि मेरे साथ की लगभग सभी लड़कियों की शादी हो चुकी थी और जो भी लड़कियाँ बची थीं उनकी शादी की बात चल रही थी। ये बात कहीं ना कहीं मेरे मन में भी थी।

पर ये बात भी सच थी कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती थी। मैं तो जिंदगी को और बहुत अच्छे से जीना चाहती थी। लेकिन मेरे जज़्बात अंदर से अंगड़ाई लेने लगे थे और मैं मन ही मन में वो सब करके देखना चाहती थी, जो एक औरत और एक मर्द आपस में करते हैं।

मेरे ऑफिस में हम तीन लड़कियाँ थीं और बाकी सभी लड़के। मेरे साथ की एक लड़की प्रिया का अफेयर हमारे बॉस से था। वैसे तो हमारे बॉस की नज़र मुझ पर थी, पर वो मुझे कभी भी ऐसे नहीं लगे, जिस पर मैं अपना दिल हार जाऊँ। इसलिए मैं उन्हें हमेशा अनदेखा करती थी।

मेरे साथ काम करने वाली लड़की प्रिया ने भी मुझे बॉस के मेरे बारे में उनकी गंदी सोच को बताया, पर मैंने कभी भी ध्यान नहीं दिया। पर प्रिया ने मुझे अपने और बॉस के बीच में हुए सेक्स के बारे में कई बार बताया था। जिसे सुनकर मेरे अंदर भी एक हलचल सी मच गयी और मेरे मन में भी सेक्स करने की बहुत इच्छा हुई।

हमारे ऑफिस में मेरे साथ एक लड़का और काम करता था, उसका नाम था मनीष। वो कम बोलता था और देखने में भी सीधा-साधा था। ऑफिस के लड़कों में वो ही एक ऐसा था जो मुझसे कम बात करता था। हाँ, लेकिन एक बार उसने मुझे चाय के लिए बाहर होटल में जाने को ज़रूर बोला था।

लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि उस वक्त भी उसके पसीने छूट गये थे। मुझे उसकी मासूमियत भा गयी थी और मैं उसे मन ही मन चाहने लगी थी। और अब जबकि प्रिया की बातों से मेरा मन मचल गया था।

उस समय मेरे मन में सिर्फ मनीष ही घूम रहा था। मेरा मन मनीष के साथ में सेक्स करने को उतावला हो गया और मैं मनीष को पाटने के तरीके सोचने लगी। और शाम को जब ऑफिस की छुट्टी हुई तो मैं मनीष के पास गयी और उससे बात करने लगी।

मैं: “हाय मनीष, क्या काम खत्म कर लिया तुमने?”

मनीष: “हाँ, काम पूरा हो गया, अब मैं घर पर ही निकल रहा था।”

मैं: “तो तुम घर जाकर टाइम पास के लिए क्या करते हो?” (यहाँ मैं आपको एक बात बता दूँ कि मनीष का परिवार दूसरे शहर का रहने वाला है और मनीष यहाँ पर एक किराए के कमरे में अकेला रहता है।)

मनीष: “कुछ नहीं, घूम-फिर के या किताबें पढ़कर जैसे-तैसे टाइम कट जाता है।”

मैं: “क्या कभी तुम्हें घरवालों की याद तो आती होगी?”

मनीष: “हाँ, आती तो है, पर क्या करूँ, काम के कारण साल में दो या तीन बार ही जा पाता हूँ।”

मैं: “अरे, लगता है मैंने तुम्हें घरवालों की याद दिलाकर तुम्हें दुखी कर दिया है, मुझे माफ़ कर दो प्लीज़।”

मनीष: “ठीक है, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है।”

मैं: “अच्छा, चलो आज हम कहीं चाय पीने चलते हैं।”

मेरी ये बात सुनकर मनीष मेरी ओर एकटक देखने लगा, जैसे कि मेरा चेहरा पढ़ रहा हो। उसका मेरी ओर इस तरह देखना अजीब सा लगा और मैंने उसे टोकते हुए कहा, “क्या हुआ?” मेरी बात सुनकर वो हड़बड़ाते हुए बोला, “हाँ, कुछ नहीं।”

