मेरी उम्र 28 साल है। मेरा रंग सांवला है, लेकिन लोग कहते हैं कि मेरे नैन-नक्श इतने आकर्षक हैं कि कोई भी मुझे देखकर ठिठक जाए। मैं दुबली-पतली, लंबी और इकहरे बदन की हूँ। मेरी पतली कमर मेरे सौंदर्य को और निखार देती है, जैसे सिर से पाँव तक मुझे किसी मूर्तिकार ने तराशा हो। मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि जब वो मुझे शादी से पहले देखने आए थे, तो मेरी कद-काठी देखते ही मोहित हो गए थे। फिर जब मेरी सूरत देखी, तो उनका दिल पूरी तरह से हार गया। मेरी शादी 19 साल की उम्र में हुई थी। अब मैं एक 6 साल के बेटे की माँ हूँ, जिसका नाम है रोहन। उसके बाद मैं दोबारा गर्भवती नहीं हुई। हमने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर कमी कहाँ है। ना ही इस बारे में कोई बात हुई।
जब भी मैं अपने पति, जिनका नाम राहुल है, से और बच्चे की बात करती, वो टालमटोल कर देते। कहते, “एक लाडला है, वही काफी है। और बच्चे नहीं होंगे तो क्या? बस, उसी का ख्याल रखो।” लेकिन मेरे दिल में एक अधूरी ख्वाहिश हमेशा सुलगती रही। मुझे लगता था कि कम से कम दो-तीन बच्चे तो होने ही चाहिए। मैं इस मामले में ना तो तृप्त थी, ना ही संतुष्ट। मेरे मन में एक या दो और बच्चों की माँ बनने की तीव्र लालसा थी, जो दिन-रात मुझे बेचैन करती थी।
मेरी एक पड़ोसन, शीला, ने मुझे सलाह दी, “तुम राहुल को लेकर अस्पताल जाओ। कुछ चेकअप करवाओ। इलाज असंभव नहीं है। तुम एक बच्चा पैदा कर चुकी हो, तो जाहिर है कोई छोटी-मोटी खराबी होगी। इलाज हो गया, तो तुम फिर से माँ बन सकती हो।” मैंने ये बात राहुल को बताई, तो उन्होंने मुझे डाँट दिया। बोले, “डॉक्टरों के चक्कर में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। और बच्चों की जरूरत भी मुझे नहीं। तुम्हें इतनी क्यों बेचैनी हो रही है कि पड़ोस में जाकर रोना रो रही हो? भगवान ने एक बेटा दिया है, उसी को अच्छे से पालो और खुश रहो।” ये बात पिछले साल की है।
राहुल एक अस्पताल में नौकरी करते हैं। कभी दिन की ड्यूटी होती है, तो कभी रात की। मेरे कोई देवर-जेठ नहीं हैं। दो ननदें हैं और मेरे ससुरजी, जिनका नाम रामलाल है। एक ननद की शादी मुझसे पहले हो चुकी थी, और दूसरी की पिछले साल। रोहन को हमने स्कूल में डाल दिया है। वो पढ़ाई में बहुत तेज है, और मुझे उससे बहुत प्यार है। मैं उसके खाने-पीने, कपड़ों का पूरा ध्यान रखती हूँ। फिर भी मेरा मन नहीं भरता। हर वक्त यही ख्याल आता कि काश, एक और बच्चा हो जाता। बेटी ही सही। ये लालसा मेरे मन से जाती ही नहीं थी।
धीरे-धीरे ये चाहत मेरे मन को बहकाने लगी। मेरी नीयत बिगड़ने लगी। मैं सोचने लगी कि अगर राहुल नहीं, तो उनके किसी दोस्त से शारीरिक संबंध बनाकर एक-दो बच्चे पैदा कर लूँ। इस सोच में मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। मैंने कभी ये नहीं सोचा कि शायद राहुल के वीर्य में खराबी हो, या मेरी बच्चेदानी में कोई दिक्कत हो। बस, यही सोचती रही कि किसी गैर मर्द से सहवास करूँगी, तो मेरी ये लालसा पूरी हो जाएगी।
राहुल के कई दोस्त हैं। दो दोस्त, अजय और संजय, इतने करीबी हैं कि अक्सर घर आते हैं। जब राहुल ने मुझे पूरी तरह निराश कर दिया, तो मेरा ध्यान इन दोनों की ओर गया। दोनों शादीशुदा हैं, और दोनों के दो-दो बच्चे हैं। मैं उनसे कभी पर्दा नहीं करती थी। राहुल के सामने भी हँस-बोल लेती थी। उनकी नजरों में मेरे यौवन की तारीफ साफ झलकती थी, लेकिन पहले मैं इसे नजरअंदाज कर देती थी, क्योंकि मुझे उनकी जरूरत महसूस नहीं होती थी। राहुल हृष्ट-पुष्ट हैं, मेरी पसंद के मर्द हैं। लेकिन जब से उन्होंने मुझे निराश किया, वो मेरी नजरों में बुरे बन गए। और इसीलिए मैं उनके दोस्तों की ओर खिंचने लगी।
