कहानी का पिछला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-5
मैं करिश्मा, इकतालीस साल की एक ऐसी औरत, जिसकी जवानी कोलकाता की गलियों में “मस्त माल” का तमगा दिलाती थी। मेरी गोरी चूचियाँ, चिकनी जांघें, और पतली कमर देखकर मर्दों की साँसें रुक जाती थीं। एक ही दिन में मेरी ज़िंदगी पलट गई। “मॉडर्न सिनेमा” में सवा घंटे की पोर्न फिल्म देखते हुए मैंने तीन नए मूसल—विनोद, सुदेश, और लल्लन—को सहलाया। सैकड़ों लोगों की नज़रों में मैंने लल्लन का नौ इंच का लौड़ा चूसा, उसका गर्म, नमकीन रस निगला। घर लौटकर पहले अपने पति विजय से, फिर बेटे विनोद से चुदवाया। रात में दोनों बाप-बेटे ने एक-दूसरे के सामने मुझे चोदा। विनोद ने अपने बाप के सामने बिना नर्वस हुए, जमकर, लंबी चुदाई की। मैं दोनों के बीच थी, उनकी गर्म साँसें मेरी चूचियों पर टकरा रही थीं। हम तीनों एक-दूसरे से लिपटकर सो गए।
सुबह मेरी नींद खुली तो बेडरूम में खिड़की से मॉनसून की धूप छन रही थी। घड़ी में साढ़े छह बजे थे। बगल में देखा—हम तीनों नंगे थे, विजय और विनोद गहरी नींद में। हमारा मिडिल-क्लास कोलकाता फ्लैट मॉनसून की नमी से भरा था, दीवारों पर पुराने बॉलीवुड पोस्टर चिपके थे। मेड रेनू साढ़े सात बजे आती थी। मैं बाथरूम में गई, फ्रेश हुई, और एक हाउस गाउन पहना, सारे बटन बंद किए। चाय के लिए पानी चढ़ाकर बेडरूम लौटी और दोनों को जगाया। “विजय, विनोद, जल्दी उठो, रेनू के आने का वक्त हो रहा है,” मैंने कहा।
दोनों उठे, लेकिन मैं कुछ बोलने से पहले किचन में लौट आई। बीते दिन और रात की घटनाएँ—सिनेमा हॉल में लल्लन का मूसल, विनोद की पहली चुदाई, विजय की व्हिस्की-भरी इजाज़त—मेरे दिमाग में ताज़ा थीं। लेकिन मुझे यकीन नहीं था कि विजय को माँ-बेटे की चुदाई सचमुच पसंद आई या नहीं।
थोड़ी देर बाद लिविंग रूम में हम तीनों चाय पी रहे थे। कमरे में क्रेकी फैन की आवाज़ और बाहर मॉनसून की रिमझिम थी। मैंने बात शुरू की। “पिछली रात जो हुआ, वो बहुत गलत था। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। विजय, तुम कहो तो मैं अभी घर छोड़ दूँ।”
दोनों चुप रहे। विजय ने चाय का कप खाली कर टेबल पर रखा और मेरे पीछे खड़ा हो गया। बिना कुछ बोले उसने मेरे कंधे पकड़े और मुझे खड़ा कर दिया। मैं और विनोद चुप थे। विजय ने पीछे से मेरे गाउन के सारे बटन खोले, और गाउन फर्श पर गिर गया। मैं विनोद के सामने नंगी थी। विजय ने पीछे से मेरी चूचियाँ और चूत सहलानी शुरू की, उसकी उंगलियाँ मेरे भोसड़े में मखमली साँप की तरह रेंग रही थीं। मेरी चूत गीली हो गई, मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं।
“करिश्मा,” विजय बोला, “मुझे गज़ब का मज़ा आया कि तूने मेरे सामने बेटे से चुदवाया। जैसा तूने रात में कहा, अब तू हम दोनों की घरवाली है। रात में हम तीनों एक बेड पर रहेंगे। दिन में भी तू जब चाहे विनोद से चुदवा सकती है। कसम रानी, मैं तुझसे बिल्कुल नाराज़ नहीं। आज मुकर्जी को डिनर पर बुला, और अपनी जवानी से उसे इतना पागल कर कि वो दीवाना हो जाए। सच कहता हूँ, बेटे से चुदवाकर तूने मुझे बहुत खुश किया।”
मैं खुशी से झूम उठी। विजय ने मुझे विनोद से चुदवाने की खुली छूट दे दी थी। तभी कॉल बेल बजी। मैंने विजय को चूमा और गाउन पहनने लगी। कुछ मिनट बाद विनोद रेनू को लेकर अंदर आया। दोनों मर्द अपने काम में व्यस्त हो गए। मैं रेनू के साथ किचन में थी, नाश्ता बना रही थी।
रेनू बोली, “मैडम, आप वैसे ही इस इलाके की सबसे खूबसूरत और अट्रैक्टिव औरत हैं। लेकिन आज तो आप गज़ब की लग रही हैं।”
विजय ने भी यही कहा था। मैं खुश हुई, लेकिन उसे डाँटा। “क्या फालतू बात कर रही है? जैसी पहले थी, वैसी आज भी हूँ। तू तीन साल से मेरे घर काम कर रही है, कभी सुना कि करिश्मा मैडम का कोई यार है? तेरे साहब के दोस्तों के अलावा मुझसे कोई बात भी नहीं करता। मेरा कोई यार नहीं। तेरे तो ढेर सारे यार होंगे?”