फिर मैंने कहा, “तो चाय पर चलें?” उसने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला दिया और बोला, “कहाँ चलें?” उसकी बात सुनकर मैं सोच में पड़ गयी। फिर कुछ देर सोचने के बाद कहा, “क्यों ना तुम्हारे घर पर चलें?” एक बार फिर हैरत से मुझे देखने लगा। मैं आज तक उसके घर नहीं गयी थी।

कुछ देर तक मुझे देखने के बाद उसने बिना कुछ बोले अपना बैग उठाया और हम ऑफिस से बाहर आ गये। मेरे इस तरह से खुलने के कारण ही शायद अब वो पूरे रास्ते मुझसे खुल के बातें करने लगा और हम इधर-उधर की बातें करते हुए उसके रूम पहुँचे। उसका कमरा शहर के बीच में दूसरी मंजिल पर था।

शहर के बीच में होने के बावजूद भी मुझे उसके कमरे में सन्नाटा सा लगा। रूम में बैठकर हम बातें करते रहे, फिर मैंने कहा, “चाय पीने तो आ गये, पर क्या तुम्हें चाय बनानी आती है?” तो जवाब में उसने मुस्कुराकर कहा, “तुम पीकर बताना,” और उठकर चाय बनाने चला गया। और इस बीच मैं सोचने लगी कि अब आगे क्या करूँ।

मनीष चाय बनाकर ले आया और उसने एक कप मेरे हाथ में थमा दिया और हम चाय पीने लगे। फिर मैंने कुछ सोचकर कहा, “तुम बहुत प्यारे हो मनीष, वरना आजकल के लड़के तो बस लड़कियों के पीछे ही लगे रहते हैं। तुम्हारी ये मासूमियत मुझे भा गयी है।” ये सुनकर मनीष खुश होता हुआ बोला, “अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं भी एक बात कहूँ, तुम बुरा तो नहीं मानोगी।”

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मैंने कहा, “अरे, तुम तो बोलो ना, मैं कभी बुरा नहीं मानूँगी।”

मनीष: “बात ये है कि तुम हो ही इतनी सुंदर कि कोई भी तुम्हारे पीछे पड़ जाए। मन तो मेरा भी करता है कि तुम्हारे जैसी मेरी भी गर्लफ्रेंड हो, पर डरता हूँ कि तुम बुरा ना मान जाओ।” आज मनीष के मुँह से ये बातें सुनकर मैं थोड़ी हैरान हो गयी कि क्या ये वही मनीष है, जो मुझसे बात करने में हमेशा कतराता था और आज इतना कुछ बिना किसी झिझक के बोल रहा है।

खैर, मैं भी यही चाह रही थी। मुझे आज मेरी मंजिल दिखाई दे रही थी और मैंने कहा, “मनीष, सच तो यह है कि मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।” ये सुनकर मनीष ने कहा, “सच?” और मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगा। और मैंने जानबूझकर अपना सर रख के आँखें बंद करके खो गयी। जब मैं थोड़ा संभलकर सर को ऊपर किया तो मेरी नज़र घड़ी पर गयी।

अब आठ बज गये थे और मैंने घर पर फोन भी नहीं किया था। मैं हड़बड़ाकर उठी और मनीष से कहा, “मनीष, अब मैं चलती हूँ, आज मुझे बहुत देर हो रही है।” अभी मनीष भी गरम होने लगा था। उसने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, “प्लीज़ मत जाओ ना, तुम्हें घर ही तो जाना है। आज कोई बहाना कर दो।”

मैंने हाथ छुड़ाते हुए कहा, “मनीष, इतना उतावलापन भी ठीक नहीं है। मैं कहीं भागी थोड़ी ही जा रही हूँ, हम कल फिर मिलेंगे।” कहते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे आ गयी और मुड़कर देखा तो पाया मनीष मुझे ऊपर से देख रहा था और मैं घर पर आ गयी।

घर पर भी मैं ठीक से खाना नहीं खा पाई। मुझ पर एक खुमारी सी छा गयी थी। रात को 10 बजे मनीष का फोन आया और मैं बेडरूम में थी। इसलिए मम्मी-पापा को पता नहीं चला और हम बातें करते रहे और फोन पर ही प्लान बनाया कि कल हम ऑफिस ना जाकर मनीष के रूम में मिलेंगे।