पहले जब राहुल के दोस्त आते और वो घर पर नहीं होते, तो वो लौट जाते थे। लेकिन अब मैं उन्हें रोकने लगी। अगर राहुल घर पर न हों, तो मैं कहती, “अरे, बैठो ना। चाय पी लो।” वो मेरे अनुरोध को सौभाग्य समझकर बैठ जाते। चाय के बहाने मैं उन्हें कुछ देर रोकती। मुस्कुराकर बातें करती। कभी उनकी बीवियों के बारे में पूछती, तो कभी उनकी गर्लफ्रेंड्स की बात करके छेड़ती। वो मेरी बातों का मजा लेते और खुद भी हँसी-मजाक करते। दोनों मेरे रूप-सौंदर्य के सामने नतमस्तक थे। मैं भी उनके मर्दाना अंदाज के सामने झुकने को तैयार थी। लेकिन मेरी लज्जा आड़े आ रही थी।
हम धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिंच रहे थे। हालाँकि, मैं दोनों से एकसाथ संबंध बनाने की जरूरत नहीं महसूस करती थी। मैं बदनाम होना नहीं चाहती थी। मैंने दोनों के सामने चारा डाल दिया था। जो पहले लपके, वो मेरा। ये मैंने भाग्य पर छोड़ दिया था। दोनों एकसाथ कभी नहीं आए। एक-दो बार ऐसा हुआ, लेकिन मैंने उन्हें बैठने को नहीं कहा, और ना ही वो रुके। दोनों अपनी-अपनी चाल चल रहे थे।
मेरे ससुरजी, रामलाल, चार साल पहले एक हादसे में अपना दायाँ पंजा खो चुके हैं। इसीलिए वो अब काम-धंधा नहीं करते। जरूरत भी क्या है? मकान अपना है, और राहुल अच्छा कमा रहा है। रामलाल की उम्र करीब 47 साल है। दिनभर घर में पड़े-पड़े ऊब जाते हैं, तो शाम को चार बजे बाजार घूमने निकल जाते हैं। चलने में दिक्कत होती है, तो धीरे-धीरे चलते हैं। लौटने में उन्हें दो-तीन घंटे लग जाते हैं। यही वो समय था, जब मैं राहुल के दोस्तों से हँसी-मजाक करती थी। वो हर रोज नहीं आते थे, लेकिन कभी-कभी चले आते।
एक शाम मैं अजय के साथ बैठी चाय पी रही थी। हम दोनों एक-दूसरे को ललचाई नजरों से देख रहे थे। आधा घंटा बीत चुका था। उस दिन जब वो जाने को उठा, तो पहली बार उसने अपनी चाहत जाहिर की। बोला, “जाने का मन ही नहीं कर रहा। जी चाहता है, तुम्हारे साथ यहीं बैठा रहूँ।” मैं मुस्कुरा दी। ठीक उसी वक्त ससुरजी आ गए। उस दिन वो सिर्फ एक घंटे में लौट आए थे। अजय को देखकर वो चला गया। चाय की दो प्यालियाँ देखकर ससुरजी ने कुछ तो सोचा होगा। विदाई के वक्त मेरी मुस्कान कुछ अलग थी। ससुरजी का शक करना स्वाभाविक था। उस वक्त उन्होंने कुछ कहा नहीं।
रोहन अपने दादाजी यानी ससुरजी से बहुत घुला-मिला है। ज्यादातर वक्त वो उनके पास ही पढ़ता-खेलता है। खाना खा चुका हो, तो भी उनके साथ एक-दो कौर जरूर खाता है। उसे नींद भी ससुरजी के पास ही आती है। जब राहुल नाइट ड्यूटी पर होते हैं, तो मैं रोहन को सोने के बाद अपने बिस्तर पर ले आती हूँ। अगर नाइट ड्यूटी नहीं होती, तो उसे ससुरजी के पास ही सोने देती हूँ। उस दिन की बात नहीं, अगले दिन जब राहुल की नाइट ड्यूटी थी, तब ससुरजी ने कुछ कहा। खाना-पीना हो चुका था। रोहन सो चुका था। ससुरजी भी सोने की तैयारी कर रहे थे। मैं रोहन को उठाने गई, तो उन्होंने पूछा, “कल वो अजय कैसे बैठा था? क्या कह रहा था?”
मैंने जवाब दिया, “मैं चाय पीने ही जा रही थी कि वो आ गया। मैंने उसे बताया कि राहुल अभी ड्यूटी से नहीं आए। बस, यूँ ही कह दिया कि चाय पी लो। वो रुक गया। मैंने एक और प्याली ले आई। अपनी चाय उसे दे दी।” मैं रुकी, फिर तुरंत बोली, “वो किसी विशेषज्ञ के बारे में बता रहा था। कह रहा था कि उसे दिखा लो। कोई खराबी होगी, इलाज से ठीक हो जाएगी। तभी आप आ गए, और वो चला गया।”
ससुरजी बोले, “मेरे आते ही वो चला गया। इसीलिए मैं सोचने को मजबूर हूँ।” फिर उन्होंने कहा, “बहू, यहाँ बैठो। मैं तुम्हें समझाता हूँ। आ जाओ।”
मैं हिचक गई। वो मेरे ससुर थे। उनके बराबर बैठने की हिम्मत नहीं हुई। उन्होंने मेरी झिझक समझ ली। दोबारा बैठने को नहीं कहा और बोलने लगे, “देखो, ना तुममें कोई खराबी है, ना मेरे बेटे में। राहुल ही बेवकूफी कर रहा है। इसीलिए लोग सोच रहे हैं कि अब तुम्हें बच्चे नहीं होंगे। मैंने उसे कितनी बार समझाया कि नाइट ड्यूटी मत कर, लेकिन वो मानता ही नहीं। रातभर अस्पताल में ड्यूटी करेगा, यहाँ कुछ करेगा नहीं, तो बच्चे कैसे होंगे?”
