दीदी की गुलाबी चूत बस में चोद लिया भाई ने

Hot didi bus sex story – Gulabi chut story: मेरा नाम जतिन मांझी है। मैं बिहार के गया जिले से हूँ, उम्र 21 साल, गोरा, साधारण कद-काठी का नौजवान। बरौनी में किराए का रूम लेकर ग्रेजुएशन के दूसरे साल में पढ़ रहा हूँ। मेरे घर में पाँच लोग हैं – मम्मी, पापा, दो बड़ी बहनें और मैं। पापा सरकारी कर्मचारी हैं। मेरी बड़ी बहन सुधा, 26 साल की, ने 2023 में ग्रेजुएशन पूरा किया। छोटी दीदी दीपिका, 24 साल की, गोरी, 5 फुट 2 इंच, पिछले साल ग्रेजुएशन फाइनल किया। ये कहानी मेरी और दीपिका दीदी की है, जब वो रेलवे का एग्जाम देने आसनसोल जा रही थीं।

पापा को छुट्टी नहीं मिली, तो मुझे उनके साथ जाना था। दीदी ने टिकट बुक करने को कहा, मैंने डबल स्लीपर बर्थ का एक टिकट लिया। शाम को बस थी। घर से निकलते वक्त दीदी ने लाल सूट और काली लैगिंग्स पहनी थी। टाइट लैगिंग्स में उनकी जांघें और कूल्हे उभर रहे थे, और सूट से उनके बूब्स का हल्का उभार दिख रहा था। सच कहूँ, वो इतनी सेक्सी लग रही थीं कि कोई भी घूर ले। लेकिन तब तक मेरे मन में कोई गलत खयाल नहीं था।

बस में चढ़े, दीदी पहले बर्थ पर गईं और खिड़की की साइड लेट गईं। मैंने बैग्स रखे, पर्दा ठीक किया ताकि हवा न आए। गाड़ी चल पड़ी। मैं भी बर्थ पर चढ़ा, दीदी ने कहा, “खिड़की साइड तू सो जा।” मैंने वैसा ही किया। हल्की रोशनी थी, पर्दे की वजह से। दीदी ने दुपट्टा हटा लिया और बेडशीट ओढ़कर लेट गईं। ठंडी हवा और हल्की रोशनी में दीदी का गोरा चेहरा, उनके बूब्स का उभार, और टाइट लैगिंग्स में उनकी जांघें मुझे अजीब सा अहसास दे रही थीं। मैंने नाइक का ट्राउजर और शर्ट पहनी थी, और मन को काबू में रखने की कोशिश कर रहा था।

कुछ देर बाद दीदी ने कहा, “खिड़की बंद कर, ठंड लग रही है।” मैंने बेडशीट बैग से निकाली, उन्हें दी। वो ओढ़कर सो गईं। लेकिन उनके साथ इतने करीब लेटने से मेरा दिमाग भटकने लगा। मन में गलत खयाल आने लगे, और मेरा लंड खड़ा हो गया। डर के मारे कुछ कर नहीं पा रहा था, बस मन ही मन तड़प रहा था।

रात गहराने लगी। मैंने खिड़की बंद की, और हम दोनों एक ही बेडशीट में लेट गए। दीदी का जिस्म गर्म था, और मेरी वासना अब बेकाबू हो रही थी। मैंने सोच लिया, जो होगा देखा जाएगा। धीरे-धीरे मैं दीदी से सट गया। उनकी तरफ करवट लेकर लेटा, मेरा लंड उनकी जांघों के पास टच हो रहा था। बस की हल्की हिलोरों से हम दोनों करीब आ रहे थे। दीदी पर्दे की तरफ मुँह करके सो रही थीं। मुझे नींद आ गई, पता ही नहीं चला।