फिर मैं सुबह का इंतज़ार करने लगी। मेरे मन में हज़ारों अरमान मचलने लगे और मुझे आने वाले कल के बारे में सोचकर नींद नहीं आ रही थी। खैर, मैंने जैसे-तैसे आँखों ही आँखों में रात काटी और सुबह नहाकर अपनी नयी साड़ी जो कि पिंक कलर की थी, मेंचिंग ब्लाउज़ के साथ पहनी।

अंदर ब्लैक कलर की पैंटी और ब्लैक कलर की ब्रा पहन रखी थी और साथ ही मेंचिंग पिंक कलर की लिपस्टिक लगाई और फिर मनीष के घर की ओर चल दी। जैसे-जैसे मैं मनीष के घर की ओर बढ़ रही थी, मेरी साँसें तेज़ी से चलने लगीं और मैं मनीष के घर पहुँची।

मनीष का घर खुला हुआ था। दरवाज़े को धकेलकर मैं अंदर गयी तो देखा कि मनीष घरेलू कपड़ों में पलंग पर लेटा हुआ था। मेरे अंदर आते ही उसने जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया और मुड़कर मेरी ओर देखने लगा। तो मैंने कहा, “क्या देख रहे हो?” उसने कहा, “आज तो तुम स्वर्ग की अप्सरा लग रही हो।”

उसकी बात सुनकर मेरी गर्दन शर्म से झुक गयी। उसने मुझे हाथों से पकड़कर पलंग पर बिठा दिया और खुद भी पलंग पर बैठ गया और मेरे चेहरे को अपने हाथों से थामकर अपनी ओर किया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैं जानबूझकर दिखावे के लिए नाटक करने लगी।

मनीष ने होंठों को किस करते हुए मुझे अपने से सटा लिया, जिससे मेरे बूब्स मनीष की छाती से दबने लगे और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। मैं “अह्ह्ह” की आवाज़ करने लगी, जिससे मनीष की और हिम्मत बढ़ी और उसने अपना एक हाथ मेरे बाईं तरफ के बूब्स पर रख दिया और मेरे बूब्स पर अपने हाथ फेरने लगा।

जिससे मेरी साँसें और तेज़ी से चलने लगीं और मनीष ने अपना हाथ मेरे बूब्स पर जमा दिये और ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा, जिससे मुझे दर्द होने लगा। लेकिन साथ ही साथ मैं परम सुख की अनुभूति कर रही थी और मेरे मुँह से ज़ोरों की सिसकारियाँ निकलने लगीं और मेरे मुँह से “अह्ह्ह्ह” की आवाज़ें निकलने लगीं। मनीष भी मेरी मादक आवाज़ सुनकर गरम हो गया था।

“स्मिता, तेरे बूब्स कितने मस्त हैं, इनको दबाने में मज़ा आ रहा है,” मनीष ने कहा और मेरी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिरा दिया और किस करना छोड़कर मेरी साड़ी को खींचने लगा। जल्दी ही उसे कामयाबी मिल गयी और मैं पेटीकोट और ब्लाउज़ में आ गयी। अब उसने बिना समय गँवाए मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।

और कुछ समय में मेरे ब्लाउज़ को मेरे शरीर से अलग कर दिया और मैं मनीष के सामने सिर्फ ब्लैक ब्रा में थी, जिसमें से मेरे बूब्स ब्रा को फाड़कर बाहर आने को तड़प रहे थे। “तेरी चूचियाँ तो ब्रा में भी कितनी सेक्सी लग रही हैं,” मनीष ने मेरी ओर देखते हुए कहा। उधर मनीष बिना रुके मेरे पेटीकोट की ओर बढ़ा और देखते ही देखते मैं ब्लैक पैंटी और ब्रा में थी।

अब मनीष ने ब्रा के ऊपर से ही मेरे बूब्स को दबाने लगा और मैं मस्त होकर “अह्ह्हन्ह्ह्ह” करने लगी। “स्मिता, तेरी चूचियाँ दबाने में कितना मज़ा आ रहा है, तू तो पूरी माल है,” उसने कहा और अपने हाथ मेरी पीठ के पीछे लाकर ब्रा का हुक भी खोल दिया और ब्रा को मेरे शरीर से निकालकर मेरी गुलाबी निप्पल को देखने लगा।