उनकी बात सुनकर मैं लजा गई। एक नजर उनकी ओर देखा और चुप खड़ी रही। वो सही कह रहे थे। राहुल नाइट ड्यूटी करके सुबह आते, दिनभर खर्राटे मारकर सोते, और शाम को फिर चले जाते। नाइट ड्यूटी ना हो, तो मेरे साथ सोते, लेकिन महीने में दो-तीन बार ही संभोग करते। मेरे दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि जब तक जमकर सहवास न हो, गर्भ नहीं ठहरता। गर्भ की बात तो अलग, मैं अपनी जवानी के दौर में थी। मैं अतृप्त महसूस करती थी। मेरा यौवन प्यासा रहने लगा था।
ससुरजी आगे बोले, “आज वो सलाह दे रहा है डॉक्टर के पास जाने की। कल कहेगा कि मैं तुम्हें माँ बना सकता हूँ। मानता हूँ, तुम जवान और खूबसूरत हो। तुम्हें पुरुष का पूरा सहवास चाहिए। माँ बनने की लालसा हर औरत में होती है। तुम्हें एक बच्चा हो चुका है, लेकिन एक ही काफी नहीं। कम से कम दो-तीन बच्चे तो होने चाहिए। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुम उसके दोस्तों से मेलजोल बढ़ाओ और उनके सहवास से माँ बनो। ये आजकल के लड़के बिन पेंदी के लोटे हैं। कभी इधर लुढ़कते हैं, कभी उधर। इनमें गंभीरता नहीं होती। ये अपने दोस्तों तक बात पहुँचा देंगे। फिर बदनामी होगी। तुम उससे बात करना बंद कर दो। अगर कोई गंभीर मर्द होता, तो मैं मना नहीं करता। माँ बनने के और भी रास्ते हैं।”
मैंने चौंककर पूछा, “क्या…?”
वो मुस्कुराए और बोले, “मुन्ने को लिटाकर आओ, तो बताता हूँ। ऐसा उपाय है कि सोने पर सुहागा। घर की इज्जत घर में रहेगी, और तुम्हें दो-तीन बच्चे भी मिल जाएँगे। तुम्हारी अधूरी प्यास भी शांत हो जाएगी।”
मुझे माँ बनने का रास्ता चाहिए था। मैंने मन बना लिया कि ससुरजी के पास वापस आऊँगी। मैंने रोहन को उठाया। तभी ससुरजी ने मेरे उभारों को छूते हुए पूछा, “मुन्ने को लिटाकर आओगी ना?”
मैं हड़बड़ा गई। रोहन मेरे हाथ से छूटते-छूटते बचा। लेकिन जब मैं उनके कमरे से बाहर निकली, तो सोचने लगी। ससुरजी का सहवास आसानी से मिल रहा है। बुरा तो नहीं। घर की इज्जत घर में रहेगी। वो खुद किसी से कहेंगे, तो पहले उनकी ही बदनामी होगी। मन से तो मैं तैयार थी। लेकिन रोहन को लिटाने के बाद मेरे कदम बाहर की ओर नहीं बढ़े। कुछ देर खड़ी रही। हिम्मत जुटाती रही कि मेरे पाँव उनके कमरे की ओर चल पड़ें। लेकिन हमारे रिश्ते ने मेरे पाँवों में बेड़ियाँ-सी डाल दी थीं। मेरा मन और तन एक अजीब-सी गुदगुदी से भर गया था।
बस एक दरवाजा लाँघना था, और मैं ससुरजी के कमरे में होती। लेकिन मुझे लग रहा था कि ये सफर बहुत लंबा है। बहुत देर तक हिम्मत नहीं जुटा पाई। आखिरकार, मैंने स्विच ऑफ किया और रोहन के पास बिस्तर पर बैठ गई। बैठ तो गई, लेकिन लेटने का मन नहीं था। दरवाजा खुला था। अगर राहुल नाइट ड्यूटी पर न हों, तो मैं बीच का दरवाजा बंद कर लेती थी। ससुरजी के कमरे में बत्ती जल रही थी। शायद वो मेरे आने का इंतजार कर रहे थे। निराश होकर वो भी उठे और बत्ती बुझाकर लेट गए। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों तले दबा लिया। ससुरजी ने जितना मौका दिया था, उससे आगे बढ़ने में शायद वो भी हिचक रहे थे। हो सकता है, मेरी असहमति समझकर पीछे हट गए हों। मैं पछताने लगी। मन अभी भी कशमकश में था कि उनके पास जाऊँ या नहीं।
एक लंबी साँस छोड़कर मैंने अपना माथा घुटनों में झुका लिया। एक तरफ माँ बनने की लालसा थी, तो दूसरी तरफ हमारा पवित्र रिश्ता। मैं अधर में लटक गई थी।
थोड़ी देर बाद ससुरजी की आवाज आई, “बहू, आज पानी मेरे पास नहीं रखा क्या?”