रात को 1:07 बजे नींद खुली। मोबाइल देखा, समय चेक किया। दीदी मेरी तरफ करवट लेकर सो रही थीं, उनका एक पैर मेरे ऊपर था। मैंने धीरे से उनकी जांघ से घुटने तक हाथ फेरना शुरू किया, लैगिंग्स के ऊपर से ही। मेरा लंड फिर से सख्त हो गया। डर था, लेकिन वासना हावी थी। दीदी अचानक जाग गईं। मैंने झट से हाथ हटा लिया।

उनका पैर मेरे ऊपर से हटाते वक्त उनकी जांघ मेरे लंड से टकराई। मुझे लगा उन्हें अहसास हुआ, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मैं चुप रहा, लेकिन मेरा लंड अब और सख्त था।

1:30 बजे बस एक ढाबे पर रुकी। ड्राइवर ने कहा, “पेशाब या चाय के लिए 15 मिनट हैं, फिर बस नहीं रुकेगी।” सारे पैसेंजर उतर गए। दीदी ने धीरे से कहा, “सब जगह मर्द ही हैं, मैं कहाँ पेशाब करूँ?” मैंने उन्हें ढाबे के पीछे ले गया, जहाँ अंधेरा था। दीदी ने मोबाइल की लाइट जलाकर पेशाब किया, फिर लाइट बंद कर दी। मैंने थोड़ा दूर जाकर पेशाब किया। पूछा, “चाय पिएँगी?” दीदी ने हाँ में सिर हिलाया। हमने चाय पी, और वापस बर्थ पर आ गए।

2 बजे बस चली। मैं बर्थ पर चढ़ा, तभी बस जोर से हिली। मैं जानबूझकर दीदी के ऊपर गिर गया। मेरा खड़ा लंड उनके पेट से टकराया। दीदी गुस्से में बोलीं, “कैसे चढ़ता है, तुझे आज हो क्या गया है?”

मैंने मजाक में कहा, “हम क्या करें, जो होना चाहिए वो तो हो ही नहीं रहा।”

दीदी मुस्कुराईं, “क्या नहीं हो रहा?”

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मैंने शरमाते हुए कहा, “कुछ नहीं।” और बेडशीट में लेट गया।

दीदी बोलीं, “ठंड लग रही है, तू पैर क्यों रगड़ रहा है?”

मैंने हँसते हुए कहा, “तुझमें आग लगी है क्या, जो ठंड नहीं लग रही?”

दीदी ने पलटकर कहा, “आग तुझमें लगी है, फिर भी ठंड लग रही है।”

मैंने हिम्मत करके कहा, “अगर आग लगी है, तो बुझा दे।”

दीदी शरमाईं, गुस्से में बोलीं, “कोई अपनी बहन से ऐसे बात करता है?”

मैंने कहा, “सब समझ रही है, फिर छेड़ क्यों रही थी?”

दीदी बोलीं, “मैंने कब छेड़ा? मैं तो तेरे सवाल का जवाब दे रही हूँ।”

मैंने कहा, “तू सब समझ रही है। ये सब तेरी वजह से हुआ। इस ड्रेस में तू इतनी सेक्सी लग रही है, और मैं तेरे साथ सो रहा हूँ।”

दीदी बोलीं, “कोई अपनी बहन के बारे में ऐसा सोचता है?”

मैंने कहा, “तेरी गलती नहीं, तू है ही इतनी खूबसूरत।”

दीदी ने हँसते हुए कहा, “खूबसूरत हूँ, इसमें मेरी क्या गलती?”

मैंने कहा, “इसीलिए तो ये सब हो रहा है। सच में दीदी, आज तू बहुत हॉट लग रही है।”

दीदी बोलीं, “पहले भी तो ऐसे ही तैयार होती थी।”

मैंने कहा, “पता नहीं, आज बस प्यार हो गया।”

दीदी ने मजाक में कहा, “प्यार या कुछ और?”

