कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-12
मदनलाल: अच्छा, बोलो, एंजॉय किया कि नहीं? मदनलाल बैठे-बैठे रीमा की गाण्ड सहलाते हुए बोला।
रीमा: फुल एंजॉय किया, बाबूजी। ये तो लाइफटाइम अचीवमेंट है। अगर कुंवारी होती, तो अभी चल नहीं पाती। कितना मोटा है आपका ये बदमाश। स्टैमिना भी गज़ब का। ऐसी घनघोर चुदाई रोज़ हो, तो औरत के लिए यही स्वर्ग है।
दोनों घर की ओर चले। रीमा ने अपनी चुचियाँ मदनलाल की पीठ से चिपकाईं, हाथ जाँघों पर रखा। ट्रैफिक कम होते ही उसने बाबूजी के साँप को नचाना शुरू किया।
रीमा: बाबूजी, बताइए, पार्क में कितनी बार किया?
मदनलाल: ज़्यादा नहीं। पुरानी बात है। पाँच साल बाद तुम्हें चोदा, इसलिए मज़ा आया।
रीमा: लड़की का इंतज़ाम कौन करता था? गार्ड?
मदनलाल: हाँ, वो ही करता था। आजकल लड़कियाँ जेब खर्च के लिए आती हैं—कॉलेज, होस्टल, वर्किंग वुमन। गार्ड सबको पहचानता है, दिला देता है। लड़कियों को भी मज़ा और पैसा, अच्छा धंधा।
रीमा: छी, ये कोई धंधा है? शरीर बेचकर पैसा कमाना? रीमा ने मूसल मसला।
मदनलाल: मार डालोगी क्या?
रीमा: हाँ, इसकी पिटाई करनी है। इतने दिन क्यों नहीं मिला? अच्छा, कोई मेडिकल स्टोर है? I-Pill दिला दीजिए। दोनों बार अंदर डाला, कहीं गड़बड़ हो गई तो?
मदनलाल: तो हमारी निशानी रख लेना।
रीमा: बड़े आए। पाँच महीने से वो आए नहीं, मैं क्या बोलूँगी—‘गंगा मैया दीन्ह हैं’?
मदनलाल: अर्जेंट कॉल करके बुला लो, उसे भी खेल खिला दो।
रीमा: चुप रहिए। हमारे शहर आ रहे हैं ना?
मदनलाल: अभी मन नहीं भरा? कुछ दिन यहीं रुक जाओ, रोज़ पार्क चलेंगे।
रीमा: पार्क में दहशत रहती है, खुलकर मज़ा नहीं ले पाए। चिल्लाने का मन था, पर पब्लिक प्लेस में नहीं चिल्ला पाए।
मदनलाल: अच्छा हुआ, नहीं तो इतनी पब्लिक आती कि रात तक टाँगें उठी रहतीं।
रीमा: छी, गंदी बात मत करो। हमारे शहर ज़रूर आना, तबीयत से मज़ा लेंगे। आपका माल भी नहीं पिया, टेस्ट तो देखें। फिर फन मसला।
घर पहुँचे। शाम तक दोनों एक-दूसरे को निहारते रहे। रीमा ने जाते वक्त कहा, “बाबूजी, हमारे शहर ज़रूर आना।” रीमा के जाने के बाद काम्या बोली, “बाबूजी हमारे यहाँ ज़रूर आना, बोल रही है। कमीनी को दो खसम से भी पूरा नहीं पड़ रहा, जो मेरा घर देख रही है।” मदनलाल चुपचाप सुनते हुए सोचने लगा, “नारी ना मोहे नारी के रूपा।”
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रात को काम्या अपने कमरे में चली गई। हल्का मेकअप किया। सोचा, बाबूजी पाँच दिन से भूखे हैं, रीमा का खेल भी देख लिया, आज ज़लज़ला आएगा। उसने खुद को लहरों में बहने के लिए तैयार किया। मधु, रीमा, पिंकी सब ऐश कर रही हैं, तो वो क्यों सूखी जिंदगी जिए? उसने ठान लिया, अगर बाबूजी नहीं बढ़े, तो वो कह देगी, “हमें चोदिए, आपका लंड चाहिए।” शराफत गई तेल लेने। पैंटी उतारकर फेंक दी, बुदबुदाई, “अब बाबूजी मेक्सी उतारेंगे, पूरी नंगी देखेंगे, तो जोश से कहाँ बचेंगे?” चेहरा लज्जा से लाल हो गया। आज वो चुदने वाली थी।