मैंने तुरंत कहा, “अभी लाती हूँ।” और झट से उठ पड़ी। स्विच ऑन करके नल की ओर तेजी से गई। मुझे अच्छे से याद था कि रोहन को उठाने गई थी, तो रोज की तरह पानी रख आई थी। फिर भी ससुरजी ने पानी माँगा। मैंने इसे उनका स्पष्ट न्योता माना। मुझे भी उनके पास जाने का बहाना मिल गया। मैंने जानबूझकर ये भुला दिया कि पानी तो रख ही आई थी। दोबारा पानी लेकर गई, तो फँसना तय था। मैंने रोहन के लिए बत्ती जला दी थी, ताकि अँधेरे में आँख खोले तो डर न जाए। पानी रखने के लिए झुकी, तो मैंने कहा, “पानी तो रख ही आई थी। देखिए, रखा है।”
ससुरजी ने मेरी बाँह पकड़कर कहा, “हाँ, पानी तो रखा था। मैंने पानी के बहाने तुम्हें ये पूछने बुलाया कि क्या तुमने मेरी बात का बुरा मान लिया?”
मैंने कहा, “नहीं तो।”
वो बोले, “अगर बुरा नहीं माना, तो आओ, बैठ जाओ।” कहते हुए उन्होंने मेरी बाँह खींची। मैं संभल नहीं पाई, या यूँ कहें कि मैंने संभलना नहीं चाहा। लड़खड़ाकर उनके पास बैठ गई। वो बोले, “शरमाओ मत, बहू। ये तो तुम्हारी समस्या के समाधान की बात है। तुमने जो कदम उठाना चाहा, वो गलत नहीं था। गलत वो लड़का है, जिसकी ओर मैंने तुम्हारा झुकाव देखा। तुम इतनी सुंदर हो कि तुम्हें किसी का भी सहवास मिल जाएगा। लेकिन बाहर के किसी मर्द की बाँहों में जाओगी, तो उसके दोस्त भी तुम्हें अपनी बाँहों में बुलाएँगे। मजबूरी में तुम्हें औरों को भी खुश करना पड़ेगा। इनकार करोगी, तो चिढ़कर वो तुम्हें बदनाम करेंगे। नहीं इनकार करोगी, तो भी बात फैलेगी। तुम चालू औरत कहलाओगी। खानदान की नाक कटेगी। मैं घर का सदस्य हूँ। हमारे रिश्ते ऐसे हैं कि किसी को शक भी नहीं होगा। मैं तुम्हारी बदनामी की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि मेरा खुद का मुँह काला हो जाएगा।”
वो रुके, फिर बोले, “अब शरम छोड़ो और मेरी बाँहों में आ जाओ।”
उनके कहते ही उन्होंने मुझे अपनी ओर खींच लिया। मैंने बिल्कुल विरोध नहीं किया और उनके सीने में दुबक गई। समर्पण ही मेरा एकमात्र रास्ता था। ससुरजी बूढ़े नहीं थे। 47 की उम्र में वो अधेड़ थे, लेकिन जवानी का जोश अभी बरकरार था। उनके चेहरे पर उम्र का असर कम ही दिखता था। वो मुझसे एक पीढ़ी ऊपर थे, लेकिन उनकी सुंदरता की समझ और आधुनिक अंदाज मुझे उस रात पता चला। मैं उनके अगले कदम का इंतजार कर रही थी, साँसें थामे। अचानक मेरी रुकी साँस छूट गई।
वो बोले, “क्या हुआ? प्यास बहुत तड़पा रही है ना?” कहते हुए उन्होंने मेरे जिस्म को कसकर भींच लिया। “आह!” मैं कराह उठी। मैंने चेहरा उठाया, लेकिन लज्जा से मेरी पलकें बंद हो गईं। मैं तैयार नहीं थी। तभी ससुरजी ने अपने गर्म होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए। मेरी थरथराती साँस फिर छूट गई। “वाह!” वो बोले, “कितनी हसीन हो तुम। तुम्हारी साँसों की खुशबू चमेली जैसी है।”
उनकी तारीफ सुनकर मेरा मन झूम उठा। लेकिन मैं झेंप गई और आँखें चुरा लीं। उन्होंने मेरी ठोड़ी पकड़कर मेरा चेहरा ऊपर उठाया। मेरी पलकें बंद थीं। मेरी साँसें भारी हो गई थीं। उन्होंने मेरी दोनों आँखों को चूमते हुए कहा, “अब आँखें मत चुराओ, मेरी जान। पलकें खोलो, जरा देखूँ तो तुम्हारी झील-सी आँखों की गहराई।”
उनके डायलॉग सुनकर मुझे हँसी आ गई। मैंने पलकें खोलीं। आँखें मिलते ही मैंने उनके गले में बाँहें डाल दीं और अपनी ठोड़ी उनके कंधे पर टिका दी। वो मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे। मेरी साँसें तेज होने लगीं। वो बोले, “तुम्हारी ये पतली कमर तो कातिल है। जब-जब देखता था, आह भरकर रह जाता था।”
मैंने चुटकी ली, “तो नीयत पहले से ही खराब थी?”