मैंने हँसते हुए कहा, “हाँ, वही।”

दीदी बोलीं, “तो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ कर ले।”

मैंने कहा, “मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।”

दीदी चौंकी, “क्यों? शहर में तो सबके होते हैं।”

मैंने कहा, “आज तक कोई ऐसी मिली नहीं। कोशिश भी नहीं की।”

दीदी ने पूछा, “क्यों?”

मैंने कहा, “पढ़ाई पर असर पड़ेगा, और डर भी लगता है।”

दीदी बोलीं, “ये तो है। मतलब तूने आज तक कुछ नहीं किया?”

मैंने कहा, “नहीं। तूने किया?”

दीदी ने शरमाते हुए कहा, “हाँ, लेकिन सिर्फ बात। कोचिंग में मेरा एक बॉयफ्रेंड था।”

मैंने पूछा, “अब बात नहीं होती?”

दीदी बोलीं, “नहीं, ब्रेकअप हो गया।”

मैंने कहा, “सिर्फ बात? उसने कभी कुछ और नहीं कहा?”

दीदी ने कहा, “हाँ, कहता था। लेकिन मौका नहीं मिला, और घर-समाज का डर भी था।”

मैंने पूछा, “तुझे कभी मन करता है?”

दीदी बोलीं, “करता है, तो क्या करें?”

मैंने हिम्मत करके कहा, “मेरा भी मन करता है। आज मौका है, क्यों ना हम दोनों अपनी आग बुझा लें?”

दीदी ने गंभीर होकर कहा, “हम भाई-बहन हैं, ऐसा नहीं कर सकते।”

मैंने कहा, “किसी और के साथ मौका नहीं मिलेगा, डर भी लगेगा। यहाँ कोई नहीं जानेगा।”

दीदी बोलीं, “घर पर पता चल गया तो?”

मैंने कहा, “हम संभलकर रहेंगे।”

दीदी ने कहा, “ठीक है, लेकिन अभी नहीं।”

मैंने पूछा, “क्यों?”

दीदी बोलीं, “पहली बार दर्द होता है, और बस में ठीक नहीं।”

मैंने कहा, “ठीक है, लेकिन अभी आग लगी है।”

दीदी बोलीं, “कंट्रोल कर।”

लेकिन मुझसे रहा नहीं गया। मैं झट से दीदी के ऊपर चढ़ गया। उनके होंठों पर अपने होंठ रखकर चूमने लगा। एक हाथ से उनके पेट को सहलाने लगा, पैरों से उनकी जांघों को। दीदी भी मेरा साथ देने लगीं, उनकी उंगलियाँ मेरी पीठ पर फिरने लगीं। मैं उनके गाल, गर्दन, कानों को चूम रहा था। उनके बूब्स को सूट के ऊपर से दबाया, जांघों को सहलाया, गाँड के कूल्हों को मसला। दीदी की साँसें तेज हो रही थीं, वो हल्की सिसकारियाँ ले रही थीं, “उह… जतिन… धीरे…”

पाँच मिनट तक मैंने उन्हें चूमा, सहलाया। फिर दीदी ने मुझे धक्का देकर अलग किया। बोलीं, “मेरा कपड़ा खराब हो जाएगा। पानी निकलने वाला है।”

मैंने कहा, “दूसरा बदल लेना।”

दीदी बोलीं, “एग्जाम के बाद कहाँ बदलूँगी?”

मैंने कहा, “ठीक है, लेकिन मेरा माल तो निकलने दे।”

दीदी ने हँसते हुए कहा, “खुद निकाल ले, नहीं तो मेरा हाथ गंदा होगा।”

मैंने कहा, “अगर तूने नहीं किया, तो तेरा कपड़ा और गंदा होगा।”

दीदी बोलीं, “ठीक है, कर ले अपनी मनमानी।”

