मम्मी की करतूतें देख भाई से चुदी-1

मैं प्रिया राठौड़, राजस्थान के एक छोटे से कस्बे की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र अब 30 साल है, लेकिन जो कहानी मैं सुनाने जा रही हूँ, वो 6 साल पुरानी है, जब मैं 22 की थी और मेरे भाई की जवानी भी अपनी दहलीज पर थी। मेरे घर में हम चार भाई-बहन थे—दो बड़ी बहनें, मैं, और मेरा दो साल छोटा भाई, रवि। मेरे पिताजी का मर्डर तब हुआ था, जब मैं बहुत छोटी थी, और मम्मी सिर्फ 32 साल की थीं। उस वक्त से ही मम्मी की जिंदगी ने एक अजीब मोड़ ले लिया था। सुनने में आया कि पिताजी का मर्डर मम्मी के किसी आशिक ने किया था। सच कहूँ तो मुझे नहीं पता कि मम्मी के कितने आशिक थे। हमारे घर का खर्चा भी उन्हीं ‘अंकलों’ के पैसों से चलता था।

मम्मी की रंगरेलियाँ मैंने अपनी जवानी की शुरुआत से ही देखीं। उनके आशिक हमारे घर आते, मम्मी को चोदते, और हम भाई-बहन चुपके से कोने में छिपकर सब देखते। शुरू में तो समझ नहीं आता था कि ये सब क्या हो रहा है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, जवानी की आग ने मुझे भी जकड़ लिया। मेरी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी, और अब घर में सिर्फ मैं, रवि, और मम्मी रह गए थे। मम्मी को सेक्स की ऐसी लत थी कि वो अब घर तक सीमित नहीं रहीं। वो होटलों में जातीं, कभी-कभी तो गाँव से बाहर कई-कई दिन तक गायब रहतीं। घर की जिम्मेदारी मेरे और रवि के कंधों पर थी।

मम्मी ने हमें कभी अपने इस दलदल में नहीं धकेला, ये बात मुझे हमेशा सुकून देती थी। लेकिन मम्मी की चुदाई के वो नजारे मेरे दिमाग में बसे हुए थे। वो बड़े-बड़े लंड, मम्मी की सिसकारियाँ, और वो आशिकों की हरकतें—सब कुछ मेरी आँखों के सामने घूमता रहता। मेरी चूत में आग लगी थी। पहले तो मैंने उंगलियों से काम चलाया, फिर खीरा, गाजर, मूली—सब आजमाए। लेकिन जो मम्मी की चुदाई में दिखता था, वो मजा मुझे कभी नहीं मिला। मैं किसी अजनबी पर भरोसा करने से डरती थी। बाहर के मर्दों से चुदवाने का रिस्क मैं नहीं लेना चाहती थी।

लेकिन मेरे दिमाग में एक नाम बार-बार आता था—मेरा भाई, रवि। वो भी तो वही सब देखकर जवान हुआ था, जो मैंने देखा। मुझे पता था कि वो भी इस आग में जल रहा था। मैं उसके कपड़े धोती थी, और उसकी अंडरवियर पर लगे वीर्य के धब्बे मुझे सब बता देते थे। मेरी पैंटी भी बाथरूम में लटकी रहती थी, और कई बार उसकी हालत देखकर मुझे यकीन हो गया कि रवि उसे सूँघता था, शायद उससे अपनी जवानी की भूख मिटाता था। मैंने ठान लिया कि अब मुझे अपनी इस आग को बुझाने के लिए रवि को ही तैयार करना होगा। लेकिन सवाल ये था कि उसे कैसे पटाऊँ? वो मेरा भाई था, और अगर मैंने गलत कदम उठाया तो शायद सब बिगड़ जाए।

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असली कहानी की शुरुआत

एक दिन मौका मिला। मम्मी घर पर नहीं थीं, कहीं बाहर गई थीं। मैंने सोचा, यही सही वक्त है। मैं रवि से पहले बाथरूम में घुस गई। जानबूझकर दरवाजा लॉक नहीं किया और लाइट भी बंद रखी। मैं पूरी नंगी होकर शावर के नीचे खड़ी थी, मेरी चूत में पहले से ही गर्मी थी, और मैं सोच रही थी कि अगर रवि आया तो क्या होगा। तभी रवि बाथरूम में नहाने के लिए आया। उसने बिना झाँके, बेपरवाह अंदाज में दरवाजा खोला, अंदर घुसा, और लाइट ऑन कर दी।