वो तुरंत आवेश में आ गए। मुझे कंधों से पकड़कर चित कर दिया। मेरे पाँव उनकी गोद में सिकुड़े थे। उन्होंने मेरे पंजों को दोनों हाथों में उठाया। पलभर उन्हें घूरकर देखा, फिर जी जान से चूमने लगे। बोले, “तुम्हारे पाँव तो कमल जैसे हैं। ऐसे ही पाँवों को चरणकमल कहते हैं।”
उनकी तारीफ ने मुझे सातवें आसमान पर बिठा दिया। ऐसी तारीफ मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी, राहुल से भी नहीं। ससुरजी मुझे बहुत अच्छे लगे। पाँव छोड़कर उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाले और मुझे उचकाकर उठा लिया। मेरा लंबा जिस्म पुल की तरह बीच से उठ गया। वो मुस्कुराते हुए मेरे पेट को देखने लगे। फिर मेरी नाभि पर होंठ रखकर चूमने लगे। मेरा हर अंग सिहर उठा। नाभि चूमने के बाद उन्होंने मेरी कमर बिस्तर पर रख दी और मेरे उभारों को टटोलने लगे। कमरे में हल्की रोशनी थी। उनके कमरे में भी उसी रोशनी का असर था।
वो बोले, “इन सबको थोड़ी देर के लिए उतार दो ना। ये मजा किरकिरा कर रहे हैं।” कहकर उन्होंने मेरे ब्लाउज का हुक खोलना शुरू किया। मैं चोरी-छिपे उनकी ओर देख लेती थी। मेरी हिचक धीरे-धीरे कम हो रही थी। ब्लाउज और ब्रा उतारने के बाद उन्होंने मेरी साड़ी भी खींच दी। मेरे उभरे हुए उरोजों ने उन्हें इतना आकर्षित किया कि वो पेटीकोट उतारना भूल गए। पहले उन्होंने अपने हाथ मेरे उभारों पर हल्के से रखे। धीरे-धीरे सहलाने लगे। फिर हल्का-हल्का दबाने लगे। दबाव बढ़ता गया। आखिर में उन्होंने जोर से भींच लिया। “उई माँ!” मैं सीत्कार उठी। मैंने उनके हाथों पर हाथ रखकर आँखों से राहत माँगी। वो मान गए। मेरे बगल में बैठ गए और उरोजों को सहलाने लगे।
उनकी कामक्रीड़ा ने मुझे पूरी तरह आनंदित कर दिया था। मैंने फिर अपने निचले होंठ को दाँतों तले दबाया। वो मेरे चेहरे पर झुककर बोले, “अपने होंठों को घायल मत करो। मेरे हवाले कर दो।” मैंने होंठ आजाद किए। तभी उन्होंने अपने होंठों से मेरे होंठ दबाकर चूसना शुरू कर दिया। मेरी साँसें तेज हो गईं। मैं पिंजरे में फँसी मैना की तरह छटपटा रही थी। वो मेरे होंठों का स्वाद ले रहे थे। उन्होंने मेरी एक बाँह उठाकर अपने गले पर लपेट दी। दूसरी बाँह की उँगलियाँ पकड़कर अपने लिंग की ओर ले गए। “तुम्हारा खिलौना ये है। तुम भी खेलो।” अगले ही पल उनका लिंग मेरी मुट्ठी में था। उसका स्पर्श बहुत सुखद था। मैं भयभीत होने की उम्र पार कर चुकी थी।
ससुरजी का कद राहुल से लंबा था। शायद इसीलिए उनका लिंग भी कुछ ज्यादा लंबा था। मोटाई में कोई खास फर्क नहीं था। मैं उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी। होंठों पर दर्द होने लगा, तो मैं उनकी गर्दन पीछे धकेलने लगी। वो समझ गए। मुँह उठाकर मेरी आँखों में देखते हुए बोले, “मजा आ रहा है ना?”
मैंने मुस्कुराकर उनके गाल पर हल्की-सी चपत लगाई और नाक चढ़ाकर बोली, “बहुत मजा आ रहा है।”
वो हँसे, “तुम्हारी ये अदा तो कातिल है।” कहकर उन्होंने मेरी नाक पर एक चुम्मी ले ली।
मैंने पूछा, “आप मेरे साथ कैसा महसूस कर रहे हैं?”