“तेरे निप्पल तो एकदम रसीले हैं,” कहते हुए उसने मेरे दोनों बूब्स को अपने दोनों हाथों से दबाने लगा और अपने मुँह से एक बूब्स को चूसने लगा। मुझे गुदगुदी और उत्तेजना से अब मेरे रोंगटे खड़े हो गये और मैं आँखें बंद करके अपने दाँतों से अपने होंठों को चबाने लगी थी। “अह्ह्ह, मनीष, और ज़ोर से चूस, कितना मज़ा आ रहा है,” मैंने सिसकारी भरी।

मैं अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। फिर मनीष ने अपना एक हाथ मेरी पैंटी में डालकर मेरी चूत में अपनी उंगली डालने लगा। जैसे ही मनीष ने अपनी उंगली मेरी चूत में डाली, मैं चीख उठी, “उईई, मनीष, धीरे!” और कुछ ही देर बाद मैं भी अपना चूतड़ उठाकर उसका जवाब देने लगी। “तेरी चूत तो पूरी गीली हो गयी है, स्मिता, कितनी गरम है तू,” मनीष ने मेरी चूत को सहलाते हुए कहा।

अब मेरा सब्र का बाँध टूटने लगा था और इसी बेसब्री में मेरा हाथ मनीष के लोअर के ऊपर उसके लंड पर चला गया। मनीष भी शायद मेरी बेताबी को समझ गया और मुझे छोड़कर वो अपने कपड़े उतारने लगा। मैंने पहली बार किसी मर्द को पूरा नंगा देखा था।

मुझे मनीष का लंड उस समय बहुत प्यारा लग रहा था और मैं एकटक उसके लंड को देख रही थी। “क्या देख रही है, स्मिता? मेरा लंड पसंद आया?” मनीष ने मुस्कुराते हुए कहा। इसी बीच मनीष ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। मैं भी उसके लंड को पकड़कर उसकी टोपी को आगे-पीछे करने लगी और मनीष ने मुझे किस करना शुरू किया। वो इस बार मेरे सारे चेहरे पर किस करने लगा।

और अचानक ही उसने मुझे किस करना छोड़कर मुझसे बोला, “यार स्मिता, तुम इतनी सुंदर हो लेकिन तुम्हारे होंठों के नीचे ये मस्सा चाँद पर ग्रहण जैसा लग रहा है, प्लीज़ इसे हटा देना।” इस पर मैंने कहा, “अगर तुम्हें पसंद नहीं तो मैं इसे कल ही काट दूँगी।”

मेरी इस बात को सुनकर मनीष ने मुझे जोश में आकर गले से लगा लिया और मुझे उठाकर पलंग पर लिटा दिया और मेरी चूचियों को मसलने लगा। मैं अपने जोश के चरम पर थी, मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था। “अह्ह्ह, मनीष, और ज़ोर से दबा, कितना मज़ा आ रहा है,” मैंने सिसकारी भरी। इसी जोश में मैंने मनीष से कहा, “मनीष, प्लीज़, तुम्हें जो करना है बाद में कर लेना, अभी मुझसे सहा नहीं जा रहा है, प्लीज़ मेरी प्यास बुझाओ।”

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मेरी बात सुनकर मनीष ने मेरे पैरों को फैलाया और अपना लंड मेरी चूत में रगड़ने लगा। अब मेरी चूत में तेज़ खुजली होने लगी और मैं मनीष के लंड अंदर डालने का इंतज़ार करने लगी और मैंने आँखें बंद कर लीं। अचानक ही मुझे मेरी चूत के पास कुछ गरम-गरम सा लगने लगा।

मैंने आँखें खोलकर देखा तो मनीष मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ के ठंडा हो गया था, शायद वो झड़ चुका था और मेरी बगल में आँखें बंद करके लेटा हुआ था। तभी मैं गुस्से से तिलमिला उठी और बिना कुछ बोले बाथरूम में जाकर अपनी चूत के पास से मनीष के वीर्य को साफ किया।

वापस आकर जल्दी से मैंने कपड़े पहनने लगी। तब मनीष ने आँखें खोलकर बोला, “सॉरी, ज़्यादा जोश की वजह से मैं जल्दी ही झड़ गया था। लेकिन तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो। मुझे कुछ देर का समय दो, मैं तुम्हें दोबारा लंड दूँगा।” मैंने अपने कपड़े पहन लिए थे।