लाइट जलते ही उसकी नजर मुझ पर पड़ी। मैं नंगी, पानी से भीगी हुई, उसके सामने खड़ी थी। मेरे गोल-मटोल चूचे, मेरी चिकनी जाँघें, और मेरी चूत—सब कुछ उसके सामने था। मैंने जानबूझकर हड़बड़ाहट दिखाई, जैसे मुझे शर्मिंदगी हो रही हो। लेकिन मेरी आँखें उसकी पैंट की तरफ गईं, जहाँ उसका लंड पहले से ही तंबू बनाए खड़ा था। रवि की आँखें मेरे चूचों पर अटक गई थीं। मैंने तौलिये से अपने शरीर को ढकने की नाकाम कोशिश की, लेकिन मेरा तौलिया छोटा था, और मेरी चूत और चूचे आधे-अधूरे ही ढके।

रवि ने एक कदम आगे बढ़ाया और मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। मैंने दिखावे के लिए हल्का-सा विरोध किया, “अरे, रवि, ये क्या कर रहा है?” लेकिन मेरी आवाज में वो जोश नहीं था। मेरा तौलिया नीचे गिर गया, और अब मैं पूरी तरह नंगी उसके सामने थी। मेरी चूत में आग लगी थी, और मैं नहीं चाहती थी कि ये मौका मेरे हाथ से निकल जाए। रवि ने भी सारी शर्म छोड़ दी। उसने मुझे और जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरी नंगी चूचियाँ उसके सीने से चिपक गईं, और मैंने महसूस किया कि उसका लंड अब और सख्त हो चुका था।

हम दोनों एक-दूसरे को ऐसे लिपटे थे जैसे कोई प्रेमी-प्रेमिका। मेरी चूत गीली हो रही थी, और रवि का लंड उसकी पैंट में कैद होने की जिद छोड़ रहा था। मैंने धीरे से उसकी पैंट खोली और उसकी अंडरवियर नीचे खींच दी। उसका लंड बाहर आया—लंबा, मोटा, और गर्म। मैंने उसे अपने हाथ में लिया, उसकी गर्मी को महसूस किया। वो इतना सख्त था कि मेरी चूत ने तुरंत उसे सलामी दी। मैंने रवि को देखा और धीमी आवाज में कहा, “भाई, अब और मत तड़पाओ। मेरी चूत की आग बुझा दो। अपनी दीदी को चोद दो।”

रवि ने मेरी आँखों में देखा और बोला, “दीदी, मैं भी तो यही चाहता था। मम्मी की चुदाई देख-देखकर पागल हो गया हूँ। वो अंकल लोग मम्मी की चूत के ऐसे मजे लेते हैं, और मैं बस अपनी मुट्ठ मारकर रह जाता हूँ। लेकिन आज तू मेरे सामने है, और मैं तुझे चोदकर अपनी सारी आग बुझा दूँगा।”

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उसके शब्दों ने मेरी चूत को और गीला कर दिया। मैंने उसका लंड पकड़ा और अपनी चूत के छेद पर सेट किया। लेकिन रवि ने मुझे रोका। वो बोला, “दीदी, पहले थोड़ा मजा लेने दे।” उसने मुझे बाथरूम की दीवार से सटाया और मेरे चूचों को अपने हाथों में लिया। उसने मेरे निप्पल्स को धीरे-धीरे मसला, फिर उन्हें अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। मैं सिसकारियाँ लेने लगी, “आह्ह… रवि… और जोर से चूस…” मेरी चूत अब पानी छोड़ रही थी, और मैं बस चाहती थी कि उसका लंड मेरे अंदर जाए।

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रवि ने मेरे एक चूचे को चूसते हुए दूसरे को जोर-जोर से दबाया। उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर ऐसे नाच रही थी जैसे कोई माहिर खिलाड़ी। फिर वो नीचे की ओर बढ़ा। उसने मेरी जाँघों को फैलाया और मेरी चूत को अपने मुँह के पास लाया। उसकी गर्म साँसें मेरी चूत पर पड़ीं, और मैं पागल हो गई। उसने अपनी जीभ मेरी चूत के होंठों पर फिराई, और फिर धीरे-धीरे उसे मेरी चूत के अंदर डाल दिया। मैं जोर से चीखी, “आह्ह… रवि… ये क्या कर रहा है… मेरी चूत को चाट रहा है… आह्ह…” उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी, और मैं झटके लेने लगी।