वो बोले, “तुम्हारे सहवास का जो आनंद मुझे मिल रहा है, वैसा पहले कभी नहीं मिला। तुम सुंदरता की मिसाल हो।” कहकर उन्होंने मेरे उरोजों के अग्रभाग को बारी-बारी चूमा, फिर एक को मुँह में ले लिया। मैंने ससुरजी से ऐसी उम्मीद नहीं की थी। राहुल भी पहले मेरे उरोज चूसा करते थे। ससुरजी के मुँह में मेरे उरोज का अग्रभाग गर्मी से भर गया। मेरा रोम-रोम उत्तेजना से खड़ा हो गया। मेरी साँसें रुकने लगीं। उत्तेजना में मेरे होंठों पर सिसकारियाँ उभर आईं। “आह… ओह…”
उन्होंने बारी-बारी दोनों उरोजों को देर तक चूसा। जब होंठ दर्द करने लगे, तो मुँह उठाकर मेरे चेहरे की ओर देखा। मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या हुआ?”
वो बोले, “तुम तो चुप पड़ी हो। कुछ करती रहो, तो मुझे भी विश्राम मिलता रहे। थक गया ना।”
मैं हँस दी। “आप मेरी बारी आने दें तब ना।”
इतना कहते ही उन्होंने मेरे बगल में हाथ डालकर मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया और चित हो गए। मेरा पूरा जिस्म उनके ऊपर फैल गया। मेरे होंठ उनके होंठों से टकराए। मैंने धीरे-धीरे होंठ हिलाए और चूसना शुरू किया। बीच-बीच में मैं उनके होंठों को दाँतों तले दबा लेती। वो पीड़ा से कसमसा उठते। चुम्बन लेते हुए मैंने अपनी कमर से नीचे का हिस्सा तिरछा करके उनके ऊपर से उतार लिया। उनका लिंग कपड़ों के बीच से झाँक रहा था। पहले मैंने उसे पकड़ा, फिर छोड़कर उनके कपड़े उतारने लगी। बस एक ही वस्त्र था। उसे उतारते ही वो पूरी तरह नग्न हो गए। मैंने उनके होंठों से मुँह हटाकर उनके लिंग का पूरा दीदार किया। हाथ से सहलाते हुए जायजा लिया। मेरा अनुमान सही था। उनका लिंग राहुल से ज्यादा लंबा था। मोटाई में उतना ही था।
ससुरजी ने पूछा, “इतने गौर से क्या देख रही हो?”
मैंने उनकी ओर बिना देखे जवाब दिया, “आपका तो बहुत बड़ा है।”
वो बोले, “इससे भी बड़ा होना चाहिए। लिंग जितना लंबा और मोटा होता है, औरत को उतना ही ज्यादा आनंद मिलता है। इसे देखकर घबराओ मत।”
कहकर उन्होंने मेरा चेहरा अपनी ओर खींच लिया। “चेहरा इधर रखो। बहुत सुंदर हो। मुझे जी भरकर देखने दो।”
उन्होंने मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में बाँध लिया। मुझे भी अपना रूप दिखाने में मजा आ रहा था। उत्तेजना से मेरी नासिकाएँ फूल रही थीं। चेहरा तमतमा गया था, जैसे सारा खून चेहरे पर जमा हो गया हो। वो तिरछे होकर मेरा चेहरा झुकाए और मेरे गाल अपने होंठों पर रख लिए। उस पल मैं हमारा रिश्ता पूरी तरह भूल गई। मुझे गर्व हुआ कि मेरा जिस्म और हुस्न मेरे मनपसंद मर्द की बाँहों में है। मैंने उनका गाल चूमा। उनकी बाजुओं को चूमा। उनके चौड़े सीने को बार-बार चूमा। फिर उनके वक्ष पर सिर टिकाकर समर्पण कर दिया।
उनके हाथ मेरे पेट की ओर बढ़े। नाभि पर सहलाने के बाद उन्होंने मेरा पेटीकोट उतार दिया। मैं उनके सीने पर टिकी थी। उन्होंने मेरी पीठ पर बाँहें कसीं और मुझे अपने साथ उठाकर खड़ा कर दिया। हम दोनों पूरी तरह नग्न, एक-दूसरे की बाँहों में बँधे खड़े थे। उनका कठोर लिंग मेरी नाभि से एक इंच नीचे चुभ रहा था। मेरे उरोज उनके जिस्म से दबे थे। उन्होंने मेरी ठोड़ी छूकर मेरा चेहरा ऊपर उठवाया। मैंने होंठों पर गहरा चुम्बन लिया। फिर मुझे अपने से अलग किया। वो मेरा नग्न बदन देखना चाहते थे। दो कदम पीछे हटकर मेरे जिस्म का मुआयना करने लगे। उनके चेहरे पर मेरे बदन का असर साफ दिख रहा था।
मैंने मुस्कुराकर पूछा, “शर्म लग रही है। बैठ जाऊँ?”