मैंने मनीष को गुस्से में कहा, “तुम क्या मेरी प्यास बुझाओगे? तुम तो दो मिनट में ही झड़ गये थे। लेकिन तुम आज के बाद मुझसे किसी भी प्रकार का संबंध रखने की कोशिश मत करना, वरना इसका अंजाम तुम सोच भी नहीं सकते।”

मनीष ने पलंग से उठते हुए कहा, “स्मिता, मेरी बात तो सुनो,” पर मैंने उसकी एक भी बात बिना सुने ही उसके घर से बाहर आ गयी। रोड पर चलते हुए अपने आप झल्लाई हुई सी जाने लगी। फिर मैंने सोचा अभी घर जाना ठीक नहीं होगा, वैसे भी मैं ऑफिस के नाम से घर से निकली थी, इससे अच्छा है कि मैं भाभी के पास जाती हूँ।

इसी बहाने मेरा मन भी बहल जाएगा, ये सोचकर मैं भैया के घर की ओर चल पड़ी। फिर मैं ऑटो से भैया के घर पहुँची। डोर बेल बजाई तो दरवाज़ा भैया ने खोला। भैया बनियान और लूँगी में थे। मुझे देखकर बोले, “अरे स्मिता, तुम अभी तो तुम्हारा ऑफिस टाइम है, यहाँ कैसे?”

तो मैंने कहा, “आज भाभी से मिलने की इच्छा हुई तो आ गयी और ऑफिस से छुट्टी ले ली, लेकिन आप आज घर पर कैसे?” जवाब में भैया ने बताया, “तुम्हारी भाभी कई दिनों से मायके जाने की ज़िद कर रही थी, तो मैं उसे अभी-अभी छोड़कर आ रहा हूँ। मैंने आज काम भी बंद कर दिया है। अरे, तुम बाहर क्यों खड़ी हो, अंदर आओ। भाभी नहीं है तो क्या हुआ, भैया से बातें करो।” और मैं उदास मन से अंदर आई और सोफे पर बैठ गयी और भैया भी सामने बैठ गये। फिर भैया ने कहा, “एक मिनट रुको, मुझे एक-दो फोन करने हैं, मैं अभी आता हूँ। फिर हम दोनों बैठकर ढेर सारी बातें करेंगे।” मैंने भैया से कहा, “भैया, तब तक मैं नहा लेती हूँ।” (क्योंकि अभी तक मेरे शरीर में वासना की आग जल रही थी) और मैं नहाने चली गयी और नहाकर फिर से सोफे पर आकर बैठ गयी।

जहाँ भैया बैठकर टीवी पर गाने देख रहे थे और मेरे आते ही उन्होंने मुझसे पूछा, “और बताओ, कैसा चल रहा है?” तो मैंने कहा, “कुछ खास नहीं भैया।”

भैया: “एक बात बताओ स्मिता, अब तुम्हारी शादी की उम्र निकली जा रही है, क्या तुम शादी नहीं करोगी?”

मैं: “नहीं भैया, मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हूँ।”

भैया: “सही समय में शादी हो ही जाना चाहिए, बाकी फिर तुम्हारी मर्ज़ी।”

मैं: “भैया, एक बात बताओ, क्या मेरे चेहरे पर ये मस्सा अच्छा नहीं लगता?”

भैया: “हट पगली, ये मस्सा तुम पर बहुत खिलता है, जैसे कि बच्चे के चेहरे पर काला टीका। पर आज तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?”

मैं: “मेरे दोस्त कहते हैं कि ये मुझ पर अच्छा नहीं लगता और इसे कटा लो।”

भैया: “अच्छा, तुम्हारा कोई भरोसा भी नहीं है, तुम इसे कटा भी सकती हो, वैसे भी तुम जो भी चाहती हो कर लेती हो।” इतना कहकर भैया अचानक सोफे से उठे और मेरे चेहरे को अपने हाथों से थामकर मेरे होंठों के नीचे मेरे मस्से को किस करने लगे। मैं हड़बड़ाकर बोली, “भैया, मत करो ना प्लीज़, ये तुम क्या कर रहे हो?” तो भैया ने कहा, “कल के दिन तुम इस मस्से को काट दोगी, इससे पहले मैं इसे जी भर कर चूम तो लूँ।”

मैं भैया के पंजे से खुद को छुड़ाते हुए बोली, “ठीक है भैया, मैं इसे नहीं कटाऊँगी।” ये कहते हुए मैंने खुद को उनसे छुड़वाया। भैया ने मुझे अपने हाथों से आज़ाद करते हुए कहा, “तुम मुझे कितना चाहती हो, मेरे कहने पर तुम ये मस्सा नहीं कटवा रही हो, क्या मैं तुम्हें एक बार किस कर लूँ?”