मैंने फिर से दीदी को सहलाना शुरू किया। उनकी लैगिंग्स को जांघों तक खींच दिया। काली पैंटी में उनकी चूत का उभार साफ दिख रहा था। मैंने पैंटी के ऊपर से उनकी चूत को सहलाया, मसला। दीदी की साँसें और तेज हो गईं, वो सिसकारियाँ ले रही थीं, “आह… जतिन… उफ…” मैंने धीरे से उनकी पैंटी नीचे सरकाई। उनकी गोरी, फूली हुई चूत देखकर मेरा लंड और सख्त हो गया। हल्की-हल्की झांटें, गुलाबी चूत, जैसे कोई कसी हुई फुद्दी हो। मैंने चूत के दाने को रगड़ा, दीदी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उह… आह… बस कर…”

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उधर दीदी ने मेरे ट्राउजर में हाथ डाला, मेरा लंड पकड़कर मसलने लगीं। मेरा माल निकलने वाला था। मैंने बैग से रूमाल निकाला, अपने वीर्य को पोंछा। थोड़ी देर बाद दीदी भी झड़ गईं। उनकी चूत से गर्म पानी बह रहा था। मैंने रूमाल से उनकी चूत साफ की। रूमाल पूरा भीग गया। दीदी ने कहा, “इसे फेंक दे।” मैंने खिड़की से बाहर फेंक दिया।

अब हम दोनों ठंडे हो गए थे। समय देखा, 3:23 बजे थे। हम एक-दूसरे से लिपटकर सो गए। सुबह 5:19 बजे दीदी की आँख खुली। वो मुझसे लिपटी थीं। थोड़ी देर बाद बस स्टॉप पर रुकी। हम फ्रेश होने शौचालय गए, फिर होटल में नाश्ता किया।

एग्जाम के बाद दीदी ने कहा, “आज ही घर चलते हैं।” लेकिन दीवाली की भीड़ की वजह से बस या ट्रेन में सीट नहीं मिली। मैंने दीदी को समझाया, “कल चलेंगे।” पापा को फोन करके बता दिया। मैंने अगले दिन शाम की बस का डबल स्लीपर टिकट बुक कर लिया। रात गुजारने के लिए पास के होटल में एक रूम बुक किया, जिसमें दो बेड थे। होटलवाले को हमारी आईडी से पता चला कि हम भाई-बहन हैं।

शाम को हम घूमने निकले। 8 बजे डिनर करके लौट रहे थे, तभी दीदी ने पूछा, “आज रात का क्या इरादा है?”

मैंने हँसते हुए कहा, “इरादा तो खराब है, लेकिन कंट्रोल में हूँ।”

दीदी बोलीं, “कभी भी आउट ऑफ कंट्रोल हो सकता है।”

मैंने कहा, “क्यों, कोई बात?”

दीदी ने कहा, “सुरक्षा कवच नहीं लिया, तो गड़बड़ हो सकती है।”

मैं समझ गया। पास के मेडिकल स्टोर से मैनफोर्स कॉन्डम का पैकेट, दो आई-पिल, और रिवाइटल की गोली ली। होटल पहुँचे, 8:38 बज रहे थे।

कमरे में घुसते ही मैंने गेट बंद किया। दीदी को पीछे से पकड़कर उनकी गर्दन पर दुपट्टा हटाकर चूमने लगा। दीदी बोलीं, “आराम से, आज रात तो तेरा ही है।” हम दोनों बाथरूम से फ्रेश होकर आए। एक ही बेड पर लेट गए। मैंने दीदी के होंठों पर होंठ रखे, गहरी लिप-किस शुरू की। मेरे हाथ उनके बूब्स, पेट, जांघों, और गाँड पर फिर रहे थे। दीदी मेरे लंड को ट्राउजर के ऊपर से सहला रही थीं। उनकी साँसें तेज थीं, “उह… जतिन… धीरे… आह…”