उन्होंने बाँहें फैलाकर मेरा स्वागत किया। मैं उनकी बाँहों में गिर पड़ी। ठुनककर बोली, “अब और मत तड़पाइए। मेरा दम घुट रहा है।”
ससुरजी ने मुझे बिस्तर पर लिटाया। उनकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी, लेकिन वो वो चमक नहीं थी जो कहानियों में अतिशयोक्ति लगती है। ये एक भूख थी, जो मेरे जिस्म को देखकर और बढ़ रही थी। मैंने अपनी टाँगें थोड़ी खोल दीं, जैसे उन्हें न्योता दे रही हो। वो मेरे ऊपर झुके और मेरे होंठों को फिर से चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में घुसी, और मैंने भी उनकी जीभ को अपनी जीभ से लपेट लिया। “उम्म… आह…” मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। उनकी साँसें मेरे चेहरे पर गर्म हवा की तरह टकरा रही थीं।
उन्होंने मेरे उरोजों को फिर से सहलाना शुरू किया। मेरे निप्पल कड़े हो चुके थे। वो उन्हें अपनी उँगलियों से हल्के-हल्के मसल रहे थे। “आह… ससुरजी… धीरे…” मैंने कराहते हुए कहा। वो मुस्कुराए और बोले, “तुम्हारी चूचियाँ तो बिल्कुल रसीली हैं। कितनी सख्त हो गई हैं।” उनकी बात सुनकर मेरी शरम और उत्तेजना दोनों बढ़ गईं। उन्होंने मेरे एक निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे निप्पल के चारों ओर गोल-गोल घूम रही थी। “ओह… आह…” मैं सिसक रही थी। मेरा जिस्म उनके हर स्पर्श पर थरथरा रहा था।
उनके हाथ मेरी जाँघों की ओर बढ़े। मेरी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी। उन्होंने अपनी उँगलियाँ मेरी चूत के होंठों पर फिराईं। “हाय… कितनी गीली हो तुम,” वो बोले। उनकी उँगलियाँ मेरी चूत के दाने को छू रही थीं। मैंने अपनी टाँगें और चौड़ी कर दीं। “आह… ससुरजी… ऐसे मत तड़पाओ…” मैंने कहा। वो हँसे और बोले, “अभी तो बस शुरुआत है, बहू।”
उन्होंने अपनी एक उँगली मेरी चूत में डाल दी। “उई… माँ…” मैं चिहुँक उठी। उनकी उँगली धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो रही थी। मैंने अपनी कमर उठाई, जैसे उनकी उँगली को और अंदर लेना चाहती हो। “हाय… और करो…” मैंने कराहते हुए कहा। उन्होंने दूसरी उँगली भी डाल दी। अब उनकी दो उँगलियाँ मेरी चूत में तहलका मचा रही थीं। “पच… पच…” मेरी गीली चूत से आवाजें आ रही थीं। मेरी साँसें तेज हो गई थीं। “आह… ओह… ससुरजी…” मैं बार-बार सिसक रही थी।
वो मेरे ऊपर से हटे और मेरे सामने घुटनों पर बैठ गए। उनकी आँखें मेरी चूत पर टिकी थीं। “कितनी सुंदर चूत है तुम्हारी,” वो बोले। फिर वो झुके और अपनी जीभ मेरी चूत पर रख दी। “हाय… रे…” मैं चीख पड़ी। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को चाट रही थी। वो उसे चूस रहे थे, जैसे कोई रसीला फल खा रहे हों। “आह… ओह… मत रुको…” मैंने कहा। मेरी कमर अपने आप ऊपर-नीचे हो रही थी। उनकी जीभ मेरी चूत में अंदर तक जा रही थी। “पच… पच…” उनकी चाटने की आवाज कमरे में गूँज रही थी।
मैंने उनके सिर को पकड़ लिया और अपनी चूत पर दबा दिया। “हाय… ससुरजी… और चाटो…” मैं पागल हो रही थी। मेरी चूत से रस बह रहा था, और वो उसे चाट रहे थे। मेरे जिस्म में जैसे बिजली दौड़ रही थी। “आह… ओह… मैं गई…” मैं चीखी और मेरा जिस्म झटके खाने लगा। मैंने अपनी पहली चरमसीमा पा ली थी।
ससुरजी उठे और मेरे बगल में लेट गए। उनका लिंग पूरी तरह तना हुआ था। मैंने उसे हाथ में लिया। वो गर्म और कड़ा था। मैंने उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। “उम्म… बहू… ऐसे ही…” वो कराहे। मैंने उनकी ओर देखा और मुस्कुराई। फिर मैं नीचे झुकी और उनके लिंग को अपने मुँह में ले लिया। “आह… रे…” वो सिसक उठे। मैंने उनकी लिंग की टोपी को अपनी जीभ से चाटा। मेरे होंठ उनके लिंग के चारों ओर लिपट गए। मैं उसे धीरे-धीरे चूसने लगी। “उम्म… कितना अच्छा चूसती हो…” वो बोले। मैंने उनकी गोटियों को भी सहलाया। उनकी साँसें तेज हो रही थीं।