मैंने कहा, “क्या, इससे पहले किस करने से पहले पूछा था?” ये सुनकर शायद भैया ने इसे मेरा खुला निमंत्रण समझा और मुझ पर टूट पड़े और मेरे चहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़कर सोफे से उठाते हुए मेरे मस्से को छोड़कर अब सीधे मेरे होंठों पर हमला कर दिया और मुझे अपनी छाती से चिपका लिया।

“स्मिता, तू कितनी मस्त है, तेरे होंठ कितने रसीले हैं,” भैया ने मेरे होंठ चूसते हुए कहा। और जो आग मेरे अंदर लगी थी, वो फिर से भड़कने लगी और इसी जोश में मैंने अपने हाथों को उनकी पीठ पर फेरने लगी। कुछ देर ऐसे ही किस करते रहे, फिर मैंने खुद को संभाला और भैया से बोली, “भैया, ये गलत है, आप मेरे सगे भाई हैं।” जवाब में भैया ने कहा, “भाई वहाँ पर ही भूल जा, तू कब तक ऐसे ही अपनी जवानी को लेकर घूमती रहेगी? मुझसे तेरी ये हालत नहीं देखी जाती है। अब जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती, तू मुझसे अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर लिया कर। और कौन सा हम सबके सामने ऐसा कर रहे हैं। इस बात का पता किसी को नहीं चलेगा।” ये बोलते हुए फिर से मुझे किस करने लगे और मैं भी उनका साथ देने लगी।

फिर भैया ने मेरी चूचियों को मुट्ठी भरकर ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगे और मैं मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी, “अह्ह्ह, भैया, धीरे, कितना मज़ा आ रहा है।” फिर भैया ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए। मेरे शरीर पर सिर्फ पैंटी ही थी और भैया मुझे उठाकर बेडरूम में लेकर गये और मुझे पलंग पर पटक दिया और खुद अपने कपड़े निकालने लगे। जब भैया ने अपना अंडरवियर उतारा तो मैं उनका लंड देखकर तो डर ही गयी।

मनीष का लंड भैया के लंड के मुकाबले छोटा था और उसका लंड देखकर मुझे डर भी नहीं लगा था। भैया के लंड को देखकर मैं सिहर गयी। मैंने डरते हुए भैया से कहा, “भैया, ये तो बहुत बड़ा है, मुझे नहीं करवाना है।” इस पर भैया बोले, “तू भी पागल है, कभी अपनी भाभी को देखा है, क्या वो तुम्हें दुखी लगती है? वो इसे पाकर ही तो इतनी खुश रहती है। और तुम चिंता मत करो, अभी मैं हूँ ना।”

ये कहकर वो भी पलंग पर चढ़ गये और मेरे बूब्स को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने लगे। मेरे मुँह से “आ ऊहहह” की आवाज़ आने लगी और मैं भैया के लंड को अनदेखा करने लगी। “स्मिता, तेरी चूचियाँ कितनी टाइट हैं, इन्हें मसलने में कितना मज़ा आ रहा है,” भैया ने कहा। तभी भैया ने एक हाथ मेरी पैंटी के अंदर डाला और उनका हाथ मेरी चूत के आसपास के बालों पर घूमने लगा।

और भैया ने मेरी पैंटी उतार दी और मेरी चूत की ओर देखते हुए कहा, “क्यों स्मिता, क्या तुम अपनी चूत के बाल साफ नहीं करती हो?” जवाब में मैंने कहा, “नहीं भैया, ये सब मुझसे नहीं होता है।” तो भैया ने कहा, “चलो, आज मैं ही तेरे बाल साफ कर देता हूँ।”