मदनलाल हॉल में टीवी देख रहा था। सुबह रीमा को दो बार निपटाया, जोश नहीं बचा। काम्या का यौवन ऐसा था कि पास गया, तो बंदूक फिर फायर करेगी। पर उसने सोचा, पाँचवाँ दिन है, बहू को तड़पने दो। जब तड़पेगी, तब भड़केगी। तब गिड़गिड़ाएगी, “बाबूजी, पेल दो, जैसे रीमा पिलवा रही थी।” वो बुदबुदाया, “हम तैयार हैं, बस एक बार बोल दे, बाबूजी चोदिए, मूसल डालकर कूट डालिए।” फिर अपने कमरे में सोने चला गया।
काम्या को एक घंटा हो गया, पर बाबूजी नहीं आए। वो निराश होकर सोचने लगी, “हमारी किस्मत में जवानी का सुख नहीं। जब सब लुटाने को तैयार हूँ, तब बाबूजी नहीं आ रहे।” उधर, मदनलाल बिस्तर पर था, पर नींद कोसों दूर। उसे लगा, ज़िद गलत है कि बहू बोलेगी, तभी चोदेंगे। बीवी 30 साल में नहीं बोली, तो बहू कैसे बोलेगी? ये नाइंसाफी है। रीमा को लाइफटाइम एक्सपीरियंस दिया, पर बहू सिंगल एक्सपीरियंस को तरस रही है। उसने काम्या को प्यासा छोड़ने की करतूतों पर पछतावा किया। उसने तय किया, कल काम्या का उद्घाटन करेगा। रीमा की खिड़की पर उसने खुद चूत पर सुपाड़ा फिट किया था। औरतों का कहने का ढंग वही होता है। पहले दिन से हेंड जॉब देकर कह रही थी। उसने मूसल पकड़ा, बोला, “बेटा, कल तेरी परीक्षा है। मालकिन की ऐसी सेवा करना कि वो तेरी मुरीद बन जाए।”
काम्या तड़प रही थी। रीमा का लाइव शो देखकर बाजी हाथ से निकल गई। उसे बाबूजी का लंड चाहिए, चाहे भीख माँगनी पड़े। तभी मोबाइल बजा। सोचा, बाबूजी होंगे। पर सुनील था। उसने घर-बार की बात की, फिर सेक्स की। काम्या को टेलिफोनिक सेक्स नहीं, हार्डकोर चुदाई चाहिए थी। सुनील ने बोला, अगले हफ्ते छुट्टी लेकर आ रहा हूँ। ये खबर वज्रपात थी। पर काम्या ने ठान लिया, चुदना है तो चुदना है, सुनील के रहते चोरी-छुपे ही सही। दिन में साँड़ से भिड़ेगी, रात में बकरे को खेल खिलाएगी।
सुबह मदनलाल और शांति हॉल में थे। काम्या चाय लाई। मदनलाल ने देखा, उसका चेहरा उदास, आँखें सूनी। लगा, रात न जाने से नाराज़ है। पर चेहरा नाराज़गी का नहीं, उदासी का था।
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काम्या: माँजी, कल उनका फोन आया।
शांति: सुनील का? क्या बोला?
काम्या: अगले हफ्ते छुट्टी लेकर आ रहे हैं।
शांति: अच्छी बात है। जल्दी आ रहा है। वहाँ मन नहीं लगता।
मदनलाल: जब बहूरानी यहाँ है, तो उसका मन कैसे लगेगा? काम्या की ओर तिरछी नज़र से देखा।
काम्या ने भी देखा। दोनों की नज़रें मिलीं। काम्या सुनील के आने से खुश नहीं थी। मदनलाल समझ गया, बहू उसे चाहने लगी है, सुनील नापसंद हो गया। ये प्लान के लिए अच्छा था, पर बेटे को प्यार न मिले, ये उसे कचोट गया। उसने सोचा, पहले बहू को अपना बनाएगा, फिर बेटे के लिए मना लेगा।
शांति: बहू, शादी को तीन साल हो गए, पोते का मुँह कब दिखाओगी? अब किल्कारी गूँजे। सुनील से कहो, मस्ती बहुत हो गई, सीरियस हो जाए।
काम्या: चुप रही।
शांति: समझ रही हो?