रेनू ने काम करते हुए कहा, “एक भी यार नहीं, मैडम। सारे मर्द आपके बेटे जैसे नहीं होते, जो नंगी चूची देखकर भी हाथ न लगाए। बाकी सब को मौका मिले, तो बीच सड़क पर खड़े-खड़े चोद देंगे।”
मैंने रेनू को गौर से देखा। वो 21-22 साल की थी, रंग मुझसे कम गोरा, लेकिन साफ। चेहरा साधारण, कद मुझसे 4-5 इंच कम, लगभग 5 फुट 2 इंच। कंधे चौड़े, चूचियाँ 32-34 इंच की, चूतड़ छोटे। पंजाबी सूट में उसकी जांघें साफ नहीं दिख रही थीं। कुल मिलाकर साधारण, लेकिन जवान थी। मर्दों को हमारी उम्र की औरतों की तुलना में जवान लड़कियाँ चोदना ज़्यादा पसंद है। मुझे यकीन था कि रेनू विनोद के सामने नंगी भी हो जाए, तो वो उसे नहीं चोदेगा। फिर भी मैंने गुस्सा दिखाया।
“रंडी, मेरे बेटे को अपनी जवानी दिखाकर बर्बाद करना चाहती है? तूने उसे चूची कब दिखाई?”
रेनू ने काम करते हुए बताया, “माँ कसम, मैडम, मैंने जानबूझकर चूची नहीं दिखाई। आपकी चिट्ठी पढ़ते हुए मैं इतनी गर्म हो गई कि मैंने कुर्ता खोल दिया, ब्रा भी उतार फेंकी। सलवार खोलने से पहले विनोद रूम में आ गया। मैं हड़बड़ा गई, चिट्ठी उसे देकर बाहर निकल आई। चिट्ठी में करिश्मा नाम कई बार लिखा था, लेकिन लिखने वाले का नाम नहीं। किसने आपको इतनी गंदी चिट्ठी लिखी?”
विनोद ने सिर्फ इतना कहा था कि रेनू ने चिट्ठी दी थी। और पूछना बेकार था। मैंने रेनू को और गर्म करने का सोचा। “वो मेरा स्कूल का दोस्त था,” मैंने कहा। “जैसे सब तुझे चोदना चाहते हैं, वैसे वो मेरे साथ रोज चुदाई की बातें करता था। लड़का मुझे भी पसंद था, लेकिन माँ-बाप ने मेरी शादी कहीं और फिक्स कर दी। शादी से पहले मैंने उसे घर बुलाया। मैंने कहा कि मैं उसे बहुत पसंद करती थी, लेकिन शादी से पहले चुदवा नहीं सकती। उसने खुशामद की कि मैं उसके सामने नंगी हो जाऊँ, और उसे मेरा बदन सहलाने दूँ।”
रेनू मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। हम नाश्ता बनाते हुए बातें कर रहे थे। “आप उसके सामने नंगी हुई?” उसने पूछा। “आपको नंगा देखकर भी आपके प्रेमी ने आपको नहीं चोदा?”