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मैंने कहा, “भैया, अगर कट गया तो?” भैया ने कहा, “तुम चिंता मत करो, तुम्हारी भाभी के भी मैं ही साफ करता हूँ। कुछ नहीं होगा।” और फिर भैया ने मुझे अपनी गोद में उठाकर बाथरूम में ले गये और वहाँ मुझे फर्श पर बिठाकर मेरी चूत के बालों पर खूब सारा साबुन लगाया और उस्तरे से मेरे सारे बाल साफ किये।

बाल साफ करने के बाद मेरी चूत फूली हुई पावभाजी की तरह लग रही थी, जिससे कुछ बूँदें पानी की निकल रही थीं। भैया ने मेरी चूत को हाथों से सहलाया और कहा, “स्मिता, तेरी चूत तो बहुत मस्त है।” भैया के मुँह से चूत शब्द सुनकर मैं शरमा गयी। फिर मुझे गोद में लेकर फिर से पलंग पर पटक दिया।

और मुझ पर चढ़कर मेरे निप्पल को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे। बीच-बीच में वो अपने दाँतों से निप्पल को काट देते थे, जिससे मैं चीख जाती थी, “अह्ह्ह, भैया, धीरे, दर्द हो रहा है।” अब भैया ने निप्पल चूसते हुए अपना एक हाथ मेरी चूत में ले जाकर अपनी एक उंगली घुसा दी। मैं भी चूतड़ उछालकर साथ देने लगी, “अह्ह्ह, भैया, और अंदर डालो, कितना मज़ा आ रहा है।”

फिर भैया ने निप्पल को छोड़कर अपना मुँह मेरी चूत की तरफ लेकर गये और अपने दोनों हाथों से मेरी चूत के होंठों को फैलाकर उसमें अपनी जीभ डाल दी। मेरे सारे शरीर पर मानो हज़ारों चीटियाँ दौड़ने लगीं। मैं “उहाहहाहह, ऊ मर गयी भैया, और अंदर,” जैसे शब्द निकालने लगी। कुछ ही देर में मेरा शरीर अकड़ने लगा, मैं खत्म होने के कगार पर थी।

भैया ने शायद इस बात को समझ लिया और मेरी चूत को चाटना छोड़ दिया। फिर भैया ने अपने लंड की ओर इशारा करते हुए कहा, “इसे मुँह में लो ना।” मैंने कहा, “भैया, बहुत बड़ा है, मुँह दर्द करेगा।” भैया ने कहा, “जब मुँह दर्द करेगा तो निकाल लेना।” मैंने मजबूरी में हाँ कर दी।

फिर भैया ने अपना लंड मेरे होंठ पर रख दिया और मैं उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। उनका लंड बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह में आ रहा था। कुछ देर में भैया गरम हो गये और मेरे सर को पकड़कर मुख चुदाई करने लगे, जिससे मेरी साँस अटकने लगी और मुझे खाँसी आने लगी। मैं छुड़ाने की कोशिश करने लगी, पर भैया अपना लंड निकालने को तैयार ही नहीं थे।

“स्मिता, और चूस, कितना मज़ा आ रहा है,” भैया ने जोश में कहा। बड़ी मुश्किल से मैंने उनके लंड को अपने मुँह से बाहर निकाला और राहत की साँस ली। फिर मैंने भैया से कहा, “भैया, अब देर मत करो, मुझसे रहा नहीं जा रहा है।”

ये सुनकर भैया तेल की शीशी ले आए और मेरे पैरों को फैलाकर उनके बीच बैठ गये और मेरी चूत को फैलाकर उसमें ढेर सारा तेल डाल दिया। और तेल की शीशी को किनारे रखकर अपना लंड मेरी चूत में सटा दिया और अपने दोनों हाथ मेरे कंधे पर रखकर एक झटका दिया, जिससे मैं उछल गयी और उनका लंड फिसल गया। “अरे, भैया, धीरे, दर्द हो रहा है,” मैंने चीखकर कहा।

भैया ने फिर से अपना लंड चूत पर टिकाया और झटका मारा। इस बार तेल के कारण लंड सरसराता हुआ चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ आधा अंदर घुस गया। और मैं दर्द के मारे चिल्ला उठी, “उईईईई माआ म्माआरररर दददला रे।” मेरी आँखों से आँसू आने लगे। भैया ने मेरे बालों को अपने हाथों से प्यार से सहलाते हुए मेरे आँसू पोंछे और कहा, “बस एक बार और, फिर तुम्हें भरपूर मज़ा मिलेगा।” पर मैं उनकी बात नहीं सुनना चाहती थी।