काम्या: जी, माँजी।
शांति: मदनलाल से आप कुछ बोलते क्यों नहीं?
मदनलाल: हाँ, अब बच्चा चाहिए। पड़ोसियों के बच्चों को कब तक खिलाएँगे? काम्या को कामुक नज़रों से देखा।
काम्या नज़रें नीची कर शरमा गई। दिन बोझिल रहा। रात को काम्या कमरे में थी। उसे यकीन था, बाबूजी आज आएँगे। और वो आए। काम्या बिस्तर पर थी, गाउन के नीचे कुछ नहीं। दरवाजा खुला, बाबूजी अंदर आए। काम्या उठ बैठी।
मदनलाल: क्या बात, बहू? हमसे गलती हुई, जो सुबह से गुस्सा हो?
काम्या: गुस्सा नहीं, बाबूजी। आप पर कैसे हो सकते हैं? अपनी किस्मत पर गुस्सा हूँ।
मदनलाल: किस्मत की चिंता क्यों? सास-ससुर के प्यार में कमी? एक बार बोलो, हर इच्छा पूरी करेंगे। तुम्हें खुश रखना मकसद है। काम्या के हाथ पकड़े, आँखों में देखा। काम्या, तुम्हारे लिए जान दे सकते हैं।
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काम्या की आँखें भर आईं। उसने बाबूजी को बाँहों में भींच लिया। दोनों भावुक हो गए। काम्या की नंगी चुचियाँ सख्त सीने में पिस गईं। वो गर्म होने लगी। मदनलाल पीठ सहलाने लगा, फिर तरबूजों पर हाथ। नंगी गाण्ड का अहसास होते ही मूसल तन गया, काम्या के पेट पर हमला करने लगा। उसने सोचा, बहू इशारा दे रही है। आज पैंटी उतारकर तैयार है।
मदनलाल: थोड़ी उठाकर मेरी प्राणप्रिया, सच्चा जवाब दोगी?
काम्या: पूछिए, सच्चा जवाब दूँगी।
मदनलाल: सुबह से दुखी क्यों थी? तुम्हें दुखी देखकर मेरा कलेजा मुँह को आ रहा है।
काम्या: दो कारण। पहला, सुनील के आने से खुश नहीं थी। दूसरा, मम्मी की बच्चे वाली बात।
मदनलाल: शांति ने कुछ उल्टा-पुल्टा कहा?
काम्या: नहीं, बच्चे वाली बात।
मदनलाल: शांति ठीक कह रही थी। तुम भी माँ बनना चाहती होगी।
काम्या: हर औरत चाहती है। हमने कभी फॅमिली प्लैनिंग नहीं की, सुनील भी नहीं। वो अंदर ही गिराता है, फिर भी कुछ नहीं हो रहा। शरमाते हुए।
शरम से लाल चेहरा देखकर मदनलाल मचल उठा।
मदनलाल: चिंता मत करो, गर्भ देर से ठहरता है। तुम्हारी सास भी दो साल बाद गर्भवती हुई। काम्या के होंठों को चूमा।
काम्या लता की तरह लिपट गई। दोनों अधरामृत पान करने लगे। मदनलाल ने गाउन उठाया, नंगी गाण्ड पंजों में आई। वो ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा। काम्या सिसकारियाँ लेने लगी, होंठ काटने लगी। दर्द हो रहा था, पर वो चुप रही। मदनलाल ने सोचा, कमी सुनील में है। काम्या को सही बीज मिले, तो दर्जनों बच्चे पैदा कर सकती है। उसे माँ बनाना उसकी ज़िम्मेदारी है।
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मदनलाल ने काम्या को गर्म करने की सोची। हाथ चूत पर रखा। नंगी चूत पर स्पर्श से काम्या सिसक उठी। madनलाल चूत में उंगली चलाने लगा। काम्या से बर्दाश्त नहीं हुआ, उसने मूसल पकड़कर मसला। लूँगी कब गिरी, पता नहीं। madनलाल चड्डी उतारकर आया था। काम्या ने अंडों को सहलाया, कभी एक, कभी दोनों। madनलाल बेकाबू हो गया। चूत चिपचिपी और दहक रही थी। इतनी गर्म बुर उसने कभी नहीं देखी। उसे यकीन हो गया, बहू कुछ भी मानेगी।