मैंने झूठ बोला। कुंदन ने चिट्ठी हमारी पहली चुदाई के बाद लिखी थी। “नहीं, मैंने उससे नहीं चुदवाया,” मैंने कहा। “मैं उसके सामने पूरी नंगी बैठी रही। एक घंटे में उसने वो चिट्ठी लिखी, जो तूने कल पढ़ी। जब उसने पढ़कर सुनाई, मुझे बहुत पसंद आई। मेरी माँ बगल के रूम से सब देख रही थी। मैं अपने प्रेमी के साथ तीन घंटे से ज़्यादा नंगी रही। तीन बार उसका लौड़ा चूसकर ठंडा किया। उसने मेरा अंग-अंग सहलाया, चूमा, मेरी चूत खूब चूसी, चाटी। कुल मिलाकर उसके लौड़े ने पाँच बार रस गिराया। पाँच बार रस गिराने के बाद लौड़े में दम ही नहीं बचा कि वो मुझे चोद सके। रेनू, किसी को मत बोलना, मुझे चूत चुसवाना और चटवाना चुदाई से ज़्यादा मज़ा देता है।”
रेनू की आँखें और चेहरा बता रहे थे कि वो उस वक्त किसी से भी चुदवा लेगी। मेरा मन किया कि बाप-बेटे से उसके सामने रेनू को चुदवा दूँ। तभी रेनू ने मेरी दोनों चूचियों को ज़ोर से दबाया। “मुझे किसी मर्द से चुदवाना नहीं,” वो बोली। “मैं आपको चोदना चाहती हूँ। आपकी चूत और इन मस्त चूचियों को चूसना चाहती हूँ।”
मैंने उसके हाथ झटके। “पागल है तू,” मैंने कहा। “आज रात विजय मालिक का बॉस डिनर पर आ रहा है। पाँच बजे तक आ जाना, विनोद या विजय तुझे घर पहुँचा देंगे।” मैंने इधर-उधर देखा और उसकी चूची दबा दी। “पहले क्यूँ नहीं कहा? अभी दो-तीन दिन बिजी हूँ, फिर तू जो चाहेगी, करने दूँगी। लेकिन तुझे मेरे सामने विनोद से चुदवाना होगा।”
रेनू ने फिर मेरी चूचियाँ दबाईं। “आपको एक बार चोदने के लिए मैं एक विनोद क्या, किसी से भी चुदवा लूँगी। जल्दी मौका दीजिए, मैडम। जब से आपको देखा, आपकी चूत चाटने के लिए पागल हूँ।”
हमारे बीच मैडम-मेड का रिश्ता खत्म हो गया था। मैं लेस्बियन मस्ती का मज़ा लेना चाहती थी। नाश्ते के वक्त मैंने विजय के सामने मुकर्जी को डिनर के लिए फोन किया। वो तुरंत तैयार हो गया। नौ बजे तक विजय ऑफिस चले गए। साढ़े दस बजे रेनू चली गई।
मैं और विनोद घर में अकेले थे। हमने बाथरूम में साथ नहाया। गर्म पानी मेरी चूचियों पर बह रहा था, और मैंने विनोद का मूसल चूसा, उसका सुपारा मेरे होंठों पर रेंग रहा था। मैंने उससे चूत चुसवाई, उसकी जीभ मेरे भोसड़े में तूफान की तरह घूम रही थी। मैं ठंडी हो गई, लेकिन रात की दो चुदाइयों के बाद विनोद अकेले में मुझे नहीं चोद पाया। उसे किसी दूसरे मर्द की मौजूदगी चाहिए थी।
शाम को रेनू लौटी। काम खत्म होने के बाद विनोद उसे घर छोड़ने गया। अगली सुबह रेनू ने मुझसे पूछा, “आपका बेटा नमर्द है क्या? मैं घर में अकेली थी। कोई और होता तो मुझे चोद लेता, लेकिन उस नमर्द ने मुझे चूमा भी नहीं।”
“मुझे कैसे पता कि मेरा बेटा नमर्द है?” मैंने जवाब दिया।
विनोद जब रेनू को छोड़ने गया, तभी मुकर्जी साहब आए। विजय के सामने मैं उनसे गले मिली। हरामी ने मेरे गाल ही नहीं, होंठ भी चूम लिए। वो 60-62 साल का था, माथे के सारे बाल सफ़ेद, फिर भी अपने मातहतों की औरतों को चोदता था। मैंने तय किया था कि उसके सामने नंगी रहूँगी, उसे सब कुछ करने दूँगी, लेकिन चुदवाऊँगी विजय को प्रमोशन मिलने के बाद।
विनोद भी लौट आया। पिछले रात की तरह हम चारों ने व्हिस्की पीते हुए खाना खाया। खाना खत्म होते-होते विजय और मुकर्जी पर नशा चढ़ गया। मैंने उन्हें बेडरूम नहीं ले जाया, लिविंग रूम के कारपेट पर ही बिठाया। मैं मुकर्जी से सटकर बैठी, अपनी एक चूची उसके बाजू पर दबा दी।
