Mirzapur sex story मैं 28 साल की रानी, एक गरीब घर से आई लड़की, जिसकी शादी मिर्जापुर के एक बड़े खानदान में हुई। मेरा पति भुवन राज, उम्र में मुझसे 22 साल बड़ा, यानी 50 का। उसकी ये दूसरी शादी थी, और मैं उसकी दूसरी पत्नी। मेरी सौतेली माँ ने ये रिश्ता तय किया, शायद इसलिए कि गरीबी से छुटकारा मिले। मेरे ससुर जगजीता, 70 साल के, अपाहिज, जो हमेशा चार पहियों वाली व्हीलचेयर पर रहते हैं। फिर था भुवन का जवान बेटा कुलवंत, 25 साल का, हट्टा-कट्टा, जिसका रंग गोरा और आँखें तेज थीं। घर नहीं, महल था। बड़ी जागीर, हवेली, और चार नौकरानियाँ, जिनमें सुधा थी, 22 साल की, जिसके साथ घर के मर्दों के काले कारनामे चलते थे।
जब मैं इस हवेली में आई, तो लगा जैसे सपना सच हो गया। बड़े खानदान की बहू बनना, इज्जत, रुतबा, और हर सुख-सुविधा। चार नौकरानियाँ मेरे इर्द-गिर्द। दिन में सब कुछ शाही था, लेकिन रात ने मेरे सारे अरमान तोड़ दिए। शादी की पहली रात, मैंने दूध का गिलास लेकर भुवन के पास गई। उन्होंने मुझे गले लगाया, और मैंने सोचा, यही वो पल है, जब जिंदगी की हर खुशी मिलेगी। पर आधे घंटे में ही सब बिखर गया।
भुवन ने मेरे कपड़े उतारने शुरू किए। मेरी साड़ी खींची, ब्लाउज के बटन खोले, ब्रा का हुक खोलकर मेरे 34 साइज के चूचों को आजाद कर दिया। मेरी पैंटी नीचे सरकाई, और मेरी चूत को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई। वो मेरी चूचियों पर टूट पड़े, निप्पल को मुँह में लेकर चूसने लगे। “आह… कितनी मुलायम है,” वो बुदबुदाए, और मेरी चूत पर उंगलियाँ फिराने लगे। मेरी चूत गीली हो चुकी थी, गरम-गरम पानी निकल रहा था। मैं सिसकारियाँ लेने लगी, “उफ्फ… आह…” मेरी साँसें तेज हो गईं। उन्होंने मेरी गांड में एक उंगली डाली, फिर दो, फिर तीन। “आह… धीरे… दर्द हो रहा है,” मैंने कहा, पर वो रुके नहीं। मेरी चूत को चाटा, जीभ अंदर तक डाली, और मैं तड़पने लगी। मेरी चूचियाँ दबाईं, निप्पल को हल्के से काटा, और मैंने अपने होंठ दाँतों तले दबा लिए।
मैंने अपने पैर फैलाए, चूत खोल दी, और खुद की चूचियाँ हल्के-हल्के दबाने लगी। “आह… अब डाल दो… मुझे चाहिए,” मैंने सिसकारी भरी। भुवन मेरे ऊपर चढ़े, उनका 6 इंच का लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगा। मैंने तकिया पकड़ लिया, सोच रही थी कि अब दर्द होगा, पर मजा भी आएगा। लेकिन तभी… “छप्प!” उनका सारा माल मेरी चूत के ऊपर ही गिर गया। बिना अंदर गए, बिना चोदे। वो निढाल होकर मेरे बगल में लेट गए। “आज नहीं हो पाएगा, रानी। बहुत टेंशन है,” कहकर वो सो गए। मैं साँसें रोककर अपनी आग बुझाने की कोशिश करती रही। कपड़े पहने और चुपचाप लेट गई।
थोड़ी देर बाद मैं बाहर गई। वहाँ बाबूजी अपनी व्हीलचेयर पर थे। उनकी आँखें मुझे घूर रही थीं। “बहू, सब ठीक है ना?” उन्होंने पूछा। मैं चुप रही, पानी का गिलास लिया, और पीने लगी। “कोई दिक्कत हो तो मुझे बता देना,” उन्होंने कहा। मैं कुछ नहीं बोली और कमरे में वापस आ गई। अगले दिन भी यही हुआ। तीसरे दिन भी। भुवन हर बार चाटते, उंगलियाँ डालते, पर चोद नहीं पाते। उनका लंड खड़ा होता, पर माल बाहर ही गिर जाता। मुझे समझ आ गया—मेरा पति नामर्द है।