काम्या ने madनलाल का चुचक मुँह में लिया। madनलाल स्तब्ध हो गया। पहली बार कोई उसका चुचक चूस रहा था। उंगली चीरे में तेज़ी से चली। काम्या बेकाबू होकर चुचक दबाने लगी।
मदनलाल: आह, जान, दर्द दे रहा है।
काम्या: जब आप ज़ोर से चूसते थे, तब? मैं कहती थी धीरे करो, तो आप कहते थे, ज़ोर से मज़ा आता है। अब आपको पता चलेगा, मर्द औरतों को कितनी तकलीफ देते हैं।
मदनलाल: औरतों का उसी लिए बना है। हमारा वैसा थोड़े है।
काम्या: तो आपके उसको देखते हैं। मूसल मसला।
मदनलाल: जान, वो दबाने के लिए नहीं।
काम्या: तो बताइए, किस लिए?
मदनलाल: अंदर-बाहर करने के लिए।
काम्या: धत, बदमाश। चुचक चबाया।
madनलाल उछला, अंगूठा चूत में दो इंच धँसा। काम्या सिसक उठी, सिर सीने पर टिकाया।
काम्या: ओह, बिना बताए डाल दिया। गंदे।
मदनलाल: इसमें बताने की क्या बात?
काम्या: आपने वचन दिया था, बिना पूछे नहीं डालेंगे। चीटर।
मदनलाल: तुम बहकी-सी बात कर रही हो। जो तुम कह रही हो, वो नहीं डाला। वो तुम हाथ में पकड़े हो। नीचे अंगूठा है।
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काम्या ने देखा, खिलौना हाथ में था। सोचा, “अंगूठा इतना टाइट, तो वो क्या तबाही मचाएगा?” madनलाल ने फिंगर फकिंग शुरू की। काम्या बैचेन हो गई, मूसल पर शेरनी की तरह टूटी। जवानी की गर्मी में हार गई, प्रेमरस बहा, madनलाल के कंधों में झूल गई। फिर भी मूसल पर झटके देती रही। madनलाल हैरान था।
मदनलाल: जान, बर्दाश्त नहीं हो रहा। माल निकलवा दो।
काम्या: कर तो रहे हैं।
मदनलाल: मुँह में लो।
काम्या: आपने भी तो हाथ से निकाला। हम भी हाथ से निकालेंगे। इठलाते हुए।
madनलाल समझ गया, बहू को भी अब और चाहिए।
मदनलाल: सारा माल बेकार जाएगा। मल्टीविटामिन प्रोटीन है, सक इट बेबी।
काम्या ने चोकोबार मुँह में लिया, लपर-लपर चूसा। रीमा-पिंकी से बेहतर करना चाहती थी। गाण्ड सहलाते हुए अंडों को प्यार दिया। madनलाल डकारने लगा। उसने काम्या का सिर पकड़ा, माउथ फकिंग शुरू की। काम्या घबरा गई। पूरा लंड गले में उतर रहा था। madनलाल शातिर था, नपे-तुले स्ट्रोक मार रहा था। दो मिनट बाद सारा माल काम्या के पेट में उतारा। madनलाल धड़ाम से बैठ गया, हाँफने लगा। काम्या ने सिर सीने में चिपकाया, बाल सहलाए।
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पंद्रह मिनट बाद madनलाल ने काम्या को चिपकाया, होंठों पर होंठ रखे। एक हाथ तरबूजों पर, फिर गुलाब की पंखुड़ियों पर। काम्या पैर रगड़ने लगी। madनलाल सितार छेड़ रहा था, राग कामलहरी निकल रहा था। काम्या सिसकारियाँ लेने लगी, आँखें बंद कर लहरों पर सवार हो गई। madनलाल ने चुचि मुँह में ली, कोबरा पकड़ा गया। दोनों आदिम खेल में लीन हो गए।