करीब 5 मिनट तक उसने मेरी चूत को चाटा, और मैं इस दौरान एक बार झड़ चुकी थी। मेरी चूत का पानी उसके मुँह पर था, और वो उसे चाटकर और भूखा हो गया। मैंने उसे खींचा और कहा, “अब बस, रवि। अपनी दीदी की चूत में अपना लंड डाल दे।” उसने मुझे घोड़ी बनाया, मेरे कूल्हों को पकड़ा, और पीछे से अपनी लंड की टोपी मेरी चूत के छेद पर रगड़ने लगा। मैं तड़प रही थी, “रवि, और मत तड़पाओ… डाल दे अंदर…”

उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। मेरी चूत पहले से ही गाजर-मूली से खुली थी, लेकिन असली लंड का अहसास कुछ और ही था। मैं सिसकारी, “आह्ह… भाई… कितना मोटा है तेरा लंड… चोद मुझे… और जोर से…” रवि ने मेरे कूल्हों को पकड़कर धक्के मारने शुरू किए। उसका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था, और हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। मैंने अपने एक चूचे को पकड़कर उसे मसलना शुरू किया, और रवि को और उकसाया, “चोद भाई… अपनी दीदी की चूत को फाड़ दे… बन जा बहनचोद…”

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रवि ने लय पकड़ ली। वो किसी मँजे हुए खिलाड़ी की तरह मेरी चूत चोद रहा था। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था, और मैं हर धक्के के साथ सिसकारियाँ ले रही थी। करीब 15 मिनट तक वो मुझे ऐसे ही चोदता रहा। मैं इस बीच दो बार झड़ चुकी थी, और मेरी चूत का पानी मेरी जाँघों तक बह रहा था। रवि का शरीर भी अब अकड़ने लगा था। वो बोला, “दीदी, मेरा होने वाला है… कहाँ छोड़ूँ?”

मैंने सिसकारी भरी, “भाई, मेरी चूत के अंदर ही छोड़ दे… तेरे लंड का रस मेरी चूत में चाहिए…” उसने 5-6 और जोरदार धक्के मारे, और फिर उसका गर्म लावा मेरी चूत में भर गया। मैंने अपने भाई के लंड का रस अपनी चूत में महसूस किया, और मुझे ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूँ।

हम दोनों हाँफ रहे थे। रवि का लंड अभी भी मेरी चूत में था, और हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे हुए थे। कुछ देर बाद हमें होश आया कि मम्मी किसी भी वक्त आ सकती हैं। हमने फटाफट साथ में नहाया। नहाते वक्त रवि का लंड फिर से खड़ा हो गया, और वो मेरी चूत को फिर से सलामी देने लगा। मैंने उसे मना किया, “रवि, अभी नहीं… मम्मी आ जाएगी… अगली बार खुलकर चुदाई करेंगे।” वो थोड़ा उदास हुआ, लेकिन मेरी बात मान गया।

हमने अपने गीले बदन को तौलिये से पोंछा और कपड़े पहने। कपड़े पहनते वक्त मैं रवि के पास गई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। हमारी जीभें एक-दूसरे से मिलीं, और हमने एक गहरी फ्रेंच किस की। मेरी चूत फिर से गीली होने लगी, और रवि का लंड भी सख्त हो गया। लेकिन हमने खुद को रोका। मैंने उससे कहा, “भाई, अगली बार जब मम्मी बाहर जाएगी, तब हम खुलकर मजे करेंगे।”

थोड़ी देर बाद मम्मी घर आ गईं। हमने मिलकर खाना खाया, और फिर अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन अब मेरे और रवि के बीच एक नया रिश्ता बन चुका था। मम्मी का बाहर जाने का सिलसिला चलता रहा, और हम भाई-बहन अब खुल चुके थे। आगे क्या हुआ, वो मैं अगली कहानी में बताऊँगी।

कहानी का अगला भाग: मम्मी की करतूतें देख भाई से चुदी-2

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