इस महल में सब कुछ था—इज्जत, पैसा, रुतबा—बस चुदाई का सुख नहीं। धीरे-धीरे मेरी नजदीकियाँ बाबूजी से बढ़ने लगीं। वो 70 साल के थे, पर उनका जोश जवान था। हर सुबह शिलाजीत वाला दूध पीते, तेल की मालिश करवाते। उनका लंड 7 इंच का, मोटा, सख्त, और ताकत से भरा था। एक दिन मैं उनके कमरे में गई, कुछ काम से। वो अकेले थे। “बहू, इधर आ,” उन्होंने कहा। मैं पास गई। उनकी आँखों में वही चमक थी, जो मैंने सुधा को चोदते वक्त देखी थी। “तुझे खुश रखने वाला चाहिए ना?” उन्होंने धीरे से कहा। मैं शरमा गई, पर मेरी चूत में सनसनी दौड़ गई।
उस रात, जब सब सो गए, मैं बाबूजी के कमरे में गई। उन्होंने मुझे अपनी गोद में खींच लिया। “आह… बाबूजी, ये गलत है,” मैंने कहा, पर मेरी आवाज में कमजोरी थी। “कुछ गलत नहीं, बहू। तू मेरी रानी है,” उन्होंने कहा और मेरी साड़ी खींच दी। मेरी ब्रा खोली, मेरी चूचियाँ आजाद कीं। “उफ्फ… कितनी रसीली है,” वो मेरे निप्पल चूसने लगे। “आह… बाबूजी… धीरे…” मैं सिसकारी। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत पर थीं, गीली चूत को सहलाते हुए। “तेरी चूत तो बिल्कुल कच्ची मलाई है,” उन्होंने कहा। मैं तड़प रही थी।
उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया। मेरी पैंटी उतारी, मेरी चूत को चाटने लगे। “उफ्फ… आह… बाबूजी… और चाटो…” मैं सिसकार रही थी। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी। मैंने अपने पैर और फैलाए, “आह… हाँ… ऐसे ही…” उनकी उंगलियाँ मेरी गांड में गईं, एक, फिर दो। “आह… दर्द हो रहा है… पर मजा भी आ रहा है,” मैंने कहा। वो हँसे, “अभी तो शुरुआत है, रानी।”
फिर उन्होंने अपना लंड निकाला। 7 इंच, मोटा, नसों से भरा। “देख, बहू, ये तुझे जन्नत दिखाएगा,” उन्होंने कहा। मैं डर गई, पर चूत में आग लगी थी। “बाबूजी… धीरे डालना…” मैंने कहा। उन्होंने मेरी चूत पर लंड रगड़ा, “चप्प… चप्प…” आवाज आने लगी। धीरे-धीरे लंड अंदर गया। “आह… उफ्फ… कितना मोटा है…” मैं चीखी। वो रुके नहीं, धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगे। “चप्प… चप्प… फच… फच…” मेरी चूत की आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। “आह… बाबूजी… चोदो मुझे… और जोर से…” मैं चिल्ला रही थी।
वो मेरी चूचियाँ दबाते, निप्पल चूसते, और लंड से मेरी चूत को फाड़ते। “तेरी चूत तो जवान लड़की जैसी टाइट है,” वो बोले। मैं तड़प रही थी, “आह… हाँ… और चोदो… मेरी चूत फाड़ दो…” मेरी साँसें रुक रही थीं। 15 मिनट तक वो मुझे चोदते रहे। फिर उन्होंने लंड निकाला और मेरी चूत पर माल गिरा दिया। “उफ्फ… कितना गरम है,” मैंने कहा। वो हँसे, “अब तू रोज आएगी, बहू।”
उस रात के बाद, मैं हर रात बाबूजी के पास जाती। वो मुझे चोदते, मेरी चूत और गांड दोनों को मजा देते। एक बार उन्होंने बताया कि भुवन की पहली पत्नी को भी वो ही चोदते थे। कुलवंत, जो भुवन का बेटा था, असल में बाबूजी का बेटा था। “रानी, तू भी जल्दी एक बेटा पैदा कर दे। घर में खुशियाँ ला दे,” उन्होंने कहा।
तीन महीने से मैं बाबूजी से चुद रही हूँ। हर रात वो मेरी चूत फाड़ते हैं। भुवन बस चाटने का काम करता है, और मैं बाबूजी के लंड से खुश रहती हूँ।
दोस्तों, आपको मेरी कहानी कैसी लगी? क्या आपको भी लगता है कि बड़े घरों में ऐसी चुदाई की कहानियाँ छुपी होती हैं? कमेंट में बताएँ।