बाप-बेटे के सामने मुकर्जी मेरी चूचियाँ मसलने लगा। मैं नखरे करती रही, साथ ही उसके कपड़े खोलने लगी। उसने मुझे नंगा करने से पहले मैंने उसका ट्राउज़र और अंडरवियर खींचकर निकाल दिया। मैं झुककर उसके लौड़े का सुपारा चूसने लगी। उसका सात इंच का लौड़ा सामान्य मोटाई का था, लेकिन उसका नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल गया।
“उफ्फ, विजय,” मुकर्जी सिसकारते हुए बोला, “तेईस साल बाद इस औरत ने मेरा सपना पूरा किया। मैंने रिसेप्शन में इसे तेरे साथ पहली बार देखा था, तभी से चाहता था कि करिश्मा मेरा लौड़ा चूसे, और मेरे लौड़े को अपनी चूत में ले। आह, करिश्मा, गज़ब का मज़ा आ रहा है।”
मैं उसकी जांघें और बॉल्स सहलाते हुए लौड़ा चूसती रही। विनोद ने मुकर्जी का ग्लास फिर भरा। मैं चूसती रही, और ना-नुकर करते हुए उसने मेरा गाउन उतार दिया। मैं नंगी थी, मेरी चूचियाँ हवा में तनी थीं, मेरी चूत चमक रही थी। बूढ़े हरामी में गज़ब की ताकत थी। उसने मुझे कारपेट पर लिटाया, मेरे सिर के बगल में बैठकर लौड़ा चुसवाने लगा। उसकी सिसकारियाँ लिविंग रूम में गूंज रही थीं।
विजय बोला, “बॉस, सिर्फ लौड़ा चुसवाओगे, चोदोगे नहीं? देखो, करिश्मा की चूत कितनी फुदक रही है।”
मुकर्जी ने हँसते हुए कहा, “अब तो करिश्मा मेरा माल है। जब चाहूँ, चोद लूँगा। लेकिन मुझे लौड़ा चुसवाना ज़्यादा पसंद है। तुम दोनों नहीं देख रहे, लड़की कितनी गर्म है? तुम भी इसकी गर्मी उतारो।”
देखते-देखते विजय और विनोद नंगे हो गए। मुकर्जी ने विनोद की तारीफ की, “वाह बेटा, गज़ब का लौड़ा है तेरा। मेरी बेटी प्रेमा को तू बहुत पसंद है। मुझे नहीं पता उसने किसी से चुदवाया है या नहीं, लेकिन उसे तेरा लौड़ा बहुत पसंद आएगा। शादी करेगा प्रेमा से?”
हरामी मुझसे लौड़ा चुसवाते हुए मेरे बेटे को अपनी बेटी से शादी की बात कर रहा था। मैंने उसका लौड़ा इतनी जोर से चूसा कि वो बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसका गर्म रस मेरे मुँह में छूटने लगा। वो लौड़ा निकालना चाहता था, लेकिन मैंने उसे कसकर दबाए रखा। मैंने सारा रस जीभ पर जमा किया, लौड़ा बाहर निकाला, और सबको दिखाते हुए निगल लिया।
“विजय,” मुकर्जी हाँफते हुए बोला, “तेरा प्रमोशन पक्का। मैंने कम से कम दो सौ औरतों से लौड़ा चुसवाया, लेकिन ये पहला मौका है कि किसी ने मेरा रस निगला। रानी, बीच-बीच में आऊँगा, तो ऐसे ही लौड़ा चूसकर मुझे खुश कर देना।”
“बॉस,” मैंने मादक अंदाज़ में कहा, “तुम जब बुलाओगे, लौड़ा चूसकर खुश कर दूँगी, और तेरा माल पी जाऊँगी। अपनी दोनों बेटियों को भी मेरे पास भेजो। उन्हें भी मर्दों को खुश करने का तरीका सिखा दूँगी। तुम्हें तो मैंने ठंडा कर दिया, अब तुम मुझे ठंडा करो।”
मुकर्जी का लौड़ा ढीला हो गया था। “मेरा लौड़ा जल्दी टाइट नहीं होगा,” उसने कहा। “विजय, तू अपनी घरवाली को चोद।”
मैं चाहती थी कि विनोद मुझे अपने बाप और बॉस के सामने चोदे, लेकिन वो अपनी जगह बैठा रहा। विजय ने मुझे चोदना शुरू किया। उसका मूसल मेरी चूत में तूफान की तरह घुसा, मेरी सिसकारियाँ कारपेट पर गूंजने लगीं। मैंने दोनों हाथ बढ़ाए, और एक-एक हाथ से विनोद और मुकर्जी के लौड़ों को सहलाने लगी। विनोद का मूसल मेरे हाथ में ज्वालामुखी की तरह धधक रहा था, मुकर्जी का ढीला लौड़ा मेरी उंगलियों में रेंग रहा था।
आगे की कहानी अगले हिस्से में।