मैंने दीदी की लैगिंग्स उतारी। इस बार वो भूरी पैंटी में थीं। मैंने उनका सूट भी उतार दिया। वो ब्रा और पैंटी में थीं। मैंने अपना शर्ट और ट्राउजर उतारा, अब अंडरवियर में था। दीदी की ब्रा खोली, उनके गोरे, 34C के बूब्स उछलकर बाहर आए। मैं उनके निप्पल्स को चूसने लगा, एक हाथ से उनकी चूत को पैंटी के ऊपर से रगड़ा। दीदी सिसकारियाँ ले रही थीं, “आह… उफ… जतिन… और जोर से…”

मैंने उनकी पैंटी उतारी। उनकी गुलाबी चूत चमक रही थी। मैंने चूत के दाने को रगड़ा, फिर उंगली अंदर डाली। दीदी की चूत टाइट थी, वो कराह उठीं, “उह… दर्द हो रहा है…” मैंने धीरे-धीरे उंगली चलाई, उनके बूब्स चूसते रहा। दीदी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आह… उफ… जतिन… और कर…”

मैं झड़ने वाला था। बाथरूम जाकर माल निकाला। वापस आया, दीदी अभी तक नहीं झड़ी थीं। मैंने फिर से उनकी चूत को सहलाया, बूब्स चूसे। दीदी बोलीं, “मेरा पानी निकलने वाला है…” और वो झड़ गईं। उनका गाढ़ा, सफेद पानी चूत से बह रहा था। समय देखा, 9:56 बजे थे।

मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। मैंने दीदी की चूत में उंगली डाली, लेकिन टाइट होने की वजह से दर्द हो रहा था। मैंने चूत के दाने को रगड़ा, बूब्स चूसे। दीदी फिर गर्म हो गईं, बोलीं, “अब मत तड़पा… लंड डाल दे… मेरी चूत का सिल तोड़ दे…”

मैंने अपना अंडरवियर उतारा। मेरा 6 इंच लंबा, 2 इंच मोटा लंड तैयार था। दीदी पूरी नंगी थीं, उनकी चूत कामरस से चमक रही थी। मैं उनके पैरों के बीच आया, टाँगें फैलाईं। लंड को चूत की दरार पर रगड़ा, वो गीली हो चुकी थी। दीदी ने अपनी चूत को फैलाया। मैंने लंड सेट किया, धीरे से धक्का मारा। लंड फिसल गया। दीदी ने लंड पकड़कर चूत पर सेट किया। मैंने उनकी कमर पकड़ी, जोर से धक्का मारा। सुपाड़ा अंदर घुसा, दीदी की चीख निकल गई, “आह… मर गई…”

मैंने उनके होंठों पर होंठ रखकर चीख दबाई। अगला धक्का मारा, 3 इंच लंड अंदर गया। दीदी कराह रही थीं, “उह… दर्द हो रहा है…” मैंने लिप-किस जारी रखी। तीसरा धक्का मारा, पूरा 6 इंच लंड चूत में समा गया। दीदी की आँखों से आंसू निकल आए। उनकी चूत टाइट थी, लंड कसकर फँसा था। दीदी बोलीं, “निकाल… बहुत दर्द हो रहा है…”

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थोड़ी देर रुका, फिर धीरे-धीरे लंड हिलाया। दीदी का दर्द कम हुआ। मैंने धक्के शुरू किए। दीदी भी कमर हिलाने लगीं, “आह… उफ… जतिन… और जोर से…” मैंने स्पीड बढ़ाई। चूत की गर्मी और टाइटनेस से मेरा लंड पागल हो रहा था। दीदी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह… उह… ई… मर गई… चोद दे…”

करीब 10 मिनट तक मैंने उन्हें चोदा। दीदी बोलीं, “जल्दी… मैं झड़ने वाली हूँ…” मैंने स्पीड बढ़ाई। 7-8 धक्कों के बाद दीदी झड़ गईं। उनकी चूत से पानी बह रहा था, लंड ढीला पड़ गया। लेकिन मैं नहीं झड़ा था। मैंने लंबे-लंबे धक्के मारने शुरू किए। दीदी कसकर सिसकार रही थीं, “आह… उफ… और चोद…”