“बस करो, बहू… अब और नहीं रुक सकता,” वो बोले और मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैं उनकी गोद में बैठ गई। उनका लिंग मेरी चूत के मुँह पर टकरा रहा था। मैंने धीरे से अपनी कमर हिलाई और उनके लिंग को अपनी चूत में ले लिया। “आह… कितना मोटा है…” मैं सिसकी। उनका लिंग धीरे-धीरे मेरी चूत में समा रहा था। “पच… पच…” मेरी गीली चूत से आवाजें आ रही थीं। मैंने अपनी कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू की। “आह… ओह… ससुरजी…” मैं सिसक रही थी।
वो मेरी कमर पकड़कर मुझे और तेज हिलाने लगे। “हाँ… बहू… ऐसे ही चोदो…” वो बोले। उनकी बात सुनकर मेरी उत्तेजना और बढ़ गई। मैं तेजी से ऊपर-नीचे होने लगी। “पच… पच… फच…” कमरा हमारी चुदाई की आवाजों से गूँज रहा था। मेरे उरोज हवा में उछल रहे थे। ससुरजी ने उन्हें पकड़ लिया और मसलने लगे। “आह… तुम्हारी चूचियाँ तो कड़क हैं…” वो बोले। मैंने उनकी छाती पर हाथ रखे और और तेज हिलने लगी। “ओह… ससुरजी… मैं फिर से… आह…” मैंने दूसरी बार चरमसीमा पाई।
वो मुझे नीचे लिटाकर मेरे ऊपर आ गए। “अब मेरी बारी है,” वो बोले। उन्होंने मेरी टाँगें चौड़ी कीं और अपना लिंग मेरी चूत में डाल दिया। “आह… कितना गहरा…” मैं कराह उठी। वो धीरे-धीरे धक्के मारने लगे। “पच… पच… फच…” उनकी हर धक्के के साथ मेरी चूत से आवाजें आ रही थीं। “उम्म… कितनी टाइट चूत है तुम्हारी…” वो बोले। मैंने अपनी टाँगें उनकी कमर पर लपेट दीं। “आह… ससुरजी… और जोर से…” मैंने कहा।
वो तेजी से धक्के मारने लगे। “हाँ… बहू… ले मेरे लंड को…” वो बोले। मैं उनकी हर धक्के के साथ सिसक रही थी। “आह… ओह… हाय…” मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उन्होंने मेरी एक टाँग अपने कंधे पर रख ली। अब उनका लिंग मेरी चूत में और गहराई तक जा रहा था। “हाय… ससुरजी… फाड़ दो मेरी चूत…” मैं चीख रही थी।
करीब 20 मिनट तक वो मुझे उसी तरह चोदते रहे। फिर उन्होंने मुझे घोड़ी बनने को कहा। मैं घुटनों और हाथों के बल झुक गई। मेरी गाँड उनकी ओर थी। उन्होंने मेरी गाँड को सहलाया और बोले, “क्या मस्त गाँड है तुम्हारी।” फिर उन्होंने अपना लिंग मेरी चूत में पीछे से डाल दिया। “आह… रे…” मैं कराह उठी। वो मेरी कमर पकड़कर जोर-जोर से धक्के मारने लगे। “पच… पच… फच…” उनकी गोटियाँ मेरी जाँघों से टकरा रही थीं। “आह… ससुरजी… और जोर से…” मैं चीख रही थी।
उन्होंने मेरी गाँड पर हल्का-सा थप्पड़ मारा। “लो… और ले…” वो बोले। मैं पागल हो रही थी। मेरी चूत फिर से रस छोड़ने लगी। “आह… मैं फिर से…” मैंने चीखकर तीसरी बार चरमसीमा पाई। ससुरजी भी अब अपने चरम पर थे। “बहू… मैं झड़ने वाला हूँ…” वो बोले। मैंने कहा, “अंदर ही झड़ जाओ… मुझे माँ बनाओ…” उनके धक्के और तेज हो गए। “आह… ले…” वो चीखे और मेरी चूत में झड़ गए। मैंने उनके गर्म वीर्य को अपनी चूत में महसूस किया।
हम दोनों हाँफते हुए बिस्तर पर गिर पड़े। मेरी साँसें अभी भी तेज थीं। ससुरजी मेरे बगल में लेट गए और मेरी कमर सहलाने लगे। “मजा आया?” वो बोले। मैंने मुस्कुराकर उनकी ओर देखा और कहा, “इतना मजा तो कभी नहीं आया।”
उस रात के बाद मैं कभी नहीं भूल सकती। नौ महीने बाद मुझे एक बच्चा हुआ। राहुल को लगा कि ये उनका बच्चा है, क्योंकि वो महीने में दो-तीन बार बिना कंडोम के मेरे साथ सोते थे। ससुरजी का चेहरा राहुल से मिलता-जुलता था। बच्चे का चेहरा देखते ही राहुल की आँखें भर आईं। उन्हें लगा कि ये उनका बच्चा है। उन्हें कभी शक नहीं हुआ। ना ही उन्होंने कभी चेकअप करवाया। और ना ही तीसरा बच्चा चाहा।
अब जब भी मौका मिलता है, मैं ससुरजी की बाँहों में चली जाती हूँ। वो मुझे चोदकर खुश होते हैं, और मैं माँ बनने की लालसा पूरी करके। राहुल को लगता है कि वो मुझे बच्चा दे सकते हैं। इस तरह हम सब खुश हैं।
आपको ये कहानी कैसी लगी? क्या आप भी ऐसी लालसा को पूरा करने का कोई अनुभव साझा करना चाहेंगे?
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