मैं तो बस यही चाहती थी, “भैया, प्लीज़, नहीं सहा जा रहा है, प्लीज़ उठ जाओ।” इस बार भैया ने जैसे मेरी बात अनसुना करते हुए बिना किसी चेतावनी के एक और ज़ोर का झटका दिया। ये हमला मेरे लिए खतरनाक था। इस बार पूरा लंड गनगनाता हुआ चूत को फाड़कर पूरा अंदर चला गया।

मुझे तो लगा कि मेरी साँस ही उखड़ गयी है। मुझे असहाय पीड़ा होने लगी थी। मैं भैया को पीछे धकेलने की पूरी कोशिश किए जा रही थी और रोए जा रही थी। “भैया, प्लीज़, बाहर निकालो, बहुत दर्द हो रहा है,” मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा। और भैया समझाए जा रहे थे, “जो दर्द होना था हो गया, अब मज़ा आएगा,” ये कहकर वो मेरे बूब्स को दबाने लगे और धीरे-धीरे लंड को आगे-पीछे करने लगे।

“स्मिता, तेरी चूत कितनी टाइट है, कितना मज़ा आ रहा है,” भैया ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। कुछ ही देर बाद चमत्कारिक रूप से दर्द गायब हो गया और दुख सुख में बदल गया और मुझे स्वर्ग की अनुभूति होने लगी। मैं गांड उछालकर भैया का पूरा साथ देने लगी और साथ ही साथ “आआअहह, भैया, और ज़ोर से, कितना मज़ा आ रहा है,” की आवाज़ निकालने लगी थी।

“हाँ, स्मिता, तू तो पूरी माल है, ले मेरा लंड, और ले,” भैया ने जोश में कहा और अपनी स्पीड बढ़ा दी। कुछ ही देर के बाद मैं झड़ गयी, “अह्ह्ह्ह, भैया, मैं गई!” पर भैया रुकने को तैयार ही नहीं थे। मैं तीन बार झड़ गयी। फिर अचानक भैया ने स्पीड बढ़ा दी और भैया का शरीर अकड़ गया और उनके लंड से वीर्य की पिचकारी निकली, “स्मिता, ले मेरा माल, उह्ह्ह,” भैया ने सिसकारी भरी। जिससे मेरी चूत भर गयी और हम दोनों निढाल हो गये। कुछ देर बाद हम दोनों बिस्तर से उठे तो देखा बिस्तर मेरी चूत के खून से और भैया के वीर्य से सना हुआ था।

मैंने बिस्तर को बाथरूम में ले जाकर साफ किया और चूत पर लगे खून को साफ किया। पीछे-पीछे भैया आ गये तो मैंने भैया के लंड को अपने हाथ से रगड़कर धोया और भैया से कहा, “भैया, तुमने वीर्य अंदर छोड़ दिया है, अगर कुछ हो गया तो?” तब भैया ने भाभी की एक टैबलेट लाकर दी और कहा, “इसे खा ले, फिर कुछ नहीं होगा।” मैंने टैबलेट खा ली और फिर बड़ी मुश्किल से लंगड़ाते हुए बेडरूम तक गयी। चुदाई से मेरा पूरा अंग-अंग टूट रहा था। लेकिन मन में एक संतुष्टि भी थी।

मैंने आज दुनिया की सारी खुशी कुछ ही समय में पा ली थी और वो भी अपने सगे भाई से। मैं बेडरूम आकर कपड़े पहनने लगी तो पीछे से भैया ने पकड़ लिया और कहा, “एक बार और हो जाए।” तो मैंने पलटकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “अभी नहीं मेरे भैया, पहले मुझे संभलने तो दो, तुमने तो मेरी हालत ही खराब कर दी है।” कहकर मैं कपड़े पहनकर पलंग पर लेट गयी। पर भैया पर अभी भी खुमारी छाई हुई थी और वो नंगे थे। मेरी बगल में मुझे बाहों में लेकर लेट गये और मैं भी उनसे लिपट गयी।

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