10 मिनट बाद मैं भी झड़ने वाला था। दीदी फिर से अकड़ गईं। मैं उनकी चूत में ही झड़ गया। हम दोनों का गर्म वीर्य मिलकर बह रहा था। दीदी निढाल होकर लेट गईं, मैं उनके ऊपर। समय देखा, 11:13 बजे थे। डेढ़ घंटे की जबरदस्त चुदाई थी।

हम बाथरूम गए, फ्रेश हुए। दीदी को आई-पिल दी, दोनों ने रिवाइटल खाई। दीदी बोलीं, “4 बजे का अलार्म लगा। सुबह फिर चुदाई करेंगे।” मैंने हँसते हुए कहा, “बस में?” दीदी बोलीं, “जो तू चाहे।”

मैंने पूछा, “चुदाई कैसी लगी?”

दीदी बोलीं, “दर्द हुआ, लेकिन मजा आ गया। तू सही कहता था, इससे बेहतर मौका नहीं मिलता।”

मैंने कहा, “घर पर मौका नहीं मिलेगा।”

दीदी बोलीं, “वो सब हो जाएगा।”

सुबह 4 बजे अलार्म बजा। दीदी को जगाया। हम फिर लिपट गए। मैंने उनकी ब्रा और पैंटी उतारी, वो मेरे अंडरवियर के ऊपर से लंड सहलाने लगीं। मैंने उनकी चूत को रगड़ा, बूब्स चूसे। दीदी सिसकार रही थीं, “आह… उफ… जतिन… डाल दे…” मैंने कॉन्डम पहना, दीदी की टाँगें फैलाईं, और लंड चूत में डाला। इस बार कम दर्द हुआ। मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए, फिर स्पीड बढ़ाई। दीदी कमर उछाल रही थीं, “आह… उह… चोद… और जोर से…”

एक घंटे तक हमने अलग-अलग पोजीशन आजमाईं। पहले दीदी को बेड पर लिटाकर चोदा, फिर उन्हें मेरे ऊपर बिठाया। दीदी मेरे लंड पर उछल रही थीं, उनके बूब्स हिल रहे थे। मैंने उनके कूल्हे पकड़े, जोर-जोर से धक्के मारे। दीदी की सिसकारियाँ गूँज रही थीं, “आह… उफ… मर गई… चोद दे…” हम दोनों फिर झड़ गए।

सुबह 8 बजे उठे, नहाए, घूमने निकले। दोपहर 2 बजे होटल लौटे। एक बार फिर चुदाई की। दीदी को बेड पर उल्टा लिटाया, उनकी गाँड उठाई, और पीछे से चूत में लंड डाला। दीदी की चूत अब लाल हो चुकी थी, लेकिन वो मजे ले रही थीं, “आह… जतिन… और जोर से…”

3:30 बजे होटल खाली किया, बस स्टॉप पहुँचे। रात को बस में सो गए। 1 बजे दीदी ने मुझे जगाया। हम फिर लिपट गए, लिप-किस शुरू की। दीदी ने मेरे ट्राउजर में हाथ डाला, लंड मसलने लगीं। मैंने उनकी लैगिंग्स में हाथ डाला, चूत रगड़ी। बस रुकी, 15 मिनट का स्टॉप था। हम पेशाब करने उतरे। दीदी को जगह नहीं मिली, तो मैं उन्हें बायपास रोड पर ले गया। दीदी मेरे सामने पेशाब करने लगीं।

वापस बस में आए। हम फिर लिपट गए। दीदी ने मेरे लंड को मसला, मैंने उनकी चूत को। चलती बस में चुदाई शुरू की। दीदी की चूत फूलकर लाल हो गई थी, लेकिन रिवाइटल की गोली की वजह से दर्द कम था। मैंने उन्हें बर्थ पर लिटाया, लंड चूत में डाला। दीदी सिसकार रही थीं, “आह… उफ… जतिन… चोद…” हम दोनों फिर झड़ गए।

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