मदनलाल: जान, आज तुम जोश में हो। ऐसा प्यार पहले कभी नहीं दिया।
काम्या: आपने भी ऐसा प्यार पहले नहीं किया। जैसा दे रहे हैं, वैसा पा रहे हैं।
मदनलाल: हम तो हमेशा ऐसा करते हैं। मिडिल फिंगर अमृत कुंड में सरकाई।
काम्या सिसक पड़ी, मूसल मसला।
काम्या: पहले छोटे बटन दबाते थे, आज मेन स्विच ऑन कर दिया। हाथ पर चिकोटी काटी।
काम्या बाघिन की तरह मूसल से खेल रही थी। madनलाल ने सोचा, लोहा गर्म है।
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मदनलाल: जान, कुछ कहना चाहते हैं, पर डर है, बुरा न मान जाओ।
काम्या: मुझसे डरने की क्या बात? मैं आपकी दासी हूँ, चेरी हूँ।
मदनलाल: तुमने कहा, सुनील का कम माल निकलता है, देर नहीं टिकता।
काम्या: हाँ। आँखों में देखा।
मदनलाल: कमी सुनील में है, इसलिए तुम माँ नहीं बन पा रही।
काम्या: डॉक्टर को दिखाकर इलाज करा सकते हैं।
मदनलाल: ख़तरा है। अगर डॉक्टर ने कहा सुनील बाप नहीं बन सकता, तो तुम जिंदगी भर माँ नहीं बन पाओगी। जब तक वो डॉक्टर नहीं जाता, तुम्हें माँ बनने का चांस है।
काम्या: वो कैसे?
मदनलाल: इस घर को उत्तराधिकारी देने के लिए किसी और से माँ बनना होगा।
काम्या: ये क्या कह रहे हैं? ये अधर्म है, पाप है।
मदनलाल: इसमें अधर्म नहीं। शास्त्र इसका समर्थन करते हैं।
काम्या: शास्त्र?
मदनलाल: नियोग प्रथा। पुराने ज़माने में, अगर पति की कमज़ोरी से औरत माँ नहीं बन पाती, तो वो परिवार के किसी पुरुष से संयोग करती थी।
काम्या: विश्वास नहीं होता। उदाहरण दीजिए।
मदनलाल: पाँचों पांडव, कर्ण, पांडु, धृतराष्ट्र—सब अपने जैविक पिता की संतान नहीं थे।
काम्या: ओह माय गॉड! सोच में पड़ गई।
मदनलाल: अब तुम्हें फैसला लेना है। माँ बनना है या नहीं? हाँ बोलो, तो घर खुशियों से भर जाएगा।
काम्या: आप जो बोलेंगे, वही करेंगे।
मदनलाल: कुलदीपक दो, सुनील को पता न चले।
काम्या: लेकिन कैसे? कहाँ ढूँढें?
मदनलाल: इशारा करो, उम्मीदवारों की लाइन लग जाएगी।
काम्या: धत, हमें वैसी समझा?
मदनलाल: तो एक उपाय है।
काम्या: कौन सा?
मदनलाल: परिवार में सुनील के अलावा एक और पुरुष है।
काम्या: कौन?
मदनलाल: हमें मर्द नहीं मानती?
काम्या: आप अपने चक्कर में कहानी सुना रहे थे। चालाक।
मदनलाल: दबाव नहीं बना रहे। किसी और से चाहो, तो मर्ज़ी।
काम्या: चुप रहिए। किसी और का बच्चा पैदा करें, तो आप उसे प्यार दे पाएँगे?
मदनलाल: तुम न बाहर वाले से बनाना चाहतीं, न हमें पसंद करतीं।
काम्या: कब कहा, आप पसंद नहीं? कामुक नज़रों से देखा।
मदनलाल: तो हाँ क्यों नहीं बोलती?
काम्या: इतना बड़ा फैसला, थोड़ा समय दीजिए।
मदनलाल: कितना समय? सुनील आ रहा है। जल्दी फैसला करो, वरना छह महीने रुकना पड़ेगा।
काम्या: पंद्रह मिनट छत पर घूम आइए, तब तक फैसला कर लूँगी। लजाते हुए।
कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-14